आपूर्ति श्रृंखला की लचीली रूपरेखा का निर्माण: भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग व व्यापार समझौता और G20 के लिए उसका महत्व
Natasha Jha Bhaskar
Rahul Sen
कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक उथल-पुथल से पैदा बाहरी झटकों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है. इसके नतीजतन उत्पादन में देरी के साथ-साथ राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को लेकर विनिर्माण लागत में बढ़ोतरी हुई है. ये पॉलिसी ब्रीफ इस बात का विश्लेषण करता है कि हाल के द्विपक्षीय अंतरिम व्यापार समझौते, बाधाओं के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में आपूर्ति श्रृंखला लचीलेपन के लिए नीतिगत मोर्चे पर कैसे प्रमुख साधन बन सकते हैं. इस कड़ी में भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (INDAUS ECTA) की मिसाल ली गई है. इस संदर्भ में क़रार के उदाहरणों पर चर्चा की गई है, जो G20 सदस्यों को भविष्य की कार्रवाइयों की रणनीति बनाने को लेकर अहम दृष्टिकोण मुहैया कराते हैं. इस ब्रीफ में एक लचीली आपूर्ति श्रृंखला रूपरेखा सामने रखने में G20 की भूमिका से संबंधित सिफारिशें प्रस्तावित की गई हैं. ऐसी संरचना मज़बूत नियंत्रण, दृश्यता, लचीलेपन, सहभागिता, टेक्नोलॉजी और ठोस प्रशासन पर आधारित होनी चाहिए. इस दिशा में एक प्राथमिक प्रस्ताव तीव्र गति से प्रतिक्रिया जताने वाले मंच (RRF) की स्थापना से जुड़ा है. अप्रत्याशित रुकावटों के दौरान तैयारियों में मदद के लिए असुरक्षित, अहम और आवश्यक वस्तुओं को लेकर ऐसी क़वायद आवश्यक है.
कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक उथल-पुथल से पैदा बाहरी झटकों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है. इसके नतीजतन उत्पादन में देरी के साथ-साथ राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को लेकर विनिर्माण लागत में बढ़ोतरी हुई है. ये पॉलिसी ब्रीफ इस बात का विश्लेषण करता है कि हाल के द्विपक्षीय अंतरिम व्यापार समझौते, बाधाओं के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में आपूर्ति श्रृंखला लचीलेपन के लिए नीतिगत मोर्चे पर कैसे प्रमुख साधन बन सकते हैं. इस कड़ी में भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (INDAUS ECTA) की मिसाल ली गई है. इस संदर्भ में क़रार के उदाहरणों पर चर्चा की गई है, जो G20 सदस्यों को भविष्य की कार्रवाइयों की रणनीति बनाने को लेकर अहम दृष्टिकोण मुहैया कराते हैं. इस ब्रीफ में एक लचीली आपूर्ति श्रृंखला रूपरेखा सामने रखने में G20 की भूमिका से संबंधित सिफारिशें प्रस्तावित की गई हैं. ऐसी संरचना मज़बूत नियंत्रण, दृश्यता, लचीलेपन, सहभागिता, टेक्नोलॉजी और ठोस प्रशासन पर आधारित होनी चाहिए. इस दिशा में एक प्राथमिक प्रस्ताव तीव्र गति से प्रतिक्रिया जताने वाले मंच (RRF) की स्थापना से जुड़ा है. अप्रत्याशित रुकावटों के दौरान तैयारियों में मदद के लिए असुरक्षित, अहम और आवश्यक वस्तुओं को लेकर ऐसी क़वायद आवश्यक है.
1.चुनौती
वैश्विक व्यापार टकरावों, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पैदा बाहरी झटकों और अनिश्चितताओं ने G20 के सदस्य देशों और कारोबारों को आपूर्ति श्रृंखला में अभूतपूर्व रुकावटों का सामना करने को मजबूर कर दिया है. इसके नतीजतन उत्पादन में काफ़ी देरी हुई है और आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की सीमा पार आवाजाही को लेकर विनिर्माण लागत में बढ़ोतरी देखने को मिली है. उद्योगों पर इन बाहरी झटकों की बेहिसाब मार पड़ी है. ये प्रभाव उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं की जटिलता और उत्पादन के तमाम चरणों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संपर्क पर निर्भर करता है. चित्र 1 दिखाता है कि वैश्विक स्तर पर 23 प्रमुख उद्योगों में आपूर्ति श्रृंखलाएं विभिन्न प्रकार के जोख़िमों के संपर्क में आने से कैसे प्रभावित होती हैं, जो उन्हें संभावित रूप से बाधित कर सकती हैं.
चित्र1: उद्योगों की आपूर्ति श्रृंखला जोख़िमों की मात्रा
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन की ज़रूरत पर जोख़िमों की तीन श्रेणियों का असर होने के आसार हैं. इनमें: a) संभावित सुरक्षा ख़तरे की ज़द में रहने वाले देशों में उत्पादन केंद्र स्थापित करने से जुड़े भू-राजनीतिक जोख़िम; b) समुद्री जहाज़ों के वैश्विक मार्गों का केंद्र बन चुके देशों में जलवायु और प्राकृतिक आपदा के जोख़िम; और c) मौजूदा दौर में महामारी से जुड़े ख़तरे.
