Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत में वीडियो गेमिंग उद्योग में तेजी से बढ़ोतरी के बावजूद इस क्षेत्र में गहन शोध और नीतिगत हस्तक्षेप अभी भी ना के बराबर है. 

कम शोध वाले भारतीय गेमिंग उद्योग का परिदृश्य: बहुत कुछ करना अभी बाकी है!
कम शोध वाले भारतीय गेमिंग उद्योग का परिदृश्य: बहुत कुछ करना अभी बाकी है!

साल 2010 तक भारत के उभरते वीडियो गेमिंग उद्योग में 20 मिलियन उपभोक्ता शामिल थे. साल 2020 तक इसकी संख्या में 22 गुना बढ़ोतरी दर्ज़ की गई, जिसमें 450 मिलियन उपभोक्ता कैज़ुअल, हाइपर-कैज़ुअल, क्लासिक, मिड-कोर और हार्डकोर गेम से जुड़े हुए थे. पिछले पांच वर्षों में इस उद्योग ने ज़बर्दस्त विकास देखा है और साल 2025 तक इसके मूल्य में तीन गुना बढ़ोतरी होकर इसके 3.9 यूएस बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.

वैश्विक शैक्षणिक अनुसंधान ने वीडियो गेम में बढ़ रहे लिंग, नस्ल और उपनिवेशवाद के साथ ही वीडियो गेमों की शिक्षाप्रद क्षमता और हिंसा और आक्रामकता पर उनके प्रतिकूल परिणामों को समझने पर ध्यान केंद्रित किया है. कई लोगों ने गेम डिज़ाइनरों को इसमें सुधार के लिए सुझाव दिए हैं जिससे इसे ज़्यादा समावेशी बनाया जा सके. इतना ही नहीं, इन प्रस्तावों के तहत सरकारों और वीडियो गेम खेलने वालों पर माता-पिता की निगरानी, समय की कमी और चेतावनी संदेश जैसे नियम लागू करने के विचार भी साझा किए गए हैं. पूरे भारत में वीडियो गेम की व्यापक लोकप्रियता के बावजूद वीडियो गेम उद्योग को बढ़ावा देने और वीडियो गेम और उससे संबंधित नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए अनुसंधान की अभी भी भारी कमी है. भारत में वीडियो गेमिंग उद्योग की तेजी से बढ़ती संभावना के साथ ही इसके निर्माण, निहितार्थ और संभावित हस्तक्षेप पर अनुसंधान भी ज़रूरी है जिससे भारत में वीडियो गेम निर्माता वीडियो गेमिंग के क्षेत्र में नए और समावेशी प्लेटफार्मों की पेशकश कर पाएं और मौजूदा वीडियो गेम जिसमें हिंसा और रूढ़िवादी प्रभाव हैं उन्हें रोका जा सके. अनुसंधान विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में रचनात्मक वीडियो गेमिंग को प्रोत्साहित करे और जिससे सरकार और प्रौद्योगिकी नीति की भूमिका को समझने में भी मदद मिल सके. ग्रंथ सूची  विश्लेषण का इस्तेमाल करते हुए, यह लेख भारत में वीडियो गेमिंग परिदृश्य में अकादमिक अनुसंधान की कमी पर प्रकाश डालता है; और मौजूदा साहित्य में विषयों और कमियों और नए और अधिक समग्र अनुसंधान की गुंजाइश का प्रस्ताव देता है. हालांकि अन्य प्रकार के लोकप्रिय और विश्वसनीय शोध (मुख्य रूप से परामर्श फर्मों द्वारा बाज़ार अनुसंधान और उद्योग रिपोर्ट) इस लेख में शामिल नहीं हैं क्योंकि वे एक वैज्ञानिक शोध लेख के दायरे में उचित स्थान नहीं रखते हैं.

भारत में वीडियो गेमिंग उद्योग की तेजी से बढ़ती संभावना के साथ ही इसके निर्माण, निहितार्थ और संभावित हस्तक्षेप पर अनुसंधान भी ज़रूरी है जिससे भारत में वीडियो गेम निर्माता वीडियो गेमिंग के क्षेत्र में नए और समावेशी प्लेटफार्मों की पेशकश कर पाएं और मौजूदा वीडियो गेम जिसमें हिंसा और रूढ़िवादी प्रभाव हैं उन्हें रोका जा सके.

