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हाल की त्रिपक्षीय बैठक अब्राहम समझौते के साझेदारों के बीच बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक संबंधों का संकेत है. भारत इन तीनों देशों के साथ क़रीबी संबंध साझा करता है. ऐसे में विदेश मंत्रियों की होने वाली पहली बैठक “नये क्वॉड” की छानबीन का एक मौक़ा पेश करेगी.
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13 अक्टूबर को वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, यूएई के विदेश मंत्री शेख़ अब्दुल्ला बिन ज़ायद अल नाहयान और इज़रायल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री येर लैपिड के बीच बैठक इस बात की याद दिलाती है कि 14 अगस्त 2020 को अब्राहम समझौते की घोषणा के बाद पश्चिम एशिया में किस हद तक बदलाव हो चुका है. अमेरिकी विदेश विभाग की तरफ़ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि ब्लिंकन ने ‘इज़रायल और यूएई के बीच संबंधों में गर्माहट का स्वागत किया है. दोनों देशों में एक-दूसरे के दूतावास का खुलना, राजदूतों की नियुक्ति, नई सीधी विमान सेवा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के दर्जनों मौक़े और आर्थिक एवं कारोबारी संबंधों में बढ़ोतरी से दोनों देशों और इस क्षेत्र के लोगों को फ़ायदा हुआ है.’
जनवरी 2020 में व्हाइट हाउस में जब ‘शताब्दी के समझौते’ से पर्दा हटाया गया था तो ट्रंप प्रशासन ने फिलिस्तीनियों के अधिकारों की कोई परवाह नहीं की थी. लेकिन इसके विपरीत बाइडन प्रशासन ने दो देशों के बीच समाधान के सिद्धांत का कम-से-कम दिखावा तो किया.
इस त्रिपक्षीय बैठक ने ये बताया कि किस तत्परता के साथ बाइडेन प्रशासन ने जेरेड कुशनर के नेतृत्व में अब्राहम समझौते, जो ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के आख़िरी महीनों में हुआ था, को अपनाया है. हालांकि विदेश विभाग ने ये भी कहा कि ‘विदेश मंत्री ने प्रशासन की इस प्रतिबद्धता को दोहराया कि बातचीत के आधार पर दो देशों के बीच समाधान को आगे बढ़ाया जाए और इन समझौतों को आख़िर तक उपयोग में लाया जाए.’ जनवरी 2020 में व्हाइट हाउस में जब ‘शताब्दी के समझौते’ से पर्दा हटाया गया था तो ट्रंप प्रशासन ने फिलिस्तीनियों के अधिकारों की कोई परवाह नहीं की थी. लेकिन इसके विपरीत बाइडन प्रशासन ने दो देशों के बीच समाधान के सिद्धांत का कम-से-कम दिखावा तो किया. वास्तव में अमेरिकी अधिकारियों ने दोहराया कि इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच बातचीत के आधार पर समस्या के निपटारे की जगह अब्राहम समझौता नहीं ले सकता.
त्रिपक्षीय बैठक के बाद शेख़ अब्दुल्ला की प्रेस से बातचीत के दौरान फिलिस्तीन का मुद्दा भी उठा. शेख़ अब्दुल्ला ने ये माना कि उन्होंने येर लैपिड की तरफ़ से न्योते को स्वीकार किया है और जल्द ही इज़रायल जाने की योजना बना रहे हैं. इसके साथ शेख़ अब्दुल्ला ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यूएई-इज़रायल के बीच संबंधों में मज़बूती आने से इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों को इस बात के लिए बढ़ावा मिलेगा कि वो देखें कि ‘ये रास्ता काम करता है, ये रास्ता सिर्फ़ निवेश नहीं बल्कि जोखिम लेने के लिए भी है.’
वॉशिंगटन डीसी में धार्मिक सह-अस्तित्व पर घोषित त्रिपक्षीय कार्यकारी समूह ‘अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाएगा और धार्मिक असहिष्णुता और नफ़रत का मुक़ाबला करेगा.
