Author : Weifeng Zhong

Published on Nov 13, 2020 Updated 0 Hours ago

चीनी सरकार के अपने दावे और जारी किए आंकड़ों के बीच विसंगति का कैसे पता लगाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब द्वितीय विश्व युद्ध से पाया जा सकता है.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस हमें चीन में कोविड-19 के फैलाव के स्तर के बारे में क्या बता सकती है?

चीन के भीतर और बाहर दोनों जगह इस बात को लेकर बड़े पैमाने पर शक ज़ाहिर किया जा रहा है, कि चीनी सरकार ने कोरोनोवायरस डिज़ीज़ 2019 (कोविड-19) के अपने मामलों की संख्या घटाकर पेश की है. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी द्वारा जुटाए आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक आबादी और महामारी की उत्पत्ति वाले देश के रूप में इस लेख को लिखे जाने के समय तक कुल संक्रमित मामलों में चीन 42वें पायदान पर है. लेकिन चीन की ग़लत गिनती कितनी ग़लत है? चीनी प्रणाली की अपारदर्शिता इस सवाल का जवाब पाना और मुश्किल बना देती है.

वैश्विक महामारी में यह भी बरबस याद आ जाता है कि चीन की पारदर्शिता के अभाव के साथ हम लंबा दौर बिता चुके हैं, जिसका बाकी दुनिया पर कुछ न कुछ असर है. जबकि चीन का वैश्विक प्रभाव बढ़ने के साथ दूसरे देशों के साथ इसके तनाव गहरे हुए हैं, ऐसे में नीति-निर्माताओं और दुनिया के लिए चीन में मौजूदा घटनाओं पर गहरी पकड़ पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है.

हो सकता है कि चीन में कोविड-19 की असली गिनती हमेशा एक राज़ ही बना रहे, लेकिन चीनी प्रोपेगेंडा— जो चीनी सरकार के अपने शब्द हैं— में से असलियत का पता लगाने से  महामारी की गंभीरता को लेकर आश्चर्यजनक हकीकत सामने आ सकती है. 

हो सकता है कि चीन में कोविड-19 की असली गिनती हमेशा एक राज़ ही बना रहे, लेकिन चीनी प्रोपेगेंडा— जो चीनी सरकार के अपने शब्द हैं— में से असलियत का पता लगाने से  महामारी की गंभीरता को लेकर आश्चर्यजनक हकीकत सामने आ सकती है. यह कम से कम द्वितीय विश्व युद्ध के समय से एक आज़माया हुआ और सही तरीका है, और हाल के वर्षों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक में तरक़्क़ी ने इस तरह के प्रोपेगेंडा के विश्लेषण को और अधिक असरदार बना दिया है. 

महामारी के लिए नीति परिवर्तन सूचकांक

सर्वसुलभ स्रोत पॉलिसी चेंज इंडेक्स (पीसीआई) प्रोजेक्ट के एक हिस्से के रूप में, लेखक और उनकी टीम ने एक एआई एल्गोरिदम विकसित किया है. इसके तहत पॉलिसी चेंज इंडेक्स फॉर आउटब्रेक (पीसीआई-आउटब्रेक) के माध्यम से चीन में कोविड-19 के फैलाव को इसके प्रोपेगेंडा मशीनरी के शब्दों से मापा गया है, न कि इसके आधिकारिक आंकड़ों से.

शब्द आंकड़ों से ज़्यादा स्पष्ट हो सकते हैं. उदाहरण के लिए 23 जनवरी, 2020 को चीनी सरकार ने वुहान में लॉकडाउन की घोषणा की जिसकी आबादी 1.1 करोड़ है, और सरकारी मीडिया में इसकी ज़रूरत पर विस्तार से चर्चा की गई. हालांकि, उस दिन तक अधिकारियों ने देश भर में 600 से भी कम मामलों की पुष्टि की थी. हो सकता है वे शब्द महामारी की गंभीरता को लेकर कहे गए हों, या सरकार द्वारा और लॉकडाउन लगाने का इरादे से, या निवासियों से आदेश का पालन कराने की इच्छा से प्रेरित हों. भाषा की गंभीरता बताती है कि यह सिर्फ़ चंद सैकड़ों मरीज़ों का मामला नहीं था.

चीन में कोविड-19 की अवधि के दौरान, पीसीआई-आउटब्रेक के माध्यम से इस विचार का विस्तार करते हुए, हम शब्द-आधारित गंभीरता 0 से 1 के पैमाने पर मापते हैं, मामलों की आधिकारिक संख्या (नीचे के आंकड़ा देखें) के साथ एक दिलचस्प विरोधाभास दिखता है.

