Published on Jun 09, 2023 Updated 0 Hours ago
तुर्की के चुनावों में गतिरोध के कारण!

14 मई 2023 को तुर्की में हुए चुनावों में कईयों के भविष्य दांव पर लगे थे. मौजूदा राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन पिछले दो दशकों से एक मज़बूत दक्षिणपंथी नेता की छवि के साथ सत्ता में बने हुए हैं, जिनके बारे में कुछ लोगों का मानना था कि ये चुनाव उनके लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती साबित होंगे. पूर्व में तुर्की के प्रधानमंत्री रह चुके अर्दोआन ने अपने शुरुआती कार्यकाल में तुर्की के आर्थिक विकास के लिए कुछ अहम कदम उठाए, उदाहरण के लिए उन्होंने देश भर में बुनियादी अवसंरचना के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया और दुनिया भर में तुर्की की आर्थिक और राजनीतिक ताक़त में इज़ाफ़ा हुआ.
हालांकि, पिछले कुछ समय से (ख़ासकर 2016 में हुई तख़्तापलट की कोशिश के बाद से) अर्दोआन के आलोचक उन पर सत्तावादी होने, भ्रष्टाचार का समर्थक होने और न्यायपालिका को दबाने का आरोप लगा रहे हैं. आर्थिक मंदी के कारण उनकी लोकप्रियता में और ज्यादा गिरावट आई. साथ ही लीरा यूरो की तुलना में काफ़ी कमज़ोर हो गया, जहां एक यूरो 20 तुर्की लीरा के बराबर हो गया. पिछले कुछ सालों में,ऊर्जा,खाद्य और अन्य ज़रूरी वस्तुओं के दामों में भी काफ़ी उछाल देखने को मिला है. 

आर्थिक मंदी के कारण उनकी लोकप्रियता में और ज्यादा गिरावट आई. साथ ही लीरा यूरो की तुलना में काफ़ी कमज़ोर हो गया, जहां एक यूरो 20 तुर्की लीरा के बराबर हो गया. पिछले कुछ सालों में,ऊर्जा,खाद्य और अन्य ज़रूरी वस्तुओं के दामों में भी काफ़ी उछाल देखने को मिला है.


इन्हीं परिस्थितियों के बीच, अर्दोआन के खिलाफ़ केमल किलिकदारोग्लू एक मुख्य उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं. किलिकदारोग्लू, जो 2010 से ही विपक्ष के मुख्य नेता रहे हैं, उनके चुनावी अभियानों में मुख्य रूप से ये मुद्दे शामिल रहे हैं: a) आर्थिक संकट; b) अर्दोआन का सत्तावादी और भ्रष्ट शासन; c) तुर्की के धर्मनिरपेक्ष चरित्र (जो आधुनिक तुर्की राष्ट्र के संस्थापक कमाल अतातुर्क की देन है) को फिर उसकी जगह देना.

अर्दोआन को चुनौती देने के लिए किलिकदारोग्लू ने पांच अन्य दलों के साथ गठबंधन किया है, जहां सभी दलों के अपने-अपने लक्ष्य हैं. उनके अभियान बड़े जोरदार थे, जहां वाकई में ऐसा लग रहा था कि विपक्ष अर्दोआन को सत्ता से हटा सकता है. फिर भी, परिणाम लगभग अस्पष्ट रहे, जहां दोनों उम्मीदवार बहुमत हासिल करने में असफल रहे. विपक्ष के प्रयासों के बावजूद, अर्दोआन किलिकदारोग्लू पर 5 प्रतिशत की बढ़त हासिल की, वहीं तीसरे उम्मीदवार, सिनान ओन शेष 5 प्रतिशत मत जीतने में कामयाब रहे.

ऐसे में सवाल ये है कि क़ीमतें लगातार बढ़ रही हैं, भूकंप से दक्षिणी तुर्की का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया है और अर्दोआन के खिलाफ़ जनता असंतोष बढ़ता जा रहा है, क्यों इन सबके बावजूद इतना ताकतवर विपक्ष पीछे रह गया?

वर्तमान सत्ता के प्रति समर्थन


पिछले रविवार के परिणामों को समझने के लिए, हमें उन समूहों की ओर देखना होगा जो राष्ट्रपति पद के अलग-अलग उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं. सबसे पहले तो यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि बहुत बड़ी संख्या में मतदाताओं में इन चुनावों में हिस्सा लिया. तुर्की की जनसंख्या लगभग 8 करोड़ है, जिसमें से 6 करोड़ लोगों (मत-योग्य मतदाताओं का 88 प्रतिशत) के इस चुनाव में हिस्सा लेने का अनुमान है.