आपूर्ति श्रृंखला में लचीलेपन की दरकार
कारोबारी सर्वेक्षणों के ज़रिए यह अनुमान लगाया गया है कि उत्पादन प्रक्रिया में एक बार का झटका, ब्याज़, करों और डेप्रिसिएशन की कटौती से पहले किसी फर्म की कमाई को लगभग 30 से 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है.[ii] इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) ने अमेरिका और यूरोपीय संघ में एक्ज़ीक्यूटिव्स के एक सर्वेक्षण के आधार पर आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों की कारोबारी लागत पर एक रिपोर्ट तैयार की. इसमें पाया गया कि ऐसी अड़चनों से होने वाला नुक़सान सालाना राजस्व का औसतन 6 से 10 प्रतिशत रहा है.[iii]इसके अलावा, उपभोक्ता मांग की प्रतिक्रिया में लंबे अर्से तक देरी के कारण ब्रांड की छवि को होने वाले नुक़सान के चलते ऐसी रुकावटों की अतिरिक्त लागत भी होती है.
लिहाज़ा भविष्य की आपूर्ति श्रृंखला रुकावटों के प्रति लचीलापन तैयार करने की आवश्यकता को अगले पांच वर्षों में विश्व स्तर पर एक्ज़ीक्यूटिव्स के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता माना जा रहा है. विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने मोटे तौर पर ‘लचीलेपन’ को किसी भी बाहरी या आंतरिक झटके को प्रभावी ढंग से झेलने को लेकर आपूर्ति श्रृंखला की क्षमता के रूप में परिभाषित किया है, ताकि मुख्य क्रियाकलापों को पूरा करने की क़वायद का प्रबंधन किया जा सके.[iv]कारोबार जगत, विश्व स्तर पर अनेक रणनीतियों का उपयोग करके ऐसा लचीलापन हासिल करने से जुड़ी रणनीतियों पर विचार कर रहा है. इनमें 3D प्रिंटिंग, ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी डिजिटल टेक्नोलॉजियां शामिल हैं. ये क़वायद, उत्पादन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में भविष्य में होने वाली रुकावटों को पूर्व-नियोजित तरीक़े से रोकने और प्रबंधित करने का हिस्सा है. हालांकि G20 जैसे अंतर-सरकारी मंचों के माध्यम से सुविधाजनक बनाए गए नीतिगत मिश्रण की ख़ास दरकार है. ये मूल्य-श्रृंखला-आधारित व्यापार से हासिल फ़ायदों को कम किए बिना आपूर्ति श्रृंखलाओं के लचीलेपन को मज़बूत करते हैं.
आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन हासिल करने के लिए नीतिगत कार्रवाई के उपकरण
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन हासिल करने के लिए चार प्रमुख नीति कार्रवाई उपकरणों की पहचान की है. ये उपकरण हैं: जोख़िम प्रबंधन, घरेलू नीति, सार्वजनिक-निजी और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीति तालमेल उपकरण.[v]
ऊपर बताए गए संदर्भ में ही G20 देशों की सरकारों ने व्यापार और निवेश नीतियों की संरचना तैयार करने की ज़रूरतों को पहचाना है. ऐसा ढांचा आपूर्ति श्रृंखलाओं को चुस्त और टिकाऊ बनाता है. खासतौर से नए ज़माने के द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (RTA) में प्रावधानों के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है.[vi]वैसे तो विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय मंचों ने आपूर्ति श्रृंखला रुकावटों को बेहतर ढंग से समझने को लेकर सरकारों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत को पहचाना है. दूसरी ओर क्षेत्रीय और द्विपक्षीय प्रयासों ने इसे हासिल करने के लिए तंत्र की पड़ताल करने को लेकर एक साथ क़दम आगे बढ़ाएं है. इस दिशा में एक विशिष्ट उदाहरण ऑस्ट्रेलिया और भारत (G20 के दो सदस्यों) के बीच भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (INDAUS ECTA) पर किया गया हस्ताक्षर है, जो दिसंबर 2022 से प्रभाव में आ गया है. यह पूर्ण-कालिक व्यापार सौदे की दिशा में एक निर्माणकारी ढांचा है, जिस पर फ़िलहाल वार्ताएं जारी हैं. इसे व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) का नाम दिया गया है.
यह सौदा महामारी के बाद के यथार्थ को भी दर्शाता है, जिसके तहत दुनिया के देश वैश्विक व्यापार के लिए किस हद तक खुले हैं, ये कुछ कारकों पर निर्भर करने लगा है. मसलन क्या ये क़वायद उन्हें केंद्रीयकरण के झटकों से बचाती है या घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाते हुए इन अर्थव्यवस्थाओं में अन्य देशों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है!
INDAUS ECTA और आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन
INDAUS ECTA सौदा, महामारी के बाद के यथार्थ को दर्शाता है. इस सौदे पर रिकॉर्ड समय में दस्तख़त किया गया.[vii] सौदे में समकालीन तात्कालिकताओं की गूंज सुनाई देती है. साथ ही महत्वाकांक्षाओं के ऊंचे स्तर के साथ तमाम मसलों से निपटा भी गया है. इससे व्यापार को लेकर पहले से ज़्यादा ठोस और पूर्वानुमानित (predictable) वातावरण को सक्षम बनाया जा सकेगा.
