Occasional PapersPublished on Dec 11, 2023
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‘भारत में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय: वैश्विक अनुभवों से मिले सबक का विस्तार से विश्लेषण’

  • Karishma K. Shah
  • Yugank Goyal

    भारत के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने मई 2023 में विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में अपने कैंपस स्थापित करने और शैक्षणिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति देते हुए दिशानिर्देशों के प्रारूप का ऐलान किया था. इस पेपर में चीन, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया और मलेशिया में विदेशी शिक्षण संस्थानों से जुड़े अनुभवों का विश्लेषण करके भारत में विदेशी यूनिवर्सिटियों के लिए दरवाज़े खोलने के संभावित नतीज़ों की विस्तृत पड़ताल की गई है. इस बारे में विस्तार से अध्ययन करने पर पता चलता है कि केवल कुछ ही वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जो दूसरे देशों में अपने कैंपस स्थापित करने के इच्छुक हैं. ऐसी परिस्थितियों में यह ज़रूरी है कि भारत को विदेशी एवं स्थानीय उच्च शिक्षण संस्थानों को साथ में लेकर देश में सहयोगी कैंपस स्थापित करने पर अधिक फोकस करना चाहिए. यानी कि ऐसे कैंपस बनाने चाहिए, जो न केवल उच्च गुणवत्ता वाली पढ़ाई एवं रिसर्च को प्रोत्साहित करने वाले हों, बल्कि स्थानीय क्षमताओं को भी बढ़ावा देने वाले हों.

Attribution:

युगांक गोयल एवं करिश्मा के. शाह, भारत में अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय: वैश्विक अनुभवों से मिले सबक का विस्तार से विश्लेषण,’ ओआरएफ ऑकेज़नल पेपर नं. 418, अक्टूबर 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.

प्रस्तावना

भारत में उच्च शिक्षा की निगरानी और देखरेख करने वाला वैधानिक निकाय यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग है. UGC ने मई 2023 में विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों (FHEIs) के देश में आने और उनके द्वारा शैक्षणिक गतिविधियों के संचालन को नियंत्रित करने के लिए विस्तृत मसौदा एवं दिशानिर्देश जारी किए थे. ज़ाहिर है कि देश में विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के कैंपस स्थापित करने का विचार वर्ष 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में सामने आया था, यह पॉलिसी भारत में एजुकेशन सेक्टर में व्यापक स्तर पर सुधार के लिए लाई गई है.[1] UGC भारत में अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को संचालित करने में दिलचस्पी रखने वाले FHEIs के आवेदनों की जांच करने एवं उन्हें मंजूरी देने के लिए एक स्टैंडिंग कमेटी का गठन करेगा और यह कमेटी निम्नलिखित आवश्यक दिशानिर्देशों के आधार पर FHEIs के आवेदनों पर फैसला करेगी:

 

·       जो भी FHEIs भारत में अपनी गतिविधियों को संचालित करना चाहते हैं, उन्हें शीर्ष 500 वैश्विक विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल होना चाहिए. हालांकि, यूनिवर्सिटियों की वर्ल्ड रैंकिंग निर्धारित करने की प्रक्रिया क्या होगी, इसके बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन संभावना है कि यह टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग या QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के अनुसार होगी. [A] UGC द्वारा FHEIs को 10 साल की अवधि के लिए मंजूरी दी जाएगी, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा जिन FHEIs  को स्वीकृति दी जाएगी, उन्हें भारत में अपने संचालन के लिए UGC को वार्षिक शुल्क (अभी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है) का भुगतान करना होगा.

·       FHEIs भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के चयन के लिए अपने मापदंड बना सकते हैं. छात्रों से फीस "पारदर्शी और उचित" होनी चाहिए. इसके साथ ही FHEIs आवश्यकता के अनुरूप छात्रों को स्कॉलरशिप प्रदान कर सकता है.

·       FHEIs भारत या दूसरे देशों से फैकल्टी और स्टाफ की भर्ती कर सकते हैं और उन्हें अपने हिसाब से वेतन दे सकते हैं, लेकिन शर्त यह है कि उनकी योग्यता FHEIs के होम कैंपस के कर्मचारियों के बराबर होनी चाहिए. यदि किसी विदेशी फैकल्टी को नियुक्त किया जाता है, तो उसे FHEIs के भारतीय कैंपस में "उचित अवधि के लिए" रहना होगा.

·       FHEIs के भारतीय कैंपसों में शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए और यह उनके होम कैंपस के अनुरूप होनी चाहिए. हालांकि, दिशानिर्देशों में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से क्या तात्पर्य है और उसमें क्या शामिल है.

·       FHEIs ऑनलाइन या मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम संचालित नहीं कर सकते हैं.

·       FHEIs के भारतीय कैंपस में छात्रों को जो डिग्री और सर्टिफिकेट्स दिए जाएंगे, वो उनके होम कैंपस के समकक्ष होने चाहिए और मान्यता प्राप्त होने चाहिए.

·       FHEIs को भारतीय कैंपस में ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जो छात्रों को उनके होम कैंपस में अध्ययन को प्रोत्साहित करने वाले हों.

 

भारत में FHEIs को अपने कैंपस स्थापित करने की स्वीकृति देने पीछे लगता है कि तीन फैक्टर प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार हैं. पहला, बेहतर शिक्षा के लिए विदेश जाने के लिए मज़बूर छात्रों को भारत में ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराना. यह एक सच्चाई है कि आमतौर पर भारतीय विश्वविद्यालय ग्लोबल यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शामिल नहीं होते हैं. भारत के युवाओं में जैसे-जैसे तेज़ी के साथ बेहतर गुणवत्ता वाली हायर एजुकेशन की आकांक्षा प्रबल हो रही है, वैसे-वैसे वे उच्च शिक्षा के लिए दूसरे देशों में विकल्प तलाशने के लिए मज़बूर हो रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2022 में क़रीब दस लाख भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख किया था. [2] उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख करने वाले भारतीय छात्रों की वजह से न केवल देश से 'प्रतिभा पलायन' होता है, बल्कि छात्रों तथा उनके परिवारों को फीस पर अधिक रकम ख़र्च करना पड़ती है, साथ ही दूसरे देशों में रहने-खाने पर भी भारी रकम ख़र्च करनी पड़ती है. ऐसे में, जिस प्रकार से UGC द्वारा विदेशी शिक्षण संस्थानों को भारत में अपने कैंपस स्थापित करने के दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं, उससे लगता है कि उच्च शिक्षा के नाम पर भारत से पूंजी के प्रवाह और युवाओं के पलायन को रोकने की भी कोशिश की जा रही है. दूसरा, फैक्टर यह है कि भारत दुनिया के प्रतिष्ठित FHEIs को आकर्षित करने के साथ ही देश में उच्च गुणवत्ता वाले शैक्षणिक एवं रिसर्च इकोसिस्टम को स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. तीसरी बात यह है कि भारत में गिने-चुने निजी विश्वविद्यालय ही हैं, जिनमें वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी बनने की काबिलियत है. ऐसे में FHEIs को भारत में संचालन की स्वीकृति देने से जहां एक ओर शिक्षण संस्थानों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर भारत के जो भी तेज़ी से उभरते निजी विश्वविद्यालय हैं, उन्हें अपनी क्षमता में वृद्धि करने एवं शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा. हालांकि, देखा जाए तो UGC द्वारा जारी की गई ड्राफ्ट गाइडलाइन्स में कई ऐसी बातें हैं, जो सीधे तौर पर विश्वविद्यालयों में स्टूडेंट के दाखिले से जुड़े मानदंड़ों एवं उनकी फीस से संबंधित हैं, ऐसे में इनके बीच पारस्परिक सहयोग होने या फिर रिसर्च इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर गठजोड़ होने की संभावना बहुत ही कम नज़र आती है.

 

इस सबके बीच फिलहाल इसको लेकर बहुत अधिक स्पष्टता नहीं हैं कि दूसरे देशों के चोटी के विश्वविद्यालय भारत में अपने कैंपसों को स्थापित करना चाहते हैं या नहीं. साथ ही इसको लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है कि UGC द्वारा जो दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, उनका भारत में उच्च शिक्षा सेक्टर पर क्या और कितना प्रभाव पड़ेगा. हालांकि, UGC के नियम भारत सरकार के नज़रिए में आए परिवर्तन (जो किए एक स्वागत योग्य संकेत है) को प्रदर्शित करते हैं. इसके अलावा, सिर्फ़ FHEIs को भारत में अपनी शैक्षणिक गतिविधियां संचालित करने की मंजूरी देने से वे चिंताएं दूर होती नज़र नहीं आ रही हैं, जिनकी वजह से UGC को इतने विस्तृत दिशानिर्देशों को जारी करना पड़ा है. इस पेपर में चीन, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और मलेशिया में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उसके बाद उपजी परिस्थितियों एवं वहां की ज़मीनी हक़ीक़त की विस्तृत पड़ताल करने की कोशिश की गई है, ताकि भारत को भी इससे कुछ सीखने-समझने को मिले.

