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Published on Jul 20, 2024 Updated 0 Hours ago

2023 की शुरुआती तीन तिमाहियों में रवांडा की GDP विकास दर 7.6 प्रतिशत रहने से उसके अफ्रीका में निवेश के दूसरे सबसे अच्छा ठिकाना होने की रैंकिंग बढ़ी है.

अफ्रीकी देश रवांडा में पॉल कगामे की राजनीतिक वापसी: पास-पड़ोस में असर का विश्लेषण?

इस 18 जुलाई को रवांडा ने अपनी आज़ादी की तीसवीं वर्षगांठ मनाई थी. 18 जुलाई 1994 को ही रवांडा के पैट्रिऑटिक फ्रंट (RPF) ने इकतरफ़ा युद्ध विराम का एलान करते हुए नरसंहार के ख़ात्मे की घोषणा की थी. इसके बाद रवांडा में राष्ट्रीय एकता सरकार का गठन किया गया था. और, इस साल जुलाई में पॉल कगामे का एक बार फिर से चुनाव जीतना तय है, जिससे 24 साल से चला आ रहा उनका कार्यकाल पांच वर्षों के लिए और आगे बढ़ जाएगा.

 

हालांकि, कगामे के 99 प्रतिशत वोट हासिल करने पर किसी को हैरानी नहीं हुई. सच्चाई तो ये है कि इस बार के चुनाव बिल्कुल 2017 के चुनाव का अक्स थे. कगामे ने उन्हीं प्रतिद्वंदियों को उसी अंतर से शिकस्त दी जिनको उन्होंने पिछली बार हराया था. जैसे कि पर्यावरणविद् फ्रैंक हैबिनेज़ा और पूर्व पत्रकार एवं सरकार के सलाहकार फिलिपे एमपेइमाना. यहां तक कि कगामे के कट्टर और मुखर आलोचक डियाने रविगारा समेत कगामे के कुछ विरोधियों का नामांकन रद्द करने की प्रक्रिया भी 2017 जैसी ही थी. यानी इस बार भी उनका नामांकन पंजीकरण के अधूरे दस्तावेज़ों की वजह से किया गया था.

1994 का नरसंहार समाप्त होने के बाद जब कगामे को उप-राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री चुना गया था, तब उनकी उम्र केवल 36 बरस थी. उसके बाद से ही कगामे रवांडा के वास्तविक शासक रहे हैं.

रवांडा ने आधुनिक दौर का सबसे भयानक और सबसे बड़ा नरसंहार झेला था, जब 1994 में सिर्फ़ 100 दिनों के भीतर हुतु उग्रवादियों ने अपने देश के आठ लाख नागरिकों की हत्या कर दी थी. इनमें से ज़्यादातर तुत्सी जनजाति के लोग थे. 1994 का नरसंहार समाप्त होने के बाद जब कगामे को उप-राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री चुना गया था, तब उनकी उम्र केवल 36 बरस थी. उसके बाद से ही कगामे रवांडा के वास्तविक शासक रहे हैं. साल 2000 में उन्हें राष्ट्रपति चुना गया था; उसके बाद से कगामे ने कोई चुनाव नहीं हारा और वो राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं. 

 

2016 में उनकी सरकार ने संविधान में एक नया संशोधन किया था, जिसकी वजह से 2017 में उन्हें सात साल के कार्यकाल के लिए एक बार फिर चुनाव लड़ने का मौक़ा मिल गया. इस संशोधन के मुताबिक़ कगामे 2029 में भी चुनाव लड़ने के योग्य बने रहेंगे और वो 2034 तक सत्ता में रह सकते हैं. ये विडम्बना ही है कि रवांडा की आधी से ज़्यादा आबादी की उम्र 30 साल से कम है और ऐसे में देश के ज़्यादातर नागरिकों को कगामे के सिवा किसी और नेता होने का अनुभव ही नहीं रहा है. वैसे तो रवांडा के आम चुनाव के नतीजे का एलान 27 जुलाई को किया जाएगा. लेकिन, ये साफ़ है कि 66 बरस के कगामे का चौथी बार सत्ता में आना तय है. इसीलिए, इस बात की पड़ताल करना आवश्यक है कि राष्ट्रपति के तौर पर उनके अगले कार्यकाल का रवांडा और अन्य जगहों पर क्या असर पड़ेगा.

