Author : Oommen C. Kurian

Published on Nov 15, 2021 Updated 0 Hours ago

सबसे कमज़ोर और असुरक्षित तबके को साधने के लिए सतत विकास, जलवायु अभियान और कोविड-19 से उबरने के कॉमन एजेंडे को बेहतर तरीके से पंक्तिबद्ध करने की आवश्यकता है.

जलवायु और स्वास्थ्य लक्ष्यों का समायोजन

कोविड-19 महामारी ने जलवायु अभियान पर चल रहे सामूहिक प्रयासों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. विपत्तियों के समक्ष यह प्रयास स्रोतों तक समान पहुंच, न्यायसंगत उपयोग और प्लानिंग, नाज़ुक इंफ्रास्ट्रक्चर की मज़बूती और कमज़ोर वर्गों को समर्थ बनाने की ज़रूरत को रेखांकित करते हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने खड़े बहुआयामी कठिनाइयों ने, जिसमें कोविड-19 महामारी भी शामिल है, सभी देशों के लिए भावी नीतियों को अपनाना अनिवार्य कर दिया है जिससे सतत परिवर्तन, संयोजन और लचीलापन पर तेज़ी से कार्य करने के साथ ही उच्च क्षमता और गुणवत्ता हासिल करने के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था को प्रोत्साहन देना होगा. इसके लिए, ग्लासगो में हुआ 2021 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (COP26), देशों को सतत विकास के लेंस के माध्यम से महामारी के बाद उबरने के लिए एक अवसर प्रदान करता है.

जलवायु परिवर्तन उभरती स्वास्थ्य समस्याओं जैसे वायु प्रदूषण से जुड़ी कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियों और सांस संबंधी रोगों को और बढ़ा देगा. 

जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम

रिसर्च से पता चलता है कि, एशिया महाद्वीप मौसम संबंधी आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित है- 1990 और 2016 के बीच इस तरह की करीब 2,843 घटनाएं हैं, जिसने 4.8 बिलियन लोगों को प्रभावित किया और 505,013 ज़िन्दगियां ले ली. प्राकृतिक आपदाओं से मौतें अधिकतर गरीब देशों में केंद्रित हैं.[i] जलवायु परिवर्तन से तापमान में हुई वृद्धि, व्यावसायिक स्वास्थ्य और श्रम उत्पादकता के लिए गहरा खतरा उत्पन्न करते हैं, विशेषकर उन लोगों के लिए जो गरम इलाकों में आउटडोर मैनुअल लेबर का काम करते हैं. साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण श्रम क्षमता में सबसे ज़्यादा आयी कमी में दक्षिणपूर्वी एशिया क्षेत्र शामिल है. स्वास्थ्य को लेकर जलवायु सूचना सेवाएं- यानि लक्षित या अनुरूप जलवायु सूचना, उत्पाद और सेवाएं जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहायक होंगे- दक्षिणपूर्व एशिया में सबसे कम रहीं. [ii]

2030 तक, जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर अपरिवर्तनीय प्रतिकूल प्रभाव, वैश्विक दरिद्रता न्यूनीकरण की कई नीतियों को विफल कर देगा और 100 मिलियन से अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल देगा. जलवायु परिवर्तन उभरती स्वास्थ्य समस्याओं जैसे वायु प्रदूषण से जुड़ी कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियों और सांस संबंधी रोगों को और बढ़ा देगा. मौसम की तीव्र घटनाओं की आवृत्ति में बढ़ोतरी, सुमद्र का बढ़ता जलस्तर, तापमान में वृद्धि और वर्षण का बदलता पैटर्न भी प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों का कारण बनेगा.

विभिन्न डिग्री के एक्सपोज़र, संवेदनशीलता और अलग-अलग क्षेत्रों की संयोजन क्षमता के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर एकसमान रूप से नहीं फैलेगा. 

इस बात की संभावना है कि जलवायु परिवर्तन तीव्र मौसम संबंधी घटनाओं से जुड़े स्वास्थ्य ज़ोखिमों को बढ़ाएगा, जो अब नियमित, प्रचंड, लंबे समय तक हो रहा है और जिसकी ज़्यादा स्थानिक सीमा है. यूवी रेडिएशन में इज़ाफा, बढ़ता वायु प्रदूषण, बढ़ते खाद्य और जल से दूषण, मूषकों और वेक्टर जनित संक्रामक रोगों का विस्तार या पुन:उभरना और संवेदनशील आबादी के सामने तेज़ी से खड़ी हो रही स्वास्थ्य चुनौतियां जलवायु परिवर्तन के कुछ अतिरिक्त ज़ोखिम हैं. इसके अतिरिक्त, जलवायु में बदलाव से जुड़ा तीव्र मौसम अस्पताल भवनों को नष्ट कर सकता है, बिजली और पानी में कटौती और पहली पंक्ति में हेल्थकेयर की आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है क्योंकि बाधित मार्ग आपूर्ति और आवश्यक सेवाओं (जैसे ऊर्जा और जल आपूर्ति) तक पहुंच को सीमित करने के साथ ही मरीज़ तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने में बाधा बन सकता है.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 2030 और 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन के कारण कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी से सालाना करीब 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है. 2030 तक स्वास्थ्य पर सीधे होने वाले नुकसान की कीमत हर साल 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच होने का अनुमान है. समूचा विश्व समुदाय अत्यधिक गर्मी, बीमारियों के बदलते स्वरूप, आपदाओं के साथ ही खाद्य और जल सुरक्षा पर ग्लोबल वॉर्मिंग के संभावित विनाशकारी प्रभावों से उत्पन्न स्वास्थ्य ज़ोखिमों से जूझ रहा है. हालांकि विभिन्न डिग्री के एक्सपोज़र, संवेदनशीलता और अलग-अलग क्षेत्रों की संयोजन क्षमता के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का असर एकसमान रूप से नहीं फैलेगा.