 

FHEIs को लेकर वैश्विक अनुभवों का मूल्यांकन

देखा जाए, तो वैश्विक स्तर पर FHEIs की संख्या अपेक्षाकृत कम है और इसीलिए ऐसे उच्च शिक्षण संस्थानों को दूसरे देशों में स्थापित किए जाने से क्या फायदा होता है और क्या दिक़्क़तें पेश आती हैं, इसको लेकर बहुत कम शोध हुआ है. दूसरी संभावित वजह यह भी है कि किसी देश की यूनिवर्सिटी के विस्तार पर अगर रिसर्च की भी जाती है, तो सामान्य तौर पर वो शिक्षा उपलब्ध कराने और उसकी गुणवत्ता के बारे में की जाती है. यानी कि शोध के दौरान विश्वविद्यालय की दूसरी ख़ास विशेषताओं को अधिक अहमियत नहीं दी जाती है.[3] ज़ाहिर है कि जब भी कोई विश्वविद्यालय किसी दूसरे देश में FHEIs की स्थापना के बारे में सोचता है, तो उसे तमाम तरह की जानकारियों की ज़रूरत होती है. जैसे कि बिजनेस से संबंधि रणनीतियों एवं इसके ख़तरों से जुड़ी हर छोटी से छोटी जानकारी और ज़मीनी स्तर पर इससे क्या प्रभाव पड़ेगा, इसके बारे में जानना होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि अधिकतर मामलों में ऐसी जानकारी सार्वजनिक तौर पर मौज़ूद नहीं होती है.[4] FHEIs कहीं न कहीं उच्च शिक्षा के ग्लोबलाइज़ेशन के एक विकसित संस्करण का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस प्रकार से देखा जाए तो FHEIs उच्च शिक्षा के सेक्टर में बड़े बदलाव का प्रतीक हैं और ऐसे में इस पर गहनता के साथ विचार-विमर्श किए जाने की ज़रूरत है.[5]

 

दूसरे देशों में FHEIs की स्थापना कोई बहुत पुरानी बात नहीं है, हाल के दशकों में ही इसमें तेज़ी आई है. वर्ष 1970 तक पूरी दुनिया में सिर्फ़ पांच FHEIs थे, जो वर्ष 2006 तक बढ़कर 82 हो गए और वर्ष 2011 में इनकी संख्या 200 तक पहुंच गई. [6] वास्तविकता में 2000 के दशक में FHEIs का ज़बरदस्त तरीक़े से प्रसार होना प्रारंभ हुआ था, इसके पीछे वजह यह थी कि इस दशक में दुनिया के तमाम देशों के बीच पारस्परिक सहयोग में बढ़ोतरी हुई, विकासशील देशों में आर्थिक प्रगति ने ज़ोर पकड़ा और संचार के बेहतर साधन उपलब्ध हुए.[7] FHEIs का इतना प्रसार होने के बावज़ूद इनको लेकर विस्तृत पड़ताल या रिसर्च बेहद सीमित है. वर्ष 2000 और 2017 के बीच सिर्फ़ 173 पब्लिकेशन ऐसे थे, जो FHEIs के विभिन्न मुद्दों से संबंधित थे और इनमें से 113 जर्नल (journal articles) थे, यानी जर्नल आर्टिकल की संख्या 65 प्रतिशत थी.[8] ये जितने भी अध्ययन किए गए थे, उनमें से ज़्यादातर प्रबंधन से जुड़े एवं एकेडमिक स्टाफ के मुद्दों पर और एजुकेशनल सेंटर्स पर केंद्रित थे. ज़ाहिर है कि इसके चलते FHEIs के कार्यकलापों को लेकर व्यापक स्तर पर समझ-बूझ हासिल नहीं हो पाई.

 

दुनिया भर में मार्च 2023 तक FHEIs के आंकड़ों पर नज़र डालें तो इनकी संख्या 333 है, जिसमें अमेरिकी विश्वविद्यालयों के FHEIs की संख्या सबसे अधिक है (25 प्रतिशत FHEIs अमेरिकी यूनिवर्सिटियों के हैं). इसलिए, अमेरिका को उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा निर्यातकभी कहा जा सकता है. इसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस और रूस (11 प्रतिशत से 14 प्रतिशत के बीच) के विश्वविद्यालयों के FHEIs हैं. उच्च शिक्षा के सबसे बड़े 'आयातकों' में चीन (14 प्रतिशत) और संयुक्त अरब अमीरात (9 प्रतिशत) शामिल हैं. इसके बाद सिंगापुर, मलेशिया और क़तर (3 प्रतिशत से 5 प्रतिशत के बीच) का नाम आता है.[9] आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उच्च शिक्षा के 'आयातकों' की तुलना में 'निर्यातकों' की संख्या अधिक है. इससे यह पता चलता है कि FHEIs को दूसरे देशों में स्थापित करने वाले देशों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, जबकि वे कई देशों में फैले हुए हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम ही है. (चित्र 1 और 2 इस प्रवाह को Sankey diagrams के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं).

 

चित्र 1: वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालयों द्वारा किया जा रहा शिक्षा का 'निर्यात' और 'आयात'

स्रोत: C-BERT डेटाबेस का उपयोग करके लेखकों द्वारा की गई गणना.

 

चित्र 2 a: अमेरिका से होने वाला उच्च शिक्षण संस्थानों का निर्यात

 

 

नोट: चित्र 1 से अलग किए गए आंकड़े

स्रोत: C-BERT डेटाबेस का उपयोग करके लेखकों द्वारा की गई गणना.

 

चित्र 2 b: यूके से होने वाला उच्च शिक्षण संस्थानों का निर्यात

 

 

नोट: चित्र 1 से अलग किए गए आंकड़े

स्रोत: C-BERT डेटाबेस का उपयोग करके लेखकों द्वारा की गई गणना.

 

जिन देशों द्वारा FHEIs को अनुमति दी गई है और जिन देशों में ये विदेशी उच्च शिक्षण संस्थान लंबे अर्से से संचालित किए जा रहे हैं, उन देशों के अनुभव भारत के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत अपने एजुकेशनल सेक्टर में FHEIs के कैंपस खोलने की मंजूरी देने की प्रक्रिया में है. इस पेपर में चीन और UAE (जहां सबसे अधिक FHEIs स्थापित हैं), दक्षिण कोरिया (क्योंकि यहां बेहद जटिल शिक्षा प्रणाली मौज़ूद है), और मलेशिया (FHEIs स्थापित करने के मामले में जिसका नंबर चीन और UAE जैसे प्रमुख देशों के बाद आता है) में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों को लेकर केस स्टडी पर आधारित विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है. इसके साथ ही इस पेपर में उपरोक्त चारों देशों में खोले गए ब्रिटेन और अमेरिका के FHEIs की संरचना, आकार, लोकेशन और फीस का भी आकलन किया गया है. (जो जानकारी मूल देश में इन शिक्षण संस्थानों की वेबसाइटों पर दी गई है).

चीन

चीन में उच्च शिक्षण संस्थानों (HEIs) को पहले इस प्रकार से विकसित और संचालित किया जाता था कि वे देश के सोवियत-शैली वाले मैनेजमेंट सिस्टम की अपेक्षाओं को बेहतर तरीक़े से पूरा कर सकें. ज़ाहिर है कि इस प्रकार की प्रबंधन प्रणाली की प्रमुख विशेताओं में केंद्रीकरण, सरकारी स्वामित्व, पदानुक्रम का सख़्ती से पालन और प्रबंधन का राजनीतिकरण शामिल था.[10] हालांकि, वर्ष 1978 में चीन में एक नए युग का प्रारंभ होने के साथ ही वहां की उच्च शिक्षा प्रणाली में उल्लेखनीय बदलाव आया और इसका उद्देश्य चार क्षेत्रों में आधुनिकीकरण हासिल करना हो गया. यह चार क्षेत्र थे - राष्ट्रीय रक्षा, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और उद्योग.[11] चीन में उच्च शिक्षण संस्थानों के परिवर्तन को चार अहम घटकों द्वारा प्रकट किया जा सकता है, यानी व्यावसायीकरण, विकेंद्रीकरण, विस्तार और बाज़ारीकरण.[12]

 

चीनी में उच्च शिक्षा में व्यावसायीकरण के पहलू की वजह से वर्ष 1949 और 1988 के बीच एक सह-वित्तपोषण  मॉडल पेश किया गया. इस मॉडल के अंतर्गत शिक्षा में होने वाले व्यय को सरकार एवं छात्रों के बीच साझा करना आवश्यक था. इसमें स्टूडेंट्स को कोई फीस देने की ज़रूरत नहीं थी, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन के ख़र्चों को पूरा करने के लिए वित्तीय मदद मिलती थी [13] चीन में जब वर्ष 1988 की शुरुआत में उच्च शिक्षा सेक्टर का तेज़ी से फैलाव हुआ, तो विश्वविद्यालयों ने छात्रों से ट्यूशन फीस वसूलना शुरू कर दिया. हालांकि, तब कम संपन्न परिवारों के छात्रों, ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाक़ों के छात्रों पर इस ट्यूशन फीस के प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चिंताएं भी जताई गईं थीं. [14] उच्च शिक्षा में सुधार की प्रक्रिया का दूसरा पहलू इसका विकेंद्रीकरण था. इस विकेंद्रीकरण की वजह से कुलीन विश्वविद्यालयों एवं गैर-कुलीन विश्वविद्यालयों के बीच एक अभूतपूर्व खाई पैदा हो गई. इनमें से कुलीन विश्वविद्यालयों का प्रबंधन शिक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता था, जबकि गैर-कुलीन यूनिवर्सिटियों का संचालन प्रांतीय या स्थानीय सरकारों द्वारा किया जाता था. सरकार ने एक तरफ़ प्रमुख राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण बरक़रार रखा (प्रोजेक्ट 211 विश्वविद्यालय), जबकि दूसरी तरफ वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटियों की स्थापना का कार्य भी जारी रखा (प्रोजेक्ट 985). सरकार के इस नज़रिए ने उसे अत्यधिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में निवेश पर फोकस करने और HEIs के दायरे के विस्तार से जुड़े ख़र्चों को नियंत्रित करने में मदद की. [15] एजुकेशन सेक्टर में सुधार की प्रक्रिया का तीसरा कंपोनेंट उच्च शिक्षा का विस्तार है. चीन में वर्ष 1997 और 2006 के बीच नए छात्रों की संख्या में 5.3 मिलियन की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई और स्टूडेंट्स के ग्रॉस एनरोलमेंट रेट यानी सकल नामांकन दर (GER) में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई.[15]  शिक्षा में सुधार की प्रक्रिया का अंतिम घटक बाज़ारीकरण है, जो निजी यानी गैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों को विकसित करने से संबंधित है, आमतौर पर जिन्हें मिनबैन (minban) अर्थात समुदाय द्वारा प्रायोजित शिक्षण संस्थान कहा जाता है.[16] मिनबैन को दो श्रेणियों में बांटा गया है: पहला, सरकारी यूनिवर्सिटियों से संबद्ध स्वतंत्र कॉलेज और दूसरा, विदेशी साझीदारों के साथ स्थापित किए गए अंतर्राष्ट्रीय HEIs.[17]

