Published on Feb 15, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना महामारी के दौरान विश्व व्यापार संगठन ने ‘केंद्र बिंदु विकसित’ कर पीड़ित देशों के बीच उनकी नीतियों में समन्वय स्थापित करने का काम किया.

वैश्विक महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों को कम करने में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका

समालोचकों और अकादमिकों ने हमेशा से व्यापार को निर्देशित करने और इससे संबंधित अवरोधों को कम करने के लिए विश्व व्यापार संगठन के महत्व की ओर ध्यान खींचा है. ऐसा होने पर भी कोरोना महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों समेत इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में जो भूमिका इस संगठन ने निभाया है और निभा रहा है, उसके प्रति विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. दरअसल विश्व व्यापार संगठन ने तीन तरीक़ों से इस महामारी के आघात को कम किया है. अव्वल तो ये कि सदस्य देशों की व्यापार नीति के बीच समन्वय स्थापित कर, दूसरा महामारी संबंधी उपायों को लेकर पारदर्शिता बढ़ाना और आख़िर में सदस्य देशों द्वारा महामारी के ख़िलाफ़ तैयार की गई व्यापारिक रणनीति की निगरानी करना.

महामारी और वैश्विक व्यापार व्यवस्था की चुनौतियां

कोविड महामारी ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को असत्य सा प्रतीत होने वाला चोट पहुंचाया है जिसमें सप्लाई चेन पूरी तरह बर्बाद हो गई और ज़रूरी उत्पादों के लिए अचानक मांग में ज़बर्दस्त तेजी पैदा हो गई. ऐसी स्थिति में कई देशों ने देश के अंदर गंभीर संकट का सामना करने के लिए दवाईयों, फॉर्मास्युटिकल उत्पादों, डॉयग्नोस्टिक्स, थेरेपेटिक्स जैसी चीजों के निर्यात पर भी रोक लगा दी. 23 अप्रैल 2020 तक 80 देश और अलग अलग कस्टम टेरेटरिज ने अपने यहां निर्यात पर रोक लगा दी थी जबकि दूसरे देश भी ऐसा ही कर रहे थे. पर्सनल प्रोटेक्टिव गीयर से लेकर फॉर्मास्युटिकल. खाने की चीजें, मेडिकल उपकरणों और कोविड-19 टेस्ट किट जैसे उत्पादों के निर्यात पर कई देशों ने ख़ास कर प्रतिबंध लगा रखा था.

15 मई 2020 को विश्व व्यापार संगठन की जनरल काउंसिल की बैठक बुलाई गई जिसमें सदस्य देशों ने वर्चुअल बैठक की जिसमें “कोविड-19 को लेकर तुरंत क्या किया जाए और विश्व की अर्थव्यवस्था समेत देश की अर्थव्यवस्था और विकास के परिप्रेक्ष्य में महामारी के प्रतिकूल असर को कम करने के लिए क्या उपाय उठाए जाएं, इस बात पर चर्चा की गई”.

जबकि विश्व व्यापार संगठन के कानून के तहत ऐसे प्रतिबंधों की सामान्य तौर पर अनुमति नहीं है, लेकिन कोई राष्ट्र इसे किन्हीं ख़ास स्थितियों में लागू कर सकता है. ज़्यादातर विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने जेनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स एंड ट्रेड एक्ट (गैट) की धारा XI:2 (ए)  का सहारा लिया, जो सदस्य देशों को इस बात की अनुमति देता है कि वो किसी अस्थायी समय के लिए निर्यात पर पाबंदी लगा सकते हैं, जिससे “इंसान, पशु, पौधों और स्वास्थ्य” की रक्षा की जा सके. कुछ सदस्य देशों ने गैट की धारा XXI के ज़रिए अपने मक़सद को पूरा किया.

बावज़ूद इस बात के कि ये तमाम उपाय विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक़ थे, लेकिन इससे खाने की चीजों और फॉर्मास्युटिकल उत्पादों के आयात पर निर्भर रहने वाले देशों में  इन चीजों की ज़बरदस्त किल्लत हो गई. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात को तुरंत ही रेखांकित किया कि पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरणों की कमी की वज़ह से दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य कर्मचारियों की सेहत को ज़ोख़िम का सामना करना पड़ रहा है.

जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में नीतियों के समन्वय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए प्राथमिक मंच का अपना महत्व होता है, 15 मई 2020 को विश्व व्यापार संगठन की जनरल काउंसिल की बैठक बुलाई गई जिसमें सदस्य देशों ने वर्चुअल बैठक की जिसमें “कोविड-19 को लेकर तुरंत क्या किया जाए और विश्व की अर्थव्यवस्था समेत देश की अर्थव्यवस्था और विकास के परिप्रेक्ष्य में महामारी के प्रतिकूल असर को कम करने के लिए क्या उपाय उठाए जाएं, इस बात पर चर्चा की गई”. सदस्य देशों ने इस बात को समझा कि ज़रूरी मेडिकल उत्पादों, कृषि और खाने पीने से जुड़े उत्पादों के फ्लो को बनाए रखने के लिए बाज़ार को खुला रखने की आवश्यकता है. अपनी ज़रूरतों को पहचानते हुए विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने इन उपायों को “स्थायी, टारगेटेड, और पारदर्शी” बनाने पर ज़ोर दिया साथ ही ज़रूरी वस्तुओं के स्पलाई चेन को खुला रखने की आवश्यकता पर भी बल दिया.

विश्व व्यापार संगठन ने एक अनौपचारिक स्थिति रिपोर्ट भी तैयार कि जिससे “कोविड-19 संकट के परिप्रेक्ष्य में उठाए गए कदमों के संबंध में पारदर्शिता बरती जा सके”. दरअसल ये वो सूची थी जिसमें सदस्य देशों द्वारा महामारी संबंधी उठाए गए उपायों को शामिल किया गया था, जिसमें सरकार द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहयोग और सब्सिडी शामिल थे. 

ड्बल्यूटीओ की कृषि पर बनाई गई कमेटी की ख़ास बैठक में खाद्यान्न आयात करने वाले देशों ने खाद्यान्न निर्यात करने वाले देशों से इन वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाने को लेकर सवाल पूछने के लिए एक मंच प्रदान किया. जबकि दूसरी ओर खाद्यान्न निर्यातक देशों ने महामारी की शुरुआत से पहले से दिए गए फार्म सब्सिडी के मामले को उठाया जिसके बारे में कहा गया कि “इसके चलते उनके देश में ही खाद्यान्न और कृषि वस्तुओं के बाज़ार में उनके उत्पादक प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पा रहे हैं”. नतीज़तन, अपनी रिपोर्ट में विश्व व्यापार संगठन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि महामारी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है. इसके बाद सदस्य देशों ने अपने प्रस्ताव और वक्तव्य विश्व व्यापार संगठन को सौंपे जिसमें ज़रूरी वस्तुएं, कृषि और खाद्यान्न उत्पादों के फ्लो को सुनिश्चित करने पर प्रतिबद्धता दोहराई गई. सदस्य देश जिनमें वैसे देश जो बड़ी तादाद में मेडिकल उत्पादों के निर्यात (भारत, अमेरिका और जर्मनी) करते थे उन्होंने ज़रूरी वस्तुओं के फ्लो को सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को हटा लिया.

इसी तरह विश्व व्यापार संगठन ने इंटेलक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स से संबंधित नीतियों के समन्वय के लिए एक मंच प्रदान किया जिससे वैक्सीन की पहुंच आसान हो सके और इस दौरान सदस्य देश भी अपने कानूनी दायरे में आईपी राइट्स को एकतरफ़ा रद्द करने से बचते दिखे. एक प्रस्ताव जिसे भारत और दक्षिण अफ्रीका ने सौंपा उसके आलोक में सदस्य देश इस बात को लेकर चर्चा कर रहे हैं कि आख़िर इंटेलक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के एग्रीमेंट ऑन ट्रेड संबंधी विषयों के पार्ट II में दिए गए सेक्शन 1 (कॉपीराइट), 4 (इंडस्ट्री डिज़ाइन), 5 (पेटेंट) और 7 (अज्ञात जानकारी) को नहीं लागू करने के क्या फ़ायदे हो सकते हैं. या फिर इन धाराओं को  कोविड-19 के बचाव, रोकथाम और इलाज़ से संबंधित ट्रिप्स एग्रीमेंट के पार्ट III के तहत लागू करने को कुछ ख़ास समय तक के लिए रोकने का क्या असर होगा.

