1.संदर्भ
व्यापार ही क्यों?
अनिश्चितता के बीच बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के एक नए युग का संकेत मिल रहा है.
बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के भीतर तनाव लंबे समय से स्पष्ट है. लेकिन यह तनाव केवल विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में कृषि सब्सिडी और औद्योगिक शुल्कों से लेकर बौद्धिक संपदा सुरक्षा तक कई मोर्चे रुकी हुई प्रगति के कारण नहीं है. जमीनी स्तर पर ‘‘मुक्त व्यापार’’ के आसपास बनी आम सहमति को लेकर हमेशा से ही सरकारी हस्तक्षेप होते रहे है; बहुपक्षीय व्यापार नियम हमेशा से ही द्विपक्षीय मुक्त-व्यापार समझौतों के प्रसार और बढ़ते क्षेत्रीयकरण के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं; और फिर राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर छूट अधिकांश व्यापार समझौतों में मिली हुई ही होती है. हेग्मोनिक अर्थात आधिपत्य स्पर्धा और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर संकट, संघर्ष और जलवायु के कारण व्यापार प्रतिबंधात्मक व्यवहार को दिया जाने वाला बढ़ावा अंतर-देश संबंधों के साथ ही बहुपक्षीय व्यापार नियमों को दरकिनार करने में अपना योगदान दे रहा है. अब जब विभिन्न देश न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक लागत और लाभ पर विचार करते हैं, इस वजह से एकपक्षवाद, संरक्षणवाद और संभावित विखंडन के भरपूर उदाहरण मिल जाते हैं. (बॉक्स 1 देखें).
बॉक्स 1: एक अनिश्चित वैश्विक व्यापार परिदृश्य
- एकपक्षीयता : उदाहरण के लिए, फरवरी 2021 से लागू यूरोपीय संघ (ईयू) के संशोधित व्यापार नियम को देखिए. इसकी वजह से यह संघ यदि किसी विरोधी देश से विवाद निपटाने में बाधा का सामना करता है तो उसे उस विरोधी देश के खिलाफ डब्ल्यूटीओ से पूर्व अधिकार के बगैर ही प्रतिबंधों को लागू करने की अनुमति मिलती है.[1] अन्य उदाहरणों में यूक्रेन के खिलाफ रूस की कार्रवाई को लेकर की गई आर्थिक जवाबी कार्रवाई को माना जा सकता हैं, जिसमें प्रतिबंध भी शामिल हैं,[2] इसके अलावा रूस को दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा वापस लेने का फैसला भी इसका उदाहरण ही कहा जाएगा. यहां विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यापार को प्रभावित करने वाले जलवायु नीति के ऐसे विनियमन, अर्थात कार्बन सीमा समायोजन तंत्र और प्रस्तावित वनों की कटाई विरोधी विनियमन, को लेकर यूरोपीय संघ ने एकतरफा हस्तक्षेप किया हैं.[3] दरअसल इस वक्त कार्बन-मूल्य निर्धारण के लिए लगभग 70 विभिन्न दृष्टिकोण मौजूद हैं.[4] सर्वाधिक और विशेष चिंता का विषय ‘‘उग्र अथवा आक्रामक एकपक्षीयता’’[5] या लक्षित देश की कीमत पर लाभ की तलाश करने वाला व्यापार-प्रतिबंधित व्यवहार या दूसरों के व्यापार आचरण में जबरन परिवर्तन करने को लेकर किया जाने वाला प्रयास है.
- संरक्षणवाद: दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और चीन, एक व्यापार और प्रौद्योगिकी युद्ध में जुटे हुए हैं. यह युद्ध कंपनियों, निर्यात प्रतिबंधों और शुल्कों के खिलाफ प्रतिबंधों से लबालब है.[6] ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ भी स्पष्ट दिखाई देता है, जबकि रूस-यूक्रेन संकट के कारण विश्व में तेजी से खाद्य संरक्षणवाद बढ़ता जा रहा है.[7] ग्लोबल ट्रेड अलर्ट से मिली जानकारी के अनुसार वैश्विक वित्तीय संकट के पश्चात बढ़ता व्यापार हस्तक्षेप साफ दिखाई दे रहा है. विशेषत: 2018 के बाद से उदारीकरण को, प्रतिबंधात्मक उपायों ने पीछे छोड़ दिया है. उच्च तकनीक क्षेत्रों में खासकर, प्रतिबंधों की संख्या काफी बढ़ गई है.[8] बाजार तक पहुंच को सीमित करने वाली तीन सबसे लोकप्रिय नीतियों के संदर्भ में - कार्पोरेट सबसिडी, ‘राष्ट्रीय खरीद’ से जुड़ी सरकारी खरीद संबंधी पहल एवं टैरिफ अर्थात शुल्क सूची में की गई वृद्धि को देखा जा सकता हैं.[9] ऐसी नई औद्योगिक नीतियां जो स्वदेशी उत्पादन या रीशोरिंग अर्थात विदेश में गए कारोबार को स्वदेश वापस बुलाने को प्रोत्साहित करती हैं (उदाहरण के लिए, यूएस सीएचआईपीएस एंड साइंस एक्ट और इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट; या चीन की दोहरी परिसंचरण रणनीति) एक दीर्घकालिक संरक्षणवादी प्रवृत्ति का संकेत देने वाली नीतियां कही जा सकती हैं.
- विखंडन: विशेष रूप से सेमीकंडक्टर जैसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील सामानों के री-शोरिंग, नियर-शोरिंग अर्थात पड़ोसी के साथ कारोबार और फ्रेंड-शोरिंग अर्थात मित्र देश के साथ कारोबार करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बढ़ने लगी है. ऐसे में यह एक ऐसी स्वतंत्र आपूर्ति श्रृंखला की संभावना को बढ़ावा देती है, जहां वैश्विक व्यापार ब्लॉक, राजनीतिक चश्मों के कारण विभाजित दिखाई देने लगते हैं. इंडिया-जापान-ऑस्ट्रेलिया सप्लाई चेन रिज़िल्यन्स इनिशिएटिव, या के अमेरिका के नेतृत्व वाला भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा, और क्वाड पहल जैसे बहुपक्षीय प्रस्ताव ‘‘गेटेड वैश्वीकरण’’[10] या ‘‘रणनीतिक पुर्नवैश्विकरण’’ का स्त्रोत होंगे.[11] ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता जैसे बड़े क्षेत्रीय व्यापार समूह और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी, इनमें शामिल नहीं रहने वाले सदस्यों की तुलना में अधिक भेदभाव और व्यापार संघर्ष को बढ़ावा देने का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा, वैश्विक शासन व्यवस्था की अनुपस्थिति में एकतरफा और बहुपक्षीय उपायों के कारण सीमित विनियमन वाले उद्योग (जैसे, उद्योग 4.0; स्थिरता; डिजिटल डोमेन) और कमज़ोर निगरानी वाले कारोबारी बर्ताव (जैसे, औद्योगिक/कार्पोरेट सब्सिडी और निर्यात नियंत्रण) जैसे व्यापार क्षेत्रों में मानदंडों और प्रथाओं की विविधता बढ़ रही हैं.
आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों को दूर करने, आर्थिक लचीलापन हासिल करने और समावेशी विकास प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए घरेलू क्षमताओं में सुधार और भरोसेमंद व्यापार भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत करना उचित ही कहा जाएगा. हालांकि, दो प्रमुख कारणों से, व्यापार को जीरो-सम लेंस और व्यापार परस्पर निर्भरता को असुरक्षा के स्त्रोत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
सबसे पहले आर्थिक राष्ट्रवाद, विशेष रूप से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने, संकट का जवाब देने और प्रणालीगत बदलावों को लागू करने में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका की ओर इशारा करता है. व्यापार को काफी पहले से ही विकास और उत्पादकता, दक्षता और नवाचार, नौकरियों और आय के साथ-साथ आवश्यक प्रौद्योगिकी तक पहुंच के चालक के रूप में मान्यता मिली हुई है. अधिकांश वैश्विक व्यापार को संचालित करने वाले जीवीसी, पारंपरिक व्यापार की तुलना में बेहतर आय और उत्पादकता का लाभ देने के लिए पहचाने जाते हैं: जीवीसी भागीदारी में 1-प्रतिशत की वृद्धि के परिणामस्वरूप मानक व्यापार से 0.2-प्रतिशत आय लाभ की तुलना में प्रति व्यक्ति 1 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो सकती है.[12],[13] मौलिक रूप से, ‘‘एक एकीकृत अर्थव्यवस्था ने, माल, सेवाओं, निवेश और विचारों के प्रवाह को सरल बनाया है और इसके चलते 1990 के बाद से एक अरब से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर आने में सहायता मिली है.’’[14] इसके अलावा, कृषि से लेकर आर्थिक क्षेत्रों और बाजारों - सेवाओं से स्वास्थ्य तक, प्रौद्योगिकी से स्वास्थ्य तक - के साथ व्यापार के जुड़ाव को देखते हुए व्यापार को हम हरित परिवर्तन के साथ-साथ समावेशी और दीर्घकालीन विकास हासिल का एक सहायक और अनिवार्य वाहन कह सकते हैं.
