ऐसे बहुत दुर्लभ पल ही देखे हैं, जब G20 के मेज़बान देश ने 20 साल में एक बार मिलने वाली इसकी अध्यक्षता के दौरान, इसमें इतनी पूंजी लगाई हो- फिर चाहे वो राजनीतिक हो, वित्तीय हो, मानवीय या फिर कूटनीतिक पूंजी ही क्यों न हो. भारत ने ऐसा करके अपने लिए एक नया मकाम बनाया और एक स्थायी विरासत की छाप छोड़ी, क्योंकि वो ख़ुद भी एक बड़ी और महत्वपूर्ण ताक़त है; विकासशील देशों के लिए भी और बाकी दुनिया के लिए भी. इससे पहले G20 ने कभी इतने ठोस नतीजे, दस्तावेज़ और पहलों को होते हुए नहीं देखा था, जो क़रीब 112 थे और ये कई महत्वपूर्ण, फ़ौरी, नए और उभरती हुई वैश्विक चिंताओं से जुड़े थे.
अपने लगभग एक वर्ष के सफ़र के दौरान और उसके बाद G20 जिस मंज़िल पर पहुंचा, उसमें भारत ने असाधारण रूप से मील के नए नए पत्थर दर्ज किए, और भविष्य में इसके अध्यक्ष बनने वाले देशों को इन उपलब्धियों की बराबरी कर पाना मुश्किल होगा, मगर ऐसा करना उनके लिए सम्मान की बात होगी.
भारत को मुख्यधारा में लाना
भारत को G20 की अध्यक्षता ऐसे मौक़े पर मिली, जब तबाही लाने वाली कोविड-19 महामारी के बाद उसे ज़बरदस्त आर्थिक रिकवरी और पुनर्निर्माण के लिए पूरी दुनिया में सराहा जा रहा था. महामारी के दौरान भारत ने ‘वैक्सीन चमत्कार’ कर दिखाया था, और 100 देशों को कोरोना के टीके की 30 करोड़ से ज़्यादा ख़ुराक मुहैया कराई थी, जिनमें से ज़्यादातर विकासशील देश (Global South) थे. इस ‘वैक्सीन मैत्री’ ने भारत के लिए दुनिया में ज़बरदस्त सद्भावना पैदा की. कई वैश्विक नेताओं ने तो ये तक कहा की भारत की वैक्सीन ने उनकी जान बचाई और अब भी ये टीका उनकी रगों में दौड़ रहा है.
भारत की G20 अध्यक्षता एक ऐसे भारत का जश्न था, जिसने अपने ‘पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता वाले देश’ की विरासत को अपनी सभी सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक गहराई, विविधता और भव्यताओं के साथ दोबारा हासिल कर लिया था. फिर वो चाहे कोणार्क का सूर्य मंदिर हो, नालंदा विश्वविद्यालय की पृष्ठभूमि या फिर भारत मंडपम में स्थापित की गई नटराज की विशाल मूर्ति, 18 हज़ार कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए 300 सांस्कृतिक कार्यक्रमों, शास्त्रीय और लोक नृत्यों, प्राचीन रुद्रवीणा संगीत, कला की इंटरएक्टिव प्रदर्शनियां और श्रीअन्न के साथ तमाम व्यंजनों की पेशकश के रूप में भारत की विशाल सॉफ्ट पावर अपनी पूरी चमक-दमक और भव्यता के साथ प्रस्तुत की गई.
असाधारण नए भारत को भी वैश्विक मंच का केंद्र बिंदु बनाया गया. भारतीय और विदेशी दोनों ही भागीदारों को ये मौक़ा मिला कि वो भारत की आर्थिक तरक़्क़ी और तकनीकी उपलब्धियों को समझें, जिसमें टेक 4.0 और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, और अंतरिक्ष के क्षेत्र की सफलताएं भी शामिल थीं. चंद्रमा के शिवशक्ति प्वाइंट पर चंद्रयान-3 के उतरने में मिली कामयाबी अभी भारतीयों और बाक़ी दुनिया के ज़हन में ताज़ा थी. भारत के टिकाऊ विकास के असाधारण प्रयास यानी सबका साथ, सबका विकास, और सामाजिक बदलाव लाने वाली प्रभावशाली परियोजनाएं एक लाइटहाउस जैसी चमक दमक के साथ पेश की गईं, और ये दिखाया गया कि इन्हें दूसरे विकासशील देशों ही नहीं, विकसित देशों में भी दोहराया और बड़े स्तर पर लागू किया जा सकता है.
भारत की G20 अध्यक्षता एक ऐसे भारत का जश्न था, जिसने अपने ‘पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता वाले देश’ की विरासत को अपनी सभी सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक गहराई, विविधता और भव्यताओं के साथ दोबारा हासिल कर लिया था..
