Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on May 09, 2025 Commentaries 0 Hours ago

विडंबना यह है कि चीन भी पाकिस्तानी आतंकवाद का शिकार है. इसके बावजूद चीन पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाता है.

चीन का "दोहरा खेल": आतंकवाद पर चुप्पी, दोस्ती में मजबूती!

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पहलगाम हमले पर चीन की शुरुआती प्रतिक्रिया निंदा और संवेदना व्यक्त करने वाली थी. हालांकि उसने इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव में शामिल होने से सावधानीपूर्वक परहेज किया है. चीन ने पहलगाम हमले की ‘त्वरित और निष्पक्ष जांच’ की मांग की थी, पर साथ में यह भी कहा था कि वह पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं का समर्थन करता है. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार के साथ फोन पर बातचीत के दौरान पाकिस्तान की सम्प्रभुता और सुरक्षा हितों की रक्षा के प्रति समर्थन व्यक्त किया.

चीन अच्छी तरह जानता है कि आतंकवादी शायद ही कभी कोई पारंपरिक सबूत छोड़ते हैं, जिसके जरिए आप उनका पता लगा सकें. भारत ने 2016 में पठानकोट बेस पर हुए हमले के बाद पाकिस्तानी जांचकर्ताओं को आमंत्रित किया था.

उस जांच का नतीजा क्या निकला, इस बारे में हमने अब तक कम ही सुना है. भारत ने पहले भी पाकिस्तान को कई आतंकी हमलों से जुड़े डीएनए सैंपल सहित डोजियर सौंपे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. 2611 के मामले में भारत ने लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद और अन्य के खिलाफ सबूतों के साथ डोजियर सौंपे थे.

चीन के बयानों में इस घटना को कुछ मामलों में ‘आतंकवादी हमला’ करार देने से परहेज किया गया, इसे सिर्फ ‘हमला’ या ‘घटना’ कहा किया गया. कुछ पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि यह पाकिस्तान को अलग-थलग पड़ने से बचाने का चीन का सतर्क कदम है.

तब एक पाकिस्तानी न्यायिक पेनल ने भारत का दौरा भी किया था, लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला. उरी और पुलवामा के मामले में भी यही हुआ. अब पाकिस्तान और चीन दोनों ही दावा कर रहे हैं कि वे पहलगाम हमले की जांच चाहते हैं.

चीन की भूमिका पर नजर जरूरी

हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान के मित्र और रणनीतिक साझेदार के रूप में चीन उसकी सुरक्षा चिंताओं को समझता है और उनका समर्थन करता है. चीन ने इस बात पर जोर दिया कि संघर्ष को और बढ़ाने से बचने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों को संयम बरतना चाहिए. उसने कहा कि वह जल्द से जल्द निष्पक्ष जांच का समर्थन करता है, क्योंकि संघर्ष भारत और पाकिस्तान के बुनियादी हितों में नहीं है, न ही यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल है.

चीन के बयानों में इस घटना को कुछ मामलों में ‘आतंकवादी हमला’ करार देने से परहेज किया गया, इसे सिर्फ ‘हमला’ या ‘घटना’ कहा किया गया. कुछ पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि यह पाकिस्तान को अलग-थलग पड़ने से बचाने का चीन का सतर्क कदम है.

यूएन सुरक्षा परिषद ने 25 अप्रैल, 2025 को पहलगाम हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘आतंकवाद का निंदनीय कृत्य’ बताया था और सभी देशों से इसके अपराधियों को जवाबदेह ठहराने में भारतीय अधिकारियों का सहयोग करने का आग्रह किया था.

चीन ने इस आरोप पर भी टिप्पणी नहीं की कि हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा की शाखा द रेजिस्टेंस फ्रंट जैसे पाकिस्तान में मौजूद समूह जिम्मेदार हैं. न ही उसने भारत के सीमा पार आतंकवाद के आरोपों या उसके बाद के कूटनीतिक फैसलों, जैसे कि सिंधु जल संधि को निलंबित करने पर कोई टिप्पणी की. चीन ने ऐसा कश्मीर पर भारत-पाकिस्तान विवादों में सीधे शामिल होने से बचते हुए पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखने की अपनी व्यापक नीति के तहत किया है.

चीन भी पाकिस्तानी आतंकवाद का शिकार

विडंबना यह है कि चीन भी पाकिस्तानी आतंकवाद का शिकार है. रिपोर्टों के अनुसार पिछले तीन सालों में पाकिस्तान में 32 चीनी नागरिक मारे गए हैं, जो विदेशों में मारे गए चीनी नागरिकों की सबसे ज्यादा संख्या है. इसके बावजूद चीन पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाता है.

यूएन सुरक्षा परिषद ने 25 अप्रैल, 2025 को पहलगाम हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘आतंकवाद का निंदनीय कृत्य’ बताया था और सभी देशों से इसके अपराधियों को जवाबदेह ठहराने में भारतीय अधिकारियों का सहयोग करने का आग्रह किया था.

हालांकि, चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर काम किया, ताकि बयान की भाषा को कमजोर किया जा सके. जबकि पाकिस्तान यूएनएससी का गैर-स्थायी सदस्य है. इससे चीन की वह ऐतिहासिक अनिच्छा सामने आती है, जो वह यूएनएससी में पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने वाली कार्रवाइयों का समर्थन करने में दिखाता रहा है. पुलवामा हमले में भी मसूद अजहर को सूचीबद्ध करने पर चीन ने बार-बार वीटो का इस्तेमाल किया था.

चीन अपने भू-राजनीतिक हितों और पाकिस्तान के साथ संबंधों की रक्षा करते हुए आतंकवाद की कूटनीतिक निंदा और कश्मीर मुद्दे पर तटस्थता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. उसने मध्यस्थता का भी प्रस्ताव नहीं रखा है.

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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...

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