Published on Dec 21, 2020 Updated 0 Hours ago

संदीप बामज़ई की हालिया किताब, ‘प्रिंसेस्तान: नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे किया भारत निर्माण’ पर आधारित तीन किस्तों की सीरीज़ के तीसरे और अंतिम भाग से हमें कुछ रियासतों, जिन्ना और चर्चिल की उस साझा साज़िश का पता चलता है, जिसके तहत वो भारत को तीन हिस्सों-हिंदुस्तान, पाकिस्तान और प्रिंसेस्तान में बांटने की फ़िराक़ में थे.

स्वतंत्र भारत के निर्माण के पीछे की साज़िशें और दांव-पेंच (भाग 3)

आज़ादी के बाद भारत को तीन हिस्सों, हिंदुस्तान, पाकिस्तान और प्रिंसेस्तान में बांटने की अपनी शैतानी साज़िश में विंस्टन चर्चिल ने बग़ावती तेवर वाली रियासतों, जैसे कि भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ख़ान को साझीदार बनाया था. नवाब हमीदुल्लाह ख़ान, भारत के रजवाड़ों के संगठन चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस के चांसलर थे. उन्होंने सभी रियासतों के बीच इस बात पर आम सहमति बनाने की कोशिश की कि वो कांग्रेस के शासन वाले भारत से अलग रहें. मोहम्मद अली जिन्ना ने नवाब हमीदुल्लाह ख़ान को ये कहकर कांग्रेस के ख़िलाफ़ रजवाड़ों को भड़काने का लालच दिया कि वो उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री या गवर्नर जनरल बना देंगे.

मोहम्मद अली जिन्ना ने नवाब हमीदुल्लाह ख़ान को ये कहकर कांग्रेस के ख़िलाफ़ रजवाड़ों को भड़काने का लालच दिया कि वो उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री या गवर्नर जनरल बना देंगे.

भोपाल के नवाब ने ही हैदराबाद के निज़ाम को भड़काने का काम किया, जो पहले ही भारत और पाकिस्तान से अलग एक आज़ाद मुल्क बनाने का ख़्वाब देख रहे थे. निज़ाम के अपनी रियासत को आज़ाद रखने के ख़्वाब में जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर भी शामिल थे.

ये रजवाड़े मिलकर जो ख़्वाब देख रहे थे, वो जवाहरलाल नेहरू के एकीकृत भारत के उस सपने के बिल्कुल ख़िलाफ़ था, जिसके तहत नेहरू, ब्रिटिश शासन के दायरे में आने वाले सभी इलाक़ों के अलावा छोटी-बड़ी रियासतों को एकजुट करना चाहते थे. नेहरू के इस सपने को भारत के आख़िरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन का समर्थन हासिल था. नेहरू के साथ सरदार पटेल और वी.पी. मेनन भी पूरी ताक़त से भारत के एकीकरण में जुटे थे.

यहां पर थोड़ा ज़िक्र इस बात का भी कि, माउंटबेटन ने इस संवेदनशील मसले से कैसे निपटने की कोशिश की थी. भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ख़ान, कांग्रेस के शासन वाले भारत का हिस्सा बनने को लेकर आशंकित थे. नवाब ने चैंबर ऑफ़ प्रिंसेज के चांसलर पद से इस्तीफ़ा देकर ये एलान किया कि जब अंग्रेज़, भारत छोड़कर चले जाएंगे तो वो अपनी रियासत की क़िस्मत का फ़ैसला करने के लिए आज़ाद होंगे. नवाब ने माउंटबेटन को भी अपने इस इरादे से आगाह कर दिया था. इस मामले में वायसरॉय का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था. माउंटबेटन ने कहा कि भारत की आज़ादी के विधेयक में भले ही ये लिखा था कि अगर कोई रियासत भारत या पाकिस्तान में नहीं मिलना चाहेगी, तो ब्रिटिश सरकार उसके साथ अलग रिश्ता रखने के बारे में विचार करेगी. लेकिन, माउंटबेटन ने ये भी कह दिया था कि अगर उनके पास किसी रियासत की ओर से अलग रहने का प्रस्ताव आता है, तो उसे आगे नहीं बढ़ाएंगे. इस तरह से माउंटबेटन ने भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ख़ान और उनके जैसी सोच रखने वाली दूसरी रियासतों के सपनों पर पानी फेर दिया था.

यहां ये बात कही जा सकती है कि रियासतों के नवाबों और राजाओं पर इस बात का भारी दबाव था कि वो नए लोकतांत्रिक भारत में अपनी ख़ानदानी विरासत वाले शाही अधिकारों को कैसे बचाकर रखें.

