Published on Dec 20, 2023 Updated 0 Hours ago

तेज़ी से अस्थिर होती दुनिया 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत को परिभाषित करेगी.

वैश्विक अर्थव्यवस्था: साल 2024 से उम्मीदें और आशंकाएं

ये लेख हमारी श्रृंखला “व्हॉट टू एक्सपेक्ट इन 2024” का हिस्सा है.


उथल-पुथल, अस्थिरता, जटिलता और संशय से घिरती जा रही दुनिया में चार बड़े मसले और छह खरब डॉलर की GDP रैंकिंग, 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति को परिभाषित करेगी. ये प्रक्रिया सुखद नहीं होगी; ना ही सरल या सुविधाजनक होगी और  शांतिपूर्ण भी नहीं रहेगी. आर्थिक अस्तित्व बनाए रखने और उत्तरजीविता के लिए धैर्य और दृढ़ता की आवश्यकता होगी, आर्थिक प्रशासन के लिए रचनात्मक नीतियों की दरकार होगी, और राजनीतिक अर्थशास्त्र को इस नई असामान्यता से सामंजस्य बिठाते हुए इसके इर्द-गिर्द रास्ते ढूंढने होंगे. 

सर्वप्रथम, सुरक्षा 2023 की तरह 2024 में भी अर्थव्यवस्था की प्रमुख वाहक बनी रहेगी. 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ शुरू हुआ अनिश्चितता का दौर 2023 में इज़रायल-हमास संघर्ष तक चरम पर पहुंच गया और 2024 में भी बदस्तूर जारी रहेगा.

सर्वप्रथम, सुरक्षा 2023 की तरह 2024 में भी अर्थव्यवस्था की प्रमुख वाहक बनी रहेगी. 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ शुरू हुआ अनिश्चितता का दौर 2023 में इज़रायल-हमास संघर्ष तक चरम पर पहुंच गया और 2024 में भी बदस्तूर जारी रहेगा. अगर यूक्रेन में वार्ताएं सफल रहती हैं तो हिंसा का भूगोल पश्चिम एशिया की ओर स्थानांतरित हो जाएगा और कुल मिलाकर आर्थिक अनिश्चितताओं में पलीता लगाने का काम करेगा; अगर वार्ताएं नाकाम रहती हैं तो अस्थिरता में कई गुणा बढ़ोतरी हो जाएगी. इसके नतीजतन, वस्तुओं के मूल्य, ख़ासतौर से तेल की क़ीमतों में उथल-पुथल बरक़रार रहेगी, यानी अगर शांति स्थापना नहीं होती है तो ईंधन की क़ीमतें एक स्तर तक ऊपर उठेंगी, और जब इसके चलते मुद्रास्फीति और सुस्ती आएगी तो तेल के दाम गिर जाएंगे. तेल का उत्पादन और तेल का उपभोग करने वाली, दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में बेचैनी बनी रहेगी. खाद्य पदार्थों और ऊर्वरक में मूल्य अस्थिरता क़ायम रहेगी. व्यापारी फ़ायदे में रहेंगे, परिवारों को नुक़सान होगा, और सरकारों को आर्थिक वृद्धि और क़ीमतों में संतुलन स्थापित करने के लिए गंभीर जद्दोजहद करनी होगी. ये हालात घरेलू राजनीति को भी प्रभावित करेंगे. अमेरिका द्वारा वेनेज़ुएला के ख़िलाफ़ लागू प्रतिबंधों में ढील दिए जाने से आगे चलकर तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति पर क्या असर होगा, ये देखना अभी बाक़ी है.  

दूसरा, तेल, खाद्य पदार्थों और उर्वरकों में अनिश्चितता अन्य वस्तुओं पर भी असर डालेगी और दुनिया भर में मुद्रास्फीति को प्रभावित करेगी. तुर्किए (86 प्रतिशत), ईरान (40 प्रतिशत) और पाकिस्तान (29 प्रतिशत) जैसे देशों में 2024 में क़ीमतें क़ाबू से बाहर रहेंगी. इसकी वजह ये है कि ताक़त की धौंस जमाने की प्रवृति और वैचारिक मसलों ने इनके आर्थिक आधार को तबाह कर दिया है. वेनेज़ुएला (318 प्रतिशत) अपने चरम मुद्रास्फीति वाले दौर से बाहर आ सकता है. 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद चौतरफ़ा गैस संकट का सामना कर चुके देश (सभी यूरोप के) न्यू नॉर्मल तक पहुंच गए हैं और वहां ऊंचे मूल्य आधार पर महंगाई में नरमी आ रही है. कुल मिलाकर, 2024 में मुद्रास्फीति से जुड़ी अनिश्चितता जारी रहेगी, हालांकि ये काफ़ी हद तक इस पर निर्भर करेगा कि इज़रायल-हमास संघर्ष का तेल-निर्यातक देशों पर क्या असर होता है.  