 

देखा जाए, तो चीन में शिक्षा की बढ़ती मांग की वजह से वहां निजी एवं सरकारी एजुकेशन सेक्टरों का विकास तो हुआ, लेकिन उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और साख चिंता का एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा. चीन में विदेशी शिक्षण संस्थानों के साथ साझेदारी से उम्मीद थी कि देश की बौद्धिक क्षमता का विकास होगा और देश के शिक्षा सेक्टर के सर्वांगीण विकास को गति मिलेगी.[18] स्टेट काउंसिल ने वर्ष 2003 में विदेशी संस्थानों के साथ चीन की सहकारी शिक्षा को लेकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के नियमों एवं दिशानिर्देशों को जारी किया था, जिन्हें वर्ष 2017 में संशोधित किया गया था. इन नियम-क़ानूनों के माध्यम से इस इच्छा को प्रकट किया गया था कि चीन दुनिया के शीर्ष और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली को अपनाएगा, साथ ही खुद को शिक्षा के सेक्टर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के समकक्ष खड़ा करेगा. इस दिशा में आगे बढ़ने का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण चीन में वर्ष 2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम-निंगबो (University of Nottingham-Ningbo) और वर्ष 2006 में शीआन जियाओतोंग-लिवरपूल विश्वविद्यालय (Xi’an Jiaotong-Liverpool University) की स्थापना थी. इन विश्वविद्यालयों का उद्देश्य चीन में रिसर्च के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने और शैक्षणिक नेटवर्क का विस्तार करने जैसी पहलों को अंज़ाम देना था.[19] इसके बाद से चीन में विदेशी साझेदारी के साथ तमाम उच्च शैक्षणिक संस्थान खोले जा चुके हैं.

 

संरचना: विदेशी शिक्षण संस्थानों द्वारा जिन कोर्सेज या प्रोग्रामों की पेशकश की जाती है, उन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है. पहला ऐसे संस्थान जो छात्रों को डिग्री नहीं देते हैं और दूसरे, वो शिक्षण संस्थान, जो छात्रों को विदेशी विश्वविद्यालयों या फिर हांगकांग यूनिवर्सिटी की डिग्री प्रदान करते हैं. एक अहम बात यह भी है कि चीन में विदेशी विश्वविद्यालय सिर्फ साझा सेंटर्स स्थापित करके या चीन की यूनिवर्सिटियों के साथ गठजोड़ करके ही अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को संचालित कर सकते हैं. चीन में विदेशी विश्वविद्यालयों या संगठनों पर अपने स्वतंत्र ब्रांच कैंपस स्थापित करने पर पाबंदी है. हालांकि, अपवाद स्वरूप ब्रिटेन की नॉटिंघम यूनिवर्सिटी और चीन के झेजियांग वानली विश्वविद्यालय (Zhejiang Wanli University) के बीच साझेदारी के ज़रिए ऐसे ब्रांच कैंपस खोलने की अनुमति है. इसके अतिरिक्त चीन में दूसरे विश्वविद्यालयों को अभी तक कॉर्पोरेशन का दर्ज़ा नहीं दिया गया है. इसकी वजह यह है कि इन यूनिवर्सिटियों को चीन के उच्च शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम का पूरक हिस्सा माना जाता है. इसके साथ ही चीन के सरकारी दस्तावेज़ों में भी इस बात स्पष्ट उल्लेख है कि ये विदेशी शिक्षण संस्थान चीन के नियंत्रण में हैं. इसका मतलब यह है कि इन विदेशी संस्थानों की संचालन गतिविधियों में चीन को दख़ल देने का पूरा अधिकार है. इसके अलावा, चीन में स्थानीय संस्थानों और उनके विदेशी साझीदारों को छात्रों के लिए कोई भी डिग्री प्रोग्राम पेश करने के लिए वहां की सरकार से मान्यता लेना ज़रूरी होता है, क्योंकि निजी संस्थानों को वहां शायद ही कभी मान्यता प्राप्त डिग्री कार्यक्रम पेश करने की स्वीकृति मिलती है. [20] उदाहरण के तौर पर सिंगुआ-यूसी बर्कले शेन्ज़ेन इंस्टीट्यूट फॉर डेटा साइंसेज एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (Tsinghua–UC Berkeley Shenzhen Institute for Data Sciences and Information Technology) को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले एवं चीन के सिंगुआ विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से शेन्ज़ेन म्युनिसिपल गवर्नमेंट के "समर्थन" के बाद स्थापित किया गया है.

 

आकार: चीन में स्थापित विदेशी शिक्षण संस्थानों के आकार की बात करें, तो वहां ज़्यादातर साझेदारी वाले विश्वविद्यालय चीन के स्थानीय शिक्षण संस्थानों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे हैं. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2021-22 में सिंगुआ-यूसी बर्कले शेन्ज़ेन इंस्टीट्यूट (Tsinghua–UC Berkeley Shenzhen Institute) में बमुश्किल 600 स्टूडेंटस पढ़ते थे, जबकि चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी में लगभग 48,600 छात्र पंजीकृत थे. ज़ाहिर की ऐसी परिस्थितियों में स्टूडेंट्स को बेहतर पढ़ाई की उम्मीद हो सकती है, क्योंकि छात्रों की संख्या कम होने से अध्यापक और छात्र का अनुपात कम होता है. उदाहरण के लिए, ड्यूक कुनशान यूनिवर्सिटी (Duke Kunshan University) (यह अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी और चीन के वुहान विश्वविद्यालय के बीच एक संयुक्त उद्यम है) में प्रत्येक सात छात्रों के लिए एक फैकल्टी मेंबर है, जबकि पेकिंग विश्वविद्यालय में प्रत्येक छह छात्रों के लिए लगभग एक फैकल्टी मेंबर/कर्मचारी है. हालांकि, जब केवल टीचिंग फैकल्टी की बात की जाती है, तो पेकिंग विश्वविद्यालय में यह अनुपात ज़्यादा है, जो बताता है कि छात्रों को पढ़ाने के लिए वहां फैकल्टी मेंबर्स की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है.

 

लोकेशन: चीन में विदेशी गठजोड़ के साथ जितने भी विश्वविद्यालय खुले हैं, उनमें से ज़्यादातर शंघाई, बीजिंग और नानजिंग जैसे बड़े महानगरों में स्थापित किए गए हैं.

 

फीस: चीन में FHEIs की ट्यूशन फीस की चर्चा करें, तो यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम, ड्यूक कुनशान विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी शंघाई में ट्यूशन फीस, उनके अपने देश में स्थित इंस्टीट्यूट्स से बहुत अलग नहीं है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2022 में ड्यूक विश्वविद्यालय और ड्यूक कुशान विश्वविद्यालय में वार्षिक ट्यूशन फीस 42,750 अमेरिकी डॉलर से 60,500 अमेरिकी डॉलर के बीच थी. देखा जाए तो ज़्यादातर FHEIs की ट्यूशन फीस, चीन के स्थानीय विश्वविद्यालयों की तुलना में बहुत अधिक है. चीन में संस्थान और अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर स्थानीय विश्वविद्यालयों की ट्यूशन फीस 1,500 अमेरिकी डॉलर से 3,200 अमेरिकी डॉलर के बीच होती है. हालांकि, इनमें से अगर छात्र बिजनेस, मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे विषयों में पढ़ाई करता है, तो उसे अधिक वार्षिक फीस का भुगतान करना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर चीन के शीर्ष विश्वविद्यालय, यानी पेकिंग यूनिवर्सिटी की वार्षिक फीस अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए 3,340 अमेरिकी डॉलर है और लोकल स्टूडेंट्स के लिए 2,800 अमेरिकी डॉलर है, देखा जाए तो यह ड्यूक कुनशान विश्वविद्यालय की फीस की तुलना में बहुत कम है.

 

संयुक्त अरब अमीरात

 

वर्ष 1971 में जब संयुक्त अरब अमीरात अस्तित्व में आया था, उस वक़्त वहां शिक्षा प्रणाली का बुरा हाल था. ग्रामीण क्षेत्रों और आर्थिक रूप से पिछड़े बैकग्राउंड के बच्चों की स्कूली शिक्षा तक पहुंच बेहद सीमित थी. हालांकि, जैसे-जैसे UAE की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी हुई, वैसे-वैसे में देश ने बड़ी संख्या में दूसरे देशों के नागरिकों को अपने यहां आकर्षित किया और तब UAE के एजुकेशन सिस्टम ने देश की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षित और सक्षम वर्कफोर्स को विकसित करने पर फोकस किया.[21] इसके परिणामस्वरूप UAE में हायर एजुकेशन सेक्टर में ज़बरदस्त निवेश किया गया. इसमें नई-नई यूनिवर्सिटियों की स्थापना करना और मौज़ूदा विश्वविद्यालयों का विस्तार किया जाना शामिल था.

