Author : Anirban Sarma

Expert Speak Digital Frontiers
Published on May 04, 2024 Updated 0 Hours ago

भविष्य में DPI और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित विकास के प्रयासों के प्रति वैश्विक जागरूकता में उभार होते देखा जाएगा.

दक्षिण की ओर से दुनिया के लिए: भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर

ये लेख हमारी रायसीना क्रॉनिकल्स 2024 सीरीज़ का एक हिस्सा है


 

एक साल से कुछ ज़्यादा का वक़्त हुआ होगा, जब भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता का कार्यकाल शुरू होते ही ऐलान किया था कि डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) को बढ़ावा देना उसके कार्यकाल की प्राथमिकता होगा. विशेष रूप से भारत तकनीक को लेकर एक मानव केंद्रित नज़रिए की वकालत करने को उत्सुक था, और वो ‘DPI, वित्तीय समावेशन और तकनीक पर आधारित विकासजैसे आपस में जुड़े क्षेत्रों से जुड़े ज्ञान को अधिक से अधिक साझा करने को प्रोत्साहन देना चाहता था. ये ग्लोबल साउथ के हितों को ज़ोर शोर से उठाने, और विकासशील विश्व को एकजुट करने की ताक़त के तौर पर उभरने की भारत की कोशिशों के अनुरूप ही था.

 

2023 में G20 के अगुवा के तौर पर भारत ने G20 डिजिटल इकॉनमी वर्किंग ग्रुप, DPI पर एक नई उच्च स्तरीय टास्क फोर्स और G20 के कई संपर्क समूहों के माध्यम से DPI को लेकर वैश्विक स्तर पर जागरूकता का स्तर असाधारण रूप से उठाने का काम किया. आज DPI का मॉडल भारत की तरफ़ से मूल्यवान प्रस्तुति के तौर पर उभरा है, और दुनिया के बहुत से देश या तो इसे अपना रहे हैं, इसे अपने मुताबिक़ ढालकर लागू कर रहे हैं, या फिर ऐसा करने पर विचार कर रहे हैं. DPI को आज ग्लोबल साउथ में पैदा हुए एक ऐसे तकनीकी आविष्कार के तौर पर स्वीकार किया जा रहा है, जिसकी क्रांतिकारी बदलाव लाने की शक्तियां पूरी दुनिया पर असर डाल सकती हैं.

 

इस सीरीज़ को पूरा यहां पढ़ें.

 

भारत में आया बदलाव

 

आबादी के स्तर वाली बुनियादी तकनीकी व्यवस्था के तौर पर डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यक्तियों (डिजिटल पहचान व्यवस्था के ज़रिए), धन (वास्तविक समय में तुरंत भुगतान व्यवस्था के माध्यम से) और सूचना (सहमति पर आधारित, निजता की रक्षा करने वाली डेटा शेयरिंग व्यवस्था) के प्रवाह को सुगम बनाता है. इंडिया स्टैक की मूलभूत संरचना ने भारत को दुनिया का ऐसा पहला देश बनने में मदद की है, जो सभी तीन बुनियादी DPI यानी आधार की अनूठी पहचान, एकीकृत भुगतान के इंटरफेस (UPI) और डेटा एंपावरमेंट ऐंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) को विकसित कर सका है.

 

इन सबको मिला लें तो इन तीन परतों ने जनसेवा को पहुंचाने के तौर तरीक़े क्रांतिकारी तौर पर बदल दिए हैं और इनोवेशन का इतने बड़े पैमाने पर लोकतांत्रीकरण कर डाला है, जैसा पहले कभी देखा नहीं गया. आज भारत के 99.9 प्रतिशत व्यवस्क नागरिक आधार का इस्तेमाल जनसेवाएं हासिल करने के लिए कर रहे हैं; हर दिन भारतीय नागरिक UPI के ज़रिए 30 करोड़ से अधिक लेनदेन और भुगतान करते हैं; और, DEPA भारत में क़र्ज़ के मंज़र को बदल रहा है. अहम बात ये है, DPI अपनी इन परतों के आधार पर नए नए एप्लिकेशन विकसित करके सरकार और कारोबारियों को निजी औऱ सार्वजनिक क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा दे रहे हैं; और DPI में निहित खुलेपन के सिद्धांत, स्वास्थ्य, क़र्ज और कारोबार के क्षेत्रों में खुले नेटवर्क बनाने में मदद कर रहे हैं.