लोकतांत्रिक राज्यसत्ताएं ख़राब राजनीति का त्याग शुरू कर देंगी और अच्छी अर्थनीति अपनाने लगेंगी; अधिनायकवादी हुकूमतें नए दुश्मन तैयार करने में जी-जान लगा देंगी और अपने नागरिकों की आर्थिक तकलीफ़ों को बढ़ा देंगी.

तीसरे, महंगाई ख़ासतौर से संबंधित तेल की क़ीमतों में अस्थिरता के समानांतर दुनिया भर में ब्याज़ दरों में बढ़ोतरी और गिरावट होती रहेगी. इसके अलावा, अमेरिका द्वारा अपनी पॉलिसी दरें ऊंची रखने (मार्च 2022 के 1 प्रतिशत से भी कम की तुलना में फ़िलहाल 5.5 प्रतिशत) के चलते भारत समेत अन्य देशों (जहां पॉलिसी दर 6.5 प्रतिशत पर है) पर भी उसकी बराबरी करने का दबाव रहेगा. हालांकि ऊंची मुद्रास्फीति वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए हालात और बदतर हुए हैं. तुर्किए में ब्याज़ दरें उछलकर 30 प्रतिशत, पाकिस्तान में 22 प्रतिशत और ईरान में 18 प्रतिशत हो चुकी हैं. अगर युद्ध के चलते तेज़ हुई वैश्विक मुद्रास्फीति दरों में स्थिर रूप से गिरावट नहीं आती है (सुरक्षा के मोर्चे पर अनिश्चितताओं के कारण इसके आसार ना के बराबर हैं) तो 2024 में दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा मुद्रास्फीति की रोकथाम करने के लिए ब्याज़ दरों को समान रखने या यहां तक कि बढ़ोतरी करने जैसी कठोर कार्रवाई देखने को मिल सकती है. मुद्रास्फीति की अनिश्चितता ब्याज़ दरों की अस्थिरता को प्रभावित करेगी. 

बैंकों का नज़रिया

ऐसे हालात कारोबारों, विशेष रूप से छोटे- और मध्यम-आकार के उद्यमों की कर्ज़ लेने की क्षमता पर दबाव डालेंगे. चूंकि बैंकों का रुख़ जोख़िम से परहेज़ करने वाला हो जाएगा, और वो पैमाने और अदायगी की क्षमता के साथ-साथ ऋण को सहारा देने के लिए ज़मानत (कोलैट्रल) की भी चाह रखेंगे, लिहाज़ा बड़े ऋणों का रुख़ विशाल निगमों की ओर रहेगा. छोटे कारोबारों के बंद होने या उनकी ख़रीद हो जाने की सूरत में ऊंची-मुद्रास्फीति और ऊंची-लागत वाली अर्थव्यवस्थाओं में बेरोज़गारी जैसे संबंधित सियासी मसले अपना सिर उठा सकते हैं. लोकतांत्रिक राज्यसत्ताएं ख़राब राजनीति का त्याग शुरू कर देंगी और अच्छी अर्थनीति अपनाने लगेंगी; अधिनायकवादी हुकूमतें नए दुश्मन तैयार करने में जी-जान लगा देंगी और अपने नागरिकों की आर्थिक तकलीफ़ों को बढ़ा देंगी. कई देशों में उनकी मुद्राओं का बाज़ार-संचालित विमूल्यन (डेप्रिसिएशन) या यहां तक कि नीति-संचालित अवमूल्यन देखने को मिलेगा. लिहाज़ा, 2024 में कुछ अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती या यहां तक कि मंदी देखने को मिल सकती है.       

नए शीत युद्ध का ख़तरा, गठजोड़ की नई धुरियों के निर्माण, और पिछले दो वर्षों में साधन या एक लक्ष्य के तौर पर शांति के विलुप्त हो जाने से दुनिया के हर नागरिक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.

