Author : Rumi Aijaz

Published on Sep 29, 2022 Updated 0 Hours ago

दिल्ली में स्वच्छ पानी की उपलब्धता बहुत कम है और इस मुद्दे का समाधान करने के लिए वो पड़ोस के राज्यों पर बहुत ज़्यादा निर्भर है.

दिल्ली में पानी की कमी दूर करने के उपाय

दिल्ली सरकार को अपने नागरिकों के लिए पर्याप्त और स्वच्छ पानी मुहैया कराने के मामले में स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. दिल्ली जल बोर्ड के 2021-22 के बजट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में पानी की मांग (1,150 मिलियन गैलन प्रति दिन या mgd) और आपूर्ति (935 mgd) में लगभग 215 mgd का अंतर है. इस अंतर का निर्धारण 2021 में 2 करोड़ 30 लाख की अनुमानित जनसंख्या के लिए 50 गैलन प्रति व्यक्ति रोज़ाना (gpcd) की मांग के आधार पर किया गया है.

पानी की कमी का नकारात्मक असर अलग-अलग रूपों में दिखता है. उदाहरण के तौर पर, अनधिकृत क्षेत्रों के कई घरों में स्वच्छ पानी की उपलब्धता नहीं है. नियोजित क्षेत्रों में पाइप के ज़रिए आपूर्ति किया जा रहा पानी दिन में आम तौर पर दो से तीन घंटों के लिए ही मिलता है. इसके अलावा गर्मी के मौसम में जब पानी की मांग बढ़ जाती है तो हालात और भी ज़्यादा बिगड़ जाते हैं.स्वच्छ और सुरक्षित पानी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने की स्थिति में ज़िंदगी बेहद मुश्किल और तनाव भरी हो जाती है, ख़ास तौर पर झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले ग़रीब समुदाय के लोगों के लिए.

वैसे तो दिल्ली सरकार दावा करती है कि शहर की 93 प्रतिशत जनसंख्या पाइप के ज़रिए पानी की आपूर्ति के नेटवर्क से जुड़ी हुई है और बाक़ी लोगों को टैंकर के माध्यम से पानी की आपूर्ति होती है लेकिन इस मामले में अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है.पानी के मामले में अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए दिल्ली पड़ोस के राज्यों की नदियों पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. दिल्ली में सतही और भूमिगत पानी का भंडार कम है और इस्तेमाल किए गए पानी के फिर से इस्तेमाल, रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और जल के स्रोतों के कायाकल्प की मौजूदा कोशिशों से उम्मीद के मुताबिक़ पानी नहीं मिल रहा है.दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली में अपनी सीमा के भीतर पर्याप्त पानी नहीं है. पानी की इस कमी के पीछे एक वजह ये भी है कि भौगोलिक रूप से दिल्ली अर्ध-शुष्क क्षेत्र में है.

स्वच्छ और सुरक्षित पानी की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने की स्थिति में ज़िंदगी बेहद मुश्किल और तनाव भरी हो जाती है, ख़ास तौर पर झुग्गियों और अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले ग़रीब समुदाय के लोगों के लिए.

इन परिस्थितियों में पानी के लिए पड़ोस के राज्यों पर दिल्ली की निर्भरता आगे भी बनी रहेगी.  इसलिए दिल्ली में पानी की बढ़ती ज़रूरत की समस्या का समाधान करने के लिए ये महत्वपूर्ण है कि दिल्ली से बाहर के स्रोतों से पर्याप्त मात्रा में पानी मिले. वर्तमान में दिल्ली के अपने स्रोतों (दिल्ली से गुज़रती यमुना नदी और भूमिगत जल) के अलावा बाहरी स्रोतों से दिल्ली को पानी मिलता है. ये स्रोत पड़ोस के राज्य हरियाणा में स्थित हरियाणा कैरियर लाइन्ड कैनाल (CLC), दिल्ली सब-ब्रांच (DSB) और मुनक नहर हैं जिसमें यमुना नदी पर बने हथिनी कुंड बांध से पानी छोड़ा जाता है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में स्थित भाखड़ा जलाशय और उत्तर प्रदेश की ऊपरी गंगा नहर (जो हरिद्वार में गंगा नदी से शुरू होती है) भी दिल्ली में पानी के बाहरी स्रोत हैं. ये राज्य दिल्ली के साथ पानी के बंटवारे के समझौते के अनुसार पानी की आपूर्ति करते हैं. इस तरह दिल्ली को सभी आंतरिक और बाहरी स्रोतों से लगभग 935 mgd पानी मिलता है. दिल्ली के निवासियों तक पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली सरकार ने पड़ोस के राज्यों से और ज़्यादा पानी हासिल करने के लिए क़दम उठाए हैं.

दिल्ली सरकार ने यमुना नदी से अतिरिक्त पानी की व्यवस्था करने के लिए कोशिशें की हैं. यमुना नदी की शुरुआत उत्तराखंड के यमुनोत्री ग्लेशियर से होती है और ये नदी हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से होकर गुज़रती है. इस नदी से हर साल 342 mgd पानी प्राप्त करना है जो कि हिमाचल प्रदेश को आवंटित यमुना के पानी का अप्रयुक्त हिस्सा होने का अनुमान है. इस उद्देश्य के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ 20 दिसंबर 2019 को एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया गया. हिमाचल प्रदेश से पानी को दिल्ली लाने के लिए हरियाणा की नहर प्रणाली के इस्तेमाल के उद्देश्य से हरियाणा सरकार से भी संपर्क साधा गया.