स्वास्थ्य के निर्धारक, जलवायु परिवर्तन के बहु सामाजिक और पर्यावरणीय असर से प्रभावित हो रहे हैं जो वायु प्रदूषण की दुर्दशा, तापमान में तीव्र उतार चढ़ाव, पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल की कमी, खाद्य असुरक्षा और अभाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता के रूप में सामने आ रहा है. प्राकृतिक आपदाएं और वर्षा का परिवर्तनशील पैटर्न भी आवश्यक सेवाओं और मेडिकल सुविधाओं को प्रभावित कर रहा है और संपत्ति और खाद्य स्रोतों को नष्ट कर रहा है.

अत्यधिक तापमान सीधे तौर पर कार्डियोवैस्क्यूलर और सांस की बीमारियों से जुड़ा है, विशेषकर बुज़ुर्गों में, जो ओज़ोन के बढ़ते स्तर और वायुमंडल में अन्य प्रदूषकों से और भी बढ़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, 2003 में गर्मी के मौसम में हीटवेव के दौरान यूरोप में 70,000 से अधिक मौतें रिकॉर्ड की गई थीं, और सूक्ष्म कणिका तत्वों के बीच लंबा एक्सपोज़र क्रोनिक ब्रोंकाइटिस की बढ़ती संख्या, फेफड़ों की घटती कार्यक्षमता और फेफड़ों के कैंसर और हृदय रोगों से बढ़ती मृत्यु दर से संबंधित हैं. इसके अलावा, जलवायु से जुड़ी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या 1960 से तीन गुना अधिक बढ़ गई है.

GHG उत्सर्जन को नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता से आगे, विकसित अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद पहुंचाने के लिए वित्त स्रोतों को भी तैयार करना चाहिए, ख़ासकर महामारी के दौरान. 

चूंकि दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी समुद्र से 60 किलोमीटर के भीतर रहती है, प्राकृतिक आपदा और अधिक गरम तापमान ज़िन्दगियों और आजीविका पर खतरा बना हुआ है और बार-बार संक्रामक बीमारियां (जल जनित बीमारियां जैसे हैजा और डायरिया के रोग जैसे giardiasis, salmonellois और cryptosporidiosis) और मानसिक स्वास्थ्य विकार (जैसे पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर) होने का कारण बन सकता है.

स्थायी असमानता

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोविड-19 के सभी वैक्सीन का 87 प्रतिशत दुनिया के संपन्न देशों में लगाया गया है, जबकि कम आय वाले देशों को केवल 0.2 प्रतिशत वैक्सीन की आपूर्ति हुई है. विशेष रूप से, उप-सहारा अफ्रीका की एक प्रतिशत से कम आबादी का टीकाकरण हुआ है. People’s Vacine Alliance के मुताबिक, संपन्न देश हर सेकेंड एक व्यक्ति का टीकाकरण कर रहे हैं, जबकि अधिकतर पिछड़े देशों में पहला डोज़ ही नहीं लग पाया है.

COP26 की मंत्रणा में निष्पक्षता अब और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐतिहासिक पेरिस समझौते के कई घटकों की डेडलाइन 2020 तक थी.