 

UAE में उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वहां की फेडरल गवर्नमेंट और अमीरात के शासकों ने एक सिस्टम विकसित किया. इस प्रणाली में फेडरल शिक्षण संस्थान, अमीरात सरकार की ओर से वित्त पोषित विश्वविद्यालय और निजी स्वामित्व वाले विदेशी संस्थान शामिल थे.[22] कुल मिलाकर UAE ने अपने एजुकेशन सिस्टम को अमेरिका और ब्रिटेन की तर्ज पर विकसित किया. हालांकि, जिस प्रकार से UAE में अलग-अलग प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों का बेतरतीब तरीक़े से विस्तार हुआ है, उसने कहीं न कहीं मानकीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण और शैक्षणिक प्रणालियों की विविधता से जुड़ी तमाम चुनौतियां पेश की हैं. [23] इसके अतिरिक्त, देश में हाल के वर्षों में जो शैक्षणिक संस्थान खोले गए हैं, उनका ज़ोर बिजनेस मैनेजमेंट, क़ानूनी पेशे से जुड़े पाठ्यक्रमों, इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में किफायती और नौकरी उपलब्ध कराने वाले कोर्सेज पर अधिक है, जबकि फिजिकल साइंस एवं सोशल साइंस जैसे कोर्सेज पर उनका कोई ध्यान नहीं है.[24]

 

शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए UAE द्वारा फ्री ज़ोन्स की स्थापना विशेष रूप से उल्लेखनीय पहल है. इस पहल के अंतर्गत ही दुबई नॉलेज पार्क और दुबई इंटरनेशनल एकेडमिक सिटी (DIAC) की स्थापना की गई है. इसके साथ ही UAE तमाम विदेशी यूनिवर्सिटियों के लिए अपने कैंपसों को खोलने के लिए पसंदीदा गंतव्य स्थल के रूप में भी उभरा है. UAE में सोरबोन विश्वविद्यालय, अबू धाबी और लंदन बिजनेस स्कूल, दुबई इसके सटीक उदाहरण हैं.

 

विदेशी शैक्षणिक संस्थानों में स्टूडेंट्स को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाए, इसे सुनिश्चित करने के लिए UAE द्वारा कई नीतियां बनाई गई हैं, साथ ही तमाम कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया गया है.[25] इसी के अंतर्गत वर्ष 2017 में UAE की एजुकेशन मिनिस्ट्री द्वारा उच्च शिक्षा के लिए नेशनल स्ट्रैटेजी फॉर हायर एजुकेशन 2030 को शुरू किया गया. UAE की यह शिक्षा रणनीति चार स्तंभों, यानी गुणवत्ता, क्षमता, इनोवेशन और सामंजस्य अर्थात पारस्परिक मेलजोल पर आधारित थी. अगर UAE में विदेशी और स्थानीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों और विषयों की तुलना की जाए, तो स्पष्ट होता है कि विदेशी शिक्षण संस्थानों द्वारा छात्रों को अधिक विशेषज्ञता एवं एक्सक्लूजिव कोर्सेज के विकल्प प्रदान किए जाते हैं. इसके अतिरिक्त अगर इन विश्वविद्यालयों द्वारा स्टूडेंट्स से वसूली जाने वाली अलग-अलग ट्यूशन फीस का विश्लेषण किया जाए, तो यह सामने आता है कि उनके द्वारा अपने पाठ्यक्रमों या डिग्रियों को वित्तपोषित करने एवं अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले स्टूडेंट्स को आकर्षित करने के लिए तमाम तरह की युक्तियां अमल में लाई जाती हैं. कहने का तात्पर्य यह है कि UAE में जो भी विदेशी विश्वविद्यालय संचालित हैं, या जो भी FHEIs अपनी गतिविधियों संचालित कर रहे हैं, उनका सबसे बड़ा उद्देश्य छात्र-छात्राओं को हायर एजुकेशन में विशेषज्ञता प्रदान करने का है, साथ ही नॉलेज-आधारित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने का है.

 

संरचना: UAE में FHEIs को अपने कैंपस स्थापित करने के लिए कमीशन फॉर एकेडमिक एक्रिडेशन (CAA) से लाइसेंस लेना होता है. CAA का प्रमुख कार्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी शिक्षण संस्थानों द्वारा एकेडमिक मापदंडों का पालन किया जाए. हालांकि, UAE में दुबई जैसे फ्री ज़ोन्स में एजुकेशन इंस्टीट्यूशन खोलने के लिए CAA से मान्यता हासिल करना अनिवार्य नहीं है. DIAC जैसे मुक्त क्षेत्रों में अपनी शैक्षणिक गतिविधियां संचालित करने वाले FHEIs को कई तरह के फायदे मिलते हैं. इन फायदों में 100 प्रतिशत विदेशी स्वामित्व, टैक्स में छूट और प्रॉफिट को अपने देश ले जाना शामिल है.[26] UAE में सामान्य तौर पर हर अमीरात (emirate) का शिक्षा की गुणवत्ता निर्धारित करने का अपना तंत्र है, इसके साथ ही दुबई में नॉलेज एंड ह्यूमन डेवलपमेंट अथॉरिटी शिक्षा गुणवत्ता सुनिश्चित करने की पूरी ज़िम्मेदारी संभाल रहा है. इसके अलावा, UAE की मिनिस्ट्री ऑफ हायर एजुकेशन एंड साइंटिफिक रिसर्च ने मान्यता प्राप्त विदेशी शैक्षणिक कार्यक्रमों की एक सूची जारी की है, ताकि शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र अपना कोर्स पूरा होने पर अपने सर्टिफिकेट्स को जांच सकें कि वे मान्यता प्राप्त हैं या नहीं.[27]

 

आकार: विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों में स्थानीय छात्र-छात्रों के दाखिले के आंकड़ों को देखा जाए, तो UAE में स्थापित FHEIs में लोकल यूनिवर्सिटियों की तुलना में छात्रों के प्रवेश की दर कम है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2020-21 में यूनाइटेड अरब अमीरात विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाले स्टुडेंट्स की संख्या 14,000 से अधिक थी, जबकि न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी, अबू धाबी में पंजीकृत छात्रों की संख्या महज 530 छात्र थी.[28]

 

लोकेशन: यूएई में अधिकतर FHEIs ऐसे शहरों में खोले गए हैं, जहां न केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहद विकसित है, बल्कि जहां अच्छी-ख़ासी आबादी भी निवास करती है. उदाहरण के तौर पर न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी एवं सोरबोन यूनिवर्सिटी UAE के अबू धाबी में स्थित हैं, जबकि लंदन बिजनेस स्कूल का एक कैंपस दुबई में स्थापित है. इसके अलावा, एमिटी यूनिवर्सिटी, हेरियट-वॉट यूनिवर्सिटी (Heriot-Watt University) वोलोंगोंग यूनिवर्सिटी (University of Wollongong), BITS पिलानी और हल्ट इंटरनेशनल बिजनेस स्कूल (Hult International Business School) समेत UAE में अधिकतर विदेशी विश्वविद्यालय DIAC में खोले गए हैं, जो कि UAE का एक प्रमुख इकोनॉमी हब है और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का बड़ा केंद्र है. इससे यह साफ पता चलता है कि UAE में शहरी क्षेत्रों में विदेशी विश्वविद्यालयों को केंद्रित करने का निर्णय आर्थिक केंद्रों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग वाले सेंटर्स से निकटता को प्राथमिकता देने की एक सोची-समझी रणनीति है.

फीस: UAE में जो भी FHEIs संचालित हो रहे हैं, वे स्थानीय विश्वविद्यालयों की तुलना में छात्रों से ज़्यादा फीस वसूलते हैं. उदाहरण के तौर पर अबू धाबी विश्वविद्यालय में औसत वार्षिक ट्यूशन फीस 6,000 से 20,000 अमेरिकी डॉलर के बीच है. इसके उलट, लंदन बिजनेस स्कूल की दुबई ब्रांच में 20 महीने के एक्जीक्यूटिव एमबीए को पूरा करने का ख़र्चा 1,43,955 अमेरिकी डॉलर है. देखा जाए तो लंदन में स्थित लंदन बिजनेस स्कूल में इस कोर्स को करने में 1,53,293 अमेरिकी डॉलर फीस ली जाती है, यानी इसके दुबई कैंपस में इससे थोड़ी कम फीस वसूली जाती है.

दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया में शिक्षा के वातावरण और शिक्षा प्रणाली की बात करें, तो 20वीं सदी के मध्य के बाद से पश्चिमी देशों के नक्शेक़दम पर होने वाले आधुनिकीकरण के बीच वहां हायर एजुकेशन सिस्टम में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा गया. दक्षिण कोरिया में वर्ष 1945 में सिर्फ केवल 22 प्रतिशत वयस्क ही साक्षर थे, जबकि सेकेंडरी के बाद की शिक्षा बात करें तो ग्रॉस एजुकेशन रेट (GER) 2 प्रतिशत से भी नीचे थी. इसके बाद वहां शिक्षा प्रणाली में आए बदलाव की वजह से लगातार साक्षरता दर बढ़ती गई. वर्ष 2015 तक दक्षिण कोरिया में वयस्क साक्षरता दर 99 प्रतिशत और GER 93 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था.[29]

 

वर्ष 1910 से 1945 के बीच जब दक्षिण कोरिया पर जापान का शासन था, तब वहां कोरियाई लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के मकसद से उच्च शिक्षा के विकास में रोड़े अटकाए गए थे.[30] वर्ष 1945 में जब दक्षिण कोरिया को जापानी शासन से आज़ादी मिली तो, अपनी स्वतंत्रता के बाद के तीन वर्षों में अमेरिकी सैन्य प्रशासन के अंतर्गत वहां उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला. तीन वर्षों की इस अवधि में दक्षिण कोरिया ने अमेरिकी की साझेदारी में अपने हायर एजुकेशन सेक्टर का नए सिरे निर्माण करने का काम किया था.[31] इसके बाद के वर्षों में दक्षिण कोरिया में आर्थिक प्रगति के युग का आरंभ हुआ और आर्थिक गतिविधियों में हुई बढ़ोतरी की वजह से उच्च शिक्षा की मांग में भी वृद्धि हुई. दक्षिण कोरिया में वर्ष 1995 की एजुकेशन रिफॉर्म रिपोर्ट "ओपन एजुकेशन सिस्टम" जैसे बदलावों को सामने लेकर आई. एजुकेशन सेक्टर में सुधार से जुड़ी इस रिपोर्ट में "स्वतंत्र एवं जवाबदेही" पर आधारित शिक्षा पर ज़ोर दिया गया था.[32] हालांकि, दक्षिण कोरियाई सरकार के समानता के सिद्धांत ने देश के भीतर शिक्षा से जुड़े विकल्पों को सीमित करने का काम किया, नतीज़तन कोरियाई स्टूडेंट्स ने पढ़ाई के लिए दूसरे देशों में जाने का विकल्प चुना. कुछ तो ऐसे भी थे, जो प्राइमरी स्कूल के स्तर से ही दूसरे देशों में पढ़ाई के लिए चले गए.[33]

