Published on May 01, 2021 Updated 0 Hours ago

हम जो बात पक्के तौर पर कह सकते हैं कि बंगाल के चुनाव में जनकल्याण का मुहावरा और जनवादी कल्याणकारी राजनीति एक बार फिर से राजनीतिक नैरेटिव के केंद्र में पहुंच गए हैं. 

क्या लोकलुभावन और कल्याणकारी योजनाएं ममता को बंगाल की सत्ता बचाने में मददगार साबित होंगी?

बंगाल चुनाव में जहां सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हुई थीं कि ध्रुवीकरण बंगाल के नतीजों पर किस हद तक प्रभावित करेगा? लेकिन, ध्रुवीकरण को प्राथमिकता देने के कारण बंगाल चुनाव की एक अन्य ख़ासियत लोक-लुभावन और कल्याणकारी राजनीति को उसकी अहमियत के अनुरूप तवज्जो नहीं दी गई. हालांकि, राजनीति के क्षेत्र में सियासी रणनीति और नेतृत्व के अंदाज़ को समझने के लिए जनवाद एक व्यापक और बिल्कुल अलग तरह की परिकल्पना है. लेकिन, राजनेता चुनावी फ़ायदे के लिए अक्सर सब्सिडी, ख़ैरात और रोज़मर्रा की ज़रूरत वाले दूसरे फ़ायदों को जनता और ख़ास तौर से समाज के निचले वर्ग के बीच बांटकर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की कोशिश करते हैं. इसे ही कल्याणकारी जनवाद या मुफ़्त देने की राजनीति कहा जाता है. कल्याणकारी जनवादी नीतियों का सबसे अच्छा और सफल उदाहरण हमें तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की राजनीति में एमजी रामचंद्रन, एनटी रामाराव, एम करुणानिधि और जयललिता के करिश्माई नेतृत्व में देखने को मिलता है; ओडिशा में नवीन पटनायक, बिहार में नीतीश कुमार और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भी अपने अपने राज्यों में कल्याणकारी जनवादी नीतियों को अपनाया है. ममता बनर्जी ने भी कल्याणकारी नीतियों का बड़ी चतुराई से इस्तेमाल करते हुए लगातार दो चुनावों में जीत हासिल की है. वो इन्हीं कल्याणकारी नीतियों के बल बूते पर तीसरी बार भी बंगाल की सत्ता पर क़ाबिज़ होने की उम्मीद कर रही हैं.

ममता बनर्जी ने भी कल्याणकारी नीतियों का बड़ी चतुराई से इस्तेमाल करते हुए लगातार दो चुनावों में जीत हासिल की है. वो इन्हीं कल्याणकारी नीतियों के बल बूते पर तीसरी बार भी बंगाल की सत्ता पर क़ाबिज़ होने की उम्मीद कर रही हैं.

ममता का पितृसत्तात्मक कल्याणवाद

अगर हम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस द्वारा अपनाई गई कल्याणकारी नीतियों और उनके वितरण की भाषा का सावधानी से परीक्षण करें, तो इसमें संसाधनों के वितरण में पितृसत्तात्मक तरीक़े की राजनीति की झलक मिलती है, जो तमिलनाडु में जयललिता द्वारा अपनाई गई ऐसी ही नीतियों से काफ़ी मिलती-जुलती है. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने ऐसी कई कल्याणकारी नीतियों को अपनाया है, जो बंगाल में ज़िंदगी की लगभग हर मूलभूत ज़रूरतों जैसे कि खाना, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी हैं. इनमें से कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनकी शुरुआत मौजूदा महामारी के कारण पैदा हुई स्वास्थ्य संबंधी और आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए की गई. इनमें किसानों की मदद के लिए नक़द वितरण, सभी पेंशन योजनाओं का मानकीकरण और पश्चिम बंगाल सरकार के सभी कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में इज़ाफ़ा शामिल है. ममता सरकार की खाद्य सुरक्षा योजना ग़रीबों को खाना उपलब्ध कराना सुनिश्चित करती है और इस योजना से बंगाल में क़रीब 9.98 करोड़ लोगों का भला होता है. महामारी के दौरान बंगाल के लोगों को इस योजना से काफ़ी लाभ हुआ है.

