Author : Shashidhar K J

Published on Jun 11, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत भी अपने यहां ‘क्रिप्टोकरेंसी’ के संचालन पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. हाल ही में ये एलान किया गया था कि क्रिप्टोकरेंसी को भारत में ग़ैरक़ानूनी घोषित करने के लिए संसद द्वारा एक क़ानून भी पारित किया जाएगा.

क्रिप्टोकरेंसी की लहर में आता बदलाव: चीन और भारत में इलेक्ट्रॉनिक नक़दी का तेज़ी से विकसित होता इको-सिस्टम

पिछले महीने क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन की क़ीमतों में उस समय भारी गिरावट आई, जब ये ख़बर आई कि चीन के नियामक अधिकारियों ने अपने घरेलू बैंकों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार करने पर रोक लगा दी है. इस प्रतिबंध के अंतर्गत बैंकों को अपने ग्राहकों को खाते में बिटकॉइन रखने पर भी रोक लगा दी गई थी. चीन के नियामक अधिकारियों के आदेश के तहत चीन के बैंकों को बिटकॉइन को चीन की राजकीय मुद्रा युआन या किसी अन्य करेंसी में बदलने से भी रोक दिया गया था. भारत भी अपने यहां ‘क्रिप्टोकरेंसी’ के संचालन पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. हाल ही में ये एलान किया गया था कि क्रिप्टोकरेंसी को भारत में ग़ैरक़ानूनी घोषित करने के लिए संसद द्वारा एक क़ानून भी पारित किया जाएगा. इसके बाद भारत में केवल सरकार द्वारा समर्थिक डिजिटल रुपए में ही लेन-देन किया जा सकेगा. ये ठीक वैसा ही होगा, जैसा चीन अपनी मुद्रा युआन के साथ करने का प्रयास कर रहा है. चीन का हालिया क़दम क्रिप्टोकरेंसी के विरुद्ध उसके अभियान के सिलसिले की नई कड़ी है. 2017 में चीन ने शेयर बाज़ार में लाए जाने वाले शुरुआती सार्वजनिक शेयर (IPO) की तर्ज पर क्रिप्टोकरेंसी के इनिशियल कॉइन ऑफ़रिंग्स (ICOs) पर भी रोक लगा दी थी.

तमाम राष्ट्रों और नियामक संस्थाओं के लिए क्रिप्टोकरेंसी एक बड़ी चुनौती बन गई हैं. आख़िरकार, अगर क्रिप्टोकरेंसी को किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा के विकल्प के रूप में कारोबार करने या फिर देश की अर्थव्यवस्था में फैलाव बढ़ाने की इजाज़त दी गई, तो आशंका इस बात की है कि ये किसी भी देश की संप्रभुता में दख़लंदाज़ी करने लगेगी. क्योंकि, वैसी स्थिति में क्रिप्टोकरेंसी का चलन बढ़ने से देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं के उत्पादन और आपूर्ति पर केंद्रीय बैंकों का नियंत्रण नहीं रह जाएगा. क्रिप्टोकरेंसी की इस चुनौती से निपटने के लिए भारत और चीन ने कुछ अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों के साथ मिलकर केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) का प्रस्ताव रखा है. ये किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा का डिजिटल प्रतिरूप होगा जिसे ब्लॉकचेन तकनीक से सहारा मिलेगा. ये जान-बूझकर है या फिर इत्तिफ़ाक़ से हो रहा है, लेकिन आज चीन क्रिप्टोकरेंसी के मामलों में अन्य देशों की नीतियों पर असर डाल रहा है. इसके नतीजे के तौर पर चीन सीमाओं के आर-पार होने वाले भुगतान पर भी अपना असर बढ़ा रहा है. चीन और चीन की कंपनियों द्वारा डिजिटल भुगतान कंपनियों से जुड़े फ़ैसलों को उसकी तकनीकी कूटनीति के रूप में भी देखा जा सकता है.