त्रिपक्षीय बैठक में दो अलग-अलग कार्यकारी समूहों की स्थापना का ऐलान भी हुआ. एक समूह धार्मिक सह-अस्तित्व पर जबकि दूसरा समूह पानी और ऊर्जा पर. पिछले कुछ वर्षों में यूएई ने एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के ज़रिए धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देकर धार्मिक चरमपंथ का मुक़ाबला करने की कोशिश में राह दिखाई है. बड़े अंतर-धार्मिक सम्मेलनों, इंसानी भाईचारे को लेकर एक विस्तृत दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए पोप और अल अज़हर के ग्रैंड शेख़ को अबुधाबी बुलाना और अबुधाबी के सादियात द्वीप पर विशाल ‘अब्राहम परिवार का घर’ बनाना जहां एक ही कॉम्प्लेक्स के भीतर मस्जिद, चर्च और सिनेगॉग होंगे- यूएई की तरफ़ से धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के प्रमुख उदाहरण हैं. वॉशिंगटन डीसी में धार्मिक सह-अस्तित्व पर घोषित त्रिपक्षीय कार्यकारी समूह ‘अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाएगा और धार्मिक असहिष्णुता और नफ़रत का मुक़ाबला करेगा. इसके लिए धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं, विद्वानों और उनके देशों की सरकारों के बीच सहयोग का सहारा भी लिया जाएगा.’ इस कार्यकारी समूह पर यूएई के नेतृत्व की छाप साफ़ है. हालांकि इज़रायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट की दक्षिणपंथी सरकार जिस तत्परता के साथ इस पहल में शामिल हो रही है, उस पर सवालिया निशान बना रहेगा.
ख़बरों के मुताबिक़ अमेरिका ने त्रिपक्षीय बातचीत का इस्तेमाल इज़रायल और यूएई में चीन की बढ़ती मौजूदगी को लेकर अपनी चिंता पर ध्यान देने में किया. हाइफा में चीन की सरकारी कंपनी शंघाई इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप के द्वारा 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से बनाया गया कंटेनर टर्मिनल साफ़ तौर पर इज़रायल की साजो-सामान की क्षमता को विकसित करेगा. लेकिन ये टर्मिनल उस बंदरगाह के नज़दीक है जिसका इस्तेमाल अमेरिका और इज़रायल की नौसेना के जहाज़ करते हैं और इस वजह से इन जहाज़ों के आने-जाने पर चीन की निगरानी का डर पैदा होता है. भूमध्यसागर में इज़रायल के दूसरे बड़े बंदरगाह अशदोद को भी चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी बेहतर बना रही है. ऐसे में अमेरिका की चिंता इस बात को लेकर बढ़ती जा रही है कि चीन की सरकारी कंपनियां एक सामरिक साझेदार की संवेदनशील इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में प्रवेश कर गई हैं.
इस बीच अबुधाबी ने ख़लीफ़ा बंदरगाह पर एक नया कंटेनर टर्मिनल विकसित करने के लिए चाइना ओशन शिपिंग कंपनी (कॉस्को) के साथ 35 वर्ष के रियायती समझौते पर हस्ताक्षर किया है. ये बंदरगाह अबुधाबी और दुबई के बीच में है और इसकी महत्वाकांक्षा है कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में वो एक बड़ा केंद्र बने. अपने 5जी टेलीकॉम नेटवर्क के लिए हुवावे को चुनने का यूएई का शुरुआती फ़ैसला भी झगड़े की जड़ बन गया है. कुछ ख़बरों के मुताबिक़ अगर 5जी नेटवर्क को लेकर अमेरिका की सुरक्षा चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो अमेरिका एफ-35 लड़ाकू विमानों को सप्लाई करने के समझौते पर अमल करने में देरी कर सकता है. ये महज़ संयोग नहीं हो सकता कि हाल के महीनों में यूएई की दो दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एतिसलात और डू ने अपने 5जी हार्डवेयर का हिस्सा हासिल करने के लिए एरिक्सन और नोकिया के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
कुछ ख़बरों के मुताबिक़ अगर 5जी नेटवर्क को लेकर अमेरिका की सुरक्षा चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो अमेरिका एफ-35 लड़ाकू विमानों को सप्लाई करने के समझौते पर अमल करने में देरी कर सकता है.