हालांकि, लोकप्रिय संस्कृति और मुख्यधारा के मीडिया जैसे कि फिल्में, किताबें, संगीत, टीवी श्रृंखला पर शोध कोपिछले कुछ दशकों में भारत में बढ़ावा दिया गया है लेकिन फिर भी वीडियो गेम कम शोध वाली चेतावनी बनी हुई है. पॉप संस्कृति का आलोचनात्मक विश्लेषण अक्सर राष्ट्र में सांस्कृतिक और वैचारिक आख्यानों में बदलाव को समझने के लिए किया जाता है और जब लिंग, वर्ग और जाति की आलोचनाओं को इसमें शामिल किया जाता है तो इसमें लोगों की भावनाओं का पता चलता है. वीडियो गेम सांस्कृतिक उपभोग के विश्लेषण में एक नई दृष्टि प्रदान करते हैं क्योंकि वे अपने पारिस्थितिकी तंत्र में उपयोगकर्ताओं की साझेदारी को प्रोत्साहित करते हैं. फिल्मों, संगीत और टेलीविजन श्रृंखलाओं के विपरीत, वीडियो गेम खेलने वालों को अक्सर अपनी कहानियों को फ्रेम करने और अपने कार्यों, अवतारों और टीमों को चुनने के लिए आमंत्रित किया जाता है (हलांकि सीमित तरीक़ों से). ऐसे में वीडियो गेम खेलने वाले खिलाड़ी खेल में पात्रों और उनकी शक्तियों के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. ऐसे डिज़ाइन किए गए वातावरण (क्लैश ऑफ़ क्लैन्स जैसे खेलों में) या स्व-निर्मित वातावरण में (सेकेंड लाइफ़ जैसे खेलों में) यह भागीदारी दिलचस्प अवधारणा को व्यक्त कर सकती है कि लोग किस प्रकार के खेल खेलना पसंद करते हैं, या फिर उन्हें किस तरह का किरदार पसंद है और फिर उपयोगकर्ता किस किरदार को छोड़ देना चाहते हैं, या फिर कौन ज़्यादा रूढ़िवादी है या फिर क्यों उन्हें छोड़ दिया गया है. कई तरह के अध्ययन वीडियो गेम की कहानियों में मूर्त रूप की शक्ति को उजागर करते हैं और यह भी कि यह अपने खिलाड़ियों के लिए क्या कर सकता है. जबकि कुछ इसकी शैक्षणिक क्षमता का अध्ययन करते हैं और इसे रचनात्मक रूप से कैसे नियोजित किया जा सकता है इसकी खोज करते हैं, जबकि कई अन्य लोगों को हिंसा में बढ़ोतरी का डर सताता है साथ ही आक्रामकता से लैस खेलों में संलग्न खिलाड़ियों की उदासीनता का डर भी सताता रहता है.

बिबलियोमेट्रिक विश्लेषण का निष्कर्ष

बड़ी तादाद में वैज्ञानिक साहित्य को संभालने की क्षमता और सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए बिबलियोमेट्रिक सूची विश्लेषण की पद्धति को अपनाया गया था. साल 2010 के बाद से मौजूदा प्रकाशनों को खोजने के लिए वेब ऑफ़ साइंस शीर्षक का उपयोग किया गया था और वीडियो गेम, कंप्यूटर गेम और प्ले-स्टेशन पर केंद्रित वैज्ञानिक साहित्य को फ़िल्टर किया गया.

चित्र 1: बिबलियोमेट्रिक विश्लेषण भारतीय संदर्भ के लिए वीडियो गेम पर शोध की कमी को दर्शाता है
वेब ऑफ साइंस डेटाबेस का उपयोग करके शोध लेखों की पुनर्प्राप्ति

जनवरी 2010 से जनवरी 2022 तक के लेख; सीपीसी एनालिटिक्स द्वारा विश्लेषण।

तय समय सीमा के भीतर 20,834 लेखों का डेटासेट प्राप्त हुआ. भारत (अध्ययन देश के रूप में) पर प्रकाशनों को शामिल करने के लिए खोज शब्द को और अधिक समायोजित किया गया था. केवल 46 लेख (0.22 प्रतिशत) फिर से प्राप्त किए गए. उन प्रकाशनों के गहन निरीक्षण के बाद अंतिम डेटासेट में भारत में वीडियो गेमिंग से संबंधित केवल 18 शोध लेख ही मिले थे. इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया भर में लिखे गए हर 1,200 लेखों में से सिर्फ एक भारत पर उपलब्ध है. इससे पता चलता है कि भारत में वीडियो गेम उपयोगकर्ताओं की तादाद में वृद्धि के बावजूद अनुसंधान उन परिवर्तनों को ठीक नहीं कर पा रहा है जो अपने युवा उपयोगकर्ताओं के लिए किया जा सकता है. मैनुअल सत्यापन से पता चलता है कि 46 लेखों में से आठ को भारत के लिए ग़लत तरीक़े से ज़िम्मेदार ठहराया गया था जबकि 20 झूठे तौर पर सकारात्मक थे (मुख्य फोकस वीडियो गेम पर नहीं). जबकि बड़ी संख्या में झूठे सकारात्मक कीवर्ड, खोज के लिए बेहतर नहीं थे जिससे उपभोक्ता प्रासंगिक लेखों तक नहीं पहुंच पाए.