 

वैश्विक नेतृत्व की तरफ

 

अपनी कम कीमत और विस्तार की बुनियादी ख़ूबी की वजह से अन्य देशों के बीच DPI की संभावनाएं तलाशने और इन्हें स्थापित करने को लेकर काफ़ी दिलचस्पी दिखाई जा रही है. G20 जैसे मंचों ने भारत को इस बढ़ती दिलचस्पी का फ़ायदा उठाने का मौक़ा दिया है, और भारत इसके ज़रिए ठोस निष्कर्ष हासिल कर पा रहा है, या फिर कम से कम ऐसी कूटनीतिक घोषणाएं तो हो ही रही हैं, जो DPI की संभावनाओं को स्वीकार करती हैं.

 

विकास के नतीजों को रफ़्तार देने में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की अहमियत काफ़ी हद तक प्रदर्शित की जा चुकी है. भारत ने 2018 में मॉड्यूलर ओपन सोर्स आइडेंटिटी प्लेटफॉर्म (MOSIP) की स्थापना की थी, ताकि उन देशों की मदद कर सके, जो डिजिटल पहचान की बुनियादी व्यवस्थाओं का निर्माण करना चाह रहे हैं. आज 11 विकासशील देशों ने MOSIP को अपनाया है और वो अपनी राष्ट्रीय पहचान का प्लेटफॉर्म बनाने में भारत के अनुभव से सीख ले रहे हैं और इस प्रक्रिया से पूरी दुनिया में लगभग 9.5 करोड़ नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ हुआ है. G20 के अध्यक्ष के तौर पर भारत ने आठ विकासशील देशों के साथ सहमति पत्रों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनके तहत भारत इन देशों को इंडिया स्टैक का ढांचा मुफ़्त में उपलब्ध करा रहा है.

 

हालांकि, ये बात स्पष्ट है कि डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की अहमियत ग्लोबल साउथ के दायरे से कहीं आगे जाती है. मिसाल के तौर पर मई 2023 में, भारत और यूरोपीय संघ की ट्रेड ऐंड टेक्नोलॉजी काउंसिल नेखुली और डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के मामले में […] DPI की अहमियतको स्वीकार किया था; और दोनों पक्षों ने अपने अपने यहां के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक दूसरे के यहां लागू करने के मामले में सहयोग करने और तालमेल के लिए ज़रूरी सुधार पर भी सहमति जताई थी. उसी महीने जारी क्वाड नेताओं को बयान में भीहिंद प्रशांत के टिकाऊ विकासमें DPI में निहित संभावनाओं की तरफ़ ध्यान दिलाया गया था. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) ने भी अपने सदस्य देशों को इंडिया स्टैक का मूल्यांकन करने और अपनाने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया था.

 

किसी भी पैमाने पर तोलकर देखें, तो विकसित देशों के साथ DPI पर केंद्रित द्विपक्षीय संवाद भी काफ़ी प्रभावशाली नज़र आता है. पिछले साल जून में प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका के राजकीय दौरे के बाद, दोनों देशों ने ऐलान किया था कि वो ‘DPI को लागू करने के मामले में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने के लिएमिलकर काम करने का इरादा रखते हैं. इसी तरह भारत और जापान के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात में भी उन तकनीकी साझेदारियों में DPI पर ज़ोर देने की बात को शामिल किया था, जो एक मज़बूत और मुक्त हिंद प्रशांत के निर्माण का प्रयास कर रही हैं. और, पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान दोनों देश UPI के ज़रिए त्वरित भुगतान की सुविधा फ्रांस में भी उपलब्ध कराने पर सहमत हुए थे. इसका मक़सद सीमा के आर-पार बिना किसी बाधा के लेन-देन को बढ़ावा देना और फंड ट्रांसफर की लागत को कम करना था. इस क़दम से फ्रांस उन देशों की क़तार में शामिल एक नया देश बन गया, जिनके साथ भारत ने UPI से संबंधित समझौता किया है. फ्रांस के अलावा सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, हॉन्ग कॉन्ग, ओमान, क़तर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, नेपाल और भूटान के साथ भी भारत ने ऐसे समझौते किए हैं.

