Author : Anchal Vohra

Published on Mar 15, 2021 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 महामारी की वजह से साल 2020 दुनिया के लिए ख़राब रहा लेकिन मिडिल ईस्ट के लिए तो ये साल सबसे ख़राब रहा.

हत्या, धमाके और दुश्मन के साथ शांति समझौते के बीच गुज़रा मिडिल ईस्ट का पिछला साल: एक विश्लेषण

पिछले साल यानी 3 जनवरी 2020 को अमेरिका ने बग़दाद हवाई अड्डे के नज़दीक ड्रोन हमले में ईरान के दूसरे सबसे ताक़तवर शख़्स क़ासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी. हमले में ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड के क़ुर्द्स फ़ोर्स के कमांडर सुलेमानी और ईरान के क्षेत्रीय विस्तार का नेतृत्व करने वाले सेना के जनरल अबु महदी अल-मुहांदिस की मौत हो गई.

अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रीय हित में हत्या का आदेश दिया ताकि युद्ध को रोका जा सके. ट्रंप ने कहा, “सुलेमानी अमेरिकी राजनयिकों और सैन्य कर्मियों के ख़िलाफ़ कुछ ही दिनों में भयावह हमले की साज़िश रच रहे थे.” लेकिन ट्रंप ने अपने आरोपों को पुख़्ता करने के लिए किसी तरह का सबूत मुहैया नहीं कराया.

ट्रंप ने युद्ध रोकने की दलील देकर हत्या को सही ठहराया लेकिन इसके बदले हत्या की वजह से अमेरिका और ईरान के बीच युद्ध का डर खड़ा हो गया और इससे दुनिया भर में ख़तरे की घंटी बजने लगी. ईरान का समुद्र तट सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण होरमुज़ जलसंधि के उत्तरी किनारे में हैं जो खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है. दुनिया में प्राकृतिक गैस का एक-तिहाई और विश्व में खपत होने वाले तेल का 25% हिस्सा होरमुज़ जलसंधि से होकर गुज़रता है जिसका रास्ता ईरान युद्ध की स्थिति में रोक सकता है.

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव धीरे-धीरे कम हो गया लेकिन 2020 ख़त्म होने और ट्रंप के चुनाव हारने के बाद एक बार फिर दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष की अटकलें लगने लगी हैं. 

सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने वैसा ही जवाब देने की धमकी दी लेकिन बाद में उसने संयम की अपील पर ध्यान दिया और सिर्फ़ इराक़ में अमेरिकी सेना के दो ठिकानों पर हमले किए. इन हमलों में एक भी अमेरिकी सैनिक की मौत नहीं हुई. अगर किसी अमेरिकी सैनिक की जान जाती तो अमेरिका भड़ककर ईरान पर हमला कर सकता था.

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव धीरे-धीरे कम हो गया लेकिन 2020 ख़त्म होने और ट्रंप के चुनाव हारने के बाद एक बार फिर दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष की अटकलें लगने लगी हैं. जनवरी 2021 में जो बाइडेन के राष्ट्रपति का काम-काज संभालने से पहले ट्रंप के नेतृत्व वाले प्रशासन ने अपने आख़िरी दिनों में ईरान पर और ज़्यादा आर्थिक पाबंदियां लगाई.

दिसंबर 2020 के आख़िर में ट्रंप ने एक बार फिर ईरान को चेतावनी देते हुए युद्ध की धमकी दी. उन्होंने ट्वीट किया कि बग़दाद के भारी-भरकम सुरक्षा वाले ग्रीन ज़ोन और अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट हमले के लिए वो ईरान को ज़िम्मेदार मानते हैं. ट्रंप ने ट्वीट किया, “ईरान को कुछ दोस्ताना सलाह: अगर एक अमेरिकी की हत्या होती है तो मैं ईरान को ज़िम्मेदार ठहराऊंगा. इस पर विचार कीजिए.”

जो लोग अभी भी सीरिया के भीतर बचे हैं वो कोविड-19 संक्रमण में तेज़ बढ़ोतरी और भूख के संकट से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 

ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने ट्रंप के इस दावे को ठुकराया कि ग्रीन ज़ोन में हमले के पीछे ईरान है. उन्होंने कहा कि अगर ट्रंप “किसी भी तरह का जोख़िम उठाते हैं तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी उन्हें ख़ुद ही उठानी पड़ेगी.”

संक्षेप में, साल 2020  ईरान के  साथ अमेरिका के जुनून को परिभाषित करता है और किस तरह कई मौक़ों पर ये इलाक़ा एक और ज़्यादा तबाही वाले युद्ध के मुहाने पर खड़ा था. हालांकि अमेरिकी चुनाव में बाइडेन की जीत ने उन चिंताओं को कुछ कम किया है.

मध्य-पूर्व के लिए बेहद नकारात्मक

कोविड-19 महामारी की वजह से साल 2020 दुनिया के लिए ख़राब रहा लेकिन मिडिल ईस्ट के लिए तो ये साल सबसे ख़राब रहा.

