रवांडा के विदेश मंत्री रिचर्ड सेज़ीबेरा कहते हैं कि उनके देश की ग्रोथ की क्वॉलिटी यानी आर्थिक विकास की गुणवत्ता कमाल की है क्योंकि यह खनिज संपदा या इस तरह के दूसरे कच्चे माल के दोहन पर आश्रित नहीं है. सेज़ीबेरा कहते हैं- कम से कम 10 साल की अच्छी नीतियों की वजह से हम यहां तक पहुंचे हैं. सेज़ीबेरा ने ये बातें ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रेसिडेंट समीर सरन के साथ किगाली ग्लोबल डायलॉग के मौके पर रवांडा की राजधानी में बातचीत की. उन्होंने समीर सरन को बताया, “दुनिया को आज जिस सच्चाई का पता चल रहा है, हम हमेशा से उस माहौल में रहते आए हैं. इसलिए हमने उन चीज़ों में निवेश करने का फैसला किया, जो हमारी जनता के लिए ठीक है. हमने उन लोगों के साथ पार्टनरशिप की, जो हमें समझते हैं. जिस चीज़ से हमें फायदा हो रहा है, हमारा मानना है कि वह दूसरों के लिए भी फायदेमंद हो सकती है. इसलिए किसी को हमें साझेदार और साझेदारी चुनने का निर्देश नहीं देना चाहिए. यह ठीक नहीं है.” हम इस इंटरव्यू के ख़ास अंश आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें आर्थिक विकास पर रवांडा और दूसरे अफ्रीकी देशों की वैश्विक समुदाय के साथ साझेदारी के सारे पहलू शामिल हैं.
समीर सरन: दुनिया की 10 सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले देशों में से 6 अफ्रीका के हैं. क्या आगे भी इसके जारी रहने की उम्मीद है? बुनियादी चुनौतियों की वजह से इस पर ब्रेक लगने की आशंका तो नहीं है?
रिचर्ड सेज़ीबेरा: पहली बात तो यह है कि अफ्रीकी महादेश में हम जो विकास देख रहे हैं, वह महत्वपूर्ण है. ख़ास बात इसकी क्वॉलिटी है. यह तेज़ आर्थिक विकास खनिज संसाधनों के दोहन पर आश्रित नहीं हैं. रवांडा भी ऐसा ही देश है. इसका मतलब यह है कि पिछले कई वर्षों में हमने जो नीतियां बनाई हैं, उनकी वजह से यह ग्रोथ हासिल हो रही है. रवांडा में पिछले 10 साल में जो नीतियां बनी हैं, उससे इस ग्रोथ की बुनियाद तैयार हुई. ग्रोथ को टिकाऊ बनाने के लिए हम इनोवेशन, स्वास्थ्य, शिक्षा और ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रहे हैं. इसके बावजूद हमारे सामने अभी कई चुनौतियां हैं. अफ्रीका संभावनाओं का महादेश है. इसकी समृद्धि काफी बढ़ सकती है, लेकिन हमें अपनी अधिकांश जनता के लिए वेल्थ क्रिएट करनी है यानी संपत्ति बनानी है. हमारे लिए यह बड़ी चुनौती है. शांति, सुरक्षा और सुशासन को लेकर हमें काफी काम करना है, जो अभी पूरा नहीं हुआ है. कुल मिलाकर, अफ्रीकी देश यह समझ चुके हैं कि वे तेज़ आर्थिक विकास हासिल कर सकते हैं. आख़िर कोई भी देश गरीबी का शाप क्यों झेले. राष्ट्रपति किगामे के नेतृत्व में अगर हमारा देश नरसंहार के अंधे कुएं से खुद को बाहर निकाल सकता है तो दुनिया के किसी भी कोने का कोई भी देश अपनी जनता की समृद्धि और भलाई का प्रयास कर सकता है. अफ्रीका में आज एक युवा ताकत और जोश है, जो सुनहरे भविष्य को लेकर आशावान है.
सरन: राष्ट्रपति किगामे ने जो सपना देखा है, आपके लिहाज़ से रवांडा किन क्षेत्रों में सर्विस और आइडिया कैपिटल और इनोवेशन की अगुवाई कर सकता है? आप इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किस तरह की साझेदारी कर रहे हैं?
सेज़ीबेरा: आपने बड़ी अच्छी बात कही, शुक्रिया. 25 साल पहले 1994 में रवांडा ने जो तबाही और बर्बादी देखी थी, मुझे लगता है कि राष्ट्रपति किगामे ने ख़ुद को उसका बंधक नहीं बनने दिया. उन्होंने तब रवांडा के लिए एक सपना देखा, संभावनाएं देखीं. हमारे विज़न 2020 में वही सपना था. 2050 विज़न सिर्फ़ सरकार का नहीं, समूचे रवांडा का है. इसमें सिविल सोसायटी, स्थानीय नेताओं, धार्मिक संस्थाओं सबकी सोच शामिल है. वे इसे पूरा होते हुए देखना चाहते हैं, भले ही इस पर अमल सरकार कर रही है. हमारे इस विज़न का एक स्तंभ शांति और सुरक्षा है, जिसके प्रति रवांडा के लोग समर्पित हैं. हमने शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश किया क्योंकि हम पढ़े-लिखे कामगारों की फौज चाहते थे, जो वेल्थ क्रिएशन यानी संपत्ति बनाने में सक्षम हो. हमने सड़क, रेल, एयरलाइंस और बिजली के क्षेत्र में निवेश किया. यह ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर है. हम बिजली और उसकी सप्लाई, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं. रवांडा में आज टेक्सटाइल से लेकर ऑटोमोबाइल तक कई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां आ रही हैं. ये उद्योग पर्यावरण से समझौता किए बग़ैर लगाए जा रहे हैं. हमारी दिलचस्पी सिर्फ़ वेल्थ क्रिएशन में नहीं है. हमारे लिए पर्यावरण की सुरक्षा कहीं अधिक मायने रखती है. हमने इस क्षेत्र और पूरे महादेश में ऐसे उद्यम का सपना देखा है, जिनकी हमारे उद्योगों को ज़रूरत है.
