मार्च 2019 को जारी किये गये सर्कुलर (परिपत्र) में, राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल रहे कार्यों के समयापूर्व समाप्ति संबंधी जारी किये जा रहे समाप्ति सर्टिफिकेट पर सवाल खड़े किये हैं. एनएचएआई ने ये ध्यान दिया है कि कुछ मामलों में, रोड, ट्रांसपोर्ट और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्देशित ‘मानकों और विनिदेशों’ को अनुकूल बनाए जाने के पूर्व ही समापन प्रमाणपत्र निर्गत कर दिया गया है. इनमें रोड शोल्डर, रोड चिन्ह, मार्किंग, ढलानों की ड्रेसिंग, और रोड फर्निचर विशेष करके उल्लेखित किये गए हैं. इस परिपत्र के ज़रिए ऐसे प्रमाणपत्रों के जारी करने पर रोक लगा दिया गया है, जिनको जारी किये गये सर्टिफिकेट के बाद आम जनता को किसी प्रकार की ‘भौतिक असुविधा’ का सामना करना पड़ा अथवा इससे उनकी सुरक्षा बाधित हुई थी.
एनएचआई ने आगाह करते हुए कहा है कि ऐसे कोई भी व्यवहार को ‘कर्तव्य की अवहेलना’ समझा जाएगा और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ़ सख्त़ कार्यवाही की जाएगी, जो ऐसे अधूरे सड़क कार्यों के बावजूद प्रमाणपत्र निर्गत करने के दोषी पाए जाएंगे.
उपर जिस सर्कुलर का ज़िक्र किया गया है, उसे कुछ अधिकृत इंजीनियरों द्वारा गम्भीरतापूर्वक नहीं लिया गया. इस लापरवाही की वजह से संभवत: सड़क में भिड़ंत और जानहानि के मामले भी हो सकते थे. एनएचआई ने आगाह करते हुए कहा है कि ऐसे कोई भी व्यवहार को ‘कर्तव्य की अवहेलना’ समझा जाएगा और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ़ सख्त़ कार्यवाही की जाएगी, जो ऐसे अधूरे सड़क कार्यों के बावजूद प्रमाणपत्र निर्गत करने के दोषी पाए जाएंगे. इसके साथ ही, इन अधिकारियों को ऐसे किसी भी अधूरी सड़कों पर होने वाली किसी भी गंभीर दुर्घटनाओं की सूरत में व्यक्तिगत रूप से जिम्मेवार माना जाएगा. रोड ट्रांसपोर्ट मंत्री ने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया है कि सुरक्षित सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए, भले ही इसके निर्माण की गति धीमी ही क्यों न पड़ जाए.
मंत्री द्वारा दिए गए इस बयान ने राष्ट्रीय राजमार्गों के सड़क निर्माण की प्रक्रिया पर होने वाली लापरवाहियों को लेकर चिंता को उजागर किया है, जो कि संपत्ति निर्माण हेतु ज़रूरी सुरक्षा मानकों को नजरंदाज़ कर रही है. राजमार्गों पर होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के ऊंचे प्रतिशत से ये साफ भी होता है कि ये चिंता बेवजब नहीं हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग देश के सड़क नेटवर्क का मात्र 2 प्रतिशत ही बनता है, पर वो सड़क पर होने वाली सभी दुर्घटनाओं के 35 प्रतिशत के करीब है. जिस गति से राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण हो रहा हैं उसका श्रेय ये मंत्रालय ही लेता आ रहा है. 2021 के वित्तीय वर्ष में, इसकी गति रिकार्ड 37 किलोमीटर प्रति दिन तक पहुँच गई. अगर सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसकी गति में कमी आती है, तो ये वाकई स्वागतयोग्य है.
