Author : Shivam Shekhawat

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 14, 2024 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान में 2024 के आम चुनाव वहां के सियासी मैदान में फौज की ताक़त में लगातार आती गिरावट और जनता द्वारा सुधारों की मांग तेज़ करने का महत्वपूर्ण संकेत हैं

चुनावी धांधली: पाकिस्तान में आम चुनाव और आगे का रास्ता

पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान अपने ऊपर ख़ुद से लादे गए संकटों जैसे कि आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी संकटों में उलझा हुआ है. अप्रैल 2022 में इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव और उसकी वजह से पैदा हुई अस्थिरता के बाद, सभी लोग ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि आम चुनाव कराने से देश में स्थिरता क़ायम होगी. आख़िर में 8 फ़रवरी 2024 को पाकिस्तान के मतदाताओं ने बड़ी तादाद में घरों से निकलकर नई सरकार चुनने के लिए वोट डाला. अब चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका है. नेशनल असेंबली की 265 सीटों में से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) के समर्थन वाले आज़ाद उम्मीदवारों ने 93 सीटों पर जीत हासिल की है, तो पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (PML-N) को 75 और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) को 54सीटें हासिल हुई हैं. नवाज़ शरीफ़ की पार्टी ने ‘भागीदारी वाले गठबंधन’ की सरकार बनाने का सुझाव दिया है. जब चुनाव के नतीजे आने लगे थे, तब से ही PML-N ने सरकार बनाने के लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (MQM) जैसे दलों के साथ बातचीत शुरू कर दी थी, ताकि आगे बढ़ने की रूपरेखा तैयार की जा सके और ‘राजनीतिक सहयोग’ की बारीकियां तय की जा सकें. वहीं दूसरी तरफ़, तहरीक-ए-इंसाफ ने नवाज़ शरीफ़ या पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सात किसी भी तरह के समझौते की संभावना को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है. PTI के वरिष्ठ नेताओं ने ऐलान किया है कि वो देश की दूसरी दो बड़ी पार्टियों के साथ मिलकर काम करने के बजाय, विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे. मौजूदा हालात, हमें आने वाले दिनों के सियासी हालात की झलक दिखा रहे हैं. लेकिन, आम पाकिस्तानी नागरिक के लिए ये उसी तरह की हताशा भरा चलन है, जो वो पिछले कई दशकों से देखते और उसके साथ जीते आए हैं.

 मौजूदा हालात, हमें आने वाले दिनों के सियासी हालात की झलक दिखा रहे हैं. लेकिन, आम पाकिस्तानी नागरिक के लिए ये उसी तरह की हताशा भरा चलन है, जो वो पिछले कई दशकों से देखते और उसके साथ जीते आए हैं.

जनता के बाग़ी तेवर

 

