Author : Talal Rafi

Issue BriefsPublished on Mar 03, 2025
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Benefits Of Economic Integration Between India And Sri Lanka

भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक एकीकरण के फायदे

  • Talal Rafi

    यह आलेख भारत और श्रीलंका के आर्थिक एकीकरण का महत्व बताता है, जो दोनों देशों की तरक्क़ी और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए ज़रूरी है. दोनों राष्ट्रों के बीच गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक संबंध एक विकसित आर्थिक रिश्ते के आधार रहे हैं. यह व्यापार, निवेश और कनेक्टिविटी, यानी आपसी जुड़ाव से विकसित होता रहा है. श्रीलंका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार और निवेशक होने के नाते भारत उसके आर्थिक सुधारों में अहम भूमिका निभाता है, ख़ासतौर से श्रीलंका के हालिया आर्थिक संकट के बाद भारत का महत्व काफी बढ़ गया है. यह आलेख आर्थिक एकीकरण के पारस्परिक फायदों पर प्रकाश डालता है. इस तरह के रिश्ते में श्रीलंका जहां भारत के बड़े और विस्तृत हो रहे बाज़ार तक पहुंच सकता है, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित कर सकता है और भारत का किफ़ायती ऊर्जा समाधान का लाभ उठा सकता है. वहीं भारत इसके माध्यम से क्षेत्रीय सुरक्षा मज़बूत बना सकता है, विरोधी देशों का प्रभाव कम कर सकता है और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ा सकता है. व्यापार समझौतों का विस्तार करके, बुनियादी ढांचे व अक्षय ऊर्जा उपक्रमों में निवेश करके और समुद्री संपर्क को आगे बढ़ाकर दोनों देश अपने लिए नए अवसर तलाश सकते हैं.

Attribution:

तलाल रफी, “भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक एकीकरण के फायदे,” ओआरएफ अंक संक्षिप्त संख्या 779, फरवरी 2025, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.

परिचय

भारत और श्रीलंका दक्षिण एशिया के दो पड़ोसी देश हैं, जो ऐसे ख़ास आर्थिक रिश्ते में बंधे हुए हैं, जिसकी जड़ें संस्कृति, भूगोल और इतिहास तक फैली हुई हैं. यह संबंध दशकों में विकसित हुआ है. उनका आर्थिक एकीकरण[a] न सिर्फ़ आपसी विकास के लिए ज़रूरी है, बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) जैसे संगठनों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी काफ़ी अहम है.

भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त  बनने के लिए तैयार है और श्रीलंका अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना व स्थिर करना चाहता है, ऐसे में, दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते को मज़बूत बनाकर काफ़ी संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं. 

भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त[1] बनने के लिए तैयार है और श्रीलंका अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना व स्थिर करना चाहता है, ऐसे में, दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते को मज़बूत बनाकर काफ़ी संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं. साल 2000 में दोनों राष्ट्रों ने मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर दस्तख़त किए थे, जो व्यापार, निवेश, ऊर्जा, पर्यटन और कनेक्टिविटी में आर्थिक एकीकरण का बुनियादी स्तंभ है. चूंकि भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और एक प्रमुख निवेशक है, इसलिए नई दिल्ली की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है. टिकाऊ विकास और क्षेत्रीय स्थिरता संबंधी साझा लक्ष्यों के कारण इस आपसी सहयोग को आगे बढ़ाना और भी ज़रूरी है. हालांकि, आर्थिक एकीकरण की राह में घरेलू राजनीतिक संवेदनशीलता, व्यापार असंतुलन और प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. इसलिए, टिकाऊ और लंबे समय वाले रिश्ते के लिए इन समस्याओं का समाधान ज़रूरी है. व्यापार समझौतों का विस्तार करके, संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देकर और समुद्री संपर्क को मज़बूत बनाकर दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते को आगे बढ़ाया जा सकता है.

भारत-श्रीलंका संबंधों पर एक नज़र

भारत और श्रीलंका के बीच पुराने समय से राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ता रहा है. दोनों देशों की समान भाषा जहां उनके सांस्कृतिक संबंध को और मज़बूत बनाती है, वहीं मुक्त व्यापार समझौता से उनका आर्थिक रिश्ता और टिकाऊ बन जाता है. श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और निवेशक भारत[2] है. वहां जाने वाले सबसे अधिक पर्यटक भी भारतीय ही हैं.