 

घरेलू स्तर पर मज़बूत और स्थिर सत्ता बनी रहेगी

 

पिछले तीन दशकों के दौरान कगामे की सरकार ने विकास के ठोस क़दम उठाए हैं. एक स्थिर राजनीतिक माहौल स्थापित करने में उनकी कामयाबी की वजह से रवांडा के सामाजिक आर्थिक विकास में काफ़ी सुधार आया है. नरसंहार के बाद बहुत से लोगों ने रवांडा के लिए कोई उम्मीद लगाना छोड़ दिया था. फिर भी, रवांडा पूरे क्षेत्र में इनोवेशन का गढ़ बनकर उभरा है. 2012 से 2022 के बीच रवांडा की औसत विकास दर 7.2 प्रतिशत रही है. कगामे ने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की मेज़बानी करके और पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना ‘विज़िट रवांडा’ के तहत आर्सेनल फुटबॉल क्लब का प्रायोजक बनकर, दुनिया में देश की छवि भी सुधारी है. हज़ारों पहाड़ियों की धरती के नाम से मशहूर रवांडा, अब अफ्रीका में इको-टूरिज़्म के बड़े ठिकाने के तौर पर भी उभरा है, ख़ास तौर से अपने पहाड़ी गोरिल्लों और उनसे संबंधित पर्यटन की वजह से. रवांडा, अफ्रीकी महाद्वीप में जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ जद्दोजहद की भी अगुवाई कर रहा है.

 कगामे के आलोचक उनके ऊपर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने देश में डर का माहौल बनाकर रखा है. वो डरा-धमकाकर, लोगों को अवैध तरीक़े से क़ैद करके, उनकी हत्याएं कराकर और आलोचकों को लापता कराते हैं ,और इस तरह अपने आलोचकों का मुंह बंद करते रहे हैं. 

हालांकि, कगामे के आलोचक उनके ऊपर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने देश में डर का माहौल बनाकर रखा है. वो डरा-धमकाकर, लोगों को अवैध तरीक़े से क़ैद करके, उनकी हत्याएं कराकर और आलोचकों को लापता कराते हैं ,और इस तरह अपने आलोचकों का मुंह बंद करते रहे हैं. 2020 में आतंकवाद से संबंधित आरोपों के तहत ‘होटल रवांडा’ के मशहूर हीरो पॉल रूसेसाबागिना की गिरफ़्तारी के मामले को इसकी सबसे बड़ी मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है. हालांकि, पिछले साल पॉल रूसेसाबागिना को राष्ट्रपति से माफ़ी मिल गयी थी और वो 25 साल की क़ैद की सज़ा से आज़ाद हो गए थे.

 

1990 के दशक में रवांडा ने नरसंहार के मामलों में इंसाफ़ और दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए कई गकाका अदालतों की स्थापना की थी. दिलचस्प बात ये है कि इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट फॉर रवांडा (ICTR) की तुलना में इन अदालतों ने नरसंहार के कहीं ज़्यादा मामलों का निपटारा किया था. चूंकि इन अदालतों ने रवांडा के आम नागरिकों को सच्चाई और न्याय पर विचार करने का मौक़ा दिया, और इस प्रक्रिया ने आख़िरकार देश की न्यायिक व्यवस्था को मज़बूती भी दी और मेल-मिलाप और सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल भी तैयार किया था.

 

एक क्षेत्रीय खिलाड़ी के तौर पर रवांडा की भूमिका

 

रवांडा की सेना पूरे महाद्वीप में शांति स्थापना के प्रयासों में अहम भूमिका निभाती रही है. फिर भी कगामे की सेना पर पड़ोसी देश, कांगो गणतांत्रिक गणराज्य (DRC) में अस्थिरता पैदा करने के इल्ज़ाम लगते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र (UN) के बहुत से विशेषज्ञ आधिकारिक रूप से ये आरोप लगाते रहे हैं कि कॉन्गो के पूर्वी इलाक़े में M23 विद्रोहियों के साथ रवांडा के कई हज़ार सैनिक जंग लड़ते रहे हैं और उनके अभियानों पर ‘वास्तविक नियंत्रण’ रवांडा की सरकार का ही रहा था.

 

संयुक्त राष्ट्र की कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़, रवांडा डिफेंस फोर्स (RDF) के लगभग तीन से चार हज़ार सैनिक अभी भी कॉन्गो (DRC) में M23 उग्रवादियों के साथ मिलकर युद्ध लड़ रहे हैं. इन ख़बरों को सीधे तौर पर ख़ारिज करने के बजाय, रवांडा ने कॉन्गो पर ही ये इल्ज़ाम लगाया है कि वो रवांडा के कगामे विरोधी विद्रोहियों FDLR का समर्थन करता है. रवांडा पर ये इल्ज़ाम भी लगता रहा है कि वो कॉन्गो के खनिज से समृद्ध पूर्वी इलाक़े से सोने और दूसरे दुर्लभ खनिज तत्वों को चुरा ले जाता है.

