70 प्रतिशत आबादी को कम-से-कम वैक्सीन की एक डोज़ और 60 प्रतिशत आबादी के पूर्ण टीकाकरण के साथ मैसाचुसेट्स अमेरिका के उन राज्यों में से है जो वैक्सीनेशन के मामले में आगे चल रहा है. वास्तव में मैसाचुसेट्स वैक्सीनेशन के मामले में वरमोंट के बाद दूसरे स्थान पर है, वो भी तब जब वरमोंट की आबादी मैसाचुसेट्स के मुक़ाबले 10 प्रतिशत से भी कम है. मौजूदा समय में अमेरिका में 12 साल से ज़्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति वैक्सीन लगाने के लिए योग्य है, वैक्सीन लगवाने के लिए कोई पहचान देने की ज़रूरत नहीं है. मैसाचुसेट्स में वैक्सीनेशन की ज़्यादा दर की वजह से इसकी तारीफ़ की गई है, कहा गया है कि असरदार टीकाकरण कार्यक्रम के लिए मैसाचुसेट्स एक मिसाल है लेकिन यहां वैक्सीनेशन के रुझान पर नज़दीक से नज़र डालने पर एक जटिल तस्वीर सामने आती है.
राज्य स्तर पर टीकाकरण की दर पर नज़र डालने से मैसाचुसेट्स में वैक्सीन तक पहुंच की अधूरी तस्वीर सामने आती है. राज्य स्तर पर सबसे कामयाब वैक्सीनेशन कार्यक्रम में से एक चलाने और देश में वैक्सीनेशन की सबसे ज़्यादा दर की शेखी बघारने के बावजूद टीकाकरण की दर नस्लीय और सामाजिक-आर्थिक आधार पर बंटी हुई है. वैक्सीन तक पहुंच और वैक्सीन की झिझक- दोनों बातें वैक्सीनेशन दर, जो महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित आर्थिक तौर पर कमज़ोर समुदायों में केंद्रित है, में पिछड़ने में भूमिका अदा क
उदाहरण के लिए, न्यूटन और स्प्रिंगफील्ड शहरों को लीजिए जिन्हें सारणी 1 में दिखाया गया है. बोस्टन के बाहरी इलाक़े में स्थित न्यूटन एक समृद्ध शहर है जहां श्वेत आबादी ज़्यादा है. न्यूटन में 20 साल से ज़्यादा उम्र के 93 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों को टीका लग चुका है जबकि 30 साल से ज़्यादा उम्र के 99 प्रतिशत लोगों को. इसके विपरीत पश्चिमी मैसाचुसेट्स में स्थित स्प्रिंगफील्ड शहर को लीजिए जहां अश्वेत और लैटिन आबादी बहुमत में है और जो प्रति व्यक्ति आय, कुल आबादी में स्नातक या उससे ऊपर की डिग्री के प्रतिशत के मामले में न्यूटन के मुक़ाबले काफ़ी नीचे है और जहां ग़रीबी की दर न्यूटन के मुक़ाबले छह गुना ज़्यादा है. स्प्रिंगफील्ड में 20 वर्ष से ज़्यादा उम्र वाले सिर्फ़ 55 प्रतिशत लोगों को टीका लगाया गया है जबकि 30 वर्ष से ज़्यादा के 64 प्रतिशत लोगों को. मैसाचुसेट्स के भीतर दो शहरों के बीच पूरी तरह ये फ़र्क़ असमानता के बारे में बताता है. इससे पता चलता है कि शिक्षा, आमदनी और नस्ल समान रूप से वैक्सीन तक पहुंच और व्यवस्था में भूमिका अदा करते है.