ऑस्ट्रेलिया के उत्पादकता आयोग का विश्लेषणात्मक ढांचा उन आपूर्ति श्रृंखलाओं की पहचान करता है जो रुकावटों के प्रति संवेदनशील होते हैं. ये INDAUS ECTA वार्ताओं का भी केंद्र बिंदु रहा है. असुरक्षित, आवश्यक और अहम वस्तुओं और सेवाओं की धारणाएं इस ढांचे के मूल में हैं (परिशिष्ट 1 देखें).[viii] फार्मास्यूटिकल्स, महत्वपूर्ण खनिज और कौशल की किल्लतों को नाज़ुक अहमियत वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाना जाता है, और ये G20 के सदस्यों के लिए भी प्रासंगिक हैं.
फार्मास्यूटिकल्स आपूर्ति श्रृंखला की दोबारा संरचना तैयार करना
थेरेप्यूटिक गुड्स एडमिनिस्ट्रेशन (TGA) के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में 90 प्रतिशत से ज़्यादा दवाओं की आपूर्ति, आयात के ज़रिए होती है. ऐसे में विनिर्माण, व्यापार और परिवहन से जुड़े बाहरी कारकों (जिनपर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता) के चलते दवाओं की किल्लत हो जाने का ख़तरा सामने आ जाता है.[ix]
दिसंबर 2022 में TGA ने 320 दवाओं की ज़बरदस्त किल्लत की पुष्टि की. इनमें से 50 को गंभीर और ज़रूरत से कम आपूर्ति वाली दवाओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया.[x] रिपोर्टों से पता चलता है कि दवाओं के प्राथमिक स्रोत के रूप में ऑस्ट्रेलिया की अमेरिका पर बहुत अधिक निर्भरता है, जबकि अमेरिका अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए वैकल्पिक जेनेरिक्स के आयात को लेकर मुख्य रूप से भारत और चीन पर निर्भर है.[xi]
फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के लिए INDAUS ECTA ज़्यादातर उत्पादों की शुल्क-मुक्त एंट्री उपलब्ध कराता है. इसके अलावा भारत या ऑस्ट्रेलिया, दोनों में से किसी भी देश में तैयार होने वाली वस्तुओं के लिए वरीयतापूर्ण टैरिफ प्रणाली, और एक-दूसरे की नियामक व्यवस्थाओं, सीमा शुल्क प्रणालियों और व्यापार प्रणालियों की बेहतर समझ प्रदान करता है. INDAUS ECTA समझौते (फार्मास्यूटिकल्स) का अनुबंध 7A कहता है कि ऑस्ट्रेलियाई नियामक TGA और भारतीय नियामककेंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO) चिकित्सकों द्वारा लिखी गई दवाइओं और चिकित्सा उपकरणों में व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे. विनिर्मित उत्पादों के प्री-मार्केट मूल्यांकन के संबंध में और विनिर्माण के बेहतरीन तौर-तरीक़ों (GMP) से जुड़े रिपोर्ट के उपयोग के ज़रिए इन क़वायदों को अंजाम दिया जाना है. ऑस्ट्रेलिया में जिन दवाओं की किल्लत है उनमें से कई जेनेरिक दवाएं हैं, जिनका निर्माण भारत करता है.[xii]
INDAUS ECTA ने तुलना-योग्य विदेशी नियामक (COR) मार्ग और विनिर्माण सुविधाओं के फास्ट-ट्रैक गुणवत्ता मूल्यांकन/निरीक्षणों का उपयोग करके पेटेंट की गई, जेनेरिक और बायोसिमिलर दवाओं के लिए फास्ट-ट्रैक अनुमोदन का प्रस्ताव देने पर भी परिचर्चा शुरू कर दी है. जेनेरिक दवा प्रस्तुतीकरण के लिए अनुमोदन की मौजूदा समय-सीमा परिशिष्ट 2 में साझा की गई है. इससे ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार को भारतीय दवा ब्रांडों तक सस्ती और सुचारू पहुंच मिल सकेगी. अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की मांग का 40 प्रतिशत से अधिक और यूनाइटेड किंगडम में सभी दवाओं के 25 प्रतिशत हिस्से की आपूर्ति, भारत करता है. ये दोनों ही G20 सदस्यों से जुड़ी आपूर्ति श्रृंखलाओं के उदाहरण हैं.[xiii]
अपने प्रावधानों के ज़रिए INDAUS ECTA चिकित्सा आपूर्ति श्रृंखला की ठोस समझ से जुड़ी आवश्यकता को दोहराता है. इसमें सक्रिय फार्मास्यूटिकल सामग्रियों (API) के आपूर्तिकर्ता, विनिर्माता, वितरक और नियामक शामिल हैं, जो पूरी श्रृंखला में पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं. इस समझौते के मौलिक नियम, दवा जैसी आवश्यक वस्तुओं के व्यापार के लिए क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला जोख़िम को विविधीतापूर्ण बनाने की क़वायद को सक्षम करने के हिसाब से तैयार किए गए हैं.[xiv]
फार्मा उद्योग के किरदारों के साथ कारोबार साझेदारी को और बढ़ावा देने के लिए फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (फार्मेक्सिल) ने फरवरी 2023 में 20 से अधिक दवा कंपनियों के एक प्रतिनिधिमंडल की ऑस्ट्रेलिया में अगुवाई की. फार्मास्यूटिकल आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन से जुड़ी पहल के हिस्से के रूप में इस क़वायद को अंजाम दिया गया.
