Published on Jan 02, 2023 Updated 0 Hours ago

लोन-वुल्फ़ आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार को काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन यानी कट्टरता को रोकने वाला एक नया कार्यक्रम विकसित करना होगा, साथ ही सरकारी निगरानी में किए जाने वाले काउंसलिंग पहल को आगे बढ़ाना होगा.

भारत में चरमपंथ: देश में lone-wolf आतंकवाद का बढ़ता ख़तरा!

लोन-वुल्फ़ अटैक यानी ऐसा घातक हमला, जिसे एक आतंकी बिना किसी के सहयोग के अकेले ही अंज़ाम देता है. इस तरह के हमले आतंकवाद के नए चेहरे के रूप में सामने आए हैं और आतंकवाद-रोधी अध्ययनों के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं. कट्टरपंथी व्यक्तियों द्वारा अपने कट्टर विचारों से प्रेरित होकर किए जाने वाले हिंसक आतंकवादी हमलों को 'लोन-वुल्फ़ आतंकवाद' कहा जाता है. ऐसे लोग इस कार्य को किसी खास आतंकवादी संगठन और विचारधारा से प्रेरित या प्रभावित होकर अंज़ाम देते हैं, इतना ही नहीं ऐसे हिंसक हमले एक विशेष सामाजिक माहौल के भीतर संचालित होते हैं. लोन-वुल्फ़ आतंकवादी किसी विशेष वैचारिक प्रभाव के बिना व्यक्तिगत रूप से कार्य करने वाले  'अकेले व्यक्ति' हो सकते हैं और इसलिए ऐसे लोग अपने किसी लीडर के बिना समाज में समूहों के बीच आने-जाने के लिए स्वतंत्र होते हैं. यह ज़रूर है कि गिरफ़्तार होने पर, वे खुद को किसी विशेष आतंकवादी संगठन से जोड़ सकते हैं. दूसरी ओर, कुछ आतंकवादी संगठन भी ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले हमलों की आगे बढ़कर खुद ज़िम्मेदारी ले सकते हैं, क्यों कि इससे उन्हें 'मुफ़्त में नाम' या प्रचार हासिल होता है. लोन-वुल्फ़ आतंकवादियों और उनके हमलों के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता है और यह सब अप्रत्याशित होता है. यह एक बड़ी वजह है, जिसने आतंकवाद-रोधी एजेंसियों, पुलिस और ख़ुफ़िया संगठनों के लिए इनसे निपटना चुनौतीपूर्ण बना दिया है.

राजस्थान के उदयपुर में 28 जून, 2020 को दो इस्लामिक चरमपंथियों द्वारा कन्हैया लाल तेली की सनसनीख़ेज हत्या ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब लोन-वुल्फ़ आतंकवादियों द्वारा की जाने वाली हिंसा से सुरक्षित नहीं है. सुरक्षा एजेंसियां जब लोन-वुल्फ़ आतंकी संदिग्धों के मामलों की जांच कर रही थीं, तब उदयपुर की घटना ने उनके काम करने तरीक़ों, उनके अंदर कट्टरता पैदा करने के माध्यमों और उनकी फंडिंग के स्रोतों का पता लगाने के प्रयासों को तेज़ करने की अहमियत समझा.

लोन-वुल्फ़ आतंकवादी और उनके काम करने का तौर-तरीक़ा

1990 के दशक के आख़िर में 'लोन वुल्फ़' की अवधारणा को व्हाइट वर्चस्ववादियों टॉम मेट्ज़गर और एलेक्स कर्टिस द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था. जिनके मुताबिक़ इसका अर्थ था समान विचारधारा वाले व्यक्तियों को हिंसक अपराध करने के लिए "अकेले कार्य" करने का रास्ता अपनाना. उदाहरण के लिए, मार्च 2019 में एक लोन-वुल्फ़ आतंकी ने क्राइस्टचर्च, न्यूज़ीलैंड में दो मस्जिदों को निशाना बनाया था, जिसमें 51 लोग मारे गए थे. उस आतंकी के हिंसक कारनामे की लाइव-स्ट्रीमिंग भी की गई थी. हालांकि, यह शब्द बहुत विवादित है और स्कॉलरों के बीच इसके सटीक मतलब को लेकर सहमति नहीं है, लेकिन वे मोटे तौर पर इस बात से सहमत हैं कि लोन-वुल्फ़ हमलावर बग़ैर किसी मदद के या किसी आतंकवादी संगठन से बिना किसी सीधे संबंध के व्यक्तिगत तौर पर या छोटे-छोटे समूहों के रूप में काम करते हैं. कई बार लोन-वुल्फ़ आतंकी का कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं होता है और इस वजह से संगठित आतंकवादी संगठनों के उलट, उनकी गतिविधियां सुरक्षा एजेंसियों की नज़र में आने से बच जाती हैं.