दोनों देशों के बीच आपसी रिश्ता 2022 में शीर्ष पर था, जब भारत एकमात्र देश था[3], जिसने श्रीलंका की उसके लंबे समय से चले आ रहे आर्थिक संकट के सबसे बुरे दौर में सहायता की थी. मगर अब दोनों अर्थव्यवस्थाओं की वर्तमान स्थिति को देखकर मज़बूत आपसी संबंध की ज़रूरत महसूस की जाने लगी है. श्रीलंका भले ही अपने आर्थिक संकट से उबर रहा है, लेकिन कर्ज़ और जीडीपी का अनुपात 115 प्रतिशत[4] रहने के कारण, जिसमें से लगभग आधा हिस्सा विदेशी मुद्रा का है, वह बड़ी मुश्किलों से जूझ रहा है. 2008 से कर्ज़ चुकाने की रकम बढ़ जाने के कारण श्रीलंका पर भुगतान संतुलन का संकट मंडरा रहा है. ऐसे में, उसे स्थिर होने के लिए निर्यात को बढ़ाना होगा और अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुटाने होंगे. ये दोनों ऐसे काम हैं, जिसमें भारत उसकी बहुत मदद कर सकता है.

भारत, जो अब सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है[5], 2030 तक दुनिया की शीर्ष तीन आर्थिक ताकतों में शामिल हो सकता है. ऐसी स्थिति में वह श्रीलंका की खुलकर मदद कर सकता है. इसके बदले में, श्रीलंका में स्थिरता बढ़ेगी, जो भारत के हित में होगा. ऐसा नहीं करने पर भारत के विरोधी देशों से श्रीलंका के प्रभावित होने की आशंका बढ़ सकती है.

श्रीलंकाई समाज का एक वर्ग भारत और श्रीलंका के आर्थिक एकीकरण का विरोध भी कर रहा है. दरअसल, श्रीलंकाई सरकारों ने भले ही गहरे आर्थिक रिश्तों में रुचि[6] दिखाई है, लेकिन स्थानीय उद्योगपतियों के विरोध से बात आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि उनको लगता है कि उत्पादों के मुक्त प्रवाह से उनका कारोबार प्रभावित हो सकता है. श्रीलंका की अत्यधिक संरक्षित अर्थव्यवस्था[7] भी (जो ज़रूरी नहीं कि भारत के विरोध में हो, पर सामान्य रूप से अधिक खुली अर्थव्यवस्था के विरोध में है) स्थानीय व्यापारियों की नाराज़गी बढ़ाने का काम करती है. वहां की सरकार को 2018 में तब भी विरोध का सामना करना पड़ा था, जब उसने सिंगापुर के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया था[8].

श्रीलंका के कुछ लोग भारत के आकार को लेकर भी चिंतित हैं. उन्हें डर है कि अपने इस पड़ोसी देश पर उनकी निर्भरता बढ़ जाएगी. हालांकि, आर्थिक एकीकरण के फ़ायदों का प्रभावी ढंग से प्रचार करके इन चिंताओं को कम किया जा सकता है. श्रीलंका के आर्थिक संकट और विदेशी कर्ज़ के भारी बोझ को देखते हुए, भारत के साथ अधिक से अधिक जुड़ाव उसकी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने और भविष्य में वैश्विक संस्थानों की कमियों को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है.

श्रीलंका को मिलने वाले लाभ

आर्थिक एकीकरण से भारत के साथ श्रीलंका को अधिक निर्यात करने का मौका मिलेगा, जिससे उसे अपने व्यापार घाटे और कम क्रेडिट रेटिंग[9] के कारण ऊंची ब्याज दरों पर मिले विदेशी कर्ज़ को कम करने में मदद मिलेगी. भले ही, मुक्त व्यापार समझौते का विस्तार करने के बाद कुछ उद्योगों पर कुछ समय के लिए नकारात्मक असर पड़ेगा(b),  लेकिन लंबे समय में उसे इसका फ़ायदा ही मिलेगा, क्योंकि बढ़ते भारतीय बाजार के लिए प्रतिस्पर्धी उत्पाद बनाकर श्रीलंका के उद्योग लाभ कमा सकते हैं. भारत चूंकि पहले से ही श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, इसलिए आर्थिक एकीकरण से भारत के मध्यम वर्ग की बढ़ती खरीदारी-क्षमता का लाभ श्रीलंकाई कंपनियों को मिलेगा. उल्लेखनीय है कि 2030 तक भारत के मध्यम वर्ग की आबादी बढ़कर 70 करोड़[10] होने का अनुमान है. साल 2000 के बाद से, जब भारत और श्रीलंका के बीच मुक्त व्यापार समझौता लागू हुआ, भारत निर्यात किए जाने वाले 60 फीसदी श्रीलंकाई उत्पादों को इसका लाभ[11] मिला है, जबकि श्रीलंका निर्यात किए जाने वाले महज पांच प्रतिशत भारतीय उत्पाद ही इससे लाभान्वित हुए हैं. भारत के साथ श्रीलंका के व्यापार घाटे के बावजूद, FTA का सबसे अधिक फ़ायदा श्रीलंका को ही हो रहा है.

