Published on Dec 10, 2022 Updated 0 Hours ago
चीन का ‘हिंद महासागर’ क्षेत्र मंच, यानी इलाके में बढ़ती आक्रामकता का ताज़ा संकेत!

हाल ही में चीन ने घोषणा की थी कि उसने, 21 नवंबर को अपने दक्षिणी पश्चिमी प्रांत युन्नान के कुनमिंग शहर में, 19 सदस्य देशों वाले ‘चीन- हिंद महासागर क्षेत्र मंच (IOR) की पहली बैठक की मेज़बानी की थी, जिसमें मुख्य देश भारत ही शामिल नहीं था.’ हालांकि, चीन की इस घोषणा के फ़ौरन बाद मालदीव और ऑस्ट्रेलिया ने एक के बाद एक चीन द्वारा आयोजित इस मंच में भाग लेने के दावे को ख़ारिज किया. ख़बर ये है कि चीन ने अपनी सूची में जिन देशों के नाम गिनाए थे, उनमें से कई और ने भी ऐसा ही किया है. इसके बाद, चीन द्वारा किए गए दावों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं.

मालदीव ने स्पष्टीकरण दिया है कि चीन द्वारा बुलाई गई इस बैठक में उसके किसी आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल में हिस्सा नहीं लिया है. इसके साथ साथ, मालदीव ने अपने बयान में ये भी कहा कि अगर उसके यहां के किसी नागरिक, या कई नागरिकों ने ऐसे मंच में भागीदारी की भी है, तो उसका ये मतलब बिल्कुल नहीं कि वो मालदीव की सरकार का आधिकारिक प्रतिनिधित्व कर रहे थे. इसके अलावा, मालदीव के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि, ख़ास इस मामले में 15 नवंबर को इब्राहिम सोलिह की सरकार ने अपने यहां के चीनी दूतावास को अपने इस फ़ैसले की सूचना दे दी थी कि वो इस मंच में शामिल नहीं होगा.

ऑस्ट्रेलिया को इस बात से बेहद ख़ुशी हुई थी कि इसका उपाध्यक्ष बनने की भारत की याचिका को आम सहमति से स्वीकार कर लिया गया था. हम आपस में एक स्थायी हित साझा करते हैं कि: हिंद प्रशांत क्षेत्र को एक स्वतंत्र, मुक्त नियम आधारित और सुरक्षित होना चाहिए.

मालदीव के बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी स्पष्टीकरण जारी किया कि उसने चीन द्वारा आयोजित इस मंच की बैठक में शिरकत नहीं की. भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ’ फैरेल ने ट्वीट किया कि, ‘मीडिया की ख़बरों के उलट, चीन के कुनमिंग में विकास में सहयोग के मसले पर बुलाई गई चीन- हिंद महासागर क्षेत्रीय मंच की बैठक में ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कोई सरकारी पदाधिकारी शामिल नहीं हुआ.’ ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त ने ट्वीट में ये भी जोड़ा कि, ‘@TimWattsMP ने पिछले हफ़्ते ही #IORA के हिंद महासागर के लिए मंत्रिस्तरीय मंच की बैठक में शिरकत की थी. ऑस्ट्रेलिया को इस बात से बेहद ख़ुशी हुई थी कि इसका उपाध्यक्ष बनने की भारत की याचिका को आम सहमति से स्वीकार कर लिया गया था. हम आपस में एक स्थायी हित साझा करते हैं कि: हिंद प्रशांत क्षेत्र को एक स्वतंत्र, मुक्त नियम आधारित और सुरक्षित होना चाहिए.’

ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने वही बात दोहराई जो हिंद महासागर के इर्द गिर्द बसे अन्य कई देश कहते रहे हैं कि हिंद महासागर क्षेत्र से जुड़े मसलों पर चीन या इस क्षेत्र के बाहर की किसी अन्य ताक़त के साथ संवाद की पहली शर्त यही होनी चाहिए. ये देश पहले से ही भारत के सरकार के स्तर के इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) के सदस्त हैं, जिसकी स्थापना दो दशक से भी पहले की गई थी. जिसका एक आधिकारिक घोषणापत्र, किरदार और ढांचा है. जिसकी अध्यक्षता सदस्य देशों के बीच उस तरह घूमती रहती जैसी ऐसे किसी भी क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय संवाद के मंच में होता है.

