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भारत यही उम्मीद कर रहा है कि सब कुछ ठीक रहे, लेकिन उसे बुरे नतीजों के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
फिनलैंड का नैटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) में शामिल होना उभरते ग्लोबल ऑर्डर पर गहरी छाप डालने वाली घटना है. यूक्रेन पर रूसी हमले ने इस गठबंधन को नई सार्थकता दी है, जिसे शीतयुद्धोत्तर काल में अतीत का अवशेष माना जाने लगा था. फिनलैंड के राष्ट्रपति ने इस मौके पर कहा, ‘हर राष्ट्र अपनी सुरक्षा पुख्ता करना चाहता है, फिनलैंड भी वही कर रहा है. नैटो मेंबरशिप ने हमारी अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत बनाई है.’ इस घटना ने यह बात पूरी स्पष्टता से रेखांकित कर दी है कि हमारे इतिहास का सैन्य गुटनिरपेक्षता का दौर समाप्त हो गया है और एक नया दौर शुरू हो चुका है. नैटो की सीमा करीब 1300 किलोमीटर तो बढ़ ही चुकी है, स्वीडन भी इसमें शामिल होने का इंतजार कर रहा है.
फिनलैंड के राष्ट्रपति ने इस मौके पर कहा, ‘हर राष्ट्र अपनी सुरक्षा पुख्ता करना चाहता है, फिनलैंड भी वही कर रहा है. नैटो मेंबरशिप ने हमारी अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत बनाई है.’ इस घटना ने यह बात पूरी स्पष्टता से रेखांकित कर दी है कि हमारे इतिहास का सैन्य गुटनिरपेक्षता का दौर समाप्त हो गया है और एक नया दौर शुरू हो चुका है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने यूक्रेन पर हमले की जिम्मेदारी पश्चिमी देशों और नैटो का विस्तार करने की उनकी कोशिशों पर डाली थी. उनकी दलील थी कि यूक्रेन के खिलाफ बल प्रयोग के जरिए वह दूसरे देशों के लिए एक लकीर खींच रहे हैं ताकि वे नैटो से दूर रहें. यूरोप में इतना बड़ा युद्ध शुरू करने का प्रमुख कारण उन्होंने यही बताया था. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने तब कहा था कि वह यह कहने से खुद को नहीं रोक पा रहे हैं कि ‘शायद इसी बात के लिए आगे चलकर हम पूतिन का शुक्रिया अदा करें क्योंकि उन्होंने वही स्थिति समय से पहले ला दी है, जिसे रोकने का दावा वह कर रहे हैं.’
चीन से और ज्यादा करीबी, लेकिन उसके जूनियर पार्टनर के रूप में. चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के सामने पूतिन की जूनियर पार्टनर की हैसियत तभी स्पष्ट हो गई थी, जब चिनफिंग हाल में रूस के दौरे पर आए थे.
रूस के लिए असली चुनौती सामरिक स्तर पर है. रूसी हमले ने एक झटके में न केवल पश्चिम को एकजुट कर दिया बल्कि उसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद की अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर फिर से विचार करने को भी मजबूर किया. जर्मनी जैसे देश के लिए भी यह घटना सामरिक नजरिए से महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई. नैटो एक तरह से जैसे पुनर्जीवित हो गया और फिनलैंड, स्वीडन जैसे पारंपरिक तौर पर गुटनिरपेक्ष देश भी अपने लंबे समय से चले आ रहे रुख पर पुनर्विचार करने को मजबूर हुए. फिनलैंड में नैटो में शामिल होने के सवाल पर लोगों का समर्थन 80 फीसदी तक पहुंच गया, जिससे स्वाभाविक ही नीति निर्माताओं के लिए फैसला करना आसान हो गया.
वैसे सच यह भी है कि भारत, रूस से अपने रिश्तों को प्रभावित नहीं होने देना चाहेगा. लेकिन हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं और भारत को हथियारों के लिए कोई वैकल्पिक ठिकाना तलाशना होगा.
वैसे सच यह भी है कि भारत, रूस से अपने रिश्तों को प्रभावित नहीं होने देना चाहेगा. लेकिन हालात तेजी से बदलते जा रहे हैं और भारत को हथियारों के लिए कोई वैकल्पिक ठिकाना तलाशना होगा.
साफ है कि यूरोप की सुरक्षा संरचना को आकार देने वाले बुनियादी कारकों में बदलाव आ रहा है और उनका प्रभाव भारत की विदेश नीति पर भी पड़ रहा है. रूस के साथ भारत के रिश्ते भी इससे अप्रभावित नहीं रह सकते. भारत यही उम्मीद कर रहा है कि सब कुछ ठीक रहे, लेकिन उसे बुरे नतीजों के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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