 

अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली के अधुनिकीकरण एवं उसे वैश्विक स्तर का बनाने के लिए दक्षिण कोरिया ने लगातार नई-नई शिक्षा नीतियों को बनाया और उन्हें लागू किया. दक्षिण कोरिया ने फंड्स की उपलब्धता के माध्यम से वर्ष 1999 में हायर एजुकेशन सेक्टर को प्रोत्साहित करने के लिए ब्रेन कोरिया 21 (Brain Korea 21- BK 21) कार्यक्रम की शुरुआत की थी.[34] उच्च शिक्षा क्षेत्र को गति दने के लिए दक्षिण कोरिया ने वर्ष 2004 में स्टडी कोरिया प्रोजेक्ट की शुरुआत की. इस परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2010 तक 50,000 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को शिक्षा के लिए अपने देश में आकर्षित करने का लक्ष्य था.[35] इसके अलावा, देश की अनुसंधान क्षमता को बढ़ाने एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में दक्षिण कोरिया द्वारा वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी.[36] इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2013 में दक्षिण कोरिया के शिक्षा एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा देश की यूनिवर्सिटियों की रिसर्च कैपेसिटी को बढ़ाने के लिए BK 21 PLUS प्रोग्राम शुरू किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसी परियोजनाओं पर फोकस करना था, जो न केवल अनुसंधान के अलग-अलग क्षेत्रों को एकसाथ लाने का काम करती थीं, बल्कि इंडस्ट्री-एकेडमिया सहयोग को बढ़ावा देने वाली थीं.

 

दक्षिण कोरिया में FHEIs को फ्री इकोनॉमिक ज़ोन्स एवं जेजू फ्री इंटरनेशनल सिटी में विदेशी शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना एवं प्रबंधन पर विशेष अधिनियम' ( स्पेशल एक्ट ऑन स्पेशल एक्ट ऑन एस्टैब्लिश्मेंट एंड मैनेजमेंट ऑफ फॉरेन एजुकेश्नल इंस्टीट्यूशंस इन फ्री इकोनॉमिक ज़ोन्स एंड जेजू फ्री इंटरनेश्नल सिटी) द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसमें एनफोर्समेंट डिक्री भी शामिल होती है. दक्षिण कोरियाई सरकार द्वारा लागू किए गए शैक्षणिक सुधारों का मकसद शिक्षा के लिए एक समानता वाले वातावरण को बढ़ावा देना, रिसर्च से जुड़ी गतिविधियों की क्षमता में वृद्धि करना और इंडस्ट्री-एकेडमिक सहयोग को प्रोत्साहित करना है. एक और बात है कि दक्षिण कोरिया में जो भी विदेशी यूनिवर्सिटी संचालित हो रही हैं, वे चीन की तर्ज़ पर सिर्फ़ एक ख़ास वर्ग के छात्रों या कहा जाए की शहरी इलाक़ों में रहने वालों को अपने यहां पढ़ाई के लिए आकर्षित करती हैं. ज़ाहिर है कि छात्रों का यही वो वर्ग है, जो अधिक ट्यूशन फीस का आसानी से भुगतान कर सकता है. हालांकि, दक्षिण कोरिया में FHEIs को पूरी शैक्षणिक स्वायत्तता मिली हुई है. दक्षिण कोरिया में अपनी मौज़ूदगी को बढ़ाने के लिए कुछ FHEIs ने स्थानीय यूनीवर्सिटियों के साथ हाथ मिलाया है, जबकि कई FHEIs ऐसे हैं, जिन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपने कैंपस खोले हैं. उदाहरण के तौर पर अमेरिका के चैपल हिल में नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी ने अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए कोरिया विश्वविद्यालय के साथ गठजोड़ किया है.

 

संरचना: दक्षिण कोरिया में शिक्षा से जुड़े संस्थानों को नियंत्रित करने एवं शैक्षणिक नीतियों को लागू करने के लिए एक मात्र कर्ताधर्ता शिक्षा मंत्रालय है. इसके अलावा, दक्षिण कोरियाई शैक्षणिक संस्थानों को देश के पाठ्यक्रम नियमों का अनुपालन करना होता है, इसमें राष्ट्रपति के आदेश के मुताबिक़ लोकल या विदेशी यूनिवर्सिटियों के साथ साझा कोर्सेज भी शामिल हैं. इसके साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों को हर हाल में शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होगा. इसमें उन्हें शिक्षा मंत्रालय से मान्यता हासिल करने से लेकर स्थानीय स्तर पर मंज़ूरी प्राप्त करना भी शामिल है. इसके अतिरिक्त, दक्षिण कोरिया में FHEIs को हायर एजुकेशन एक्ट एवं फॉरेन लैंग्वेज एजुकेशन एक्ट जैसे क़ानूनों एवं अध्यादेशों का भी अनुपालन करना होगा. इसका एक सटीक उदाहरण इंचियोन फ्री इकोनॉमिक ज़ोन (IFEZ) में स्थापित इंचियोन ग्लोबल यूनिवर्सिटी कैंपस (IGC) है. IGC दक्षिण कोरिया के नए और आधुनिक शैक्षणिक नज़रिए को दर्शाता है, जहां पर देश के स्टूडेंट कोरिया में पढ़ाई करते हुए दुनिया की शीर्ष और जानी-मानी यूनिवर्सिटियों से डिग्री हासिल कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि IGC की स्थापना चार बड़े शैक्षणिक संस्थानों द्वारा पारस्परिक सहोयग वाली परियोजना के रूप में की गई है. इसकी स्थापना में अमेरिका की जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी (George Mason University), यूटा विश्वविद्यालय (University of Utah) और स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क (SUNY) एवं बेल्जियम की गेन्ट यूनिवर्सिटी (Ghent University) शामिल हैं. IGC में स्थित SUNY कोरिया शैक्षणिक संस्थान दक्षिण कोरियाई सरकार एवं स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के बीच एक साझेदारी है. SUNY कोरिया में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय की तरफ से डिग्री दी जाती है, इसके साथ ही छात्रों के दाखिले, उनकी पढ़ाई एवं रिसर्च कार्यों में गुणवत्ता बनाए रखने समेत शैक्षणिक गतिविधियों से संबंधित तमाम पहलुओं की निगरानी भी उसी के द्वारा की जाती है.[37]

 

आकार: देशी और विदेशी संस्थानों में छात्रों की संख्या की बात करें, तो दक्षिण कोरिया में FHEIs की तुलना में स्थानीय विश्वविद्यालयों में ज़्यादा संख्या में स्टुडेंट्स पढ़ाई करते हैं. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2021-22 में सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी में 28,000 से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे थे, जबकि IGC में स्थित जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी, यूटा यूनिवर्सिटी, SUNY एवं गेन्ट यूनिवर्सिटी में लगभग 3,500 छात्र थे.[38]

 

लोकेशन: दक्षिण कोरिया में FHEIs मुख्य रूप से शहरों में ही स्थापित हैं. वहां IFEZ की स्थापना अपनी वैश्विक अपील बढ़ाने के लिए चीन और जापान के साथ दक्षिण कोरिया की नज़दीकी का लाभ उठाने के लिए की गई थी.[39] दक्षिण कोरिया में जिस प्रकार से FHEIs को शहरी क्षेत्रों में स्थापित किया गया है, उससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि उन्हें ख़ास रणनीति के तहत इकोनॉमिक हब और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग वाली जगहों के निकट खोला गया है.

 

फीस: दक्षिण कोरिया में जो भी विदेशी यूनिवर्सिटी अपना ऑपरेशन कर रही हैं, वे छात्रों से देश के स्थानीय विश्वविद्यालयों के बराबर ही फीस वसूलते हैं. उदाहरण के तौर पर विश्वविद्यालय की वेबसाइटों पर ताज़ा अपडेट के मुताबिक़ सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रति सेमेस्टर फीस लगभग 6,000 अमेरिकी डॉलर थी, जबकि गेन्ट यूनिवर्सिटी ग्लोबल कैंपस में फीस 6,678 अमेरिकी डॉलर थी. हालांकि, इसमें 1,500 अमेरिकी डॉलर से अधिक की वार्षिक बेसिक फिक्स्ड फीस शामिल नहीं है.