हालांकि, इस राह में चुनौतियां भी कई हैं, जैसे- निर्यात पर भारतीय कोटा[12]. कपड़े-निर्यात पर 80 लाख पीस कोटा की सीमा और काली मिर्च पर प्रतिबंध के कारण श्रीलंका के ये बड़े उद्योग भारत की बढ़ती मांग से पूरी तरह से फ़ायदा नहीं उठा पा रहे. दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने से श्रीलंका के उपभोक्ताओं को भी लाभ मिल सकता है, क्योंकि भारत से आयात सस्ता[13] पड़ेगा. चीनी और आलू जैसे कृषि उत्पाद मिसाल के तौर पर गिनाए जा सकते हैं. इससे आर्थिक संकट से परेशान श्रीलंकाई लोगों द्वारा जीवन-यापन पर किया जाने वाला ख़र्च घट सकेगा और श्रीलंका को प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों में अधिक संसाधन मुहैया कराने में मदद मिलेगी, जिससे निर्यात को और बढ़ावा मिलेगा.

भारत और श्रीलंका के बीच ‘आर्थिक और तकनीकी सहयोग समझौता’ व्यापार, ख़ास तौर से सेवा क्षेत्र में निर्यात बढ़ाएगा. श्रीलंका की आबादी काफ़ी अधिक है और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां से तकनीकी काम आउटसोर्स[14] करती हैं. इसका इस्तेमाल भारत की सेवा आपूर्ति शृंखला में हो सकता है, जो श्रीलंका के लिए सुखद स्थिति रहेगी. यह मध्यम से लंबे समय में श्रीलंका के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे सेवा क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा होंगी. इससे अगले पांच वर्षों में श्रीलंका के IT कर्मियों की संख्या 2,00,000 तक बढ़ाने संबंधी श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के लक्ष्य[15] को पाने में भी मदद मिलेगा.

अपने आर्थिक संकट को दूर करने के लिए श्रीलंका को बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की ज़रूरत है, विशेष तौर पर यह देखते हुए कि उसका विदेशी मुद्रा कर्ज़ बढ़कर उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का आधा हो चुका है. चूंकि अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का उतना ध्यान श्रीलंका पर नहीं है, इसलिए भारत महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए एक स्वाभाविक साझेदार के रूप में सामने आता है. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)[16] जैसे क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते में शामिल होने की श्रीलंका की कामना और थाइलैंड के साथ 2024 में मुक्त व्यापार समझौता[17]  बताता है कि निर्यात-केंद्रित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वह इच्छा रखता है. भारतीय व्यवसाय जहां श्रीलंका को निवेश के एक अच्छे अवसर के रूप में देखेंगे, वहीं श्रीलंका उनका इस्तेमाल अन्य बड़े बाजार तक पहुंचने में कर सकेगा. व्यापार योग्य क्षेत्रों में इस तरह का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश महत्वपूर्ण साबित होगा, क्योंकि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था गैर-व्यापार योग्य क्षेत्रों पर निर्भर[18] रही है, जिसका नुकसान उसे आर्थिक विफलता के रूप में उठाना पड़ रहा है. HCL जैसी बड़ी भारतीय कंपनियों के निवेश से रोजगार बढ़ने और कौशल व प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान[19] में मदद मिल सकती है.

भारत ने पहले ही श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह में निवेश[20] किया हुआ है और पूर्व में स्थित त्रिंकोमाली बंदरगाह में अपनी रुचि दिखाई है. भारत इन निवेशों को लंबे समय के लिए आकर्षक और रणनीतिक मानता है. त्रिंकोमाली दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा प्राकृतिक बंदरगाह है, जिसे लंबे समय के मद्देनज़र एक औद्योगिक बंदरगाह के रूप में विकसित[21] किया जा रहा है. वहीं, कोलंबो को भी, जहां पहले से ही भारतीय जहाज बड़ी संख्या में अस्थायी तौर पर रुकते हैं, एक मध्यवर्ती बंदरगाह होने[22] के कारण अपने प्रतिस्पर्धी मूल्य-निर्धारण और रणनीतिक स्थान का लाभ मिलता है. जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे कोलंबो जैसे बंदरगाहों के क्षमता-विस्तार की मांग उठेगी. इससे श्रीलंकाई बंदरगाहों में निवेश बढ़ेगा, जो दोनों देशों के लिए समान रूप से फ़ायदेमंद साबित होगा.

श्रीलंका की आबादी काफ़ी अधिक है और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां से तकनीकी काम आउटसोर्स  करती हैं. इसका इस्तेमाल भारत की सेवा आपूर्ति शृंखला में हो सकता है, जो श्रीलंका के लिए सुखद स्थिति रहेगी. 