भारत अब ‘तर्क की ताक़त’ के बजाय ‘ताक़त के तर्क’ का अस्त्र धारण करके, प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मे और निजी संबंधों के दायरे से भी आगे जाकर बहुक्षेत्रीय और अर्थपूर्ण नतीजे हासिल कर सकता था. ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित हो रही पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो बहुत जल्दी तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. नए भारत के पास ‘सबकुछ मुमकिन है’ का आत्मविश्वास है और ये भू-राजनीतिक तौर पर भी काफ़ी सशक्त स्थिति में है और कहा जा रहा है कि ये भारत की सदी नहीं, तो कम से कम भारत का दशक ज़रूर है. इन सभी बातों से एक सकारात्मक वातावरण बना.
भारत की ये नई ताक़त, G20 शिखर सम्मेलन में आए मेहमानों की उपस्थिति के तौर पर भी दर्ज हुई. 43 देशों औऱ अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख, शिखर सम्मेलन में शामिल हुए. रूस के राष्ट्रपति पुतिन, और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को छोड़ दें तो G20 के सभी नेताओं ने इसमें शिरकत की. पुतिन और जिनपिंग के न आने की ‘अलग अलग वजहें और मजबूरियां’ रहीं. लेकिन, पुतिन की जगह उनके तजुर्बेकार विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव और जिनपिंग की जगह, चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने सम्मेलन में शिरकत की.
G20 के दौरान भारत के अत्याधुनिक मूलभूत ढांचे, लॉजिस्टिक और ज़बरदस्त संगठन क्षमता देखने को मिली. इसका सबूत 60 शहरों में हुई 220 बैठकें और अंत में नई दिल्ली में नव-निर्मित भारत मंडपम में शिखर सम्मेलन के रूप में दिखा. इन सबका प्रबंधन G20 सचिवालय ने किया, जिसकी अगुवाई G20 के ज़बरदस्त शेरपा अमिताभ कांत कर रहे थे और उन्हें भारत के विदेश मंत्रालय का भी पूरा सहयोग मिला. इसके साथ साथ तमाम विभागों और मंत्रालयों की ऐसी भागीदारी दिखी, जिसमें पूरा सरकारी तंत्र एकजुटता से लगा हुआ था. इसने सहयोगात्मक संघवाद की एक मिसाल रखी. देश के हर राज्य और संघ शासित क्षेत्र में G20 का एक कार्यक्रम हुआ, फिर चाहे वो बीजेपी के शासन वाले हों या किसी अन्य पार्टी के. सभी सरकारों ने भरपूर भागीदारी की.
जनता का G20- न्याय और एकजुटता
जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था, भारत की अध्यक्षता में G20 हर तरह से जनता का आयोजन था, जो इससे पहले के कुलीन वर्ग के उद्यम से बिल्कुल उलट था. पूरे साल ‘हम लोग’ यानी संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक़ जनता की भागीदारी, उसकी आवाज़ और भागीदारी के रूप में दिखी, जब तमाम अधिकारी, कॉरपोरेट, नागरिक संगठनों और ज़मीनी स्तर के नेता, महिलाएं, युवा और यहां तक कि स्कूल के बच्चे इस आयोजन से जुड़े. कुल मिलाकर 6.7 करोड़ लोगों ने इसमें शिरकत की. अकेले सिविल 20 एंगेजमेंट ग्रुप से दुनिया भर के क़रीब 45 लाख लोग जुड़े.
G20 का एक जन आंदोलन बनना एक स्वागत योग्य बदलाव है, ख़ास तौर से उस दौर के मुक़ाबले जब G7 शिखर सम्मेलनों के दौरान, ‘भूमंडलीकरण में बदलाव के आंदोलन’ के तहत सामाजिक आंदोलनों द्वारा समानांतर रूप से एक ‘जनता का सम्मेलन’ भी आयोजित किया जाता था, ताकि नेताओं के शिखर सम्मेलन का विरोध किया जा सके. अब G20 उस आंदोलन के अधिकतर आदर्शों का प्रतीक बन गया है, जिसमें दुनिया चलाने के नियमों को तय करने में और ख़ास तौर से बहुपक्षीय संस्थानों में विकासशील देशों (Global South) की भागीदारी बढ़ी है.
समानता का ये पहलू, वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण शांति और सुरक्षा के लिए ज़रूरी है, जिसमें आतंकवाद से मुक़ाबला, टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना और जलवायु परिवर्तन से निपटना, लोकतंत्र और मानव अधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता और संकट से निपटने में तालमेल बिठाना और तकनीक के फ़ायदे सभी देशों और लोगों तक पहुंचाना शामिल है. ‘मानव केंद्रित विकास’ पर प्रधानमंत्री मोदी की तवज्जो और वित्तीय, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण की अधिक न्यायोचित व्यवस्था के लिए वैश्विक एकजुटता सुनिश्चित करने का लक्ष्य हासिल करने लिए ‘जनता के शिखर सम्मेलन’ की अहमियत और भी बढ़ जाती है,
इन सबका प्रबंधन G20 सचिवालय ने किया, जिसकी अगुवाई G20 के ज़बरदस्त शेरपा अमिताभ कांत कर रहे थे और उन्हें भारत के विदेश मंत्रालय का भी पूरा सहयोग मिला.