साझेदारियों के ज़रिए महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित बनाना
दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा, रक्षा, हवाई क्षेत्र और परिवहन उद्योगों में महत्वपूर्ण खनिज बेहद अहम हैं. कारोबारी प्रतिस्पर्धिता हासिल करने और इंडस्ट्री 4.0 की ओर परिवर्तनकरी क़वायदों के लिए भारत जैसे G20 के विकासशील सदस्यों को महत्वपूर्ण खनिजों की स्थिर आपूर्ति की दरकार है. G20 समूह के विकसित सदस्यों (जैसे ऑस्ट्रेलिया) के पास भारत सरकार द्वारा चिन्हित किए गए 49 महत्वपूर्ण खनिजों में से 21 के भंडार मौजूद हैं. लिहाज़ा ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.[xv]
INDAUS ECTA ज़्यादातर महत्वपूर्ण खनिजों के लिए सीमा शुल्क को कम या ख़त्म कर देता है. इनमें मैंगनीज़ अयस्क, टंगस्टन अयस्क और केंद्रक, रेअर अर्थ ऑक्साइड्स और ज़िरकोनियम केंद्रक शामिल हैं. ये तमाम खनिज, ऊर्जा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी क़वायदों (बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहन यानी EV विनिर्माण) के प्रमुख मध्यवर्ती इनपुट्स हैं. ऐसे प्रावधान, महत्वपूर्ण खनिज मूल्य श्रृंखला व्यापार के रास्ते के जोख़िम में विविधता लाने की सुविधा देते हैं.
भारत सरकार का अंतरराष्ट्रीय खोजबीन कार्यक्रम (खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड [KABIL], तीन सरकारी कंपनियों- नेशनल एल्युमीनियम कंपनी, हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड और मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉर्प द्वारा गठित एक संयुक्त उद्यम) इसकी ताज़ा-तरीन पहल है. इसका उद्देश्य घरेलू बाज़ार में बढ़ती मांगों को पूरा करने और भविष्य की आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए विदेशों में महत्वपूर्ण खनिजों को अधिग्रहित करना है. इन खनिजों में लिथियम, निकेल, कोबाल्ट और रेअर अर्थ माइंस शामिल हैं.
दोनों देश महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने को लेकर विकास के लिए तैयार परियोजनाओं के साथ निकासी (offtake) और निवेश समझौतों की संभावनाएं भी तलाश रहे हैं. उन्नत वैनेडियम[xvi] का विकास करने वालीटेक्नोलॉजी मेटल्स ऑस्ट्रेलिया लिमिटेड(ASX: TMT) ने स्टील का उत्पादन करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक टाटा स्टील लिमिटेड के साथ एक समझौता पत्र (MoU) पर दस्तख़त किए हैं. अपनी भावी जरूरतों को सुरक्षित करने और क़ीमतों में अस्थिरता का निपटारा करने के लिए इस MoU में वैनेडियम पेंटोक्साइड और निचली प्रवाह वाले वैनेडियम के अन्य उत्पादों के उठाव को लेकर एक रूपरेखा स्थापित की गई है.[xvii]भारतीय बैटरी निर्माता डेलेक्ट्रिक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड ने अप्रैल 2023 में TMT के साथ एक समझौता पत्र के ज़रिए वैनेडियम के प्राथमिक उत्पादक को सुरक्षित किया है. इसका मक़सद दुनिया भर में लंबी अवधि के ऊर्जा भंडारण के लिए वैनेडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरियों (VRFBs) की तैनाती को सहारा देना है.[xviii]फ़िलहाल वैनेडियम के 80 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्से का उपयोग स्टील और टाइटेनियम में मिश्र धातु (alloy) के रूप में किया जाता है. आज जब दुनिया नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जनों की ओर आगे बढ़ रही है, तब स्टील के प्रयोगों में उत्सर्जनों को कम करने में भी वेनेडियम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इन तमाम उदाहरणों से साफ़ है कि G20 देशों में निजी क्षेत्र की भागीदारी, नाज़ुक और आवश्यक आपूर्ति श्रृंखलाओं के भविष्य को सुरक्षित बना सकती है.
ऑस्ट्रेलिया की संसाधन संपन्नता का भारत की विनिर्माण क्षमता और पैमाने के साथ तालमेल कराया जा सकता है. संपूर्ण मूल्य-श्रृंखला मॉडल तैयार करने के लिए ऐसी क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. आगे इस बात को और ब्योरेवार तरीक़े से बताया गया है. दरअसल महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में मूल्य-वर्धन का ज़्यादातर हिस्सा खनन की बजाए प्रॉसेसिंग और विनिर्माण के चरणों में सामने आता है. भविष्य के हिसाब से चतुराई भरी रणनीतियों में ज़ोर देकर कहा गया है कि विश्व स्तर पर लिथियम के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया अपने निर्यातित अयस्क के केवल 0.53 प्रतिशत (1.13 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर) हिस्से की कमाई करता है. ऑस्ट्रेलियाई लिथियम अयस्क के मूल्य का बाक़ी 99.5 फ़ीसदी (ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में अनुमानित 213 अरब) हिस्सा, तट से दूर खुले समुद्र में इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉसेसिंग, बैटरी सेल उत्पादन और उत्पाद असेंबली के ज़रिए जोड़ा जाता है (चित्र 2). INDAUS ECTA के पास इस खाई को पाटने का अवसर है.