श्रीलंका इन निवेशों का लाभ क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स हब बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में उठा सकता है. इससे उसे ज़रूरी राजस्व मिल सकेगा, क्योंकि IMF कार्यक्रम के तहत सरकार राजकोषीय समेकन[23] (लंबे समय तक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी ख़ज़ाने का ज़िम्मेदारीपूर्वक प्रबंधन) की कोशिशों में है. भारतीय उत्पादों के लिए मध्यवर्ती बंदरगाह के रूप में काम करने से श्रीलंका की छवि तेज बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में बन सकती है. वह बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपने बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे का विस्तार कर भी रहा है. साल 2026 तक कोलंबो वेस्ट इंटरनेशनल टर्मिनल परियोजना पूरी होने[24] की उम्मीद है, जबकि इसके दूसरे चरण के लिए योजनाएं बन रही हैं.

श्रीलंका को पर्यटन में भी सबसे अधिक कमाई भारतीय पर्यटकों से होती है, जिस कारण नए श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने इसे अगले कुछ वर्षों में विदेशी मुद्रा आय बढ़ाने में ख़ासा महत्वपूर्ण माना है. भारत का मध्यम वर्ग तेजी से बढ़ रहा[25] है. अगर इस आबादी के छोटे हिस्से को भी श्रीलंका अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा, तो उसकी अर्थव्यवस्था को खूब लाभ हो सकता है. 2019 में लोनली प्लैनेट ने श्रीलंका को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थल[26] माना था, इसलिए उसके पास आतिथ्य क्षेत्र में भारतीय निवेश को लुभाने, पूंजी जुटाने, प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल करने और रोजगार-निर्माण की क्षमता है. इससे श्रीलंकाई और भारतीय शहरों के बीच हवाई सेवा का भी विस्तार हो सकता है, जो क्षेत्रीय यात्रा केंद्र के रूप में श्रीलंका को एक नया रूप दे सकता है.

श्रीलंका को भारत से अपने राष्ट्रीय बिजली ग्रीड जोड़ने का भी लाभ मिलेगा, क्योंकि दुनिया में सस्ती बिजली मुहैया कराने वाले चंद देशों में भारत[27] भी शामिल है. पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के कार्यकाल (2022-2024) के दौरान इस पर सार्थक बातचीत भी हुई थी. इस योजना पर आगे बढ़ने से श्रीलंका को सस्ती बिजली पाने और वैश्विक ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव से कम से कम प्रभावित होने में मदद मिल सकेगी. अगले कुछ वर्षों में यह ग्रिड कनेक्टिविटी श्रीलंका को ऊर्जा निर्यातक बनाने में मदद कर सकती है, क्योंकि इससे उसकी अक्षय ऊर्जा क्षमता का पूरा इस्तेमाल होगा, विशेषकर पवन ऊर्जा का, क्योंकि विश्व बैंक के मुताबिक[28] श्रीलंका स्थानीय मांग से अधिक पवन ऊर्जा पैदा करता है. ऐसे में, पर्याप्त निवेश से श्रीलंका अपनी बची हुई बिजली को भारत में तेजी से विस्तार पाते दक्षिणी राज्यों को बेच सकता है. नेपाल और बांग्लादेश से सीखकर, जिन्होंने पहले ही अपने राष्ट्रीय बिजली ग्रिड को भारत के साथ जोड़ रखा है, श्रीलंका ऊर्जा संकट के दौरान भी लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है और ऊर्जा निर्यात करके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा कमा[29]  सकता है.

श्रीलंका की अत्यधिक संरक्षित अर्थव्यवस्था ने ऐसा घरेलू माहौल तैयार किया है, जिसमें कई उद्योग आज भी खुद में सिमटे हुए हैं और उदासीन हैं. 

श्रीलंका की अत्यधिक संरक्षित अर्थव्यवस्था ने ऐसा घरेलू माहौल तैयार किया है, जिसमें कई उद्योग आज भी खुद में सिमटे हुए हैं और उदासीन हैं. प्रतिस्पर्धी आयातों की कमी आमतौर पर इनोवेशन, यानी नवाचार को प्रभावित करती है और स्थानीय उद्योग को वैश्विक स्तर पर मुक़ाबला करने लायक क्षमता हासिल करने से रोकती है. इस कारण से भी श्रीलंका निर्यात में ऐतिहासिक रूप से फिसड्डी रहा है. भारत के साथ अधिक व्यापार के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने से ऐसे कुछ उद्योग जरूर बंद हो जाएंगे, जो बेहतर उत्पादन नहीं कर रहे या मुकाबले में नहीं हैं, पर श्रीलंका अपने सीमित संसाधनों का इस्तेमाल अधिक प्रतिस्पर्धी लाभ वाले नए उद्योग विकसित करने में कर सकेगा, जिससे उत्पादों और सेवाओं से जुड़े श्रीलंकाई निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे.