क्या चीन ने USAID से प्रेरणा ली है?

ऐसी सूचना है कि कुनमिंग सम्मेलन में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति वहीद हसन मानिक और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड ने शिरकत की थी. बैठक के बाद जारी चीन के बयान में कहा गया था कि ये एक मिला जुला संवाद था, जिसका आयोजन ‘चाइना इंटरनेशनल डेवेलपमेंट को-ऑपरेशन एजेंसी (CIDCA)’ ने किया था. इस एजेंसी का गठन 2018 में किया गया था और इस वक़्त एजेंसी (CIDCA) की कमान, चीन के पूर्व उप विदेश मंत्री लुओ झाओहुई के पास है, जो अभी हाल के दिनों तक भारत में चीन के राजदूत रहे थे और उसके पहले पाकिस्तान में भी राजदूत रहे थे.

इस साल जनवरी में श्रीलंका के दौरे के दौरान चीन के विदेश मंत्री वैंग यी ने हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के विकास के लिए एक और मंच की स्थापना का प्रस्ताव रखा/ घोषणा की थी. वैंग यी ने कहा था कि इस मंच के ज़रिए ‘साझा विकास को बढ़ावा दिया जाएगा और आम सहमति और तालमेल’ को बढ़ाया जाएगा. बाद में चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि कुनमिंग का सम्मेलन इसी योजना का ही एक हिस्सा था. लेकिन चीन के मंच के सभी मौजूदा सदस्य द्वीपीय देश नहीं हैं, जैसा वैंग यी ने कोलंबो में कहा था. इनमें से कई देश तो चारों तरफ़ से ज़मीन से घिरे हैं और हिंद महासागर से लगने वाले देश हैं ही नहीं.

USAID को अमेरिकी प्रशासन की स्वविकास संबंधी वित्त की स्वतंत्र शाखा कहा जाता है. CIDCA की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, इस संगठन का लक्ष्य, विदेशी मदद से जुड़े मुद्दों के लिए योजनाएं, नीतियां और सामरिक दिशा-निर्देश तैयार करना है.

एक तरह से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि CIDCA ने अमेरिका के USAID से प्रेरणा ली है और वो अपने विवादित बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव से एक क़दम आगे बढ़ा है. USAID को अमेरिकी प्रशासन की स्वविकास संबंधी वित्त की स्वतंत्र शाखा कहा जाता है. CIDCA की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, इस संगठन का लक्ष्य, विदेशी मदद से जुड़े मुद्दों के लिए योजनाएं, नीतियां और सामरिक दिशा-निर्देश तैयार करना है. इसके अलावा इस संस्था का मक़सद किसी बड़ी विदेशी मदद में तालमेल बिठाना और सलाह देना, विदेशी मदद के मामले में चीन के सुधारों को आगे बढ़ाना और बड़े कार्यक्रमों की पहचान करके, उनकी निगरानी करना और लागू करने की व्यवस्था का मूल्यांकन करना है.

कुनमिंग में चीन के एक बयान में कहा गया था कि CIDCA के सदस्य देश ‘नीतिगत समन्वय को मज़बूत करने, विकास के सहयोग को बढ़ाने, आपदा और झटकों से निपटने की ताक़त और लचीलापन बढ़ाने, और कुछ देशों की समुद्री संसाधनों जैसे कि मछली, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा, पर्यटन और समुद्री यातायात को टिकाऊ तरीक़े से बढ़ाकर प्रासंगिक देशों की क्षमता का विस्तार करने’ जैसे मसलों पर सहयोग बढ़ाने के लिए सहमत हो गए हैं. इसके अलावा CIDC ने अपने बयान में कहा कि, वो अपनी ओर से चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र के अन्य देशों के साथ मिलकर, ‘समुद्री आपदा निषेध और शमन सहयोग की व्यवस्था बनाने’ का प्रस्ताव रखा और कहा कि वो इसके लिए ज़रूरतमंद देशों को आवश्यक वित्तीय, संसाधन और तकनीकी सहयोग देने के लिए तैयार है.’