कई अन्य लोग नियमित रूप से हिंसक वीडियो गेम खेलने वाले स्कूली बच्चों की आक्रामकता, पढ़ाई पर उनके कम होते ध्यान और वास्तविक जीवन में हिंसा के प्रति असंवेदनशीलता में बढ़ोतरी पर ध्यान देते हैं.

मौजूदा साहित्य से उभरने वाले विषय और अंतर

बिबलियोमेट्रिक विश्लेषण हमें मौजूदा साहित्य को प्रासंगिक विषयों में वर्गीकृत करने की छूट देता है. जैसा कि चित्र 2 में देखा जा सकता है, अधिकांश पेपर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर केंद्रित हैं. इस तरह के अध्ययनों को इसके सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यानी खिलाड़ियों पर वीडियो गेमिंग के प्रभावों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. शोधकर्ताओं ने डिज़िटल स्क्रीन के सामने लगातार बैठने से वजन, आंखों की रोशनी और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डाला है. कई अन्य लोग नियमित रूप से हिंसक वीडियो गेम खेलने वाले स्कूली बच्चों की आक्रामकता, पढ़ाई पर उनके कम होते ध्यान और वास्तविक जीवन में हिंसा के प्रति असंवेदनशीलता में बढ़ोतरी पर ध्यान देते हैं. कुछ अध्ययन तो बच्चों की वीडियो गेमिंग की लत का भी विश्लेषण करते हैं.

चित्र 2: भारतीय वीडियो गेमिंग परिदृश्य में दुर्लभ नीति-आधारित शोध
भारत पर लेखों का विषयगत वर्गीकरण, 2010-2022

Video Gaming

डेटा स्रोत: वेब ऑफ़ साइंस. एन = 20,834 भारत पर लेख: 18. थीम गणना: 33; मैनुअल वर्गीकरण.
नोट: 1लेख 1 से अधिक थीम के अंतर्गत आ सकता है; सीपीसी एनालिटिक्स द्वारा विश्लेषण.

शिक्षा सामान्यतः अध्ययन का एक दूसरा विषय है. वीडियो गेमिंग की शैक्षिक क्षमता और इसका उपयोग छात्रों में रचनात्मकता को कैसे प्रोत्साहित कर सकता है, इस पर ध्यान दिया गया है. भारत में वीडियो गेम में लिंग और नस्ल का अध्ययन आमतौर पर कम किया गया है. कई शोधकर्ता लंबे समय तक चयनित खेल खेलते हैं और विभिन्न लिंगों (यदि कोई हो), महिलाओं के शरीर को गलत तरीके से देखने जैसे विषय पर ध्यान केंद्रित करते हैं. भारतीय अध्ययनों में नस्लवाद को औपनिवेशिक पुरूषत्व और श्वेत महिलाओं की बुतपरस्ती के आधार पर किया जाता है. हालांकि अध्ययन किए गए खेल ‘कैज़ुअल’ या ‘हाइपर-कैज़ुअल गेम’ (लगभग सीधे तौर पर सीखने की अवस्था, बिना समय की कमी और सरल यांत्रिकी वाले खेल) हैं और ‘हार्ड-कोर’ नहीं हैं (ऐसे खेल जिनमें समय और लर्निंग  के उच्च जुड़ाव और निवेश की आवश्यकता होती है). भारतीय दर्शकों में सांस्कृतिक असंगति जो खेल खेलने के साथ ही बढ़ती जाती है, जो शाही संदर्भों या अन्य देशों में पहले से मौजूद रहती है, उस पर शोध नहीं किया जाता है. दूसरी ओर भारतीय मूल के खेल, ऐसे खेलों की प्रमुखता का उपयोग अपनी ‘भारतीयता’ की मार्केटिंग करने के लिए करते हैं और ‘भारतीय’ लोगों से उनके धार्मिक बातों को उजागर करने का दावा करते हैं. हालांकि अनुमानित रूप से, वे प्रमुख हिंदू कहानियों और पौराणिक पात्रों के जातिवादी विषयों को बताते हैं और अन्य नैरेटिव को गायब कर देते हैं. उदाहरण के लिए, राजी नामक एक लोकप्रिय भारतीय खेल, जिसने विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते, उसमें देवी दुर्गा के महिषासुर को मारने की कथा का इस्तेमाल किया गया है, जिसे मुख्यधारा की मीडिया में एक राक्षस के रूप में चित्रित किया गया है. यह चित्रण विभिन्न निम्न जाति के समुदायों के लिए एक देवता के रूप में महिषासुर की भूमिका से अनभिज्ञ हैं. यह सवाल उठाता है कि लोकप्रिय संस्कृति में किस ‘भारतीयता’ को वैध माना जाता है और इसके पीछे निर्माता कौन हैं.