भारत निर्यात करने में श्रीलंका को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें से कुछ हैं- कमजोर औद्योगिक आधार, सीमित उत्पादों का निर्यात, संरक्षित अर्थव्यवस्था और बुजुर्ग होती आबादी। ये कारक श्रीलंका के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश करने में सक्षम वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कठिन बना देते हैं. हालांकि, रणनीतिक योजना बनाकर श्रीलंका आने वाले दिनों में इन कमियों को दूर कर सकता है. वह उन ख़ास उत्पादों के उत्पादन में अपना ध्यान लगा सकता है, जिसमें उसे तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ मिलता है, जैसे कि चाय और कपड़ा में. इसके अलावा, श्रीलंका दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की तरह भारत के विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में विशेष उत्पाद व सेवाएं मुहैया करके भारत के साथ अंतर-उद्योग व्यापार बढ़ा सकता है. यह रणनीति तैयार माल के निर्यात की तुलना में अधिक व्यावहारिक है. श्रीलंका के विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में निवेश के लिए भारतीय कंपनियों को आकर्षित करना एक और व्यावहारिक रणनीति है. श्रीलंका भारतीय कंपनियों के लिए उत्पादन आधार बन सकता है, जिनके बने-बनाए वितरण नेटवर्क का फ़ायदा उठाकर वह भारत को वस्तुएं व सेवाएं फिर से निर्यात कर सकता है.

यह सही है कि श्रीलंका का आर्थिक सुधार उसकी आर्थिक नीतियों पर निर्भर करेगा, लेकिन भारत के साथ संबंध उसे अपने लक्ष्य तक जल्द पहुंचने में मदद करेंगे. श्रीलंका द्विपक्षीय ढांचों पर विचार कर सकता है, जैसे कि दोनों देशों के बीच एक आर्थिक सहयोग परिषद की स्थापना करना, जो नीतियों के आदान-प्रदान और आर्थिक शासन को आगे बढ़ाए. दोनों देशों के नीति-निर्माता और अर्थशास्त्री नियमों में सुधार के लिए मिल-बैठ सकते हैं, ताकि भारत से श्रीलंका में व्यापार और निवेश बढ़े. प्रमुख मंत्रालयों, केंद्रीय बैंकों और थिंक टैंकों के प्रतिनिधियों को मिलाकर गठित एक संयुक्त कार्य बल, यानी ज्वाइंट टास्क फ़ोर्स निवेश और व्यापार से जुड़ी नीतियां तैयार कर सकता है, ताकि निवेश और तकनीकी ज्ञान को आकर्षित करने में मदद मिल सके. यह कार्य बल नीतियों में एकरूपता लाने, तकनीकी सहयोग को आगे बढ़ाने और ज्ञान के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के लिए आईटी और कृषि जैसे ख़ास-ख़ास क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ाने के रास्ते खोज सकता है. थिंक टैंक, विश्वविद्यालयों और नीति-निर्धारक मंचों के माध्यम से भारतीय और श्रीलंकाई नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों और बड़े कारोबारियों के नियमित आने-जाने से एक-दूसरे से सीखने में मदद मिल सकेगी और भारत के विकास से प्रोत्साहित होकर श्रीलंका भी सफल नीतियों को लागू करके आगे बढ़ सकेगा.

भारत को मिलने वाले फायदे

श्रीलंका के साथ आर्थिक एकीकरण आपसी संबंधों को मज़बूत बना सकता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और कूटनीति में भारत को लाभ होगा. श्रीलंका के साथ मज़बूत संबंध भारत की ‘पड़ोस प्रथम’ नीति के लिए काफ़ी अहम है. बेशक, एक छोटा देश होने के कारण श्रीलंका का सीमित वैश्विक प्रभाव है, लेकिन यह देश SAARC और BIMSTEC  जैसे क्षेत्रीय संगठनों मे काफ़ी अहमियत रखता है. यह भारत को इन मंचों पर समर्थन करके उसकी आवाज मज़बूत करता है, जिससे क्षेत्र में भारत की ताक़त बढ़ती है. इस साल की शुरुआत में, श्रीलंका के विपक्षी नेता ने कहा भी था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य[30] बनाना चाहिए.

श्रीलंका के साथ आर्थिक एकीकरण भारतीय निवेश बढ़ाएगा, जिससे आपसी व्यापार, आर्थिक स्थिरता और बुनियादी ढांचे के विकास में मदद मिलेगी. भारत समर्थित अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं, जिनमें सामपुर सौर ऊर्जा संयंत्र भी शामिल है और दोनों देशों के बिजली ग्रिड को जोड़ने की योजनाओं को इसमें गिना जा सकता है. 

