Author : Ramanath Jha

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Published on Oct 08, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हो रही वृद्धि ने सरकार को व्यावहारिक परिवर्तन, मज़बूत प्रवर्तन एवं बेहतर बुनियादी ढांचों को प्रमुख समाधान के तौर पर प्राथमिकता देने के लिये प्रेरित करने का काम किया है.

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या अचानक से इतनी बढ़ क्यों रही है?

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इस वर्ष के विश्व सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान, केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश की सड़कों पर होने वाली यातायात उल्लंघन की घटनाओं के मद्देनज़र अपनी हताशा व्यक्ति की है. ये बढ़ोत्तरी मोटर वाहन अधिनियम 2019 में किए गए संशोधनों के बाद देखा गया है. इस संशोधन में पूर्व निर्धारित जुर्माने की रकम को बढ़ाये जाने के बाद दर्ज किया गया है. एक तरफ जहां, इस संशोधन से व्यापक यातायात उल्लंघन में वृद्धि पर रोक लगने की उम्मीद थी, वहीं दूसरी तरफ पाया ये गया कि इन सभी बदलावों के बाद भी उल्लंघन की घटनाओं में किसी प्रकार की कोई महत्वपूर्ण कमी नहीं देखी जा रही है. इसके बजाय, 2019 की तुलना में सड़क दुर्घटनाओं में निरंतर वृद्धि ही हुई है. बढ़ाए गए जुर्माने की राशि द्वारा मनचाहा परिणाम नहीं मिलने की स्थिति ने परिवहन मंत्री को इस बात से तो पूरी तरह आश्वस्त कर दिया है की मात्र जुर्माने की राशि में इज़ाफा करने भर से इस मुद्दे को निपटने में आंशिक मदद ही मिल पाएगी.     

इस वर्ष के विश्व सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान, केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश की सड़कों पर होने वाली यातायात उल्लंघन की घटनाओं के मद्देनज़र अपनी हताशा व्यक्ति की है

अब वे ऐसा मानते हैं कि इसके बेहतर परिणाम पाने के लिए हमें सामाजिक एवं शैक्षणिक संगठनों की मदद लेनी चाहिये और उसके ज़रिये लोगों में व्यवहार परिवर्तन करना चाहिये. अपने प्रस्ताव में उन्होंने कहा की 2022 में, कुल 50,029 लोगों के हेलमेट के इस्तेमाल नहीं करने की वजह से, अपनी जान गंवाने के बाद इन दो पहिया वाहन निर्माता कंपनियों को वाहन खरीदने वाले लोगों को रियायती दरों पर हेलमेट दिया जाना चाहिये है. परिवहन मंत्री को ये बात भी समझ में आयी कि भारतीय सड़कों पर चलने वाले लोगों में ‘लेन अनुशासन’ की कमी, नियंत्रित एक्सप्रेसवे पर अधिकतम गति सीमा में वृद्धि को रोकने के लिए कहीं न कहीं ज़िम्मेवार है.    

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MORTH) के 2023-24 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट 2022 के कैलेंडर वर्ष 2022 में घटे दुर्घटनाओं के आंकड़े साझा करती है. इस वर्ष के दौरान 461,312 दुर्घटनाओं में 443,366 लोग घायल हुए और कुल 168,491 लोग मारे गए. वर्ष 2005 ने कुल 94,968 मौतें दर्ज की हैं. 17 सालों में सड़क हादसे में होने वाली मौतों में 177 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई है. यह प्रवृत्ति वैश्विक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के बिल्कुल विपरीत थी, जिसमें काफी गिरावट देखी गई. MORTH के आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कुल मिलाकर जितनी मौतें हुई हैं, उनमें दुपहिया वाहनों की वजह से कुल 44.5 प्रतिशत मौतें हुईं हैं. इनमें जान गंवाने वाले पैदलयात्री 19.5 प्रतिशत, हल्के मोटर वाहन से मरने वाले 12.5 प्रतिशत, भारी वाहनों से मरने वाले लोगों की संख्या 6.3 प्रतिशत, ऑटोरिक्शा से मरने वाले 3.9 प्रतिशत, साइकिल से 2.9 प्रतिशत और बसों से मरने वाले लोगों की संख्या 2.4 प्रतिशत थी, जबकि बाकी अन्य वजहों से मरने वाले कुल 8 प्रतिशत थे. 

राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेस-वे में ही 39.2 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं और 36.2 प्रतिशत मौतें दर्ज हुई हैं. राज्य राज्यमार्गों पर घटी कुल 23.1 प्रतिशत दुर्घटनाओं में 24.3 प्रतिशत मौतें हुई है. बाकी अन्य सड़कों पर हुई 43.9 प्रतिशत दुर्घटनाओं में 39.4 प्रतिशत मौतें हुई है. सबसे ज्य़ादा दुर्घटनाओं की संख्या तमिलनाडु में दर्ज की गई है, वहीं उत्तरप्रदेश में दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है, और वर्ष 2022 में होने वाली कुल 72.3 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं और 72.1 प्रतिशत के दर से होने वाली कुल मौत के लिए, सड़कों पर ओवर स्पीडिंग प्रमुख तौर पर ज़िम्मेदार है. गलत दिशा में वाहन चलाने की वजह से 5.4 प्रतिशत दुर्घटनाएं होती है. आश्चर्यजनक रूप से, 67 प्रतिशत दुर्घटनाएं सीधी सड़कों पर हुई है. घुमावदार, खड़ी, और गड्ढों वाली सड़कों पर महज़ 13.8 प्रतिशत घटनाएं घटी है. दुर्भाग्यवश, 66.5 प्रतिशत घटी दुर्घटनाओं में   18-45 वर्षों की उम्र सीमा के बीच के लोग शिकार रहे हैं, और वे लोग जो 18-60 वर्ष के कामकाजी समूह से संबंधित है, उनका इन सड़क दुर्घटनाओं में हताहत होने का प्रति 83.4 रहा है.  

MORTH रिपोर्ट, भारत के 50 मिलियन प्लस शहरों में होनेवाली दुर्घटनाओं के आँकड़े भी उपलब्ध कराती है. उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, जो सड़क दुर्घटनाएं होती हैं उनमें से कुल 16.6 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं और कुल 10.1 प्रतिशत सड़क पर होने वाली मौतें इन्हीं 10 मिलियन प्लस की आबादी वाले शहरों में होती है. पिछले कुछ वर्षों की तुलना में ये उल्लेखनीय रूप से कुछ ज्य़ादा ही थे. इसके अलावा, सभी मिलियन प्लस (लाखों की आबादी) वाले शहरों में सड़क दुर्घटनाओं का योगदान 46 प्रतिशत है. इंदौर और जबलपुर को पीछे छोड़ते हुए, दिल्ली ने होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है. अमृतसर, धनबाद और जमशेदपुर ने सबसे कम सड़क दुर्घटनाओं को सूचिबद्ध किया है. इन दुर्घटनाओं की वजह व्यापक तौर पर देशभर में कमोबेश एक जैसी प्रवृत्ति से मेल खाती है. हालांकि, देश की कुल आबादी के 40 प्रतिशत लोग इन मिलियन प्लस शहरों में ही बसे हैं, इस कारण शहरी सड़कें ज्य़ादा सुरक्षित बन कर उभर रहीं हैं.     

लाखों की आबादी वाले शहरों में सड़क दुर्घटनायें ज़्यादा

प्रति वर्ष विश्व स्वास्थ्य संस्थान (WHO) वैश्विक स्थिति रिपोर्ट जारी करती है. ताज़ा रिपोर्ट में सड़क दुर्घटनाओं के लिए प्रमुख रूप से तीव्र गति से वाहन चालान, शराब या फिर अन्य साइको-एक्टिव पदार्थों के सेवन, बगैर हेलमेट के मोटरसाइकिल चलाना, सीट-बेल्ट और बच्चों पर प्रतिबंध, गाड़ी चलाने के वक्त मोबाइल फोन का इस्तेमाल, सड़कों का असुरक्षित ढांचा, असुरक्षित वाहन, दुर्घटना के बाद अपर्याप्त देखभाल एवं ट्रैफिक नियमों को सही तरीके लागू न किया जाना शामिल है.   