सरन: आज वैश्विक व्यापार की राह में कई चुनौतियां दिख रही हैं. ग्लोबलाइज़ेशन यानी वैश्विकरण से एक ऊब दिख रही है. कई बड़ी वित्तीय कंपनियां जहां अपने क्षेत्र में सीमित हो गई हैं, वहीं कंज्यूमर गुड्स और टेक्नोलॉजी कंपनियां देश की सीमाओं से बाहर निकल रही हैं. ऐसे माहौल में भारत और रवांडा कैसे तरक्की करें, हमें क्या करना चाहिए?
सेजीबेरा: अगर आप रवांडा और दूसरे अफ्रीकी देशों की बात करें तो हमारे लिए वैश्विक माहौल कभी इतना अच्छा नहीं रहा. हमने इतना अच्छा समय कभी नहीं देखा था. आज हमारे लिए जितनी अच्छी परिस्थितियां हैं, उतनी अच्छी ना ही 1980 और न ही 1990 के दशक में थीं. बाकी दुनिया को आज जिस सच्चाई का अहसास हो रहा है, हम हमेशा से उसे झेलते आए हैं. इसलिए हमने उन चीज़ों में निवेश करने का फ़ैसला किया, जो हमें अपनी जनता के लिए ठीक लगता है. हमने उन लोगों के साथ साझेदारी की, जो हमें समझते हैं. हमने इन पार्टनरशिप को बढ़ाया क्योंकि हमारा मानना है कि जो चीज़ हमारे लिए फायदेमंद हो सकती है, उससे दूसरों को भी फायदा होना चाहिए. अगर कोई हमसे पार्टनर और पार्टनरशिप चुनने के लिए कह रहा है तो वह ठीक नहीं कर रहा. हम ऐसा नहीं कर सकते. दूसरे लोगों के एजेंडा में हमारी भागीदारी की मांग करना ठीक नहीं है. इसके बजाय हमारे पास अपना एजेंडा है और हम उसके लिए पार्टनर्स चाहते हैं. हम ऐसी साझेदारी करते हैं, जिसमें दोनों पक्षों का भला हो. शायद गुटनिरपेक्षता का विचार आज भी मौजूं है, जितना यह पहले कभी था. कम से कम हमारे लिए तो यह बात बिल्कुल सही है. हम अपने विज़न और एजेंडा के प्रति समर्पित हैं. हमने हमेशा अलग-अलग तरह की पार्टनरशिप की है. हमने सरकारों, निजी क्षेत्र, यूनिवर्सिटी और रिसर्च सेंटरों के साथ साझेदारी की. हम हमेशा से ऐसी ही साझेदारी की दुनिया में रहे हैं. हमारे लिए चुनौती इन पार्टनरशिप में अपनी बात असरदार तरीके से रखने को लेकर रही है.
सरन: क्या इस मामले में हाल में बदलाव आया है? क्या आपको लगता है कि रवांडा और अफ्रीकी देशों की आवाज अब दूसरों तक पहुंच रही है?
सेजीबेरा: मेरी उम्मीद तो यही है. हम अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश करते रहेंगे और हम दूसरों की भी सुनने के लिए तैयार हैं. यह संतुलित रवैया है. आज दिक्कत यह है कि कई लोगों को लगता है कि सिर्फ़ उन्हें बोलने का हक़ है और बाकियों को चुपचाप उन्हें सुनना होगा. हम ऐसा नहीं मानते. हमें लगता है कि आपस में संवाद होना चाहिए.
सरन: पॉल किगामे और रवांडा के लोगों के लिए भारत में सम्मान और समर्थन है. आप भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्ते के बारे में बताएं?
सेजीबेरा: रवांडा के लिए भारत विकास में महत्वपूर्ण साझेदार है. मैं सिर्फ़ आज की बात नहीं कर रहा हूं, पहले भी हमारे भारत के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं. भारतीय उद्यमियों की मौजूदगी के चलते ही हमारे कुछ उद्योग खड़े हो सके. दोनों देशों के बीच मज़बूत रिश्ता है. आपकी यह बात सही है कि राष्ट्रपति किगामे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेज़ विकास और अपने यहां के लोगों को सशक्त बनाने में यकीन रखते हैं. आज रवांडा में भारतीय उद्यमियों की दिलचस्पी और बढ़ रही है.
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