विश्व व्यापार संगठन की ऐसी बैठकों ने सदस्य देशों को महामारी के दौरान उनके कारोबार संबंधी तैयारियों को लेकर नीतियां बनाने में एक दूसरे का सहयोग करने का मौक़ा दिया और बदले में ज़रूरी वस्तुओं की पहुंच को सुरक्षित बनाने में उनकी नीतियों के समन्वय में भी योगदान दिया. कोरोना महामारी संकट के दौरान सदस्य देशों के बीच संवाद स्थापित करने और नीतियों के समन्वय में आने वाली ट्रांजेक्शन कॉस्ट में कमी लाने के लिए विश्व व्यापार संगठन ने केंद्र बिंदु विकसित किया. इस प्रकार सदस्य देशों ने कोरोना महामारी को लेकर अपनी क़ारोबारी तैयारियों के समन्वय को मज़बूत बनाया और खास कर सबसे कमज़ोर देशों के प्रति निर्यात संबंधी प्रतिबंधों और राष्ट्रवादी नीतियों के प्रतिकूल प्रभावों को कम किया.

पारदर्शिता की कमी

महामारी के दौरान दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जो विश्व व्यापार संगठन ने किया वो हर मामलों में पारदर्शिता बरतने की है. डबल्यूटीओ के जो सदस्य देश हैं उन्हें यह ज़रूरी हो गया कि वो विश्व व्यापार संगठन की 2012 की नीतियों “क्वानटिटिव रेस्ट्रिक्शन से संबंधित नोटिफिकेशन प्रोसिज्योर को लेकर फ़ैसला (क्यूआर को लेकर फ़ैसला)” के तहत किसी भी स्तर के क्वानटिटिव रेस्ट्रिक्शन जैसे की निर्यात पर रोक के बारे में सूचना प्रदान करें. हालांकि कोरोना महामारी के स्वरूप को देखते हुए कई सदस्य देशों ने क्यूआर उपायों को लेकर तुरंत सूचना जारी नहीं की थी. हालत ये थी कि अप्रैल 2020 तक सिर्फ़ 13 विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों (अगर यूरोपियन यूनियन के 39 सदस्य देशों को व्यक्तिगत तौर पर जोड़ा जाए) ने ही क्यूआर फ़ैसलों के अंदर आने वाले नए उपायों के बारे में सूचना जारी की और कृषि पर समझौते की धारा 12 के तहत खाद्यान्नों के निर्यात पर लगने वाले प्रतिबंध के बारे में सूचना दी.

पारदर्शिता की कमी की चुनौती से निपटने के लिए विश्व व्यापार संगठन ने कोविड-19 से संबंधित क़ारोबारी उपायों जो कि वस्तु, सेवा और आईपीआर को लागू करने से जुड़ी थी, की सूची तैयार की और इसे सदस्य देशों तक आसान पहुंच बनाने के लिए बेवसाइट पर अपलोड किया. इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन ने एक अनौपचारिक स्थिति रिपोर्ट भी तैयार कि जिससे “कोविड-19 संकट के परिप्रेक्ष्य में उठाए गए कदमों के संबंध में पारदर्शिता बरती जा सके”. दरअसल ये वो सूची थी जिसमें सदस्य देशों द्वारा महामारी संबंधी उठाए गए उपायों को शामिल किया गया था, जिसमें सरकार द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहयोग और सब्सिडी शामिल थे. इस सूची में 600 एंट्रियां थी जिनमें लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों के तहत आने वाले कृषि, वन संवर्धन, मछली पालन, एक्वाकल्चर सेक्टर (इटली), प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना (भारत), कस्टम ड्यूटी के ब्याज़ भुगतान में देरी के चलते मोराटोरियम (स्विटज़रलैंड) भी शामिल था.

कोरोना महामारी के दौरान विश्व व्यापार संगठन ने ‘केंद्र बिंदु विकसित’ कर पीड़ित देशों के बीच उनकी नीतियों में समन्वय स्थापित करने का काम किया और ऐसे समन्वय में लगने वाले ट्रांजेक्शन कॉस्ट को कम करने, पारदर्शिता कायम करने और सभी देशों को सामूहिक तौर पर नीतियों की निगरानी करने में मदद की.

दुनिया भर में सप्लाई चेन के तहत एक दूसरे पर निर्भरता के आलोक में जो जानकारी संस्था द्वारा मुहैया करायी गई – खासकर महामारी की शुरुआती दिनों में जो ज़रूरी वस्तुएं तादाद में कम थी – जिस दौरान सदस्य देशों को उच्च स्तर की अनिश्चितता और दूसरे देशों के लगातार बदल रही व्यापार नीतियों से निपटने के लिए परस्पर सहयोग ज़रूरी थी – वो काफी अहम रहा.