 

यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र और दूसरे बहुपक्षीय संगठनों जैसे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक ने भी एक सुर से DPI के तरीक़े का समर्थन किया है. कोविड-19 महामारी के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के ज़रिए दौरान भारत के 87 प्रतिशत ग़रीब परिवारों को सीधे नक़द मदद देने में DPI की भूमिका को मुद्रा कोष ने सराहा था. वहीं, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में ये निष्कर्ष निकाला गया था कि भारत के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर ने 2018 से 2023 के दौरान भारत के 80 प्रतिशत आबादी के वित्तीय समावेशन में मदद की है. ये एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे हासिल करने में शायद 50 साल लग जाते.

 

आगे और आगे बढ़ता सफर

 

रायसीना डायलॉग 2023 में अपने संबोधन के दौरान G20 में भारत के शेरपा रहे अमिताभ कांत ने DPI के उल्लेखनीय सफर को रेखांकित किया था और इसेभविष्य का मॉडलकरार दिया था, जिसनेउभरते हुए बाज़ारों का ऐसा आविष्कार जिसने दुनिया के विकसित हिस्से को पीछे छोड़ दियाहै. इस डिजिटल कामयाबी की गहराई से पड़ताल, लंबे समय से रायसीना डॉयलाग की प्राथमिकताओं में से एक रहा है, और हाल के वर्षों के दौरान ये डायलॉग DPI के बारे में अंतरराष्ट्रीय राय और अनुभवों को साझा करने का प्रमुख मंच बन गया है. ये रायसीना डायलॉग ही था, जहां इंडिया स्टैक और जनहित के डिजिटल ढांचे को लेकर शुरुआती परिचर्चाएं हुई थीं, और ये सम्मेलन अभी भी तकनीकी प्रगति और सहयोग के अवसरों से जुड़े विचारों का एक सजीव गोदाम बना हुआ है.

 

आज अंतरराष्ट्रीय समूह और कई देश निजी तौर पर भारत की अध्यक्षता में आई ऊर्जा को जारी रखने को उत्सुक हैं. ऐसे में आने वाले कुछ वर्षों के दौरान हम DPI के निर्माण के वैश्विक प्रयासों में और भी तेज़ी आते देखेंगे. 2023 में किए गए समझौतों को आगे बढ़ाते हुए भारत और यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा DPI के इर्द गिर्द सहयोग को और बढ़ाने की पूरी संभावना है और इसका ज़ोर अन्य देशों में क्षमताओं को मज़बूत बनाने पर होगा. निश्चित रूप से इस तरह का सहयोगात्मक कार्य, भारत और अमेरिका के ग्लोबल डिजिटल डेवलपमेंट पार्टनरशिप का बहु-प्रतीक्षित तत्व है.

 

G20 में भारत की अध्यक्षता के दौरान उच्च स्तरीय ’G20 फ्रेमवर्क फॉर सिस्टम ऑफ DPI’ को अपनाया गया था. इसमें DPI को तैयार करने और उन्हें लागू करने के सिद्धांतों को रेखांकित किया गया है. आज जब तमाम देश अपने अपने यहां के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की कार्य योजनाओं को लागू कर रहे हैं, तब इस रूप-रेखा के अपरिहार्य औज़ार के तौर पर उभरने की उम्मीद की जा रही है. भारत ने इसके साथ ज्ञान का एक और मंच स्थापित करने का वादा किया है, जो एक वर्चुअल ग्लोबल DPI रिपॉज़िटरी होगा, ताकि दुनिया भर से DPI पर केंद्रित औज़ार, संसाधन, व्यवहार और अनुभवों को एक जगह इकट्ठा किया जा सके. आज जब दुनिया 2030 की दिशा में आगे बढ़ रही है, तो समावेशी विकास, निर्बाध रूप से जनसेवा की उपलब्धता और डिजिटल इकॉनमी को आगे बढ़ाने में DPI का स्थापित प्रभाव इसकी वकालत का आधार बनेगा.