तमाम राष्ट्रों और नियामक संस्थाओं के लिए क्रिप्टोकरेंसी एक बड़ी चुनौती बन गई हैं. आख़िरकार, अगर क्रिप्टोकरेंसी को किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा के विकल्प के रूप में कारोबार करने या फिर देश की अर्थव्यवस्था में फैलाव बढ़ाने की इजाज़त दी गई, तो आशंका इस बात की है कि ये किसी भी देश की संप्रभुता में दख़लंदाज़ी करने लगेगी.

CBDC एक नया और ऐसा विचार है जिसे अब तक जांचा परखा नहीं गया है. हालांकि, इस विचार में कई अलग अलग देशों के लिए कई संभावनाएं ज़रूर दिखती हैं. लेकिन इसे लागू करने और वास्तविक रूप से प्रयोग करने की मिसालों का अभी विकास होना बाक़ी है. चीन ने अपने केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी (CBDC) का प्रयोग करना सीमित स्तर पर शुरू कर दिया है. लेकिन, अगर हम इसे व्यापाक भू-राजनीतिक परिदृश्य में देखें, तो ये आगे चलकर अमेरिकी डॉलर के विश्व की प्रमुख मुद्रा की हैसियत के लिए ख़तरा बन सकती है. अगर देशों के बीच लेन-देन में डिजिटल युआन का इस्तेमाल बढ़ता है, तो इससे अमेरिका के लिए अपने द्वारा लगाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को लागू करने और ऐसे लेन देन रोकने की क्षमता पर असर पड़ेगा, जो डॉलर में होते हैं. इस समय सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल ट्रांज़ैक्शन (SWIFT) मैसेज सेवा व्यवस्था पर अमेरिका का बहुत प्रभाव है. SWIFT व्यवस्था का इस्तेमाल दुनिया भर के बैंक और वित्तीय संस्थान करते हैं और इसकी मदद से पैसे ट्रांसफर करने के निर्देशों का अनुपालन करते हैं. ब्लॉकचेन तकनीक की मदद से चलने वाले चीन की युआन मुद्रा, इन प्रतिबंधों से आसानी से पार पा सकती है.

इस पृष्ठभूमि में भारत के लिए एक ऐसा मौक़ा है, जिसका लाभ उठाकर वो डिजिटल भुगतान के माध्यम से तकनीकी कूटनीति का अपना प्रभाव बढ़ा सकता है.

चांदनी चौक से चीन तक

हालांकि अब तो चीन, भारत का सामरिक प्रतिद्वंदी बन चुका है. फिर भी, दिल्ली और मुंबई क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाकर चीन की दिखाई राह पर चलना चाहते हैं. लेकि, 2020 में गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्षों ने चीन और भारत के संबंधों में ख़लल डाल दिया है. चीन की पूंजी और तकनीकी विचारों ने भारत के घरेलू भुगतान के इकोसिस्टम को काफ़ी प्रभावित किया है. इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण पेटीएम है. इसमें 30 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की कंपनी ऐंट फाइनेंशियल की है. पेटीएम और देश के अन्य डिजिटल वॉलेट ने भारत में QR कोड के माध्यम से भुगतान को काफ़ी लोकप्रिय बना दिया है. पेटीएम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय शेखर शर्मा ने कहा था कि उनकी कंपनी इस बात से काफ़ी प्रेरित थी कि किस तरह जैक मा की कंपनी अलीपे ने QR कोड से भुगतान का इस्तेमाल करके देश की भुगतान व्यवस्था पर अपना प्रभुत्व जमा लिया.

अगर देशों के बीच लेन-देन में डिजिटल युआन का इस्तेमाल बढ़ता है, तो इससे अमेरिका के लिए अपने द्वारा लगाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को लागू करने और ऐसे लेन देन रोकने की क्षमता पर असर पड़ेगा, जो डॉलर में होते हैं. 

