Author : Pratnashree Basu

Published on Jun 28, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन का दावा है कि देश की संप्रुभता और सुरक्षा हितों की रक्षा करने की ज़रूरतों से इस क़ानून का प्रमाणीकरण जुड़ा हुआ है

नए तटरक्षक क़ानून के ज़रिये क्या चीन समुद्र में नियंत्रण की कोशिश कर रहा है?

करीब साल 2013 से ही चीन धीरेधीरे ही सही लेकिन लगातार ना सिर्फ़ अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत आदेशों की धज्जियां उड़ाता रहा है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के ज़रिए इन्हें सुरक्षित रखने के संकल्प को भी धता बता रहा है. समुद्री क्षेत्र – जिसे अपनी ताक़त की बदौलत चीन हमेशा से अपना ऐतिहासिक अधिकार बताता रहा है – वहां चीन दीर्घकालीन परियोजना को साकार करने में जुटा हुआ है. इसके तहत चीन इस क्षेत्र के चट्टान, रीफ़ और द्वीपों पर अपनी पकड़ मज़बूत करने का इरादा रखता है. जबकि समुद्री इलाक़ों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के क़ानून (यूएनसीएलओएस) के मुताबिक़ ऐसा करना चीन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. इस मक़सद को पूरा करने के लिए चीन ने कई मोर्चों पर अपने तौरतरीक का वर्गीकरण किया है, जिसमें विवादित समुद्री इलाक़े में कृत्रिम द्वीप बनाने से लेकर समुद्री सेना – जो दरअसल सरकार के समर्थन वाली हथियारों से लैस मछली पकड़ने वाले जवान हैं – की तैनाती तक शामिल है. जबकि चीन इन्हें दक्षिण और पूर्वी चीन के समुद्री इलाक़े में अपने सुरक्षा दावों को पुख़्ता करने का माध्यम बताता है. 

इसका सबसे ताज़ा उदाहरण वो क़ानून है जिसे एक फरवरी को पारित किया गया और जिसके तहत देश के तटरक्षक जवानों को “सभी तरह के ज़रूरी उपाय करने, जिसमें जब राष्ट्रीय संप्रभुता, संप्रभु अधिकार और क्षेत्राधिकार का किसी विदेशी शक्ति द्वारा अवैध रूप से उल्लंघन किया जा रहा हो तब हथियारों के इस्तेमाल करने का अधिकार शामिल है”. यह क़ानून तटरक्षक जवानों को हाथ से इस्तेमाल होने वाले, जहाज़ पर चढ़कर, या फिर हवाई हथियारों का उपयोग कर चीन के दावों वाले द्वीप पर किसी भी विदेशी शक्ति के बनाए संरचनाओं को ध्वस्त करने का अधिकार मुहैया कराता है. यहां तक कि ज़रूरत पड़ने पर “अपवर्जन क्षेत्र” बनाने के लिए भी अधिकार देता है जहां दूसरे राष्ट्रों के जहाज़ों को प्रवेश करने की इजाज़त नहीं होगी. इसके अलावा यह क़ानून चीन के तटरक्षक बल को यह अधिकार भी देता है कि वो चीन के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में रुके हुए किसी भी विदेशी जहाज़ की जांच कर सकता है. चीन का दावा है कि देश की संप्रुभता और सुरक्षा हितों की रक्षा करने की ज़रूरतों से इस क़ानून का प्रमाणीकरण जुड़ा हुआ है. 

चीन के तटरक्षक जवान पूर्वी और दक्षिणी चाइना-सी के साथ-साथ येलो-सी में भी अपनी सक्रिय मौज़ूदगी का अहसास कराते हैं और यहां तक कि तटवर्ती पड़ोसियों के मछली पकड़ने वाले जहाज़ों को डराने धमकाने के साथ-साथ, कभी-कभी उन्हें डूबो देने पर भी मजबूर करते हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि नया क़ानून कई मायनों में हाल के वर्षों में चीन के तटरक्षक जवानों को दी गई और उनके द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली ज़्यादा अधिकारों का नतीजा है. दरअसल सात साल पहले कई नागरिक समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एक साथ मिलाकर तटरक्षक ब्यूरो की नींव डाली गई थी जो साल 2018 में सेना का एक अभिन्न अंग बन गया. चीन के तटरक्षक जवान पूर्वी और दक्षिणी चाइनासी के साथसाथ येलोसी में भी अपनी सक्रिय मौज़ूदगी का अहसास कराते हैं और यहां तक कि तटवर्ती पड़ोसियों के मछली पकड़ने वाले जहाज़ों को डराने धमकाने के साथसाथ, कभीकभी उन्हें डूबो देने पर भी मजबूर करते हैं. यह तटरक्षक बल चीन के मछली पकड़ने वाले जहाजों की रक्षा में भी तैनात रहते हैं. अगर समुद्री इलाक़े में किसी मछली पकड़ने वाले विदेशी जहाज़ से इनका सामना होता है तो हर तरह से तटरक्षक बल के जवान उसका मुक़ाबला करने को तैयार होते हैं. यही नहीं यह बल ऐसे जहाजों के निर्माण में भी लगा हुआ है जो इस इलाक़े में कई नौसैनिक जहाज़ों से आकार में बड़े हैं जैसे 10,000 टन  का ‘Haixun 09’  ऐसे जहाज़ मजबूत पतवार के साथ किसी भी विदेशी जहाज़ को टक्कर मारने की क्षमता से लैस होते हैं जिसे नौसैनिक भाषा में धक्का मारना भी कहा जाता है. 

