Occasional PapersPublished on Oct 26, 2023
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अफ़्रीका की लंबे समय से चलने वाली भोजन असुरक्षा को खत्म करने की चुनौती: G20 की भूमिका

  • Malancha Chakrabarty
  • Shoba Suri

    2000 और 2013 के बीच अफ़्रीका में भूख के स्तर में सुधार हुआ था लेकिन उसके बाद के सालों में ये फिर से काफ़ी ख़राब स्थिति में पहुंच गया है. यद्यपि वैश्विक खाद्य असुरक्षा वर्तमान में एक सर्वकालिक उच्च स्तर पर है लेकिन कुपोषण पर ध्यान देने के मामले में अफ़्रीका का रिकॉर्ड महामारी से पहले के युग में भी प्रभावशाली नहीं था, जब विकास दर अधिक थी. अफ़्रीका में खाद्य सुरक्षा के लिए कई चुनौतियां हैं, इसमें महामारी और यूक्रेन–रूस युद्ध जैसे अल्पकालिक बाहरी झटके और जलवायु परिवर्तन, संघर्ष, ख़राब कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को लेकर घरेलू प्राथमिकता की कमी जैसी दीर्घकालिक चिंताएं शामिल हैं. प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के संचालन में जी20 के प्रभाव को देखते हुए, यह अफ़्रीका की खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया के लिए आदर्श मंच है. यह लेख अफ़्रीका को खाद्य सुरक्षित बनाने के लिए लघु और दीर्घकालिक नीतिगत कार्यों का समर्थन करने के लिए एक विशेष पैकेज (भारत से पर्याप्त प्रारंभिक योगदान के साथ) की घोषणा की सिफ़ारिश करता है.

Attribution:

एट्रिब्यूशन: मलांचा चक्रवर्ती और शोबा सूरी, "अफ़्रीका की लंबे समय से चलने वाली भोजन असुरक्षा को खत्म करने की चुनौती: G20 की भूमिका," सामयिक पेपर संख्या 407, अगस्त 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन.

भूमिका

एक अवधि तक निरंतर आर्थिक विकास के बाद, अफ़्रीका एक बार फिर ऋण, संघर्ष और भूख में फंस गया है. 2000 और 2011 के बीच, उप-सहारा अफ़्रीकी देशों में प्रति वर्ष 5 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि हुई और महाद्वीप को विकास का पर्याप्त लाभ मिला, जिसमें अल्पपोषण 24.1 प्रतिशत (2000 में) से घटकर 16.1 प्रतिशत (2011 में) हो गया (देखें रेखाचित्र 1 और रेखाचित्र 2). इथियोपिया, रवांडा और केन्या जैसे अफ़्रीकी देशों ने बहुत अधिक विकास दर दर्ज की और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में आमतौर पर  ‘उभरता अफ़्रीका’ और ‘अफ़्रीका की शेर अर्थव्यवस्थाएं’ का उपयोग किया जाने लगा.[i],[ii] हालांकि, 2013 और 2014 को छोड़ दें  तो  2011 के बाद से विकास दर बहुत कम रही है और 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण उप-सहारा अफ़्रीका ने नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है (देखें रेखाचित्र 1). व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कम आय वाले 16 अफ़्रीकी देश ऋण संकट के भारी जोखिम से जूझ रहे हैं, 33 देशों को भोजन के लिए सहायता की आवश्यकता है और चाड, कांगो गणराज्य, साओ टोमे और प्रिंसिपे, मोज़ाम्बिक, सूडान, सोमालिया और जिम्बाब्वे पहले से ही ऋण संकट में हैं.[iii] हालांकि, मौजूदा समय में अफ़्रीका के सामने सबसे बड़ी समस्या, बढ़ती भूख है.

एक अवधि तक निरंतर आर्थिक विकास के बाद, अफ़्रीका एक बार फिर ऋण, संघर्ष और भूख में फंस गया है.

रेखाचित्र 1: उपसहारा अफ़्रीका में वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर (2001 से 2020; प्रतिशत में)

स्रोत: विश्व बैंक डेटा[iv]

2000 और 2013 के बीच सुधार की एक लंबी अवधि के बाद, अफ़्रीका में भूख की स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई है, जिसमें से अधिकांश गिरावट 2019 और 2020 के बीच हुई है (देखें रेखाचित्र 2). द स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में 828 मिलियन लोगों या हर नौ में से एक व्यक्ति ने भूख को महसूस किया.[v]

यह संख्या 2019 की तुलना में 150 मिलियन और 2020 की तुलना में 46 मिलियन अधिक है.[vi] 828 मिलियन में से, 35 प्रतिशत या 289.1 मिलियन कुपोषित लोग, अफ़्रीका में अत्यधिक गरीबी में रहते हैं.[vii] 2020 में, अफ़्रीका में विश्व स्तर पर सबसे अधिक अविकसित बच्चे (61.4 मिलियन) थे(a), जो 2000 में 54.4 मिलियन ही थे.[viii]

रेखाचित्र 2: अफ़्रीका में अल्पपोषण की व्यापकता (2000 से 2021)

स्रोत: एफ़एओएसटीएटी डाटा[ix]

वैश्विक खाद्य असुरक्षा अब तक के सर्वकालिक उच्च स्तर पर है जबकि कुपोषण पर ध्यान देने में अफ़्रीका का रिकॉर्ड महामारी से पहले के युग में भी प्रभावशाली नहीं था, जब विकास दर अधिक थी. अफ़्रीका भूख को कम करने के सहस्राब्दी विकास लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहा और 2017 में सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के लक्ष्य 2 (शून्य भूख) को प्राप्त करने से बहुत दूर था.[x] भूख में इस वृद्धि का एक मुख्य कारण अकाल का फिर से उभरना है; 2017 में, दक्षिण सूडान के कुछ हिस्सों में अकाल घोषित किया गया था जबकि सोमालिया और पूर्वोत्तर नाइजीरिया अकाल का शिकार होने के कगार पर थे.[xi] गंभीर सूखे और लंबे समय तक संघर्षों के कारण इन देशों में तीव्र कुपोषण दर और भूख से पीड़ित लोगों की संख्या में तेज वृद्धि हुई.

दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में उप-सहारा अफ़्रीका में अल्पपोषण के मामले काफ़ी अधिक हैं – सोमालिया (53.1 प्रतिशत), मध्य अफ़्रीकी गणराज्य (52.2 प्रतिशत), मेडागास्कर (48.5 प्रतिशत), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (39.8 प्रतिशत), और चाड (32.7 प्रतिशत) जैसे देशों में कुपोषण का असाधारण रूप से ऊंचे स्तर पर है (देखें रेखाचित्र 3).

रेखाचित्र 3: अल्पपोषण की व्यापकता

स्रोत: सतत विकास रिपोर्ट 2023[xii]

नोट: गहरे रंग वाले क्षेत्र उच्च अल्पपोषण का संकेत देते हैं.

उप-सहारा अफ़्रीकी में बच्चे भी अविकास और क्षयशीलता (बच्चों में कुपोषण के संदर्भ में Wasting या क्षयशीलता या बर्बादी का अर्थ है बच्चे के शरीर का वज़न, उसकी उम्र और ऊंचाई के हिसाब से बहुत कम होना. यह कुपोषण का सबसे गंभीर रूप है और इससे बच्चे की जान को ख़तरा हो सकता है. क्षयशील होने की स्थिति आमतौर पर तीव्र कुपोषण के कारण आती है, जो तब होता है जब बच्चे को पर्याप्त खाना नहीं मिलता या उसका शरीर खाने से पोषक तत्वों को ठीक से नहीं सोख पाता. इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि बीमारी, भोजन की कमी, या अनुचित आहार).से अत्यधिक प्रभावित होते हैं (रेखाचित्र 4 और रेखाचित्र 5 देखें). लीबिया (52.2 प्रतिशत), इरिट्रिया (50.2 प्रतिशत), नाइजर (47.4 प्रतिशत), अंगोला (43.6 प्रतिशत) और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (40.3 प्रतिशत) जैसे देशों में पांच साल से कम उम्र के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे अविकसित हैं. 2022 में, गंभीर रूप से क्षयशील बच्चों का प्रतिशत सबसे अधिक दक्षिण सूडान (22.7 प्रतिशत), सूडान (16.3 प्रतिशत), मॉरिटानिया (13.6 प्रतिशत) और सोमालिया (14.3 प्रतिशत) था.

