Published on Jun 24, 2021 Updated 0 Hours ago

जो बाइडेन प्रशासन 11 सितंबर 2021 के निर्धारित और सांकेतिक तारीख़ तक अफ़ग़ानिस्तान से सेना पूरी तरह हटाने के लिए तेज़ी से काम कर रहा है.

क्या भारत अफ़ग़ानिस्तान की वायुसेना को ‘उड़ान भरने’ में मदद कर सकता है?

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के मुताबिक़ जून के मध्य तक अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सैन्य मौजूदगी में 50 प्रतिशत से ज़्यादा कमी कर ली है. राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन 11 सितंबर 2021 के निर्धारित और सांकेतिक तारीख़ तक अफ़ग़ानितान से सेना पूरी तरह हटाने के लिए तेज़ी से काम कर रहा है. अमेरिकी सेना की वापसी में तेज़ी ने अफ़ग़ानिस्तान और अमेरिका- दोनों देशों की नीतियों को अराजकता में बदल दिया है. आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान में आतंक और चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन में अमेरिका की भूमिका को लेकर स्पष्टता का अभाव है. ये भी साफ़ नहीं है कि अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर चुनी हुई सरकार के हाथ से सत्ता जाने पर अमेरिका क्या करेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि मज़बूत हो चुके तालिबान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान सेना की लड़ाई का भविष्य क्या होगा.

अमेरिका की तरफ़ से दूरदर्शिता की कमी नई बात नहीं है. 9/11 के बाद अमेरिका के ‘आतंक के ख़िलाफ़ जंग’ के अभियान में दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र इराक़ ने भी इसी तरह अमेरिका के बनाए संकट को झेला है. 

ज़मीन पर अलग-अलग चरमपंथी संगठनों से लड़ाई में अफ़ग़ान वायु सेना सबसे महत्वपूर्ण औज़ार बनी हुई है. लेकिन अमेरिकी सेना की वापसी से वायु सेना के अभियान पर भी असर पड़ना तय है क्योंकि अमेरिकी सेना के साथ-साथ वो 18,000 से ज़्यादा ठेकेदार भी बाहर हो रहे हैं जो अफ़ग़ान वायु सेना के विमानों के संचालन में मदद कर रहे हैं. इस वजह से अफ़ग़ान वायु सेना की क्षमता काफ़ी हद तक कम हो सकती है क्योंकि वो अमेरिका में बने कई एयरक्राफ्ट जैसे यूएच-60 ब्लैक हॉक और एमडी500 डिफेंडर हेलीकॉप्टर के साथ-साथ चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन में ख़ासतौर पर इस्तेमाल होने वाले ए-29 सुपर टुकानो का इस्तेमाल करती है. ये सभी एयरक्राफ्ट देखरेख के लिए काफ़ी हद तक पश्चिमी देशों के ठेकेदारों पर निर्भर हैं. ख़बरों से संकेत मिलता है कि पश्चिमी देशों के ठेकेदारों की कमी को पूरा करने के लिए अभी तक क़दम नहीं उठाए गए हैं. इसकी वजह से अफ़ग़ान वायुसेना कमज़ोर हो सकती है.

अमेरिका की अदूरदर्शिता

अमेरिका की तरफ़ से दूरदर्शिता की कमी नई बात नहीं है. 9/11 के बाद अमेरिका के ‘आतंक के ख़िलाफ़ जंग’ के अभियान में दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र इराक़ ने भी इसी तरह अमेरिका के बनाए संकट को झेला है. इराक़ ने अपनी वायु सेना के आधुनिकीकरण के लिए अमेरिका से महंगे एफ-16 लड़ाकू विमान ख़रीदे जबकि उसके पास आतंक और चरमपंथ विरोधी ऑपरेशन के लिए बेहतर, छोटे और ज़्यादा किफ़ायती विकल्प मौजूद थे. अब इराक़ की वायु सेना के बेड़े के ज़्यादातर एफ-16 लड़ाकू विमान उड़ान भरने के लायक नहीं हैं क्योंकि अमेरिका के सैन्य अड्डों पर चरमपंथी गुटों के रॉकेट हमलों में बढ़ोतरी की वजह से ठेकेदार इराक़ से बाहर चले गए

