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Published on May 20, 2024 Updated 0 Hours ago

नेटवर्क उद्योगों में प्रतिस्पर्धा और एकाधिकार को संतुलित करते हुए मुंबई में बिजली के रिटेल क्षेत्र में बिना सोचे-विचारे समानांतर लाइसेंसिंग विश्लेषण के लिए एक केंद्र बिंदु के तौर पर काम करती है.

मुंबई में बिजली वितरण में समानांतर लाइसेंसिंग: अव्यवस्था या आदर्श?

बिजली, प्राकृतिक गैस, रेल परिवहन और दूरसंचार समेत नेटवर्क उद्योगों में संभावित रूप से  बिजली उत्पादन जैसी प्रतिस्पर्धी गतिविधियां और बिजली का ट्रांसमिशन एवं वितरण जैसी स्वाभाविक रूप से एकाधिकार वाली गतिविधियां शामिल हैं. ये मेल एकाधिकार के दुरुपयोग की किसी भी प्रवृत्ति पर प्रभावी रूप से नियंत्रित करते हुए उदारीकरण के लाभों को अधिकतम करने के लिए बाज़ार संरचना एवं रेगुलेटरी (नियामक) रूप-रेखा तैयार करने में प्रतिस्पर्धा कानून और नीति के लिए चुनौतियां पेश करता है. भारत का मुंबई शहर, जहां खुदरा बिजली में समानांतर (पैरेलल) लाइसेंसिंग की व्यवस्था अनजाने में शुरू की गई थी, उसने इस चुनौती को दिखाना शुरू किया है. 

समानांतर लाइसेंसिंग 

बिजली अधिनियम 2003 (EA 2003) में बिजली वितरण का काम प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने का प्रावधान है. EA 2003 में समानांतर लाइसेंसिंग की अनुमति देने वाले खंड 14 में कहा गया है कि “उपयुक्त आयोग लाइसेंस के लिए आवेदन की शर्तों के आधार पर दो या उससे अधिक व्यक्तियों को एक ही क्षेत्र के भीतर उनकी अपनी वितरण प्रणाली के माध्यम से बिजली के वितरण के लिए लाइसेंस प्रदान कर सकता है. एक ही क्षेत्र के भीतर लाइसेंस प्रदान करना शर्तों के अधीन होगा कि लाइसेंस का आवेदक इस अधिनियम के तहत दूसरी शर्तों या आवश्यकताओं को लेकर पूर्वाग्रह के बिना केंद्र सरकार के द्वारा निर्धारित की जा सकने वाली अतिरिक्त आवश्यकताओं (पूंजी पर्याप्तता, क्रेडिट योग्यता या आचार संहिता समेत) का अनुपालन करे और लाइसेंस के अनुदान के लिए सभी आवश्यकताओं का अनुपालन करने वाले किसी भी ऐसे आवेदक को इस आधार पर लाइसेंस देने से इनकार नहीं किया जाएगा कि उस उद्देश्य के लिए उस क्षेत्र में पहले से ही लाइसेंस धारक मौजूद है”.  

मुंबई में पैरेलल लाइसेंसिंग की व्यवस्था किसी नीति या बिजली अधिनियम 2003 के खंड 14 को ध्यान से पढ़कर नहीं बल्कि जब बिजली अधिनियम 2003 को लागू किया गया था, उस समय की कंपनियों के बीच बिजली ख़रीद समझौतों (पावर परचेज़ एग्रीमेंट या PPA) को लेकर मुकदमेबाज़ी के कारण शुरू की गई थी. इसके नतीजों का विश्लेषण भविष्य में पूरे भारत में खुदरा बिजली को लाइसेंस के बिना करने के लिए अव्यवस्था या आदर्श- दोनों के रूप में देखा जा सकता है. 

अव्यवस्था 

मुंबई में बिजली के लाइसेंस को लेकर प्रयोग करने का “अव्यवस्था” वाला नज़रिया ग्राहकों के लिए ख़राब नतीजों और रेगुलेटर के लिए जटिल चुनौतियों को उजागर करता है जिन्हें लाइसेंस रखने वालों और ग्राहकों के हितों को संतुलित करने की आवश्यकता होती है. ये न्यायपालिका के लिए भी चुनौती है जिसे बिजली अधिनियम 2003 के खंड 14 और उससे जुड़े प्रावधानों की व्याख्या करनी है. 2008 से अलग-अलग रेगुलेटरी और न्यायिक हस्तक्षेपों के बावजूद ग्राहकों के लिए प्रतिस्पर्धी टैरिफ का अपेक्षित परिणाम नहीं निकला है. इसके अलावा वितरण का लाइसेंस पाने वाली (DL) एक कंपनी के क्षेत्र में किसी अन्य लाइसेंस पाने वाली कंपनी के द्वारा ग्राहकों को जोड़ने का मुद्दा, वितरण नेटवर्क को दोबारा तैयार करने को लेकर विवाद, एक लाइसेंस धारक के स्वामित्व वाले नेटवर्क का दूसरे के द्वारा इस्तेमाल, वितरण नेटवर्क के उपयोग को लेकर क्रॉस सब्सिडी और पावर परचेज़ एग्रीमेंट (PPA) से जुड़ा विवाद दूसरी चुनौतियों के साथ जारी है. 