श्रीलंका के साथ आर्थिक एकीकरण भारतीय निवेश बढ़ाएगा, जिससे आपसी व्यापार, आर्थिक स्थिरता और बुनियादी ढांचे के विकास में मदद मिलेगी. भारत समर्थित अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं, जिनमें सामपुर सौर ऊर्जा संयंत्र भी शामिल है और दोनों देशों के बिजली ग्रिड को जोड़ने की योजनाओं को इसमें गिना जा सकता है. भारत कांकेसंथुराई बंदरगाह का विस्तार[31] करना चाहता है और तमिलनाडु में नागपट्टिनम से श्रीलंका के त्रिंकोमाली तक एक तेल पाइपलाइन बनाने[32] की योजना बना रहा है. ये प्रयास त्रिंकोमाली को बंगाल की खाड़ी में एक रणनीतिक केंद्र के रूप में स्थापित कर सकते हैं. इसके अलावा,  विनिर्माण[33], बैंकिंग और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में भारतीय निवेश से श्रीलंका में भारत का वाणिज्यिक प्रभाव बढ़ेगा और सॉफ्ट पावर के रूप में इसकी ताक़त में वृद्धि होगी, क्योंकि कोलंबो नई दिल्ली की व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का समर्थन करता है.

भारत और श्रीलंका के बीच मज़बूत आर्थिक सहयोग होने से क्षेत्र में विरोधी ताकतों के प्रभाव को भी संतुलित करने में मदद मिलेगी. इस तरह का मज़बूत रिश्ता भारत को अपने पड़ोस में विरोधी शक्तियों की बढ़ती मौजूदगी के खिलाफ एक रक्षात्मक माहौल बनाने में सहायता करता है. पिछली श्रीलंकाई सरकारें (2005-2015 और 2019-2022) चीन की ओर झुकी हुई थीं, जो आज भी श्रीलंका का सबसे बड़ा कर्ज़दाता देश है. इस कारण चीन का यहां महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव है. हंबनटोटा बंदरगाह उसकी ‘कर्ज़ देकर हिस्सेदारी हड़पने की नीति’ का एक बड़ा उदाहरण है, जिसे एक चीनी सरकारी कंपनी ने 99 वर्षों के लिए पट्टे पर हासिल[34] कर लिया है.

भारत के लिए श्रीलंका महत्वपूर्ण है, ख़ास तौर पर बांग्लादेश में भारत के अनुकूल सरकार के पतन और मालदीव में चीन समर्थक नेता के चुनाव जीतने जैसे हालिया घटनाक्रमों को देखते हुए. 2022 में श्रीलंका की कर्ज़ चुकाने में नाकामी और हाल-फिलहाल मालदीव का दिवालिया[35] होने के कगार पर पहुंचना भी चिंताजनक है, क्योंकि आर्थिक रूप से कमज़ोर पड़ोसी देश भारत-विरोधी ताकतों से प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए, एक स्थिर और आर्थिक रूप से विकसित श्रीलंका बनाना भारत के हित में है.

भारत को एक मज़बूत वैश्विक आर्थिक सॉफ्ट पावर बनने के लिए अधिक नौसैन्य ताक़त की ज़रूरत है. इतिहास बताता है कि शाही ब्रिटेन और अमेरिका वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसलिए भी हावी हो सके, क्योंकि वे समुद्र में ताक़तवर थे. भारत का दक्षिण क्षेत्र दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में एक है, जहां से यूरोप, मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच तेल और माल का खूब परिवहन किया जाता है. श्रीलंका एकमात्र ऐसा देश है, जो हिंद महासागर में स्थित है और जहां विरोधी ताकतें अपना प्रभाव बढ़ा सकती हैं. इससे इस क्षेत्र में भारत के हितों को चोट पहुंच सकती है. श्रीलंका के साथ आर्थिक एकीकरण यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि वहां की कोई भी सरकार या तो भारत-समर्थक रहे या कम से कम पक्षपाती न हो. भारत की आपूर्ति शृंखला के लिए हिंद महासागर पर नियंत्रण ज़रूरी है, क्योंकि हमारा 80 प्रतिशत से अधिक तेल आयात[36] और 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार इसी रास्ते से होता है.