2022 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, संकट का जीवीसी में अंतनिर्हित देशों ने, ऐसे अन्य देश जो इसमें शामिल नहीं थे, की तुलना में अधिक सक्षमता और तेजी से मुकाबला करते हुए अपनी स्थिति में तेजी से सुधार किया: जीवीसी यह सुनिश्चित करते हैं कि वैश्विक मंदी के दौरान मूल्य श्रृंखला के माध्यम से दुनिया के किसी भी हिस्से में रिकवरी का संचार हो सके.[15] कोविड-19 महामारी ने खाद्य और दवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए व्यापार पर निर्भर रहने वाले देशों के जोखिमों को दुनिया के सामने उजागर कर दिया था. इसी प्रकार यह भी उतना ही सच है कि कोविड-19 के साथ-साथ भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थिति से उपजने वाली स्थिति को लेकर व्यापक प्रतिक्रिया को लागू करने में नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था होना उतना ही महत्वपूर्ण है. डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक नगोजी ओकोन्जो-आइवियेला ने कहा था,[16] ‘‘ट्रेड पॉलिसी ही वैक्सीन पॉलिसी है.’’ उदाहरण के लिए, महामारी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण व्यापार सुगमता उपायों में से एक के रूप में सीमा एजेंसी सहयोग की पहचान की गई थी, जिससे समय और लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने में सहायता मिली थी.[17] 2030 तक बढ़ी हुई व्यापार सुविधा से अतिरिक्त 22 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है, जबकि निचले स्तर में आने वाले 40 प्रतिशत लोगों की आय में सुधार किया जा सकता है. ऐसा होना महामारी के कारण वैश्विक गरीबी में गिरावट का मुकाबला करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. ‘‘पॉलीक्राइसिस’’[18] - जब धीमी वृद्धि, एक असमान वसूली, मंदी की आशंका, ऋण जोखिम, रिकॉर्ड - उच्च मुद्रास्फीति और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और संकट - की वर्तमान पृष्ठभूमि में व्यापार के सहयोग से ही कीमतों को कम करने, मुद्रास्फीति को उत्साहहीन करने, सार्वजनिक ऋण दबावों को कम करने के साथ स्त्रोतों, बाजारों और जोखिमों में विविधता लाकर आर्थिक लचीलेपन को हासिल किया जा सकता है.
आईएमएफ और विश्व बैंक के अध्ययन ने निवेश, जीडीपी, रोजगार, वास्तविक आय और गरीबी के स्तर पर एकपक्षवाद, संरक्षणवाद और विखंडन के प्रतिकूल प्रभावों को उजागर किया हैं. (चित्र 1 देखें). इस कारण उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अनिवार्य रूप से अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होंगी. उदाहरण के लिए, विश्व बैंक के अनुसार संरक्षणवादी उपायों की वजह से गेहूं की कीमतों में नौ प्रतिशत तक वृद्धि हुई है. रीशोरिंग प्रयासों को पुनर्जीवित करने की उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं और चीन की कोशिशों से रियल इंकम अर्थात वास्तविक आय में 1.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी. इसके परिणामस्वरूप 52 मिलियन अतिरिक्त लोग 2030 तक अत्यधिक गरीबी में चले जाएंगे. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अफ्रीका, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका में देखा जाएगा. क्रिटिकली अर्थात नाजुक रूप से कुछ देशों की दिशा में व्यापार डायवजर्न अर्थात व्यापार मुड़ने की वजह से उन देशों को होने वाले लाभ की वजह से अधिकांश देशों के उत्पादन में महत्वपूर्ण और स्थायी गिरावट दिखाई देगी. दूसरी ओर उसी अवधि में ऐसी नीतियां, जो जीवीसी के अधिक अनुकूल हैं और अधिक एकीकरण का समर्थन करती हैं, को अपनाने से 21.5 मिलियन लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिल सकती है. गरीबी उन्मूलन के मामले में दक्षिण एशिया सबसे ज्यादा लाभान्वित होगा.[19]
चित्र 1: भू-आर्थिक विखंडन के परिणाम
प्रतिबंधित ऊर्जा और उच्च-तकनीकी व्यापार और शीत-युद्ध युग के गैर-टैरिफ अवरोधों के साथ यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र के वोट (जिन देशों ने इसका समर्थन किया बनाम जिन लोगों ने इसका विरोध किया अथवा अनुपस्थित रहे) की तर्ज पर विश्व व्यापार के विखंडन से होने वाले दीर्घकालिक नुक़सान का एक काल्पनिक परिदृश्य. यह परिदृश्य स्थायी वैश्विक वार्षिक को सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत दर्शाता है, जिसमें एशिया और प्रशांत देशों के सकल घरेलू उत्पाद को 3.3 प्रतिशत का नुकसान होता है. स्त्रोत : आईएमएफ[20]
व्यापार परस्पर निर्भरता को अधिक अनुकूल रूप से देखने का दूसरा कारण यह है कि बिग-पॉवर अर्थात बड़ी-शक्ति प्रतियोगिता एक बड़ी तस्वीर को धुंधला कर देती है. आज हानिकारक व्यापार नीतियां, उदारीकरण के कदमों की तुलना में व्यापार की मात्रा को ज्यादा जोखिम में डालती है. लेकिन यह भी सच ही है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ही अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को ज़्यादा प्रभावित करती हैं. (चित्र 2 देखें), और फिलहाल इसके लिए अमेरिका तथा उसके बाद ईयू-27 ही भारी मात्रा में हानिकारक व्यापार उपाय के लिए जिम्मेदार हैं.[21] कोविड-19 के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रिकॉर्ड सबसे बड़ी गिरावट देखी गई थी, लेकिन इसके बाद उतनी ही तेजी से रिकवरी भी दर्ज की गई. विश्व बैंक ने भी आगे दर्ज़ किया है कि वैश्विक उत्पादन के किसी भी अन्य अंश की तुलना में व्यापार तेजी से और मजबूत हुआ था.[22] वर्ष 2021 में रिकॉर्ड 28.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ. यह 2019 में पूर्व-महामारी के स्तर से 13 प्रतिशत की वृद्धि थी.[23]
इसके बावजूद, विकासशील देशों के लिए व्यापार आधारित विकास को अब भी एक अधूरी कहानी ही कहा जाएगा. दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के साथ उप-सहारा अफ्रीका द्वारा अगले पांच वर्षों में व्यापार की मात्रा में वृद्धि करने का अनुमान लगाया गया है. इतना ही नहीं निकट भविष्य में भारत, फिलीपींस और वियतनाम के संभावित रूप से व्यापार वृद्धि की अगुवाई करने का भी अनुमान है.[24] एक अन्य उदाहरण के रूप में दक्षिण-दक्षिण व्यापार में जारी वृद्धि को देखा जा सकता है. वर्तमान में यह महामारी-पूर्व के स्तर से 42-प्रतिशत अधिक है.[25] इसके अलावा, क्षेत्रीय और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में वैश्विक दक्षिण की भागीदारी अभी भी जारी है: एक ओर जबकि जीवीसी भागीदारी के चीन जैसे पिछले चालकों का योगदान स्थिर हो गया है, इसमें अन्य विकासशील देशों जैसे बांग्लादेश (कपड़ा) और वियतनाम (इलेक्ट्रॉनिक्स) की भागीदारी बढ़ रही है. ओसीईडी स्त्रोत से मिली जानकारी के अनुसार 1990-2018 के बीच चीन को छोड़कर, जी20 विकासशील देशों की जीवीसी भागीदारी की औसत वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि 9.88 प्रतिशत रही है.[26]
चित्र 2: शक्ति स्पर्धा और व्यापार प्रतिबंध
स्त्रोत: ग्लोबल ट्रेड अलर्ट[27]
अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर स्वाभाविक इच्छा अर्थात भूख बनी हुई है. अब व्यापार की प्रकृति उच्च तकनीक वाली वस्तुओं, सेवाओं और डिजिटलीकरण की दिशा में विकसित हो रही है: इसके लिए अनिवार्य रूप से एक अनुकूल सीमा-पार इकोसिस्टम अर्थात पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत होती है. श्रम और पर्यावरण मानकों जैसे ‘‘व्यापार प्लस मुद्दे’’, सामूहिक रूप से विनियमित करने के लिए तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं. मल्टीपल अर्थात एकाधिक और ओवरलैपिंग अर्थात अतिव्यापी संकटों के निवारण के लिए यह आवश्यक है कि व्यापार इसका हिस्सा रहे : यूएनसीटीएडी की महासचिव रेबेका ग्रिनस्पैन ने कहा था कि, ‘‘यदि समस्या का एक आयाम व्यापार है, तो समाधान का एक आयाम भी व्यापार ही होना चाहिए,’’[28] आने वाले वर्षों में मौजूदा चुनौतियों का सामना कर उन्हें दूर करने और बहुत ज़रूरी व्यापार कार्रवाई करने की राह में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में, एकपक्षवाद, संरक्षणवाद और विखंडन सबसे बड़ा रोड़ा कहा जाएगा. ऐसे में पारस्परिक लाभ के लिए सिस्टम में प्रिडिक्टबिलिटी अर्थात पूर्वानुमेयता, स्थिरता और विश्वास के कुछ उपाय पुन: शुरू करना अनिवार्य हो गया है.