यह सब ज़्यादातर ऑनलाइन होता है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों, डार्कनेट पर एन्क्रिप्टेड चैट रूम और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप पर प्रोपेगंडा के माध्यम से किया जाता है. यह सभी वर्चुअल स्पेस समान विचारधारा वाले चरमपंथी व्यक्तियों को तरह-तरह से दुष्प्रचार और ग़लत जानकारियों को उपलब्ध कराते हैं, जो एक प्रकार से हिंसा को बढ़ावा देने वाली होती है.

कट्टरता को बढ़ावा देना निश्चित तौर पर लोन-वुल्फ़ आतंकवादी बनाने में अहम भूमिका अदा करता है. यह सब ज़्यादातर ऑनलाइन होता है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों, डार्कनेट पर एन्क्रिप्टेड चैट रूम और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप पर प्रोपेगंडा के माध्यम से किया जाता है. यह सभी वर्चुअल स्पेस समान विचारधारा वाले चरमपंथी व्यक्तियों को तरह-तरह से दुष्प्रचार और ग़लत जानकारियों को उपलब्ध कराते हैं, जो एक प्रकार से हिंसा को बढ़ावा देने वाली होती है. साइबरस्पेस में, विशेष रूप से डार्क वेब पर, यह लोग अपनी पहचान को छुपाकर हथियारों को चलाने, विस्फोटक को बनाने जैसी तमाम तरह की ट्रेनिंग से संबंधित वीडियो को आसानी से देख पाते हैं. उदाहरण के लिए 20 जुलाई 2011 को एक दक्षिणपंथी आतंकवादी एंडर्स ब्रेविक ने नॉर्वे के ओस्लो में एक यूथ कैंप को निशाना बनाकर एक भयानक आतंकवादी हमले को अंज़ाम दिया था और 77 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. देखा जाए तो यह शायद पहला प्रमुख लोन वुल्फ़ आतंकवादी हमला था. बर्विक ने इस हमले के पीछे इस्लामीकरण से 'यूरोपीय संस्कृति को बचाने' की बात  कही थी और इस तरह से उसने अपने हिंसक कृत्य को सही ठहराने की कोशिश की थी. और तो और बाद में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कट्टर दक्षिणपंथी लोगों द्वारा उसके इस हिंसक कृत्य का खुलकर समर्थन भी किया गया था.

कट्टरता को बढ़ाने का कोई एक ज़रिया नहीं होता है, बल्कि इसके लिए कई चीज़ें ज़िम्मेदार होती हैं. इनमें से एक बड़ी वजह लोन वुल्फ़ आतंक के संदिग्धों के साथ अन्याय की भावना है, इसके साथ ही सामाजिक ताने-बाने में भरोसे की कमी और जो ग़लतियां हो चुकी हैं, उन्हें सुधारने में विफलता को लेकर सिस्टम के ख़िलाफ उनका गुस्सा भी कट्टरपंथ को बढ़ावे के अन्य कारणों में शामिल हैं. उदाहरण के लिए मई 2013 में ब्रिटिश सेना के एक सैनिक फ्यूसिलियर ली रिग्बी पर दो अतंकवादियों द्वारा हमला किया गया था, जो एक कट्टरपंथी आतंकी समूह अल-मुहाजिरौन से प्रभावित थे. इन आतंकियों ने ब्रिटेन की सेना द्वारा मुसलमानों की हत्या का बदला लेने के लिए उस सैनिक की हत्या को उचित ठहराया. इसके पीछे एक अन्य बड़ी वजह राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अलगाव या दुश्मनी की भावना हो सकती है. यानी ऐसी भावना, जो किसी भी धार्मिक समूह द्वारा अनुभव किए गए कथित अन्याय, बेरोज़गारी और आर्थिक अवसरों की कमी के कारण पैदा हुई हो. इसके परिणामस्वरूप उनकी कट्टरता ना सिर्फ़ उन्हें मताधिकार से वंचित करती है, बल्कि उनकी शिकायतों को भी अनसुना करने की वजह बन जाती है. दूसरी तरफ यह कट्टरता ही कथित तौर पर या फिर वास्तविकता में उन्हें हिंसात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करती है.