गलवान घाटी में चीन की घुसपैठ के बाद भारत के साथ चीन के कूटनीतिक और आर्थिक संबंध बेहद सर्द हो गए हैं. भारत के तकनीकी स्टार्ट अप का इकोसिस्टम जो अपने विकास और विस्तार के लिए चीन की पूंजी पर बहुत हद तक निर्भर था, उसे अपना रुख़ बदलकर चीन से दूरी बनानी पड़ी है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण खाने-पीने के सामान का वितरण करने वाली कंपनी ज़ोमाटो है. वर्ष 2020 में ज़ोमाटो चीन की ऐंट फाइनेंशियल से 10 करोड़ डॉलर की पूंजी नहीं जुटा सकी थी. क्योंकि भारत ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से जुड़े अपने नियम बदल दिए थे. अप्रैल 2020 में भारत ने ऐसे देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर कई पाबंदियां लगा दी थीं, जिनके साथ उसकी थल सीमा मिलती है. भारत के इस क़दम ने चीन को बहुत नाराज़ कर दिया था. तब भारत ने FDI के नियमों को सख़्त बनाने की वजह ये बताई थी कि इससे वो, ‘कोविड-19 महामारी के मुश्किल वक़्त का फ़ायदा उठाकर किसी विदेशी द्वारा भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण को रोकना चाहती है.’ वर्ष 2018 में अमेरिका की विदेशी निवेश संबंधी समिति (CFIUS) ने ऐंट फाइनेंशियल और एक अंतरराष्ट्रीय भुगतान स्वदेश भेजने वाली अमेरिकी कंपनी मनीग्राम के विलय के प्रस्ताव पर ये कहते हुए रोक लगा दी थी कि इससे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है. उस समय, अगर ये समझौता हो जाता तो भारतीय कंपनी पेटीएम इसमें बेहद अहम भूमिका निभाने वाली थी और वो ऐंट फाइनेंशियल को दक्षिणी पूर्वी एशिया और भारत में अपना विस्तार करने में काप़ी मदद करती. इससे ऐंट फाइनेंशियल के पास 63 करोड़ ग्राहक हो जाते. इनमें 45 करोड़ अलीपे के यूज़र और 18 करोड़ उपभोक्ता पेटीएम के होते.

उसके बाद से पेटीएम की आर्थिक स्थिति में लगातार गिरावट आती जा रही है. भारत में घरेलू अंतर-बैंक मनी ट्रांसफर के एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) की शुरुआत के साथ ही लोगों के लिए एक खाते से दूसरे खाते में भुगतान करना और आसान हो गया. UPI के माध्यम से लोग बिना किसी लागत के वर्चुअल उपनामों से ये लेन-देन कर सकते हैं. UPI के बाज़ार में आने से पेटीएम के मोबाइल वॉलेट को इस्तेमाल करने की वो एक प्रमुख ख़ूबी ख़त्म हो गई, जिसके माध्यम से लोग एक वॉलेट से दूसरे वॉलेट में बिना किसी लागत के भुगतान कर सकते थे. जल्द ही वालमार्ट के मालिकाना हक़ वाले फोनपे और गूगल पे ने उपभोक्ताओं और लेन-देन की संख्या के मामले में पेटीएम को पीछे छोड़ दिया. हालांकि, यहां ये बात याद रखनी चाहिए कि कुल लेन-देन की संख्या के मामले में UPI को ज़बरदस्त सफलता मिली है. आज इसके माध्यम से हर महीने 2.5 अरब से अधिक लेन-देन हो रहा है और इसकी बड़ी वजह फोनपे, गूगल पे और पेटीएम के बीच कड़ी प्रतिद्वंदिता ही है.

