Published on Sep 25, 2020 Updated 0 Hours ago

आने वाले सालों में पर्यटन उद्योग की सफलता ने निर्यात को मज़बूत किया और मुद्रा की कीमतों में गिरावट से बचने में मदद की.

2008 की आर्थिक मंदी के बाद क्या एक और संकट झेल पाएगा आइसलैंड?

आइसलैंड एक छोटा सा नॉर्डिक देश है जिसकी आबादी है लगभग 350,000. ऐतिहासिक रूप से, यह देश ज़्यादातर मछली पकड़ने पर निर्भर रहा है. बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में देश में एल्यूमीनियम गलाने के उद्योग की शुरुआत हुई. साल 2008 तक इस उद्योग ने अपने विस्तार और बढ़ोत्तरी के ज़रिए एल्यूमीनियम के 39 प्रतिशत निर्यात का आंकड़ा छूआ, साथ ही सकल घरेलू उत्पाद का 17.5 प्रतिशत अब एल्यूमीनियम की गलाई से आने लगा. हालांकि, 2000 के दशक की शुरुआत से ही देश के बैंकिंग क्षेत्र के अर्थव्यवस्था पर हावी होने संबंधी रुझान आने लगे थे. बैंकों के पास 100 बिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति दर्ज हो चुकी थी, जो आइसलैंड की अर्थव्यवस्था के समूचे आकार से लगभग दस गुना अधिक थी. ऐसे में जब 2008 में वैश्विक स्तर पर वित्तीय संकट यानी आर्थिक मंदी का दौर आया तो इसने आइसलैंड की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया. संकट का मुख्य कारण था आइसलैंड के बैंकों पर गैर निष्पादित संपत्ति का भार और ‘सबप्राइम मॉर्गेज’ का ख़तरा. सब-प्राइम का शाब्दिक अर्थ है, कमतर या असंतोषजनक और सब-प्राइम मॉर्गेज का मतलब है ऐसा ऋण, जिसमें कर्ज़दार की लोन चुकाने की क्षमता और गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी की गुणवत्ता में मेल न हो. सरल शब्दों में कहें तो दोनों ही स्तर पर बैंक के लिए स्थिति संतोषजनक न हो.

जब 2008 में वैश्विक स्तर पर वित्तीय संकट यानी आर्थिक मंदी का दौर आया तो इसने आइसलैंड की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया. संकट का मुख्य कारण था आइसलैंड के बैंकों पर गैर निष्पादित संपत्ति का भार और ‘सबप्राइम मॉर्गेज’ का ख़तरा.

‘सबप्राइम मॉर्गेज’ 2008 की वैश्विक मंदी का एक बड़ा कारण था. आइसलैंड में पैदा हुए वित्तीय संकट के कुछ अन्य कारण भी थे जैसे इस तरह के निवेश ज़्यादातर निवेश डच और अंग्रेजी जमाकर्ताओं से लिए गए ऋण के माध्यम से किए गए थे, जिससे चीज़ें और भी अधिक खराब हो गईं. इस कमज़ोर नींव की वजह से आइसलैंड की अर्थव्यवस्था, वैश्विक मंदी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई. कुछ ही महीनों के भीतर, मुद्रा के मूल्य में 60 प्रतिशत की गिरावट आ गई, साथ ही मुद्रास्फ़ीति में वृद्धि हुई और बेरोज़गारी का स्तर लगभग नौ प्रतिशत तक बढ़ गया.

हालांकि, इस संकट के गंभीर परिणामों में से एक, मुद्रा के अवमूल्यन ने असल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मुख्य भूमिका निभाई. मुद्रा के अवमूल्यन ने निर्यात को आर्थिक दृष्टि से प्रतिस्पर्धी बनाया और पर्यटन को अपेक्षाकृत सस्ता कर दिया. इसके अलावा, साल 2010 में एईयाफ्याकलाक्तुल (Eyjafjallajökull) ज्वालामुखी के विस्फोट ने आइसलैंड का बहुत प्रचार किया और इसे वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण बना दिया. इसके बाद देश के पर्यटन में ज़बर्दस्त उछाल आया, जिसके कारण साल 2010 के बाद के सालों में पर्यटकों की संख्या में लगभग दोगुना वृद्धि हुई. अकेले 2018 में आइसलैंड आने वाले पर्यटकों की संख्या देश की आबादी से सात गुना अधिक थी.

पर्यटन आइसलैंड के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है. इसका जीडीपी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बड़ा योगदान है, निर्यात में भारी हिस्सेदारी है और विनिमय दर पर इसका खासा प्रभाव है. जीडीपी में इस उद्योग का प्रत्यक्ष हिस्सा पिछले एक दशक में लगभग दोगुना हो गया है और देश के निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा आज इसी उद्योग का है. लैंडस्बैनकिन्न इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, वैश्विक आर्थिक संकट के बाद, 2010 से 2016 के बीच हुई आर्थिक बहाली में पर्यटन उद्योग का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इन सालों में हुई लगभग 40 से 50 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि में पर्यटन ने बड़ी भूमिका निभाई.

पर्यटन आइसलैंड के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है. इसका जीडीपी में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बड़ा योगदान है, निर्यात में भारी हिस्सेदारी है और विनिमय दर पर इसका खासा प्रभाव है.