पिछले कुछ महीनों से दीवार पर लिखी ये इबारत साफ़ दिख रही थी. नवाज़ शरीफ़ की विदेश से निष्कासन से वापसी और इमरान ख़ान एवं उनकी पार्टी को सोच-समझकर निशाना बनाना- उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न रद्द करना, पार्टी के कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेना और इमरान ख़ान को जेल में डालकर सज़ा सुनाना- इन सबसे ज़ाहिर हो गया था कि सत्ता के अपने हाइब्रिड मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तानी फौज किसको समर्थन दे रही थी. लेकिन, जैसे ही मतदान ख़त्म हुआ और शुरुआती नतीजे आने लगे, तो तहरीक-ए-इंसाफ़ के समर्थन वाले निर्दलीय सबसे ज़्यादा संख्या में बढ़त बनाते दिखे. इससे साफ़ पता चल रहा था कि पाकिस्तान के मतदाताओं ने, फौज द्वारा पर्दे के पीछे से खेले जा रहे खेल को पसंद नहीं किया और इससे चुनाव में अवाम की इच्छा का सम्मान किए जाने की उम्मीदें जगीं. फ्री ऐंड फेयर इलेक्शन नेटवर्क (FAFEN) के मुताबिक़, पाकिस्तान के कुल 12 करोड़ सत्तर लाख मतदाताओं में से लगभग 6 करोड़ लोगों ने घरों से निकलकर मतदान किया. इनमें से 45 प्रतिशत 18 से 35 साल की उम्र के थे. उनका बाहर आकर बड़ी तादाद में PTI के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन में वोट डालने का फ़ैसला, पाकिस्तान की आबादी में आ रहे बदलाव का प्रतीक है और इससे पता चलता है कि देश का युवा वर्ग अपने मुल्क की सियासत को किस नज़र से देखता है. मतदाताओं के बीच इमरान और उनकी पार्टी के प्रति ऐसा समर्थन तब था, जब चुनाव प्रचार के दौरान PTI समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों को तो ठीक से अपने लिए प्रचार करने का भी मौक़ा नहीं मिला था. इससे ये भी पता चला कि पिछले साल हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद से अब तक फौज विरोधी जज़्बात ज़मीनी स्तर पर किस क़दर हावी हैं. PTI के समर्थन वाले आज़ाद उम्मीदवारों ने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और पंजाब सूबों में शानदार प्रदर्शन किया है. उनकी कामयाबी दिखाती है कि देश की जनता देश के दो प्रमुख दलों के उन्हीं पुराने दांव-पेंचों और फौज द्वारा चुनाव में की जाने वाली हेरा-फेरी से किस क़दर तंग आ चुकी है. जेल में बंद इमरान ख़ान के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तैयार बयानों के असर और उनके नाम पर वोट हासिल करने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की सफलता ये दिखाती है कि बदलाव के लिए बेक़रार हो रहे पाकिस्तान में इमरान ख़ान की शख़्सियत कितनी कद्दावर हो चुकी है.

 साफ़ पता चल रहा था कि पाकिस्तान के मतदाताओं ने, फौज द्वारा पर्दे के पीछे से खेले जा रहे खेल को पसंद नहीं किया और इससे चुनाव में अवाम की इच्छा का सम्मान किए जाने की उम्मीदें जगीं.

लेकिन, पाकिस्तान में चुनावों ने हमेशा ही इस बात को लेकर सवाल उठाया है कि वो कितने ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ रहे हैं और कौन सरकार बनाएगा के आख़िरी फ़ैसले में मतदाताओं की इच्छा का कितनी हद तक सम्मान किया जाएगा. और, वैसे तो देश की कार्यवाहक सरकार ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अपनी पीठ ख़ुद थपथपा ली है. लेकिन, वोटिंग वाले दिन मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं को बंद करने, नतीजों के ऐलान में भयंकर देरी और वोटों की गिनती में हेरा-फेरी और कई मतदान केंद्रों में धांधली के इल्ज़ाम ये दिखाते हैं कि चुनावों में कितने बड़े पैमाने पर हेरा-फेरी की गई. FAFEN ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में चुनाव के ‘कुछ संदिग्ध’ क्षेत्रों की तरफ़ संकेत किया था और कहा था कि जिन चुनाव अधिकारियों पर नतीजों को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी थी, उनके स्तर पर चुनावी प्रक्रिया बेहद ख़राब रही थी. अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (EU) और ऑस्ट्रेलिया ने भी चुनाव में गड़बड़ी और धांधली का इल्ज़ाम लगाते हुए अपनी तरफ़ से बयान जारी किए थे. तहरीक-ए-इंसाफ़ के समर्थकों और बाक़ी सभी पार्टियों के समर्थक, चुनाव के नतीजों के ऐलान में देरी और धांधली के आरोपों के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे और अपना विरोध जताया था.