 

मलेशिया

मलेशिया की उच्च शिक्षा प्रणाली पर ब्रिटिश एजुकेशन मॉडल की छाया दिखाई देती है, क्योंकि एक जमाने में मलेशिया पर ब्रिटेन का शासन था और इसके चलते वहां उच्च शिक्षा के विस्तार एवं विकास में ब्रिटिश मॉडल की छाप नज़र आती है. मलेशिया में हायर एजुकेशन सिस्टम चार स्टेज में विकसित हुआ. पहला चरण था, आज़ादी मिलने से पहले मलेशिया और सिंगापुर में उच्च शिक्षण संस्थानों का प्रारंभ और उनकी प्रगति, दूसरा चरण था वर्ष 1961 में कुआलालंपुर में मलाया विश्वविद्यालय (University of Malaya) की स्थापना. तीसरा चरण था वर्ष 1969 के बाद मलेशिया में तीन नए राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों एवं एक इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी की स्थापना और उनका विकास. चौथा चरण था, वर्ष 1971-72 में मलेशिया में एग्रीकल्चर एवं टेक्नीकल कॉलेजों को अपग्रेड कर उन्हें पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्ज़ा प्रदान करना.[40] उल्लेखनीय है कि मलेशिया ने एक प्रगतिशील हायर एजुकेशन सेक्टर को डेवलप किया है और सबसे बड़ी बात यह है कि उसके शिक्षा क्षेत्र में सरकारी, निजी और अंतर्राष्ट्रीय संस्थान शामिल हैं.

 

मलेशिया की सरकार अपने देश में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर कोशिश कर रही है और उसने एजुकेशन सेक्टर में सुधार के लिए तमाम क़ानून बनाए हैं, साथ ही कई प्रकार की पहलों की भी शुरुआत की है. ऐसी ही एक पहल मलेशियन एजुकेश ब्लूप्रिंट (2015-2025) है. इस पहल का मकसद देश में उच्च शिक्षा के मापदंडों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनुरूप बनाना है.[41] मलेशिया ने वर्ष 2012 में एजुकेशन मलेशिया ग्लोबल सर्विसेज की शुरुआत की थी. इस पहल का उद्देश्य विदेशी यूनिवर्सिटियों के साथ साझेदारी के ज़रिए मलेशिया को उच्च शिक्षा के वैश्विक गंतव्य के रूप में स्थापित करना है और साथ ही विदेशी छात्रों की पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना है. दूसरे देशों के शैक्षणिक संस्थानों के साथ गठजोड़ करने से, जहां एक तरफ मलेशिया में विदेशी निवेश आया, वहीं दूसरी तरफ इससे मलेशिया के हायर एजुकेशन सेक्टर का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में भी मदद मिली. मलेशिया में FHEIs का नियंत्रण प्राइवेट हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स एक्ट 1996 (अधिनियम 555) द्वारा6 किया जाता है. मलेशियाई विश्वविद्यालयों की तुलना में वहां स्थापित विदेशी यूनिवर्सिटी बेहतर तरीक़े से संचालित होती हैं.

 

संरचना: मलेशिया में FHEIs विदेशी विश्वविद्यालयों के ब्रांच कैंपसों के तौर पर संचालित होते हैं. इसके साथ ही FHEIs द्वारा स्टूडेंट्स को अपने मूल देश के संस्थान के समकक्ष डिग्री और डिप्लोमा प्रदान किए जाते हैं. इस सबके बावज़ूद, देश में खुली विदेशी यूनिवर्सिटियों में जो भी पाठ्यक्रम और प्रोग्राम चलाए जाते हैं, उनकी मान्यता मलेशिया के नियम-क़ानूनों के तहत दी जाती है, साथ ही उन्हें संबंधित ग्लोबल प्रोफेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन्स से भी मान्यता दी जाती है.

 

आकार: मलेशिया में देशी-विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो FHEIs में स्थानीय विश्वविद्यालयों की तुलना में छात्रों की संख्या कम है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2022 में कुआलालंपुर में स्थित मलाया यूनिवर्सिटी में 30,568 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, जबकि वहां की एक सबसे प्रतिष्ठित विदेशी यूनिवर्सिटी के कैंपस में शामिल मोनाश यूनिवर्सिटी मलेशिया में 9,326 छात्र पढ़ रहे थे.

 

लोकेशन: मलेशिया में जितने भी FHEIs हैं, उनमें से ज़्यादातर प्रमुख शहरों में या फिर उनके निकट स्थित हैं. उदाहरण के लिए मोनाश यूनिवर्सिटी मलेशिया का कैंपस कुआलालंपुर के उपनगर सेमेनिह में स्थित है, जबकि ज़ियामेन यूनिवर्सिटी मलेशिया का कैंपस पेटलिंग जाया (Petaling Jaya) सिटी के उपनगर बंदर सनवे (Bandar Sunway) में स्थित है. UAE में विदेशी विश्वविद्यालय विशेष रूप से निर्धारित किए गए क्षेत्रों में स्थित हैं, लेकिन मलेशिया में इसके विपरीत FHEIs देशभर में फैले हुए हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर FHEIs देश के प्रमुख इकोनॉमिक केंद्रों के निकट स्थित हैं. मलेशियाई सरकार और नॉटिंघम विश्वविद्यालय ने क्रॉप्स फॉर द फ्यूचर (CFF) के क्षेत्र में मदद करने के लिए क्रॉप्स फॉर द फ्यूचर रिसर्च सेंटर की स्थापना की है. वर्ष 2009 में स्थापित CFF ने खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और इकोसिस्टम की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए तमाम वैश्विक संगठनों के साथ गठजोड़ किया है. मलेशियाई सरकार और मलेशिया में स्थित नॉटिंघम विश्वविद्यालय के कैंपस द्वारा समर्थित, यह रिसर्च सेंटर एजुकेशनल प्लेटफॉर्म FutureCrop के साथ मिलकर कम उगाई जाने वाली फसलों की रिसर्च पर ध्यान केंद्रित करता है, साथ ही कंसल्टेंसी सर्विसेज प्रदान करता है. नॉटिंघम विश्वविद्यालय की यह पहल केवल उसके मलेशिया कैंपस में ही उपलब्ध है, क्योंकि यूके में इस यूनिवर्सिटी का मुख्य कैंपस शहरी क्षेत्र में स्थित है. यह रिसर्च सेंटर ग्रामीण इलाकों में ब्रांच कैंपस स्थापित करने के फायदों का एक शानदार उदाहरण है.

 

फीस: मलेशिया में जितने भी FHEIs हैं, उनकी ट्यूशन फीस की बात करें तो यह उनके मूल कैंपस की तुलना में कम है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2023 में ऑस्ट्रेलिया में स्थित मोनाश विश्वविद्यालय के कैंपस में एकाउंटिंग की अंडरग्रेजुएट डिग्री में पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्रों से 33,151.70 अमेरिकी डॉलर की अनुमानित वार्षिक ट्यूशन फीस वसूली जा रही है, जबकि लोकल स्टूडेंट्स से लगभग 22,228.15 अमेरिकी डॉलर वार्षिक ट्यूशन शुल्क ली जा रही है. अगर इस यूनिवर्सिटी के मलेशिया कैंपस की बात करें, तो वहां इसी डिग्री प्रोग्राम के लिए प्रति वर्ष विदेशी छात्रों से 9759.20 अमेरिकी डॉलर और लोकल स्टूडेंट्स से 8,486.26 अमेरिकी डॉलर लिया जाता है.

भारत के लिए रोडमैप

वैश्विक स्तर पर देखें तो FHEIs की संख्या बहुत अधिक नहीं है. ज़ाहिर है कि दुनिया भर में जो भी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियां हैं, उन्होंने न तो अपने देश के भीतर और न ही दूसरे देशों में अपनी ब्रांच या कैंपस स्थापित किए हैं. इसके पीछे एक प्रमुख वजह यह है कि वर्षों की मेहनत के बाद स्थापित हुए बड़े विश्वविद्यालयों के लिए अपने सिद्धांतों और अपनी कार्य संस्कृति को दूसरी जगहों या दूसरे देशों में स्थानांतरित करना बेहद मुश्किल होता है. इसके साथ ही वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटियां अपनी साख को लेकर बेहद संवेदनशील होती हैं, बेहद संजीदा होती हैं.

 

भारत की जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति है उसका मकसद भारतीय नॉलेज सिस्टम को प्रोत्साहित करना है. ऐसे में भारत में अपने ऑपरेशन्स को शुरू करने का विचार करने वाले विदेशी शिक्षण संस्थानों के समक्ष कई चुनौतियां आएंगी. जैसे कि विदेशी संस्थानों के सामने अपने उच्च शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों में भारतीय संस्कृति और बहुभाषावाद को शामिल करने की चुनौती होगी. UGC द्वारा FHEIs के लिए दिशानिर्देशों को जारी किए हुए दो महीने हो चुके हैं और इस दौरान सिर्फ़ दो विदेशी विश्वविद्यालयों ने ही भारत में अपने कैंपस स्थापित करने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है. इनमें ऑस्ट्रेलिया के दो शिक्षण संस्थान, डीकिन यूनिवर्सिटी (जिसने अहमदाबाद के GIFT City में अपना एक कैंपस खोलने की इच्छा जताई है) और वोलोंगोंग यूनिवर्सिटी शामिल हैं.

 

विदेशी शिक्षण संस्थानों द्वारा भारत में अपने कैंपस स्थापित करने को लेकर इतनी कम दिलचस्पी ज़ाहिर करना, देखा जाए तो बहुत हैरान करने वाली भी नहीं है. FHEIs को लेकर दुनिया भर के देशों का जो अनुभव (जैसा कि इस पेपर में विस्तृत चर्चा की गई है) है, वो यह साफ तौर पर बताता है कि संरचना, आकार, लोकेशन और फीस इनकी प्रगति और इनके फलने-फूलने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐसे में FHEIs 'इम्पोर्ट' के फायदों यानी उनकी स्थापना के लाभों को हासिल करने के लिए एहतियात के साथ जांच-पड़ताल किया जाना चाहिए. इस पेपर में ऊपर तमाम देशों में FHEIs के बारे में विस्तार से किए गए अध्ययनों से स्पष्ट हो जाता है कि अगर FHEIs की स्थानीय यूनिवर्सिटियों के साथ साझेदारी होती है, तो वे अत्यंत गंभीर रिसर्च में संलग्न हो सकते हैं, जबकि अगर FHEIs अपने दम पर स्थापित होते हैं, तो वे शैक्षणिक गतिविधियों पर अधिक केंद्रित होते हैं. एक और निष्कर्ष यह निकला है कि FHEIs सामान्य तौर पर आकार में छोटे होते हैं, शहरी इलाक़ों में स्थापित होते हैं और लोकल यूनिवर्सिटियों की तुलना में इनमें शिक्षा ग्रहण करना काफ़ी महंगा होता है.

