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जैसे ही अमेरिका के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की निर्णायक जीत के नतीजे आए, जिसकी वजह से यूरोप में सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा डर पैदा हो गया है, वैसे ही चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के नेतृत्व वाली जर्मनी की तथाकथित ट्रैफिक-लाइट (गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियों के निशान का रंग ट्रैफिक-लाइट के तीनों रंग से मिलने की वजह से ये नाम दिया गया है) गठबंधन सरकार का तीन साल तक सत्ता में रहने के बाद पतन हो गया.
2021 में सरकार के गठन के बाद से ही ऐसे मौके बहुत कम आए जब अपनी अलग-अलग विचारधारा के साथ गठबंधन में शामिल तीनों पार्टियां- जिनमें स्कोल्ज़ की सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SDP), पर्यावरण समर्थक ग्रीन पार्टी और व्यवसाय पर केंद्रित फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (FDP) शामिल हैं- किसी मुद्दे पर एक नज़र आईं. बजट से जुड़ी नीति को लेकर महीनों तक मतभेद के बाद अंत में उस समय तनाव बढ़ गया जब शॉल्स ने जर्मनी की बीमार अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के मक़सद से लाए गए अपने आर्थिक प्रस्ताव को रोकने के लिए FDP से संबंध रखने वाले वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर को उनके पद से हटा दिया. इससे गठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच “भरोसा पूरी तरह ख़त्म” होने को बढ़ावा मिला.
स्कोल्ज़ के प्रस्ताव में तथाकथित “डेट ब्रेक” (संतुलित बजट बनाए रखने और ज़रूरत से ज़्यादा कर्ज़ लेने से रोकने के लिए बनाया गया नियम) में छूट देकर खर्च को बढ़ाना और 2025 के संघीय बजट में 10 अरब यूरो रखना शामिल था. लिंडनर ने इसका विरोध किया और वो सरकार की तरफ से और ज़्यादा कर्ज़ लेने के ख़िलाफ़ बने रहे. इसके बदले उन्होंने टैक्स लगाने और कल्याण पर होने वाला खर्च कम करने की वकालत की.
गठबंधन का समझौता ख़त्म होने का मतलब है कि स्कोल्ज़ अब एक अल्पसंख्यक सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं जिसमें उनकी पार्टी और ग्रीन पार्टी शामिल हैं
गठबंधन का समझौता ख़त्म होने का मतलब है कि स्कोल्ज़ अब एक अल्पसंख्यक सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं जिसमें उनकी पार्टी और ग्रीन पार्टी शामिल हैं जिसके मंत्री, जिनमें वाइस-चांसलर और अर्थव्यवस्था के मंत्री रॉबर्ट हैबेक शामिल हैं, अभी भी काम कर रहे हैं.
स्कोल्ज़ जनवरी के मध्य में बुंदेस्टैग (जर्मनी की संसद) में विश्वास मत पेश करना चाहते हैं. अगर उनकी सरकार विश्वास मत में हार जाती है (जिसकी संभावना अधिक है) तो संसद भंग कर दी जाएगी. इसके साथ ही सितंबर 2025 में होने वाले चुनाव से पहले ही जर्मनी में चुनाव कराना पड़ेगा.
यूरोप का 'बीमार' देश
पारंपरिक रूप से जर्मनी यूरोप की आर्थिक महाशक्ति है. लेकिन कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से जर्मनी की अर्थव्यवस्था गिरावट का सामना कर रही है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने ऊर्जा के दाम में उछाल और रहन-सहन की बढ़ती लागत के बीच गैस की सस्ती सप्लाई ख़त्म कर दी.
फ्रांस, जिसकी अर्थव्यवस्था में पांच वर्षों के दौरान 4.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, और इटली, जिसकी अर्थव्यवस्था में पांच वर्षों के दौरान 5.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, की तुलना में जर्मनी की अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल मंदी की चपेट में है. इसकी वजह से जर्मनी को ‘यूरोप का बीमार देश’ कहा जाने लगा है. उम्रदराज जनसंख्या, श्रम की बढ़ती लागत और भारी-भरकम नौकरशाही के साथ ढांचागत कमज़ोरी ने देश के आर्थिक संकट में योगदान किया है. ऑटोमोबाइल सेक्टर समेत जर्मनी के उद्योग बहुत ज़्यादा दबाव में हैं, वो चीन की ज़रूरत से ज़्यादा क्षमता से मुकाबले का सामना कर रहे हैं. अपने 87 साल के इतिहास में पहली बार फॉक्सवैगन जर्मनी के तीन कारखानों को बंद करने की योजना बना रही है. दूसरी तरफ, इस मंदी के बीच जर्मनी के ज़ाइटवेंड (फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद जर्मनी की संसद में चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के द्वारा दिया गया महत्वपूर्ण भाषण) ने रक्षा खर्च में बढ़ोतरी को प्रेरित किया है. इस बीच सरकार को अभी भी बजट पारित करने की आवश्यकता है जिसके लिए स्कोल्ज़ सेंटर-राइट पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिस यूनियन (CDU) के प्रमुख फ्रेडरिक मर्ज़ के नेतृत्व वाले रूढ़िवादी विपक्ष का समर्थन मांग सकते हैं. हालांकि मर्ज़ का सहयोग इस शर्त पर बना हुआ है कि विश्वास मत पर मतदान जल्दी कराया जाए.