समस्त वैश्विक वजहें भारतीय संदर्भ में सटीक हैं. जैसे कि उपर कहा गया है, होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की प्रमुख वजह ‘तीव्र गति से होने वाली वाहन चालान’ है, उसके बाद शराब के नशे में गाड़ी चलाना, और गाड़ी चलाने के दौरान एकाग्रता की कमी भी प्रमुख वजह है. सड़क इंजीनियरिंग में त्रुटियाँ, अचानक से सामने आ जाने वाले पॉटहोल अथवा खड्डे, अधिक पुराने पड़ चुके वाहन एवं ओवरलोडिंग आदि भी कुछ अन्य कारक हैं. 

इंदौर और जबलपुर को पीछे छोड़ते हुए, दिल्ली ने होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की सूची में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है. अमृतसर, धनबाद और जमशेदपुर ने सबसे कम सड़क दुर्घटनाओं को सूचिबद्ध किया है.

हालांकि, स्थानीयता से जुड़ी लोगों की कुछ विशेष आदतें भी हैं जो इसकी वजह है. लिस्ट किए गए प्रमुख कारण जो दुर्घटना को अंजाम देती है उसमें, सड़क की गलत दिशा में गाड़ी चलाने से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं (4.9 प्रतिशत), लाल बत्ती की अनदेखी (0.9 प्रतिशत दुर्घटनाए) करना भी एक कारण है. इसके अलावा अफरा तफरी के माहौल में लापरवाही पूर्वक गाड़ी चलाना आदि शामिल है. इस वजह से परिवहन मंत्री द्वारा भारत के सड़कों पर व्याप्त अनियमितताओं पर की गई टिप्पणी काफी हद तक सही है. इन मुद्दों को संबोधित करने के लिये ज़रूरी है कि एक जनजागरण अभियान चलाया जाये. इससे लोगों को उनके ऐसे व्यवहारों की वजह से पैदा होने वाले खतरों के बारे में शिक्षित किया जा सकेगा एवं उन्हें ज़िम्मेदार एवं अनुशासित सड़क व्यवहार के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा.    

सबसे पहले तो, देश के भीतर सड़कों के ढांचागत विस्तार के संबंध में किए गए अभूतपूर्व कार्यों की पहचान की जाने की ज़रूरत है. राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों, ज़िला स्तर की सड़कों, ग्रामीण सड़कों, शहरी सड़क एवं परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सड़कों को मिला कर कुल सड़क की लंबाई 1951 में 3,99,942 किलोमीटर से 1,583 प्रतिशत तक बढ़ कर वर्ष 2019 में, 63,31,757 किलोमीटर हो चुकी है. सड़क की लंबाई में वृद्धि काफी हद तक मोटर वाहनों की वृद्धि से काफी मेल खाती है. वर्ष 2022 में इनकी संख्या 67,007 थी, और वो 555 प्रतिशत - बढ़ कर 3,54,018 हो चुकी है. सड़क की गुणवत्ता के क्षेत्र में, खासकर के राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर भी काफी महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं. दूसरा, सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी वाहनों की गुणवत्ता में काफी सुधार हुए हैं. हल्के मोटर वाहन अब आवश्यक सुरक्षा एयरबैग से लैस हैं.    

