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रूस में श्रमिकों की कमी, ज्यादा वेतन और नागरिकता मिलने का लालच दक्षिण एशिया के नागरिकों को रूस पलायन करने के लिए प्रेरित कर रहा है.
मार्च 2024 में ये बात सामने आई कि कुछ भारतीय, श्रीलंकाई और नेपाली नागरिक रूसी सेना में शामिल हो गए हैं और वो यूक्रेन में अग्रिम मोर्चों पर जंग लड़ रहे हैं. महज एक हफ्ते की प्रशिक्षण के बाद इन्हें बड़े पैमाने पर युद्ध में इस्तेमाल किया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूक्रेन युद्ध में अब तक नेपाल के 12, श्रीलंका के 5 और 2 भारतीय नागरिक मारे जा चुके हैं. रूस में विदेशी श्रमिकों की भारी मांग, उन्हें दिया जा रहा आर्थिक लालच और दक्षिण एशियाई समाज का सैन्यीकरण विदेशी लड़ाकों की इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है. लेकिन अब इन देशों में आ रही मुसीबतों को देखते हुए ये दक्षिण एशियाई नागरिक अपने-अपने देशों की सरकार से उनकी वापसी में मदद मांग रहे हैं. इन देशों ने भी रूस के सामने इन नागरिकों की चिंताओं को उठाया है. रूस के साथ इन देशों के संबंध इस समस्या को सुलझाने में अहम भूमिका अदा करेंगे.
रशिया-यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस में विदेशी मज़दूरों की मांग तेज़ी से बढ़ी है. 2023 में रूस में 4.8 मिलियन श्रमिकों की कमी थी. मज़दूरों की मांग में बढ़ोतरी की एक वजह ये हो सकती है कि रूस ने यूक्रेन के जिन हिस्सों पर कब्ज़ा किया है, वहां सैनिक खर्चे भी बढ़ रहे हैं और आधारभूत ढांचे के विकास में भी बड़े पैमाने पर काम हो रहा है. इस युद्ध के जारी रहने के कारण रूसी सेना में सेवा देने वाले नागरिकों की संख्या में 2022 में 7.2 और 2023 में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2021 में रूसी सेना में 1,902,758 सैनिक थे, जो 2022 में बढ़कर 2,039,758 और 2023 में 2,209,130 हो गए. इस बात की संभावना है कि इस साल रूसी सेना को एक बार फिर यूक्रेन की तरफ मार्च करना होगा. ऐसी में श्रमिकों की कमी की समस्या के समाधान के लिए रूस अपने यहां प्रवासी मज़दूरों को ज्यादा वेतन और रूसी नागरिकता देने की पेशकश कर रहा है. इसके बाद इन श्रमिकों को सेना में सहायक के रूप में भर्ती किया जाता है और वहां से इन्हें युद्ध के अग्रिम मोर्चों पर भेज दिया जाता है.
श्रमिकों की कमी की समस्या के समाधान के लिए रूस अपने यहां प्रवासी मज़दूरों को ज्यादा वेतन और रूसी नागरिकता देने की पेशकश कर रहा है.
हाल के वर्षों में दक्षिण एशिया के देशों से ज्यादा मज़दूरी और बेहतर जीवन स्तर की उम्मीद से पलायन बढ़ा है. 2022 में श्रीलंका के आर्थिक संकट, नेपाल में आर्थिक मंदी और दोनों देशों में बेरोज़गारी की समस्या की वजह से यहां के नागरिक बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में पलायन कर रहे हैं. कोरोना महामारी और रशिया-यूक्रेन युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था ने सफलतापूर्वक सामना किया लेकिन फिर भी रूस जिस तरह विदेशी श्रमिकों को ज्यादा मज़दूरी दे रहा है, उसने कुछ भारतीय नागरिकों को भी रूस जाने के लिए प्रेरित किया. ये दक्षिण एशियाई मज़दूर रूस में एक महीने में 550 डॉलर यानी भारतीय मुद्रा के हिसाब से 45,000 रुपये हर महीने कमा सकते हैं. रूस ने यूक्रेन के जिन इलाकों पर कब्ज़ा किया है, वहां सहायक और कुली के तौर पर काम करने वालों की हर महीने करीब 2,000 डॉलर यानी 1,60,000 रुपये की कमाई हो जाती है. इसकी वजह से भी कई दक्षिण एशियाई नागरिक अब रूस जाने का फैसला कर रहे हैं.