भारतीय वायु सेना जिसके बेड़े में सैकड़ों एमआई-17 हैं, अफ़ग़ान वायु सेना का इस काम में मदद कर सकता है कि वो अपने रूसी बेड़े का इस्तेमाल कर एक स्तर तक अपने अभियान को बरकरार रख सके

अमेरिका में बने अफ़ग़ान वायु सेना के एयरक्राफ्ट वैसे तो महत्वपूर्ण हैं लेकिन ये अफ़ग़ानिस्तान की समझदारी है कि उसने अपने ज़्यादातर पुराने, रूस में बने हेलीकॉप्टर के बेड़े को भी उड़ने के लायक बना रखा है. इसकी वजह से अफ़ग़ानिस्तान की सेना आतंकविरोधी बलों की ज़मीनी मदद, घायल सैनिकों को सुरक्षित निकालने जैसे महत्वपूर्ण काम-काज को जारी रख पाई है. अफ़ग़ान वायु सेना के इस पुराने बेड़े में ज़्यादातर मिल एमआई-17 मीडियम-लिफ्ट हेलीकॉप्टर हैं जो मौजूदा हालात को देखते हुए आने वाले समय में उसके लिए युद्ध के मोर्चे पर मुख्य आधार बन सकते हैं. अफ़ग़ान वायु सेना के बेड़े में भारत की तरफ़ से उपहार में मिले चार एमआई-24वी अटैक हेलीकॉप्टर भी हैं. भारत ने ये हेलीकॉप्टर अफ़ग़ानिस्तान के आतंक विरोधी अभियान में मदद के लिए दिया था. भारत के नज़रिए से देखें तो इन चार हेलीकॉप्टर ने चार पुराने एमआई-35 की जगह ली थी जो भारत ने 2015-16 में भारतीय वायु सेना के बेड़े से उपहार के तौर पर दिया था. लेकिन भारत का योगदान सिर्फ़ हेलीकॉप्टर मुहैया कराने और वायु सैनिकों को ट्रेनिंग देने तक सीमित था. एयरक्राफ्ट के इसके आगे की देखरेख का काम अफ़ग़ान वायुसेना को करना था. ये साफ़ तौर पर आदर्श व्यवस्था नहीं थी और बाद में इन अटैक हेलीकॉप्टर का क्या हुआ ये स्पष्ट नहीं है. हाल के दिनों में कुछ गपशप (अपुष्ट) से पता चलता है कि ये हेलीकॉप्टर देखरेख और पुर्जे की कमी की वजह से काफ़ी हद तक उड़ान भरने के लायक नहीं हैं. 

भारत के लिए अवसर 

अफ़ग़ान वायु सेना के पुराने रूसी बेड़े, जो एमआई-17 पर केंद्रित है, को एक बार फिर महत्व मिलने से एक दिलचस्प सवाल खड़ा होता है और शायद सुझाव भी. क्या भारत, और ख़ासतौर पर भारतीय वायु सेना जिसके बेड़े में सैकड़ों एमआई-17 हैं, अफ़ग़ान वायु सेना का इस काम में मदद कर सकता है कि वो अपने रूसी बेड़े का इस्तेमाल कर एक स्तर तक अपने अभियान को बरकरार रख सके? दरअसल रूस के एयरक्राफ्ट की मदद से ही अफ़ग़ानिस्तान अमेरिकी सैनिकों की पूरी वापसी के बाद भी आतंक और चरमपंथ विरोधी अपने ऑपरेशन को अंजाम देने में कामयाब हो पाएगा और ज़मीनी स्तर पर अपने सैनिकों की मदद कर पाएगा.

एमआई-17 के जन्मस्थान रूस के बाहर भारतीय वायु सेना के पास ही इस एयरक्राफ्ट और उसके अलग-अलग वैरिएंट को उड़ाने और उसकी देखरेख करने का अनुभव है. भारतीय पायलट को इस विमान की विशेषताओं की पूरी जानकारी हैं. उन्हें पता है कि अफ़ग़ानिस्तान में किस कठिन और असाधारण हालात का सामना इन विमानों को करना पड़ रहा है क्योंकि वो भारत में भी उसी तरह के मुश्किल पहाड़ी मोर्चे पर इसे उड़ा रहे हैं. भारतीय वायु सेना के इंजीनियर हेलीकॉप्टर की तकनीकी विशेषताओं से पूरी तरह परिचित हैं. उन्हें पता है कि हेलीकॉप्टर में क्या दिक़्क़त आ सकती है और उसकी सर्विसिंग से लेकर मरम्मत तक की क्षमता उनके भीतर है. वास्तव में, भारत में एमआई-17 के सबसे नये वैरिएंट एमआई-17वी-5 का अफ़ग़ानिस्तान में पहले से इस्तेमाल हो रहा है. एमआई-17वी-5 के पुर्जे को चंडीगढ़ में भारतीय वायु सेना के बेस रिपेयर डिपो नंबर 3 में जोड़ा गया है और उसकी पूरी जांच की गई है.