G20 ही क्यों?
जैसा कि पिछले अनुभाग में रेखांकित किया गया है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उन अवरोधों का सामना करता है जो जितने राजनीतिक है, उतने ही तकनीकी भी हैं. जी20 की प्रणालीगत प्रासंगिकता इसके राजनीतिक और सहकर्मी-शिक्षण कार्यों को रेखांकित करती है. वह इस प्रणालीगत प्रासंगिकता का उपयोग बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में अधिक पूर्वानुमान, स्थिरता और विश्वास पैदा करने के संबंध में कर सकता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए. जी20 में दुनिया के औद्योगिक देश और उभरते बाज़ार शामिल हैं. यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक मंच है, जिसमें शामिल देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत और दुनिया की आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखते हैं. (चित्र 3 देखें)
चित्र3. जी20: एक आर्थिक हेवीवेट
स्त्रोत : विश्व बैंक, ओईसीडी और यूएनसीटीएडी डेटाबेस से मिली जानकारी. इसे ग्लोबल ट्रेड ऑब्ज़र्वर द्वारा तैयार किया गया है.
इसकी सामूहिक सदस्यता के भारी प्रभाव के साथ ही अपनी सदस्यता के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूर्व और दक्षिण की ओर बदलाव का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व करने वाली 21वीं सदी के कार्यशील बहुपक्षीय समूह भी मौजूद नहीं है. इसके साथ ही साथ 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में इस समूह की ठोस प्रतिक्रिया ने पारंपरिक रूप से जी20 को दुनिया की आर्थिक संचालन समिति के रूप में काफी हद तक वैधता ही प्रदान की है. जी20 के शेरपा और वित्त ट्रैक के तहत विशेष सरकार स्तरीय और सिविल-सोसायटी एंगेजमेंट अर्थात नागरिक-समाज की हस्सेदारी के साथ-साथ बहुपक्षीय संगठनों -जैसे डब्ल्यूटीओ, यूएनसीटीएडी, ओईसीडी, डब्ल्यूबी और आईएमएफ- के दम पर जी20 अहम राजनीतिक गति प्राप्त कर सकता है. विशेषत: जी20 एक लिंचपिन अर्थात अहम बहुपक्षीय मंच हो सकता है. यह मंच कम से कम प्रमुख प्राथमिकताओं पर राजनीतिक दिशा और समर्थन हासिल करने के साथ ही सहकर्मी को सीखने में सहयोग करते हुए साझा समझ और समन्वित कार्यों में एक साथ योगदान देने का काम कर सकता हैं.
इसी राजनीतिक पूंजी की बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को आवश्यकता है. नेताओं की विज्ञप्ति/घोषणाएं और जी20 प्रेसीडेंसी एनेक्स के दस्तावेज़ बताते हैं कि क्यों: व्यापार पर जी20 का ट्रैक रिकॉर्ड मिश्रित है, और इन बढ़ते राजनीतिक मतभेदों के कारण आम सहमति और उत्पादन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, और इसी वजह से अलग-अलग और मुद्दा विशेष प्रगति ही दर्ज़ की जाती है.
जी20 के शुरुआती वर्षों में गहराई, जुड़ाव और फोकस में धीरे-धीरे जो वृद्धि हुई, वह 2016 में चीन में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में अपने चरम पर पहुंच गई. लेकिन राजनीतिक मतभेद बढ़ने के कारण इसके बाद हाल के वर्षों में यह रिलेटिव डीइमफेसिस अर्थात प्रासंगिक विप्रबलन का शिकार हो गई है. बॉइलर्प्लैट अर्थात तीखे और गर्म बयानों और कमज़ोर भाषा ने ही व्यापार संबंधी आम सहमति को परिभाषित किया है; इसके कारण व्यापार संबंधी प्रतिबद्धताओं में गिरावट आई है; और अन्य नीति क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र में कम्पलायन्स अर्थात अनुपालन सबसे कम देखा जाता है. शिखर सम्मेलन के प्रारंभिक नेताओं ने संरक्षणवाद का विरोध करने और वैश्विक वित्तीय संकट के बाद बाज़ारों को खुला रखने पर जोर दिया था. इसके साथ ही उन्होंने दोहा व्यापार वार्ता दौर के सफल समापन के साथ ही विश्व व्यापार संगठन के मंत्री स्तरीय सम्मेलनों के क्रमिक दौर में भी प्रगति का वादा किया था. 2018 के बाद से नेताओं के फाइनल डिक्लरेशन अर्थात अंतिम घोषणा में ‘संरक्षणवाद’ का उल्लेख गायब होने लगा. हालांकि 2021 और 2022 के शिखर सम्मेलन के दस्तावेजों में इसका संदर्भ इतालवी[29] और इंडोनेशियाई[30] प्रेसीडेंसी अर्थात अध्यक्षता के तहत ‘‘व्यापार तनाव’’, ‘‘विकृतियों’’ और ‘‘आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान’’ की आड़ में पुन: दिखाई दिया.
लंबित पड़े दोहा दौर की बातचीत मरणासन्न होने के साथ ही अब विशेष रूप से रुके हुए विवाद समाधान तंत्र के आलोक में, विश्व व्यापार संगठन के सुधार बातचीत का केंद्र बिंदु बन गए हैं. पारंपरिक मुद्दे से जुड़े क्षेत्रों - व्यापार सुगमता, व्यापार के लिए सहायता, जीवीसी, और रोजगार पैदा करने में व्यापार की भूमिका - की जगह अब उभरते अवसरों और चुनौतियों ने ले ली है. इन उभरते अवसरों और चुनौतियों में अतिरिक्त क्षमता, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की बढ़ती भागीदारी और जीवीसी में महिलाओं, सेवाओं में व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा, और व्यापार और डिजिटलीकरण से संबंधित परस्पर संबंध, स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े मामलों को शामिल किया जा सकता है.
अब कोविड के बाद के दौर में समावेशी, टिकाऊ और लचीले व्यापार पर बल दिया जा रहा है. इंडोनेशियाई प्रेसीडेंसी अर्थात अध्यक्षता के तहत आउटकम डॉक्यूमेंट अर्थात परिणाम दस्तावेज़ों में व्यापार की क्रॉस-कटिंग प्रकृति को फिर से मान्यता देने के साथ ही महत्वपूर्ण रूप से, घरेलू क्षमताओं को बढ़ावा देने वाला माना गया है. (अधिक विस्तृत टाइमलाइन अर्थात समयरेखा के लिए चित्र-4 देखें.)