तमिलनाडु की ‘अम्मा कैंटीन’ की तर्ज पर तृणमूल सरकार ने हाल ही में ‘मां किचेन’ की शुरुआत की थी, जिसके माध्यम से ग़रीबों को पांच रुपए में खाना उपलब्ध कराया जाता है. ममता सरकार ने पिछले साल देश भर में लगे लॉकडाउन के कारण अन्य राज्यों में फंसे बंगाल के क़रीब एक लाख अप्रवासी मज़दूरों को एक हज़ार रुपए की वित्तीय मदद दी थी. ग्रामीण आवास योजना के तहत सरकार ने समाज के कमज़ोर तबक़े के लोगों के लिए पक्के मकान बनाए हैं. इनसे उन लोगों को ख़ास तौर से मदद मिली है, जो अंफन समुद्री चक्रवात से प्रभावित हुए थे.

इसी तरह, शिक्षा के क्षेत्र में वर्ष 2011 से 8.12 करोड़ से अधिक स्कूली बच्चों को मुफ़्त स्कूल ड्रेस और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले बारहवीं के हर छात्र-छात्रा को दस हज़ार रुपए का अनुदान या फिर स्कूलों और मदरसों को स्मार्टफ़ोन व टैबलेट ख़रीदने में मदद करने-जिससे कि छात्र महामारी के चलते ऑनलाइन प़ढ़ाई कर सकें और तमाम छात्रों को छात्रवृत्ति देने जैसी कई योजनाएं ममता सरकार ने चला रखी हैं. जिस योजना के तहत छात्र-छात्राओं को स्कूल जाने के लिए साइकिल उपलब्ध कराई जाती है और ग़रीब छात्राओं को पढ़ने के लिए दी जाने वाली वित्तीय मदद की योजनाएं काफ़ी लोकप्रिय हैं और इनसे अब तक 67 लाख, 96 हज़ार, 966 बच्चों को लाभ हुआ है. लड़कियों को शादी के लिए 25 हज़ार रुपए देने की योजना से अब तक 8,49,138 लड़कियों को फ़ायदा मिला है. इसके अलावा राज्य में बेरोज़गारी भत्ते के रूप में पंद्रह सौ रुपए हर महीने दिए जाते हैं. इस योजना से भी अब तक 1,81,477 युवाओं को फ़ायदा मिल चुका है. तृणमूल कांग्रेस की कल्याणकारी योजनाओं में स्वास्थ्य क्षेत्र को, ख़ास तौर से कोविड-19 महामारी के बाद से काफ़ी अहमियत प्राप्त हो चुकी है. राज्य के हर परिवार को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा देने की योजना के साथ साथ, ‘सबके लिए स्वस्थ नेत्र’ योजना भी शुरू की गई है, जिससे अब तक आठ लाख ग़रीब लोगों को मदद मिली है.

2019 के बाद से जैसे जैसे राज्य में बीजेपी की राजनीतिक शक्ति बढ़ी और ममता बनर्जी की राजनीतिक हैसियत को ख़तरा बढ़ने लगा, वैसे वैसे ममता बनर्जी ने अपनी जनवादी कल्याणकारी योजनाओं का दायरा और संख्या बढ़ाया है, जिससे कि उन्हें शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों के ग़रीबों का साथ मिलता रहे.

