Author : Ramanath Jha

Expert Speak India Matters
Published on Apr 15, 2024 Updated 0 Hours ago

भारतीय शहरों को और अधिक बेहतर बुनियादी ढांचों एवं आर्थिक अवसर देने के साथ रहने लायक होना चाहिए. 

भारत के शहरी विकास की कहानी में ‘पलायन’ की भूमिका

किसी व्यक्ति का अपने स्थायी निवास स्थल से किसी दूसरे स्थान की ओर हमेशा के लिये जाने की प्रक्रिया को ही पलायन कहते हैं. इस तरह की घटना देश के भीतर या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्थायी तौर पर हो सकता है. 2020 में, IOM यानी (इंटरनेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन) के अनुमान अनुसार, पूरी दुनिया में  281 मिलियन आबादी प्रवासियों की है. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि वैश्विक आबादी में 3.6 प्रतिशत संख्या अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की है. ये वर्ष 1990 की तुलना में ये 128 मिलियन अधिक है और 1970 में अपेक्षित संख्या का जो अनुमान लगाया गया था उसका तिगुना है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माइग्रेशन के अलावा ये प्रक्रिया वैयक्तिक और पारिवारिक स्तर पर भी लगातार घटना रहता है जहां लोग एक स्थान से हटकर दूसरी जगह पर रहने को चले जाते हैं. ऐसा अक्सर रोज़गार की तलाश में होता है.     

यह लेख, शहरी विकास पर हो रहे पलायन के प्रभाव की विवेचना करता है. चार कारकों की वजह से शहरी जनसांख्यिकी में वृद्धि दर्ज होती है.

पलायन स्वैच्छिक अथवा जबरन हो सकता है. स्वैच्छिक पलायन अक्सर बेहतर रोज़गार के अवसर यानी आर्थिक मौकों के लिए होता है. भारत में अमूमन युवा छात्रों को बेहतर अध्ययन या फिर रोज़गार की तलाश में पलायन करते हुए देखा जाता है, या फिर युवा पुरुष एवं महिलाओं का रोज़गार के लिये पलायन का गवाह रहा है. कई बार महिलायें और माता-पिता, दूर देश में काम कर रहे उनके पति, पिता, पुत्र के साथ काम करने अथवा साथ रहने को चले जाते हैं. बाकी अन्य वर्ग के लोग भी बेहतर जीवन शैली की चाह में शहरों की ओर कूच कर जाते हैं. दूसरी तरफ, स्थानीय जीवन में होने वाली कठिनाईयों से पीड़ित लोग भी  इनसे पार पाने के लिए  कई बार हालात से समझौता करते हुए  पलायन के लिये मजबूर हो जाते हैं.  

यह लेख, शहरी विकास पर हो रहे पलायन के प्रभाव की विवेचना करता है. चार कारकों की वजह से शहरी जनसांख्यिकी में वृद्धि दर्ज होती है. पहला कारक है आंतरिक प्रजनन अथवा शहर में रह रही आबादी की संख्या का प्राकृतिक तौर पर बढ़ना; दूसरा है शहरी सीमा में पेरी-अर्बन या ग्रामीण क्षेत्रों का लगातार हो रहा भौगोलिक विस्तार. तीसरा कारक है पुन:र्वर्गीकरण, जिसमें ग्रामीण बस्तियों को, प्रशासनिक तौर पर किसी गांव से नगर पालिका में परिवर्तित करके शहर के रूप में परिवर्तित किया जाता है. ये प्रमुख तौर पर एक पहले के गाँव में, उसकी बड़ी जनसंख्या, अधिक घनत्व, गैर-कृषि आर्थिक गतिविधि का ऊंचे प्रतिशत, और उसकी बढ़ती राजस्व क्षमता जैसे शहरी कारणों की वजह से संभव हो पाता है.  

भारत में, इनके शहरों में बाहर देशों से आने वाले प्रवासियों की संख्या काफी कम है और शहरी विकास की दिशा में इसे एक सार्थक कारक नहीं माना जा सकता है.

चौथा कारक पलायन है, जो कई तरीकों से होता है. जैसे- जब लोग देश के किसी गांव से शहर या नगर में बसने के लिये चले जाते हैं, या फिर एक शहर से किसी दूसरे शहर में पलायन कर लेते हैं और कई बार एक देश से किसी दूसरे देश के शहर में बस जाते हैं. हालांकि, ऐसे लोग भी होते हैं, जो किसी शहर विशेष को छोड़कर अन्य जगहों में रहने के लिये चले जाते हैं. 