 

FHEIs के मामले में चीन, UAE, दक्षिण कोरिया और मलेशिया के जो भी अनुभव हैं, वो निश्चित तौर पर भारत के लिए बहुत कारगर सिद्ध हो सकते हैं. इन अनुभवों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि भारत में FHEIs के ऑपरेशन के लिए उनकी संरचना का पहलू सबसे ज़्यादा अहम होगा. हालांकि, UGC ने FHEIs के लिए दिशानिर्देशों का जो मसौदा जारी किया है, उसमें भी इनके लिए किसी विशेष प्रकार के स्ट्रक्चर का उल्लेख नहीं किया गया है. लेकिन यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन जिस प्रकार के FHEIs को भारत में लाना चाहता है, उसके लिए एक लचीली और निर्विवाद प्राथमिकता निर्धारित करने पर विचार कर सकता है. ज़ाहिर है कि यह सब कहीं न कहीं भारत के व्यापक लक्ष्यों पर निर्भर करेगा. यदि भारत अपने शैक्षणिक संस्थानों की रिसर्च करने की क्षमता को बढ़ाना चाहता है, तो UGC को साझेदारी के मॉडल को बढ़ावा देना चाहिए. यानी ऐसे मॉडल को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिसके ज़रिए FHEIs मौज़ूदा भारतीय विश्वविद्यालयों के सहयोग से कैंपस स्थापित करें. इसके अलावा, भारत द्वारा को-लोकेशन के विकल्प पर भी विचार कर सकता है, जहां विदेशी और भारतीय विश्वविद्यालय एक ही कैंपस में मौज़ूद रहें. इस प्रकार से देशी और विदेशी यूनिवर्सिटी एक दूसरे के इकोसिस्टम का फायदा उठाते हुए कई सहयोगी प्रोजेक्ट्स शुरू कर सकते हैं.

 

उल्लेखनीय है कि शिक्षण संस्थानों का ज़्यादातर फैलाव शहरी इलाक़ों में ही है.[42] यदि FHEIs और लोकल यूनिवर्सिटियां ज्वाइंट सेंटर्स विकसित करती हैं (साझा शैक्षणिक कार्यकलापों एवं डिग्री के अलावा), तो इससे भारतीय विश्वविद्यालयों की रिसर्च क्षमता में सुधार होगा और UGC के रेगुलेशन्स का लक्ष्य भी यही होना चाहिए. कई विदेशी यूनिवर्सिटियों ने भारत में अपने 'सेंटर्स' स्थापित किए हैं, लेकिन ये सेंटर सामान्य तौर पर भारत में शोध करने के इच्छुक अपने फैकल्टी सदस्यों की सहायता के लिए कार्य करते हैं और साथ ही विदेश में पढ़ाई की इच्छा रखने वाले संभावित भारतीय छात्रों तक पहुंचना चाहते हैं. विदेशी विश्वविद्यालयों के इन भारतीय केंद्रों को फंड उपलब्ध कराने समेत लगभग सभी अहम फैसले इनके मूल संस्थानों द्वारा लिए जाते हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि लोकल इंस्टीट्यूशन्स की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए, UGC दिशानिर्देशों के ज़रिए विदेशी संस्थानों के साथ रिसर्च गठजोड़ को प्रोत्साहित करना चाहिए. ज़ाहिर है कि विदेशी विश्वविद्यालय भी इस तरह के शोध कार्यों में निवेश करते हैं.

 

UGC को इसके अलावा, फीस स्ट्रक्चर पर भी ध्यान देना चाहिए और पारदर्शी एवं तुलनात्मक फीस को प्रोत्साहित करना चाहिए, भले ही यह नियम के मुताबिक़ नहीं हो. इसका फायदा यह होगा कि जो स्टूडेंट्स FHEIs में आवेदन का विचार करते हैं, तो उन्हें उस समय पूरी जानकारी मिल पाएगी. भारत के कई ऐसे शहर हैं, जो FHEIs के लिए अपने कैंपस खोलने के लिहाज़ से एकदम मुफीद हैं और ऐसे में ऐसी कतई संभावना नज़र नहीं आती है कि कोई भी FHEIs अपने कैंपस खोलने के लिए ग्रामीण इलाक़ों की ओर रुख करेगा. साथ ही साथ यह भी निश्चित है कि जिस प्रकार से भारत के शहरी क्षेत्रों में जगह की कमी है, ऐसे में इसकी संभावना भी न के बराबर है कि शहरों में स्थापित FHEIs आकार में बहुत बड़े होंगे.

 

भारत द्वारा पूर्व में कई पहलें की गईं, जैसे कि वर्ष 2005-06 में UGC द्वारा विदेश में भारतीय उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने की पहल की गई थी. इस पहल का फोकस विदेशों में भारतीय एजुकेशन प्रोग्राम्स की मार्केटिंग करना था और विदेशी छात्रों को भारत में पढ़ाई के लिए आकर्षित करना था. ऐसी पहलों से भी वर्तमान में बहुत कुछ सीखा जा सकता है. इस पहल से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भारत में अंग्रेजी भाषा का फैलाव होने, कम लागत वाला डिलीवरी सिस्टम होने और व्यापक स्तर पर तकनीक़ी संसाधनों के बावज़ूद भारतीय शिक्षा प्रणाली विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी. फिलहाल, जिस प्रकार से FHEIs को आकर्षित करना एक नीतिगत फोकस बन गया है, इसलिए इसके साथ ही विदेशों में ऐसे प्रयास भी किए जाने चाहिए, जो भारत में अध्ययन को बढ़ावा देने वाले हों.

 

एक और अहम बात यह है कि भारत में हायर एजुकेशन के अंतर्राष्ट्रीयकरण की कोशिशों में इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ़ FHEIs के आयात यानी उन्हें देश में स्थापित करने पर ही फोकस नहीं हो, बल्कि भारत को ग्लोबल एजुकेशनल हब के रूप में पहचान दिलाने के लिए शिक्षा के आयात एवं निर्यात के बीच संतुलन बनाए रखने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए. यह निश्चित है कि भारत में FHEIs पश्चिमी देशों के शैक्षिणक अनुभव को साझा नहीं करेंगे, बल्कि इसके बजाए शिक्षा के मामले में वे लोकल इंस्टीट्यूशन्स के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे. इसके साथ ही ये FHEIs बहुत ही कम संख्या में ऐसे शहरी स्टूडेंट्स को पढ़ाई की सुविधा प्रदान करेंगे, जो भारत से बाहर जाए बगैर और भारी-भरकम फीस का भुगतान कर अंतर्राष्ट्रीय डिग्री प्राप्त करना चाहते हैं. ज़ाहिर है कि अगर भारत वास्तविकता में वैश्विक शैक्षणिक हब के रूप में उभरना चाहता है, तो उसे शिक्षा के निर्यात को भी बढ़ावा देना होगा.

निष्कर्ष

देखा जाए तो FHEIs को लेकर दुनिया भर के देशों के जो अनुभव हैं, उनसे भारत के समक्ष कोई सकारात्मक तस्वीर नहीं उभरती है और ताज़ा प्रयासों के लिए भी कोई उत्साहित करने वाली बात सामने नहीं आती है. वैश्विक स्तर पर जो परिदृश्य है, उसके मुताबिक़ प्रतिष्ठित विश्वस्तरीय शैक्षणिक संस्थानों समेत दुनिया के चोटी के विश्वविद्यालय अपने देश से बाहर नहीं निकलता चाहते हैं. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर संचालित FHEIs की कम संख्या इस बात को साबित भी करती है.

 

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जिस प्रकार से रिसर्च पर आधारित विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहन देने की बात कही गई है, उसके मद्देनज़र भारत में संचालित होने वाले FHEIs को अनुसंधान पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत होगी (यदि तत्काल नहीं, तो दीर्घकालिक रूप से). हालांकि, इसमें इस बात की आशंका है कि FHEIs सामान्य रिसर्च के बजाए भारत से जुड़ी विशेष रिसर्च के लिए बड़े केंद्रों में विकसित हो सकते हैं. ज़ाहिर है कि इन परिस्थितियों में UGC दिशानिर्देश ज़्यादा प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो सकते हैं, ख़ास तौर पर तब और, जब फोकस सिर्फ़ वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालयों को आकर्षित करने पर हो. यह ज़रूर है कि कुछ विदेशी यूनिवर्सिटियां भारत में अपने कैंपस खोल सकती हैं, लेकिन जहां तक रिसर्च पर ख़र्च करने की बात है, तो इस दिशा में वे गंभीरता दिखाएंगी, इसके बारे में पक्के तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है.

 

अगर स्थानीय शिक्षण संस्थानों की क्षमता में बढ़ोतरी करने, बड़ी संख्या में फैकल्टी सदस्यों को तैयार करने, ब्रेन ड्रेन को रोकने, स्टूडेंट्स को FHEIs के मूल देश में मौज़ूद संस्थान के बराबर शैक्षणिक और रिसर्च का अनुभव प्रदान करने एवं नॉलेज के प्रसार को बढ़ावा देने जैसे यूजीसी के दिशानिर्देशों का वास्तविक अर्थों में लाभ हासिल करना है, तो ऐसे तौर-तरीक़ों के बारे में विचार करना और उनकी खोज करना ज़रूरी है, जो सहयोगी एजुकेशनल कैंपसों की स्थापना में सहायक हों.