इसके अलावा, अल्पसंख्यक वर्ग के एक करोड़ से ज़्यादा छात्रों ने अब तक राज्य सरकार से छात्रवृत्ति और स्कूल के दूसरे सामान मुफ़्त पाने की योजना का लाभ उठाया है. वर्ष 2012 से ही बंगाल के इमामों और मुअज्ज़िनों को हर महीने भत्ता और राज्य में मकान मिल रहे हैं. अब इस योजना का दायरा बढ़ाकर इसमें ब्राह्मण और अन्य समुदायों के पुजारियों को भी शामिल कर लिया गया है. पिछले ही साल ममता सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की थी, जिससे सरकार की नीतियों का लाभ सीधे जनता के दरवाज़े तक पहुंच सके. ग्राम पंचायत और नगर निगम वार्ड के स्तर पर आयोजित किए गए 32,830 सहायता शिविरों में पूरे राज्य से 2.75 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लेकर सरकारी योजनाओं का लाभ लिया था. इन सभी योजनाओं की घोषणा और उनका क्रियान्वयन तृणमूल की नेता ममता बनर्जी के नाम पर किया गया था, जिससे कि जनता को ये संदेश दिया जा सके कि ममता बनर्जी बंगाल के हर नागरिक की अभिभावक हैं. लोगों की संरक्षक हैं.

कल्याणवाद में मज़बूत लैंगिक परिवर्तन किया गया

कल्याणकारी योजनाओं को व्यापक स्तर पर जनता के बीच पहुंचाने से समाज के कमज़ोर वर्गों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में काफ़ी सुधार हुआ है. इस बात ने अब तक तृणमूल कांग्रेस की चुनावी सफलताओं में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है. शारदा और नारद घोटालों के बावजूद, तृणमूल कांग्रेस ने 2016 के विधानसभा चुनाव में ज़बरदस्त सफलता हासिल की थी. 2019 के बाद से जैसे जैसे राज्य में बीजेपी की राजनीतिक शक्ति बढ़ी और ममता बनर्जी की राजनीतिक हैसियत को ख़तरा बढ़ने लगा, वैसे वैसे ममता बनर्जी ने अपनी जनवादी कल्याणकारी योजनाओं का दायरा और संख्या बढ़ाया है, जिससे कि उन्हें शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों के ग़रीबों का साथ मिलता रहे. बंगाल के मतदाताओं में इस वर्ग की तादाद काफ़ी अधिक है. इसीलिए, इस बार के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने लगातार अपनी कल्याणकारी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने की बात दोहराई है. ममता बनर्जी ने इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताते हुए जनता को बार बार ये चेतावनी दी कि अगर उनकी सरकार चुनाव हारकर सत्ता से बाहर होती है, तो उनकी वो सभी योजनाएं जिनका लाभ जनता ने उठाया है, उन्हें बीजेपी की सरकार ख़त्म कर देगी. ममता बनर्जी ने कल्याणकारी जनवाद को महिलाओं के सशक्तिकरण का एक बड़ा माध्यम बताया है, क्योंकि उनकी सरकार की बहुत सी योजनाएं लड़कियों की शिक्षा और उनकी शादी के ख़र्च उठाने से जुड़ी हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य योजना को आम तौर पर किसी भी परिवार की महिला सदस्य के नाम पर ही पंजीकृत किया जाता है, जिससे महिलाओं को ये एहसास होता है कि उनके भी अधिकार हैं और वो भी बीमा योजना का लाभ उठाकर अपने परिवार के सदस्यों के इलाज का ख़र्च उठा सकती हैं.

बीजेपी ने सत्ता में आने पर, सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने, मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा देने, मुफ़्त सार्वजनिक परिवहन और विधवाओं, वरिष्ठ नागरिकों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों को तीन हज़ार रुपए महीने पेंशन देने का वादा किया है.