भारत ने G20 के नेताओं के नई दिल्ली घोषणापत्र (NDLD) की थीम- वसुधैव कुटुंबकम’ यानी एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को रखा था. ये कुछ गिने चुने लोगों के विरोध के बावजूद हुआ, जो दुनिया को इस नज़र से नहीं देखते हैं. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा भी कि, ‘ये वाक्य आज की दुनिया में बेहद प्रासंगिक है, क्योंकि न केवल ये वाक्य समय की बंदिशों से परे है, बल्कि हमारे दौर की उथल-पुथल की आलोचना का भी प्रतीक है.’ गुटेरस ने भारत की अध्यक्षता की इस बात के लिए तारीफ़ की उसने उन बड़े बदलावों के लिए कोशिश की, जिनकी आज दुनिया को बेहद सख़्त ज़रूरत है. ये बात भारत के विकासशील देशों के प्रतिनिधि के तौर पर व्यवहार करने और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता के अनुरूप है.
समावेश और लोकतांत्रीकरण
G20 के दौरान भारत ने ये संदेश भी दिया कि वो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और युवाओं से भरपूर देश के तौर पर अपनी आबादी का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है. दुनिया और अपने देश में मज़बूत इरादों और बदनीयती वाले आलोचकों को कड़ा जवाब देते हुए, इस अध्यक्षता के दौरान भारत के विशाल और सबसे पुराने और विविधता भरे लोकतांत्रिक देश के तौर पर कामयाब होने की छवि को भी और मज़बूती मिली. भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान ये भावना इस तरह बख़ूबी दिखी कि ये भागीदारी के स्तर पर अब तक का सबसे समावेशी सम्मेलन रहा, जिसमें ज़्यादा संख्या में देश, सरकारें और आर्थिक, वित्तीय और सामाजिक क्षेत्र के लोगों और ख़ास तौर से विकासशील देशों की भागीदारी दिखी.
भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान जितने कार्यक्रम और उपलब्धियां हासिल की गईं, उनकी संख्या भी हैरानी पैदा करती है. 21 मंत्रिस्तरीय बैठकें; 4 शेरपा बैठकें, 75 वर्किंग ग्रुप की बैठकें, 11 संपर्क समूहों और 6 पहलों की कुल मिलाकर 50 बैठकें- MACS, सशक्तिकरण, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा, RIIG, CSAR की मीटिंग; शेरपा ट्रैक वर्किंग ग्रुप की 13 बैठकें; वित्तीय ट्रैक वर्कस्ट्रीम की आठ बैठकें; एक लाख लोगों की भागीदारी वाले अन्य कार्यक्रम और 125 देशों के 30 हज़ार प्रतिनिधि; 40 व्यवस्थाएं (अब तक की सबसे बड़ी); और विदेश मंत्रियों और महिला मामलों के मंत्रियों की अलग से हुई बैठकें भी आयोजित की गई थीं.
दिल्ली शिखर सम्मेलन और अपनी अध्यक्षता की शुरुआत से पहले भारत ने पहली वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें 125 देश शामिल हुए थे. भारत ने विकासशील देशों के सबसे ज़्यादा मेहमानों को आमंत्रित करके दिल्ली शिखर सम्मेलन को अब तक का सबसे समावेशी सम्मेलन बना दिया. 43 देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन इसमें बुलाए गए, जिससे भौगोलिक लिहाज़ से सबसे अधिक यानी 125 देशों की भागीदारी हुई. इस G20 शिखर सम्मेलन में 31 नेता और 11 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों ने शिरकत की. इस बार के G20 सम्मेलन में अफ्रीका की भागीदारी सबसे अधिक रही. दक्षिण अफ्रीका के अलावा, नाइजीरिया, मॉरीशस , मिस्र (जिसमें NEPAD के अध्यक्ष भी शामिल थे) और अफ्रीकी संघ (AU) के अध्यक्ष कोमोरोस ने भी भाग लिया.
भारत ने G20 के नेताओं के नई दिल्ली घोषणापत्र (NDLD) की थीम- वसुधैव कुटुंबकम’ यानी एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को रखा था. ये कुछ गिने चुने लोगों के विरोध के बावजूद हुआ, जो दुनिया को इस नज़र से नहीं देखते हैं.
