एक लोकतांत्रिक देश में किसी भी नीति के साथ लोगों का जुड़ना बहुत जरूरी होता है. जी-20 से आम लोगों को जोड़ना भारत के लिए बड़ा फायदा साबित होगा. भारत ने जी-20 को एक जन भागीदारी के तौर पर देखा. भारत की विदेश नीति दिल्ली से बाहर निकलकर भारत के 60 से ज्यादा शहरों में गई. 200 से ज्यादा बैठकें हुई. समाज का हर वर्ग इससे जुड़ा. एक विमर्श हुआ कि भारत को किस तरह एक वैश्विक नेता होना चाहिए. भारत की क्या प्राथमिकताएं होनी चाहिए, उन प्राथमिकताओं को कैसे दुनिया के सामने रखना चाहिए? यह चर्चा पूरे भारत में हुई. यह जी-20 की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रहेगी जब तक एक उभरता हुआ देश अपने आप में मंथन नहीं करता कि उसे किस तरह से अपने आप को दुनिया के पटल पर रखना है, तब तक कोई राजनीतिक पार्टी कोई नेता, कोई नीति विदेश नीति को दिशा नहीं दे सकती. अंतरराष्ट्रीय पटल पर हमने इस बात को स्पष्ट किया कि भारत नेतृत्व करने की क्षमता ही नहीं रखता बल्कि उसको आगे बढ़ाने के लिए भी तैयार है भारत वैश्विक एजेंडा बनाने और उस पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार है. एक जिम्मेदार वैश्विक ताकत क्या होती है, इसका जवाब जी-20 की अध्यक्षता के द्वारा दिया गया.
यह जी-20 की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रहेगी जब तक एक उभरता हुआ देश अपने आप में मंथन नहीं करता कि उसे किस तरह से अपने आप को दुनिया के पटल पर रखना है, तब तक कोई राजनीतिक पार्टी कोई नेता, कोई नीति विदेश नीति को दिशा नहीं दे सकती.
भारत की नेतृत्व शैली बाकी देशों से अलग है. भारत ने जी-20 के माध्यम से न सिर्फ अपने हितों की बात की बल्कि वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देकर यह दिखाया कि वह अपने हितों को दुनिया के हितों में समावेश करने की भी क्षमता रखता है. खासकर उन देशों की, जिनकी आवाज सुनी नहीं जाती, उनको लेकर आगे बढ़ेगा. अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने की बात काफी पहले से चल रही थी, लेकिन भारत ने यह करके दिखाया. इससे ग्लोबल साउथ में भारत का प्रभाव और पकड़ मजबूत होगी. भारत ने जी-20 में रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक पुल के रूप में भी काम किया. इस मध्यस्थता का यह लाभ हुआ कि भारत दोनों तरफ अपनी पकड़ बनाने में सक्षम हो पाया.जहां अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध घनिष्ठ हो रहे हैं. वहीं रूस को भी यह सांत्वना मिली है. कि भारत उसे अलग-थलग नहीं होने देगा. दोनों तरफ संतुलन बनाने में सफलता से भारत का सामरिक और आर्थिक हित जुड़ा है.
जी-20 में भारत मध्य पूर्व – यूरोप कॉरिडोर की घोषणा का असर हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. भारत के उत्तर पश्चिम में कनेक्टिविटी की समस्या पाकिस्तान की वजह से रही है. इसकी वजह से चीन का दबदबा बढ़ता जा रहा है. भारत ने उसका तोड़ निकाला.
अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने की बात काफी पहले से चल रही थी, लेकिन भारत ने यह करके दिखाया. इससे ग्लोबल साउथ में भारत का प्रभाव और पकड़ मजबूत होगी.
कॉरिडोर की स्थापना के दूरगामी परिणाम भारत और पूरे क्षेत्र के लिए हो सकते हैं. भारत ने इस मंत्र से अपनी सफलताओं को भी दुनिया के सामने रखते हुए दिखाया कि ऐसी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान करने में भारत सक्षम है. सबसे ऊपर भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इसे सामने रखकर बताया कि यह कैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों की विकास में वह मदद कर सकता है. पर्यावरण की दृष्टि से भारत ने बताया है कि विकास और जलवायु के बीच कैसे समन्वय स्थापित होना चाहिए.
यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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