आंकड़े
2008, वाशिंगटन: नेताओं ने वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार की नई बाधाएं लगाने से बचने की प्रतिबद्धता व्यक्त की. (जिसे स्टैंडिस्टल/रोलबैक प्रतिबद्धता कहा जाएगा)
2009, लंदन:
बहुपक्षीय संगठनों को व्यापार उपायों की निगरानी और रिपोर्ट करने के लिए कहा गया. जी20 अर्थव्यवस्थाओं द्वारा किए गए व्यापार और निवेश उपायों पर डब्ल्यूटीओ, ओईसीडी तथा यूएनसीटीएडी संयुक्त रूप से पहले त्रैमासिक और अब द्वि-वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं.
घरेलू एजेंसियों और एमडीबी के माध्यम से वितरित किए जाने वाले ट्रेड फाइनांस अर्थात व्यापार वित्त में कम से कम 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर झोंकने का वचन दिया जाता है.
2009, पिट्सबर्ग: स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के प्रसार/हस्तांतरण और व्यापार के बीच की कड़ी को मान्यता दी गई.
2010, टोरंटो: अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को व्यापार के लिए दी जाने वाली सहायता की गति को बनाए रखने का आह्वान किया गया.
2010, सियोल:
सियोल सहमति के तहत विकासशील देशों में समावेशी, दीर्घकालीन और लचीले विकास के लिए जिन आवश्यक नौ स्तंभों की शिनाख्त की गई, उनमें से एक व्यापार है.
विकास पर बहु-वर्षीय कार्य योजना, एक पूरक शिखर सम्मेलन परिणाम दस्तावेज़, जिसमें व्यापार सुविधा, व्यापार वित्त, व्यापार के लिए सहायता, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के आह्वान के माध्यम से व्यापार क्षमता और बाज़ारों तक पहुंच, विशेष रूप से एलआईसी में, बढ़ाने पर विशिष्ट कार्रवाई शामिल है. ऐसा अफ्रीका में क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण पर प्रगति के साथ किया जाएगा.
2011, कान:
वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के लिए चुनौतियों और अवसरों पर संलग्न होने के लिए मंत्रियों (बहुपक्षीय निकायों के स्थान पर) को पहली बार आगे आने का आह्वान किया जाता है.
पहली बार विश्व व्यापार संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता का उल्लेख किया जाता है.
2012, लॉस काबोस: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से जीवीसी की ओर ध्यान देने अर्थात उनकी जांच की अपील की गई.
2013, सेंट पीटर्सबर्ग:
पहली बार जी20 के व्यापार मंत्रियों की बैठक हुई.
चर्चा में पारदर्शिता एक प्रमुख मुद्दा था. व्यापार पहल में पारदर्शिता का समर्थन करने को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त की जाती है. चर्चा में आरटीए के संदर्भ में पारदर्शिता को भी शामिल किया जाता है. और इसको लेकर एक पूरक सहायक दस्तावेज़ जारी किया जाता है.
2014, ब्रिस्बेन: जी20 शिखर सम्मेलन से कुछ वक्त पहले ही अमेरिका और भारत के बीच महत्वपूर्ण बातचीत हुई (जो सम्मेलन दस्तावेज़ में शामिल होने के लिए पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण थी) जिससे विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुविधा समझौते के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने पर उम्मीद बंधती है.
2015, एंटाल्या: पहली बार एसएमई का उल्लेख किया जाता है. यह उल्लेख जीवीसी में उनकी भागीदारी बढ़ाने के संदर्भ में था.
2016, हांगझोऊ:
व्यापार, निवेश और उद्योग कार्य समूह (टीआईआईडब्ल्यूजी) का गठन किया जाता है.
जी20 की वैश्विक व्यापार विकास रणनीति का समर्थन किया जाता है, जिसके तहत जी20 को व्यापार लागत को कम करने, व्यापार और निवेश नीति को सुसंगत बनाने, सेवाओं में व्यापार को बढ़ावा देने, व्यापार वित्त को बढ़ाने, ई-कॉमर्स विकास को बढ़ावा देने के साथ विकास और व्यापार को संबोधित करते हुए इस संबंध में उदाहरण पेश करते हुए इसका नेतृत्व करना है.
जी20 डिजिटल इकोनॉमी डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन इनिशिएिटव जारी किया जाता है, जिसमें ई-कॉमर्स पर संवाद शामिल है.
औद्योगीकरण (नई औद्योगिक क्रांति) पर बल देकर इसमें खुले व्यापार और निवेश के महत्व को संज्ञान में लेने का निर्णय लिया जाता है.
पहली बार ‘‘पर्यावरणीय सामान’ का उल्लेख किया जाता है.
पहली बार ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार (बी20 के तहत भी) पर चर्चा की जाती है.
एक वैश्विक मंच स्थापित करने का आह्वान किया जाता है, जो स्टील में अतिरिक्त क्षमता पर चर्चा करेगा.
2017, हैम्बर्ग:
पहली बार, डीडीए का उल्लेख नहीं किया जाता है- यह इसके बाद से अब भी जारी है.
इसके साथ ही पहली बार, व्यापार उपायों पर सामान्य गतिरोध/रोलबैक प्रतिबद्धता को शामिल नहीं किया जाता है. यह इसके बाद से ही शामिल नहीं किया जा रहा है.
2018, ब्यूनस आयर्स:
पहली बार, शिखर सम्मेलन दस्तावेज़ में ‘संरक्षणवाद’ को शामिल नहीं किया जाता है, यह व्यवस्था इसके बाद से अब भी जारी है.
एग्रो-फूड जीवीसी पर चर्चा की जाती है.
नई औद्योगिक क्रांति (एनआईआर) को लेकर व्यापार और निवेश की चुनौतियों और अवसरों पर एनआईआर के व्यापार और निवेश पहलुओं पर राष्ट्रीय अनुभवों, कार्यक्रमों, नीतियों और प्रथाओं से बनी एक सूची के साथ चर्चा की जाती है.
2019, ओसाका: व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था के बीच इंटरफेस अंतरापृष्ठ की समझ को गहरा करने के लिए व्यापार मंत्री और डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्री पहली बार एकत्रित हुए.
2020, रियाद:
कोविड-19 को ध्यान में रखकर उसका जवाब देने की दृष्टि से मार्च और मई में जी20 की दो असाधारण आभासी व्यापार और निवेश मंत्रिस्तरीय बैठकों का आयोजन किया जाता हैं. कोविड-19 से उपजी स्थिति को जवाब देने में व्यापार का समर्थन करने के लिए किए जाने वाले कार्यो में अल्पकालिक सामूहिक कार्यों (व्यापार विनियमन, सुविधा, पारिदर्शता, रसद नेटवर्क, एमएसएमई) और दीर्घकालिक सामूहिक कार्यों (बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, अंतर्राष्ट्रीय निवेश) पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है.
पहली बार ‘‘आपूर्ति श्रृंखला’’ का उल्लेख किया जाता है.
डब्ल्यूटीओ के भविष्य पर सदस्य देशों को इस मसले पर रचनात्मक रूप से काम करने का एक अतिरिक्त अवसर प्रदान करने के लिए रियाद पहल शुरू की गई.
एमएसएमई की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए गैर-बाध्यकारी और स्वैच्छिक नीति दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं.
सेवाओं और एसईजेड में व्यापार पर बल देने के साथ आर्थिक विविधीकरण पर चर्चा की जाती है: टीआईआईडब्ल्यूजी सेवाओं और एसईजेड में व्यापार पर सदस्य देशों द्वारा सीखी गई सर्वोत्तम प्रथाओं और सबक को लेकर दो सिंथेसिस रिपोर्ट अर्थात संवाद रिपोर्ट तैयार करता है.
2021, रोम:
वैश्विक स्वास्थ्य प्रयासों का ट्रेड एक्शन अर्थात व्यापार की ओर से होने वाली कार्रवाई कैसे समर्थन करेगी, इस पर चर्चा की गई है.
पारस्परिक रूप से सहायक व्यापार और पर्यावरण नीतियों के महत्व को स्वीकार किया जाता है.