व्यापार जहां श्रीलंका के विकास को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है, वहीं आर्थिक रूप से स्थिर दक्षिणी पड़ोसी बनाने की भारत की रणनीति को आगे बढ़ा सकता है. यहां आसियान की चर्चा ज़रूरी है, जो एक पश्चिमी समर्थक संगठन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे चीन के साथ बढ़ते कारोबारी संबंधों के कारण उसने तटस्थ रुख़ अपना लिया. बढ़ते व्यापार ने आसियान देशों में स्थानीय कारोबार में स्वार्थ पैदा किए, जिससे वे चीन के साथ मज़बूत रिश्तों की वकालत करने लगे. इसी तरह, भारत और श्रीलंका के बीच व्यापार बढ़ाने से श्रीलंका के बड़े कारोबारी भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने की आवाज़ बुलंद कर सकते हैं.

आर्थिक विकास और एकीकरण के लिए ऊर्जा भी महत्वपूर्ण है. भूटान-भारत के बीच जिस तरह की ऊर्जा साझेदारी[37] है, वैसी ही साझेदारी यहां बनाने से भारत को फ़ायदा हो सकता है. चूंकि दक्षिण भारत का तेजी से विस्तार हो रहा है और तमिलनाडु दूसरा सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है, इसलिए भारत की ऊर्जा मांग उल्लेखनीय रूप से बढ़ने वाली है. श्रीलंका की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करना और उसे विकसित करना भारत के हित में होगा, ताकि वह लंबे समय तक श्रीलंका से बिजली आयात कर सके. इससे भारत की उस ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी, जो हिंद महासागर में विभिन्न बाधाओं को पार करके यहां पहुंचती है और जिसको अक्सर दूसरी विश्व शक्तियां नियंत्रित करती रहती हैं.

निष्कर्ष

भारत और श्रीलंका का आर्थिक एकीकरण टिकाऊ विकास, क्षेत्रीय स्थिरता और बेहतर आपसी संबंधों को आगे बढ़ाएगा. इस तरह की पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक संबंधों में पहले से रही है. जी20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त बनने को तैयार भारत फ़िलहाल अच्छी स्थिति में है कि वह श्रीलंका को अपनी आर्थिक चुनौतियों से उबरने में मदद करे. इसके बदले में, श्रीलंका उसे रणनीतिक जगह दे सकता है और अक्षय ऊर्जा, लाजिस्टिस्क, यानी माल आदि की ढुलाई और सेवाओं का एक केंद्र बनकर भारत की मदद कर सकता है. इससे भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक उम्मीदें पूरी होने में मदद मिलेंगी.

श्रीलंका की बात करें, तो भारत के साथ आर्थिक एकीकरण उसके लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश व्यापार असंतुलन और बड़े विदेश कर्ज़ जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है. भारत के विशाल और बढ़ते बाजार के साथ व्यापार के अवसर बढ़ने से श्रीलंकाई व्यवसायों को अपने निर्यात बढ़ाने और लाभ कमाने का मौका मिलेगा, जिससे उनको वैश्विक बाजार में पहुंचने में मदद मिलेगी. प्रौद्योगिकी, अक्षय ऊर्जा और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में भारत का निवेश श्रीलंका को विदेशी मुद्रा दिलाएगा, वहां रोजगार पैदा करेगा और कौशल विकास में मददगार होगा. इसके अलावा, भारत का सस्ता ऊर्जा समाधान और बिजली ग्रिड का जुड़ाव श्रीलंका को अपनी ऊर्जा चुनौतियों से लड़ने में मदद करेगा. लंबे समय में, सही निवेश के साथ, श्रीलंका अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता का लाभ उठाते हुए भारत के लिए ऊर्जा निर्यातक देश बन सकता है.

भारत के नजरिये से देखें, तो श्रीलंका के साथ एक मज़बूत आर्थिक एकीकरण भारत के रणनीतिक हित में है. अपने दक्षिणी भाग को स्थिर बनाकर भारत ‘पड़ोस प्रथम’ नीति को आगे बढ़ा सकता है और अन्य वैश्विक ताक़तों का प्रभाव घटा सकता है. समुद्री और ऊर्जा क्षेत्र में जुड़ाव व सहयोग बढ़ने से क्षेत्रीय सुरक्षा मज़बूत होगी और हिंद महासागर में हैसियत बढ़ाने की भारत की जरूरतें पूरी हो सकेंगी. इसके अलावा, श्रीलंका के उद्योगों और बुनियादी ढांचे में भारतीय निवेश से भारतीय व्यवसायों की अन्य बाजार तक पहुंच बढ़ सकेगी, जिससे विश्व बाजार में स्पर्धा करने की उनकी क्षमता बढ़ जाएगी.

भारत के नजरिये से देखें, तो श्रीलंका के साथ एक मज़बूत आर्थिक एकीकरण भारत के रणनीतिक हित में है. अपने दक्षिणी भाग को स्थिर बनाकर भारत ‘पड़ोस प्रथम’ नीति को आगे बढ़ा सकता है और अन्य वैश्विक ताक़तों का प्रभाव घटा सकता है. समुद्री और ऊर्जा क्षेत्र में जुड़ाव व सहयोग बढ़ने से क्षेत्रीय सुरक्षा मज़बूत होगी और हिंद महासागर में हैसियत बढ़ाने की भारत की जरूरतें पूरी हो सकेंगी. 