 

एक नाज़ुक गठबंधन बनाने की कोशिश

 

ये लेख लिखे जाने तक तहरीक-ए-इंसाफ के समर्थन से जीतने वाले छह निर्दलीय उम्मीदवार, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ में शामिल हो गए थे, और आशंका ये जताई जा रही है कि अभी और आज़ाद उम्मीदवार पाला बदलेंगे. जब से निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा सबसे ज़्यादा वोट हासिल करने की बात साफ़ हुई है, तभी से PTI अपने खेमे में सेंधमारी की कोशिशों को लेकर चिंतित है. उसके नेताओं ने बार बार ये कहा है कि निर्दलीय प्रत्याशी, इमरान ख़ान की वजह से जीते और इसलिए उन्हें पार्टी के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए. तहरीक-ए-इंसाफ के नेता इन निर्दलीय सांसदों को ये चेतावनी भी दे रहे हैं कि अगर वो पाला बदलने का फ़ैसला करते हैं तो उन्हें जनता और पार्टी के ग़ुस्से का सामना करना पड़ेगा. मगर, इन चेतावनियों के बावजूद, आने वाले दिनों में तमाम दलों के बीच सांसदों की आवाजाही बढ़ने और अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों के नवाज़ शरीफ़ या फिर बिलावल भुट्टो की पार्टी में शामिल होने की उम्मीद है. PTI के समर्थन वाले निर्दलीय उम्मीदवार, जब तक किसी दूसरी पार्टी में शामिल नहीं होते, तब तक वो नेशनल असेंबली की 70 आरक्षित सीटों पर लड़ने के योग्य भी नहीं होंगे.

 पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक़, उम्मीद है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति 29 फ़रवरी को नेशनल असेंबली का सत्र बुलाएंगे. चूंकि इमरान ख़ान की पार्टी मुल्क पर PDM 2.0 की सरकार थोपने की आशंका का शोर मचा रही है.

पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक़, उम्मीद है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति 29 फ़रवरी को नेशनल असेंबली का सत्र बुलाएंगे. चूंकि इमरान ख़ान की पार्टी मुल्क पर PDM 2.0 की सरकार थोपने की आशंका का शोर मचा रही है. अधिक संभावना इस बात की है कि नवाज़ शरीफ़ की पार्टी दूसरे दलों के साथ तालमेल करके नई गठबंधन सरकार बना लेगी. आने वाले दिनों में देखने वाली बात ये होगी कि ये गठबंधन सरकार मुल्क को चुनौतियों के मौजूदा दलदल से बाहर निकालने में किस हद तक कामयाब होती है. चुनाव अभियान के दौरान पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ और पीपुल्स पार्टी के बीच तीखी बयानबाज़ी देखने को मिली थी. इसके अलावा, PDM की गठबंधन सरकार के दौरान जो मतभेद उभरकर सामने आए थे और ज़मीनी स्तर पर अपने समर्थन की ताक़त से PTI द्वारा प्रशासन को ठप करने की आशंका, सर्वोच्च पद के लिए सत्ता का संघर्ष जैसे पहलू ही ये तय करेंगे कि नई सरकार कितने दिनों तक सत्ता में रह सकेगी और सुधारों को लागू कर सकेगी. मुल्क की अर्थव्यवस्था के बुरे हालात तुरंत ही व्यापक आर्थिक सुधार करने से ही भविष्य में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से किसी तरह के समझौते का रास्ता खुल सकेगा. लेकिन तमाम दलों की एक दूसरे के मुक़ाबले वाली आर्थिक प्राथमिकताएं और गठबंधन को किसी भी सूरत में चलाते रहने की मजबूरी को देखते हुए, प्रशासन के लिए बहुत कम गुंजाइश बचेगी. इससे पाकिस्तानी फौज को और फ़ायदा होगा, जो देश के आर्थिक और सियासी मामलों में अपनी दख़लंदाज़ी का दायरा और बढ़ा लेगी. लेकिन, आने वाले दिनों में जब अस्थिरता और बढ़ेगी और सियासी दल चुनाव बाद के तालमेल पर ज़ोर लगाएंगे. क्योंकि, पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने कुछ सीटों पर फिर से चुनाव कराने का आदेश दिया है. ऐसे में 2024 के चुनाव, पाकिस्तान के सियासी मामलों में फौज की भूमिका के लगातार कमज़ोर होने और अवाम की तरफ़ से बदलाव की मांग तेज़ होने का सबसे बड़ा उदाहरण बने रहेंगे.

 

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