औद्योगिक सब्सिडी पर अंतर्राष्ट्रीय नियमों को मजबूत करने की ज़रूरत को स्वीकारा जाता है. कृषि सब्सिडी और बाज़ार तक पहुंच भी बातचीत का हिस्सा होते हैं.
एक गैर-बाध्यकारी एमएसएमई नीति टूलकिट जारी की जाती है.
2022, बाली:
व्यापार मंत्रिस्तरीय के बाद केवल अध्यक्षीय सारांश जारी किया जाता है.
एसडीजी का समर्थन करने के लिए बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के लिए गैर-बाध्यकारी मार्गदर्शक सिद्धांत जारी किए जाते हैं, भूख और स्वास्थ्य से लेकर जलवायु कार्रवाई और भूमि और पानी के नीचे पर्यावरण के अनुकूल कार्रवाई तक, कई विकासात्मक प्राथमिकताओं के लिए खुला और पारदर्शी व्यापार कैसे एक इनपुट है, इसका एक व्यापक-आधारित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है.
इस अनुलग्नक दस्तावेज़ में वाक्यांश ‘‘व्यापार संरक्षणवाद’’ एसडीजी 1 के संदर्भ में दिखाई देता है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और खाद्य सुरक्षा में एमएसएमई के एकीकरण के संदर्भ में स्थानीय उद्योग और घरेलू क्षमता पर विशेष रूप से प्रकाश डाला जाता है.
इंडोनेशियाई प्रेसीडेंसी द्वारा एक पहल की गई, जिसमें व्यापार, निवेश और उद्योग के बीच नीति सुसंगतता के संदर्भ में उद्योग संबंधित मुद्दों पर चर्चा को संस्थागत बनाने की बात की गई.
स्त्रोत : जी20 सूचना केंद्र[31]
जी20 एक बार फिर से आत्मविश्वास को प्रेरित कर सकता है.[32] इस फोरम अर्थात मंच ने वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल को संबोधित करने में खुद को एक संकट संस्था के रूप में साबित किया है. पॉलिक्राइसिस के इस वक्त में यह एक उच्च-स्तरीय मंच के तौर पर पुन: अवसर को भुनाते हुए बहुपक्षीय व्यापार में अधिक अनिश्चितता को रोकने की आवश्यकता पर एक स्पष्ट संवाद करवा सकता है. इसके अलावा वह नकारात्मक योग परिणामों से बचने वाले व्यापार व्यवहार को युक्तिसंगत बनाने और सिस्टम में जोखिम को कम करने वाले उपायों को पेश करने का भी काम कर सकता है. यह विशिष्ट व्यापार या व्यापार से संबंधित मुद्दों पर किसी भी और सभी निरंतर बातचीत, जो वैश्विक व्यापार में भागीदारी और इसके लाभों के वितरण के दायरे और गुणवत्ता को बढ़ाता है, के बाहर होगा.
व्यापार और निवेश कार्य समूह के एजेंडे का आने वाले वर्ष में दो उद्देश्यों का मार्गदर्शन करेंगे: 1) समृद्धि को ख़तरे में डाले बिना लचीलापन निर्माण करना; और 2) समावेशी विकास का समर्थन करने वाले समकालीन व्यापार मुद्दों पर लक्षित जुड़ाव जारी रखना. तीन दिशाओं में जी20 के अध्यक्ष काम का मार्गदर्शन कर सकते हैं: मंच के विशाल नेटवर्क का उपयोग करके सीखने और इनक्यूबेट समाधानों को साझा करते हुए बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर व्यापक सहमति बनाना, संभव, समय पर व्यापार प्रतिबद्धताओं को गति देना; और सहकर्मी से सीखने के लिए स्वयं के विकासात्मक अनुभव को तालिकाबद्ध करना.
भारत ही क्यों?
उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों की चिंताओं और अपने स्वयं के हितों और विकसित होते घरेलू व्यापार परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए भारत के पास संयोजन क्षमता और इससे जुड़े विचार मौजूद है. ऐसे में उपरोक्त तीन कारक, भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की परिचालन स्थितियों पर आम सहमति को बढ़ावा देने, सामूहिक विचार के लिए अग्रिम ठोस व्यापार प्रतिबद्धताओं और अपने स्वयं के घरेलू अनुभव से दुनिया को सबक प्रदान करने का अधिकार प्रदान करते हैं.
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत, यूनाइटेड किंगडम (यूके) से आगे निकल गया है. अन्य क्षेत्रों में मंदी के बीच भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है. (भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के शब्दों में)[33] एक उभरते बाज़ार और ‘‘वैश्विक आर्थिक पुनरुद्धार के लिए एक स्तंभ’’ के रूप में भारत की साख, इसकी क्षेत्रीय स्थिति और उभरते वैश्विक नेतृत्व को देखते हुए, वह खुद को कूटनीतिक रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों, दोनों की दृष्टि से एक वांछित राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक भागीदार के रूप में देख रहा है. एक मल्टी-अलाइनमेंट स्ट्रैटेजी अर्थात बहु-संरेखण रणनीति के तहत पॉवर्स अर्थात शक्तियों और क्षेत्रों के साथ संबंधों को बनाने की कोशिश भारत को एक मजबूत संयोजन शक्ति प्रदान करती है, जो वर्तमान ख़राब अंतर्राष्ट्रीय माहौल में उपयोगी साबित होगी. हालांकि इसके साथ ही इस तरह का ‘‘ब्रीजिंग रोल’’ अर्थात ‘‘सेतु भूमिका’’[34] भारत के लिए विरोधाभासी रूप से बहुपक्षीय मंचों के समक्ष विवादास्पद मुद्दों को उठाने के झुकाव को सीमित भी कर सकती है.
फिर भी, तथ्य यह है कि ‘‘अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए भारत अधिक से अधिक दिशाओं में पहुंच रहा है.’’[35] इस प्रकार वह कठोर भू-राजनीतिक बायनेरिज़ अर्थात दोहरी साझेदारी के बाहर पार्टनरशिप अर्थात गठबंधन की तलाश कर रहा है. इसका मतलब है कि भारत आत्मविश्वास के साथ विकासशील दुनिया की आवाज और साझा हितों और आम प्राथमिकताओं को उठाने का दावा कर सकता है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा बाकी दुनिया के लिए ग्रोथ अर्थात विकास और डेवलपमेंट आउटकम्स् अर्थात विकास के परिणामों को निर्धारित नहीं करती है, वैश्विक दक्षिण का समर्थन करना महत्वपूर्ण हो जाता है. जैसा कि इस पेपर के सेक्शन 1 में बताया गया है, यह बात व्यापार के क्षेत्र में भी लागू होती है. 2022 और 2025 के बीच उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों के लगातार प्रेसीडेंसी[36] के अवसर का उपयोग भारत एक निरंतर व्यापार एजेंडा विकसित करने के लिए कर सकता है; विशेष रूप से भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका (आईबीएसए) समूह उपयोगी साबित हो सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अपनाने का भारत का अनुभव उसे विशेष रूप से स्थानीयकरण और वैश्वीकरण के बीच आर्थिक सुरक्षा विचारों की पृष्ठभूमि के खिलाफ बहस के संदर्भ में एक एजेंडा स्थापित करने में सहायक होगा : मजबूत और अधिक प्रतिस्पर्धी घरेलू क्षमता और बढ़ी हुई पहुंच और पैमाने के लिए विविध वैश्विक आर्थिक संबंधों के माध्यम से विकास के अपने घरेलू एजेंडे के साथ भारत को मिला नेतृत्व का अवसर आज अतीत में किसी भी अन्य बिंदु की तुलना में बेहतर रूप से संरेखित है.[37]
भले ही भारत की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ता जा रहा है, लेकिन वैश्विक व्यापारिक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम है और वैश्विक व्यापारिक आयात में उसकी 3 प्रतिशत से भी कम हिस्सेदारी भी कमज़ोर बनी हुई है.[38] दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसी छोटी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में जीवीसी के माध्यम से भारत की वैश्विक व्यापार भागीदारी भी कम ही है. 2030 तक भारत ने खुद के लिए 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का एक अल्पकालिक लक्ष्य तय किया है. जबकि वैश्विक निर्यात में वह 3 प्रतिशत की हिस्सेदारी की उम्मीद लेकर चल रहा है. उसने 2047 तक वैश्विक निर्यात में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का दीर्घकालीन लक्ष्य निर्धारित किया है. इसके साथ ही वह इस वक्त तक वैश्विक सेवा व्यापार में शीर्ष तीन में स्थान हासिल करना चाहता है. अब तक भारत की विकास गाथा में एक सक्षम नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली महत्वपूर्ण रही है. ऐसे में एक अधिक अनुमानित और स्थिर बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के लिए आम सहमति बनाना उसके अपने हित में ही होगा.