इसके अलावा नेपाल और श्रीलंका दोनों ही सैन्यीकृत समाज हैं. इन देशों में बेरोज़गारी कम करने के लिए सेना में भर्ती को अक्सर नीति के तौर पर अपनाया जाता है. ऐसे में रूसी सेना की सहायता कर हर महीने 2,000 डॉलर कमाने की उम्मीद इन देशों के लोगों को रशिया जाने के लिए प्रोत्साहित करती है. भारतीय सेना में अग्निवीर योजना लागू करने के बाद से नेपाली नागरिकों को गोरखा रेजिमेंट में काम करने का मौका नहीं मिल रहा है. ये बात भी उन्हें रशियन सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रही है. श्रीलंका में गृहयुद्ध की विरासत और ज्यादा कमाई की चाहत श्रीलंकाई सेना के भूतपूर्व और कई मौजूदा सैनिकों को रूस ले जा रही है.
रशियन आर्मी में इन दक्षिण एशियाई नागरिकों और स्वैच्छिक और अनैच्छिक दोनों तरह से भर्ती किया जाता है. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने बताया कि दिसंबर 2023 में रशियन आर्मी में 200 नेपाली नागरिक काम कर रहे थे. कुछ दूसरे अनुमानों में ये संख्या 700 के करीब बताई गई है. इसी तरह मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रशियन आर्मी में सैंकड़ों श्रीलंकाई और करीब 100 भारतीय नागरिक शामिल हैं.
2023 की शुरुआती छमाही में जब भारत ने पर्यटकों के लिए ई-वीज़ा सिस्टम शुरू किया तो भारत से रूस जाने वाले पर्यटकों की संख्या में 56 प्रतिशत का उछाल आया.
कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां लोग टूरिस्ट वीज़ा लेकर रूस गए और वहां जाकर सेना में शामिल हो गए. दिलचस्प बात ये है कि रशिया-यूक्रेन युद्ध शुरू के होने के बाद से भारत, नेपाल और श्रीलंका से टूरिस्ट वीज़ा पर रूस जाने वालों की तादाद बढ़ गई है. 2021 में 7,132 भारतीय नागरिक रूस गए. 2022 में ये संख्या बढ़कर 8,275 हो गई, जबकि तब तक युद्ध शुरू हो चुका था. 2023 की शुरुआती छमाही में जब भारत ने पर्यटकों के लिए ई-वीज़ा सिस्टम शुरू किया तो भारत से रूस जाने वाले पर्यटकों की संख्या में 56 प्रतिशत का उछाल आया. नेपाल में भी लोग रूसी सेना में शामिल होने के लिए टूरिस्ट वीज़ा का इस्तेमाल कर रहे हैं. 2021-2022 के बीच नेपाल की सिर्फ एक रजिस्टर्ड एजेंसी नेपाली श्रमिकों को रूस भेज रही थी लेकिन 2023 में 1,039 नेपाली नागरिक टूरिस्ट वीज़ा पर रूस गए. श्रीलंका से भी सीधे रूस पलायन करना काफी मुश्किल है. 2022 तक रूस में करीब 389 श्रीलंकाई नागरिक रहते थे लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब ये संख्या काफी तेज़ी से बढ़ी है. एक और चिंताजनक प्रवृत्ति ये दिख रही है कि खाड़ी देशों में नौकरी करने वाले कई श्रीलंकाई नागरिक भी अब युद्ध लड़ने रूस जा रहे हैं, जबकि एक ज़माने में श्रीलंका के लोगों के लिए मध्य पूर्व के ये देश बड़ा आकर्षण हुआ करते थे. श्रीलंका से पलायन करने वाले करीब 88 प्रतिशत लोग खाड़ी देशों में ही जाते थे.