चीन ने ‘युन्नान की मदद से हिंद महासागर क्षेत्र के देशों और अपने लिए ब्लू इकॉनमी थिंक टैंक नेटवर्क की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा…’ चीन ने अफ्रीका के साथ मिलकर सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर स्थापित किया हुआ है. उसने देशों से कहा कि वो ‘सुरक्षा के लिए ग़ैर पारंपरिक ख़तरों का मिलकर सामना करें और वैश्विक विकास सहयोग में भी भागीदार बनें ताकि, एक समेकित, समान, संतुलित और समावेशी वैश्विक विकास की साझेदारी बनाई जा सके.’

संवाद के साझीदार

चीन के दावों के मुताबिक़, कुनमिंग सम्मेलन में इंडोनेशिया, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, ओमान, दक्षिण अफ्रीका, कीनिया, मोज़ांबीक़, तंज़ानिया, सेशेल्स, मैडागास्कर, मॉरीशस, जिबूती और ऑस्ट्रेलिया शामिल हुए थे. एक तरह से चीन का ये मंच ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA)’ का जवाब है. जबकि IORA की स्थापना 1997 में हिंद महासागर से लगे 23 देशो के साथ मिलकर की गई थी. इनमें से सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, कोमोरोस और सोमालिया को ‘चीन की अगुवाई वाले हिंद महासागर क्षेत्र के विशिष्ट मंच’ में जगह नहीं मिली है. ये बात समझ से परे है कि चीन, जो हिंद महासागर से बहुत दूर स्थित है, वो IORA के समानांतर एक नए मंच को बढ़ावा क्यों देना चाहता है, वो भी तब जब ख़ुद चीन IORA का ‘डायलॉग पार्टनर’ है. IORA में शामिल संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का चीन की सूची से ग़ायब रहना भी हैरान करने वाला है. खाड़ी के दो और देश, ईरान और ओमान, दोनों ही मंचों के सदस्य हैं. अब ये अच्छी बात है या ख़राब, लेकिन भारत के उत्तर और पश्चिम में स्थित अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल जिनकी भारत से थलीय सीमा मिलती है और जो IORA के सदस्य नहीं हैं, उन्हें भी चीन प्रायोजित मंच में जगह मिली है. इसी तरह जिबूती, जो IORA का सदस्य नहीं है, उसे भी चीन प्रायोजित हिंद महासागर क्षेत्रीय मंच (IOR) में जगह मिल गई है. यहां ये याद दिलाने वाली बात है कि जिबूती में चीन की नौसेना की मदद के लिए एक अड्डा बनाया गया है. अमेरिका, फ्रांस, जापान और इटली के बाद, जिबूती में सैन्य अड्डा बनाने वाला चीन नया देश है.

पता चलता है कि वो पहुंच और आधिपत्य के मामले में अमेरिका से बराबरी करने की महत्वाकांक्षा रखता है और इन प्रयासों के ज़रिए चीन अपने आपको भू-आर्थिक, भू-राजनीतिक और भू-सामरिक मामलों में अमेरिका के मुक़ाबले खड़ा करना चाहता है.

बिना राजा वाली रियासत

इस तरह से चीन की पहल को केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2015 में मॉरीशस में पेश किए गए भारत की सागर (सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फ़ॉर आल इन द रीजन SAGAR) के तुलनात्मक प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जा सकता है. भारत की इस पहल को उसकी ‘पड़ोसी पहले’ और ऐसी ही अन्य पहलों जैसे कि ‘प्रोजेक्ट मौसम’ और ‘इंटीग्रेटेड कोस्टल सर्विलांस सिस्टम’ (जिसे अब मॉरीशस से साझा किया जा रहा है) के ज़रिए लागू किया जा रहा है. ये सारी कोशिशें हिंद महासागर तक सीमित हैं, जहां चीन के उलट भारत का वाजिब दावा बनता है.