एमआई-17 अभी तक अफ़ग़ान वायुसेना के सभी एयरक्राफ्ट में सबसे उपयोगी और ख़ूबियों से भरा एयरक्राफ्ट साबित हुआ है. ये देखते हुए इस बात की कोई वजह नहीं है कि अफ़ग़ान सरकार अपनी इस क्षमता को खोना चाहेगी. पाकिस्तान से म्यांमार सीमा तक चुनौतियों की वजह से भारतीय वायु सेना भले ही निकट भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान को महत्वपूर्ण हेलीकॉप्टर देना पसंद नहीं करे लेकिन कुछ समय के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि भारतीय वायु सेना कुछ और एमआई-17वी-5 का ऑर्डर दे और इस तरह वो संख्या में किसी भी कमी को पूरा करे. निकट भविष्य में भारतीय वायु सेना ट्रेनिंग और देखभाल की ज़रूरत में अफ़ग़ान वायु सेना की मदद निश्चित रूप से कर सकती है. 

अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने के बाद अपनी रणनीति को लेकर अमेरिका मिले-जुले संकेत दे रहा है. ऐसे में आसमान के ऊपर अफ़ग़ान वायुसेना की बढ़त को चुनौती दी जा सकती है

भारतीय वायु सेना और अफ़ग़ान वायु सेना के बीच हिस्सेदारी की विस्तृत रूप-रेखा इस बात पर निर्भर करती है कि भारतीय सरकार अफ़ग़ानिस्तान में कहां तक जाने के लिए तैयार है. सबसे अच्छी स्थिति में भारत की ज़रूरत से कम इस्तेमाल की गई सैन्य कूटनीति की क्षमता क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण देश में पकड़ बनाएगी, वो भी उस वक़्त जब गंभीर उथल-पुथल का दौर है. कौन जानता है कि कुछ वर्षों बाद शायद एक ऐसा भी समय आएगा जब भारत में बने हेलीकॉप्टर जैसे हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्लस लिमिटेड के ध्रुव, जो ऊंचे इलाक़ों के लिए ख़ासतौर पर बना है, को अफ़ग़ान वायु सेना को सौंपा जा सकता है. 

निष्कर्ष

अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने के बाद अपनी रणनीति को लेकर अमेरिका मिले-जुले संकेत दे रहा है. ऐसे में आसमान के ऊपर अफ़ग़ान वायुसेना की बढ़त को चुनौती दी जा सकती है क्योंकि हाल की ख़बरों से पता चलता है कि तालिबान के कुछ गुटों ने ज़मीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल हासिल करने की तैयारी की है. वैसे इस मिसाइल के बिना भी तालिबान ने अप्रैल में अफ़ग़ान वायु सेना के एक एमआई-17 एयरक्राफ्ट को उड़ाने का दावा किया है. वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान में भारत के विकल्प सीमित हैं लेकिन तकनीकी जानकारी मुहैया करा के वो सुनिश्चित कर सकता है कि अफ़ग़ान वायु सेना के एमआई-17 एयरक्राफ्ट उड़ने के लिए तैयार रहें. अफ़ग़ानिस्तान में जिस लोकतंत्र के लिए भारत ने पूरा साथ दिया है, उसे बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण सैन्य समर्थन मुहैया कराने में कुछ भी ग़लत नहीं है. भारत की विदेश नीति के संदर्भ में स्कॉलर राजेश राजगोपालन कहते हैं: “विचार, जितने महत्वपूर्ण वो हैं, कभी आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक कि उनका साथ देने के लिए ठोस शक्ति नहीं हो.”

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