कुछ देशों के ऐतराज़ के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा, G20 में अफ्रीकी संघ (AU) को स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल कराना, G20 के लोकतंत्रीकरण का मास्टरस्ट्रोक था, जिससे इसको बेढंगा बनाए बग़ैर इसको अधिक विश्वसनीय मंच बनाया जा सका. अफ्रीका के 54 में से 33 देश सबसे कम विकसित (LDC) हैं, ऐसे में G20 ने क़तार में सबसे पीछे खड़े सदस्य तक पहुंचने की सर्वोदय से अंत्योदय की भावना को पूरी ईमानदारी से निभाया. इससे, अफ्रीका के सबसे बड़े समर्थक और भरोसेमंद साझीदार की भारत की छवि को और मज़बूती मिली, जिससे दोनों के बीच अधिक सामरिक और आर्थिक रूप से बहुपक्षीय भागीदारी के अवसर बढ़ेंगे, जिनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का साझा एजेंडा भी शामिल है. अफ्रीका के लिए ये एक बहुत बड़ी सामरिक जीत थी, क्योंकि अब वो दुनिया के एक बड़े मंच का हिस्सा है, जिसके फ़ैसले अफ्रीका की अपार संभावनाओं का लाभ उठाने में मदद करके उनके टिकाऊ विकास की ज़रूरतों पर सबसे ज़्यादा असर डालने वाले हैं.
एकीकरण करने और दूरियां पाटने वाला
पूरब और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में बंटी दुनिया में भारत एकीकरण करने वाली तीसरी ताक़त बनने के इम्तिहान में खरा साबित हुआ. भू-राजनीतिक रूप से देखें तो दुनिया जितनी आज खंडित और गुटों में बंटी और तीसरे विश्व युद्ध के ख़तरे या फिर परमाणु युद्ध की भयानक तबाही और दूसरे शीत युद्ध की आशंका से भयभीत है, उतनी पहले कभी नहीं थी. रूस और यूक्रेन के युद्ध को दो साल होने जा रहे हैं और वार्ता के ज़रिए इस युद्ध के समाधान की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं दिख रही है, क्योंकि नैटो और रूस, दोनों ने ही अपने अपने रुख़ और कड़े कर लिए हैं. वैसे तो G20 सम्मेलनों का मक़सद संघर्षों का समाधान निकालना नहीं है, लेकिन, इस बात को लेकर आशंकाएं वाजिब ही थीं कि कोई एक पक्ष, नेताओं के नई दिल्ली घोषणापत्र पर अपनी छाप न दिखने की सूरत में आम सहमति बनाने में खलल डाल सकती हैं. ऐसा होने पर भारत की अध्यक्षता पटरी से उतर जाती और ख़ुद G20 को झटका लगता.
एक कूटनीतिक जीत के तौर पर भारत ने भरोसा निर्मित किया और अपने बहुपक्षीय रवैये की मदद से दोनों ही पक्षों को राज़ी कर लिया. रूस इस बात से संतुष्ट था कि घोषणापत्र में उसके नाम का ज़िक्र किए बग़ैर ‘यूक्रेन में युद्ध’ के जुमले का इस्तेमाल किया गया था. वहीं, पश्चिमी देशों को इस बात से तसल्ली मिली कि घोषणापत्र में साफ़ तौर से कहा गया था कि सभी देश संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का ईमानदारी और नियमितता के साथ पालन करें और ताक़त या धमकी के बल पर किसी अन्य देश की क्षेत्रीय अखंडता, स्वतंत्रता और संप्रभुता को चोट पहुंचाकर, दूसरे देशों की ज़मीनें हड़पने का प्रयास न करें. ये बात भारत के आक्रामक पड़ोसी देशों के लिए भी एक संकेत थी. परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की धमकी को बर्दाश्त नहीं किए जाने की बात भी नई दिल्ली घोषणा में शामिल की गई.
भारत द्वारा ग्लोबल साउथ के हितों को आगे बढ़ाने का काम, विकासशील देशों द्वारा किसी तरह के टकराव वाले रुख़ के साथ नहीं किया गया, बल्कि दोनों के बीच खाई पाटने की कोशिश के तौर पर और विश्वमित्र एवं विश्व गुरू की भावना के साथ किया गया. भारत ने विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए मदद और रियायतें हासिल करने की कोशिश तो की. मगर, इस बात का भी ध्यान रखा कि वैश्विक जनहित में योगदान देने के मामले में विकासशील देशों के लिए भी गुंजाइश बाक़ी रहे, जो वो अपनी ज़रूरतों और अपनी क्षमताओं के हिसाब से कर सकें.
G20 को आर्थिक सुरक्षा परिषद का रूप देना
भारत ने उल्लेखनीय रूप से G20 को एक वास्तविक आर्थिक सुरक्षा परिषद के तौर पर आगे बढ़ाया और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से रूस, यूक्रेन और तुर्की के बीच काला सागर से अनाज की आवाजाही के लिए हुए समझौते को दोबारा जीवित किया ताकि खाद्यान्न के बढ़ते संकट से निपटा जा सके और ‘युद्ध के अतिरिक्त नकारात्मक प्रभावों’ का सामना किया जा सके. क्योंकि कोविड-19 के बाद पैदा हुई सामाजिक आर्थिक चुनौतियों और बहुधा संकटों जैसे कि खाद्यान्न, ईंधन, वित्त, क़र्ज़ जलवायु संकट और स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने में देरी का सबसे ज़्यादा प्रभाव ग्लोबल साउथ को ही झेलना पड़ रहा है.