चीन की दोहरी रणनीति

चीन के इस नए क़ानून को लेकर अब तक काफ़ी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान समेत अमेरिका ने इस विषय पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि चीन के कब्ज़े वाले  समुद्री इलाक़े को लेकर वो और ज़्यादा विरोध करेगा. जबकि फिलिपिन्स ने तो इसके ख़िलाफ़ कूटनीतिक विरोध दर्ज किया है और इसे युद्ध की धमकी तक बताया है. इस कानून में कई ऐसे प्रावधान हैं जिनका इस्तेमाल चीन समुद्री क्षेत्र में धमकाने और प्रताड़ित करने के लिए पहले से ही करता आया है. यही नहीं इन्हीं क़ानूनों की बदौलत चीन इस इलाके में क़ब्ज़ा किए गए समुद्री क्षेत्र में लगातार दबाव बनाने में और एकतरफा नियंत्रण जमाने में कामयाब रहा है.  यह चीन की दोहरी नीति की वो मिसाल है जहां एक तरफ तो चीन आधिकारिक तौर पर बल प्रयोग नहीं करने को लेकर बयान देता है, जबकि दूसरी ओर अपनी क्षमताओं का वो लगातार इस्तेमाल करता है जो उसकी कथनी के ठीक उलट हैं. 

पड़ोस के तीनों समुद्री क्षेत्र में साउथ चाइना सी सबसे ज़्यादा विवादित और विस्फोटक है. क्योंकि पिछले कई वर्षों से चीन एक ओर जहां तटवर्ती पड़ोसियों से गाहेबगाहे उलझता रहता है तो दूसरी ओर इस क्षेत्र में अमेरिका के साथ भी चीन आमने सामने है.  कई बार यहां तटवर्ती पड़ोसियों के बीच विवाद होता रहता है लेकिन इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता और वर्चस्व की कोशिश के आगे यह कमतर है. यही नहीं चीन की ऐसी करतूत क़ानूनी तौर पर स्थापित अधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है.

इस क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई ने लगातार भू-रणनीतिक उथल-पुथल का दौर देखा है तो घटते मछली भंडारों पर आधिपत्य जमाने की कोशिश के चलते यहां नियम और कानून आधारित आदेश की भारी अनदेखी होती रही है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लागू थी.

इस क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई ने लगातार भू-रणनीतिक उथल-पुथल का दौर देखा है तो घटते मछली भंडारों पर आधिपत्य जमाने की कोशिश के चलते यहां नियम और कानून आधारित आदेश की भारी अनदेखी होती रही है जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लागू थी. इसका नतीज़ा यह हुआ है कि साउथ चाइनासी पूरी दुनिया के लिए अशांति और चिंता की वज़ह बन गया है. दरअसल साउथ चाइनासी इंडो पैसिफिक क्षेत्र के केंद्र में मौज़ूद है जो समूचे विश्व के आकर्षण का केंद्र इसलिए भी है क्योंकि इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियां संदिग्ध हैं और वो लगातार इस इलाक़े में अपनी मौज़ूदगी को विस्तार देने में लगा है. 

कई देशों में समुद्र में तटरक्षक बल कई तरह की ख़ास शक्तियों के साथ तैनात हैं जो क़ानून और नियम को पालन कराने के लिए विस्फोटकों के इस्तेमाल की इजाज़त देते हैं (जैसा कि वियतनाम में है), तो नागरिक कमांड से सैन्य बल के अधिकार में परिवर्तन कर सकने (जैसा कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में है) की छूट भी देते हैं. लेकिन कमांड अधिकारों में परिवर्तन की यह इजाज़त ख़ास युद्ध की स्थिति या फिर अति आवश्यक समय के दौरान ही दी जाती है. लेकिन चीन ने जिस क़ानून को पारित किया है उसमें अति आवश्यक स्थिति की परिभाषा को लेकर गंभीर चिंता है. क्योंकि ऐसे क़दम किसी संकट की स्थिति में उठाए जा सकते हैं. यही वजह है कि ऐसे क़ानून के पारित होने के बाद जिन स्थितियों को निपटने का तरीक़ा कुछ और हो सकता है वहां भी हथियार के इस्तेमाल करने की गुंजाइश बढ़ जाती है. 

कमांड अधिकारों में परिवर्तन की यह इजाज़त ख़ास युद्ध की स्थिति या फिर अति आवश्यक समय के दौरान ही दी जाती है. लेकिन चीन ने जिस क़ानून को पारित किया है उसमें अति आवश्यक स्थिति की परिभाषा को लेकर गंभीर चिंता है.

इसमें दो राय नहीं कि “क्षेत्राधिकार समुद्र” का आशय यहां पूरी तरह अस्पष्ट और भ्रामक है, लेकिन यूएनसीएलओएस द्वारा स्थापित समुद्री सीमा के लगातार उल्लंघन से इस क्षेत्र में ख़तरनाक परिदृश्य उभरने का जोख़िम बढ़ गया है, क्योंकि इसके बाद नाइनडैश लाइन सीमा के भीतर सभी जहाजों के ख़िलाफ़ चीनी तटरक्षक बल कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.