Published on Oct 24, 2020 Updated 0 Hours ago

जैसे-जैसे उत्सव का उल्लास बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह उत्सव एक साल तक इंतज़ार नहीं कर सकता था?

दुर्गा पूजा और कोविड-19 के बीच तलवारों की धार पश्चिम बंगाल में

इस साल, पश्चिम बंगाल की मशहूर दुर्गा पूजा (जो हिंदू पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा की पूजा से जुड़ा है) जो आम लोगों के बीच मनाया जाने वाला एक भव्य उत्सव भी है, एक अजीब परिस्थिति का सामना कर रहा है. एक तरफ इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बंगाल का यह वार्षिक महोत्सव, जो लोगों के लिए किसी ‘कार्निवल’ से कम नहीं, इसमें शामिल लोगों की संख्या के चलते दुनिया के सबसे बड़े त्योहारों में से एक, के रूप में सामने आता है. दुर्गा पूजा निस्संदेह, दुनिया भर में मौजूद बंगाली समुदाय के लिए आर्थिक और भावनात्मक रूप से भी बड़ा महत्व रखता है. दूसरी ओर, जानकारों के अनुसार, दुनिया के इस हिस्से में मनाया जाने वाला यह महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार, जिसके केंद्र में कोलकाता शहर है (जो इस उत्सव का गढ़ है) कोविड-19 के बढ़ते संक्रमणों का गढ़ भी बन सकता है.

इस साल 22 से 26 अक्टूबर के बीच आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा,  ब्रिटिश काल में ‘ज़मींदारी का प्रतीक’ बनने से लेकर, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देशभक्ति की भावनाओं को जागृत करने के लिए ‘राष्ट्रवाद परियोजना’ बनने तक की यात्रा तय कर चुकी है. दुर्गा पूजा का मौजूदा रूप, आम जनता के लिए एक ‘कार्निवल’ की तरह है जिसमें हर वर्ग, हर श्रेणी का व्यक्ति शामिल हो सकता है और जो हर किसी को समान रूप से उत्साहित करता है. बहुत सारे पश्चिमी धार्मिक त्योहारों की तुलना में, दुर्गा पूजा का उत्सव अपने कलेवर में भव्य और बेहद शानदार है. यह धार्मिक समुदायों और जातियों से ऊपर उठकर, गलियों और पंडालों के ज़रिए लोगों को आकर्षित करता है, और लोगों की भारी भीड़ ही इसकी विशेषता है. अगर ऐसी परिस्थिति की कल्पना करें, जहां कोविड-19 की वैक्सीन उपलब्ध होती, तो यह उत्सव कमज़ोर हो रही अर्थव्यवस्था को एक बार फिर पटरी पर लाने का एक महत्वपूर्ण उपाय हो सकता था. जगह-जगह मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा के ज़रिए, स्थानीय स्तर पर खपत और मांग की समस्या को हल किया जा सकता था.

पिछले अनुभवों से पता चलता है कि दुर्गा पूजा जब अपने चरम पर रहती है, तो एक-एक पंडाल में हज़ारों लोग मौजूद होते हैं. भले ही इस साल वायरस की आशंका और जगह-जगह पुलिस की मौजूदगी के चलते, भीड़ बहुत कम हो, लेकिन यह संख्या अगर पिछले साल की तुलना में, दस गुना कम भी हो, तब भी गंभीर स्वास्थ्य संकट का कारण बन सकती है. यह सामाजिक दूरी बनाए रखने के उन दिशानिर्देशों के ठीक उलट है, जो महामारी की शुरुआत के बाद से महत्वपूर्ण रहे हैं. त्योहार के दौरान बाहर निकलने वाले लोग, लगातार खुद को संक्रमित सतहों और लोगों के बीच पाएंगे. लोगों के संक्रमित होने की आशंका बेहद चिंताजनक है. स्वंयसेवी संस्था एकदेश के द्वारा 18 भारतीय शहरों में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, ज़्यादातर लोग ठीक से फेस-मास्क नहीं लगा रहे हैं- जबकि उनमें से कुछ ने बिल्कुल मास्क नहीं पहना है. सर्वे के मुताबिक भले ही 90 प्रतिशत लोग जागरूक हैं, लेकिन केवल 44 प्रतिशत भारतीय ही मास्क पहन रहे हैं.