भारत ने G20 को वैश्विक आर्थिक प्रबंधन और प्रशासन के व्यापक मसलों से निपटने की दिशा में भी आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. इसमें आतंकवाद की फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग, क्रिप्टो संपत्तियों का नियमन, भ्रष्टाचार से मुकाबला और भविष्य के कामकाज के लिए तैयार करना, ‘सबके स्वास्थ्य’ और आने वाले समय में महामारी से निपटने, स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिए तैयारी करना शामिल है. पर्यटन के लिए गोवा रोडमैप, उच्च शिक्षा और अच्छी तालीम के मामले में सहयोग, समुद्र पर आधारित ब्लू इकॉनमी, भविष्य के शहरों को पूंजी उपलब्ध कराना और वैश्विक रूप से इक्कीसवीं सदी के लिए एक निष्पक्ष, टिकाऊ और आधुनिक कर प्रणाली स्थापित करने के क्षेत्र में भी काफ़ी प्रगति हुई.
भारत की दुनिया की व्यवस्था बनाने वाले की भूमिका
नई दिल्ली घोषणापत्र से भारत, ईमानदार विरोधी या फिर व्यवस्था को उसी रूप में अपनाने की छवि से उबरकर, सही मायनों में दुनिया की व्यवस्था का निर्माता बनकर उभरा है. हाशिए पर पड़े रहने के इतिहास को पीछे छोड़कर आज भारत वैश्विक आर्थिक और टिकाऊ विकास की निर्णय प्रक्रिया का केंद्र बन चुका है. भारत ने जि़म्मेदारियां लीं. उसने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की चुनौतियों से निपटने की ज़िम्मेदारी ली और सीधे भुगतान करके योगदान दिया. इसके अलावा भारत, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और आपदा के जोखिम को कम करने और इसके लिए एक कार्यकारी समूह बनाने की ऐतिहासिक उपलब्धि भी उसने हासिल की.
प्रधानमंत्री मोदी ने क़सम खाई थी कि भारत की आवाज़ और प्राथमिकताएं, विकासशील देशों की आवाजें थीं. नई दिल्ली के शिखर सम्मेलन ने न सिर्फ़ दुनिया को रास्ता दिखाया, एक मिसाल क़ायम की और लक्ष्य तय किए, बल्कि भारत ने सिद्धांतों और मानकों को अपनाया और सरकारों एवं वैश्विक संस्थानों को प्रेरित किया कि वो, भारत की अध्यक्षता की सात प्राथमिकताओं यानी एक ‘समावेशी, निर्णायक, नतीजों पर केंद्रित और महत्वाकांक्षी’ प्राथमिकताओं पर ज़ोर देने की बात कही गई, जो विकासशील देशों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है.
SDGs को हासिल करने की रफ्तार बढ़ाना
टिकाऊ विकास के लक्ष्य हासिल करने में हो रही देरी को समझकर (88 प्रतिशत लक्ष्य अधूरे हैं), नई दिल्ली घोषणा में अहम और आसानी से होने वाले काम कराने का वादा किया. इनमें (SDGs) के मामले में प्रगति को रफ़्तार देने के G20 के उच्च स्तरीय विचारों को अपनाने से लेकर अगले सात साल की रूप-रेखा प्रस्तुत करना शामिल है. डेटा फॉर डेवलपमेंट ; स्थाई विकास के लक्ष्यों से जुड़े विश्लेषण कारी वित्तीय ढांचे; SDGs हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करने के मक़सद से UNSG के 500 अरब डॉलर हर साल देने के प्रस्ताव पर भी सहमति बनी और ये स्वीकार किया गया कि 2030 तक स्थायी विकास के लक्ष्य के लिए 1.2 ट्रिलियन डॉलर (चीन को छोड़कर) दिए जाने की ज़रूरत बताई गई. इसमें बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानो द्वारा 260 अरब डॉलर हर साल दिए जाएंगे.
अफ्रीका के सबसे बड़े समर्थक और भरोसेमंद साझीदार की भारत की छवि को और मज़बूती मिली, जिससे दोनों के बीच अधिक सामरिक और आर्थिक रूप से बहुपक्षीय भागीदारी के अवसर बढ़ेंगे.