भारत के लिए अवसर

UPI पर मालिकाना हक़ रखने वाला नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (NPCI) भारत के तकनीकी परिदृश्य पर एक अनूठी संस्था है. ये एक ऐसा संगठन है जो मुनाफ़े के लिए काम नहीं करता और भारत में खुदरा भुगतान की सेवाओं पर इसका एकाधिकार है. UPI के अतिरिक्त NPCI बिल भुगतान की एक व्यवस्था का भी संचालन करता है. ये टोल भुगतान की व्यवस्था भी चलाता है और एटीएम का एक नेटवर्क भी संचालित करता है. NPCI चेक क्लियर करने का काम भी करता है और तुरंत भुगतान के एक सिस्टम IMPS को भी चलाता है. NPCI कोई सरकारी संस्था नहीं है. इसके पीछे भारतीय बैंकों का संगठन इंडियन बैंक एसोसिएशन है. लेकिन, इसे भारतीय रिज़र्व बैंक और वित्तय मंत्रालय का भी आशीर्वाद प्राप्त है. कुछ अर्थों में NPCI अपने नियम क़ायदों के ज़रिए देश में खुदरा भुगतान के अर्ध-क़ानूनी नियामक संगठन का काम करता है. जो इसके नियमों का पालन नहीं करते, उन्हें दंड़ दिया जाता है. हालांकि, भारत में UPI की सफलता ने NPCI को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया है कि वो NPCI इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड (NIPL) नाम की कंपनी का गठन करे. इसका एक ही मक़सद है UPI की व्यवस्था को दूसरे देशों को निर्यात करना.

भारत के पास इस बात की काफ़ी संभावनाएं हैं कि वो NIPL के ज़रिए तकनीकी कूटनीति को आगे बढ़ाए और आपस में संचालित हो सकने वाले भुगतान के नेटवर्क को अलग अलग क्षेत्रों में स्थापित करे. 

NPCI के इस क़दम को भारत की सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करने वाला क़दम कहा जा सकता है. निश्चित रूप से UPI व्यवस्था के ज़रिए जिस तरह गूगल पे ने भारत में कामयाबी हासिल की है, उसके बाद कंपनी ने अमेरिका के फेडरल रिज़र्व को चिट्ठी लिखी कि अमेरिका में भी तमाम बैंकों के बीच फौरन भुगतान की ऐसी व्यवस्था FedNow का विकास किया जाए. इस समय FedNow में कैलिफ़ोर्निया के पांच क्षेत्रीय बैंक और क़र्ज़ बांटने वाले तीन संघ हैं, जो इसकी सेवाओं का परीक्षण कर रहे हैं. यूरोप में BNP पारिबा भी इसी तरह के एक खाते से दूसरे खाते में फंड भेजने के प्रयोग का नेतृत्व कर रहा है.

तो, भारत के पास इस बात की काफ़ी संभावनाएं हैं कि वो NIPL के ज़रिए तकनीकी कूटनीति को आगे बढ़ाए और आपस में संचालित हो सकने वाले भुगतान के नेटवर्क को अलग अलग क्षेत्रों में स्थापित करे. जर्मनी को SWIFT में अमेरिका के अत्यधिक प्रभाव पर ऐतराज़ है और वो चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय भुगतान की व्यवस्था में अमेरिका का एकाधिकार समाप्त हो. जर्मनी, यूरोपीय संघ के लिए अंतरराष्ट्रीय भुगतान की एक अलग व्यवस्था विकसित करने की मांग कर चुका है.

हो सकता है कि NPCI के लिए SWIFT के मुक़ाबले में बैंकों और वित्तीय संस्थानों के एक नेटवर्क को स्थापित करना आसान न हो. इसकी बड़ी वजह तो यही है कि SWIFT के पूरी दुनिया में 11 हज़ार से ज़्यादा सदस्य हैं. उसकी तुलना में UPI में केवल 220 बैंक हैं, जो अलग आकार वाले और अलग तकनीकी क्षमताओं से लैस हैं.