COP26 ने दिया देशों के बीच भरोसा और तालमेल के पुनर्निर्माण का अवसर

COP26 ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने पर चर्चा करने, महामारी के बीच ‘बेहतर पुनर्निर्माण’ (building back better) का एक अवसर प्रदान किया, और यह सुनिश्चित किया कि लचीलेपन और प्रतिलाभ के दोहरे एजेंडे को आघात पहुंचाने वाली परस्पर संबद्ध असमता को भी ध्यान में रखा जाए. हालांकि, अधिकारहीन समुदायों और सिविल सोसायटी संगठनों ने महामारी के दौरान लागू किये गए वीज़ा और यात्रा नियमों के पालन का अधिक दंश सहा होगा क्योंकि ग्लोबल साउथ के कई देश यूके के ट्रैवल रेड-लिस्ट में हैं और कई लोग समय पर टीका न लगवाने के कारण जलवायु पर विचार विमर्श में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं हो सके. इसके अलावा, महामारी से दुनियाभर में आये आर्थिक संकट ने जलवायु वित्तपोषण पर भी प्रभाव डाला है जो विकासशील, संवेदनशील देशों की ज़रूरत है. मौसम की प्रचंड घटनाएं और स्वास्थ्य संकट को कोविड-19 महामारी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से जोड़ा जाएगा. GHG उत्सर्जन को नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता से आगे, विकसित अर्थव्यवस्थाओं को कमज़ोर देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद पहुंचाने के लिए वित्त स्रोतों को भी तैयार करना चाहिए, ख़ासकर महामारी के दौरान. COP26 ने देशों के बीच भरोसा और तालमेल के पुनर्निर्माण का एक अवसर दिया है और राजनीतिक मनोयोग और आर्थिक प्रतिबद्धता को आगे ले जाता है जो वृहद जलवायु अभियान को जारी रखने के लिए ज़रूरी है.

सतत भविष्य की दिशा में      

COP26 शिखर सम्मेलन में पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन को कम करने के देशों की प्रतिज्ञाओं पर विचार किया गया. महामारी ने जीवन के लिए ज़ोखिमभरे संकटों में द्रुत, लक्षित और संयुक्त प्रयासों की व्याख्या की है. इस अनुभव से मिले सबक को जलवायु अभियान को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, ऐसा इसलिए क्योंकि वैश्विक असमानता में विस्तार और बढ़ते अंतर के कारण जलवायु परिवर्तन और वैश्विक महामारी के परिणाम दोनों में परस्पर जुड़ाव एक समान है. पूरे विश्व में नये आर्थिक आदर्शों के क्रम में अन्य व्यापक विकल्पों के साथ ही ग्रीन न्यू डील को अपनाना और लागू करना अनिवार्य है ताकि अव्यावहारिक विकास नीतियों में सुधार किया जा सके जो पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय सुरक्षा कानूनों पर खतरा बना हुआ है और श्रमिकों के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था को खोखला करते हैं. जलवायु की समस्याओं का समाधान करने के लिए उत्पादन, उपभोग और वाणिज्य प्रणाली और मानव-प्रकृति संबंधों का निरीक्षण ज़रूरी है.

समानांतर में, महामारी ने सौर, बैटरी या विद्युत स्रोतों के इस्तेमाल से चलने वाले वाहनों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार को भी प्रभावित किया है. विकास, क्लीन एनर्जी तकनीनों की तैनाती और एकीकरण– जैसे सौर, हवा, हाईड्रोजन, बैट्रीज़ और कार्बन अभिग्रहण- को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश को महामारी से निपटने की नीतियों के केंद्र में होना चाहिए क्योंकि इससे अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने और क्लीन एनर्जी में बदलाव में तेज़ी आने के दोहरे फायदे मिलेंगे. COP26 में विचार विमर्श ने भाग लेने वाले देशों के लिए सतत विकास परिवर्तनों को बढ़ावा देने की योजना और प्रतिबद्धता के लिए व्यापक संभावनाओं को पेश किया है.

कोविड-19 के अनुभव ने शायद ‘वैश्विक एकजुटता’ के नैरेटिव को हमेशा के लिए प्रभावित कर दिया है. वैश्विक वैक्सीन वितरण पर एक सरसरी नज़र सिस्टम में निहित असमानताओं और इसको लेकर किये गए नाकाफी उपायों को उजागर कर देगा. कोविड-19 महामारी के नतीजों ने आय, स्वास्थ्य और स्रोतों तक पहुंच जैसे मानव विकास के बिल्डिंग ब्लॉक्स पर आघात किया है. इस संकट पर प्रतिक्रिया की विशालता से सभी को मौजूदा और नयी असमता के निपटने के लिए प्रेरित होना चाहिए ताकि जलवायु परिवर्तन के अत्यंत बुरे प्रभावों को कम किया जा सके. सबसे कमज़ोर तबके को साधने और ज़्यादा स्वस्थ, सुरक्षित और सतत विश्व की दिशा में बदलाव के लिए सतत विकास, जलवायु अभियान और कोविड-19 से उबरने के कॉमन एजेंडे को बेहतर तरीके से पंक्तिबद्ध करने की आवश्यकता है

Download the PDF of the report here.


Bhavya Pandey is a Research Intern at ORF’s Centre for New Economic Diplomacy and Oommen C Kurian is a Senior Fellow with the Health Initiative at ORF.


[1] Nick Watts et al., “The Lancet Countdown on health and climate change: from 25 years of inaction to a global transformation for public health”, The Lancet (2017)

[ii] Watts, “The Lancet Countdown on health and climate change: from 25 years of inaction to a global transformation for public health”

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