बहुआयामी व्यापार समझौतों के तहत सदस्य देशों की भूमिका और जिम्मेदारियां

अंत में ट्रेड पॉलिसी रिव्यू के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने एक साथ महामारी से निपटने के लिए नीतियों की निगरानी को सफलतापूर्वक अंज़ाम दिया था. यह प्रक्रिया “व्यक्तिगत सदस्य की गतिविधियों और कारोबारी नीतियों की सामूहिक समीक्षा के लिए मौक़ा प्रदान करने वाला था”. हालांकि, यह महामारी को लेकर विशिष्ट योजना नहीं थी लेकिन इसका मक़सद “बहुआयामी व्यापार समझौतों के तहत सभी देशों द्वारा नियमों, अनुशासन और समझौतों के प्रति अपना योगदान“ देना था. इस बहुआयामी व्यापारिक व्यवस्था में एक सदस्य देश की स्थिति –“जो सदस्य देश के वस्तु और सेवाओं के वैश्विक क़ारोबार में हिस्सेदारी से तय होता है”– ऐसे रिव्यू की आवृति को निर्धारित करता है. इसी स्थिति के आधार पर हर दो साल या फिर छह सालों के लिए रिव्यू को अंज़ाम दिया जाता है. सामान्य रूप से इसकी उपयोगिता के अलावा यह प्रक्रिया महामारी को लेकर सदस्य देशों की प्रतिक्रिया की निगरानी करने में भी उपयोगी साबित हुआ. हाल ही में 6 और 8 जनवरी 2021 को भारत का ट्रेड पॉलिसी रिव्यू हुआ. इस रिव्यू में भारत के पिछले चार सालों की नीतियों की ही चर्चा नहीं की गई बल्कि महामारी को लेकर भारत की नीतियां जिसमें ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’, टैरिफ को लेकर उपाय, बिजली सेक्टर में भुगतान को लेकर देरी और कई तरह के पोर्ट चार्जेज के भुगतान की देरी भी शामिल किया गया.

दूसरे देशों में चीन, अर्जेंटीना, सिंगापुर, कोरिया और रूस का इसी साल ट्रेड पॉलिसी रिव्यू होना है, जहां विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश उनकी क़ारोबारी नीतियों से संबंधित सवाल सहित महामारी से निपटने संबंधी विशिष्ट सवाल कर सकते हैं. ट्रेड पॉलिसी रिव्यू प्रक्रिया इस तरह सदस्य देशों की नीतियों की सामूहिक निगरानी करने के अलावा इस बात को सुनिश्चित करने में मदद करता है कि महामारी की आड़ में कोई देश क़ारोबार संबंधी प्रतिबंध को लागू ना कर सके और व्यापारिक शर्तों की अनदेखी ना हो सके.

ऊपर के उदाहरण इस बात को साबित करते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान विश्व व्यापार संगठन ने ‘केंद्र बिंदु विकसित’ कर पीड़ित देशों के बीच उनकी नीतियों में समन्वय स्थापित करने का काम किया और ऐसे समन्वय में लगने वाले ट्रांजेक्शन कॉस्ट को कम करने, पारदर्शिता कायम करने और सभी देशों को सामूहिक तौर पर नीतियों की निगरानी करने में मदद की. सदस्य देश हालांकि व्यापारिक नीतियों के बीच द्विपक्षीय स्तर पर भी समन्वय स्थापित कर सकते हैं या फिर जी-20 जैसे छोटे समूहों के तहत या फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के मंच पर भी ऐसा कर सकते हैं, लेकिन विश्व व्यापार संगठन इन देशों को ऐसा मंच प्रदान करता है कि जहां 164 देश एक साथ आकर अपनी व्यापारिक नीतियों के बीच समन्वय स्थापित करने से लेकर उन पर चर्चा कर सकते हैं. इसलिए यह साफ दिखता है कि बावजूद विश्व व्यापार संगठन के सामने तमाम चुनौतियां पसरी हुई है जिसमें यक़ीन दिलाने वाली किसी अफ़साने की कमी भी शामिल है, यह संगठन अब तक प्रासंगिक साबित हुआ है और आतंरिक उलझनों के बाद भी दुनिया भर के अभूतपूर्व चुनौतियों का निपटारा कर रहा है.

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