कई मामलों में इस पलायन के पीछे बिचौलियों की भी भूमिका दिख रही है. श्रीलंका और नेपाल के नागरिकों को अच्छी नौकरी और नागरिकता दिलाने का वादा कर उनके साथ धोखाधड़ी की जाती है. भारत के मामले में ये देखा गया है कि कुछ यूट्यूबर्स और व्लॉगर्स लोगों को गुमराह कर रहे हैं. सीबीआई ने बाबा ब्लॉग चलाने वाले फैसल खान को गिरफ्तार किया है. फैसल खान पर आरोप है कि वो रूसी सेना में शामिल करवाने के नाम पर श्रमिकों के साथ फर्जीवाड़ा करता था. श्रीलंका में भी ऐसे मामले सामने आए हैं. यहां 17 लोगों को रूस में स्वीपर, सहायक और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने के नाम पर रूस ले गए. बाद में इन लोगों को रशियन आर्मी में शामिल करवाकर युद्ध लड़ने के लिए अग्रिम मोर्चों पर भेज दिया. श्रीलंका में सीआईडी और नेपाल में पुलिस ने लोगों के साथ धोखाधड़ी करने के मामले में इन भर्ती एजेसियों और बिचौलियों के खिलाफ कार्रवाई करनी शुरू कर दी है. कुछ मामलों में इसमें रूसी अधिकारियों और संस्थाओं की मिलीभगत भी देखी गई है. इसका सबूत तब सामने आया बिना वीज़ा के रूस के रास्ते बेलारूस जाने वाले कुछ भारतीय नागरिकों के सामने ये शर्त रखी गई कि वो या तो रशियन सेना में शामिल हो जाएं, वरना उन्हें 10 साल जेल की सज़ा होगी.
मौजूदा परिस्थिति से लाभ उठाने की रूस की क्षमता और अपने नागरिकों को वापस लाने की इन दक्षिण एशियाई देशों की क्षमता यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की दक्षिण एशिया नीति से गहरे तौर पर जुड़ी है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अहमियत बढ़ने के साथ ही रूस की कोशिश यहां अपना प्रभाव बढ़ाने की है. यूक्रेन पर हमले के बाद जिस तरह पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग कर दिया है, उसके बाद से तो रूस के हित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से और जुड़ गए हैं. इस क्षेत्र में रूस का सबसे भरोसेमंद सहयोगी भारत है. फरवरी 2022 यानी यूक्रेन युद्ध के बाद से ही भारत और रूस के रिश्ते और बेहतर हुए हैं. यूक्रेन पर युद्ध के मामले में संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस पर जो वोटिंग हुई, भारत उसमें अनुपस्थित रहा. रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार भी बढ़ा है. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का रूस के साथ 13.2 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ जो 2023 में बढ़कर 50 अरब डॉलर हो गया. इसकी मुख्य वजह रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना रही. यूक्रेन पर युद्ध के बाद से रूस के कच्चे तेल को रिफाइल कर भारत दुनियाभर में निर्यात कर रहा है. इस तरह रूस के लिए भारत एक लॉन्ड्रोमॉर्ट देश का काम करके रशियन अर्थव्यवस्था को दुरूस्त रखने में मदद कर रहा है.
यूक्रेन पर हमले के बाद जिस तरह पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग कर दिया है, उसके बाद से तो रूस के हित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से और जुड़ गए हैं. इस क्षेत्र में रूस का सबसे भरोसेमंद सहयोगी भारत है.
नए बाज़ारों की तलाश के दौरान संयोग से रूस का सामना श्रीलंका से हुआ, जब वो खुद आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. रशिया-यूक्रेन युद्ध में श्रीलंका का तटस्थ रुख है. ऐसे में श्रीलंका की दशा सुधारने में रूस सक्रिय भूमिका निभा सकता है. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए रूसी पर्यटक तो अहम हैं ही, साथ ही रूस अब श्रीलंका को सस्ते दाम पर कच्चा तेल भी निर्यात कर रहा है. इतना ही नहीं रूस ने भारत के साथ मिलकर श्रीलंका के हम्बनटोटा एयरपोर्ट को संचालित करने में भी रुचि दिखाई है. इसके अलावा रूस ने श्रीलंका में परमाणु बिजली सयंत्र स्थापित करने में मदद देने की बात कही है. यही वजह है कि श्रीलंका अब अल्पकालीन सूचना पर रूसी नागरिकों के दीर्घकालिक वीज़ा को खत्म करने का फैसला करने में झिझक रहा है. जहां तक नेपाल की बात है तो यूक्रेन युद्ध पर नेपाल के रुख उसके अब तक के गुटनिरपेक्ष रवैये पर असर डाला है और रूस ने इसकी आलोचना भी की है. नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र में लगातार रूस के हितों के खिलाफ वोटिंग कर रहा है. की है. यही वजह है कि इन दोनों देशों के बीच विकास परियोजनाओं, पनबिजली, आधारभूत ढांचे के विकास, लाइट मेट्रो, रेलवे प्रोजेक्ट और सीधी उड़ानों के मामले में सहयोग का दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है.