पलायन की वजह?

शहर एवं शहरी विकास को पलायन की वजह से कई तरह के सकारात्मक योगदान मिलते हैं. पहला, ये कि इससे शहरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि होता है, और उसके बाद वो शहरी एवं देश की आर्थिक विकास में अपना योगदान करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक अप्रत्यक्ष परिणाम ये होता है कि पलायन के कारण कृषि पर जो अत्यधिक रोज़गार का बोझ है वो काफी हद तक कम होता है. वर्ष 2022 में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 42.86 प्रतिशत लोग कृषि आधारित रोज़गार पर निर्भर हैं.  

पलायन एक तरह से बेहतर कृषि उत्पादन में सहायक साबित होता है. इस अलावा शहर जो श्रम या मैनुअल लेबर की समस्या से जूझ रहे हैं, वे इन प्रवासियों के वहां आने से, उस कमी की भरपाई कर पा रहे हैं. उदाहरण के लिए, पिछले दशक में, प्रवासी कामगारों का अमेरिका के वर्क फोर्स यानी कि श्रम शक्ति लगभग 47 प्रतिशत और यूरोप में 70 प्रतिशत का योगदान रहा.  वहां इन प्रवासी कामगारों ने नए कौशल और व्यापार के साथ ही आर्थिक विविधीकरण और विकास में योगदान दिया.

बढ़ती उम्र या वृद्ध होती जनसंख्या वाले देशों में, प्रवासियों की मौजूदगी कामकाजी आबादी की उम्र की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज करते हैं. साथ ही वे, शहर के श्रम बाज़ारों में होने वाले असंतुलन को दूर करने में भी सहायक होते हैं. पेशेवर प्रवासी श्रम अपने साथ जानकारी, ज्ञान और विशिष्ट कौशल लेकर आते हैं जिनकी शहर में कमी थी और शहरों में गुणवत्ता और उत्पादन की प्रचुरता बढ़ाती है. ये आधुनिक अर्थनीति या अर्थव्यवस्था में नवाचार लाने का काम करते हैं, जिस कारण उनकी महत्ता बढ़ती है और वे इकोनॉमी के आधारस्तंभ बन जाते हैं. अमेरिका में नवाचार संबंधी हाल ही में किये गये अध्ययन में यह पाया गया है कि वहां उच्च कुशल प्रवासियों द्वारा ही किये गये खोज ही अमेरिकी नवाचार या इनोवेशन का केंद्र है. इन्हीं लोगों इन देशों में बदलाव और नई खोज का अलख जगा रखा है. लोगों के समूह के तौर पर, प्रवासी जनता न केवल इन शहरों की अर्थव्यवस्था को एक उत्पादक के तौर पर, बल्कि उपभोक्ता के तौर पर भी सहायता प्रदान करते हैं. इसके साथ ही, ये प्राप्तकर्ता देश को मानव संसाधन मुहैया कराते हैं, और दाता देश को पैसा भेजकर सहायता प्रदान करते हैं. सामाजिक तौर पर, वे शहरों को सामाजिक एवं सांस्कृतिक तौर पर ऊर्जावान बनाने में मदद करते हैं. ये मदद वे अपनी नए रिहायशी जगहों में विविधता और संस्कृति को जीवंत रखकर करते हैं.  

भारत में, इनके शहरों में बाहर देशों से आने वाले प्रवासियों की संख्या काफी कम है और शहरी विकास की दिशा में इसे एक सार्थक कारक नहीं माना जा सकता है. भारत के संदर्भ में IMO द्वारा दिये गये आँकड़े ये दर्शाते हैं कि देश के भीतर आने वाले प्रवासियों की तुलना में बाहर जाने वाले लोगों की तादाद काफी ज्य़ादा है. 1950 से लेकर वर्ष 2020 तक, भारत के बाहर जाने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की तुलना में भारत आने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या (-) 7.6 मिलियन रही है. इसके विपरीत 1950 से लेकर 2020 तक, अमेरिका में कुल (+)53.6 मिलियन प्रवासियों का आगमन हुआ है.  

अगर हम अंदरूनी कारणों को देखें तो पायेंगे कि भारत में पिछले तीन दशकों से, आधा से थोड़ा ज्य़ादा - प्राकृतिक वृद्धि ही शहरीकरण की सबसे बड़ी वजह रही है. पुन:र्वर्गीकरण, विलय, और अन्य कारण एक साथ मिलकर, इस कुल वृद्धि का लगभग एक चौथाई बनते हैं. पलायन, कुल शहरी वृद्धि का पांचवां हिस्सा बनता है. भारत सरकार की राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, रोज़गार और विवाह संबंधी प्रवास के लिये ज़िम्मेदार दो प्रमुख वजहें रहीं हैं.   