वरिष्ठ संपादक संदीप बामज़ई ने अपनी किताब, ‘प्रिंसेस्तान:नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे किया भारत निर्माण’ में उस दिलचस्प क़िस्से का बख़ान किया है कि कैसे भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ख़ान चर्चिल से मिलने के लिए लंदन रवाना होने से पहले मोहम्मद अली जिन्ना को एक ख़ुफ़िया ख़त देना चाहते थे. पर, नेहरू ने वो विस्फोटक ख़त जिन्ना के पास पहुंचने से रोक लिया था. नवाब के ख़त में इस बात का बहुत विस्तार से ज़िक्र था कि कैसे कुछ भारतीय रियासतें, मुस्लिम लीग के साथ मिलकर, बर्तानवी सरकार के साथ अपने रिश्तों को बरक़रार रखने की जुगत भिड़ा रही थीं. ऐसे रजवाड़े ख़ुद को आज़ाद रियासत बनाकर, आपस में मिलकर एक अलग संगठन बनाकर, या पाकिस्तान का हिस्सा बनकर ये मक़सद हासिल करने की कोशिश में थीं. पर, ख़ुशक़िस्मती से भारत को सैकड़ों टुकड़ों में बांटने की ये साज़िश नाकाम रही.

चर्चिल का ख़ुफ़िया ख़त

चर्चिल की अगुवाई में भारत को नुक़सान पहुंचाने की इस साज़िश से जुड़े अन्य तथ्य उजागर करते हुए, संदीप बामज़ई एक चिट्ठी का ज़िक्र करते हैं, जो चर्चिल ने ख़ुफ़िया तौर पर जिन्ना को लिखी थी. अपनी इस ‘निजी चिट्ठी’ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने अपने संदेश जिन्ना तक पहुंचाने के लिए ख़ुफ़िया दस्तख़त की मदद ली थी और उन्होंने जिन्ना से भी कहा था कि वो अपना एक ख़ुफ़िया नाम रख लें, जिससे कि दोनों नेता बिना किसी के पता लगे अपनी साज़िश की चर्चा कर सकें. लेकिन, चर्चिल और जिन्ना का ये षडयंत्र असफल रहा.

चर्चिल की अगुवाई में भारत को नुक़सान पहुंचाने की इस साज़िश से जुड़े अन्य तथ्य उजागर करते हुए, संदीप बामज़ई एक चिट्ठी का ज़िक्र करते हैं, जो चर्चिल ने ख़ुफ़िया तौर पर जिन्ना को लिखी थी. 

इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस के CEO और एडिटर-इन-चीफ संदीप बामज़ई लिखते हैं कि, ‘त्रावणकोर रियासत, जिन्ना और भोपाल के नवाब के बीच पक रही ये षडयंत्र वाली खिचड़ी तैयार नहीं हो सकी. बिदकती रियासतों को क़ाबू में कर लिया गया.’

किताब के अंश:

लॉर्ड वेवेल और राजनीतिक विभाग के प्रमुख सर कोनराड की पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद, त्रावणकोर की रियासत अंग्रेज़ों के हाथ से निकल गई. त्रावणकोर के चालाक दीवान, सर सी.पी. जो कश्मीर के दीवान पंडित रामचंद्र काक की तरह अपनी अपनी रियासतों के महाराजाओं की बिनाह पर फ़ैसले लिया करते थे-उन्हें ख़ामोश कर दिया गया था. दोनों ने बड़ी चतुराई से हैदराबाद के निज़ाम के साथ संवाद शुरू किया था. वहीं, हैदराबाद के निज़ाम ने चैंबर ऑफ़ प्रिंसेज के चांसलर, भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ख़ान को जिन्ना से संपर्क साधने का ज़रिया बनाया था. नेहरू को अंदेशा हो गया था कि अगर इनकी साज़िशें कामयाब हुईं, तो भारत को अपूरणीय क्षति पहुंच सकती है. इसीलिए, नेहरू ने ब्लिट्ज़ पत्रिका और के. एन. बामज़ई से कहा कि वो मोनाज़ाइट बालू को लेकर हो रही सौदेबाज़ी पर अपनी स्टोरी को अभी रोक कर रखें.