बीजेपी का प्रतिद्वंदी जनवाद

यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी कई अन्य कल्याणकारी योजनाएं लागू करने का वादा किया है, जिनका लक्ष्य राज्य के युवा और महिला मतदाता हैं. महिलाओं को उनके निजी ख़र्च के लिए हर महीने भत्ता देने का वादा किया गया है. इसके अलावा विधवाओं को हर महीने एक हज़ार रुपए की आर्थिक मदद और सभी छात्रों को कम ब्याज दर वाले दस लाख रुपए के क्रेडिट कार्ड देने का भी वादा किया गया है, जिससे वो उच्च शिक्षा की अपनी सभी ज़रूरतें पूरी कर सकें. इसके जवाब में बीजेपी ने भी ममता बनर्जी के मुक़ाबले कई लोक-लुभावन वादे किए हैं. बीजेपी ने सत्ता में आने पर, सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने, मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा देने, मुफ़्त सार्वजनिक परिवहन और विधवाओं, वरिष्ठ नागरिकों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों को तीन हज़ार रुपए महीने पेंशन देने का वादा किया है. बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हर बालिका को बड़ी आर्थिक मदद देने का भी वादा किया है, जो बंगाल की मौजूदा सत्ताधारी पार्टी द्वारा दिए जाने वाले अनुदान से कहीं अधिक है. बीजेपी के वादों के जवाब में ममता बनर्जी ने अपनी योजनाओं को अधिक असरदार और व्यापक होने के दावे किए हैं. ममता ने ये दावा भी किया कि उनकी स्वास्थ्य योजना, केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं से कहीं अच्छी है. इन दावों के चलते बंगाल में प्रतिद्वंदी कल्याणकारी राजनीति ने ज़ोर पकड़ लिया है.

कल्याणकारी जनवाद की सीमाएं

ममता बनर्जी की आक्रामक कल्याणकारी नीतियों के बावजूद, उन पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे हैं और इन इल्ज़ामों का सामना भी करना पड़ा है कि तृणमूल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का फ़ायदा कुछ गिने चुने लोगों को ही होता है. ये मुद्दे और चुनाव अभियान के दौरान ख़ास तौर से ‘कट मनी’ या अवैध कमीशन के आरोप अक्सर विपक्षी दल और विशेष रूप से बीजेपी लगाती रही है. इसके अलावा कल्याणकारी योजनाओं के वितरण की व्यवस्था में कमियों ने सांप्रदायिक रंग (अल्पसंख्यक तुष्टिकरण) भी ले लिया है. बीजेपी बार बार ये इल्ज़ाम लगाती रही है कि ममता बनर्जी की सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं का अनुपात से अधिक लाभ अल्पसंख्यकों को देती आई है. इसके अलावा कल्याणकारी जनवाद की राजनीति पर ही पूरी तरह से निर्भर रहने की एक बड़ी कमी ये रही है कि बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन नहीं हो पा रहा है, जिससे समाज के एक बड़े वर्ग की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो रही है. ये वर्ग जन कल्याण की बुनियादी सुविधाएं पाने के साथ रोज़गार के ज़रिए दूरगामी आर्थिक सुरक्षा की अपेक्षा करता है. बीजेपी ने विकास को अपना एक बड़ा चुनावी वादा बनाया है पार्टी का कहना है कि जब वो सत्ता में आएगी तो बंगाल के लोगों के लिए रोज़गार के बड़े अवसर उपलब्ध कराएगी. इससे ममता बनर्जी की प्रमुख राजनीतिक दावे यानी कल्याणकारी योजनाओं को बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है.

ममता बनर्जी की कल्याणकारी राजनीति उन्हें तीसरी बार चुनाव जिताकर सत्ता दिलाने में कितना बड़ा योगदान देती है, इसका पता तो 2 मई को ही चलेगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे. हालांकि, हम जो बात पक्के तौर पर कह सकते हैं कि बंगाल के चुनाव में जनकल्याण का मुहावरा और जनवादी कल्याणकारी राजनीति एक बार फिर से राजनीतिक नैरेटिव के केंद्र में पहुंच गए हैं. हो सकता है कि भारत की उभरती राजनीतिक परिचर्चा पर इनका कुछ न कुछ प्रभाव ज़रूर पड़ेगा.

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