निस्संदेह ईरान इन तीनों देशों के लिए एक प्रमुख मुद्दा है. अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकन ने त्रिपक्षीय बातचीत के बाद कहा कि 2015 के परमाणु समझौते के पूरी तरह पालन की तरफ़ लौटने के लिए ईरान के पास “समय ख़त्म हो रहा है”. लेकिन ब्लिंकन ने इस पर भी ज़ोर दिया कि अमेरिका मानता है कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए ‘कूटनीतिक रास्ता सबसे असरदार तरीक़ा है.’ यूएई ओबामा के दौर में ईरान के साथ समझौते का मुखर आलोचक रहा है और उसने दलील दी कि एक प्रमुख क्षेत्रीय किरदार होने की वजह से बातचीत की मेज पर उसकी भी जगह होनी चाहिए. हाल के महीनों में यूएई ने सतर्कता के साथ ईरान को तनाव कम करने का प्रस्ताव दिया है लेकिन वो इस बात को लेकर चिंतित बना रहा कि यमन, बहरीन, इराक़, सीरिया और लेबनान जैसे क्षेत्रीय मामलों में ईरान के दख़ल का समाधान करने की कोई भी कोशिश ईरान परमाणु समझौते में नहीं की गई. ईरान को लेकर इज़रायल का रवैया कठोर बना हुआ है और लैपिड ने संकेत दिया है कि अगर बातचीत नाकाम हुई तो दूसरे विकल्प मौजूद हैं.
लेकिन कोई भी घटना पिछले 14 महीनों के दौरान यूएई और इज़रायल के द्वारा अपने द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने में महत्वपूर्ण प्रगति से ध्यान नहीं हटा सकती. विदेश मंत्री शेख़ अब्दुल्ला के भरोसेमंद और बेहद सक्षम सेना प्रमुख मोहम्मद अल खाजा ने मार्च 2021 में इज़रायल में यूएई के पहले राजदूत का पदभार संभाला और तेल अवीव में यूएई के दूतावास का जुलाई में औपचारिक उद्घाटन किया गया. इस बीच इज़रायल ने जून में अबुधाबी में अपना दूतावास और दुबई में वाणिज्य दूतावास खोला है. जो उल्लेखनीय दूसरी घटनाएं हुई हैं, उनमें शामिल हैं:
एक तरफ़ यूएई और इज़रायल के बीच उभर रहा ‘सामान्य’ और जोशपूर्ण संबंध है तो दूसरी तरफ़ ऐतिहासिक कैंप डेविड समझौते के चार दशक के बाद भी मिस्र और इज़रायल के बीच अपेक्षाकृत रूखा, सुरक्षा के दबदबे वाला संबंध है.
ये वो छोटे-छोटे क़दम हैं जो इज़रायल और यूएई के बीच एक व्यापक संबंध बनाने के लिए पहले ही उठाए जा चुके हैं. इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, जल संरक्षण, स्वास्थ्य देखभाल, नागरिक उड्डयन और लोगों के बीच आपसी मेलजोल से जुड़े अनगिनत दूसरे समझौते और समझौता ज्ञापन शामिल नहीं हैं. एक तरफ़ यूएई और इज़रायल के बीच उभर रहा ‘सामान्य’ और जोशपूर्ण संबंध है तो दूसरी तरफ़ ऐतिहासिक कैंप डेविड समझौते के चार दशक के बाद भी मिस्र और इज़रायल के बीच अपेक्षाकृत रूखा, सुरक्षा के दबदबे वाला संबंध है. इन दोनों संबंधों के बीच का विरोधाभास इससे ज़्यादा नहीं हो सकता.
अमेरिका, यूएई और इज़रायल- इस त्रिपक्षीय गुट के तीनों देशों के साथ भारत के क़रीबी संबंध हैं. ऐसे में भारत, इज़रायल, अमेरिका और यूएई के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली पहली बैठक एक और क्वॉड जैसे संगठन का सूचक हो सकता है.
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