आख़िरकार नेहरू को तब मौक़ा हाथ लगा, जब भोपाल के नवाब ने  चर्चिल से मिलने के लिए लंदन जाने से पहले एक बेहद ख़ुफ़िया ख़त जिन्ना को सौंपा. ये चिट्ठी बेहद विस्फोटक थी. इसमें भारतीय रियासतों की तरफ़ से ये प्रतिबद्धता जताई गई थी कि वो मुस्लिम लीग के सहयोग से ब्रिटिश सरकार से अपना संबंध बनाए रखेंगे. नवाब ने वादा किया था कि ये रजवाड़े या तो आज़ाद रियासतों के तौर पर, या फिर मिलकर पाकिस्तान का हिस्सा बनकर, ब्रिटिश सरकार से विशेष रिश्ते को कायम रखेंगे. इस बात की तस्दीक़ करने वाला एक और विस्फोटक ‘प्राइवेट’ ख़त चर्चिल ने 11 दिसंबर 1946 को जिन्ना को लिखा था:

त्रावणकोर के दीवान और जिन्ना के साथ मिलकर भारत को कई टुकड़ों में बांटने की भोपाल के नवाब की देशद्रोही योजना धरी की धरी रह गई. हालांकि, जिन्ना ने अपनी ख़ुफ़िया योजना पर काम जारी रखा. वो सार्वजनिक रूप से अलग बयान देते हुए भी पर्दे के पीछे से षडयंत्रकारी चालें चलते रहे थे.

‘मैं चाहता था कि 12 दिसंबर को आपके लंच के न्यौते को ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लूं. लेकिन, मुझे लगता है कि इस नाज़ुक मोड़ पर हमारा सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से मिलना बुद्धिमत्ता नहीं होगी. पिछली बार हमारी जो बातचीत हुई थी, मैं उसे बहुत अहम मानता हूं. इस ख़त के साथ मैं एक पता भेज रहा हूं, जहां पर आप मुझे कोई भी टेलीग्राम भेज सकते हैं और भारत में किसी का इस पर ध्यान नहीं जाएगा. मैं अपनी हर चिट्ठी गिलाट के नाम से भेजूंगा. शायद आप भी मुझे कोई ऐसा पता दे सकें, जहां पर मै आपको टेलीग्राम भेज सकूं, और आप ये भी बताएं कि आप अपने ख़त किस नाम से भेजा करेंगे.’

किस तरह ब्रिटिश सरकार भारत के घरेलू मसलों में दख़लंदाज़ी कर रही थी 

ये बात तो बाद में पता चली की गिलाट नाम की अंग्रेज़ महिला असल में सर विंस्टन चर्चिल की निजी सचिव थी और जो पता चर्चिल ने जिन्ना से साझा किया था, वो गिलाट के लंदन के घर का था. ज़ाहिर है कि जिन्ना और चर्चिल के बीच संवाद का एक ख़ुफ़िया माध्यम खुला रखा गया था. इसमें वो लोग भी शरीक हो सकते थे, जो उनकी साज़िशों में दिलचस्पी रखते थे. नेहरू ने 7 जुलाई 1946 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) में अपने भाषण में, और फिर तीन दिन बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में भी अल्पसंख्यको के मसले पर अपना रुख़ स्पष्ट किया था और कहा था कि किस तरह भारत के घरेलू मसलों में ब्रिटिश सरकार दख़लंदाज़ी कर रही है, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं है. इससे जिन्ना को वो मौक़ा मिल गया, जिसकी उन्हें लंबे समय से तलाश थी. इसके बाद जिन्ना ने 29 जुलाई 1946 को कैबिनेट मिशन योजना पर दी गई अपनी रज़ामंदी वापस ले ली. इससे नेहरू को भी वो अवसर मिल गया, जिसका उन्हें इंतज़ार था. जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है, नेहरू ने फिर दुनिया को बताया कि किस तरह अंग्रेज़, भारत को कई टुकड़ों में बांटने की साज़िश रच रहे थे और भारत से मोनाज़ाइट बालू के निर्यात के लिए सौदेबाज़ी कर रहे थे. इन षडयंत्रों के लिए अंग्रेज़ों की आलोचना करने के साथ-साथ नेहरू ने अपनी जानकारी के स्रोत का इशारों में ये कहते हुए ज़िक्र किया कि उन्हें ये ख़बर एक दोस्त से हाथ लगी है.

त्रावणकोर के दीवान और जिन्ना के साथ मिलकर भारत को कई टुकड़ों में बांटने की भोपाल के नवाब की देशद्रोही योजना धरी की धरी रह गई. हालांकि, जिन्ना ने अपनी ख़ुफ़िया योजना पर काम जारी रखा. वो सार्वजनिक रूप से अलग बयान देते हुए भी पर्दे के पीछे से षडयंत्रकारी चालें चलते रहे थे.


(किताब ‘प्रिंसेस्तान:नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे भारत का निर्माण किया’ के प्रकाशकों रूपा पब्लिकेशन की सहमति से प्रकाशित अंश. किताब को यहां ख़रीदें)

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