कोविड-19 महामारी के दौरान श्रम की गतिशीलता पर आयद की गई पाबंदियों ने दुनिया के देशों का प्रतिभा की ज़बरदस्त किल्लत से सामना कराया. अपने कार्यबल की कमी को पूरा करने के लिए ऑस्ट्रेलिया अपने कौशल-युक्त प्रवासी कार्यक्रम पर निर्भर करता है. ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय कौशल आयोग के अनुसार श्रम की किल्लत का सामना करने वाले कौशल-युक्त पेशों की तादाद दोगुनी हो गई है. साल 2021 में ऐसी किल्लत का सामना कर रहे व्यवसायों की संख्या 153 थी, जो 2022 में बढ़कर 286 हो गई. श्रम की कमी ने विनिर्माण, निर्माण, इंजीनियरिंग, परिवहन के साथ-साथ रसद, और स्वास्थ्य सेवा सहित अन्य क्षेत्रों पर असर डाला है.
ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो (ABS) के मुताबिक़ चार में से एक ऑस्ट्रेलियाई कारोबार, नौकरियों में खाली पदों को भरने के लिए उपयुक्त कर्मचारियों की तलाश को लेकर भारी जद्दोजहद कर रहा है.[xx] नर्सिंग और टेक्नोलॉजी क्षेत्रों द्वारा साल 2030 तक 123,000 से अधिक नर्सों और 653,000 तकनीकी कर्मचारियों से जुड़े कार्यबल की कमी का सामना करने की आशंका है. श्रम की ऐसी ज़बरदस्त किल्लत का मूल्य, निर्माता की उत्पादन बढ़ाने की क्षमता और उपभोक्ता के लिए सेवाओं की उपलब्धता पर भारी प्रभाव पड़ता है.
इस पृष्ठभूमि में INDAUS ECTA में गतिशीलता परिणामों को बढ़ाने के प्रावधान भी शामिल किए गए हैं. ये भविष्य में कौशल की कमी को न्यूनतम स्तर पर ला सकते हैं और आपूर्ति श्रृंखला जोख़िमों के ख़िलाफ़ उद्योगों को सुरक्षित भी बना सकते हैं.[xxi] प्रवासन और गतिशीलता भागीदारी व्यवस्था, पेशेवरों और छात्रों के लिए राष्ट्रीय सीमा के आर-पार आवाजाही को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करती है. इससे दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा. योग्यताओं, लाइसेंसिंग और पंजीकरण प्रक्रियाओं को मान्यता देने वाले व्यावसायिक सेवा कार्य समूह के ज़रिए ये कामयाबी हासिल की जा सकती है. ऐसी व्यवस्था द्विपक्षीय व्यापार में तरक़्क़ी को आगे बढ़ाएगी. जिन क्षेत्रों में घरेलू विशेषज्ञता सीमित है, वहां विशेषज्ञ कौशल के आदान-प्रदान के माध्यम से इसे साकार किया जा सकता है.
वर्तमान में न्यूलैंड ग्लोबल ग्रुप दोनों देशों में स्टेकहोल्डर्स के साथ काम कर रहा है. कार्यबल गतिशीलता ढांचा स्थापित करने के लिए ऐसी क़वायद जारी है. ऐसा ढांचा योग्यता और अनुभव संबंधी आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य रखने वाला होगा, जो प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कामगारों की आवाजाही के रास्ते की अड़चनों का निपटारा करते हुए इस दिशा में सक्षमकारी क़वायद करेगा. यह G20 सदस्यों (इस मामले में, ऑस्ट्रेलिया और भारत) द्वारा उठाए जा रहे सक्रिय उपायों पर दोबारा ज़ोर देता है. भविष्य में श्रम गतिशीलता के रास्ते में रुकावटों की सूरत में कुशलता की कमी को दूर करने के लिए इनका उपयोग किया जा सकेगा.
2.G20 की भूमिका
G20 के मौजूदा नेतृत्व का ज़ोर एक नेक ताक़त बनने पर है, जो बड़े और छोटे, दोनों प्रकार के देशों को नौकरियां पैदा करने, नवाचार को बनाए रखने और विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करता है. इसे सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में भावी रुकावटों को न्यूनतम करने वाला तंत्र तैयार करना बेहद अहम है. ऊपर जिन क्षेत्रों की चर्चा की गई है, उनसे जुड़ी आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन हासिल करने के लिए INDAUS ECTA एक प्रमुख नीतिगत उपकरण है, और ये G20 सदस्यों को आंतरिक दृष्टिकोण भी उपलब्ध कराता है.
स्वैच्छिक और अनिवार्य दृष्टिकोण अपनाकर G20, मेडिकल आपूर्ति श्रृंखला(विकास, विनिर्माण और वितरण) के भीतर अधिक दृश्यता को सक्षम बना सकता है. इन क़वायदों में नियमनों का मानकीकरण, ‘किल्लत’ और ‘नाज़ुकपन’ की साझा परिभाषाएं, अधिक इंटर-ऑपरेबिलिटी, और सक्रिय रिपोर्टिंग के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, जोख़िम आकलन और दवा की किल्लत की रोकथाम करने वाली योजनाएं शामिल हो सकती हैं. इसके जड़ में किरदारों के बीच पहले से अधिक तालमेल, पारदर्शिता और संचार सुनिश्चित करने की प्रक्रिया शामिल है (चित्र 3).
