'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक कुवैत यात्रा के साथ इस साल का अंत होने जा रहा है. पिछले 43 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली कुवैत यात्रा थी. कुवैत के अमीर शेख मेशल अल-अहमद अल- जबर अल सबा ने अपने मुल्क के सर्वोच्च सम्मान 'द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' से प्रधानमंत्री मोदी को सम्मानित किया. इस दौरे में दोनों देशों ने व्यापार, निवेश, ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा प्रौद्योगिकी, संस्कृति सहित विविध क्षेत्रों में अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देते हुए इसे एक 'रणनीतिक साझेदारी' में बदल दिया. जाहिर है, इससे मध्य-पूर्व (भारत से पश्चिम एशिया) में नई दिल्ली की पहुंच और मजबूत हुई है. ऐसे समय में, जब पश्चिम एशिया तनावपूर्ण मसलों में उलझा हुआ है और एक क्षेत्रीय युद्ध के मुहाने पर है, तब वहां के सभी प्रमुख हितधारकों- खाड़ी के देशों, इजरायल और ईरान के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध साधने की क्षमता भारत की कूटनीतिक सफलता के बारे में बहुत कुछ कहती है.
ऐसे समय में, जब पश्चिम एशिया तनावपूर्ण मसलों में उलझा हुआ है और एक क्षेत्रीय युद्ध के मुहाने पर है, तब वहां के सभी प्रमुख हितधारकों- खाड़ी के देशों, इजरायल और ईरान के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध साधने की क्षमता भारत की कूटनीतिक सफलता के बारे में बहुत कुछ कहती है.
चीन और भारत के आपसी संबंधों में चुनौतियों
वर्ष 2020 के गलवान संकट और उसके बाद बीजिंग की आक्रामकता से पैदा हुए गतिरोध से बाहर निकलने में भी हम इस साल कामयाब रहे. बीजिंग को यह मानने को मजबूर किया गया कि उसकी बेजा कार्रवाइयों के कारण ही आपसी रिश्ते पटरी से उतरे. नई दिल्ली के लिए यह एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत रही. 2020 से ही भारत की स्थिति स्पष्ट थी कि जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बहाल नहीं हो जाती, तब तक द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य होने की कोई संभावना नहीं है. यह सुखद है कि जहां भारतीय सेना ने सीमा पर अपनी स्थिति बनाए रखी, वहीं हमारी कूटनीति भी साहसिक मुद्रा वाली रही. नतीजतन, चीन को अपना रुख बदलना पड़ा.
अक्तूबर में चीन व भारत ने लंबे समय से विवादित सीमा के एक हिस्से में गश्त करने के लिए समझौता किया. इस समझौते ने हिमालय के ऊंचे पहाड़ों पर चार साल से चले आ रहे तनाव को फिलहाल खत्म कर दिया. इसने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को रूस में मिलने व पांच साल में पहली बार आमने-सामने बात करने का मौका भी दिया. उल्लेखनीय है कि 2020 में, गलवान घाटी में एक खूनी टकराव में कई सैनिक मारे गए थे, जिसके कारण दोनों एशियाई ताकतों के द्विपक्षीय रिश्तों में तनाव और गतिरोध पैदा हो गया था. चीनी आक्रामकता भारतीय जनता को नागवार गुजरी थी, इसलिए मोदी सरकार ने सख्त संदेश देने के लिए तमाम उपायों के साथ वहां की सीधी उड़ानों को रद्द कर दिया था और सोशल मीडिया एप 'टिकटॉक' पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. उम्मीद है कि नए साल में आपसी रिश्ते फिर से पूर्ववत पटरी पर आ जाएंगे.
हालांकि, चीन और भारत के आपसी संबंधों में चुनौतियों की भरमार है और बीजिंग की महत्वाकांक्षाएं क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर भारत की कार्य-क्षमता को प्रभावित करती रहती हैं. सीमा पर अब भी ऐसे कई बिंदु हैं, जिनको शी जिनपिंग की आक्रामक शासन- नीति हवा दे सकती है. हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ एक मजबूत रुख अपना रखा है और इस मामले में वह पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से कहीं अधिक मजबूत नजर आते हैं, फिर भी चीन पर निर्भर भारत की अर्थव्यवस्था एक कमजोर कड़ी बनी हुई है. पिछले पांच वर्षों में चीन के साथ हमारा आयात बढ़ा ही है, जबकि निर्यात कम हुआ है. इसका हल हमें खोजना होगा.