पीसीआई-आउटब्रेक और आधिकारिक संख्या दोनों ने फ़रवरी 2020 में जहां एक ही समय में प्लैट्यू (स्थिर स्तर) को छुआ था, वहीं चीनी सरकार के अपने शब्दों से पता चलता है कि मार्च से मई तक जो आधिकारिक संख्या बताई जा रही थी, महामारी की गंभीरता उसके मुक़ाबले काफ़ी धीमी गति से कम हो रही थी. इसके अलावा, जब बीजिंग में जून में दोबारा मामले बढ़े  तो पीसीआई-आउटब्रेक ने नए प्रकोप के प्रति आधिकारिक संख्या, जो उस समय की  हक़ीक़त के आनुपातिक रूप से किसी भी संकेत को बमुश्किल दर्शाता है, की तुलना में कहीं ज़्यादा  संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया की.

प्रोपेगेंडा विश्लेषण की शक्ति

चीनी सरकार के अपने दावे और जारी किए आंकड़ों के बीच विसंगति का कैसे पता लगाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब द्वितीय विश्व युद्ध से पाया जा सकता है.

साल 1943 के अंतिम महीनों में, मित्र देशों के मुखबिरों द्वारा फ्रांसीसी तट पर अजीब जर्मन निर्माणों की एक श्रृंखला की ख़बर दी गई थी. मित्र राष्ट्रों ने निर्माणों को बहुत चिंता के साथ देखा, क्योंकि यह साफ़ था कि निर्माण उस समय दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहर— लंदन पर हमला करने के लिए किसी तरह के गुप्त हथियार स्थल हो सकते थे. हालांकि मित्र राष्ट्रों  की सेना में इसके उलट एक दृष्टिकोण यह भी था कि ये निर्माण नाज़ियों द्वारा मित्र राष्ट्रों का ध्यान और संसाधनों को भटकाने के लिए बड़ी चालाकी से बनाया गया धोखा था.

अंत में पहला नज़रिया माना गया, और मित्र राष्ट्रों ने ज़बरदस्त बमबारी कर उसे तबाह कर दिया, जो कि V-1 फ्लाइंग बम की फायरिंग का ठिकाना बनते. उस समय के मित्र राष्ट्र सेना के सुप्रीम कमांडर ड्वाइट आइज़नहावर के अनुसार, अगर उन्होंने इन हथियार साइटों पर ग़लत नतीजे पर अमल किया होता, तो ऑपरेशन ओवरलोड होता ही नहीं.

मित्र देशों की सेनाओं के भीतर जिन लोगों ने सही आकलन किया वे प्रोपेगेंडा विश्लेषक थे, जिनका काम जर्मन प्रोपेगेंडा का विश्लेषण कर नाज़ियों की चालों का पता लगाना था. राजनीतिक वैज्ञानिक अलेक्जे़ंडर जॉर्ज द्वारा लिखित प्रोपेगेंडा एनालिसिस नाम की किताब में जुटाए गए विवरण के अनुसार असल में, युद्ध के दौरान अमेरिकी इंटेलिजेंस विश्लेषकों द्वारा नाज़ी जर्मनी के विश्लेषण का 81 प्रतिशत सही साबित हुआ—कई बार आश्चर्यजनक सटीकता के साथ.

जब सरकार एक गंभीर जन स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही सरकार अपने नियंत्रण वाले नेशनल मीडिया में, जैसा कि चीन में है, ऐसा करती है तो देर तक सच को छुपाना मुश्किल होता है. सरकार संकट के बारे में किस तरह बात करती है, “रिवर्स-इंजीनियरिंग” करके किसी भी घटना के विभिन्न पहलुओं के बारे में, जो अधिकारियों को मालूम है लेकिन आम जनता को नहीं मालूम है, सार्थक नतीजा निकाला जा सकता है

नाज़ी प्रोपेगेंडा तैयार करने वालों के राज़ खुल जाने के लिए नहीं थे. फिर भी उनके राज़ खुल गए, क्योंकि उनका प्रोपेगेंडा कई कारकों का एक उत्पाद थे जिनमें मित्र राष्ट्रों की भी बहुत रुचि थी: नाज़ी शासन किस स्थिति में है, उसका क्या कार्रवाई करने का इरादा है, उसका प्रोपेगेंडा क्या मक़सद पाने के लिए है. चूंकि यही कारक प्रोपेगेंडा को तय करते थे, इसलिए इस सामग्री की “रिवर्स-इंजीनियरिंग” कर विश्लेषकों द्वारा उन कारकों के बारे में नतीजा निकालना मुमकिन हुआ.

यही तर्क महामारी के प्रोपेगेंडा पर भी लागू होता है. एकदम झूठे आंकड़ों को जारी करना मामूली बात हो सकती है, लेकिन जब सरकार एक गंभीर जन स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही सरकार अपने नियंत्रण वाले नेशनल मीडिया में, जैसा कि चीन में है, ऐसा करती है तो देर तक सच को छुपाना मुश्किल होता है. सरकार संकट के बारे में किस तरह बात करती है, “रिवर्स-इंजीनियरिंग” करके किसी भी घटना के विभिन्न पहलुओं के बारे में, जो अधिकारियों को मालूम है लेकिन आम जनता को नहीं मालूम है, सार्थक नतीजा निकाला जा सकता है.