साल 2010 से एक भी शोध आधारित लेख नहीं देखा गया है जो विज्ञान के वेब में नीति निर्माण या वीडियो गेम के लिए हस्तक्षेप के मामले को सही करता हो. यह हैरान करने वाली बात है, क्योंकि कई अन्य देशों ने हिंसा, ख़राब प्रतिनिधित्व और बच्चों के वीडियो गेम के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए नियमों के साथ आगे बढ़ना शुरु कर दिया था.

साल 2010 से एक भी शोध आधारित लेख नहीं देखा गया है जो विज्ञान के वेब में नीति निर्माण या वीडियो गेम के लिए हस्तक्षेप के मामले को सही करता हो. यह हैरान करने वाली बात है, क्योंकि कई अन्य देशों ने हिंसा, ख़राब प्रतिनिधित्व और बच्चों के वीडियो गेम के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए नियमों के साथ आगे बढ़ना शुरु कर दिया था. यह इस तथ्य के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है कि उस समय भारत में वीडियो गेम लोकप्रिय नहीं हुए थे और नियमन का ध्यान साइबर-बदमाशी और अश्लील साहित्य तक ही सीमित था. हालांकि वीडियो गेमिंग में तेज उछाल के संदर्भ में, अब गुणवत्ता वाले डिज़ाइन, उत्पादन और वीडियो गेम के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए परिदृश्य में संभावित हस्तक्षेप के साथ आगे बढ़ने का सही समय है.

निष्कर्ष 

इंटरनेट और डिज़टल तकनीक ने हम सभी के जीवन को प्रभावित किया है और दुनिया के ग्रामीण हिस्सों में भी इसकी पहुंच देखी जा रही है. इस संदर्भ में गेमिंग भारत में एक ताक़त बनकर उभरा है, जिसमें 450 मिलियन से अधिक गेमर्स अधिक से अधिक घंटों तक गेम खेलते हैं. हिंसक और रूढ़िवादी नैरेटिव्स के प्रति आकर्षण और उनके साथ जुड़ाव का पर्याप्त अध्ययन अब भी नहीं किया गया है, ख़ास तौर पर ‘हार्ड-कोर’ खेलों में जो एक बड़ी कहानी का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा फैंटेसी स्पोर्ट्स और जुए के खेल जैसे कुछ संदर्भों को छोड़कर, जो हाल ही में पेश किए गए हैं, उसमें भी नीति और हस्तक्षेप पर ध्यान लगभग ना के बराबर है. वास्तव में साल 2010 से अब तक गेमिंग उद्योग में केवल 0.22 प्रतिशत लेख ही भारत में उपलब्ध हैं. तर्क दिया जाता है कि एक गहन विश्लेषण (जो खेल में रमने और इसकी ख़ास विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, यह भी समझना कि लिंग, नस्ल, जाति, हिंसा और अन्य पहचान कैसे प्रस्तुत की जाती हैं) कुछ सबसे अधिक खेले जाने वाले ‘हार्ड-कोर’ गेम भारत में ग़ायब हैं और न केवल नीति निर्माताओं के लिए, बल्कि वीडियो गेमिंग परिदृश्य में वीडियो गेम डेवलपर्स, खिलाड़ियों और माता-पिता और शिक्षकों जैसे अन्य पक्षों के लिए नया नज़रिया देंगे. हालांकि कुछ हितधारक जो व्यापक उद्योग संबंधी अनुसंधान कर रहे हैं, वे वीडियो गेम डेवलपर्स और अंतर्राष्ट्रीय निजी उद्योग अनुसंधान क्षेत्र में केपीएमजी जैसी फर्म हैं. भारतीय शिक्षा जगत, थिंक टैंक और कंसल्टेंसी फर्मों को भी भारत में उन्नत अनुसंधान को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है.

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Ovee Karwa

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Ovee is a Research Associate at CPC Analytics. She has done her bachelor's in Literary and Cultural Studies and is interested in understanding power oppression ...

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Sahil Deo

Sahil Deo

Non-resident fellow at ORF. Sahil Deo is also the co-founder of CPC Analytics, a policy consultancy firm in Pune and Berlin. His key areas of interest ...

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Tanmay Devi

Tanmay Devi

Tanmay Devi is a PhD Student in Economics at Rice University US.

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