भारत और लोन-वुल्फ़ आतंकी हमले

फिलहाल देखा जाए तो भारत में अपेक्षाकृत लोन-वुल्फ़ आतंकवादी घटनाएं देखने को नहीं मिली हैं. हालांकि, जून 2020 की उदयपुर की घटना यह स्पष्ट तौर पर बताती है कि अब ऐसा नहीं है. इस्लामिक स्टेट (आईएस) से संबंधों की वजह से गिरफ़्तार किए गए संदिग्ध आतंकियों की बढ़ती संख्या भी स्पष्ट तौर पर यह बताती है कि अब भारत भी इस तरह की घटनाओं से अछूता नहीं है.

अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की वर्ष 2021 की आतंकवाद रिपोर्ट के मुताबिक़ आईएस से संबद्ध भारतीय मूल के 66 लड़ाके थे, जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध थी. हालांकि भारत की 180 मिलियन मुस्लिम आबादी की तुलना में यह संख्या बहुत कम और एक हिसाब से नगण्य है. फिर भी, भारतीय मूल के आईएस लड़ाकों का यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि किस प्रकार से टेक्नोलॉजी ने कट्टरता को सर्वव्यापी बना दिया है और किस प्रकार से आतंकवादी संगठन 'ग्लोकल' यानी ग्लोबल और लोकल दोनों हो गए हैं. इसके अलावा, आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों का काम करने का तरीक़ा ऐसा है कि वे लोगों की धर्म से जुड़ी कथित शिकायतों और चिंताओं का फायदा उठाकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यह आतंकी संगठन इस नैरेटिव या आख्यान को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश करता है कि वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस और 2002 के गुजरात दंगों की घटनाओं के कारण भारतीय मुसलमानों के भीतर जबरदस्त अलगाव और नाराज़गी की भावना है.

आतंकवाद-रोधी नज़रिए से देखें तो लोन-वुल्फ़ आतंकवादियों से मुक़ाबला करना बेहद चुनौतीपूर्ण है. अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत फरवरी 2015 में सरकार द्वारा आईएस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से भारत की ख़ुफ़िया और सिक्योरिटी एजेंसियों ने आतंकवाद के संदिग्धों की निगरानी बढ़ा दी है. इन एजेंसियों ने संभावित भर्तियों की जांच भी बढ़ा दी है ताकि उन्हें अरब की खाड़ी की यात्रा करने से रोका जा सके, जिसने इनके इराक़ और सीरिया जाने के लिए एक मार्ग के रूप में काम किया है.

अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की वर्ष 2021 की आतंकवाद रिपोर्ट के मुताबिक़ आईएस से संबद्ध भारतीय मूल के 66 लड़ाके थे, जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध थी. हालांकि भारत की 180 मिलियन मुस्लिम आबादी की तुलना में यह संख्या बहुत कम और एक हिसाब से नगण्य है.

हालांकि, आईएस के संदिग्धों की हाल में हुई गिरफ़्तारी से पता चलता है कि इन सभी प्रयासों के बावज़ूद, लोन-वुल्फ़ की घटनाओं का सामना करने और इन्हें रोकने के लिए बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है. इसके लिए सोशल मीडिया और साइबर स्पेस मॉनिटरिंग जैसी ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने और मज़बूत टेक्नीकल इंटेलीजेंस क्षमताओं का संचालन करने के लिए पर्याप्त संख्या में कुशल कर्मचारियों की ज़रूरत होगी. इसके साथ ही कट्टरता को रोकने और इसका मुक़ाबला करने के लिए सामुदायिक स्तर पर लोगों से मेल-जोल बढ़ाने के प्रयासों को व्यापक करने की भी ज़रूरत है. 

ज़ाहिर है कि वर्ष 2017 में गृह मंत्रालय में काउंटर टेररिज़्म एंड काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन डिवीजन और साइबर एंड सिक्योरिटी डिवीजन की स्थापना जैसे चल रहे तमाम प्रयास, नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेट्रिएट को एक नया काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन कार्यक्रम विकसित करने के लिए एक संवैधानिक और क़ानूनी अधिकार दे रहे हैं. इतना ही नहीं केरल की ऑपरेशन-पिजन जैसी सरकार की निगरानी में किए जाने वाले कउंसिलिंग पहल आदि के ज़रिए भारत सरकार ने इस ख़तरों को रोकने के लिए क़दम उठाए हैं. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि यह प्रयास काफ़ी नहीं है और इस तरह की कोशिशों को तेज़ करके ही लोन-वुल्फ़ आतंकवादी घटनाओं को रोकने में मदद मिल सकती है.

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