पुराने मामलों से सबक़

हालांकि, मित्र राष्ट्रों की प्रोपेगेंडा विश्लेषण पद्धति की सीधे नकल करना मुश्किल है. ऊपर वर्णित कारक प्रोपेगेंडा सामग्री को तय करते हैं— चाहे वह हथियार की तैनाती हो या महामारी के फैलाव की गंभीरता के बारे में हो— जटिल और परस्पर उलझी हुई है. उन कारकों और (अंततः) प्रोपेगेंडा सामग्री के बीच कारक संबंध को छानकर निकालने के लिए, बहुत मेहनत और संसाधन की ज़रूरत होती है.

फिर भी, अगर मौजूदा घटना जैसी घटना पहले हुई थी, तो पहले की घटना प्रोपेगेंडा को  समझना अधिक आसान बना सकती है. अंतर्निहित कारकों और प्रोपेगेंडा के बीच के कारक  संबंध जटिल हो सकते हैं, लेकिन जब घटना खुद को दोहराती है, तो यह मान लेना ठीक है कि उस कारक संबंध का काफ़ी हिस्सा, जो कुछ भी हो सकता है, मौजूदा मामले में भी जारी रहेगा. इसके अलावा, चूंकि प्रोपेगेंडा मैसेज (यानी शब्द) अव्यवस्थित डेटा है, उदाहरणों से सीखना प्राकृतिक भाषा प्रोसेसिंग के क्षेत्र में हालिया तरक़्क़ी से आसान हो जाता है जो बड़ी मात्रा में टेक्स्ट को प्रभावी ढंग से प्रोसेस और विश्लेषण कर सकते हैं.

SARS को बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल करते हुए, पीसीआई-आउटब्रेक एल्गोरिदम “पढ़ता है” कि किस तरह चीनी सरकार कोविड-19 के बारे में बात करती है और सार्स महामारी चक्र में उस समय का पता लगाता है जब सार्स-युग की भाषा आज के कोविड-युग की भाषा जैसी ही है. 

पीसीआई-आउटब्रेक एल्गोरिदम पूर्ववर्ती घटनाओं से ठीक यही फ़ायदा उठाता है. चीन भी पहले ऐसे ही जन स्वास्थ्य संकट से गुजरा है: यह है 2002-03 का सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) महामारी. हालांकि पिछली घटना का पैमाना बहुत छोटा था, फिर भी यह हमें एक दुर्लभ झलक दिखाता है कि चीनी सरकार के ख़ुद के शब्द और स्वर के उतार-चढ़ाव से सबक़ सीख सकें.

SARS को बेंचमार्क के रूप में इस्तेमाल करते हुए, पीसीआई-आउटब्रेक एल्गोरिदम “पढ़ता है” कि किस तरह चीनी सरकार कोविड-19 के बारे में बात करती है और सार्स महामारी चक्र में उस समय का पता लगाता है जब सार्स-युग की भाषा आज के कोविड-युग की भाषा जैसी ही है. उदाहरण के लिए, जब प्रोपेगेंडा कंटेंट कोविड-19 को लेकर आकस्मिकता को बढ़ाता है, तो एल्गोरिदम महामारी का बढ़ना बताएगा, क्योंकि जब सार्स का फैलाव बढ़ रहा था, तब भी चीनी सरकार की भाषा में आकस्मिकता की बात सुनाई दे रही थी. इसी तरह, जब एल्गोरिदम सरकारी मीडिया में जीत का दावा करता है, तो यह स्वाभाविक रूप से सार्स का  फैलाव घटने से जुड़ जाएगा, क्योंकि तब भी जीत का दावा थीम था.

प्रोपेगेंडा विश्लेषण की यह क़िस्म जो पूर्ववर्ती घटनाओं पर निर्भर करती है, ज़ाहिर तौर पर कई दूसरी स्थितियों पर भी लागू होती है. उदाहरण के लिए, एक अन्य अध्ययन में हमारी शोध टीम ने ऐसा ही डीप लर्निंग एल्गोरिदम, पॉलिसी चेंज फ़ॉर इंडेक्स फ़ॉर क्रैकडाउन (पीसीआई-क्रैकडाउन) विकसित किया, जिसमें 1989 में थियानमेन चौक में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का इसी तरह दमन किया गया था और घटना के बाद चीनी प्रोपेगेंडा लॉन्च किया गया था, इस नज़ीर को देखते हुए भविष्यवाणी की गई है कि क्या हांगकांग में 2019-2020 के लोकतंत्र समर्थक विरोध का सामना सेना के हिंसक क्रैकडाउन (कठोर कार्रवाई) से होगा.

दार्शनिक जॉर्ज संतायाना का एक मशहूर कथन है, “जो लोग अतीत को याद नहीं रखते, इसे दोहराने के लिए अभिशप्त हैं.” लेकिन इस समझदारी का दूसरा पहलू यह है कि, चूंकि इतिहास ख़ुद को दोहराता है, यह हमारे लिए या हमारे एआई प्रोग्राम्स के लिए— ढेरों अवसर मुहैया कराता है— अतीत से सीखने के लिए.

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