महत्वपूर्ण खनिज की आपूर्ति श्रृंखलाओं का भविष्य सुरक्षित करने के लिए G20, सामूहिक आर्थिक मुनाफ़ों पर चर्चा में रफ़्तार भर सकता है. इससे नीतिगत मोर्चे पर स्पष्ट सिद्धांत स्थापित हो जाएंगे. इनउपायों में शुरुआती दौर से मध्यवर्ती चरण की परियोजनाओं को लेकर महत्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं के लिए वित्त तक पहुंच को सक्षम करना शामिल हो सकता है. इसके अलावा परियोजनाओं के लिए निवेश और बैंक ऋणों को आकर्षित करने को लेकर बाध्यकारी निकासी समझौते करना और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण खनिजों के लिए एक मानकीकृत बाज़ार को शामिल किया जा सकता है.[xxiii]INDAUS ECTA की चर्चाओं को ध्यान में रखते हुए G20 सदस्य अपनी प्रतिस्पर्धी मज़बूतियों का आकलन करते हुए संपूर्ण-मूल्य-श्रृंखला मॉडल के साथ उसका तालमेल बिठा सकते हैं.
कौशल की कमी के संदर्भ मेंG20 के पास तमाम राष्ट्रों में प्रतिभा की गतिशीलता की ज़रूरतों पर परिचर्चा में जान फूंकने का मौक़ा है. जानकारियों को साझा करने की क़वायद को प्रोत्साहित करने वाली नए सिरे से तैयार प्रवासन नीतियों के साथ नवाचार और विकास को बढ़ावा देने के लिए इस क़वायद को आगे बढ़ाया जा सकता है. यह प्रशिक्षण और कौशल विकास तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में दृष्टिकोण की पहचान कर सकता है.
लिहाज़ा एक अंतरसरकारी मंच के रूप में G20, एक नई आपूर्ति श्रृंखला ढांचे के निर्माण को सुगम बना सकता है. स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तनों पर स्पष्ट नीति सिद्धांत स्थापित करके G20, सामूहिक आर्थिक लाभ पर परिचर्चा में भी रफ़्तार भर सकता है.
3.G20 के लिए सिफ़ारिशें
दृश्यता, लचीलेपन, सहभागिता, टेक्नोलॉजी, मज़बूत प्रशासन और ठोस नियंत्रण के स्तंभों से नई आपूर्ति श्रृंखला के मज़बूत ढांचे को आगे बढ़ाया जाना चाहिए (चित्र 4). ये क़वायद विश्वास, पारदर्शिता, सुरक्षा, समयबद्धता और टिकाऊपन के मूल सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए. इस तरह के ढांचे को व्यापार विनियमन, सुविधा और रसद नेटवर्क मुहैया कराई जानी चाहिए. इसके अलावा सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSMEs) को सहारा देने के साथ-साथ प्रतिभा की वैश्विक आवाजाही के मुद्दों पर ठोस वैश्विक प्रशासन भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इसे G20 के व्यापार और निवेश कार्य समूह के ज़रिए क्रियान्वित किया जा सकता है.
चित्र 4: लचीली आपूर्ति श्रृंखला ढांचे के स्तंभ
स्रोत: ख़ुद लेखक के
असुरक्षित, नाज़ुक और आवश्यक वस्तुओं के लिए तीव्र गति से प्रतिक्रिया जताने वाले मंच (RRF) का निर्माण
अप्रत्याशित रुकावटों के लिए बेहतर रूप से तैयार होने की क़वायद के लिए एक ऐसे ढांचे की दरकार है जिसमें RRF को जोड़ा जा सके. इसके साथ कारोबारों को शुरुआती दौर में चेतावनी देने वाला तंत्र शामिल हो सकता है. इसमें जहाज़ी लदान और वितरण यानी शिपमेंट में होने वाले विलंब, या सरहद पर अप्रत्याशित रुकावटें शामिल हैं. RRF सूचना का आगे प्रसार कर सकता है, साथ ही असुरक्षित, नाज़ुक और आवश्यक वस्तुओं के व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय समन्वय भी सुनिश्चित कर सकता है. सदस्य देशों से पूर्व सक्रियता के साथ सूचना जुटाकर और उनपर निगरानी रखकर इन क़वायदों को आगे बढ़ाया जा सकता है.
फ़ायदे
आपूर्ति श्रृंखलाओं पर वास्तविक समय में डेटा प्रदान करता है
नज़दीक दिखाई देने वाली रुकावटों के बारे में अग्रिम सूचना सुनिश्चित करता है
सभी पक्षों में वास्तविक समय में संभावित आपूर्तिकर्ता जोख़िमों की पहचान करता है
संपूर्ण मूल्य श्रृंखला पर नियंत्रण बढ़ाता है
मांग-आपूर्ति के अंतर-संबंधों को बेहतर ढंग से चिन्हित करने में संगठनों की मदद करता है
उत्पादों को अधिक प्रभावी ढंग से और सतत रूप से सुरक्षित करता है
कार्रवाई के बिंदु
G20 को RRF की स्थापना की दिशा में काम करना चाहिए.इसमें ऐसे किरदारों को शामिल किया जाना चाहिए, जिनके पास आपूर्ति श्रृंखला चुनौतियों की प्रत्यक्ष दृश्यता है (इसमें सभी क्षेत्रों में व्यापार निकाय और MSMEs शामिल हो सकते हैं). वास्तविक समय में प्रतिक्रिया जताने वाली इकाई के रूप RRF के पास संभावित रुकावटों पर उन्नत और समयबद्ध रूप से जानकारी तक पहुंच होगी. इससे कारोबारों के लिए लागत में भारी बचत होगी, जिससे आख़िरकार उपभोक्ताओं को फ़ायदा पहुंचेगा. समूची आपूर्ति श्रृंखला में वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को लेकर वास्तविक समय में ऐसे डेटा उत्पन्न करने के लिएप्रेडिक्टिव डेटा एनालिटिक्सऔर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े प्लेटफॉर्मों को काम पर लगाया जाना चाहिए.