 

भारत में FHEIs को लुभाने के लिए ऐसे अनुकूलित तंत्र की ज़रूरत होगी, जो स्थानीय विश्वविद्यालयों के अनुरूप सभी अपेक्षाओं को पूरा करने वाला हो. इसके लिए एक तरीक़ा यह हो सकता है कि अपनी आवश्यकताओं के मुताबिक़ फायदे वाली साझेदारी बनाने की अगुवाई करने के लिए स्थानीय विश्वविद्यालयों को सशक्त बनाया जाए और इस प्रकार से पार्टनर मॉडल को प्रोत्साहित किया जाए. लेकिन ऐसा करने के लिए सरकारी समर्थन की भी ज़रूरत होगी, क्योंकि सरकार के दख़ल से ही लोकल यूनिवर्सिटियों को सशक्त बनाया जा सकता है और वे FHEIs के लिए आकर्षक भागीदार बन सकते हैं. इस संबंध में एक सबसे अहम सुधार स्थानीय विश्वविद्यालयों के गवर्नेंस मॉडल में अमूलचूल परिवर्तन के ज़रिए होगा. यानी कि स्थानीय यूनिवर्सिटियों में शीर्ष पद पर चयन के दौरान शिक्षाविदों के ग्लोबल पूल में से किसी काबिल व्यक्ति को चुनना होगा, साथ ही उसे अपने रिसर्च एवं संकाय बजट का इस्तेमाल करने के लिए पूरी आज़ादी भी दी जानी चाहिए. ऐसा करने से न केवल शिक्षण संस्थान की रिसर्च गतिविधियों में बढ़ोतरी होगी, बल्कि वहां के अनुसंधान की गुणवत्ता को लेकर भी यह बेहद कारगर साबित होगा. FHEIs को स्थानीय अर्थव्यवस्था के संचालक के तौर भी देखा जाना चाहिए और इसी के मद्देनज़र भारत एजुकेशनल हब और क्लस्टर स्थापित करने के बारे में मंथन कर सकता है. UGC के नए दिशानिर्देशों के ज़रिए जिस प्रकार से तमाम नियम-क़ानूनों के झंझट से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया है, निसंदेह तौर पर वो बेहद सराहनीय है. लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि FHEIs की स्वतंत्रता और स्वायत्तता से समझौता नहीं किया जाए, सरकारी स्तर पर ऐसे और भी क़दम उठाने की आवश्यकता होगी.

 

जिस प्रकार से बड़ी संख्या में विदेशी यूनिवर्सिटियों के ऑफिसों (मुख्य रूप से दिल्ली और मुंबई में स्थित) की भारत में मौज़ूदगी है, उससे एक बात तो एकदम साफ है कि इन विदेशी शिक्षण संस्थानों की भारत में बहुत दिलचस्पी है. हालांकि अभी इनकी रुचि भारतीय स्टूडेंट्स को अपने देश में पढ़ाई के लिए लुभाने में है, लेकिन इन विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों की यह दिलचस्पी इससे आगे बढ़े, इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत में FHEIs के लिए रिसर्च इकोसिस्टम को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि इस कार्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए ही अंज़ाम देना होगा.

Endnote

[A] टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग (THE) और QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के माध्यम से वार्षिक स्तर पर वैश्विक विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन किया जाता है। THE 13 सूचकों के ज़रिए विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक एवं रिसर्च गतिविधियों का मूल्यांकन करता है। QS वर्ल्ड रैंकिंग के ज़रिए विश्वविद्यालयों की साख, फैकल्टी/छात्र अनुपात एवं रिसर्च की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जाता है।


[1] University Grants Commission, Department of Higher Education, Ministry of Education, Government of India, Draft University Grants Commission (Setting up and Operation of Campuses of Foreign Higher Educational Institutions in India) Regulations, 2023, 2023,  https://www.ugc.gov.in/pdfnews/9214094_Draft-Setting-up-and-Operation-of-Campuses-of-Foreign-Higher-Educational-Institutions-in-India-Regulations-2023.pdf.

 

[2] Sreeradha Basu and Rica Bhattacharyya, “As Record Number of Indians Head out, Studying Abroad Is Easy, Landing a Job Not so Much,” The Economic Times, February 11, 2023, https://economictimes.indiatimes.com/nri/work/studying-abroadis-easy-landing-a-job-not-so-much/articleshow/97812363.cms?from=mdr.

 

[3] Anna Valero and John Van Reenen, “The Economic Impact of Universities: Evidence from across the Globe,” Economics of Education Review 68 (February 2019): 53–67, https://doi.org/10.1016/j.econedurev.2018.09.001.

 

[4] Bradley Beecher and Bernhard Streitwieser, “A Risk Management Approach for the Internationalization of Higher Education,” Journal of the Knowledge Economy 10, no. 4 (2017): 1404–26, https://doi.org/10.1007/s13132-017-0468-y.

 

[5]  Richard Garrett, “International Branch Campuses—Curiosity or Important Trend?” International Higher Education, no. 90 (June 6, 2017): 7–8, https://doi.org/10.6017/ihe.2017.90.9994.

 

[6] Cross-Border Education Research Team, “C-BERT International Campus Listing,” C-BERT, March 2023, https://www.cbert.org/intl-campus.

 

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[9] Cross-Border Education Research Team, “C-BERT International Campus Listing”

 

[10] Kai Yu, Andrea Lynn Stith, Li Liu, and Huizhong Chen, Tertiary Education at a Glance: China (Rotterdam: Sense Publishers, 2012).

 

[11] Yu, Stith, Liu, and Chens, Tertiary Education at a Glance: China

 

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[14] Shujie Yao et al., “The Impact of Higher Education Expansion on Social Justice in China: A Spatial and Inter-Temporal Analysis,” Journal of Contemporary China 19, no. 67 (2010): 837–54, https://doi.org/10.1080/10670564.2010.508586.

 

[15] Ennew and Fujia, “Foreign Universities in China: A Case Study”

 

[16] Yao et al., “The Impact of Higher Education Expansion on Social Justice in China”

 

[17] Ka Ho Mok, “Education Market with the Chinese Characteristics: The Rise Education Market with the Chinese Characteristics: The Rise of Minban and Transnational Higher Education in China Minban and Transnational Higher Education in China,” Higher Education Quarterly 75, no. 3 (2021): 398–417, https://doi.org/10.1111/hequ.12323.

 

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[19] Ennew and Fujia, “Foreign Universities in China: A Case Study”

 

[20] Huang, “Internationalization of Higher Education in the Developing and Emerging Countries”

 

[21] Daniel Kirk and Diane Napier, “The Transformation of Higher Education in the United Arab Emirates: Issues, Implications, and Intercultural Dimensions*,” in Nation-Building, Identity and Citizenship Education, ed. Holger Daun and Joseph Zajda (Dordrecht: Springer, 2009): 131–42, https://doi.org/10.1007/978-1-4020-9318-0_10.

 

[22] Kirk and Napier, “The Transformation of Higher Education in the United Arab Emirates”

 

[23] Amitabh Upadhya, “Higher Education - Challenges and Opportunities in the Middle East,” Higher Education Digest, October 14, 2020, https://www.highereducationdigest.com/higher-education-challenges-and-opportunities-in-the-middle-east/.

 

[24] Upadhya, “Higher Education - Challenges and Opportunities in the Middle East”.

 

[25] Commission for Academic Accreditation, Ministry of Education, United Arab Emirates, Standards for Institutional Licensure and Program Accreditation, 2019, https://www.caa.ae/PORTALGUIDELINES/Standards%202019%20-%20Dec%202019%20v2.docx.pdf.

 

[26] Stephen Wilkins, “Who Benefits from Foreign Universities in the Arab Gulf States?” Australian Universities’ Review 53, no. 1 (2011): 73–83, https://files.eric.ed.gov/fulltext/EJ926453.pdf

 

[29] Deepti Mani, “Education in South Korea,” WENR: World Education News + Reviews, October 16, 2016, https://wenr.wes.org/2018/10/education-in-south-korea.

 

[30] Jeong-Kyu Lee, “Japanese Higher Education Policy in Korea (1910—1945),” Education Policy Analysis Archives 10 (March 7, 2002): 14 https://doi.org/10.14507/epaa.v10n14.2002.

 

[31] Sungho Lee, “The Emergence of the Modern University in Korea,” Higher Education 18, no. 1 (1989): 87–116, https://doi.org/10.1007/978-94-009-2563-2_10.

 

[32] Kiyong Byun and Minjung Kim, “Shifting Patterns of the Government’s Policies for the Internationalization of Korean Higher Education,” Journal of Studies in International Education 15, no. 5 (2010): 467–86, https://doi.org/10.1177/1028315310375307.

 

[33] Mugyeong Moon and Ki Seok Kim, “A Case of Korean Higher Education Reform: The Brain Korea 21 Project,” Asia Pacific Education Review 2, no. 2 (June 2001): 96–105.

 

[35] Ahn Byong-man, “Study Korea Emerges as New National Brand,” The Korea Times, July 21, 2010.

 

[37] Imin Kao, Yacov Shamash, and Choon Ho Kim, “Establishing an American Global Campus in SUNY Korea: Challenges and Excitement in Preparing Global Engineers,” 2013 ASEE International Forum, June 22, 2013, 21–23.

 

[38] Seoul National University, “Facts - Overview - About SNU,” April 2022.

 

[39] Julia Yoo, “Educating the World in the Incheon Free Economic Zone,” Korea IT Times, August 18, 2016.

 

[40] Viswanathan Selvaratnam, “Malaysia’s Higher Education and Quest for Developed Nation Status by 2020,” Southeast Asian Affairs 2016, July 2016, 199–222.

 

[41] Ministry of Education, Government of Malaysia, Malaysia Education Blue Print 2013 – 2025, 2013.

 

[42] Roderik Ponds, Frank van Oort, and Koen Frenken. "Innovation, spillovers and university–industry collaboration: an extended knowledge production function approach.Journal of Economic Geography 10, no. 2 (2009): 231-255.

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