हालांकि, बढ़ते सड़क, बढ़ते वाहन और बढ़ती आबादी, सड़कों पर लोग एवं वाहनों की भारी उपस्थिति के परिणामस्वरूप काफी अधिक संख्या में दुर्घटनाओं के घटने की संभावना रहती है. उच्चस्तरीय सड़क अपराध की घटनाओं के साथ मिलकर, सड़कों पर होने वाले विविध दुर्घटनाओं के लिए एक बेहद मज़बूत संयोजन का निर्माण करती है. ये ध्यान देना अनिवार्य है कि होने वाली सड़क दुर्घटनाएं ना केवल जान-माल की हानि करती है, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर (स्वास्थ देखभाल की नज़र से) भी काफी दुष्प्रभाव पड़ता है. 

सरकार का ध्यान खींचने योग्य बात ये है कि राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग मिलकर मात्र 5 प्रतिशत कुल सड़कों का निर्माण करती हैं और इसके बावजूद इनकी वजह से कुल 62.3 प्रतिशत एक्सीडेंट और 60.5 प्रतिशत सड़क पर मौतें होती हैं. यहां, उन चारों सार्वभौमिक तौर पर सहमत तत्वों/कारकों को अत्यंत प्राथमिकतापूर्ण तरीके से निपटने की आवश्यकता है, जिससे कि भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके. इसमें सड़क शिक्षा, अमलीकरण, इंजीनियरिंग और आपातकालीन केयर शामिल है. इनमें भी शिक्षा का प्रयास सार्वभौमिक रूप से किया जाना चाहिए, राष्ट्रीय एवं राज्यीय राजमार्गों पर किसी भी प्रकार की इंजीनियरिंग में कमी या दोष के कारण जो एक्सीडेंट होते हैं वो काले धब्बों के समान है जिन्हें कम किया जाना चाहिए. इसके साथ ही, सरकार को, यथोचित आपातकालीन सेवाओं एवं आपातकालीन सुविधाओं का प्रावधान करने पर उचित ध्यान देना चाहिए. इनमे उन्नत लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस सेवाएं, घायल लोगों को तुरंत ही, दुर्घटनस्थल से नज़दीकी अस्पताल एवं ट्रॉमा केयर सेंटरों तक ले जाए जाने का प्रावधान होना चाहिए. सरकार को चाहिए कि निजी क्षेत्र को राजमार्गों के सबसे ज़रूरी, और सुगम परिधि क्षेत्र के भीतर ऐसे अस्पताल बनाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये, जहां दुर्घटना की स्थिती में पीड़ित व्यक्ति को आसानी से पहुंचाया जा सके.  इनकी सुविधा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को इन निजी कंपनियों की हर संभव सहायता करनी चाहिए. 

ये ध्यान देना अनिवार्य है कि होने वाली सड़क दुर्घटनाएं ना केवल जान-माल की हानि करती है, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर (स्वास्थ देखभाल की नज़र से) भी काफी दुष्प्रभाव पड़ता है. 

अंततः सड़क पर प्रवर्तन को मज़बूत किये जाने की ज़रूरत है. संभवतः जुर्माने को बढ़ाने के बजाये, अधिक निवारक मूल्यों वाली अन्य  रणनीतियों के तहत, तेज़ रफ्तार, नशे में वाहन चालन एवं सड़क के गलत ओर से गाड़ी चलाने वाली जो दूसरी दिक्कतें हैं उन्हें फोकस में रखकर प्रावधान बनाने चाहिये जिनकी वजह से ज़्यादातर घटनायें होती हैं. जहां ज़्यादा ज़रूरी हो वहां इन गाड़ियों को ज़ब्त करने के अलावा, कसूरवार को जेल भेजने का भी प्रावधान होना चाहिये. जब तक कि सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं एवं मौतों में कमी का लक्ष्य तय किया नहीं जाता है, राष्ट्रीय राजमार्गों एवं एक्सप्रेस-वे आदि पर वाहन चालन की अधिकतम गति की सीमा को बढ़ाए जाने के विचार बिल्कुल छूना नहीं चाहिए. भारतीय सड़कों पर जो स्थिति है उसे देखते हुए, उच्च गति सीमा के प्रति परिवहन मंत्री का झुकाव पूरी तरह से गलत होता दिखाई दे रहा है.         

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