हो सकता है कि UPI की व्यवस्था, अन्य भौगोलिक क्षेत्रों की ज़रूरतों के हिसाब से भी ठीक न बैठे और उनके कारोबार और राजनीतिक परिदृश्य से भी तालमेल न बिठा पाए. अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की बैंकों द्वारा इस बात के लिए आलोचना की जा रही है कि वो एक नियामक संस्था होने के बावजूद निजी बैंक़ों के मुक़ाबले में भुगतान की एक व्यवस्था का संचालन कर रहा है. ये हितों के टकराव का मामला है. भारत में रिज़र्व बैंक भी रियल टाइम ग्रॉस सेटेलमेंट सिस्टम (RTGS) लेन-देन व्यवस्था का संचालन करने के साथ-साथ बैंकों के कारोबार की नियामक संस्था भी है. ये महत्वपूर्ण है क्योंकि, वैसे तो UPI का ये कहना है कि वो किसी भी लेन देन को तुरंत ही निपटा देता है. लेकिन, लेन-देन में शामिल रक़म को लेकर अलग अलग बैंकों से बाद में हिसाब किताब होता है. इसके अलावा अमेरिका में बैंक, दूसरे बैंक के साथ लेन-देन के लिए लेने वाले शुल्क को आसानी से छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. 

भारत में ये क़दम इसलिए उठाया गया था, जिससे भारत में बैंकों के भुगतान की व्यवस्था को और सुधारा जा सके. जिसमें ग्राहकों को अच्छे अनुभव वाले बैंक के ऐप का चुनाव करके अपने खाते से फंड के लेन-देन में आसानी हो सके

UPI की संरचना ऐसी है कि वो विभिन्न बैंकों के बीच आसानी से भुगतान पर भी काफ़ी ज़ोर देता है. ये इसका एक ऐसा गुण है, जो शायद अन्य देशों के बैंकों को पसंद न आए. मोटे तौर पर UPI, बैंकों और खातों के लेन-देन को अलग अलग निपटाता है. ये विभिन्न बैंकों के बीच लेन-देन को आसान बनाता है. इसके लिए ये मुक्त बैंकिंग API का प्रयोग करता है, जिससे किसी एक बैंक को दूसरे बैंक के खाते की जानकारी लेने और भुगतान शुरू करने की सुविधा मिलती है. भारत में ये क़दम इसलिए उठाया गया था, जिससे भारत में बैंकों के भुगतान की व्यवस्था को और सुधारा जा सके. जिसमें ग्राहकों को अच्छे अनुभव वाले बैंक के ऐप का चुनाव करके अपने खाते से फंड के लेन-देन में आसानी हो सके. मोटे तौर पर इस मॉडल से कोई प्रतिद्वंदी बैंक, दूसरे बैंक के ग्राहकों के खातों के भुगतान के आंकड़े लेकर, उन्हें दूसरी सेवाएं दे सकता है.

इनमें से कोई भी सुविधा देना संभव नहीं होता, अगर UPI को सरकार और नियामक संस्था का संरक्षण प्राप्त नहीं होता. हक़ीक़त तो ये है कि 2016 में नोटबंदी के दौरान जब पुरानी करेंसी के बदले नए नोट लिए जा रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कैशलेश भुगतान के लिए UPI के ऐप का इस्तेमाल करने को काफ़ी प्रोत्साहन दिया था.

अन्य देशों में UPI जैसी व्यवस्था स्थापित करने के लिए राजनीतिक और कारोबारी इच्छाशक्ति जुटा पाना बेहद मुश्किल काम होगा. लेकिन, आख़िरकार कूटनीति इसी का तो नाम है कि नए विचारों को बिना टकराव के स्वीकार कराया जा सके. उदाहरण के लिए, चीन के नियामक अधिकारियों द्वारा जैक मा की इंटरनेट कंपनियों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाए जाने के चलते उनकी कंपनी ऐंट फाइनेंशियल को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा है. फिर भी, QR कोड के ज़रिए भुगतान के उनके विचार को भारत में UPI ने दिल खोलकर अपनाया है. इसी तरह एक खाते से दूसरे खाते में वास्तविक समय में लेन-देन का चलन अमेरिका और यूरोप में धीरे धीरे बढ़ रहा है. इन्हीं परिस्थितियों में भारत के सामने एक बड़ा अवसर दिख रहा है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.