 

आरोप और प्रत्यारोप के इस तनावपूर्ण माहौल में ख़तरा इस बात का भी है कि ये संघर्ष बेक़ाबू हो जाए और एक क्षेत्रीय युद्ध में न तब्दील हो जाए. कॉन्गो के दो युद्धों की यादें अभी भी लोगों के ज़हन में ताज़ा हैं और कॉन्गो का एक और युद्ध पूरे इलाक़े को तबाह करने वाला होगा. यही नहीं, पड़ोस में जंग होने की वजह से कॉन्गो के हज़ारों बाशिंदे अपने घर छोड़कर रवांडा के क़स्बों में पनाह लेने के लिए मजबूर हो गए हैं. इस वक़्त रवांडा में कॉन्गो के लगभग एक लाख 35 हज़ार शरणार्थी रह रहे हैं, और शरणार्थियों की किसी भी अतिरिक्त खेप के आने पर सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है.

 

Source: Al Jazeera

अन्य देशों से रवांडा के रिश्ते और विवादास्पद अप्रवासी समझौता

साल 2000 में जब कगामे सत्ता में आए थे, तो उनका मुख्य मक़सद अपनी सत्ता को मज़बूत करने और एक नई राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने के साथ साथ देश में स्थिरता क़ायम करना भी था. मोटे तौर पर यूरोपीय संघ जैसे तमाम अंतरराष्ट्रीय संगठनों, ब्रिटेन, स्कैंडिनेवियाई देशों और जर्मनी बोलने वाले दानदाता देशों और अमेरिका द्वारा दिल खोलकर मदद करने की वजह से कगामे अपने इन मक़सदों में कामयाब रहे हैं. इसके बदले में रवांडा की सरकार ने विकास की एक योजना बनाई है, काफ़ी सुधार किए हैं और मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं की शुरुआत की है. तुलनात्मक रूप से एक प्रभावी प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया है, और निचले स्तर पर फैले भ्रष्टाचार पर क़ाबू पाने की भी कोशिश की है. इसका नतीजा ये हुआ है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान रवांडा ने ख़ुद को विकास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का सबसे ‘पसंदीदा देश’ या ‘चमकते सितारे’ के तौर पर स्थापित कर लिया है. पश्चिमी देशों की सरकारें जो क्षेत्रीय संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल होने की इच्छा नहीं रखती हैं, वो ये भरोसा करती हैं कि रवांडा इस मामले में नेतृत्व करेगा, और इस तरह से वो बाहरी दख़लंदाज़ी और विशेष रूप से रूस के वैगनर ग्रुप को पांव जमाने से रोक सकेगा.

अप्रैल 2022 में रवांडा ने ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार के साथ ये समझौता किया था कि वो ब्रिटेन में पनाह लेने के लिए जाने वाले 50 हज़ार लोगों को अपने यहां आकर बसने देगा और इसके बदले में ब्रिटेन से 37 करोड़ डॉलर की रक़म हासिल करेगा.

अप्रैल 2022 में रवांडा ने ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार के साथ ये समझौता किया था कि वो ब्रिटेन में पनाह लेने के लिए जाने वाले 50 हज़ार लोगों को अपने यहां आकर बसने देगा और इसके बदले में ब्रिटेन से 37 करोड़ डॉलर की रक़म हासिल करेगा. वैसे तो ब्रिटेन के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री कियर स्टार्मर ने ये समझौता ख़त्म करने का फ़ैसला किया है. लेकिन, रवांडा ने इस समझौते के तहत मिली रक़म का आंशिक हिस्सा तक वापस देने से मना कर दिया है. इससे पहले रवांडा ने इज़राइल से भी ऐसा ही समझौता किया था. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि ब्रिटेन की सरकार रवांडा के इस इनकार से कैसे निपटती है.


जब कगामे पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तो रवांडा नरसंहार के बाद के असर से जूझ रहा था. फिर भी, तीन दशकों का बाद आज देश स्थिर है, समृद्ध है और एकजुट भी है. कगामे के समर्थकों की नज़र में वो एक ऐसे नेता हैं जो समझौता नहीं करते और देश को किसी नेता की तरह नहीं बल्कि कॉरपोरेट मैनेजर की तरह चलाते हैं. लाखों नौजवानों और बुज़ुर्गों के लिए कगामे, नरसंहार के दु:खद अध्याय के बाद देश को एकजुट करने वाली ताक़त और देश के आर्थिक विकास के प्रमुख रचनाकार हैं. लाखों मतदाताओं के लिए सीमा के उस पार का संघर्ष चिंता का विषय नहीं है. उनके लिए तो महंगाई की मार से जूझ रहे देश में रहन सहन का बढ़ता ख़र्च सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है. आलोचक तो हमेशा ही रहेंगे. लेकिन, 2023 की पहली तीन तिमाहियों में रवांडा की GDP विकास दर 7.6 प्रतिशत बने रहने और उसके अफ्रीका में निवेश और कारोबार का दूसरा सबसे अच्छा ठिकाना होने के साथ साथ मानव विकास सूचकांकों में तेज़ उछाल की वजह से, रवांडा का भविष्य उम्मीदें जगाने वाला लगता है.

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