हमारे लिए वहां चुनौतियां बढ़ गई हैं, क्योंकि हम अपने दक्षिण एशियाई सहयोगियों के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाए रखना चाहते हैं. वैसे, इस साल मालदीव, श्रीलंका जैसे अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ हमारे संबंधों में स्थिरता आई है.
चीन से निपटने में भारत की मदद करने वाली दो ताकतें अमेरिका और रूस हैं. इन दोनों देशों के साथ साझेदारी विकसित करने में भारत प्रभावी रूप से सफल रहा है, जबकि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से ही वे दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ हैं. इस साल भारत- अमेरिका संबंध आगे बढ़ा है, हालांकि हमारे पड़ोस के देशों की उथल-पुथल, एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या की कथित साजिश में भारतीय सुरक्षा एजेंटों के शामिल होने के आरोपों के कारण रिश्तों में कुछ तनातनी भी आई. वैसे, उम्मीद यही है कि व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के साथ आपसी हितों को फिर से ध्यान में रखा जाएगा.
रही बात रूस के साथ रिश्तों की, तो आम चुनाव में लगातार तीसरी जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री ने पहली विदेश यात्रा के लिए रूस को ही चुना. इससे द्विपक्षीय रिश्ते और मजबूत हुए. रूस और यूक्रेन के बीच समान दूरी बनाए रखने और राजनीतिक वार्ता के लिए आह्वान करने संबंधी रुख का हमें फायदा मिला है. यदि ट्रंप यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में सफल हो जाते हैं और ऐसा करके वह चीन और रूस के बीच कुछ दूरी बनाने में सफल हो जाते हैं, तो नई दिल्ली को बहुत अधिक अनुकूल माहौल मिल सकता है.
संबंधों में स्थिरता
भारत को शायद इस साल सबसे बड़ा झटका पड़ोस में ही लगा, जब शेख हसीना को अगस्त में छात्रों की अगुवाई में हुए हिंसक आंदोलन के बाद बांग्लादेश छोड़ना पड़ा. हसीना के साथ भारत द्वारा बनाए गए रिश्तों को देखते हुए यह कयास लगाए जा रहे थे कि सत्ता परिवर्तन के बाद नई दिल्ली और ढाका के संबंधों में उथल-पुथल मचेगी. अंतरिम सरकार की ओर से आए भारत विरोधी बयानों ने इसकी पुष्टि की, जिससे आपसी भागीदारी के लिए माहौल खराब हुआ. वहां पिछले कुछ महीनों से जारी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और मंदिरों पर हमले की घटनाओं ने भी दोनों देशों के मजबूत सामाजिक संबंधों को खतरे में डाला है. साफ है, हमारे लिए वहां चुनौतियां बढ़ गई हैं, क्योंकि हम अपने दक्षिण एशियाई सहयोगियों के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाए रखना चाहते हैं. वैसे, इस साल मालदीव, श्रीलंका जैसे अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ हमारे संबंधों में स्थिरता आई है.
हमारे लिए वहां चुनौतियां बढ़ गई हैं, क्योंकि हम अपने दक्षिण एशियाई सहयोगियों के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाए रखना चाहते हैं. वैसे, इस साल मालदीव, श्रीलंका जैसे अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ हमारे संबंधों में स्थिरता आई है.
साल 2024 में भारत की वैश्विक छवि बेहतर बनी है, क्योंकि नई दिल्ली ने वैश्विक व्यवस्था में अपने को मजबूती से रखने के साथ-साथ ग्लोबल साउथ, यानी वैश्विक दक्षिण की आवाज बनने का भी सफल प्रयास किया. अधिकांश देशों के लिए भारत आज एक महत्वपूर्ण भागीदार है. हमने तमाम देशों को अपनी ओर आकर्षित किया है. चूंकि हमारे पास बहुत सारे अवसर हैं, इसलिए हमें अपनी वैश्विक छवि को मजबूत बनाने का काम जारी रखना चाहिए.
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