ज़ाहिर सी बात है कि अपनी नागरिकों को वापस लाने की इन दक्षिण एशियाई देशों की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि रूस के साथ उनके द्विपक्षीय संबंध कैसे हैं. भारत का विदेश मंत्रालय लगातार रूस के सम्पर्क में है और ये कोशिश कर रहा है कि रशिया की सेना में शामिल भारतीयों को जल्द वहां से वापस बुला लिया जाए. कुछ भारतीयों को रूसी सेना से मुक्त कर दिया गया है, जबकि बाकियों को लेकर रूस के अधिकारियों से बातचीत चल रही है. चूंकि ज्यादातर भारतीय ऐसे हैं, जिनके साथ धोखाधड़ी कर उन्हें रूसी सेना में भर्ती करवाया गया. ऐसे में धोखाधड़ी के सबूत पेश करने से रूसी सेना में शामिल इन भारतीयों को जल्दी मुक्त कराने में आसानी हो रही है.
कई मामले ऐसे हैं, जहां इन दक्षिण एशियाई देशों के नागरिक अप्रत्यक्ष और अवैध प्रवास के ज़रिए रूसी सेना में शामिल हुए हैं. ऐसे में इन देशों का पक्ष कमज़ोर हो जाता है. इसलिए रूस इस मामले में उनकी मदद करने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखता.
नेपाल और श्रीलंका को इस मामले में अभी तक भारत जितनी सफलता नहीं मिली है. जनवरी 2024 के बाद से नेपाल के विदेश मंत्रालय की तरफ से रूस को 2 संदेश भेजे गए. नेपाल ने रूस से ये अपील की है कि वो यूक्रेन में युद्ध लड़ रहे नेपाली नागरिकों को वापस बुलाए. इसके साथ ही नेपाल ने ये भी जानकारी मांगी है कि रूस के सेना में कितने नेपाली नागरिक काम कर रहे हैं, उनके नाम क्या हैं. वो अभी कहां हैं. लेकिन रूस ने अभी तक नेपाल के साथ कोई जानकारी साझा नहीं की है. हाल ही में कुछ ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें यूक्रेन में युद्ध लड़ रहे नेपाली नागरिक भारत से मदद की मांग कर रहे हैं. इस साल जनवरी से नेपाल ने यूक्रेन और रूस जाने के लिए परमिट जारी करने बंद कर दिए हैं. अपने देश के नागरिकों की इन देशों में गैर-आधिकारिक यात्राओं पर भी पाबंदी लगा दी है. श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय श्रीलंकाई सैनिकों के रशियन आर्मी में शामिल होने की खबरों का खंडन किया है. इसके साथ ही उसने अपने सैनिकों से इस युद्ध में शामिल नहीं होने की अपील की है. लेकिन जो श्रीलंकाई इस वक्त रूसी सेना में शामिल होकर यूक्रेन में जंग लड़ रहे हैं, उन्हें वापस लाने को लेकर श्रीलंका ने ज्यादा कुछ नहीं कहा है. कई मामले ऐसे हैं, जहां इन दक्षिण एशियाई देशों के नागरिक अप्रत्यक्ष और अवैध प्रवास के ज़रिए रूसी सेना में शामिल हुए हैं. ऐसे में इन देशों का पक्ष कमज़ोर हो जाता है. इसलिए रूस इस मामले में उनकी मदद करने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखता.
जिस तरह रशिया-यूक्रेन युद्ध इतने लंबे वक्त से चल रहा है, वैसे में ये तय है कि दक्षिण एशियाई देशों के नागरिक अग्रिम मोर्चों पर जंग लड़ते रहेंगे. सैनिकों की ज़रूरत के हिसाब से रूस की आबादी कम है. ऐसे में रूस अपने यहां मौजूद प्रवासी मज़दूरों को ज्यादा पैसे देने की पेशकश कर अपनी सेना में शामिल करता रहेगा. ज्यादा कमाई और रूस की नागरिकता मिलने की उम्मीद दक्षिण एशिया की प्रवासी मज़दूरों को हमेशा प्रोत्साहित करती रहेगी. लेकिन इन देशों का प्रभाव और रूस के साथ इनके द्विपक्षीय संबंध इन नागरिकों को वापस लाने की क्षमता का निर्धारण करेगी.
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Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme’s Neighbourhood Studies Initiative. He focuses on strategic and security-related developments in the South Asian ...
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Rajoli Siddharth Jayaprakash is a Junior Fellow with the ORF Strategic Studies programme, focusing on Russia’s foreign policy and economy, and India-Russia relations. Siddharth is a ...
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