रेखाचित्र 4: पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में अविकास की व्यापकता (प्रतिशत में)

स्रोत: सतत विकास रिपोर्ट 2023[13][xiii],

नोट: गहरे रंग में दिखाए गए क्षेत्र अविकास के उच्च प्रसार का संकेत देते हैं.

रेखाचित्र 5: पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में क्षयशीलता की व्यापकता (प्रतिशत में)

स्रोत: सतत विकास रिपोर्ट 2023[xiv]

नोट: गहरे रंग में दिखाए गए क्षेत्र व्यापक रूप से क्षयशीलता होने का संकेत देते हैं.

अफ़्रीका की वर्तमान खाद्य असुरक्षा को अल्पकालिक समस्या के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि एक सिलसिलेवार समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए जिसके लिए पर्याप्त नीतिगत कदम उठाए जाने की आवश्यकता होती है (जैसा कि इस लेख में बाद में चर्चा की गई है). कुपोषण के उच्च प्रसार, खाद्य असुरक्षा के उच्च स्तर और गरीबों की संख्या में वृद्धि के कारण अफ़्रीका एसडीजी के खाद्य सुरक्षा और पोषण लक्ष्यों तक पहुंचने वाले मार्ग पर नहीं है. यह यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध के कारण आपूर्ति को लगे एक नकारात्मक झटके से और जटिल हो गया है. इसके परिणामस्वरूप, एक ‘दुष्चक्र’ उभरा है जो खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए ख़तरा है (देखें रेखाचित्र 6) और अफ़्रीका में सामाजिक अशांति को और बढ़ा सकता है.

रेखाचित्र 6: बढ़ती कीमतों का दुष्चक्र

स्रोत: 2022 अफ़्रीका सतत विकास रिपोर्ट[xv]

अफ़्रीका में खाद्य सुरक्षा: मुख्य चुनौतियां

अफ़्रीका में भूख के स्तर में वृद्धि के कई कारण हैं, अल्पकालिक और दीर्घकालिक- दोनों, जैसे कि महामारी, यूक्रेन-रूस के बीच जारी जंग, जलवायु परिवर्तन, और कम कृषि उत्पादकता तथा नीतिगत मुद्दे.

कोविड-19 वैश्विक महामारी

कोविड-19 महामारी की शुरुआत और अर्थव्यवस्था और विकास के अन्य प्रमुख क्षेत्रों पर इसके प्रभावों से पहले भी उप-सहारा अफ़्रीका विश्व स्तर पर सबसे अधिक खाद्य असुरक्षित क्षेत्रों में से एक था. खाद्य संकट पर 2020 की वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाले दुनिया के 135 मिलियन लोगों में से आधे से अधिक (73 मिलियन लोग) उप-सहारा अफ़्रीका में रहते थे और 2020 खाद्य संकट के लिए सबसे गंभीर वर्ष था.[xvi] महामारी ने अफ़्रीका में खाद्य सुरक्षा को काफ़ी प्रभावित किया है, जिससे पहले से मौजूद समस्या बढ़ गई.[xvii] महामारी के कारण खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण आवश्यक खाद्य पदार्थों की कमी हुई और कीमतें बढ़ गईं.

कोविड-19 महामारी की शुरुआत और अर्थव्यवस्था और विकास के अन्य प्रमुख क्षेत्रों पर इसके प्रभावों से पहले भी उप-सहारा अफ़्रीका विश्व स्तर पर सबसे अधिक खाद्य असुरक्षित क्षेत्रों में से एक था.

सीमाओं के बंद होने और लॉकडाउन ने माल और लोगों की आवाजाही में और बाधा डाली, जिससे फ़सलों की कटाई, प्रसंस्करण और परिवहन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. आर्थिक व्यवधान, नौकरियों के जाने और आय में कमी ने लोगों के लिए भोजन का ख़र्च उठाना मुश्किल बना दिया.[xviii] महामारी ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण अफ़्रीका में कृषि उत्पादन को भी कम कर दिया, बीज और उर्वरकों जैसी आगतों तक पहुंच पर अंकुश लगा दिया और इसके परिणामस्वरूप श्रमिकों की कमी हो गई. इससे खाद्य उपलब्धता में कमी आई और खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई.[xix] इन कारकों ने अफ़्रीका में खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दिया, जिसमें लाखों लोगों के भूख और कुपोषण का शिकार होने का ख़तरा था.[xx] बेशक, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि 2020 में महामारी की वजह से 132 मिलियन और लोग भूख के शिकार हो सकते हैं.[xxi] खाद्य सहायता कार्यक्रमों में आए व्यवधान ने ज़रूरतमंद लोगों के लिए भोजन प्राप्त करना भी कठिन बना दिया. यात्रा प्रतिबंध, सीमा बंद होने और सहायता कार्यक्रमों के लिए पैसे की कमी ने इस मुद्दे को और बढ़ा दिया.

संघर्ष

यूक्रेनरूस युद्ध: यूक्रेन-रूस युद्ध के वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए दूरगामी असर हुए हैं, ख़ासकर अफ़्रीका के लिए क्योंकि कई अफ़्रीकी देश रूस और यूक्रेन से खाद्य और उर्वरक आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं. 20 से अधिक अफ़्रीकी देश रूस और यूक्रेन से अपने गेहूं का 90 प्रतिशत आयात करते हैं.[xxii] युद्ध के कारण 2022 में अफ़्रीका में गेहूं की कीमत में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई और अफ़्रीकी विकास बैंक के अनुसार, युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला में पड़े व्यवधान की वजह से महाद्वीप को 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर के भोजन का नुक़सान होने आशंका थी.[xxiii] और चूंकि, युद्ध अभी जारी है, अफ़्रीका में खाद्य कीमतें ऊंची बनी हुई हैं.[xxiv]

रूस उर्वरकों का सबसे बड़ा निर्यातक है और बेलारूस (दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक) के साथ, वैश्विक निर्यात का 17 प्रतिशत हिस्से पर काबिज़़ है. रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों ने उर्वरकों की कमी और कीमतों में वृद्धि भी की है, जिसका कृषि उत्पादन पर अप्रत्यक्ष लेकिन अनिवार्य प्रभाव पड़ेगा.[xxv]नतीजतन, अधिकांश अफ़्रीकी किसान अब उर्वरकों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, जिससे आने वाले कृषि मौसमों में पैदावार भी कम होगी. चूंकि प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप अन्य देशों को रूसी उर्वरकों के निर्यात में भी गिरावट आई है, इसलिए आने वाले मौसमों में वैश्विक खाद्य उत्पादन भी प्रभावित होने की आशंका है. उर्वरक व्यापार पर प्रतिबंधों का एक नकारात्मक परिणाम एशिया में कम चावल उत्पादन भी होगा, जिससे खाद्य कीमतों में और वृद्धि होगी और भविष्य में खाद्य उपलब्धता कम होगी.

महामारी के झटके के बाद हुए यूक्रेन-रूस युद्ध  के परिणामस्वरूप 2022 में अफ़्रीका के कृषि क्षेत्र में श्रम उत्पादकता पर -2.7 प्रतिशत का प्रभाव पड़ा जबकि समग्र कृषि श्रम उत्पादकता में 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई (तालिका 1 देखें). गिनी, माली और ट्यूनीशिया ने कृषि श्रम उत्पादकता में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट देखी, इसके बाद मिस्र और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य रहे.

अफ़्रीका में कृषि उत्पादकता में कमी के कारण एसडीजी-2 को प्राप्त करने की रफ़्तार में कमी आई है. 2022 में सभी 16 देशों (जिनके लिए डाटा उपलब्ध है) में जीडीपी वृद्धि और समग्र उत्पादकता में गिरावट आई, जबकि बेरोज़गारी में वृद्धि हुई. इससे यह तय हो गया है कि पूरे अफ़्रीका में भोजन तक घरेलू पहुंच प्रभावित होगी.