भारत ने सभी स्रोतों से अधिकतम स्रोतों से पर्याप्त और आसानी से मिल सकने वाली पूंजी को जुटाने का भी वादा किया, ताकि पूंजी की कमी को दूर करने के साथ साथ G20 के रोडमैप के मुताबिक़ टिकाऊ वित्त की व्यवस्था कर सके. अहम बात ये है कि भारत ने साफ़ कर दिया कि जलवायु वित्त के लिए जुटाई जाने वाली रक़म SDG के लिए मिलने वाले पैसे की जगह नहीं लेगी, बल्कि उसके पूरक का काम करेगी. SDG2 यानी भुखमरी के ख़ात्मे के लक्ष्य के लिए डेक्कन हाई लेवल प्रिंसिपल्स ऑन फूड सिक्योरिटी ऐंड न्यूट्रिशन को अपनाया गया; उन्नत, लचीली, जलवायु परिवर्तन को झेल सकने वाली टिकाऊ खेती की चर्चा की गई; खाद्य और ऊर्जा की क़ीमतों में उथल-पुथल के असर से निपटने पर चर्चा हुई और कृषि विकास के संसाधनों के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड बढ़ाने पर भी सहमति बनी.
हरित विकास फंड
टिकाऊ भविष्य के लिए एक मज़बूत ग्रीन डेवलपमेंट समझौते पर बनी सहमति, बहुत बड़ी जीत थी. प्रधानमंत्री मोदी के LiFE मिशन को G20 हाई लेवल प्रिंसिपल ऑन लाइफस्टाइल फॉर सस्टेनेबल डेवेलपमेंट में बदला गया. ग्रीन क्लाइमेट फंड में और अधिक पूंजी डालने की दूसरी महत्वाकांक्षी किस्त की मांग उठाने के साथ साथ निजी पूंजी और विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने में कारगर तकनीक को साझा करने, उन्हें उपयोग में लाने और उनके लिए पूंजी देने और मल्टीलेयर टेक्निकल असिस्टेंस प्लान (TAPP) पर भी रज़ामंदी बनी.
सबसे बड़ी उपलब्धि तो विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद के लिए दी जाने वाली पूंजी को बिलियन से ट्रिलियन में तब्दील करनी रही. G20 सम्मेलन के दौरान सहमति बनी कि 2030 से पहले विकासशील देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित हरित लक्ष्यों (NDCs) को लागू करने के लिए 5.9 ट्रिलियन डॉलर की मदद दी जाएगी और इसकी मदद से महत्वाकांक्षी क्लाइमेट एडेप्टेशन के लक्ष्य तय होंगे. इनमें से 4 ट्रिलियन डॉलर की रक़म तो केवल स्वच्छ ऊर्जा की तकनीक के लिए होंगे. इसके अलावा मिली-जुली पूंजी को बढ़ाते हुए धीरे धीरे 1.8 ट्रिलियन डॉलर के निवेश पर भी सभी देश राज़ी हुए.
नेताओं की नई दिल्ली घोषणा (NDLD) ने पेरिस में किए गए 100 अरब डॉलर की सहायता देने का वादा पूरा करने की मांग की गई. इसके साथ साथ एक महत्वाकांक्षी, पता लगाए जा सकने वाले, पारदर्शी और नए सामूहिक संख्यात्मक लक्ष्य (NCQG) को भी निर्धारित किया गया, जिसमें विकसित देश और बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs) को इस मामले में और सक्रियता अपनाने को कहा गया; 2025 तक कार्बन उत्सर्जन को अलग अलग विकासशील देशों के स्तर पर अलग अलग अधिकतम सीमा निर्धारित करने पर सहमति बनी; जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली आपदाओं की पहले से चेतावनी देने की व्यवस्था बनाने को गति देने और 2050 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने के साझा मगर हर देश के स्तर पर अलग अलग ज़िम्मेदारियों (CBDR) पर सहमति बनी, जिसमें विकासशील देशों के लिए उनके राष्ट्रीय क्षमता पर आधारित नीतिगत फैसले लेने की गुंजाइश बनाए रखी गई.
न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन
नई दिल्ली घोषणा में स्वच्छ, टिकाऊ, कम क़ीमत वाली, न्यायोचित और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन के प्रति वचनबद्धता जताई; ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने और बाज़ार की स्थिरता के लिए ऊर्जा संसाधनों, आपूर्ति करने वालों और रास्तों की अबाध आपूर्ति बनाए रखने पर ज़ोर दिया गया; कम लागत में विकासशील देशों को ऋण मुहैया कराना; 2030 तक नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के लक्ष्य को दोगुना करने; ऊर्जा कुशलता की दर दो गुना करने के एक्शन प्लान को अपनाने; विकासशील देशों द्वारा जीवाश्म ईंधन पर अकुशल सब्सिडी देने के लिए नीतिगत गुंजाइश छोड़ना; और, छोटे व मध्यम आकार के एटमी रिएक्टरों को हरी झंडी दिखाना- ये विकासशील देशों और भारत के लिए बड़ी कामयाबी है. जो तीन ठोस पहलें सम्मेलन के दौरान की गईं, उनमें इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) के नेतृत्व में ग्रीन हाइड्रोजन इनोवेशन सेंटर की स्थापना करना; ऊर्जा परिवर्तन के लिए अहम खनिज तत्वों के मामले में सहयोग के लिए उच्च स्तरीय सिद्धांतों पर सहमति और ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस की शुरुआत करना शामिल है.
डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI)
डिजिटल खाई को पाटने के लिए तकनीकी परिवर्तन की उभरती परिकल्पना और DPI की शुरुआत की. वित्तीय समावेशन के लिए भारत के JAM (जन-धन, आधार और मोबाइल) की त्रिवेणी की उपलब्धियों को समझते हुए, दिल्ली शिखर सम्मेलन ने G20 फ्रेमवर्क फॉर सिस्टम्स ऑफ DPI को स्वीकार किया, G20 और अन्य देशों से साझा करने के लिए भारत द्वारा वैश्विक DPI रिपॉज़िटरी बनाने और उसके रख-रखाव की योजना का स्वागत किया गया और विकासशील देशों की सहायता के लिए भारत के ‘वन फ्यूचर एलायंस’ के प्रस्ताव को मान्यता दी गई.
बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार
सम्मेलन के दौरान भारत और ग्लोबल साउथ के बहुत से मक़सदों में बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार का एजेंडा अपनाने में भी सफलता मिली, जिसे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ‘अकर्मण्यता का जंजाल’ कहते हैं. ऐसा पहली बार हुआ जब, G20 ने सामूहिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 75/1 को दोहराते हुए कहा कि बहुपक्षीयवाद और सुधारों को लागू किया जाना चाहिए, जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों को लागू किया जाना चाहिए, और भारत ही नहीं पूरे ग्लोबल साउथ की स्थिति को मज़बूती दी जानी चाहिए.
सम्मेलन ने संकेत दिया कि बहुपक्षीय विकास बैंकों के ज़रिए स्वैच्छिक रूप से पैसे उधार लेने की व्यवस्था से ब्रिजटाउन की पहल लागू करने का रास्ता खुलेगा और कमज़ोर देशों की और मदद की जा सकी.
बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) के मामले में G20 सम्मेलन ने इनको अधिक प्रभावी और बड़ा बनाने के लिए सुधार जारी रखने की वचनबद्धता दोहराई, ताकि ये बैंक विकास में सहायता की रक़म को अरबों से ख़रबों डॉलर में तब्दील कर सकें और अपने काम के मॉडल को सुधारते हुए वित्तीय क्षमताओं में काफ़ी इज़ाफ़ा कर सकें, जिससे विकासशी देशों के लिए तेज़ी और मज़बूती से फंड जुटाने का काम हो सके.
G20 सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और आर्थिक संस्थानों के निर्णय लेने की प्रक्रिया में विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व और उनकी आवाज़ को बढ़ाने की मांग को दोहराया गया, और कहा गया कि ये काम न केवल लाभार्थियों की नज़र से होना चाहिए, बल्कि इन देशों को फ़ैसला लेने वाला भी बनाया जाना चाहिए. इसके अलावा अपील की गई कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कोटे का सुधार दिसंबर 2023 तक पूरा हो जाना चाहिए. पूंजी की पर्याप्तता के रूप-रेखा के तहत विकास और पुनर्निर्माण के अंतरराष्ट्रीय बैंक (IBRD) को 200 अरब डॉलर की रक़म और देने की बात भी कही गई ताकि वो विकासशील देशों की और मदद कर सके. ये विकासशील देशों की सहायता के लिए उठाया गया पहला महत्वपूर्ण क़दम है, क्योंकि ये देश IBRD के रियायती क़र्ज़ों पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
सम्मेलन ने संकेत दिया कि बहुपक्षीय विकास बैंकों के ज़रिए स्वैच्छिक रूप से पैसे उधार लेने की व्यवस्था से ब्रिजटाउन की पहल लागू करने का रास्ता खुलेगा और कमज़ोर देशों की और मदद की जा सकी. निवेश की लागत कम करने और अंतरराष्ट्रीय विकास एसोसिएशन की संकट से निपटने की गति और रियायती दरों पर क़र्ज़ देने पर सहमति कुछ अन्य अहम उपलब्धियों में शामिल हैं. बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA) और इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC) पेंशन फंड, संपत्तियों का प्रबंधन करने वाली कंपनियों और मिली-जुली पूंजी के ज़रिए टिकाऊ तरीक़े से पूंजी मुहैया कराने को मज़बूत करने के प्रति वचनबद्धता भी जताई गई.