वहीं दूसरी ओर, अर्दोआन की पार्टी, AKP (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) के ज्यादातर समर्थक श्रमिक वर्ग के लोग हैं, जो पारिवारिक मूल्यों और एक रूढ़िवादी इस्लामी सरकार के पक्ष में एकजुट हैं. अर्दोआन के धर्म पर ज़ोर देने, LGBTQ+ समुदाय और पारंपरिक मूल्यों के आलोचकों के खिलाफ़ नफ़रती बयानबाजी की राजनीति इस बात से और ज्यादा उजागर होती है कि उन्होंने हागिया सोफिया में नमाज़ पढ़कर अपने चुनावी अभियान का अंत किया. हागिया सोफिया पहले बाइज़ेंटाइन साम्राज्य का स्मारक था, जिसे उन्होंने मस्ज़िद में बदल दिया. इसके अलावा, अर्दोआन ने रूस से नज़दीकी बढ़ाकर तुर्की को यूरोपीय संघ (EU) और कुछ हद तक नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) से भी दूर कर लिया है. और तुर्की को एक मज़बूत सैन्य देश के रूप में स्थापित करने के उनके सपने को बड़ी संख्या में जनता ने अपना समर्थन दिया है.

इन इलाकों में AKP का दबदबा बहुत पहले से ही है, और भूकंप प्रभावित इलाकों में अर्दोआन लगातार ज़मीनी जायज़ा लेने आते रहे और उन्होंने प्रभावितों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का भी परिचय दिया. इस तरह, उन्होंने अपने वोट शेयर को बनाए रखा, जहां मतदाताओं ने विपक्ष की बजाय क्षेत्र के पुनर्निर्माण के उनके वादे पर ज्यादा भरोसा दिखाया.


अगर AKP के मतों की बात करें तो मध्य अनातोलिया और उत्तरी काला सागर क्षेत्र उसके पारंपरिक गढ़ रहे हैं. कुछ विश्लेषकों के आकलन के विपरीत, फरवरी में आए भूकंप से प्रभावित हुए दक्षिणी तुर्की ने भी अर्दोआन का समर्थन किया है. भूकंप से प्रभावित इलाकों में राज्य की मदद देर से पहुंची और पीड़ितों को कई दिनों तक विदेशी मानवतावादी समूहों पर निर्भर रहना पड़ा. ऐसे में यह माना जा रहा था कि इसके कारण राष्ट्रपति की लोकप्रियता और उनकी क्षमता को लेकर लोगों की धारणा में गिरावट आई है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि इन इलाकों में AKP का दबदबा बहुत पहले से ही है, और भूकंप प्रभावित इलाकों में अर्दोआन लगातार ज़मीनी जायज़ा लेने आते रहे और उन्होंने प्रभावितों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का भी परिचय दिया. इस तरह, उन्होंने अपने वोट शेयर को बनाए रखा, जहां मतदाताओं ने विपक्ष की बजाय क्षेत्र के पुनर्निर्माण के उनके वादे पर ज्यादा भरोसा दिखाया.

अंत में, विदेशों में रहने वाले मतदाताओं ने (उदाहरण के लिए जर्मनी में रहने वाले तुर्की लोग) भी बड़ी संख्या में अर्दोआन को वोट दिया क्योंकि उनके लिए देश के भीतर आर्थिक संकट की स्थिति से ज्यादा यह बात मायने रखती है कि वैश्विक नेताओं के सामने वे अपने विचार मज़बूत ढंग से पेश करते हैं. (हम में से एक) लेखक ने चुनाव के दौरान ज़मीनी सर्वेक्षण में पाया कि कई मतदाताओं को विपक्ष के अतीत में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने, शरणार्थियों का विरोध करने और अर्दोआन की तुलना में ज्यादा धर्मनिरपेक्ष होने से शिकायतें थीं, वही अर्दोआन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर मुसलमानों के बड़े तबके का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहे हैं.


विपक्षी दल के मतदाता


कमाल किलिकदारोग्लू ने जनता से अनौपचारिक संवाद के माध्यम से खुद को एक आधुनिक नेता के रूप में पेश किया है, जिसने मुख्य रूप से प्रगतिशीलों और युवाओं को प्रभावित किया है, जो देश में आर्थिक संकट के माहौल से नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं जबकि इस संकट के लिए अर्दोआन सरकार ज़िम्मेदार है. इसके अलावा, मौजूदा सरकार की उन नीतियों के खिलाफ़ हैं, जिसके कारण महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा ख़तरे पड़ गई है. युवा मतदाताओं में एक आधुनिक देश के प्रति रुझान ज्यादा है, जो यूरोपीय देशों के साथ बेहतर संबंध के हिमायती हैं, और ज्यादा घूमने-फिरने की स्वतंत्रता और शिक्षा के अवसरों में वृद्धि चाहते हैं. इसके अलावा, विपक्ष की कुछ नीतियां व्यापारिक क्षेत्र को लाभ पहुंचाने वाली मालूम पड़ती हैं, क्योंकि उन्हें इज़मीर, इस्तांबुल और अंकारा जैसे तुर्की के बड़े शहरों के मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ है.