मैसाचुसेट्स में समुदायों में वैक्सीनेशन और संक्रमण के जोखिम के अनुपात पर एक अध्ययन से पता चला कि सामाजिक-आर्थिक रूप से ज़्यादा कमज़ोर समुदायों- जैसे कि स्प्रिंगफील्ड- को संक्रमण के अधिक जोखिम के बावजूद अपेक्षाकृत कम संख्या में वैक्सीन लगी है. वो भी तब जब ज़्यादा संख्या में अश्वेत और लैटिन आबादी अधिक घनत्व, भीड़ से भरे घर में रहती है और ज़रूरी क्षेत्र में काम करती है. इसकी वजह से उनके महामारी का प्रकोप बनने की आशंका ज़्यादा है. ज़्यादा धनवान समुदाय- जैसे न्यूटन- अपनी कम सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरी और कम संक्रमण जोखिम के बावजूद वैक्सीनेशन की दर में काफ़ी आगे हैं. ज़्यादा सामाजिक-आर्थिक कमज़ोरी वाले क्षेत्रों- जहां अश्वेत और लैटिन आबादी का अनुपात ज़्यादा है- में वैक्सीन की कम मात्रा से संकेत मिलता है कि समान मात्रा में टीका वितरण के लिए ख़ास लक्ष्य और वैक्सीन पहुंच पर निगरानी रखने की ज़रूरत है.
मैसाचुसेट्स के भीतर दो शहरों के बीच पूरी तरह ये फ़र्क़ असमानता के बारे में बताता है. इससे पता चलता है कि शिक्षा, आमदनी और नस्ल समान रूप से वैक्सीन तक पहुंच और व्यवस्था में भूमिका अदा करते है.
वैक्सीन लगने की शुरुआत के समय से ही टीके तक पहुंच एक बहुआयामी मुद्दा रहा है. जिन इलाक़ों में कम आमदनी वाले लोगों और अश्वेत समुदाय की संख्या ज़्यादा है वो पहले से ही कम टेस्टिंग की समस्या को झेल रहे थे और वैक्सीन लगने की शुरुआत होते ही ये समुदाय वैक्सीनेशन के पहले संभावित तरीक़े से उसी तरह दूर हो गया. अब इस्तेमाल में नहीं रहे सात बड़े वैक्सीनेशन केंद्रों को कार्यकुशलता और ज़्यादा मात्रा को ध्यान में रखकर चुना गया था और इसलिए इन्हें बड़े शहरी इलाक़ों जैसे फेनवे बेसबॉल पार्क और हाइंस कन्वेंशन सेंटर जैसे ज़्यादा क्षमता वाली जगहों में शुरू किया गया. ये बड़े वैक्सीनेशन केंद्र अश्वेत और लैटिन समुदायों तक पहुंचने में नाकाम रहे जिन पर महामारी की सबसे ज़्यादा मार पड़ी थी. ये वैक्सीन केंद्र सबसे ज़्यादा प्रभावित समुदायों से दूर थे. कई लोग दूरी या परिवहन का बोझ झेलने में असमर्थ रहने या काम से छुट्टी लेने में नाकामी मिलने की वजह से वैक्सीनेशन केंद्र तक नहीं पहुंच पाए. इसके अलावा वैक्सीन लगवाने में कई और भी बाधाएं थीं. इस प्रक्रिया में इंटरनेट तक पहुंच की ज़रूरत है. इसके अलावा सेहत, भाषा, इंटरनेट का इस्तेमाल करने की समझ और ऑनलाइन नियुक्ति से जुड़ी दिक़्क़तें भी हैं. वैक्सीनेशन केंद्र पर असुविधा भी एक कारण है. बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासी और अश्वेत समुदाय के लोग भारी पुलिस मौजूदगी वाले वैक्सीनेशन केंद्र में जाने से बचने की कोशिश करेंगे.
कमज़ोर समूहों की तरफ़ ध्यान
वैसे तो वैक्सीन से झिझक एक मुद्दा बना हुआ है क्योंकि वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर दुष्प्रचार चल रहा है और कमज़ोर समूहों में सरकार को लेकर अविश्वास है लेकिन सबसे बड़ी समस्या उन लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना है जो वैक्सीन की पहुंच से दूर हैं. नतीजे दिखाते हैं कि स्थानीय स्तर पर केंद्रित रूप से प्रमुख लोगों जैसे समुदाय के सदस्यों और नेताओं की हिस्सेदारी के साथ आगे बढ़ने पर वैक्सीन झिझक को कम करने में मदद मिल सकती है. लगभग 60 प्रतिशत लोगों के पूर्ण टीकाकरण और टीकाकरण की दर धीमी पड़ने के साथ राज्य सरकार की तरफ़ से वैक्सीन लगाने का संसाधन ज़्यादातर समुदाय केंद्रित तरीक़ों में इस्तेमाल हो रहा है. सात बड़े वैक्सीनेशन केंद्रों के बंद होने के बाद अब स्थानीय केंद्रों और सामुदायिक साझेदारों के साथ काम करने पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है.