 

ऐसे संकेत हैं कि DPI के इर्द गिर्द जो उत्साह दिख रहा है, उसका असर ब्राज़ील की G20 अध्यक्षता में भी दिखेगा. ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुला के मुताबिक़, उनके देश की अध्यक्षताटिकाऊ विकास के एजेंडे के लिए एक अनूठा अवसरऔरभयंकर ग़रीबी और असमानता से मुक़ाबलाकरना ब्राज़ील की प्राथमिकता होगा. दुनिया के अन्य हिस्सों में DPI इन्हीं चुनौतियों से बहुत आसानी से निपट सका है. इसके अलावा, ब्राज़ील ने ख़ुद भी बड़ी आबादी के स्तर के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कामयाबियों का स्वाद चखा है; और ब्राज़ील के कुछ भागीदारों ने उसके डिजिटल सिस्टमों को भारत के DPI के तरीक़े से मेल बिठाने में दिलचस्पी दिखाई है. मिसाल के तौर पर ब्राज़ील का Pix, भारत के UPI के समान ही है; ब्राज़ील की जिस खुली वित्तीय व्यवस्था की बहुत तारीफ़ की जाती है, वो डेटा को सहमति के आधार पर साझा करने पर आधारित है, जो DEPA जैसा है; और, ये तर्क दिया जाता है कि कन्स्युमिडोर नाम की ब्राज़ील की विवादों के निपटारे की जो ऑनलाइन व्यवस्था वहां की सरकार ने शुरू की है, वो DPI के तौर पर अपनी पूरी संभावनाओं को हासिल कर सकती है, अगर इसमें खुले मानक या ऐसे ऐप्लिकेशन की प्रोग्रामिंग वाले इंटरफेस जोड़े जाएं, जिनसे मूल्य संवर्धित सेवाओं को बढ़ाया जा सके.

 

आगे चलकर, संभावना है कि भारत अधिक बारीकी से ये समझना चाहेगा कि DPI के क्षेत्र में अन्य देश क्या करना चाहते हैं. और कई मामलों में वो ऐसा पहले से कर भी रहे हैं और फिर भारत उन्हें ज़रूरी सहायता उपलब्ध कराएगा. MOSIP और अभी हाल के दिनों में साझेदार देशों के साथ सहमति पत्रों (MoUs) के माध्यम से सहयोग और ज्ञान साझा करने की अपनी विरासत को देखते हुए भारत ऐसा कर पाने की अच्छी स्थिति में है.

 

आखि़र में ये कहना ठीक रहेगा कि भविष्य में DPI और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित विकास के प्रयासों के प्रति वैश्विक जागरूकता में उभार होते देखा जाएगा. अगर डेटा की निजता और सुरक्षा के सिद्धांतों को मज़बूती से लागू किया जाए तो डेटा के बड़े भंडार, DPI के अहम तत्व हैं और AI के मॉडलों को प्रशिक्षित करने में ये बहुत अहम योगदान दे सकते हैं. मिसाल के तौर पर DEPA 2.0 के तहत भारत पहले ही कॉन्फिडेंशियल क्लीन रूम्स नाम के समाधान के प्रयोग कर रहा है. येकंप्यूटिंग के ऐसे सुरक्षित माहौल हैं, जहां मॉडल की ट्रेनिंग के लिए संवेदनशील डेटा को एल्गोरिद्म से नियंत्रित माहौल में हासिल किया जा सकेगा’. आज जब अधिक से अधिक देश इन तौर तरीक़ों को समझना और लागू करना शुरू कर रहे हैं, तो डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, AI पर आधारित समाधानों की नई लहर की शुरुआत कर सकते हैं.

 

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