महत्वपूर्ण बात यह है कि जी20 की अध्यक्षता भारत को अपनी विदेश व्यापार नीति को अपनी एक्सर्टनल ट्रेड पोज़िशनिंग अर्थात बाहरी व्यापार स्थिति के साथ संरेखित करने का एक बाहरी प्रोत्साहन मुहैया करवाती है.[39] ताकि वह एक विश्वसनीय व्यापार भागीदार के रूप में अपनी विश्वसनीयता को मजबूत कर सके इस वजह से वैश्विक स्तर पर प्रमुख व्यापार वार्तालापों का नेतृत्व करने की वैधता हासिल कर सकें. वास्तव में, भारत की नवीनतम विदेश व्यापार नीति को अगले वित्तीय वर्ष की शुरुआत तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया है. इसकी वजह यह है कि उस वक़्त तक यह सुनिश्चित किया जा सके कि नीति के तहत निर्धारित उद्देश्य वैश्विक व्यापार प्रणाली के अनुरूप, सुसंगत और अनुपालन करने वाले हैं.[40]
विकासशील देशों के साझा हित के क्षेत्रों में चर्चाओं और लक्षित हस्तक्षेपों को आगे बढ़ाने के लिए भारत अपनी जी20 अध्यक्षता का उपयोग कर सकता है. इसके साथ ही वह इसका उपयोग भविष्योन्मुखी व्यापार क्षेत्र में जो बातचीत की आवश्यकता है उसे भी आगे बढ़ा सकता है. भारत को व्यापार और निवेश कार्य समूह (टीआईआईडब्ल्यूजी) के तहत समस्या-समाधान को बढ़ावा देकर जहां संभव हो वहां ‘‘भारत समाधान’ के उदाहरण पेश करने चाहिए. भारत को अधिक व्यापक तौर पर बहुपक्षीय व्यापार के एक नए युग को नेविगेट अर्थात मार्गदर्शित करते हुए एक ऐसी आम सहमति बनानी चाहिए, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के बेहद आवश्यक लाभों में योगदान देना जारी रखे.
II प्रमुख हस्तक्षेप
व्यापार नीति की अनिश्चितता बढ़ती जा रही है. आर्थिक सुरक्षा कारणों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को एक जीरो-सम अर्थात शून्य-राशि के चश्मे से देखने के कारण अनुमानित और स्थिर बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली, विशेष रूप से आज के अतिव्यापी संकट के युग में, से होने वाले व्यापार के पूर्ण लाभ सीमित हो जाते हैं. ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लेकर एक निरंतर इच्छा की शिनाख्त करना जरूरी है. अपने दमखम को देखते हुए, जी20 ऐसा करने के लिए एक लिंचपिन अर्थात अहम वैश्विक आर्थिक शासन मंच बना हुआ है: यह संवाद और सहकर्मी शिक्षा के माध्यम से प्रमुख व्यापार प्राथमिकताओं पर राजनीतिक दिशा और समर्थन को बढ़ावा दे सकता है. ये दोनों मिलकर, साझा समझ और समन्वित कार्रवाई में योगदान दे सकते हैं. बतौर जी20 अध्यक्ष, भारत अपने आर्थिक उत्थान, संयोजन शक्ति और स्वयं के व्यापार हितों को ध्यान में रखकर रचनात्मक व्यापार एजेंडे को बढ़ावा दे सकता है.
यह भाग तीन अलग-अलग प्रकार के संभावित हस्तक्षेपों का प्रस्ताव करता है, जिन्हें भारत की अध्यक्षता में आगे बढ़ाया जा सकता है: वे जो पारस्परिक लाभ पर आधारित पूर्वानुमान योग्य, स्थिर और भरोसेमंद बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को आगे बढ़ाते हैं; संभावित व्यापार प्रतिबद्धताएं और हस्तक्षेप जो भारत को उसके अनुभव से हासिल हुए हैं. ये सिफारिशें समावेशिता, लचीलापन, सुरक्षा, स्थिरता और डिजिटलीकरण के प्रमुख विषयों को संबोधित करने वाली हैं.
बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को मजबूत करने के उपाय, जो डब्ल्यूटीओ सुधारों से परे हैं
- समन्वित संकट रिस्पॉन्स अर्थात प्रतिक्रिया: कोविड-19 महामारी से जो एक महत्वपूर्ण सीख मिली है वह यह है कि मौजूदा व्यापार नियमों में संकट के समय सुरक्षा और लचीलापन प्रदान करने की क्षमता सीमित है. संकट की स्थितियों के दौरान व्यापार में व्यवधान को न्यूनतम करने और सहयोग की सुविधा के बारे में चल रही चर्चाओं को जी20, राजनीतिक गति और समर्थन प्रदान कर सकता है, इतना ही नहीं वह उन अधिकारों और दायित्वों को भी परिभाषित करता है जो एक ऐसी प्रणाली में पूर्वानुमान, स्थिरता और विश्वास बनाए रखते हैं, जो तीव्र आवश्यकता के समय में लाभ प्रदान करना जारी रख सकें. उदाहरण के तौर पर, क्या निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का कोई विकल्प हो सकता है? यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि व्यापार उपाय लक्षित, संतुलित, पारदर्शी और अस्थायी रहें? गैर संकट के काल में ऐसे कौन से उपायों को तैयार कर उन पर अमल किया जाए, जो भविष्य में आने वाले संकट की स्थिति के लिए हमें तैयार कर सकें? सदस्य देशों को अपने अनुभव, सफलताओं और विफलताओं को साझा करने के साथ ही वर्तमान में चल रहे कार्य जैसे क्षेत्रीय और अन्य व्यापार समझौतों में चल रहे यीएनईएससीएपी के नेतृत्व वाले मॉडल प्रोविजन्स फॉर ट्रेड इन टाइम्स ऑफ क्राइसिस एंड पैंडेमिक में शामिल होने का न्यौता दिया जाना चाहिए.[41] प्रासंगिक बहुपक्षीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संगठनों के स्तर पर,आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं और व्यापार सुविधा को परिभाषित करने से लेकर गैर-टैरिफ उपायों और पारिदर्शता तक की बात करने वाले एक आम सहमति आधारित परिणाम दस्तावेज़ का स्वागत किया जाएगा. ऐसा दस्तावेज़ जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संबंध में संकट प्रबंधन की आवश्यकता को पहचान कर उन प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित करता है, जिन पर ध्यान देने और काम जारी रखने की आवश्यकता है.
- विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन की मैपिंग अर्थात मानचित्रण: नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को कम किए बगैर, विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं को कैसे मजबूत किया जा सकता है? वर्तमान माहौल जी20 को संयुक्त रूप से इस समस्या पर दो दृष्टिकोण से विचार करने का मौका उपलब्ध करवाता है. पहला यह कि आपूर्ति श्रृंखलाओं की तैयारियों और प्रतिसाद देने की क्षमता को मजबूत करने के उपायों को लागू किया जाए. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है- ‘‘भरोसेमंद स्त्रोत, पारदर्शिता तथा समय सीमा.’’[42] इन तीन क्षेत्रों में अंतराल को उजागर करने के लिए सदस्य देशों के अनुभवों और शिक्षाओं को एकित्रत करने के लिए एक साल की अवधि के लिए फोकस समूह का मार्गदर्शन करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा का उपयोग किया जा सकता है, जो यह मंथन करें कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सहयोग, उन्हें कैसे पाटने में मदद कर सकता है. दूसरा है आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक भागीदारी की दृष्टि से मजबूत बनाना, ताकि किसी पर अनावश्यक निर्भरता को कम किया जा सके. यह प्रस्ताव दिया गया है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सिस्टैमिकली अर्थात दैहिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों की शिनाख्त की जाए. फिर उन देशों, कंपनियों तथा उत्पादों पर नजर रखी जाए, जो इस इकोसिस्टम अर्थात पारिस्थतिकी तंत्र का हिस्सा हैं. ऐसा होने पर आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकाधिकार को रोका जा सकेगा.[43] इसे ही विस्तारित करते हुए यह पूछा जाए कि संरक्षणवाद के जाल में फंसे बगैर स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया जा सकें और कैसे स्थानीयकरण को वैश्विकरण में परिवर्तित किया जा सकें.[44] पीयर शेयरिंग अर्थात समकक्ष साझाकरण और सीखने पर आधारित एक बातचीत से विभिन्न देशों में घरेलू कंपनियों ने कैसे स्तर हासिल किया (अथवा नहीं कर सकी) और कैसे क्षेत्रीय और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में प्रवेश किया इस बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है. ऐसी बातचीत से निकाले जाने वाले निष्कर्षो को नीति से जुड़ी एक टूलकिट में प्रकाशित किया जा सकता है.