हाल ही में हुए चुनावों में, किलिकदारोग्लू ने इस्तांबुल जैसे बड़े शहरों में रहने वाले प्रगतिशील मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित किया. हालांकि, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि इस्तांबुल के मतदाता 2019 के चुनावों से ही मुख्य विपक्षी पार्टी का समर्थन करते चले आ रहे हैं, जहां उन्होंने मेयर के लिए विपक्ष के एक ताकतवर नेता, एकरम इमामोलू को वोट दिया था. इसके अलावा, विदेशों (उदाहरण के लिए, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम) में रहने वाले मतदाताओं के एक धड़े ने भी विपक्ष को बढ़-चढ़कर वोट दिया.
कुल मिलाकर, पश्चिमी तुर्की के अधिक संपन्न इलाकों ने विपक्षी उम्मीदवारों को भारी समर्थन दिया. हालांकि, वे विपक्ष को जिताने में कामयाब नहीं हुए.

मुख्यधारा की अधिकांश मीडिया अर्दोआन का समर्थन करती है, जिस पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि उसने बार-बार अपने कार्यक्रमों में यही दिखाया कि चुनावी रूझान के पक्ष में है, और इस तरह से उसने उनके समर्थकों में "जीत के मनोविज्ञान" को बढ़ावा दिया.


आधिकारिक परिणामों को देखते हुए, इस बात के कई कारण पेश किए गए हैं कि मतदाताओं के भारी समर्थन के बावजूद क्यों विपक्ष इस चुनाव को जीत पाने में असफल रहा? पहली बात, अर्दोआन के खिलाफ़ विभिन्न पार्टियों के मतदाताओं को एकजुट करने के लिए भले ही विपक्ष ने एक मज़बूत अभियान चलाया हो, लेकिन राष्ट्रपति का अपना एक बड़ा और तगड़ा वोट बैंक है, जो हमेशा से उन्हीं को वोट देता आया है. इसके अलावा, चूंकि इन चुनावों के परिणाम बेहद कम अंतर से घोषित किए गए थे. नतीज़न, ऐसे आरोप तक लगाए गए कि विपक्ष के समर्थन वाले क्षेत्रों में मतगणना को बाधित करने की कोशिश की गई थी, हालांकि बाद में, विपक्ष ने इस संभावना से इनकार कर दिया. आखिरी बात, मुख्यधारा की अधिकांश मीडिया अर्दोआन का समर्थन करती है, जिस पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि उसने बार-बार अपने कार्यक्रमों में यही दिखाया कि चुनावी रूझान के पक्ष में है, और इस तरह से उसने उनके समर्थकों में "जीत के मनोविज्ञान" को बढ़ावा दिया. इससे विपक्ष के लिए सत्ता की राह और कठिन हो गई, ख़ासकर तब जब पहले चरण के परिणाम अस्पष्ट हैं लेकिन विपक्ष के लिए चिंताजनक हैं.

आगे की दिशा


चुनाव के तुरंत बाद, कमाल किलिकदारोग्लू ने अपनी पूरी प्रचार टीम को बर्खास्त कर दिया, और वे और बढ़-चढ़कर शरणार्थियों के विरोध में बयान देने लगे, जहां उन्होंने राष्ट्रवादी मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी सीरियाई अप्रवासियों को वापस उनके मूल देश भेजने का वादा किया. इससे वे कुछ राष्ट्रवादी मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में कामयाब हो सकते हैं लेकिन यह उनके वामपंथी रुझान वाले सिद्धांतों से मेल नहीं खाता. बल्कि, इसके कुछ अनपेक्षित नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, भले ही किलिकदारोग्लू का अभियान कुछ मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहा कि उनके शासन में हिजाब पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा जैसा कि 1980 के दशक में था, लेकिन उनका यह दावा कितना सच्चा है, इसे लेकर पहले ही सवाल उठाए जाने लगे थे. और जिस तरह से हाल ही में शरणार्थी मुद्दे पर अपने पुराने बयानों से पलटते हैं, इससे इस्लाम पर उनका दावा और कमज़ोर हो सकता है.

फिर भी, किलिकदारोग्लू GenZ मतदाताओं और कुर्द आबादी पर भी भरोसा कर रहे हैं, जिनकी संख्या क़रीब 80 लाख है. हालांकि इस आबादी ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया क्योंकि वे परिवर्तन को लेकर संशय में थे. अगर किलिकदारोग्लू इनमें महज़ 30 लाख मतदाताओं को भी लुभाने में कामयाब हो जाते हैं, तो वह अर्दोआन से आगे निकल जाएंगे और चुनाव जीत जाएंगे. इसके अलावा, अगर वह तीसरे उम्मीदवार के साथ गठबंधन कर लेते हैं, तो वह चुनावी नतीजों को भी पलटने में कामयाब हो जाएंगे. अंत में, अगर हम पहले चरण के परिणामों को देखें तो चुनाव अर्दोआन के पक्ष में जाता हुआ दिखाई दे रहा है, हालांकि, 28 मई को होने वाले दूसरे चरण के चुनावों से अभी भी बदलाव को लेकर उम्मीद लगाई जा सकती है.

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