Author : Saaransh Mishra

Published on Jul 22, 2022 Updated 29 Days ago

हाल ही में मिर्जियोयेव सरकार द्वारा प्रस्तावित संवैधानिक संशोधनों के खिलाफ कराकल्पकस्तान में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ है.

उज़्बेकिस्तान में अशांति: संवैधानिक सुधारों का विरोध करते हैं कराकल्पक

हाल ही में उज़्बेकिस्तान अराजकता का शिकार रहा है क्योंकि कराकल्पकस्तान के स्वायत्त क्षेत्र में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. नुकुस की क्षेत्रीय राजधानी से शुरू हुए प्रदर्शन की आग अब कई शहरों तक फैल गई है. विरोध की यह आग तब से धधक रही है जब राष्ट्रपति श्वाकत मिर्जियोयेव साल 2016 के बाद से ही उज़्बेकिस्तान के संविधान में सुधार करने की कोशिश में लगे हैं. मौज़ूदा बदलाव अनिवार्य रूप से संविधान के भीतर भाषा को हटाने की मांग को लेकर है जिसके तहत अर्ध-स्वायत्त कराकल्पकस्तान को उज़्बेकिस्तान से अलग होने का अधिकार मिलता है, हालांकि यह तब है जबकि इसके नागरिक जनमत संग्रह के विकल्प का इस्तेमाल कर इसका चुनाव करते हैं.

मौज़ूदा बदलाव अनिवार्य रूप से संविधान के भीतर भाषा को हटाने की मांग को लेकर है जिसके तहत अर्ध-स्वायत्त कराकल्पकस्तान को उज़्बेकिस्तान से अलग होने का अधिकार मिलता है, हालांकि यह तब है जबकि इसके नागरिक जनमत संग्रह के विकल्प का इस्तेमाल कर इसका चुनाव करते हैं.

मध्य एशिया में जिसे अब तक का सबसे बुरा हिंसात्मक दौर कहा जाता है, जब साल 2005 के अंदिजान नरसंहार में, पुलिस ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के विरोध को कुचलने की पूरी कोशिश की थी, जिसमें 187 प्रदर्शनकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी जबकि उज़्बेक प्रशासन का दावा था कि महज 18 लोग मारे गए थे और एक सप्ताह के दौरान कम से कम 243 लोग घायल हुए थे. अब जबकि राष्ट्रपति द्वारा संविधान में बदलाव करने की योजना को सार्वजनिक रूप से छोड़ने के ऐलान के साथ स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है लेकिन कराकल्पकस्तान प्रांत में एक महीने तक जारी विद्रोह इस बात का प्रतीक है कि मौज़ूदा स्थितियां अपेक्षाकृत ज़्यादा अस्थिर बनी हुई है.

पृष्ठभूमि

सोवियत गणराज्य के विघटन के साथ ही इसके पूर्व क्षेत्रों में कई अलग-अलग आंदोलन हुए और कराकल्पकस्तान में अलगाववादी आंदोलन भी उन्हीं में से एक था. कराकल्पकस्तान की संसद ने साल 1990 में राष्ट्र की संप्रभुता की घोषणा की थी लेकिन यह अल्पकालिक था क्योंकि इस क्षेत्र को आधिकारिक तौर पर साल 1993 में उज़्बेकिस्तान के साथ जोड़ा गया था. हालांकि उज़्बेक अधिकारियों ने 20 सालों के अंदर होने वाले जनमत संग्रह का विकल्प इसके तहत दिया था. इस क्षेत्र का एक अलग संविधान भी है और उसी के अनुच्छेद 1 के तहत इस क्षेत्र की स्वतंत्रता को मान्यता मिलती है. कराकल्पकस्तान गणराज्य में एक संप्रभु राष्ट्र होने के सभी राष्ट्रीय प्रतीक हैं, मतलब, इसका अलग राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान है.

भले ही कराकल्पकस्तान, उज़्बेकिस्तान के लगभग 37 फ़ीसदी हिस्से में फैला हुआ है लेकिन यहां नस्लीय कराकल्पक आबादी इस क्षेत्र की कुल आबादी का एक तिहाई है और देश की आबादी का करीब 2.2 प्रतिशत है (2017 के सरकारी अनुमानों के अनुसार). कराकल्पक मुख्य रूप से सुन्नी मुसलमान हैं जो सांस्कृतिक और भाषाई रूप से कज़ाख लोगों से जुड़े हैं.

कराकल्पकस्तान देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है, जहां भयंकर ग़रीबी, बेरोज़गारी और सूखा अराल सागर मौज़ूद है, जहां नमक और कीटनाशकों के संयोजन से भारी मात्रा में ज़हरीली धूल निकलती है. इससे कैंसर, ट्यूबरकुलोसिस और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों ने लोगों को जकड़ लिया है, जिससे इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है. 

कराकल्पकस्तान देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है, जहां भयंकर ग़रीबी, बेरोज़गारी और सूखा अराल सागर मौज़ूद है, जहां नमक और कीटनाशकों के संयोजन से भारी मात्रा में ज़हरीली धूल निकलती है. इससे कैंसर, ट्यूबरकुलोसिस और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों ने लोगों को जकड़ लिया है

फिर भी, सत्ता में आने के बाद से राजधानी नुकुस के अलावा मिर्जियोयेव ने मोयनाक, टर्टकुल और कुंगराड जैसे छोटे क्षेत्रों में भी पर्याप्त निवेश जुटाई है. और जैसे-जैसे ये इलाके उज़्बेकिस्तान के बाकी हिस्सों के अलावा रूस और कज़ाकिस्तान के साथ जुड़ते गए आर्थिक रूप से यहां के हालात सुधरते दिख रहे थे और कई लोग रोज़गार के लिए इन देशों की यात्रा करने लगे थे.