प्रचलित धारणा के विपरीत, पिछले कई दशकों से, भारत के शहरीकरण ने वो गति नहीं पकड़ी है, जो उसे पकड़ना चाहिए था. 1950 से अब तक ऐसा कोई दशक नहीं रहा है जिसमें दशकीय जनगणना में 3.88 प्रतिशत (2011-सेंसस) से ज्य़ादा का शहरी विकास दर्ज हुआ हो. इसके उलट, उसने वर्ष 1951 – 1961 के दशक के दौरान 0.68 प्रतिशत की दशकीय गिरावट दर्ज की है. ये प्रवृत्ति कहती है कि प्राकृतिक वृद्धि या पुनः वर्गीकरण से शहरीकरण में तेज़ी नहीं आयेगी.

अमेरिका का सबसे प्रबुद्ध एवं उत्पादक समूह, भारतीय प्रवासियों का है, जो उत्पादक एवं कार्य दक्षता के मामले में, दूसरों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, और चिकित्सा, स्पेस, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, शिक्षा और राजनीति जैसे क्षेत्रों में अपने शानदार प्रदर्शन दर्ज कर रहे हैं.  

चूंकि, भारत में प्रजनन दर लगातार गिर रहा है, ये उम्मीद करना जायज़ होगा कि प्राकृतिक वृद्धि द्वारा होने वाले शहरीकरण में भी गिरावट की प्रवृत्ति दर्ज होगी. किसी भी सूरत में, वो शायद ही अपने वर्तमान के स्तर से बेहतर आंकड़े दर्ज करेगी. शुद्ध पुनःवर्गीकरण के ज़रिए होने वाले शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों का नगरों और शहरों में विलय, शहरीकरण के लिये ज़रूरी अतिरिक्त गति प्राप्त करने में सक्षम नहीं है, ये बात पहले मिले आंकड़ों से साफ होता है.    

आगे की राह 

इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि, प्रवासियों मुहैय्या करायी जाने वाली गुणवत्ता को कुछ हद तक अंतराष्ट्रीय प्रवासियों के द्वारा मुख्य नॉलेज क्षेत्र और उद्योगों में उनके द्वारा दिये जा रहे योगदान, और बाकी उन भारतीय प्रवासियों द्वारा बेहतर किया जा सकता है, जिन्होंने रोज़गार और करियर के लिये देश छोड़ दिया था. उदाहरण के तौर पर- विदेशों खासकर अमेरिका में बसे भारतीय नागरिकों का योगदान वहां की अर्थव्यवस्था में सबसे ज़्यादा माना जाता है.   अमेरिका का सबसे प्रबुद्ध एवं उत्पादक समूह, भारतीय प्रवासियों का है, जो उत्पादक एवं कार्य दक्षता के मामले में, दूसरों से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, और चिकित्सा, स्पेस, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, शिक्षा और राजनीति जैसे क्षेत्रों में अपने शानदार प्रदर्शन दर्ज कर रहे हैं.  

विदेशी प्रतिभा को आकर्षित करने की क्षमता का असर, कहीं न कहीं भारत से बाहर के देशों में जाने वाली पलायन पर पड़ता है, और इसकी वजह से अगर हम अपने गांवों से शहर आने वाले कुशल और अकुशल कामगारों की संख्या में तेज़ी लाना चाहते हैं तो हमें बिना देरी किये दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है. पहला ये कि हमारे शहरों को इन प्रवासियों मज़दूरों और कामगारों को बेहतर गुणवत्ता वाली जीवन शैली देनी होगी, और उनके जीवन यापन करने लायक शहरों का निर्माण करना होगा.   

इसके लिए बड़े पैमाने पर भौतिक, सामाजिक एवं मनोरंजन के बुनियादी ढांचों का निर्माण किए जाने की ज़रूरत है. गतिशील ग्रामीण-शहरी पलायन के लिए, एक व्यापक आर्थिक निवेश एवं विकेंद्रीकृत शहरीकरण की कोशिशों को ज़रिये कई अन्य भारतीय शहरों में रोज़गार के और भी बेहतर अवसरों का सृजन करना होगा. भारत के सुस्त-शहरी विकास को पुनः सक्रिय एवं स्फूर्त किए जाने की तत्काल आवश्यकता है.

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