इसकी शुरुआत राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद रखने वाले लेबनान के लोगों के साथ हुई. वो चाहते थे कि धर्म आधारित सत्ता साझा करने की व्यवस्था की जगह ईमानदार पुरुषों और महिलाओं की एक ऐसी सरकार बने जो देश को आर्थिक तौर पर बर्बाद होने से बचा सके. लेकिन इसका अंत वहां की करेंसी के अपना 80% मूल्य खोने, बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, यूरोप में पनाह लेने के लिए लेबनान के लोगों के नाव पर सवार होकर जाने और बेरुत बंदरगाह पर धमाके के बाद इस ऐतिहासिक शहर के एक बड़े हिस्से के खंडहर में तब्दील होने के साथ हुआ.

असुरक्षित ढंग से भंडार में रखे हज़ारों टन अमोनियम नाइट्रेट में 4 अगस्त को धमाका हो गया और इसकी जद में बेरुत के कई इलाक़े आ गए जिन्होंने बड़े पैमाने पर तबाही देखी. धमाके की वजह से 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई और 2,00,000 लोग बेघर हो गए. अक्टूबर 2019 में लेबनान के प्रदर्शनकारियों के परिवर्तन की मांग करने के बाद जिस प्रधानमंत्री साद हरीरी को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, वो फिर से 2020 में सत्ता में वापस आ गए लेकिन अभी तक सरकार का गठन करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.

लेबनान की अर्थव्यवस्था ढह गई और इसका असर पड़ोसी देश सीरिया में भी आर्थिक तौर पर महसूस किया गया. सीरिया के कई कारोबारियों ने दावा किया कि उन्होंने लेबनान के बैंक में पैसा जमा किया था लेकिन इन बैंकों से पैसे निकालने पर रोक लगने के बाद उनकी जमा रक़म भी काफ़ी हद तक फंस गई.

नौ साल लंबे युद्ध से बर्बाद सीरिया में ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के पुनर्निर्माण की सख़्त ज़रूरत है. अमेरिका ने सीरिया की बशर अल-असद सरकार पर कई आर्थिक पाबंदियां लगाई ताकि कोई सीरिया में निवेश नहीं कर सके जिनमें असद के सहयोगी रूस और चीन के अलावा भारत भी शामिल है. अमेरिका और यूरोप के कई देश महसूस करते हैं कि पुनर्निर्माण फंड ही उनके पास ऐसी चीज़ है जिसका इस्तेमाल असद पर दबाव बनाने के लिए किया जा सकता है ताकि वो सीरिया की जेलों में सड़ रहे हज़ारों राजनीतिक क़ैदियों को रिहा करें और सीरिया सार्थक राजनीतिक सुधार की तरफ़ बढ़ सके.

लेबनान और सीरिया का आर्थिक संकट और भी बदतर होने की आशंका है और लीबिया और यमन में लड़ रहे पक्षों के बीच संघर्ष ख़त्म होने की कोई उम्मीद नहीं है. 

सीरिया मौजूदा सत्ता और विद्रोहियों के बीच युद्ध में बिखर गया था लेकिन सीरिया का एक बड़ा हिस्सा रूस के समर्थन वाली सीरिया की सरकार की तरफ़ से भारी-भरकम बमबारी में तबाह हो गया. इसलिए पश्चिमी देश तबाही के लिए असद को ज़िम्मेदार ठहराते हैं और बिना किसी रियायत के पुनर्निर्माण के लिए उन्हें पैसे देने से असद की सत्ता और मज़बूत होगी. जो लोग अभी भी सीरिया के भीतर बचे हैं वो कोविड-19 संक्रमण में तेज़ बढ़ोतरी और भूख के संकट से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. दुकानों में खाद्य उत्पादों की कमी है और सब्सिडी वाले दर पर ब्रेड हासिल करने के लिए सीरिया के लोगों को बेकरी के बाहर घंटों कतार में लगना पड़ता है. उनकी कठिनाइयों का अंत नज़र नहीं आ रहा.

इज़रायल-फ़िलिस्तीन में फर्क़

लेकिन 2020 इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए अच्छा साल रहा. अरब जगत के देशों संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, सूडान और मोरक्को के साथ शांति समझौते को नेतन्याहू इस साल होने जा रहे चुनाव में शान के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस इलाक़े के लिए असाधारण घटनाक्रम के तहत इज़रायल के हज़ारों सैलानी दुबई के बाज़ारों और समुद्र तटों पर जमा हुए जबकि अमीरात के लोग विवादित पवित्र शहर यरुशलम में सेल्फी लेते दिखे. ये ख़ुशमिजाज़ी फिलिस्तीन के लोगों के लिए कष्ट देने वाली थी जिन्होंने व्हाइट हाउस में ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अथाह दिक़्क़तों का सामना किया. उन्हें उम्मीद थी कि बाइडेन के आने से उनके अलग देश का रास्ता फिर से खुलेगा और पूरे इलाक़े में फैले फिलिस्तीन के लोगों को मदद देने के लिए वो फंड मुहैया कराएंगे.

2021 के बारे में उम्मीद लगाई जा रही है कि इसमें अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों में थोड़ी बेहतरी होगी लेकिन कोई भी बदलाव बहुत धीरे-धीरे होगा. लेबनान और सीरिया का आर्थिक संकट और भी बदतर होने की आशंका है और लीबिया और यमन में लड़ रहे पक्षों के बीच संघर्ष ख़त्म होने की कोई उम्मीद नहीं है.

इस इलाक़े का भविष्य अंधकारमय लगता है. यहां यूएई और सऊदी अरब के राजपरिवार और राजनीतिक इस्लाम के समर्थक तुर्की के बीच दुश्मनी से आगे की दशा-दिशा तय होगी.

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