बुनियादी ढांचे में कमी
दुर्भाग्यवश, सुरक्षा में ख़ामियों और राजमार्गों पर होने वाले मौतों की बड़ी संख्या को लेकर एनएचएआई द्वारा आत्मचिंतन जैसा कुछ अहमदाबाद-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर सितंबर 2022 में हुई सायरस मिस्त्री की मौत के बाद प्रमुख़ तौर पर नज़र नहीं आया. बल्कि इस हादसे के बाद पूरा ध्यान इस बात पर अत्याधिक केंद्रित हो गया कि वाहन सवार ने सीट बेल्ट नहीं पहन रखी थी, जिसके कारण, आयी कई अंदरूनी चोटों की वजह से उनकी इस हादसे में मौत हो गई. हालांकि, पर जो बात ग़ौर करने लायक है वो ये कि सीट बेल्ट से लोगों की जीवन को बचाने में सफलता भले ही मिल जाएगी, परंतु, उस जगह होने वाली सड़क दुर्घटनाओं को रोक पाने में उनकी कोई भूमिका नहीं हैं. इस घटना में, सात सदस्यीय फॉरेंसिक जांच ने ये पाया कि ये कार क्रैश बुनियादी ढांचे में त्रुटि का परिणाम था. जिस कार में मिस्त्री सफर कर रहे थे, वो दुर्घटनावश एक पुल से भीड़ गया था जिसे कि दोषपूर्ण रूप से डिज़ाइन किया गया था. जांच में ये भी पाया गया कि पुल की रेलिंग शोल्डर लेन की ओर निकला हुआ था. इसके अलावा, तीन लेनों वाली सड़क अनापेक्षित रूप से एक दो लेन वाली संकरी सड़क की ओर मुड़ गई थी जो ख़तरनाक एल आकार के कॉन्क्रीट डिवाईडर, जिसपर सलीके से पेंट भी किया हुआ नहीं था. इसके अलावा रोड पर लगने वाले साइनबोर्ड भी घोर अपर्याप्त थे, जिस वजह से वो सड़क एक काले स्पॉट की तरह प्रतीत हो रहा था. इस शब्द का इस्तेमाल सड़क सेक्शन के उस क्षेत्र में होता है,जहां अक्सर हादसे होते रहते हैं.
राष्ट्रीय राजमार्ग के संदर्भ में एक आश्चर्यजनक तथ्य है उनके रखरखाव की गुणवत्ता, जहां सरकार इसे अंतरराष्ट्रीय मानक के समतुल्य होने का दावा करती है, हालिया जारी रिपोर्ट में, भारत में मॉनसून के बाद, सड़क यात्रियों की दुर्दशा को प्रमुखता से दर्शाया गया है.
इस दुर्घटना नें दुर्घटनाग्रस्त उस कार की अत्याधिक गति पर भी प्रश्न उठाए गये. ऐसा कहा जाता है कि वो कार 100 किलोमीटर से भी ज्य़ादा तेज़ रफ्तार से दौड़ रही थी. हालांकि, मंत्री महोदय खुद ही भारतीय एक्स्प्रेस-वे एवं राष्ट्रीय राजमार्ग पर तीव्र गति के पक्षधर रहे है. उन्होंने एक्सप्रेस-वे पर 140 किलोमीटर प्रति घंटे और फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग पर कम से कम 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्त़ार से वाहन चालन का प्रस्ताव रखा है. ऐसा, उन्होंने भारतीय राजमार्गों की क्वॉलिटी में होने वाली सुधार के मद्देनज़र कहा है, जो वाहनों को पहले के दिनों की तुलना में और तीव्रगति से चलाने की अनुमति देता है. मंत्री महोदय ने उन न्यायिक फैसलों पर भी असंतोष ज़ाहिर किया है, जो राष्ट्रीय राजमार्गों पर पैदल यात्रा को अस्वीकृत करता है. हालांकि, राष्ट्रीय राजमार्गों पर सुरक्षा मुद्दों के संदर्भ में, कुछ तथ्यों के बार-बार सामने आने के बाद, बढ़ती वाहन गति में और भी सावधानी बरते जाने की आवश्यकता है.