RRF को प्रभावी रूप से कार्य- और कार्रवाई-केंद्रित मंच के रूप में तैयार करने के लिएG20 को एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए. अपने निर्माण खंडों की पहचान करने और निर्माता, आपूर्तिकर्ता के साथ-साथ कमज़ोर, नाज़ुक और आवश्यक वस्तुओं के व्यापार में वितरण संबंधी मुद्दों पर विचार-मंथन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए.
G20 को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए किक्षमता-निर्माण मंच के रूप में उभरने के लिए RRF को विश्वास, समयबद्धता और पारदर्शिता पर आधारित होना चाहिए.
बेहतरीन अभ्यास पोर्टल (BPP) के ज़रिए सहभागिता सुरक्षित करना
आपूर्ति श्रृंखला में दृश्यता को किसी कारोबार द्वारा अपने उत्पादों, घटकों और सामग्री इनपुट्स की पड़ताल करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है. उत्पादन के पहले चरण से लेकर अंतिम मंज़िल तक इस क़वायद की सुगमता होनी चाहिए. मिसाल के तौर पर एक कार निर्माता को माइक्रोप्रॉसेसर्स और सेमीकंडक्टर चिप्स समेत घटक के अपने सभी आपूर्तिकर्ताओं के स्रोतों की टोह लगाने में सक्षम होना चाहिए. महामारी के दौरान यह एक प्रमुख मुद्दा था. इसे तीनों क्षेत्रों में INDAUS ECTA के एक प्रमुख लक्ष्य की तरह सामने रखा गया है, जिनका पहले ही विश्लेषण किया जा चुका है. इस प्रक्रिया ने वैश्विक स्तर पर तमाम आपूर्ति श्रृंखलाओं में दृश्यता में सुधार लाने के लिए सहभागिता और बेहतरीन तौर-तरीक़े साझा करने की ज़रूरतों को रेखांकित किया है.
G20 की मुख्य भूमिका गतिशील दृश्यता के लिए क्षमताओं के स्तर को ऊंचा उठाना है. महत्वपूर्ण और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला में वास्तविक समय में घटित हो रही घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस क़वायद को अंजाम दिया जाना है. चित्र 5 में वो रूपरेखा सामने रखी गई है जो आपूर्ति श्रृंखला के भीतर दृश्यता क्षमताओं के दोनों पहलुओं को एकीकृत करता है. भविष्य की रुकावटों से सामने आने वाले जोखिमों को कम करने के लिए इसे अमल में लाया जाता है.
चित्र 5: दृश्यता क्षमताओं को बढ़ाने के लिए आपूर्ति श्रृंखला जोख़िम का ख़ाका तैयार करना
आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों पर मौजूद देश नाज़ुक, असुरक्षित और आवश्यक वस्तुओं के लिए आपूर्ति श्रृंखला में बेहतर दृश्यता हासिल कर सकते हैं.
संसाधनों का बेहतर उपयोग और लामबंदी.
ख़ास ज़रूरतों के लिए तत्परता (readiness) उपायों और अनुकूलित (customised) समाधानों के ज़रिए ‘दोबारा बेहतर निर्माण’ में मदद करता है.
उत्पादन के हरेक चरण में असुरक्षाओं की पहचान की जाती है,चाहे वो ऊपरी प्रवाह (upstream) वाले या निचली प्रवाह वाले आपूर्तिकर्ता (downstream) के रूप में हो! INDAUS ECTA और व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) के लिए मौजूदा समय में जारी द्विपक्षीय परिचर्चा से सबक़ सीखे जा सकता हैं.
कार्रवाई के बिंदु
बेहतरीन अभ्यास पोर्टल यानी BPP तैयार करने के लिए G20 एक टास्क फोर्स बना सकता है. सदस्य देशों द्वारा आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों का हल निकाले जाने के तौर-तरीक़ों की गहरी समझ विकसित करने के लिएपोर्टल को संदर्भ-श्रेणी की सूचना मुहैया करानी चाहिए. BPP के ज़रिए सीखे गए किसी भी नवाचार अभ्यास को देशों और कारोबारों में ख़ुद की लचीली रणनीतियां बनाने से जुड़ी क़वायद में शामिल किया जा सकता है.
इस टास्क फोर्स को नाज़ुक, असुरक्षित और आवश्यक क्षेत्रों से संबंधित नियामक प्रक्रियाओं के मानकीकरण की दिशा में भी काम करना चाहिए. इस बात की ऊपर चर्चा की जा चुकी है.ऐतिहासिक रूप से इन क्षेत्रों की आपूर्ति श्रृंखला में उत्पादों के सुचारू वितरण में बाधा पैदा कर चुके किसी भी नियामक उपाय की समीक्षा की जानी चाहिए. ऐसी अड़चनों को दूर करने के तरीक़ों की पहचान करने के उद्देश्य से इन क़वायदों को अंजाम दिया जाना चाहिए.