क़र्ज़ का संकट
दिल्ली शिखर सम्मेलन ने 70 देशों के ऊपर 9 ट्रिलियन डॉलर के अभूतपूर्व और असहनीय बोझ की चुनौती से निपटने का भी प्रयास किया. इनमें से 30 प्रतिशत क़र्ज़ तो अकेले चीन ने दिया है. सम्मेलन में ये मांग उठाई गई कि G20 के क़र्ज़ को निलंबित करने की योजना को अधिक प्रभावी और तेज़ गति से लागू करने की ज़रूरत है. सहमति इस बात पर भी बनी कि क़र्ज़ को पुनर्निर्धारित करने की रूप-रेखा से आगे बढ़ने की ज़रूरत है, और पहली बार भारत ने श्रीलंका के लिए समन्वय की एक व्यवस्था बनाई, जिससे उन देशों की भी मदद की जा सके, जो इस साझा रूप-रेखा का हिस्सा नहीं हैं. शिखर सम्मेलन में कहा गया कि निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों की क़र्ज़ की कमज़ोरियों से व्यापक तौर पर निपटने की ज़रूरत है, ताकि साझा रूप-रेखा के नीतिगत मसलों से निपटकर उसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके.
महिलाओं के नेतृत्व में विकास
महिलाओं की अगुवाई में विकास की पहल प्रधानमंत्री मोदी ने की थी, इसे पहली बार G20 में स्थान दिया गया. नेताओं की नई दिल्ली घोषणा (NDLD) में महिलाओं के सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण को सबसे अधिक व्यापक और विस्तृत स्थान- क़रीब ढाई पन्नों का- दिया गया. इसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में महिलाओं को आगे करने; महिलाओं की खाद्य सुरक्षा, पोषण और बेहतरी को सुनिश्चित करने के अलावा हिंसा और पूर्वाग्रह ख़त्म करने पर ज़ोर दिया गया. घोषणापत्र में पुरुषों और महिलाओं के बीच डिजिटल फ़ासले को 2030 तक आधा करने का नया लक्ष्य रखा गया और 2025 तक कामगारों में महिलाओं की भागीदारी में कमी को घटाकर 25 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया. महिलाओं के लिए एक अलग वर्किंग ग्रुप बनाना, इस सम्मेलन की एक बड़ी उपलब्धि रही, जिससे आगे से महिलाओं को मुख्यधारा में लाने, इस प्रयास की निगरानी और जवाबदेही तय करने के लिए संस्थागत रूप से ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा.
सफलता को आपस में बांटना
नई दिल्ली घोषणा के आख़िरी पैराग्राफ में संकेत मिलता है कि भारत ने ये सुनिश्चित किया है कि G20 अब ‘वैश्विक आर्थिक सहयोग का सबसे बड़ा मंच बना रहेगा और अब ये समूह दुनिया को उसकी मौजूदा चुनौतियों से बाहर निकालने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति रखता है, ताकि हमारी धरती और इसके लोगों के लिए एक सुरक्षित, मज़बूत, अधिक लचीली, समावेशी और स्वस्थ भविष्य का निर्माण किया जा सके.’
अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाले G20 सम्मेलन की ये कहते हुए तारीफ़ की कि, ‘भारत ने दिखाया है कि वो अभी हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान निकालने का नेतृत्व कर सकता है’.
इस सफलता को भी साझा किया गया है, क्योंकि विकासशील देशों के नेताओं ने मिलकर ग्लोबल साउथ की बातें G20 के मंच पर रखने के लिए भारत के नेतृत्व की तारीफ़ की. G20 की अध्यक्षता, बारी बारी से दुनिया की चार प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्थाओं- इंडोनेशिया (2022), भारत (2023), ब्राज़ील (2024) और दक्षिण अफ्रीका (2025)- के हाथों में होने के अभूतपूर्व और सुखद संयोग से ये अपेक्षा की जाती है कि दिल्ली शिखर सम्मेलन के निष्कर्षों को उनके तार्किक और परिवर्तनकारी पथ पर आगे बढ़ाया जा सके. तभी G20 में सत्ता का संतुलन, उनकी ज़रूरतों और उनके द्वारा वैश्विक प्रशासन की व्यवस्थाओं के विकासशील देशों के पक्ष में झुकने का असली संकेत मिलेगा. ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका को इन बातों को पूरी ताक़त से आगे बढ़ाना होगा.
अमेरिका और G7 देशों ने भी भारत के साथ सामरिक साझेदारी को आगे बढ़ाने और इस मंच की ज़िंदादिली को बनाए रखने के बड़े दांव को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई. अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाले G20 सम्मेलन की ये कहते हुए तारीफ़ की कि, ‘भारत ने दिखाया है कि वो अभी हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान निकालने का नेतृत्व कर सकता है’ और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अपने भाषण में भी ‘भारत की नई और शानदार उपलब्धियों’ का ज़िक्र किया. यहां तक कि चीन ने भी, G20 सम्मेलन के नतीजों को लेकर संतोष जताया, कुल मिलाकर, ये भारत की विदेश नीति और राष्ट्रीय एकजुटता की सफलता की ज़बरदस्त मिसाल थी. इस सम्मेलन को भारत को अपनी ताक़त को नए सिरे से स्थापित करने और उभरती हुई विश्व व्यवस्था के केंद्र में लाने वाले सबसे गर्व भरे लम्हें कहा जा सकता है.
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