इन सभी फायदों के बावजूद, आर्थिक एकीकरण का पूरा फ़ायदा दोनों देश तभी उठा सकते हैं, जब इसकी राह की चुनौतियों को वे दूर कर सकें. व्यापार असंतुलन, प्रमुख क्षेत्रों में मुक़ाबला और दोनों देशों में घरेलू राजनीतिक चुनौतियां इस एकीकरण की प्रक्रिया को धीमा बन सकती हैं. इसके अलावा, श्रीलंका को अपनी अत्यधिक संरक्षित अर्थव्यवस्था में सुधार करना होगा, ताकि वैश्विक बाजार में वह मुक़ाबले में आ सके और नवाचार को बढ़ावा दे सके, क्योंकि लंबे समय तक स्थिरता पाने के लिए ऐसा करना काफ़ी ज़रूरी है. इन मुश्किलों को दूर करने के लिए कूटनीतिक कौशल, आपसी समझ और प्रस्तावित आर्थिक और तकनीकी सहयोग जैसे समझौतों पर आगे बढ़ने की ज़रूरत होगी.

इसके बाद, व्यापार समझौतों के विस्तार, अक्षय ऊर्जा में संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने और बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी व पर्यटन में निवेश बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए. समुद्री संपर्क को मज़बूत करना और क्षेत्रीय लॉजिस्टिक हब के रूप में श्रीलंका के रणनीतिक महत्व का लाभ उठाने से दोनों देशों के बीच संबंध और मज़बूत बनेंगे. इसके अलावा, पर्यटन, शैक्षिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से लोगों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने से एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ेगा, जिससे भारत और श्रीलंका के बीच साझेदारी और बढ़ेगी.

साफ है, भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक एकीकरण न सिर्फ दोनों देशों के लिए अच्छा है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि का भी बुनियादी आधार है. इसकी राह की मुश्किलों को दूर करके और साझा हितों का लाभ उठाकर, दोनों देश एक स्थायी साझेदारी बन सकते हैं. भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक एकीकरण व सहयोग दक्षिण एशिया में एक मिसाल क़ायम कर सकता है और आर्थिक व रणनीतिक लाभ दिला सकता है, जिससे दोनों देशों और इस पूरे क्षेत्र को फ़ायदा होगा.

ENDNOTES:

(a) इस आलेख में ‘आर्थिक एकीकरण’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जिसका उपयोग व्यापार बाधाओं को दूर करने, पूंजी प्रवाह से जुड़े प्रतिबंधों को कम करके निवेश में सुधार करने और निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए किया जाता है. इसमें व्यापार और निवेश से जुड़े विवादों को दूर करने के लिए नीतियों का निर्माण और संस्थानों की स्थापना भी शामिल है. यह तुलनात्मक लाभ वाले उद्योगों से लाभ उठाने पर जोर देता है, ताकि अच्छी कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण सामान और सेवाएं मिल सकें. आर्थिक विकास और तरक्क़ी को बढ़ावा मिलने से व्यवसायों और उपभोक्ताओं, दोनों को लाभ होता है.

(b) भारत और श्रीलंका के बीच मुक्त व्यापार का फ़ायदा चावल, दुग्ध और कपड़े जैसे क्षेत्रों में श्रीलंकाई व्यवसाय को हो सकता है, क्योंकि श्रीलंका इन क्षेत्रों में भारत के साथ मुक़ाबला नहीं कर सकता और भारत इन उत्पादों का उत्पादन सस्ती कीमतों पर कर सकता है.

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[5]  “India Poised to be Third Largest Economy by 2030, Rising Population Presents Challenges, Says S&P,” Economic Times, October 17, 2024,

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[24]Sri Lanka Eyes Regional Economic Boom to Transform Ports, Marine Industries,” Daily FT, November 23, 2024.

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[32] Maheesha Mudugamuwa, “Multi Product Oil Pipeline: Sri Lanka Awaits India’s Response,” The Morning, August 25, 2024.

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[34]  Kiran Stacey, “China Signs 99 Year Lease on Sri Lanka’s Hambantota Port,” Financial Times, December 11, 2017.

[35] Talal Rafi, “A Developed Sri Lanka is in India’s Interest,” The Wire, December 15, 2024.

[36] Bank of Baroda, “India’s Crude Import Story So Far,” March 1, 2024.

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Talal Rafi

Talal Rafi

Talal Rafi is an Economist and an Expert Member of the World Economic Forum. He is a regular columnist for the International Monetary Fund and ...

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