ट्रैक 2 संवाद के ज़रिए सहभागिता को गहरा करना
आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन लाने से जुड़े कार्यक्रमों में अनेक स्टेकहोल्डर्स जुड़े होते हैं, इस स्वभाव को स्वीकार किया जाना अहम है. इसलिए ट्रैक 2 संवाद शुरू करने से आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन पर असर डालने वाले कारकों के दायरे और समझ को अधिकतम स्तर तक ले जाया जा सकता है. इसमें निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत, सार्वजनिक नीति और शोध संगठनों के प्रमुख स्टेकहोल्डर्स को शामिल किया जाना चाहिए.
फ़ायदे
आपूर्ति श्रृंखला जोखिमों का ज़्यादा पूर्व सक्रियता से आकलन और मूल्यांकन किया जाता है.
भविष्य की प्रभावी रणनीतियों के लिए क्षेत्रवार असुरक्षाओं को बेहतर ढंग से समझा जाता है.
आपूर्ति श्रृंखला एकाधिकारों और प्रतिबंधात्मक तौर-तरीक़ों पर चर्चा में जान फूंकता है.
आपूर्ति श्रृंखलाओं के ठोस प्रशासन के लिए ज़िम्मेदार उपायों की शुरुआत करता है.
कार्रवाई के बिंदु
समयबद्ध, परिणाम-आधारित ढांचा विकसित करने के लिएG20 ट्रैक 2 संवाद स्थापित करें.
ऐसे ढांचे की बुनियाद, प्रस्तावित RRF द्वारा चिन्हित की गई क्षेत्रीय असुरक्षाओं पर संग्रहित आंकड़ों पर टिकी होनी चाहिए.
आपूर्ति श्रृंखला लचीलेपन में सुधार के लिए एक डिजिटल व्यापार सुविधा ढांचा (DTFF) तैयार करें
G20 के विकसित और विकासशील सदस्यों के बीच दरार चौड़ी और गहरी है. सदस्य देशों के बीच मौजूदा खाइयों के निपटारे के लिए एक समर्पित डिजिटल व्यापार सुविधा ढांचे की आवश्यकता साफ़ ज़ाहिर हो रही है. जैसा कि चित्र 4 में बताया गया है, टेक्नोलॉजी, आपूर्ति श्रृंखला लचीलीपेन से जुड़े ढांचे का एक प्रमुख स्तंभ है. INDAUS ECTA पर हुई परिचर्चाओं के बाद अब CECA को लेकर जारी विचार-मंथनों में डिजिटल व्यापार सुविधा भी चर्चा का एक प्रमुख क्षेत्र है.
फ़ायदे
इससे परिचालन लचीलेपन में सुधार आता है, जिससे उत्पाद और सेवा वितरण की लागत में कमी होती है.
राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार बेहतर जुड़ावों के साथ योजना और उत्पादन प्रक्रिया में अधिक निश्चितता आती है.
कार्रवाई के बिंदु
G20 को DTFF स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए. ऐसा DTFF भविष्य में आपूर्ति श्रृंखला रुकावटों के प्रबंधन में ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी डिजिटल टेक्नोलॉजियों के प्रभावी उपयोग के लिए क्षमता का निर्माण कर सकेगा.पैन एशियन ई-कॉमर्स अलायंस (PAA) में G20 सदस्यों को शामिल करने वाली साझेदारी पहल में कई सबक़ हो सकते हैं. PAA ऐसी ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करता है जो सीमा शुल्क पर व्यापार सुविधा प्रक्रिया के स्वचालन (automation) की छूट देता है. इससे सीमा शुल्क मंज़ूरियों यानी क्लीयरेंस के लिए लगने वाला समय आधे दिन से घटाकर महज़ 15 मिनट रह जाता है.[xxv]
G20 सदस्यों को DTFF के हिस्से के रूप में चुस्त बुनियादी ढांचे की अगुवाई वाली पहल के निर्माण और निवेश पर ज़ोर देना चाहिए.मिसाल के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न बंदरगाह ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके अपने परिचालन को स्वचालित कर (automated) लिया है. इसके नतीजतन बंदरगाह की वहन क्षमता में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है. ऐसी पहलों ने श्रम की गतिशीलता में रुकावटों के संदर्भ में बंदरगाहों के लचीलेपन में सुधार ला दिया है. ग़ौरतलब है कि दुनिया ने कोविड-19 महामारी के दौरान ऐसी अड़चनों का अनुभव किया था.
एक लचीली आपूर्ति श्रृंखला ढांचे के लिए G20 के सदस्यों के बीच साझा क्षमताओं का भरपूर उपयोग किए जाने की आवश्यकता है. ऊपर की सभी सिफ़ारिशें इन्हीं बातों को दोहराती हैं. इस दिशा में कार्रवाई के आह्वान से जुड़ी प्रक्रिया में मज़बूत प्रतिबद्धता और निर्भरता-योग्य साझेदारियों से संचालित माप योग्य परिणाम देने की क़वायद शामिल है.
[vi]Basu Das and Sen in their 2022 ADB Working paper establish that RTA membership has cushioned against the adverse impacts of COVID-19 on trade in essential medical goods, including vaccine value chain products and Personal Protective Equipment (PPE).See
[xvi]Vanadium is listed as one of the top five minerals needed for renewable energy technologies, with demand forecasted to increase by 173 percent to 2050 requirements.
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Natasha Jha Bhaskar is General Manager of Newland Global Group a leading corporate advisory firm specialising in the IndiaAustralia space based in Sydney. Natasha has ...