- जीवीसी की ग्रीनिंग: इंडोनेशियाई प्रेसीडेंसी के तहत ओपन ट्रेड, सस्टेनेबल इन्वेस्टमेंट एंड इंडस्ट्री पर टी20 टास्क फोर्स 1 में हरित व्यापार पर बातचीत हुई थी.[45] एजेंडा के इस विषय को भारत की अध्यक्षता में भी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए आगे बढ़ाया जाना चाहिए. एकतरफा और संरक्षणवादी व्यवहार का सहारा लिए बिना मूल्य श्रृंखलाओं को प्रभावी ढंग से डीकार्बनाइज करने के समाधान पर काम करने की जरूरत है. भारत को इस विषय पर विचार के लिए एक मंत्रीस्तरीय टास्क फोर्स के गठन का प्रस्ताव देना चाहिए. इसमें संबंधित कार्य एवं संवाद समूह के लोगों को शामिल किया जाए. अथवा कम से कम बहुपक्षीय संस्था/अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को एक रिपोर्ट बनाने को लेकर आम सहमति बनाई जाए. इस रिपोर्ट को 2024 में ब्राजील की अध्यक्षता में पेश किया जा सकता है.
वचनबद्धता
- अफ्रीकी संघ को बतौर सदस्य जोड़ना: अब वक़्त आ गया है जब अफ्रीकन यूनियन (एयू) को इस मंच के साथ आधिकारिक सदस्य के रूप में जोड़ा जाए. ऐसा होने पर ही जी20 की साख एक ऐसे मंच के रूप में बढ़ेगी, जो वास्तव में वैश्विक आर्थिक संक्रमण का प्रतिनिधित्व करता है. विशेषत: व्यापार के संदर्भ में, अफ्रीकन कॉन्टीनेंटल फ्री ट्रेड एरिया (एएफसीएफटीए) का जब गठन हो जाएगा तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन जाएगा.[46] बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली एएफसीएफटीए की अनदेखी नहीं कर सकती है, जिसमें नीतिगत क्षेत्र जैसे व्यापार सुविधा, सेवाएं, स्वच्छता मानक, व्यापार के लिए तकनीकी बाधाएं, बौद्धिक संपदा अधिकार और ई-कॉमर्स शामिल हैं. अफ्रीकी कार्रवाई योग्य भागीदारी, जिसमें नीतिगत सुसंगतता और समन्वय शामिल है महत्वपूर्ण है, क्योंकि आने वाले दशकों में यह महाद्वीप विकास और व्यापार का एक अतिरिक्त प्रमुख चालक बनने जा रहा है. वैश्विक आर्थिक शासन के संदर्भ में भी जी20-अनुमोदित नीतियां विस्तारित कार्यान्वयन देखेंगी. ऐसे में इस क्षेत्रीय संगठन को जी20 की सदस्यता देने के मामले में भारत को केवल उसकी मांग का समर्थन करने से आगे बढ़ते हुए उसे सदस्यता देने के प्रस्ताव को व्यापक प्रतिबद्धता के रूप में पेश करना होगा.
- आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाने के लिए क्लायमेट फाइनांस अर्थात जलवायु वित्त की प्रतिबद्धता: जलवायु वित्त को एक ऐसे रणनीतिक निवेश के रूप में देखा जाना चाहिए, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की जड़ों को सुरक्षा मुहैया करवाता है.[47] विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ से लेकर जंगल की आग तक बिगड़ते प्रभाव की वजह से विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं में गिरावट देखी जा रही है. विश्व व्यापार से जुड़ी अहम वस्तुएं - जैसे खाद्यान्न, प्राकृतिक संसाधन, टेक्सटाइल्स और कंज्युमर इलेक्ट्रॉनिक्स - अधिकांशत: जलवायु की दृष्टि से अतिसंवेदनशील राष्ट्रों से ही उपजते हैं. ऐसे में जलवायु वित्त के एक हिस्से की वित्तीय प्रतिबद्धता अनिवार्य है, जो जलवायु-प्रूफिंग आपूर्ति श्रृंखलाओं की दिशा में खर्च की जाए, ताकि भंडारण और परिवहन मार्गों को मजबूत करने जैसे अनुकूलन उपायों को अपनाया जा सके.
‘‘भारत केंद्रित समाधान’’
- एमएसएमई के डिजिटलीकरण को गति देना: भारत जैसे कई विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक व्यापार में एमएसएमई क्षेत्र का एकीकरण विशेष प्राथमिकता है. इस मुद्दे पर जी20 का ध्यान आकर्षित हो रहा है और इस दिशा में धीरे-धीरे प्रगति हो रही है. एमएसएमई क्षेत्र में भारत का घरेलू अनुभव, विशेषत: डिजिटलीकरण के मामले में इस मंच पर इस संबंध में बातचीत को गति देने का काम कर सकता है.भारत ने ‘‘ई-कॉमर्स बाज़ारों के बाज़ार’’[48] में विक्रेताओं, खरीददारों भुगतान प्रोसेसर अर्थात संसाधक और रसद भागीदारों को जोड़ने के लिए, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) विकसित किया है, जो वर्तमान में पायलट चरण में है. यह मंच एमएसएमई को व्यापाक पहुंच और विजबिलिटी अर्थात दृश्यता मुहैया करवाते हुए उन्हें सशक्त बनाता है. एमएसएमई की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने के लिए भारत, इसे अपने समाधान के रूप में पेश कर सकता है.
- एक समग्र लॉजिस्टिक्स नीति: भारत ने सितंबर 2022 में एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जारी की है, जो भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए लॉजिस्टिक्स अर्थात प्रचालन तंत्र संबंधी लागत को कम करने की कोशिश कर रही है. इसके साथ ही गतिशक्ति (बुनियादी ढांचे की कनेक्टिविटी में सुधार के लिए), सागरमाला (तटीय और अंतर्देशीय जलमार्ग विकास), और भारतमाला (सड़क विकास) जैसे अन्य बुनियादी ढांचे के सुधार कार्यक्रमों के साथ मिलकर, भारत की लॉजिस्टिक्स संबंधी नीतियां, विकासशील देशों के लिए आपूर्ति श्रृंखला, और बाज़ारों तक पहुंच बढ़ाने के साथ बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में काम करती हैं. लॉजिस्टिक्स को मजबूत करने की दिशा में भारत ने प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण का जो उपयोग किया है, वह ध्यान देने योग्य है. उदाहरण के लिए, परिवहन से संबंधित सभी डिजिटल सेवाओं को एक ही प्लेटफॉर्म पर एकत्रित करने के लिए यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस बनाया गया है. इसके अलावा एक डिजिटल प्लेटफॉर्म, ईज ऑफ लॉजिस्टिक्स सर्विसेज (ई-लॉग्स) भी है, जो एक पोर्टल के रूप में काम करेगा. इस पोर्टल पर उद्योग संघ अपनी समस्याएं और चिंताएं उठा सकते हैं.