इस समयावधि में देश की जीडीपी आइसलैंड रुपए (आईएसके) के मुताबिक 462 बिलियन तक (वर्तमान कीमतों पर) बढ़ी और निर्यात 246 बिलियन आईएसके तक बढ़ा;  निर्यात आय में हुई लगभग 236 बिलियन आईएसके की वृद्धि सीधे पर्यटन उद्योग से हुई थी. यदि पर्यटन उद्योग में इस तरह का उछाल नहीं आता, तो 2010 के दशक के अंत में, अन्य कारकों के स्थिर रहने के बावजूद, देश में बड़े पैमाने पर व्यापार घाटा हो सकता था. नतीजतन, आइसलैंड रुपए की कीमतों में और भी गिरावट आती और इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फ़ीति का स्तर बढ़ता. हालांकि, इस उद्योग में हुई बढ़ोत्तरी या मुनाफ़े के पीछे भी कुछ हद तक मूल्यह्रास यानी आइसलैंड मुद्रा की कीमतों में आई गिरावट ही थी, लेकिन आने वाले सालों में पर्यटन उद्योग की सफलता ने निर्यात को मज़बूत किया और मुद्रा की कीमतों में गिरावट से बचने में मदद की.

हालांकि, हाल के वर्षों में, पर्यटन उद्योग ने अपना आकर्षण खोया है. पर्यटकों की आमद घट रही है और पिछले चार वर्षों से उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान लगभग आठ प्रतिशत (जैसा कि ऊपर के ग्राफ में देखा गया है) पर टिका हुआ है. हाल ही में स्थिति और भी खराब हुई है, क्योंकि महामारी ने दुनिया भर में यात्रा और पर्यटन पर रोक लगा दी है. देश में अंतरराष्ट्रीय परिवहन के सबसे बड़े केंद्र केफ्लविक (Keflavik) हवाई अड्डे से प्रस्थान करने वालों की संख्या, पिछले साल जून के महीने में 2,56,000 यात्रियों से 96 प्रतिशत घटकर इस साल लगभग 11,000 हो गई. पर्यटन उद्योग में आई ज़बर्दस्त वृद्धि, जिसने एक दशक पहले देश को संकट से उबरने में मदद की थी, वह विकास के लिए टिकाऊ विकल्प नहीं थी, खासतौर पर लंबे वक्त में. अब जब कोविड19 की महामारी ने वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को ठप्प किया है, ऐसे में आइसलैंड में भी तत्काल इसके बेहतर होने की अत्यधिक संभावना नहीं है.

पर्यटन के अलावा, आइसलैंड में मछली पकड़ना भी एक महत्वपूर्ण उद्योग है. समुद्र के बीचोंबीच स्थित द्वीप होने के नाते, मछली पकड़ने का इस देश में ऐतिहासिक महत्व है. आज भी काम करने वाली जनसंख्या का लगभग पांच प्रतिशत हिस्सा इसी उद्योग में लगा है, और देश के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से में उसका योगदान है. लेकिन हाल ही में, आइसलैंड में इस उद्योग के भविष्य और लंबे समय तक इसकी व्यवहार्यता को लेकर सवाल उठाए गए हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण, क्षेत्र में समुद्र का तापमान बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप, कई मछलियों की प्रजातियां अब उत्तर में ठंडे पानी की ओर बढ़ रही हैं.

आइसलैंड में इस उद्योग के भविष्य और लंबे समय तक इसकी व्यवहार्यता को लेकर सवाल उठाए गए हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण, क्षेत्र में समुद्र का तापमान बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप, कई मछलियों की प्रजातियां अब उत्तर में ठंडे पानी की ओर बढ़ रही हैं.

हालांकि, जलवायु और पर्यावरण के इन बदलावों ने खुद आइसलैंड को पहले लाभान्वित किया जब अटलांटिक मैकेरल जैसी प्रजातियों ने उत्तर में स्थित नॉर्वेजियन पानी वाले इलाकों से आइसलैंडिक पानी वाले ठंडे इलाकों तक की यात्रा की थी. साल 2018 में, आइसलैंड के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मछली कैपेलिन की आबादी कम होने लगी क्योंकि समुद्र का तापमान बढ़ रहा था और यह मछली गर्म पानी में प्रवास नहीं कर पाई. जलवायु परिवर्तन को लेकर मौजूदा समय में जो भविष्यवाणियां की जा रही हैं वो अगर सही साबित होती हैं तो, तो मछली पालन में आने वाली कमी की समस्या आने वाले सालों में बढ़ने वाली है.

एक नए दशक की शुरुआत के साथ, आइसलैंड की अर्थव्यवस्था के लिए दो प्रमुख चुनौतियां सामने आई हैं- एक है महामारी के रूप में कोविड19 का संकट और दूसरा लगातार बढ़ता विश्व का तापमान. पहले संकट ने जहां देश के पर्यटन उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है, वहीं दूसरे संकट ने देश में मछली पालन के लिए उपलब्ध स्टॉक यानी मछलियों की आबादी के लिए दीर्घकालिक संकट पैदा किया है. साथ मिलकर ये दोनों कारण देश की अर्थव्यवस्था को चलाने वाले दो प्रमुख स्तंभों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे.

हालांकि, यह संकट आइसलैंड को कुछ क्षेत्रों पर अपनी ऐतिहासिक अति-निर्भरता पर नए सिरे से विचार करने और अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के प्रयास करने का एक अवसर भी प्रदान करता है. इन नकारात्मक बाहरी परिस्थितियों को नियंत्रित करने की सभी कोशिशों के बावजूद, यह देखाना बाकी है कि यह देश एक और आर्थिक संकट से कैसे उबर पाएगा.

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