इस साल 17 सितंबर को महालया (हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार वह शुभ दिन, जिससे त्योहारों के मौसम की शुरुआत होती है) के एक सप्ताह बाद से ही संक्रमण के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है. इसे निम्न ग्राफ चित्र में नीली बिंदीदार रेखा के ज़रिए देखा जा सकता है. यह ज़्यादातर बाज़ारों में बढ़ी भीड़ और लोगों के बाहर निकलने के लिए सड़कों पर उतरे वाहनों के कारण हुआ है. 15 अक्टूबर को, बंगाल ने 3,720 नए मामलों के साथ अपना उच्चतम रिकॉर्ड दर्ज किया, और इससे एक दिन पहले, 64 मौतों के साथ मरने वालों का अभी तक का सबसे बड़ा आंकड़ा सामने आया.

हालांकि, त्योहार से पहले लोकल ट्रेनों के शुरू होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान इस सेवा को फिर से शुरू करने से, ग्रामीण इलाकों के लोगों का कोलकाता आने का रास्ता खुलेगा. वास्तव में, डॉक्टरों के एक संयुक्त फोरम ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को एक चेतावनी पत्र जारी किया है कि दुर्गा पूजा के बाद ‘कोविड-19 के संक्रमणों की सुनामी’  आ सकती है, जैसा कि केरल में भी देखा गया था, जहां सितंबर में ओणम के त्योहार के लिए मिली छूट के बाद, संक्रमण दर तेज़ी से बढ़ी थी.

त्योहार के दौरान बाहर निकलने वाले लोग, लगातार खुद को संक्रमित सतहों और लोगों के बीच पाएंगे. लोगों के संक्रमित होने की आशंका बेहद चिंताजनक है. स्वंयसेवी संस्था एकदेश के द्वारा 18 भारतीय शहरों में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, ज़्यादातर लोग ठीक से फेस-मास्क नहीं लगा रहे हैं- जबकि उनमें से कुछ ने बिल्कुल मास्क नहीं पहना है. 

अर्थशास्त्र और राजनीति

हालांकि दुर्गा पूजा के आर्थिक प्रभाव को मापना एक जटिल काम है, लेकिन एसोचैम (ASSOCHAM) के अनुमान के मुताबिक  साल 2018 में यह लगभग 1.12 ट्रिलियन भारतीय रुपये तक रहा (जो मॉरीशस के संपूर्ण नाममात्र जीडीपी से अधिक है). राज्य के जीडीपी में इसका लगभग 10 प्रतिशत तक योगदान है. त्योहार को रद्द करने का मतलब राज्य की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान के साथ-साथ उत्सव से जुड़े कई उद्योगों में आजीविका के नुकसान और हस्तशिल्प से लेकर पर्यटन उद्योग तक को नुकसान पहुंचाना है. यह नहीं भूलना चाहिए कि चक्रवात अम्फान और कोविड-19 महामारी की दोहरी मार झेल रहे पश्चिम बंगाल की राज्य अर्थव्यवस्था को 2.06 ट्रिलियन रुपए (राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 16.4 प्रतिशत) का अनुमानित आर्थिक घाटा हुआ है. यह आंकड़े केवल मई 2020 के अंत तक के हैं. इसलिए, फिलहाल सबसे ज्वलंत प्रश्न यह है कि- आर्थिक नुकसान को बचाने के प्रयास में, क्या राज्य को आवश्यक स्वास्थ्य ढांचे में अतिरिक्त निवेश करना चाहिए? यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोलकाता के इस महोत्सव को केवल आर्थिक नज़रिए से नहीं देखा जा सकता. सवाल ये भी है कि क्या यह उत्सव पूरी तरह से और केवल, खोई हुई आय और आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए ही ज़रूरी है? इस सवाल का जवाब देते हुए, मेरे एक सहयोगी ने स्पष्ट और सटीक ढंग से कहा है कि दुर्गा पूजा, बंगाली समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक पहचान है और यह उत्सव मदहोशी की एक बयार लाता है. इसलिए, इसमें भागीदारी को लेकर व्यावहारिक तर्कसंगतता का पालन हो यह ज़रूरी नहीं है, फिर भले ही इससे होने वाले नुकसान, इसके फ़ायदों को पछाड़ दें.

त्योहार को रद्द करने का मतलब राज्य की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान के साथ-साथ उत्सव से जुड़े कई उद्योगों में आजीविका के नुकसान और हस्तशिल्प से लेकर पर्यटन उद्योग तक को नुकसान पहुंचाना है. यह नहीं भूलना चाहिए कि चक्रवात अम्फान और कोविड-19 महामारी की दोहरी मार झेल रहे पश्चिम बंगाल की राज्य अर्थव्यवस्था को 2.06 ट्रिलियन रुपए (राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 16.4 प्रतिशत) का अनुमानित आर्थिक घाटा हुआ है. 