नतीजे दिखाते हैं कि स्थानीय स्तर पर केंद्रित रूप से प्रमुख लोगों जैसे समुदाय के सदस्यों और नेताओं की हिस्सेदारी के साथ आगे बढ़ने पर वैक्सीन झिझक को कम करने में मदद मिल सकती है.
स्थानीय निचले स्तर के अभियान भी शुरू हुए हैं जिनका मक़सद वैक्सीन तक पहुंच में असमानता का समाधान करना है. बॉस्टन क्षेत्र के डॉक्टर्स द्वारा शुरू संगठन गॉटवैक्स का उद्देश्य सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों के लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना है. इस काम में उन तरीक़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिनका इस्तेमाल चुनावी साल के दौरान वोटर रजिस्ट्रेशन को प्रोत्साहन देने में किया जाता है जैसे फ़ोन करना, स्थानीय नेताओं के साथ बातचीत और लोगों के दरवाज़े पर दस्तक. इस अभियान में कम आमदनी वाले क्षेत्रों के निवासियों को टीका लगवाने के लिए मेडिकल प्रोफेशनल्स की भर्ती की गई है और बॉस्टन हाउसिंग अथॉरिटी (बीएचए) के साथ साझेदारी भी की गई है. इसकी वजह ये है कि बुजुर्ग और दिव्यांग लोग वैक्सीन लगवाने के योग्य होने के बावजूद वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने की वजह से इस काम को नहीं कर पाते.
पिछले दिनों राज्य सरकार ने 20 सबसे ज़्यादा प्रभावित समुदायों के टीकाकरण के लक्ष्य के साथ एक वैक्सीन समानता अभियान भी शुरू किया है. इस अभियान में उन समुदायों के लिए वैक्सीन की डोज़ को अलग कर के रखा गया है. सामुदायिक संगठन अब राज्य की वैक्सीनेशन वेबसाइट के ज़रिए मोबाइल क्लीनिक के लिए भी अनुरोध कर सकते हैं. लेकिन ये भी सच है कि जो समुदाय वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं, उन तक पहुंचने की सक्रिय कोशिश टीकाकरण के शुरुआती दिनों में प्राथमिकता में नहीं रखी गई थी जबकि ऐसा होने चाहिए था.
बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत
वैक्सीन तक समान पहुंच के मुद्दे का समाधान करने के लिए सबसे ज़्यादा प्रभावित समुदायों तक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है लेकिन राज्य सरकार के नेतृत्व में वैक्सीनेशन के शुरुआती दिनों में वैक्सीन तक पहुंच में संरचनात्मक नस्लीय और सामाजिक-आर्थिक बाधाओं का पूरा ख़्याल नहीं रखा गया. टीकाकरण की शुरुआत सरकार के लिए जांच-पड़ताल का वक़्त था कि वो सबसे कुशल प्रशासन की पद्धति और वैक्सीन पहुंचाने के तरीक़े का पता लगाए. लेकिन नतीजे उस मुताबिक़ नहीं आए. सरकार उन कमज़ोर लोगों का पूरा ध्यान रखने में नाकाम रही जो ख़ुद को और अपने समुदाय को बचाने के लिए वैक्सीन तक शायद नहीं पहुंच पाएं. मैसाचुसेट्स में वैक्सीन की समानता को “सबसे ख़राब” बताया गया है, हालांकि दूसरे राज्यों के मुक़ाबले उचित वितरण के मामले में मैसाचुसेट्स का प्रदर्शन अच्छा है लेकिन अभी भी इसे प्रशासनिक समर्थन की ज़रूरत है ताकि जो लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं और जिन्हें अभी तक नज़रअंदाज़ किया गया है, उनके पास पहुंचा जा सके. वैक्सीन तक पहुंच को एक समान बनाने की सक्रिय कोशिश के बिना वैक्सीन सामाजिक-अर्थिक और नस्लीय असमानता के कारण मौजूदा अंतर को बढ़ा सकती है और एक डरावने सार्वजनिक स्वास्थ्य का मुद्दा बनने में योगदान कर सकती है.
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