तालिका 1: 2022 में अफ़्रीका में श्रमकृषि उत्पादकता का प्रति इकाई उत्पादन

देश बीएयू मूल्य बीएयू की तुलना में कोविड-19 +  रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण परिवर्तन (% में) बीएयू की तुलना में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण परिवर्तन (% में)
नाइजीरिया 3.7 -1.6 -0.9
दक्षिण अफ्रीका 4.0 3.0 0.3
मिस्र 3.0 -2.8 -1.1
मलावी 5.5 -4.9 -0.3
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य 3.7 -0.8 -1.1
गिनी 1.7 -22.3 -1.3
मोज़ाम्बिक 1.7 4.6 0.2
सेनेगल 4.1 -6.8 1.9
ट्यूनीशिया 5.0 -11.9 -1.5
युगांडा 10.5 -3.8 -2.1
इथियोपिया 2.0 -2.6 -0.8
तंजानिया 3.0 -1.1 -0.4
माली 4.0 -13.8 -0.5
केन्या 2.6 -1.2 -0.5
घाना 3.3 6.3 0.7
नाइजर 5.0 -6.9 0.3
सभी 3.0 -2.7 -0.8

स्रोत: 2022 अफ़्रीका सतत विकास रिपोर्ट[xxvi]

नोट:

  1. बीएयू (BAU) = बिज़नेस एज़ यूज़ुअ्ल या काम सामान्य रूप से चल रहा है
  2. अलग-अलग आंकड़े केवल यहां सूचीबद्ध देशों के लिए उपलब्ध हैं

संघर्षप्रेरित अकाल: संघर्षों और संघर्ष की वजह से आए अकालों ने कई अफ़्रीकी देशों में खाद्य असुरक्षा को काफ़ी बढ़ा दिया है, विशेष रूप से अफ़्रीका के सींग में (हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका पूर्वी अफ़्रीका का एक प्रायद्वीप है जो अरब सागर में सैकड़ों किलोमीटर तक फैला है और अदन की खाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है. नक्शे पर इसका स्वरूप एक सींग के समान लगता है इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है. इस क्षेत्र में स्थित देशो में जिबूती, सोमालिया, सूडान, दक्षिण सूडान, इथियोपिया, युगांडा और केन्या हैं).1980 के दशक तक, सामूहिक भुखमरी के मामलों में गिरावट आ गई थी और विश्व स्तर पर अकाल से संबंधित मौतों की संख्या भी कम हो गई थी.[xxvii] 2017 में, दक्षिण सूडान के कुछ हिस्सों में अकाल घोषित किया गया था जबकि सोमालिया और पूर्वोत्तर नाइजीरिया ने मुख्य रूप से संघर्षों (दक्षिण सूडान में गृह युद्ध, नाइजीरिया में बोको हराम विद्रोह और सोमालिया में अल-शबाब लड़ाकों और सरकारी बलों के बीच लड़ाई) के कारण संकट के स्तर तक खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया.[xxviii],[xxix],[xxx]

वस्तुतः, तीव्र खाद्य असुरक्षा से पीड़ित 137 मिलियन अफ़्रीकियों में से लगभग 80 प्रतिशत आठ संघर्षग्रस्त देशों में रहते हैं (बी)- कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, नाइजीरिया, सूडान, दक्षिण सूडान, सोमालिया, नाइजर और बुर्किना फ़ासो.[xxxi]

मुद्रित सामग्री का एक महत्वपूर्ण तत्व संघर्षों और अकाल के बीच प्रयोजनार्थक संपर्कों की पड़ताल करता है. अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने ज़ोर देकर कहा कि भोजन की कमी के बजाय, “पात्रता की विफलताएं”(सी) अकाल का कारण बनी थीं. उन्होंने लोकतंत्रों की भूमिका पर ज़ोर दिया, जहां राज्य ने सक्रिय रूप से लोगों के अधिकारों की रक्षा की, जबकि युद्धों और संघर्षों ने लोगों के अधिकारों को नष्ट कर दिया.[xxxii] सेन के अनुसार, “युद्ध और युद्ध जैसी स्थितियों का सबसे घातक प्रभाव प्रतिकूल राजनीति और सामाजिक आलोचनाओं के अवसर का कमज़ोर होना है”.[xxxiii] यद्यपि सेन ने अकाल को रोकने में लोकतांत्रिक राज्य की भूमिका पर ज़ोर दिया है, मानवविज्ञानी एलेक्स डी वाल और राजनीतिक वैज्ञानिक जेनी एडकिंस का तर्क है कि “अकाल किसने पैदा किया” के सवाल पर गहराई से विचार करना अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक समय के अकाल, अक्सर सशस्त्र बलों द्वारा अपने विरोधियों को कमज़ोर करने और आबादी को भूखा रखने के लिए उपयोग की जाने वाली जानबूझकर अपनाई गई रणनीतियां हैं.[xxxiv]

अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने ज़ोर देकर कहा कि भोजन की कमी के बजाय, “पात्रता की विफलताएं” अकाल का कारण बनी थीं. उन्होंने लोकतंत्रों की भूमिका पर ज़ोर दिया, जहां राज्य ने सक्रिय रूप से लोगों के अधिकारों की रक्षा की, जबकि युद्धों और संघर्षों ने लोगों के अधिकारों को नष्ट कर दिया.

इसके अलावा, वे दावा करते हैं कि, संघर्ष-ग्रस्त देशों में, राज्य अक्सर एक लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य होने के बजाय खाद्य संकट को बढ़ाता है.[xxxv],[xxxvi] यह दक्षिण सूडान और इथियोपिया जैसे कई अफ़्रीकी देशों में विशेष रूप से सच है, जहां सरकारें अक्सर खाद्य संकट को कम करके दिखाती हैं और मानवीय राहत का दुरुपयोग कर, भूख का इस्तेमाल युद्ध के हथियार के रूप में कर वस्तुतः खाद्य संकट को बढ़ाती हैं.[xxxvii]

अमृता रंगासामी, ममदोउ बारो और तारा एफ़ ड्यूबेल के काम भी अफ़्रीका के आवर्ती अकालों को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं. उनका तर्क है कि अकाल अचानक भुखमरी में नहीं बदल रहा है, बल्कि कुछ क्षेत्रों में एक आवर्ती घटना है जो भयानक गरीबी और झटकों को सहन करने की कमज़़ोर क्षमता से घिरे हुए हैं. यह दक्षिण सूडान और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जैसे अफ़्रीकी देशों के लिए विशेष रूप से सच है, जो लंबे समय से संघर्ष का सामना कर रहे हैं. ये संघर्ष आजीविका, आर्थिक गतिविधि, सड़कों और परिवहन प्रणालियों को नष्ट करते हैं और आबादी के सामाजिक ताने-बाने को नुक़सान पहुंचाते हैं. इसके अतिरिक्त, सहायता प्रयासों को भी ये संघर्ष बाधित करते हैं  क्योंकि सशस्त्र समूह अक्सर ज़रूरतमंद लोगों को मानवीय सहायता के प्रवाह को रोकते हैं.

जलवायु परिवर्तन

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 4 प्रतिशत से भी कम के लिए ज़िम्मेदार होने के बावजूद, अफ़्रीकी देश जलवायु संकट के केंद्र में हैं.[xxxviii] इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, वैश्विक औसत की तुलना में अफ़्रीका में तापमान तेज़ी से बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है. भूमध्य रेखा के 15 डिग्री के दायरे में मौजूद अफ़्रीकी देशों को लू (हीट वेव-  अत्यधिक गर्म मौसम की अवधि को कहते हैं जो आमतौर पर दो या उससे ज़्यादा दिन तक बनी रहती है. जब तापमान किसी क्षेत्र के सामान्य औसत से ज़्यादा हो जाता है तो उसे हीट वेव कहते हैं.) और गर्म रातों को लगातार और ज़्यादा झेलना होगा.[xxxix] पश्चिमी साहेल क्षेत्र सबसे ज़्यादा सूखे को अनुभव करेगा, पश्चिमी और मध्य अफ़्रीका 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस दोनों पर गर्म दिनों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखेंगे और दक्षिणी अफ़्रीका 2 डिग्री सेल्सियस पर वर्षा में 20 प्रतिशत की गिरावट का अनुभव करेगा.[xl]  अफ़्रीका न केवल इसलिए सबसे गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन की अपेक्षित डिग्री सबसे बड़ी है, बल्कि इसलिए भी कि स्थानिक ग़रीबी, ख़राब शासन, संस्थानों की अनुपस्थिति, जनसंख्या वृद्धि, वर्षा आधारित कृषि और पशुधन पर उच्च निर्भरता और संघर्ष के कारण इसकी आबादी की अनुकूलनीय क्षमता बेहद कम है.[xli]  एनडी-गेन कंट्री इंडेक्स के अनुसार, पांच अफ़्रीकी देश- चाड, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, गिनी बिसाऊ, इरिट्रिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने की दृष्टि से सबसे कमज़ोर हैं.[डी],[xlii]

इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन अफ़्रीकी खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रमुख दीर्घकालिक चुनौती है और खाद्य सुरक्षा के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है- उत्पादन, पहुंच, अवशोषण और स्थिरता.[xliii] सूखा, बाढ़ और तूफ़ान जैसी चरम जलवायु घटनाएं, जो फ़सल उत्पादन को तबाह कर देती हैं और परिवहन प्रणालियों को प्रभावित करती हैं, 1970 के दशक के बाद से अफ़्रीका में दस गुना बढ़ गई हैं.[xliv] दुनिया के सबसे ख़राब सूखे का लगभग एक तिहाई उप-सहारा अफ़्रीका में पड़ता है, जिसमें केन्या और इथियोपिया (जो संघर्ष से भी जूझ रहे हैं) पिछले चार दशकों में सबसे गंभीर सूखे में से एक का सामना कर रहा है, और अंगोला लगातार पांचवें सूखे वर्ष से गुजर रहा है.[xlv] अफ़्रीका का सींग भी लगातार सूखे से ग्रस्त है. चार दशकों में सबसे ख़राब, मौजूदा सूखे ने इस क्षेत्र में भूख में नाटकीय वृद्धि की है, भूखे लोगों की संख्या में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2021 में 51 मिलियन से बढ़कर 2022 में 82 मिलियन हो गई है.[xlvi]

जलवायु परिवर्तन ने अफ़्रीका में उत्पादकता और फ़सल की पैदावार को काफ़ी प्रभावित किया है. आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 1961 के बाद से कृषि उत्पादकता वृद्धि में 34 प्रतिशत की गिरावट आई है.[xlvii] जलवायु परिवर्तन के कारण 1974 और 2008 के बीच गेहूं और मक्के की पैदावार में 2.3 प्रतिशत और 5.8 प्रतिशत की गिरावट आई. अत्यधिक खाद्य-असुरक्षित देशों और सोमालिया और दक्षिण पूर्वी केन्या जैसे क्षेत्रों में फ़सल उत्पादन दीर्घकालिक औसत से 58 प्रतिशत और 70 प्रतिशत कम रहने का अनुमान है.[xlviii] 2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ग्लोबल वार्मिंग से 2005 के स्तर की तुलना में अफ़्रीका भर में लगभग सभी मुख्य फ़सलों की उपज में कमी होने की आशंका है, यहां तक कि उच्च सीओ 2 एकाग्रता (e) और अनुकूलन विकल्पों के सकारात्मक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए भी. इसके अलावा, आईपीसीसी की रिपोर्ट में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के मामले में ज्वार और जैतून जैसी फ़सलों की पैदावार में गिरावट का अनुमान लगाया गया है.[xlix]

गंभीर सूखे की स्थिति के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में 1.5 मिलियन से अधिक मवेशी भी मारे गए हैं.[l] चाड जैसे देश भी मूसलाधार बारिश और बाढ़ से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं और इस तरह की चरम घटनाएं अफ़्रीका में खाद्य उत्पादन को काफ़ी प्रभावित करती हैं क्योंकि इन देशों में कृषि उत्पादकता पहले से ही बहुत कम है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक सूखा या बाढ़ माली, नाइजर, तंजानिया, मलावी और इथियोपिया जैसे देशों में खाद्य असुरक्षा को 5 प्रतिशत से 20 प्रतिशत के बीच बढ़ाती है.[li]1.2 डिग्री सेल्सियस से 1.9 डिग्री सेल्सियस के गर्म होने से मध्य अफ़्रीका में कुपोषण की घटनाओं में 25 प्रतिशत, पूर्वी अफ़्रीका में 50 प्रतिशत, दक्षिणी अफ़्रीका में 85 प्रतिशत और पश्चिम अफ़्रीका में 95 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है.[lii]

अफ़्रीकी खाद्य उत्पादन के लिए एक और ख़तरा जलवायु परिवर्तन के कारण पानी को लेकर तनाव है.

अफ़्रीकी खाद्य उत्पादन के लिए एक और ख़तरा जलवायु परिवर्तन के कारण पानी को लेकर तनाव (वाटर स्ट्रेस या पानी की कमी तब होती है जब किसी क्षेत्र में इस्तेमाल करने योग्य पानी की मांग उसकी आपूर्ति से ज़्यादा होती है) है. यह अधिकांश अफ़्रीकी देशों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि वे वर्षा आधारित कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं और महाद्वीप पर कुल कृषि भूमि का एक प्रतिशत से भी कम सिंचित है.[liii] 2040 तक, अफ़्रीका पूरी तरह से विहिमनदन (डी-ग्लेसिएशन का अर्थ ग्लेश्यिरों या हिमनदों का  घटना और बर्फ़ की चादर का गलना होता है) का अनुभव करेगा,[एफ] हालांकि माउंट केन्या में इससे पहले ही (2030 तक ही) विहिमनदन का अनुभव होने की आशंका है.[liv] 2030 तक उच्च जल तनाव के कारण अफ़्रीका में लगभग 700 मिलियन कम लोग रह जाने की आशंका होगी.[lv] सूखे और बदलते वर्षा पैटर्न चाड झील जैसे महत्वपूर्ण जल निकायों को भी प्रभावित करते हैं, जो 1960 के दशक के बाद से लगभग 90 प्रतिशत सिकुड़ गई है और विक्टोरिया झील, जो वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर है और जिसमें अल नीनो (आर्द्र) और ला नीना (शुष्क) वर्षों के दौरान काफ़ी उतार-चढ़ाव होता है.[lvi] अक्टूबर 2020 और मई 2022 के बीच बरसात के चार मौसमों (जी) में कमज़ोर बारिश दर्ज की गई थी और परिणामस्वरूप, इथियोपिया, केन्या और सोमालिया के बड़े हिस्से हाल के इतिहास के सबसे लंबे समय तक रहने वाले सूखे का सामना कर रहे हैं.[lvii]

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और जल स्तर के कारण कीड़े और खरपतवार के बीज भी उप-सहारा अफ़्रीका में प्रवास कर रहे हैं. 2019-20 में, टिड्डियों के संक्रमण ने केन्या, सोमालिया और इथियोपिया में 1.25 मिलियन हेक्टेयर भूमि को प्रभावित किया और परिणामस्वरूप संक्रमण प्रतिक्रिया ने इस क्षेत्र की वित्तपोषण आवश्यकताओं को 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा दिया.[lviii]

जलवायु परिवर्तन से मछली पकड़ने के तालाब, पशुओं का जीवनकाल और पशुधन चराई क्षेत्रों में कमी होने की वजह से मछली, मांस और डेयरी उत्पादों जैसे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की कमी होने की संभावना है. अनुमान बताते हैं कि 2050 तक तटीय पश्चिम अफ़्रीका और तांगानिका झील में मछली उत्पादन में क्रमशः 21 प्रतिशत और 30 प्रतिशत की गिरावट आएगी जिससे तंजानिया, जाम्बिया और बुरुंडी जैसे पूर्वी अफ़्रीकी देशों को प्रतिकूल परिणाम भुगतने होंगे.[lix]

खाद्य उत्पादन पर प्रभाव के अलावा जलवायु परिवर्तन के खाद्य सुरक्षा के अन्य पहलुओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ते हैं:[lx]

  • खाद्य पहुंच: जलवायु परिवर्तन खाद्य प्रणालियों को बाधित करके, खाद्य उपलब्धता को कम करके और खाद्य कीमतों में वृद्धि करके खाद्य पहुंच को प्रभावित कर सकता है. यह बाढ़ या सूखे जैसी मौसम की चरम घटनाओं के कारण हो सकता है, जो फ़सलों को नष्ट कर सकता है और आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर सकता है. इससे लोगों को स्वस्थ और संतुलित आहार बनाए रखने के लिए आवश्यक भोजन तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है.
  • खाद्य अवशोषण: जलवायु परिवर्तन भोजन से पोषक तत्वों के अवशोषण को भी प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए, बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न फ़सल की पैदावार और उनमें पोषक तत्वों की मात्रा को कम कर सकते हैं, विशेष रूप से मुख्य फ़सलों जैसे मक्के और गेहूं में. इससे आयरन, ज़िंक और विटामिन-ए जैसे प्रमुख पोषक तत्वों की उपलब्धता में गिरावट आ सकती है, जो अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं.[lxi]
  • खाद्य स्थिरता: जलवायु परिवर्तन खाद्य स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है जो सूखे, बाढ़ या आर्थिक मंदी जैसे झटकों का सामना करने और उबरने के लिए खाद्य प्रणालियों की क्षमता को संदर्भित करता है. जलवायु परिवर्तन खाद्य प्रणालियों को इन झटकों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है, ख़ासकर सीमित बुनियादी ढांचे और संसाधनों वाले क्षेत्रों में. इससे खाद्य पदार्थों की कमी और कीमतों में अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिससे खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है.

एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है जिसमें इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अनुकूलन और शमन दोनों रणनीतियां शामिल हैं.[lxii] अनुकूलन रणनीतियाँ खाद्य प्रणालियों में लचीलापन बनाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति भेद्यता को कम करने में मदद कर सकती हैं. शमन रणनीतियाँ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और भविष्य के जलवायु परिवर्तन प्रभावों की सीमा को सीमित करने में मदद कर सकती हैं. इन रणनीतियों को लागू करके, अफ़्रीकी देश यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद उनकी खाद्य प्रणालियां अपने सभी नागरिकों के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन प्रदान कर सकें.

कम कृषि उत्पादकता

यद्यपि कई अफ़्रीकी देशों ने पिछले दो दशकों में उच्च आर्थिक विकास दर का अनुभव किया है, लेकिन इस विकास की  ज़िम्मेदारी मुख्यतः वस्तु क्षेत्र (कमोडिटी सेक्टर) के कंधों पर थी जबकि कृषि की उपेक्षा की गई थी. अफ़्रीका में कृषि उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है. अफ़्रीका में कृषि उत्पादकता बढ़ने से खाद्य असुरक्षा को दूर करने की क्षेत्र की क्षमता में काफ़ी वृद्धि होगी.[lxiii]

अफ़्रीका में कृषि में श्रम उत्पादकता बहुत कम है. उप-सहारा अफ़्रीका में प्रति श्रमिक मूल्य वर्द्धन (1525.9 अमेरिकी डॉलर) वैश्विक औसत (4035.3 अमेरिकी डॉलर) के आधे से भी कम है और अमेरिका (100061.6 अमेरिकी डॉलर), यूके (55,829.4 अमेरिकी डॉलर), जर्मनी (43,714.5 अमेरिकी डॉलर) और ऑस्ट्रेलिया (86,838.2 अमेरिकी डॉलर) जैसे विकसित देशों की तुलना में 50 गुना तक कम है.[lxiv] इसी तरह, उप-सहारा अफ़्रीका में अनाज की पैदावार (1.6 टन / हेक्टेयर) वैश्विक औसत (4.07 टन / हेक्टेयर) और अन्य क्षेत्रों में पैदावार से काफ़ी कम है.[जे],[lxv]

खाद्य सुरक्षा को कम प्राथमिकता

कई अध्ययनों में अफ़्रीका की वर्तमान खाद्य असुरक्षा को कृषि के औपनिवेशिक पैटर्न से जोड़ा गया है जिसने घरेलू खपत के लिए खाद्य फ़सलों के बजाय कॉफी और कोको जैसी निर्यात वस्तुओं की खेती पर ज़ोर दिया.[lxvi] अन्य विकासशील क्षेत्रों के विपरीत, अधिकांश अफ़्रीकी देशों को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी उप-सहारा अफ़्रीका में समग्र कृषि उत्पादन में गिरावट आई है.[lxvii]ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद भी, अधिकांश अफ़्रीकी सरकारें राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, संरचनात्मक समायोजन नीतियों की सख़्त शर्तों और कृषि उत्पादों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कृषि क्षेत्र को सहायता देने में विफल रहीं.

हाल के वर्षों में अफ़्रीका में बहुत कुछ बदल गया है और 2003 में व्यापक अफ़्रीका कृषि विकास कार्यक्रम को अपनाने के साथ खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य के रूप में उभरा है.

हाल के वर्षों में अफ़्रीका में बहुत कुछ बदल गया है और 2003 में व्यापक अफ़्रीका कृषि विकास कार्यक्रम को अपनाने के साथ खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य के रूप में उभरा है. महाद्वीप को वैश्विक पावरहाउस में बदलने के लिए अफ़्रीका की मास्टर योजना, एजेंडा 2063,[के] का उद्देश्य बेहतर उत्पादकता स्तर और कृषि-व्यवसाय विकास के माध्यम से भूख और खाद्य असुरक्षा को खत्म करना भी है. हालांकि, इसके परिणामस्वरूप अभी तक कृषि में कोई वास्तविक निवेश नहीं हुआ है. तेज़ी से बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता को देखते हुए अफ़्रीकी सरकारों को अपनी उत्पादकता में सुधार के लिए कृषि में निवेश का तत्काल विस्तार करना चाहिए. हालांकि, उनके बढ़ते ऋण बोझ ऐसा करने की उनकी क्षमता को कम करते हैं.

खाद्य असुरक्षा की चुनौती पर काबू पाना

अफ़्रीका की खाद्य असुरक्षा विभिन्न कारणों की वजह से स्वतंत्र नहीं हैं. संघर्ष, ख़राब शासन, संस्थानों की कमी और जलवायु-लोचशील कृषि में कम निवेश के साथ जलवायु परिवर्तन के चौराहे ने अफ़्रीका के गरीब और सूखे क्षेत्रों को खाद्य असुरक्षा के लिए बेहद नाज़ुक बना दिया है. इसलिए, महाद्वीप को इस मुद्दे को हल करने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है. इनमें ये शामिल हो सकते हैं:

  • कृषि विकास में निवेश: अफ़्रीका में कृषि आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है, और कृषि विकास में निवेश करने से खाद्य उत्पादन में वृद्धि हो सकती है और गरीबी घट सकती है. यह बीज, उर्वरक और पानी जैसी आगतों तक पहुंच में सुधार और भंडारण, परिवहन और विपणन के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे का निर्माण करके प्राप्त किया जा सकता है.
  • टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना: टिकाऊ कृषि पद्धतियां, जैसे संरक्षण कृषि और कृषि वानिकी, फ़सल की पैदावार बढ़ा सकती हैं और पर्यावरणीय गिरावट को कम कर सकती हैं. इसमें मिट्टी के कटाव को कम करना, प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों का उपयोग करना और क्रमावर्ती फ़सल (क्रॉप रोटेशन) और कार्बनिक पदार्थों के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना शामिल है.
  • वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बढ़ाना: अफ़्रीका में बहुत से छोटे किसानों की क्रेडिट और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच की कमी है, जो उनके खेतों में निवेश करने की उनकी क्षमता को सीमित करती है. वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने से किसानों को अपनी उत्पादकता और आय में सुधार के लिए आवश्यक पूंजी तक पहुंचने में मदद मिल सकती है.
  • पोषण और स्वास्थ्य में सुधार: पोषण और स्वास्थ्य में सुधार कुपोषण के प्रसार को कम करने और समुदायों के समग्र कल्याण में सुधार करने में मदद कर सकता है. यह आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ प्रधान खाद्य पदार्थों को मज़बूत करने, स्तनपान को बढ़ावा देने और स्वच्छ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में सुधार करने जैसी पहलों के माध्यम से किया जा सकता है.
  • संघर्ष और अस्थिरता पर ध्यान देना: संघर्ष और अस्थिरता खाद्य उत्पादन और वितरण को बाधित करके खाद्य असुरक्षा को बढ़ा सकती है. शांति निर्माण में लगातार प्रयासों के माध्यम से अफ़्रीका में संघर्ष और अस्थिरता पर ध्यान देना क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है.
  • अफ़्रीका को कृषि सहायता में वृद्धि: अधिकांश अफ़्रीकी देशों में कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना करता है- जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी, कम उत्पादकता, भूमि क्षरण, कमज़ोर निवेश और बढ़ती खाद्य मांगों के साथ बढ़ती आबादी. इनमें से कई देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता कृषि क्षेत्र के लिए वित्तपोषण का एक आवश्यक स्रोत है. हालांकि, कृषि अब दाताओं के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र नहीं रह गया है और इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहायता के हिस्से में 1980 के दशक से लगातार गिरावट आ रही है और 2020 में यह8 प्रतिशत ही रही थी.[lxviii]

अर्थशास्त्री डब्ल्यू मैकआर्थर और जेफरी डी सैक्स ने पाया कि कृषि के लिए लक्षित आधिकारिक विकास सहायता प्राथमिक व्यापार योग्य क्षेत्र और सकारात्मक कल्याण और उत्पादकता प्रभावों का विस्तार करेगी, जबकि बजटीय सहायता के लिए आधिकारिक विकास सहायता की आवश्यकता को कम करेगी.[lxix] इसलिए, कृषि के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता का हिस्सा बढ़ाना समय की ज़रूरत है.