आख़िरकार, चीन से जोख़िम-मुक्त करने की क़वायदों से जुड़ा संवाद, जो पिछले दो वर्षों में पृष्ठभूमि में चला गया था, 2024 में वापस लौट आएगा. इस बार इस परिचर्चा का विस्तार होगा और इसमें चीन की पूरी मंडली शामिल होगी, जिसमें उत्तर कोरिया, रूस, पाकिस्तान और ईरान शामिल हैं. आर्थिक सुस्ती या यहां तक कि मंदी का सामना कर रहे यूरोपीय संघ (EU) के देश, चीन के साथ “हां, किंतु-परंतु” का खेल जारी रखेंगे. उधर, सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों की आमने-सामने तैनाती के बावजूद भारत-चीन का ग़ैर-टिकाऊ व्यापार चीन को फ़ायदा पहुंचाता रहेगा. आर्थिक सुरक्षा नीतियों द्वारा इसपर लगाम लगाए बिना ऐसे ही हालात जारी रहेंगे. रियल एस्टेट संकट से शुरू हुई चीन की आर्थिक सुस्ती साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और बदस्तूर जारी है; 2024 में चीन की वास्तविक वृद्धि 4.2 प्रतिशत और मुद्रास्फीति 0.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. मुद्रास्फीति के साथ समायोजित और अंकित मूल्य के संदर्भ में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि 18 खरब अमेरिकी डॉलर वाली चीनी अर्थव्यवस्था में लगभग 800 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ देगी, जो अमेरिका द्वारा 3.7 प्रतिशत मुद्रास्फीति और 1.5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ अपनी 27 खरब अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था में संभावित रूप से जोड़े जानी वाली रकम का तक़रीबन 56 प्रतिशत है. 2024 में चीन की अर्थव्यवस्था में आंतरिक विस्फोट नहीं होगा- सुस्ती आएगी, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था ठप नहीं होगी. 

निष्कर्ष

ये चार घटक 2024 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करेंगे. विशेष रूप से ये 6 खरब डॉलर वाली GDP रैंकिंग को बदल देगी. येन की क़ीमत में तीव्र विमूल्यन (2023 में 18 प्रतिशत नीचे, और जनवरी 2021 के बाद से 45 प्रतिशत कम) की वजह से जापान को पछाड़कर जर्मनी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार 2012 में 6.3 खरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर रही जापान की GDP के 2023 के अंत तक 4.2 खरब अमेरिकी डॉलर रह जाने की उम्मीद है, इसकी तुलना में जर्मनी की GDP 4.4 खरब अमेरिकी डॉलर रहेगी. भारत 2025 तक दोनों से आगे निकल जाएगा. 2024 में रैंकिंग में अन्य बड़े बदलावों में दक्षिण कोरिया (1.71 खरब अमेरिकी डॉलर) ऑस्ट्रेलिया (1.69 खरब अमेरिकी डॉलर) को पछाड़कर 12वें स्थान पर काबिज़ हो जाएगा, और सऊदी अरब (1.07 खरब अमेरिकी डॉलर) से आगे निकलकर नीदरलैंड्स (1.09 खरब अमेरिकी डॉलर) 17वें स्थान पर आ जाएगा. इंडोनेशियाई अर्थव्यवस्था के 2023 और 2024 में 5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, हालांकि स्पेन को पछाड़कर 15वां स्थान हासिल करने के लिए उसे 2025 तक इंतज़ार करना पड़ेगा.

वस्तुओं, कंपनियों और देशों की अंतर-निर्भरता के साथ-साथ सुरक्षा, प्रतिबंधों और आपूर्ति श्रृंखलाओं की पारस्परिक क्रिया 2023 में एक जटिल क़वायद बन गई. नए शीत युद्ध का ख़तरा, गठजोड़ की नई धुरियों के निर्माण, और पिछले दो वर्षों में साधन या एक लक्ष्य के तौर पर शांति के विलुप्त हो जाने से दुनिया के हर नागरिक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. क्या हम पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के कालखंड के दौरान महसूस की गई सुरक्षा अस्थिरता वाले दौर में लौट जाएंगे, या हम ऐसे नेता ढूंढ लेंगे जो नए विचारों को अपनाकर उसके ज़रिए एक उभरती बहुध्रुवीय दुनिया में संक्रमण को सक्षम बनाकर उसके ज़रिए नई शांति ले आएंगे (चाहे वो जितनी भी नाज़ुक क्यों ना हो); ये एक ऐसा कारक है जो 2024 और उसके आगे वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. तबतक उथल-पुथल, अस्थिरता, जटिलता और संशय को स्वीकारना ही इकलौता अचल कारक रहेगा. यही वो अकेला परिप्रेक्ष्य होगा जिसमें हमें अगले 12 महीने काम करना होगा. 


गौतम चिकरमाने ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में वाइस प्रेसिडेंट हैं.

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