वहीं दूसरी ओर, चीन की पहल भारत द्वारा चीन के कई क्षेत्रों में फैले, बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल होने के प्रस्ताव को ख़ारिज करने का देर से दिया गया जवाब ज़्यादा लग रहा है. भारत इसके उद्घाटन कार्यक्रम से भी ये कहते हुए दूर रहा था कि, चीन की ये योजना ‘संप्रभुता, प्रक्रिया और नेतृत्व’ के विवादित मुद्दों से जुड़ी है. भारत ने ख़ास तौर से BRI के फंड से बनाए जा रहे, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से जुड़ी परियोजनाओं पर ऐतराज़ जताया था क्योंकि ये योजनाएं पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (POK) से होकर गुज़रती थीं, जो सैद्धांतिक रूप से भारत का इलाक़ा है.

इन सब बातों के अलावा, बिना भारत का कोई भी हिंद महासागर क्षेत्रीय मंच वैसा ही है जैसे बिना राजा की रियासत. हालांकि ये बात हैरान नहीं करती, क्योंकि चीन ने तो 2015 में ही ये दावा किया था कि ‘हिंद महासागर, भारत का महासागर नहीं है’. ये बात चीन तब कह रहा था, जब वो ख़ुद साउथ और ईस्ट चाइना सी में विवादित इलाक़ों पर अपना दावा इस तरह ठोकता है, जैसे वो उसकी बपौती वाले समुद्री क्षेत्र हों, जबकि ऐसा है नहीं.

एक तरह से ये पहल चीन के बेलगाम लालच का प्रतीक है. इससे ये भी पता चलता है कि वो पहुंच और आधिपत्य के मामले में अमेरिका से बराबरी करने की महत्वाकांक्षा रखता है और इन प्रयासों के ज़रिए चीन अपने आपको भू-आर्थिक, भू-राजनीतिक और भू-सामरिक मामलों में अमेरिका के मुक़ाबले खड़ा करना चाहता है. आज दुनिया में अमेरिका का जो दबदबा है वो उसने यूरोप से जुड़ी ऐतिहासिक मजबूरियों के माध्यम से हासिल किया था, जो पिछली सदी के पहले 45 सालों के दौरान ‘दो महायुद्धों’ के चलते पैदा हुई थीं. अमेरिका ने इन युद्धों की शुरुआत नहीं की थी. इसी बुनियाद के ऊपर अमेरिका अपने प्रभुत्व को बढ़ाता आया है. पहले शीत युद्ध के दौरान और फिर उसके बाद अमेरिका ने अपना दबदबा पहले साम्यवाद को रोकने और उसके बाद, चीन जैसे ‘तानाशाही राष्ट्रों’ को क़ाबू करने के नाम पर बढ़ाया है. ख़ास बात ये है कि जहां जहां अमेरिका ने अपना दबदबा क़ायम किया, ज़रूरी नहीं है कि उन देशों और क्षेत्रों ने उसका स्वागत ही किया हो.

चीन ने इस मामले में देर से शुरुआत की और वो पूर्व सोवियत संघ की तरह ‘उदारवादी पश्चिमी देशों’ का प्रतिद्वंदी भी नहीं है. आज चीन अपनी ताक़त के दम पर दुनिया पर दबदबा क़ायम करना चाहता है और यही आज पूरी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता का विषय है. कुनमिंग पहल चीन की इसी महत्वाकांक्षा का एक हिस्सा है और इस पर शक की पूरी गुंजाइश बनती है. इसलिए और भी क्योंकि चीन, उन देशों के पूर्व नेताओं के भरोसे है, जिनके राजनीतिक भविष्य को वो अपने हिसाब से गढ़ना चाहता है. ज़ाहिर है इसके लिए पर्दे के पीछे कुछ न कुछ सौदेबाज़ी तो ज़रूर हुई होगी. अगर ये पूर्व नेता अपने अपने देश की लोकतांत्रिक सत्ता में वापस आते हैं, तो उन्होंने चीन से कुछ न कुछ मदद देने का वादा ज़रूर किया होगा.

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