मालाबो घोषणा में की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए, जिसका उद्देश्य 2025 तक अफ़्रीकी महाद्वीप पर गरीबी को आधा करना और भूख को समाप्त करना है, अफ़्रीका को पोषण और कार्यक्रम संबंधी कार्रवाई पर एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है.[lxx] अफ़्रीका के लिए अनुमानों के अनुसार, बचपन के अल्पपोषण को रोकने पर ख़र्च किया गया प्रत्येक डॉलर 16 अमेरिकी डॉलर का रिटर्न दे सकता है.[lxxi] कुपोषण से निपटने के लिए रवांडा का बहु-क्षेत्र सार्वजनिक-निजी भागीदारी दृष्टिकोण अफ़्रीका में एक उल्लेखनीय सफल रणनीति है.[lxxii] रवांडा उन माताओं को स्थानीय रूप से प्राप्त, पौष्टिक भोजन प्रदान करता है जो गर्भवती हैं या बच्चों और कुपोषित बच्चों को स्तनपान करा रही हैं. सरकार आहार विकल्पों को व्यापक बनाने और भोजन आवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए किचन गार्डन को भी बढ़ावा देती है.[lxxiii] इस नीतिगत पहल ने परिवारों और बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार किया है. भारत की केस स्टडीज़ से पता चलता है कि पोषण उद्यान बच्चों और परिवारों में कुपोषण की घटनाओं को कम कर सकते हैं, जबकि महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं और उनके निर्वाह के साधनों को बढ़ा सकते हैं.[lxxiv],[lxxv] कुपोषण को रोकने और पोषण लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए पोषण-विशिष्ट और पोषण-संवेदनशील पहल में निवेश करना आवश्यक है. अफ़्रीकी सरकार और अन्य निर्णय लेने वालों को सभी प्रकार के कुपोषण का मुकाबला करने पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए. कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में पोषण हस्तक्षेप के पूरक के लिए कृषि, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में पहल में निवेश करना महत्वपूर्ण है.

अफ़्रीका को उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से कृषि को बदलने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए; अनाज आयात पर अफ़्रीकी देशों की निर्भरता उच्च कृषि उत्पादन के साथ घट जाएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा मिलेगी. यह सिंचाई, मशीनीकरण, अनुसंधान और विकास, उर्वरकों तक पहुंच और कम लेन-देन लागत में निवेश करके पूरा किया जा सकता है जो पर्यावरण के अनुकूल भी हैं. बाहरी झटके, मुख्य रूप से बढ़ती ऊर्जा कीमतों के माध्यम से विकासशील औद्योगिक क्षेत्र को प्रभावित करना जारी रखेंगे. इसलिए, नीति निर्माताओं को इस क्षेत्र को बनाए रखने के लिए ऊर्जा तक उचित और सुलभ पहुंच प्रदान करने के लिए उल्लेखनीय निवेश करना चाहिए. अफ़्रीकी देशों को अंतर्राष्ट्रीय संकटों के हानिकारक परिणामों से कमज़ोर और वंचित परिवारों को बचाने के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली भी बनानी चाहिए.

G20 की संभावित भूमिका

जी20 देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और दुनिया की आबादी के लगभग दो-तिहाई का प्रतिनिधित्व करते हैं और काफ़ी हद तक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के संचालन को प्रभावित करते हैं.[lxxvi] इस प्रकार, जी20 अफ़्रीका की खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया शुरू करने के लिए एकदम सही मंच है. हालांकि विशेषज्ञों ने अक्सर अफ़सोस जताया है कि जी20 अफ़्रीका का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करता है, मंच पर अफ़्रीकी मामलों पर चर्चा करने की पहल 2010 में कोरियाई अध्यक्षता के तहत सियोल विकास सहमति के समर्थन के साथ शुरू हुई थी.[एल] हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण जी20 पहल 2017 ‘अफ़्रीका के साथ समझौता’ (कॉम्पेक्ट विद अफ़्रीका- सीडब्ल्यूए) है, जो यूरोप में शरणार्थी संकट और अफ़्रीका में चीन के बढ़ते प्रभाव से प्रेरित था.[lxxvii]

सीडब्ल्यूए ने देश-विशिष्ट सुधार एजेंडा का समन्वय करने, नीतिगत कार्यों का समर्थन करने और निजी क्षेत्र के वित्त को आकर्षित करने के लिए सुधारवादी-विचारधारा वाले अफ़्रीकी देशों, जी20 देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे कि अफ़्रीकी विकास बैंक, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) को एक साथ लाने की मांग की. यद्यपि सीडब्ल्यूए पहल सभी अफ़्रीकी देशों के लिए खुली थी, केवल 12 देश इस पहल में शामिल हुए हैं (बेनिन, बुर्किना फासो, कोटे डी आइवर, मिस्र, इथियोपिया, घाना, गिनी, मोरक्को, रवांडा, सेनेगल, ट्यूनीशिया और टोगो). यद्यपि अधिकांश कॉम्पैक्ट देशों ने अपनी ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में सुधार किया है और सुधार उपाय किए हैं लेकिन ये प्रयास पर्याप्त निवेश में तब्दील नहीं हो पाए हैं.[lxxviii] सीडब्ल्यूए निगरानी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, विदेशी निवेशकों की भूख मुख्य रूप से कोयला, गैस और तेल और टिकाऊ बुनियादी ढांचे जैसे निष्कर्षण उद्योगों के लिए ही है,[lxxix] कृषि निवेश में बहुत कम.

भारत ने अक्सर कहा है कि अफ़्रीका उसकी शीर्ष विदेश नीति प्राथमिकताओं में से एक है और देश ने हमेशा बहुपक्षीय संगठनों में अफ़्रीकी प्रतिनिधित्व का समर्थन किया है.

भारत ने अक्सर कहा है कि अफ़्रीका उसकी शीर्ष विदेश नीति प्राथमिकताओं में से एक है और देश ने हमेशा बहुपक्षीय संगठनों में अफ़्रीकी प्रतिनिधित्व का समर्थन किया है.[lxxx] अफ़्रीका के साथ संबंधों को मज़बूत करने के अपने अभियान की गति को खोने से बचने के लिए, भारत को जी20 में अफ़्रीका-केंद्रित विषयों के लिए एक जगह बनाने की कोशिश करनी चाहिए.[lxxxi] खाद्य सुरक्षा से संबंधित अफ़्रीका की भारी चुनौतियों को देखते हुए भारत को अफ़्रीका की पुरानी खाद्य असुरक्षा को दूर करने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया पर ज़ोर देने के लिए अपनी अध्यक्षता का उपयोग करना चाहिए. एसडीजी को प्राप्त करना तब तक असंभव है जब तक कि उन्हें अफ़्रीका में भी हासिल नहीं किया जाता है. एक स्थिर और खाद्य-सुरक्षित अफ़्रीका वैश्विक हित में है. विशेष रूप से, यूरोप को सशस्त्र संघर्षों, जलवायु परिवर्तन, भूख और मजबूर प्रवास से फैलने वाले प्रभावों को दूर करने के लिए अफ़्रीकी स्थिरता में विशेष रुचि है.[lxxxii] इसलिए, अफ़्रीकी खाद्य सुरक्षा को संबोधित करने के लिए जी20 पहल की आवश्यकता है.

अफ़्रीका की खाद्य असुरक्षा के लिए G20 विशेष वित्तीय पैकेज

भारत को अफ़्रीका की खाद्य असुरक्षा को दूर करने के लिए एक विशेष पैकेज की घोषणा करनी चाहिए और पर्याप्त प्रारंभिक योगदान देना चाहिए. अफ़्रीका की खाद्य असुरक्षा के प्रमुख कारण आपस में जुड़े हुए हैं. इसलिए, जी20 के विशेष पैकेज को अफ़्रीका को खाद्य सुरक्षित बनाने के लिए ठोस दीर्घकालिक और अल्पकालिक नीतिगत कार्यों का समर्थन करना चाहिए. अफ़्रीका की खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने और जरूरतमंद अफ़्रीकी देशों को मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए निधियों को खाद्य और कृषि संगठन, अफ़्रीकी विकास बैंक, अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष और विश्व खाद्य कार्यक्रम जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को दिया जाना चाहिए. कम कृषि उत्पादकता और अफ़्रीकी कृषि की स्थानिक जलवायु संवेदनशीलता की पुरानी समस्याओं पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त संसाधन समर्पित किए जाने चाहिएं. अफ़्रीका की पुरानी खाद्य असुरक्षा का स्थायी समाधान अफ़्रीका के घरेलू खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने और खाद्य आयात और सहायता पर इसकी निर्भरता को कम करने में निहित है.

