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देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं पर करप्शन के आरोप हैं. देखना होगा कि नई व्यवस्था में इन समस्याओं के हल के क्या उपाय निकाले जाते हैं.
नेपाल अहम मोड़ पर खड़ा है. पिछले कुछ दिनों में वहां पूरी राजनीतिक व्यवस्था बदल गई है. अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर सुशीला कार्की ने पदभार संभाल लिया है. उन्होंने साफ कहा है कि वह छह महीने से अधिक समय तक सत्ता में नहीं रहेंगी और इसी समयसीमा में चुनाव करवाएंगी.
आंदोलन में हिंसा: 2008 में नेपाल में राजशाही खत्म हुई. तब से देश ने ऐसी हिंसा नहीं देखी थी. हालांकि इस दौरान नेपाल राजनीतिक अस्थिरता से जूझता रहा, नेता भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे. इन्हीं मुद्दों को लेकर Gen Z (1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाले) सड़क पर उतरे. इसी बीच, सरकार ने 26 सोशल मीडिया साइटों पर बैन लगा दिया. इससे आंदोलन और भड़का. जल्द ही यह हिंसक हो गया 8 सितंबर को पुलिस के हाथों 19 प्रदर्शनकारी मारे गए. अगले दिन 3 घायलों ने दम तोड़ दिया. बड़ी संख्या में लोग इन प्रदर्शनों में घायल भी हुए.
शरारती तत्वों पर दोष: जब हिंसा बढ़ी, तब कई ग्रुप्स Gen Z प्रदर्शनकारियों की ओर से बयान जारी कर कहा कि इसमें उनका हाथ नहीं है. उन्होंने शरारती तत्वों पर ऐसा करने का आरोप लगाया. उन ग्रुप्स का कहना था कि यह आंदोलन को बदनाम करने के लिए किया गया है. बहरहाल, जिस तरह से हालात नेपाल में दिख रहे थे, उसे जल्द ही नियंत्रित करने की जरूरत थी . अच्छा है कि अंतरिम प्रधानमंत्री ने इस दिशा में तत्काल कदम उठाने शुरू कर दिए.
नेपाल में यह लोकतंत्र का 16वां साल है, लेकिन अभी तक वहां राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो पाई है . इन वर्षो में संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र का फायदा आम लोगों को नहीं मिला है. देश के तीन प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कौन बनेगा प्रधानमंत्री का खेल चलता रहा.
राजनीतिक अस्थिरता की चुनौती: नेपाल में यह लोकतंत्र का 16वां साल है, लेकिन अभी तक वहां राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हो पाई है . इन वर्षो में संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र का फायदा आम लोगों को नहीं मिला है. देश के तीन प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कौन बनेगा प्रधानमंत्री का खेल चलता रहा. अपने हितों को संरक्षित रखने की चिंता ही उनकी सोच के केंद्र में रही.
बेरोजगारी और भ्रष्टाचार: देश की आर्थिक विकास दर थम गई है, जबकि प्रॉडक्टिव सेक्टर्स में बमुश्किल रोजगार मिल रहा है. वैसे, कुशल श्रमिकों की कमी का भी इसमें हाथ है. युवाओं का बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में पलायन भी एक वजह है . देश की अर्थव्यवस्था आज बाहर से आने वाले रेमिटेंस पर निर्भर है. देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं पर करप्शन के आरोप हैं. देखना होगा कि नई व्यवस्था में इन समस्याओं के हल के क्या उपाय निकाले जाते हैं.
व्यापक अविश्वास: इन प्रदर्शनों में जिस तरह से कारोबारियों और कुछ मीडिया हाउसों को निशाना बनाया गया, उसे देखते हुए लगता है कि लोग उनसे भी नाराज हैं, जो भले ही सीधे तौर पर सत्ता में न हों, लेकिन सत्ता के करीब माने जाते रहे हैं और जिन्हें इसका लाभ मिलता दिख रहा है.
नई प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की छवि साफ है, जिनके लिए Gen Z ने डिस्कॉर्ड पर वोटिंग की थी. उनके सामने चुनौती है कि जिस तरह का ढांचागत बदलाव युवा चाहते हैं, वैसा बदलाव कैसे सुनिश्चित करें. हालांकि नेपाल में हिंसा पहले ही थम चुकी है, लेकिन जिन लोगों का इसमें हाथ था, उनके खिलाफ किस तरह से कार्रवाई हो, कैसे लोगों को न्याय मिले, यह चुनौती है.
कार्की की चुनौतियां: नेपाल में आगे क्या होगा, किस तरह का राजनीतिक ढांचा वजूद में आएगा ? इसे लेकर वहां अटकलें लग रही हैं. नई प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की छवि साफ है, जिनके लिए Gen Z ने डिस्कॉर्ड पर वोटिंग की थी. उनके सामने चुनौती है कि जिस तरह का ढांचागत बदलाव युवा चाहते हैं, वैसा बदलाव कैसे सुनिश्चित करें. हालांकि नेपाल में हिंसा पहले ही थम चुकी है, लेकिन जिन लोगों का इसमें हाथ था, उनके खिलाफ किस तरह से कार्रवाई हो, कैसे लोगों को न्याय मिले, यह चुनौती है.
संवैधानिक ढांचा कैसे बचे: प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वालों को शहीद का दर्जा देना एक अच्छा कदम माना जा सकता है. देखना होगा कि क्या इसके बाद वहां तोड़-फोड़ करने वालों और संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जलाने वालों के खिलाफ भी कोई कदम उठाया जाता है. नेपाल का जो संवैधानिक ढांचा है, उसको पटरी से उतरने से बचाया जाए, यह भी एक बड़ी चुनौती है.
पुनर्निर्माण की प्रक्रिया: भारत के लिए भी नेपाल का घटनाक्रम चुनौतीपूर्ण है. दोनों देशों के बीच करीबी रिश्ते हैं. इसलिए भारत पड़ोसी देश में जल्द हालात सामान्य होने की उम्मीद रखता है. वह यह भी चाहेगा कि जल्द ही वहां पुनर्निर्माण का काम शुरू हो. भारत को पड़ोसी देश की मदद के लिए भी तैयार रहना चाहिए, लेकिन यह नेपालियों पर निर्भर करता है कि वे अपने देश को किस तरफ ले जाना चाहते हैं.
यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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