जर्मनी के साथ-साथ राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के तहत फ्रांस भी अपने राजनीतिक संकट में फंसा हुआ है. वहां तीन परस्पर विरोधी वैचारिक समूहों, जिनमें कट्टरपंथी लेफ्ट और धुर दक्षिणपंथी शामिल हैं, का फ्रांस की संसद के निचले सदन में वर्चस्व है.
जर्मनी के साथ-साथ राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के तहत फ्रांस भी अपने राजनीतिक संकट में फंसा हुआ है. वहां तीन परस्पर विरोधी वैचारिक समूहों, जिनमें कट्टरपंथी लेफ्ट और धुर दक्षिणपंथी शामिल हैं, का फ्रांस की संसद के निचले सदन में वर्चस्व है. धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टियों की बढ़त, राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का दूसरा संभावित हानिकारक कार्यकाल और यूरोप में अभी भी छिड़े युद्ध के बीच यूरोप के प्रमुख देशों में इस तरह की राजनीतिक उथल-पुथल और कमज़ोर नेतृत्व अनिश्चितताओं को बढ़ाता है. जैसा कि हैबेक ने चेतावनी दी, “ये सरकार के नाकाम होने के लिए सबसे ख़राब समय है.”
एक उम्मीद की किरण?
मुख्यधारा के दलों की गिरती लोकप्रियता के साथ बेकाबू आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता ने न केवल धुर दक्षिणपंथ के लिए समर्थन बढ़ाया है बल्कि धुर वामपंथ के लिए भी. इसका नतीजा जर्मनी के राजनीतिक परिदृश्य में बढ़ते विभाजन के रूप में निकला है. जर्मनी में ट्रैफिक-लाइट गठबंधन के पतन से पहले ही तीनों साझेदारों की लोकप्रियता की रेटिंग गिर गई थी (स्कोल्ज़ की SPD की रेटिंग 14-18 प्रतिशत थी, ग्रीन पार्टी की 9-12 प्रतिशत और FDP की 3-5 प्रतिशत जो संसद में प्रवेश के लिए न्यूनतम 5 प्रतिशत वोट हासिल करने के मामले में भी जूझ रही थी). दूसरी तरफ CDU और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) का विपक्षी गठबंधन 33 प्रतिशत के साथ ओपिनियन पोल में सबसे आगे था जबकि धुर दक्षिणपंथी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (AfD) 16-19 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर थी और वामपंथी साहरा वैगननेट अलायंस (BSW) को 6-9 प्रतिशत वोट मिल रहे थे. AfD, जिसके नेता एलिस वेडेल ने गठबंधन के पतन को “मुक्ति” करार दिया, ने जर्मनी में हाल के चुनावों में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की. यहां तक कि उसने पूर्वी राज्य थुरिंगिया में जीत भी हासिल की. इस तरह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के किसी प्रांत में शासन करने वाली वो पहली धुर दक्षिणपंथी पार्टी बन गई. यूरोप के दूसरे हिस्सों की तरह स्कोल्ज़ की सरकार भी धुर दक्षिणपंथ के एजेंडे के कुछ हिस्सों के आगे झुकने की दोषी है. छुरा घोंपने की हाल की घटनाओं, जिनमें प्रवासी शामिल थे, के जवाब में उसने सीमा पर नियंत्रण के लिए नए सुरक्षा कदमों का ऐलान किया था.
वर्तमान संकट से एक उम्मीद की किरण उभर सकती है. लेकिन ये इस बात पर निर्भर है कि नया गठबंधन काम-काजी होगा या एक और अव्यवस्थित मेलजोल.
चुनाव के बाद किसी भी पार्टी या गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलने की संभावना नहीं है. चुनाव के बाद इस बात की संभावना है कि CDU-CSU गठबंधन या SPD के नेतृत्व में एक नई गठबंधन सरकार का मार्ग प्रशस्त होगा जिसमें FDP जैसी जूनियर साझेदार शामिल होगी. अलग-अलग पार्टियों ने AfD के साथ नहीं जुड़ने की अपनी इच्छा जताई है. फिर भी ये मानना होगा कि अभी तक जर्मनी की राजनीति की प्रकृति पारंपरिक रूप से स्थिर थी क्योंकि जर्मनी में इससे पहले आख़िरी बार समय से पहले चुनाव 20 साल पहले 2005 में कराया गया था और पूर्व चांसलर एंगेला मर्केल 16 साल तक सत्ता में बनी रहीं.
विश्वास मत तक जर्मनी की शासन व्यवस्था ठप हो सकती है क्योंकि स्कोल्ज़ एक कमज़ोर सरकार के प्रमुख हैं जो कानून पारित करने और प्रमुख निर्णय लेने के लिए बहुमत जुटाने के मक़सद से दूसरी पार्टियों पर निर्भर रहेगी. हालांकि वर्तमान संकट से एक उम्मीद की किरण उभर सकती है. लेकिन ये इस बात पर निर्भर है कि नया गठबंधन काम-काजी होगा या एक और अव्यवस्थित मेलजोल. चीन पर नीति से लेकर यूक्रेन को समर्थन और आर्थिक सुधार तक ट्रैफिक-लाइट गठबंधन के भीतर असहमतियों ने बुनियादी मुद्दों पर अक्सर देश को राजनीतिक रूप से गतिहीन छोड़ दिया. एक नई अधिक एकीकृत सरकार यूरोप और दुनिया में जर्मनी के नेतृत्व को शायद फिर से बहाल कर सकती है. किसी भी तरह से देखें तो जर्मनी में एक नई काम-काजी सरकार बनने में महीनों लगने वाले हैं.
शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में डिप्टी डायरेक्टर हैं.
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