साफ़ किए गए गंदे पानी (उत्तर प्रदेश की सिंचाई ज़रूरत को पूरा करने के लिए) के बदले उत्तर प्रदेश से 140 mgd पानी लेने के एक और प्रस्ताव को भी तैयार किया गया. लेकिन मई 2022 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों प्रस्तावों को हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने ठुकरा दिया. हरियाणा की सरकार ने भी इस विचार का विरोध ये कहते हुए किया कि उसकी नहर प्रणाली हिमाचल प्रदेश से दिल्ली तक अतिरिक्त पानी नहीं ला सकती है.

2021-22 के लिए दिल्ली के आर्थिक सर्वे में ज़िक्र किया गया है कि पानी की उपलब्धता को बढ़ाने वाले इस तरह के उपाय “पूरी तरह से पड़ोसी राज्यों और केंद्र सरकार के सहयोग और रचनात्मक मेल-जोल पर निर्भर हैं.

इस बीच दिल्ली सरकार यमुना और उसकी सहायक नदियों पर निम्नलिखित तीन जल भंडारण परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान दे रही है. इस मामले में 2021-22 के लिए दिल्ली के आर्थिक सर्वे में ज़िक्र किया गया है कि पानी की उपलब्धता को बढ़ाने वाले इस तरह के उपाय “पूरी तरह से पड़ोसी राज्यों और केंद्र सरकार के सहयोग और रचनात्मक मेल-जोल पर निर्भर हैं.”

  • हिमाचल प्रदेश में गिरी नदी पर रेणुका बांधछह राज्यों: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, यूपी, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान- ने जनवरी 2019 में बांध के निर्माण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया और दिसंबर 2021 में केंद्रीय कैबिनेट ने इसकी मंज़ूरी दी. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 में बांध के निर्माण का काम शुरू होगा और अगले छह वर्षों में ये पूरा हो जाएगा. उम्मीद की जा रही है कि दिल्ली को इस बांध से 23 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड (क्यूमेक्स) की दर से पानी मिलेगा और इससे राष्ट्रीय राजधानी को 275 mgd तक पानी की आपूर्ति की संभावना है. वित्तीय योगदान के मामले में दिल्ली सरकार ने हिमाचल प्रदेश सरकार को 15 अरब रुपये का भुगतान किया है और बिजली की लागत का 90 प्रतिशत भार सहने का वादा भी किया है.

राज्य के प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण में फंड जमा नहीं होने की वजह से इस परियोजना की शुरुआत में देरी हुई. इसके कारण वन विभाग के क्लीयरेंस की समय सीमा समाप्त हो गई. इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कोशिशें चल रही हैं.

  • उत्तराखंड में यमुना नदी पर लखवाड़ बांध: ये परियोजना उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) को आवंटित की गई है. यहां का पानी उन छह राज्यों को मिलेगा जिनका ज़िक्र ऊपर किया गया है. इसके लिए अगस्त 2018 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. सितंबर 2021 में जल शक्ति मंत्रालय से वित्तीय मंज़ूरी प्राप्त की गई. इस तरह की ख़बरें हैं कि ये परियोजना शुरुआती तारीख़ से छह वर्षों के भीतर पूरी हो जाएगी. इस परियोजना की शुरुआत के लिए दिल्ली सरकार ने 7 करोड़ 79 लाख रुपये (सीड मनी) का योगदान दिया है और परियोजना पूरी होने के बाद राष्ट्रीय राजधानी को लगभग 135 mgd पानी मिलेगा.
  • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर टोंस नदी पर किशाऊ बांध: इस परियोजना को अंजाम देने के लिए 16 जनवरी 2017 को किशाऊ कॉरपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की गई. इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) समीक्षा के स्तर पर है. ऐसी ख़बरें हैं कि शुरुआत होने के 96 महीनों (आठ वर्ष) के बाद ये परियोजना पूरी हो जाएगी. इस परियोजना से फ़ायदा हासिल करने वाले छह राज्य वही हैं जिनका ज़िक्र ऊपर किया गया है और दिल्ली सरकार के द्वारा इस परियोजना के लिए 8 करोड़ 10 लाख रुपये का योगदान दिया गया है. इस जलाशय से दिल्ली को लगभग 372 mgd पानी मिलने की उम्मीद है.
दिल्ली सरकार की तरफ़ से पानी की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशों को लेकर ऊपर प्रस्तुत समीक्षा से पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी में रहने वाले लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी सुनिश्चित कराने में कई वर्ष लगेंगे.

दिल्ली सरकार की तरफ़ से पानी की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशों को लेकर ऊपर प्रस्तुत समीक्षा से पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी में रहने वाले लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी सुनिश्चित कराने में कई वर्ष लगेंगे. दिल्ली की पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया गया है; कई आंतरिक मुद्दों का समाधान किया जाना अभी बाक़ी है. इसके अलावा नदियों के ऊपर तीन राष्ट्रीय जल भंडारण परियोजनाओं को पूरा करने में छह से आठ साल लग सकते हैं.

सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े कारणों से बांध परियोजनाओं के पूरा होने में और भी देरी हो सकती है. मिसाल के तौर पर, रेणुका बांध से विस्थापित होने वाले लोग पुनर्वास की योजना के साथ-साथ मुआवज़े की प्रस्तावित राशि से भी नाराज़ हैं और वो आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. लखवाड़ और किशाऊ परियोजनाओं के मामले में भी इसी तरह की समस्याएं हैं. पर्यावरणविद भी इन परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर और हिमालय की जैव विविधता को नुक़सान के बारे में चिंतित हैं.

जनसंख्या के अनुमानों से संकेत मिलता है कि 2041 तक दिल्ली की आबादी 2 करोड़ 80 लाख से लेकर 3 करोड़ तक होगी. इतने लोगों की पानी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सतत रणनीति का पालन करना होगा.

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