निष्कर्ष

अफ़्रीका का वर्तमान संकट सार्वजनिक नीति में खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देने के महत्व पर प्रकाश डालता है. महाद्वीप की पुरानी खाद्य असुरक्षा एक जटिल मुद्दा है जिसके सुलझाने के लिए सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अन्य हितधारकों के समन्वित और निरंतर प्रयास की आवश्यकता है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह के रूप में, जी20 इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए महत्वपूर्ण मंच है. अफ़्रीका में खाद्य असुरक्षा पर काबू पाने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कृषि उत्पादकता में सुधार, टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना, वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बढ़ाना, पोषण और स्वास्थ्य में सुधार, कृषि के लिए सहायता बढ़ाना और संघर्ष और अस्थिरता पर ध्यान देना शामिल है. इन रणनीतियों को लागू करके, अफ़्रीकी देश यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकते हैं कि उनके सभी नागरिकों को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन तक पहुंच मिले. यह लेख महाद्वीप की खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अफ़्रीका के लिए एक विशेष वित्तीय पैकेज की सिफ़ारिश करता है.


Notes

[a] Low height for age.

[b] Acute food insecurity refers to a situation when a person’s inability to consume adequate food puts their lives or livelihoods in immediate danger. This equates to a risk category of 3 or higher (crisis, emergency, and famine) on the Integrated Food Security Phase Classification scale of 1 to 5.

[c] Entitlements are the set of commodity bundles over which a household can establish operative control.

[d] The ND-GAIN Country Index, published by the University of Notre Dame, summarises a country’s vulnerability to climate change and other global challenges in combination with its readiness to improve resilience.

[e] Under elevated CO2, most plant species show higher rates of photosynthesis, increased growth, decreased water use, and lowered tissue concentrations of nitrogen and protein.

[f]  Deglaciation is the disappearance of ice from a previously glaciated region.

[g] The four rainy seasons are October-December 2020, March-May 2021, October-December 2021, and March-May 2022

[h] Value added per worker is the measure of labour productivity.

[i] Cereal yield i.e., tonnes of cereal produced per hectare of land is a measure of land productivity. Cereals include wheat, rice, maize, barley, oats, rye, millet, sorghum, buckwheat, and mixed grains.

[j] North America (7.23 t/ha), East Asia (6.2 t/ha), Northern Europe (5.6 t/ha), and Central America (3.5 t/ha)

[k] The Agenda 2063 was adopted by the African Union at the summit in January 2015 and promulgated in February 2015.

[l] The Seoul Development Consensus is a set of guidelines adopted at the 2010 Seoul Summit to help the G20 countries work with less developed economies to boost their growth and achieve the Millennium Development Goals.

[i] “Africa Rising”, The Economist, December 3, 2011.

[ii] McKinsey&Company, Lions on the move: The progress and potential of African economies, June 2010, McKinsey Global Institute, 2010.

[iii] United Nations, Trade and Development Report 2022: Development prospects in a fractured world – Global disorder and regional responses, Geneva, United Nations, 2023.

[iv] World Bank Database.

[v] FAO, The State of Food Security and Nutrition in the World 2022: Repurposing food and agricultural policies to make healthy diets more affordable, Rome, FAO, 2022.

[vi] “The State of Food Security and Nutrition in the World 2022: Repurposing food and agricultural policies to make healthy diets more affordable, 2022”

[vii] “The State of Food Security and Nutrition in the World 2022: Repurposing food and agricultural policies to make healthy diets more affordable, 2022”

[viii] “The State of Food Security and Nutrition in the World 2022: Repurposing food and agricultural policies to make healthy diets more affordable, 2022”

[ix] FAOSTAT Database.

[x] Malancha Chakrabarty, “Africa is rising but so is hunger”, Observer Research Foundation.

[xi] Malancha Chakrabarty, “A Giant Leap Backwards: Is the Zero Hunger Goal Achievable”, World Affairs: The Journal of International Issues 22, no. 4 (Winter 2018): 136

[xii] Sustainable Development Report 2023.

[xiii] Sustainable Development Report 2023

[xiv] Sustainable Development Report 2023

[xv] 2022 Africa Sustainable Development Report.

[xvi] Food Security Information Network, 2020 Global Report on Food Crises, 2020.

[xvii] United Nations, Policy Brief: The impact of Covid-19 on Food security and Nutrition, 2020.

[xviii] “COVID-19 and Africa: Socio-economic implications and policy responses”, OECD, May 7, 2020.

[xix] Helen Onyeaka, et al., “Food insecurity and outcomes during COVID-19 pandemic in sub-Saharan Africa (SSA),” Agriculture & Food Security 11, no. 1 (2022): 1-12.

[xx] Carolina Sanchez Paramo, “Covid-19 will hit the poor hardest-what can we about it”, World Bank Blog, April 23, 2020.

[xxi] “UN report: Pandemic year marked by spike in world hunger”, July 12, 2021.

[xxii] “How the Ukraine Invasion Impacts Food Security in Africa”, Agrilinks, July 27, 2022.

[xxiii] James Tasamba, “Wheat prices in Africa up 60% due to Russia-Ukraine war: AfDB”, Anadolu Agency, April 27, 2022.

[xxiv] World Bank, Food Security Update, June 2023, The World Bank Group, 2023.

[xxv] Vamo Soko and Bintu Zahara Sakor, “The Ukraine Crisis and Its Impact on Africa’s Geopolitics: What Do We Know So Far?”, Peace Research Institute Oslo.

[xxvi] 26] 2022 Africa Sustainable Development Report

[xxvii] “Famine Trends Dataset, Tables and Graphs”, World Peace Foundation.

[xxviii] “Famine hits parts of South Sudan”, UNICEF, February 20, 2017.

[xxix] “Famine Prevention: Nigeria, Somalia, and South Sudan Country Updates”, UNHCR.

[xxx] ACAPS, Famine: Northeast Nigeria, Somalia, South Sudan, and Yemen, May 2017.

[xxxi] “Conflict Remains the Dominant Driver of Africa’s Spiraling Food Crisis”, Africa Center for Strategic Studies, October 14, 2022.

[xxxii] Amartya Sen, “Wars and Famines: On Divisions and Incentives”, Peace Economics, Peace Science and Public Policy 6, no.2 (Spring 2000): 10

[xxxiii] Sen, “War and Famines: On Divisions and Incentives”

[xxxiv] 34] Alex de Waal, “The Nazis Used It, We Use It: Alex de Waal on the Return of Famine as a Weapon of War”, London Review of Books 39, no. 12 (2017).

[xxxv] de Waal, “The Nazis Used It, We Use It: Alex de Waal on the Return of Famine as a Weapon of War”

[xxxvi] Jenny Edkins, “Mass Starvations and the Limitations of Famine Theorising”, IDS Bulletin 33, no. 4 (2002): 12

[xxxvii] Malancha Chakrabarty, “The Enduring Link Between Conflict and Hunger in the 21st Century”, ORF Issue Brief No. 500, October 2021.

[xxxviii] Elliot Carleton, “Climate change in Africa: What will it mean for agriculture and food security?”, International Livestock Research Institute, February 28, 2022.

[xxxix] Dan Shepard, “Global warming: severe consequences for Africa”, Africa Renewal, December 2018 – March 2019.

[xl] Shepard, “Global warming: severe consequences for Africa”

[xli] Richard Washington, “How Africa will be affected by climate change”, BBC News, December 15, 2019.

[xlii] University of Notre Dame.

[xliii] Malancha Chakrabarty, “Climate change and food security in India”, In Ruchita Beri

Anjoo Sharan Upadhyaya, Åshild Kolås (Eds.) Food Governance in India – Rights, Security and Challenges in the Global Sphere, Routledge (London: 2022)

[xliv] “How Global Warming Threatens Human Security in Africa”, Africa Centre for Strategic Studies, October 29, 2021.

[xlv][xlv] Laurent Kemo at al. “How Africa can escape chronic food insecurity amid climate change”, Africa Renewal, September 14, 2022.