दुनिया भर में 1.1 मिलियन से अधिक मौतों के साथ, भारत अब कोविड-19 के संक्रमित मामलों को लेकर, अमेरिका को पछाड़कर, दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में कोविड के मामलों वाला देश बन रहा है. ऐसे में यह मानना नादानी होगी कि दुर्गा पूजा से जुड़ी इस दुविधा को लेकर कोई राजनीति नहीं हो रही है. चूंकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बड़े आलोचक, पार्टी पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का आरोप लगाते रहे हैं, इसलिए कई लोग यह मानते हैं कि दुर्गा पूजा समारोह पर अंकुश लगाने से 2021 के राज्य चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान होगा. दुर्गा पूजा के कई पंडालों में से एक में, दुर्गा की मूर्ति को एक प्रवासी मज़दूर और उसके बच्चों के रूप में दिखाया गया- ध्यान रहे कि इससे पहले टीएमसी सरकार ने प्रवासी संकट को संभालने में असमर्थ होने के लिए अपनी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी, भाजपा पर तीखा हमला भी किया था. इस बीच देश भर में आम लोगों के साथ जुड़ने के लिए, एक रणनीतिक कदम के रूप में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्य भर में सांस्कृतिक केंद्रों और पंडालों का इस सप्ताह वर्चुअल उद्घाटन करेंगे और लोगों को संबोधित करेंगे.

मुख्यमंत्री ने इस साल पूजा समितियों की वित्तीय सहायता भी दोगुनी कर दी है- प्रत्येक क्लब को 50,000 रुपये की सहायता दी गई. भले ही विभिन्न माध्यमों से सरकारी खर्च में वृद्धि करना, महामारी से कमज़ोर हो चुकी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए, मौजूदा समय की आवश्यकता हो, लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी लगातार यह कहते रहे हैं कि इस तरह के तरीके अपनाने के बजाय, गरीब वर्गों को सीधे नगद हस्तांतरण किया जाना चाहिए.

कई पश्चिमी देशों में गर्मियों का महीना महत्वपूर्ण त्योहारों का समय है. ऐसे में पश्चिमी देशों में कई आयोजकों ने इन त्योहारों के लिए ऐसे कई सुगम तरीके खोजे हैं, जिनके चलते इस तरह के आयोजनों को रद्द करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इन बचाव प्रक्रियाओं के ज़रिए इन त्योहारों को आयोजित किया जा सका है. इन आयोजनों में इंग्लैंड में दो महीने तक चलने वाले महोत्सव के दौरान टेबल-सर्विस शुरु करने से लेकर, अमेरिका के ‘ड्राइव-थ्रू’ तक शामिल हैं जिनमें केक और कोर्नडॉग्स को चलते-फिरते दुकानदारों के ज़रिए बेचा गया. हालांकि, भारत में भारी आबादी और कम बजट को देखते हुए, दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों में इस तरह के तरीके अपनाना आसान नहीं है.

दुनिया भर में 1.1 मिलियन से अधिक मौतों के साथ, भारत अब कोविड-19 के संक्रमित मामलों को लेकर, अमेरिका को पछाड़कर, दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में कोविड के मामलों वाला देश बन रहा है. ऐसे में यह मानना नादानी होगी कि दुर्गा पूजा से जुड़ी इस दुविधा को लेकर कोई राजनीति नहीं हो रही है. 

पश्चिम बंगाल सरकार ने भी दुर्गा पूजा के त्योहार के लिए कई तरह के उपाय किए हैं, और कई योजनाएं बनाई हैं, जैसे कि मूर्ति विसर्जन के दौरान जुलूस पर प्रतिबंध, सामाजिक दूरी के नियम लागू करने के लिए अतिरिक्त नागरिक स्वयंसेवकों की तैनाती और इस तरह के कई अन्य क़दम. कुलमिलाकर, आगे का रास्ता सख्त़ उपायों और भीड़ नियंत्रण के तरीकों को अपनाए जाने और कम से कम लोगों की भीड़ जुटाने पर केंद्रित हैं, और इन उपायों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. फिर भी, जैसे-जैसे उत्सव का उल्लास बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या यह उत्सव एक साल तक इंतज़ार नहीं कर सकता था?

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