राष्ट्रीय राजमार्ग के संदर्भ में एक आश्चर्यजनक तथ्य है उनके रखरखाव की गुणवत्ता, जहां सरकार इसे अंतरराष्ट्रीय मानक के समतुल्य होने का दावा करती है, हालिया जारी रिपोर्ट में, भारत में मॉनसून के बाद, सड़क यात्रियों की दुर्दशा को प्रमुखता से दर्शाया गया है. बारिश ने देश की इस मुख्य मार्गीय सड़क नेटवर्क को बदहाल स्थिति में छोड़ दिया है, चूंकि वो इस दरम्यान गड्ढों से छलनी हो चुके होते हैं. उपरोक्त रिपोर्ट ने फैली हुई एनएच-8 से गुड़गाँव-जयपुर का उल्लेख किया है जो, बढ़ी हुई टोल की कीमत, के बावजूद अब भी अधूरी और गड्ढों से भरी हुई है. सरकार द्वारा पार्लियामेंट्री स्टैन्डिंग कमिटी को दिए जवाब के बाद इस दयनीय स्थिति के पीछे की वजह का पता चल पाया. जिसके मुताबिक राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव के लिए उनके ही द्वारा तय किये गए प्रमाणक का महज़ 40 प्रतिशत वित्तीय प्रावधान किया गया. साफतौर पर, सड़क के कुछ और किलोमीटर के अतिरिक्त निर्माण की कीमत पर राष्ट्रीय राजमार्गों के रखरखाव से समझौता किया गया. रखरखाव के लिए ज़रूरी इस 60 प्रतिशत राशि की कमी, काफी बड़ी थी, और जिसके फलस्वरूप संसाधनों को कम फैलाया जा सका, जिस वजह से पर्याप्त रखरखाव संबंधित हस्तक्षेप काफी हद तक असंभव हो गया.
सड़क दुर्घटना रोकने के उपाय
‘सड़क सेक्टर संबंधी मुद्दे’ (Issues related to road sector) नामक अपनी रिपोर्ट में संसदीय कमिटी ने इस पर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है कि देश भर में स्थित राष्ट्रीय राजमार्गों की दयनीय स्थिति, पर्याप्त बजटीय आवंटन में कमी की प्रतिध्वनि की गूंज सुनाई पड़ती हैं. कमिटी ने इस बात पर बल दिया कि सुरक्षा और बेहतर औसत ट्रैफिक गति के संदर्भ में इसके बेहतर रख-रखाव पर और विशेष ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. इस मुद्दे को कमिटी द्वारा बारंबार उठाया जाता रहा है. उसी तरह से, ‘स्ट्रैटिजी फॉर न्यू इंडिया @75’ नामक अपने रिपोर्ट में, नीति आयोग ने यह सलाह दी है कि सरकार को सड़कों एवं हाई-वे के रख़रखाव हेतु अपने वार्षिक बजट में 10 प्रतिशत तक का प्रावधान किया जाना चाहिये और सड़क के रख-रखाव हेतु 40 प्रतिशत बजट के प्रावधान के साथ विकसित देश की लीग में शामिल होने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए. ये साफ तौर पर नज़र आता है कि अगर राष्ट्रीय राजमार्ग को बेहतर नहीं रखा गया तो, देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. राष्ट्रीय राजमार्गों के देखरेख में होने वाली कमियों के संदर्भ में, जैसा कि ऊपर उल्लेखित है, यह देखना थोड़ा आश्चर्यजनक था कि अधिकारी वर्ग सायरस मिस्त्री की मौत के मद्देनज़र, नागरिकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को त्वरित प्रयास से दबाने में जुट गया था. वे उन यात्रियों पर जुर्माना लगाने मे जुट गए जिन्होंने पीछे की सीट पर बैठे होने के बावजूद, अपने सीट बेल्ट नहीं लगाए थे. मंत्री महोदय नें तुरंत ही इस बात की घोषणा की कि शीघ्र ही इस बाबत एक प्रपत्र जारी किया जाएगा, और दोषी पाए जाने वाले नागरिकों पर दंडस्वरूप जुर्माना लगाया जाएगा. उन कार निर्माताओं पर भी सवाल उठाए गए जो भारत में, अपने वाहनों मे सिर्फ़ चार एयरबैग ही मुहैया करवाते हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनमे छह एयरबैग फिट होते हैं. एक तरफ जहां नागरिकों को यात्रा के दौरान एहतियात बरते जाने और कारों में ज्य़ादा एयरबैग होने को लेकर कोई विवाद नहीं होगा, सरकार को भी इस बात की घोषणा करनी चाहिये कि इन सुरक्षा उपायों को दुरुस्त करने और सड़कों की दयनीय रख-रखाव की व्यवस्था के लिए उचित उपाय किये जाएंगे. ये तय है कि यात्रियों द्वारा सीटबेल्ट को बांधने से सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने वाले और मृत्यु पाने वाले जनों के दर में कमी आएगी, पर सड़क दुर्घटनाओं को मात्र इतने से नहीं बचाया जा सकता है. इसके लिये सड़कों के निर्माण की गुणवत्ता में सुधार और राष्ट्रीय राजमार्ग का बेहतर रख़रखाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
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