[xlvi] “‘We cannot give up’ on the millions suffering in drought-stricken Horn of Africa, urges WFP official”, United Nations News, November 28, 2022.

[xlvii] Christopher H. Triso, Ibidun O. Adelekan and Edmond Totin, Africa In Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability, Contribution of Working Group II to the Sixth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change eds. (HO Pörtner, DC Roberts, M Tignor, ES Poloczanska, K Mintenbeck, A Alegría, M Craig, S Langsdorf, S Löschke, V Möller, A Okem, B Rama), Cambridge University Press, Cambridge, UK and New York, NY, USA, pp. 1285–1455.

[xlviii] “Drought crisis puts Horn of Africa ‘on the brink of catastrophe’”, Aljazeera, February 15, 2022.

[xlix] “Africa”

[l][l] “Drought crisis puts Horn of Africa ‘on the brink of catastrophe’”, Aljazeera, February 15, 2022.

[li] Baptista et al., “Climate Change and Chronic Food Insecurity in Sub-Saharan Africa”, International Monetary Fund, September 2022

[lii] Carleton, “Climate change in Africa: What will it mean for agriculture and food security?”

[liii] Baptista et al., “Climate Change and Chronic Food Insecurity in Sub-Saharan Africa”

[liv] “How Global Warming Threatens Human Security in Africa”, Africa Centre for Strategic Studies

[lv] “WMO: Climate change in Africa can destabilize ‘countries and entire regions’”, UN News, September 8, 2022, https://news.un.org/en/story/2022/09/1126221

[lvi] Claire Ransom, “From droughts to loss of glaciers: Here’s the state of African climate ahead of COP27”, World Economic Forum, November 3, 2022, https://www.weforum.org/agenda/2022/11/water-worries-the-state-of-the-african-climate-ahead-of-cop27/

[lvii] Erik English, “New Roots of Famine: How climate crises and global conflict combine to threaten millions in the Horn of Africa”, Bulletin of the Atomic Scientists, August 18, 2022, https://thebulletin.org/2022/08/how-climate-crises-and-global-conflict-combine-to-threaten-millions-in-the-horn-of-afrca/

[lviii] Baptista et al., “Climate Change and Chronic Food Insecurity in Sub-Saharan Africa”

[lix] Baptista et al., “Climate Change and Chronic Food Insecurity in Sub-Saharan Africa”

[lx] FAO, Climate Change and Food Security: risks and responses, FAO, 2015, https://www.fao.org/3/i5188e/I5188E.pdf

[lxi] Baptista et al., “Climate Change and Chronic Food Insecurity in Sub-Saharan Africa”

[lxii] Denton, F et al., “Climate-resilient pathways: adaptation, mitigation, and sustainable development”, in Climate Change 2014: Impacts, Adaptation, and Vulnerability. Part A: Global and Sectoral Aspects. Contribution of Working Group II to the Fifth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change, ed. Field, CB et al. (Cambridge and New York: Cambridge University Press, 2014), 1101-31, https://www.ipcc.ch/site/assets/uploads/2018/02/WGIIAR5-Chap20_FINAL.pdf

[lxiii] “Increasing Agricultural Productivity Critical to Food Security in Sub-Saharan Africa”, Reliefweb, November 1, 2011, https://reliefweb.int/report/world/increasing-agricultural-productivity-critical-food-security-sub-saharan-africa?gclid=Cj0KCQiAx6ugBhCcARIsAGNmMbjOIN8HoBk7NdV6u6ettIah0wDUrsp-Im3gCsx-0R0BZHoE7MV3lkwaAn2hEALw_wcB

[lxiv] Hannah Ritchie, “Increasing agricultural productivity across Sub-Saharan Africa is one of the most important problems this century”, Our World in Data, April 4, 2022, https://ourworldindata.org/africa-yields-problem

[lxv] Ritchie, “Increasing agricultural productivity across Sub-Saharan Africa is one of the most important problems this century”

[lxvi] Sam Moyo, “Agrarian Transformation in Africa and its Decolonisation”, in Agricultural Development and Food Security in Africa, 42. Ed. Fantu Cheru et al. (London: Zed Books, 2013)

[lxvii] Vibeke Bjornlunda, Henning Bjornlunda and Andre F. Van Rooye, “Why agricultural production in sub-Saharan Africa remain slow compared to the rest of the world–a historical perspective”, International Journal of Water Resources Development 36, no. S1 (2020), https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/07900627.2020.1739512#:~:text=Agricultural%20production%20in%20sub%2DSaharan%20Africa%20has%2C%20in%20recent%20times,soil%20quality%2C%20slavery%20and%20disease.

[lxviii] “Official international assistance: Stagnation despite pledges and new development challenges”, SDG Pulse, https://sdgpulse.unctad.org/official-support-development/

[lxix] John W. McArthur and Jeffrey D. Sachs, “Agriculture, Aid and Economic Growth in Africa”, Policy Research Working Paper 8447, World Bank, April 2018, https://openknowledge.worldbank.org/server/api/core/bitstreams/9b2c3987-cba8-5063-bd3d-23a24a71cf62/content

[lxx] “Malabo Declaration on Accelerated Agricultural Growth and Transformation for Shared Prosperity and Improved Livelihoods”, https://au.int/sites/default/files/documents/31247-doc-malabo_declaration_2014_11_26.pdf

[lxxi] Hoddinott, John, “The economics of reducing malnutrition in sub-Saharan Africa.” Global Panel on Agriculture and Food Systems for Nutrition Working Paper 21 (2016).

[lxxii] Africa-Improved Foods, ‘Nutrition’, https://africaimprovedfoods.com/nutrition-2/

[lxxiii] Vibha Varshney, ‘How a nutrition programme is helping a rwanda village overcome malnutrition’, Down To Earth, December 10, 2018,  https://www.downtoearth.org.in/news/health-in-africa/how-a-nutrition-programme-is-helping-a-rwanda-village-overcome-malnutrition-62437

[lxxiv] Shoba Suri, “Nutrition Gardens: A Sustainable Model for Food Security and Diversity,” ORF Issue Brief No. 369, June 2020, Observer Research Foundation, https://www.orfonline.org/research/nutrition-gardens-a-sustainable-model-for-food-security-and-diversity-67933/

[lxxv] Parida, Prashant K., et al., “Nutrition Sensitive Annadata Kitchen Garden Model: Growth for health and wellbeing of tribal poor–A couple of case studies.” Current Research in Nutrition and Food Science 6, no. 3 (2018): 882., http://www.foodandnutritionjournal.org/volume6number3/nutrition-sensitive-annadata-kitchen-garden-model-growth-for-health-and-wellbeing-of-tribal-poor-a-couple-of-case-studies/

[lxxvi] “Shri R.K Singh briefs the media on the First Energy Transitions Working Group Meeting to be held in Bengaluru on February 5-7, 2023”, Ministry of Power, Press Information Bureau, February 2, 2023, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1895770#:~:text=The%20G20%20members%20represent%20around,all%20major%20international%20economic%20issues.

[lxxvii] Rajiv Bhatia, “India, the G20 and an African agenda”, Gateway House, September 17, 2020, https://www.gatewayhouse.in/india-g20-african-agenda/

[lxxviii] Peter Fabricius, “G20 Compact with Africa is a long game”, July 8, 2019, https://acetforafrica.org/news-and-media/acet-in-the-news/g20-compact-with-africa-is-a-long-game/

[lxxix] International Finance Corporation, G20 Compact with Africa, Africa Advisory Group Meeting, November 2022,

[lxxx] Abhishek Mishra, “Why India should support greater African representation under its G20 presidency”, Observer Research Foundation, August 26, 2022,  https://www.orfonline.org/research/why-india-should-support-greater-african-representation-under-its-g20-presidency/

[lxxxi] Rajiv Bhatia, “India, the G20 and an African agenda”

[lxxxii] Vasileios Chronas and Christian Hanelt, “Europe’s Struggles for Influence in Africa in Light of the Kremlin’s invasion”, Bertelsmann Stiftung, April 5, 2022, https://globaleurope.eu/globalization/europes-struggles-for-influence-in-africa-in-light-of-the-kremlins-invasion/

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Authors

Malancha Chakrabarty

Malancha Chakrabarty

Dr Malancha Chakrabarty is Senior Fellow and Deputy Director (Research) at the Observer Research Foundation where she coordinates the research centre Centre for New Economic ...

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Shoba Suri

Shoba Suri

Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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