- फूड कॉरिडोर का समर्थन: खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और मुख्य अनाज तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ओपन ट्रेड अर्थात खुला व्यापार आवश्यक है. भारत के पास भारत-इज़राइल-यूएई-यूएस ग्रुपिंग के तहत शुरू किए गए फूड कॉरिडोर को व्यापार के लिए निवेश की एक टेम्पलेट अर्थात आदर्श के रूप में आगे बढ़ाने का मौका है. इंडिया-वेस्ट अर्थात भारत-पश्चिम एशिया फूड कॉरिडोर में संयुक्त अरब अमीरात द्वारा 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स का निवेश भारत में फूड पार्क बनाने के लिए शामिल है, जो इजरायल और अमेरिकी प्रौद्योगिकी और निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का उपयोग करेगा.[49] 2023 इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट अर्थात अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष हैं, और भारत वर्तमान में अनाज का पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक है. इसे देखते हुए ही भारत उसी तर्ज पर मिलेट कॉरिडोर की घोषणा कर सकता है.
ENDNOTES
[1] Alan Hervé, “European unilateralism as a tool for regulating international trade: a necessary evil in a collapsing multilateral system,” Fondation Robert Schuman, March 28, 2022.
[2] “What are the sanctions on Russia and are they hurting its economy?,” BBC, September 30, 2022.
[3] “Press Release: Council agrees on the Carbon Border Adjustment Mechanism (CBAM),” European Council, March 15, 2022.
[4] Anne O. Krueger, “Interview of Ngozi Okonjo-Iweala: The Trade Agenda Today,” Project Syndicate, September 30, 2022.
[5] Jagdish Bhagwati used the term to describe “the unilateral reduction of others’ (not one’s own, as under conventional “unilateralism”) trade barriers under the threat of sanctions, as in the use of Section 301 provisions of US trade legislation.” See: “Introduction: The Unilateral Freeing of Trade Versus Reciprocity” in Going Alone: The Case for Relaxed Reciprocity in Freeing Trade (MIT Press: Cambridge, Spring 2002). The term here is being used not only in the context of trade barriers and sanctions, but broadly trade-restricting behaviour for advantage at the expense of trade gains for the targeted country or to coerce change in others’ trading behaviour.
[6] Dan Ikenson, “U.S. And China Regard Trade Rules As Impediments To Their Hegemonic Priorities,” Forbes, October 26, 2022.
[7] Alvaro Espita, Nadia Rocha, and Michele Ruta, “How export restrictions are impacting global food prices,” Word Bank blogs, July 6, 2022.
[8] Global Dynamics, Global Trade Alert.
[9] G20 Trade Policy Factbook 2022, Global Trade Alert, November 14, 2022.
[10] Jayant Sinha and Samir Saran, “Gated globalisation and fragmented supply chains,” ORF, April 27, 2020.
[11] Daniel Ikenson, “Strategic reglobalization: Great power rivalry comes for the multilateral trading system,” Hinrich Foundation, October 26, 2022.
[12] “Standard” or “traditional” trade, i.e., goods and services that are produced in one country and absorbed in a destination country. GVC trade comprises exports of goods and services that are produced in more than one country.
[13] World Development Report 2020: Trading for Development in the Age of Global Value Chains (World Bank, 2020).
[14] World Bank and World Trade Organization, The Role of Trade in Ending Poverty (WTO: Geneva, 2015).
[15] Paul Brenton, Michael J. Ferrantino, and Maryla Maliszewska, Reshaping Global Value Chains in Light of Covid-19: Implications for Trade and Poverty Reduction in Developing Countries (World Bank Group: 2022).
[16] Janet Bush, Michael Chui, and Acha Leke, “Forward Thinking on trade, vaccines, and sustainable and inclusive growth with WTO Director-General Ngozi Okonjo-Iweala,” McKinsey & Company, May 18, 2022.
[17] Bill Gain, “Trade facilitation: Critical to COVID-19 recovery,” World Bank blogs, November 2, 2021.
[18] Polycrisis”: a series of multiple and overlapping political and economic crises. According to historian Adam Tooze, we are facing multiple, reinforcing crises that are more dangerous put together than the sum of their parts.
[19] IMF’s latest Regional Outlook for Asia and the Pacific outlines how increasing uncertainty in trade policy reduces investment by about 2.5%; GDP by 0.4%, and employment by 1%. Regional Economic Outlook for Asia and Pacific (IMF: October 2022); Maksym Chepeliev, Maryla Maliszewska, Israel Osorio-Rodarte, Maria Filipa Seara e Pereira and Dominique van der Mensbrugghe, “Pandemic, Climate Mitigation, and Re-shoring: Impacts of a Changing Global Economy on Trade, Incomes, and Poverty,” Policy Research Working Paper 9955, World Bank; Brenton, Ferrantino, and Maliszewska, Reshaping Global Value Chains.
[20] Diego Cerdeiro, Siddharth Kothari and Chris Redl, “Asia and the World Face Growing Risks from Economic Fragmentation,” IMF blog, October 27, 2022.
[21] G20 Trade Policy Factbook 2022.
[22] Paul Brenton, Michael J. Ferrantino, and Maryla Maliszewska, Reshaping Global Value Chains in Light of Covid-19: Implications for Trade and Poverty Reduction in Developing Countries (World Bank Group: 2022).
[23] Global Trade Update, UNCTAD, February 2022.
[24] DHL Trade Growth Atlas 2022.
[25] Global Trade Update, UNCTAD, July 2022.
[26] ADB et al., Global Value Chain Development Report 2021: Beyond Production (ADB: November 2021).
[27] G20 Trade Factbook 2022, p. 14.
[28] “Tackling food and energy crises: How trade and logistics can help,” UNCTAD, October 13, 2022.
[29] G20 Rome Leaders’ Declaration, G20 Information Centre, University of Toronto.
[30] G20 Bali Leaders’ Declaration, G20 Information Centre, University of Toronto.
[31] G20 Information Centre, University of Toronto.
[32] As noted by economics and politics writer Kevin Carmichael, one of G20’s greatest strengths is to inspire confidence. “The G20 showed in Brisbane that it is back, but for how long?,” Centre for International Governance Initiative, November 17, 2014.
[33] “India would be an “island of stability” amongst global uncertainties, says Piyush Goyal,” Financial Express, September 30, 2022.
[34] As identified by Indian Minster of Foreign Affairs, S. Jaishankar in the panel discussion “The G20 Imperative” hosted by ORF, Reliance Foundation, and UN India, September 23, 2022, New York.
[35] S. Jaishankar, The India Way: Strategies for an Uncertain World (HarperCollins India: 2020).
[36] The launch of the four-year G20 Research Forum at the Bali T20 Sumit, which will focus on development issues in support of the upcoming G20 presidencies of IBSA countries, is another platform to cooperate.
[37] Note PM Modi’s speech to Heads of Indian Missions Abroad that emphasised realising “Making in India for the world.” “Our endeavour is to create demand for high-value added products of India across the world: PM,” narendramodi.in, August 6, 2021.
[38] Indian Ministry of Commerce & Industry and WTO data, as presented in “India’s International Trade and Investment,” EXIM Bank of India, June 2022.
[39] See, for example: Mihir Sharma, “India Can’t Afford to Lose the World’s Trust on Trade,” Bloomberg, June 2, 2022.
[40] For instance, liberalising FDI policies and higher import tariffs work at cross-purpose. See Ram Singh and Surendar Singh, “The Policy and Operational Challenges in Formulating India’s New Foreign Trade Policy,” ORF Issue Brief No. 497, October 2021.
[41] Initiative on Model Provisions for Trade in Times of Crisis and Pandemic in Regional and other Trade Agreements, UNESCAP.
[42] “Prime Minister’s address at Global Summit on Supply Chain Resilience,” narendramodi.in, October 31, 2021.
[43] Deepak Mishra, “How countries, including India, can reduce dependence on Chinese imports,” Economic Times, November 3, 2022.
[44] See, for instance: Tom Seymour and Richard Oldfield, “Localisation is the new globalisation,” PwC, February 1, 2021.
[45] “Think-20 Task Force 1 Session at the 2022 World Trade Organization Public Forum [1] ‘Greening Global Value Chains,’” G20 Indonesia, September 30, 2022.
[46] For details, see: David Thomas, “What you need to know about the African Continental Free Trade Area,” African Business, February 10, 2022.
[47] Tim McDonnell, “Rich countries can’t fix supply chains without fixing climate finance,” Quartz, October 18, 2021.
[48] Ritesh Jain, “ONDC can be a game-changer for MSMEs,” Business Standard, October 9, 2022.
[49] Michael Tanchum, “The India-Middle East Food Corridor: How the UAE, Israel, and India are forging a new inter-regional supply chain,” Middle East Institute, July 27, 2022.
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