लेकिन जिन सुधारों के चलते इस क्षेत्र के लोगों और सरकार के बीच भरोसा और सद्भावना का विकास हुआ था वह हाल की घोषणा के बाद एक बार फिर पटरी से उतरता दिख रहा है. यूरेशिया एक्सपर्ट जेनिफर ब्रिक मुर्तज़िशविली के अनुसार यह पिछड़ा क्षेत्र अपनी स्वतंत्रता का ख़र्च वहन करने में सक्षम नहीं होगा और ताशकंद से मिलने वाली आर्थिक मदद और निवेश पर बहुत निर्भर है, जिससे सरकार के वर्तमान निर्णय को समझना और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा, वह आगे कहती हैं कि हालांकि इस क्षेत्र में स्वतंत्रता को लेकर लोगों की भावनाएं काफी उद्वेलित हैं लेकिन यह इतना भी नहीं है कि किसी अलगाववादी आंदोलन को आगे बढ़ा सके. 

हालांकि भारत मध्य एशियाई क्षेत्र में अपनी मौज़ूदगी को उतना मज़बूत नहीं बना सका है जितना वह चाहता था, उज़्बेकिस्तान इस क्षेत्र में भारत के प्रमुख सुरक्षा और आर्थिक भागीदारों में से एक है. भारत मध्य एशिया के भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपनी मौज़ूदगी की कमी के लिए संशोधन करने की कोशिश कर रहा है और उज़्बेकिस्तान के साथ इसके मौज़ूदा संबंध इसे आसान बनाने में मदद कर सकते हैं.

भारत के साथ संबंध

उज़्बेकिस्तान में जो कुछ हो रहा है भारत उस पर कई कारणों से करीब से नज़र बनाए होगा. भारत साल 1992 में इस देश की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था, जिसके बाद से दोनों देशों के संबंध अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंचने के बावज़ूद अब तक स्थिर रहे हैं. दोनों देश हाल के दिनों में विभिन्न राजनयिक रिश्तों के आदान-प्रदान में शामिल रहे हैं, उज़्बेक राष्ट्रपति ने हाल ही में दो बार भारत का दौरा किया, पहली बार 2018 में, जिसके परिणामस्वरूप सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में 20 दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए, इसके बाद साल 2019 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टमेंट सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भी उज़्बेक के राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया था.

फार्मास्यूटिकल्स, मैकेनिकल उपकरण, वाहन के पुर्जे, सेवाओं और ऑप्टिकल उपकरणों की बदौलत, उज़्बेकिस्तान में भारतीय निर्यात नवंबर 2021 तक लगभग 176.22 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जबकि भारतीय आयात का आंकड़ा, फल-सब्जी उत्पादों, उर्वरकों, जूस उत्पादों और लुब्रिकेंट्स आदि के ज़रिए से लगभग 14.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब था.

भारत और उज़्बेकिस्तान दोनों देश साल 2019 से ही प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट (पीटीए) पर भी काम कर रहे हैं जो ईरान में चाबहार बंदरगाह के माध्यम से मध्य एशिया और भारत की कनेक्टिविटी को तेजी से आगे बढ़ाने में योगदान देगा. इसके अलावा, पीटीए भारत को ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान के अप्रयुक्त बाज़ारों तक पहुंच प्रदान करेगा जो भारत और यूरेशियन आर्थिक संघ के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते को बढ़ावा देगा, जिसमें उज़्बेकिस्तान इसके सदस्यों में से एक होगा.

फार्मास्यूटिकल्स, मैकेनिकल उपकरण, वाहन के पुर्जे, सेवाओं और ऑप्टिकल उपकरणों की बदौलत, उज़्बेकिस्तान में भारतीय निर्यात नवंबर 2021 तक लगभग 176.22 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जबकि भारतीय आयात का आंकड़ा, फल-सब्जी उत्पादों, उर्वरकों, जूस उत्पादों और लुब्रिकेंट्स आदि के ज़रिए से लगभग 14.58 मिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब था. दोनों देशों ने क्रमशः ताशकंद और अंदिजान में भारतीय विश्वविद्यालयों (शारदा और एमिटी) के उद्घाटन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग करना शुरू किया है. आख़िर में, उज़्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान में भी एक अहम किरदार बना हुआ है, जैसा कि इस साल सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाले देश द्वारा प्रमाणित किया गया है. अफ़ग़ानिस्तान जहां से भारत के सुरक्षा और आर्थिक हित ज्यादा जुड़े हुए हैं, शिखर सम्मेलन के एज़ेंडे में ऐसे मुद्दों को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद है.

यह देखते हुए कि भारत का उज़्बेकिस्तान के साथ-साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मध्य एशियाई देशों में निहित स्वार्थ है, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि नई दिल्ली उज़्बेकिस्तान में संवैधानिक सुधार प्रक्रिया पर करीब से नज़र बनाए हुए है.

उज़्बेकिस्तान की मौज़ूदा स्थिति चिंता पैदा करती है क्योंकि हाल के दिनों में यहां कई लोगों की जान चली गई है तो कथित तौर पर 500 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है. ऐसे में यह अभी देखा जाना बाकी है कि मिर्जियोयेव सरकार कैसे अपने नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा करने के साथ इस अशांति से निपटती है. यह देखते हुए कि भारत का उज़्बेकिस्तान के साथ-साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मध्य एशियाई देशों में निहित स्वार्थ है, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि नई दिल्ली उज़्बेकिस्तान में संवैधानिक सुधार प्रक्रिया पर करीब से नज़र बनाए हुए है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार उज़्बेकिस्तान के लिए एक दोस्ताना भागीदार के तौर पर भारत वहां मौज़ूदा हालात के जल्द बेहतर होने की उम्मीद करता है.

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