मुंबई में बिजली के लाइसेंस को लेकर प्रयोग करने का “अव्यवस्था” वाला नज़रिया ग्राहकों के लिए ख़राब नतीजों और रेगुलेटर के लिए जटिल चुनौतियों को उजागर करता है जिन्हें लाइसेंस रखने वालों और ग्राहकों के हितों को संतुलित करने की आवश्यकता होती है.

मुंबई में 2008 में पैरेलल लाइसेंसिग की शुरुआत के समय से टाटा पावर कॉरपोरेशन डिस्ट्रीब्यूशन (TPCD), रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर डिस्ट्रीब्यूशन (पहले बॉम्बे सबअर्बन इलेक्ट्रिक सप्लाई लिमिटेड या BSES जिसका रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड [Rinfra] ने अधिग्रहण कर लिया और फिर 2017 में अदाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड [AEML] ने अपने नियंत्रण में ले लिया), बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट [BEST] और महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन लिमिटेड [MSEDCL] बिजली अधिनियम 2003 के खंड 14 के प्रावधानों की व्याख्या को लेकर कानूनी लड़ाई में पड़ी हुई हैं. 

2008 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि TPCD, जो कि मुंबई में बिजली की थोक सप्लायर थी और जिसे खुदरा बिजली की आपूर्ति का अधिकार मिला हुआ था, बिजली अधिनियम 2003 के प्रावधानों के बाद अपने लाइसेंस में निर्धारित सप्लाई के क्षेत्रों के भीतर सभी उपभोक्ताओं को सीधे बिजली दे सकती है. इसके बाद महाराष्ट्र बिजली नियामक आयोग (MERC) ने पुष्टि की कि TPCD पूरे मुंबई शहर के लिए वितरण की लाइसेंस धारक (DL) है. वो BEST और Rinfra- दोनों के लाइसेंस वाले क्षेत्रों में बिजली की सप्लाई कर सकती है. TPCD का वितरण लाइसेंस अगस्त 2014 तक के लिए वैध था. 2014 में TPCD ने पूरे मुंबई ज़िले, मुंबई के उपनगरीय ज़िले के हिस्से और पूरे नगर निगम क्षेत्र (कानूनी तौर पर जिसका विरोध किया गया) में बिजली के वितरण के लिए लाइसेंस हासिल किया. वितरण का लाइसेंस अगस्त 2014 से शुरू होकर अगस्त 2039 तक 25 साल की अवधि के लिए दिया गया. TPCD को मिले वितरण के लाइसेंस में Rinfra, BEST और MSEDCL के लाइसेंस वाले क्षेत्र भी शामिल थे. 

ऐतिहासिक रूप से TPCD बिजली उत्पादक और मुंबई में बिजली की एक थोक सप्लायर थी. TPCD ने थोक में बिजली ख़रीदने वाली जिन कंपनियों के साथ PPA पर हस्ताक्षर किए थे, उनमें से एक कंपनी Rinfra थी. लेकिन जब TPCD वितरण के काम में उतर गई तो इस संबंध के सामने अनूठी चुनौतियां खड़ी हो गईं. चूंकि TPCD के पास कम लागत में बिजली उपलब्ध थी, ऐसे में जिन क्षेत्रों में उसके पास पैरेलल लाइसेंस था वहां वो उपभोक्ताओं को कम दाम पर बिजली देने में सक्षम थी. इसकी वजह से थोक उपभोक्ता और बाद में घरेलू उपभोक्ता भी Rinfra की जगह TPCD से बिजली लेने लगे. ये परिणाम तो निकलना ही था. वहीं TPCD के पास Rinfra को कम दर पर बिजली सप्लाई करने का कोई कारण नहीं था. इसकी वजह से Rinfra को वैकल्पिक सप्लायर से PPA करने पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ा. अपनी ओर से Rinfra अपने वितरण नेटवर्क में TPCD की तरफ से बिजली की सप्लाई के लिए TPCD पर व्हीलिंग चार्ज (बिजली को उत्पादन केंद्र से लाने पर लगने वाला शुल्क) लगा सकती थी. ये मुद्दे इस क्षेत्र की कंपनियों के बीच कानूनी लड़ाई के हिस्से थे.

ट्रांसमिशन क्षमता की सीमा जैसे बुनियादी बाधाओं ने प्रतिस्पर्धी बोली (बिडिंग) के ज़रिये मुंबई क्षेत्र के बाहर से कम लागत पर बिजली की ख़रीद को सीमित कर दिया. इसका मतलब था उपभोक्ताओं के लिए अधिक औसत टैरिफ.

TPCD के द्वारा अपना वितरण नेटवर्क बनाने की संभावना और इस तरह Rinfra के नियंत्रण वाले मौजूदा नेटवर्क का दोहराव एक और विवादित मुद्दा था. इसका नतीजा रेगुलेटरी और अन्य संस्थानों के द्वारा लागू अस्थायी समाधान थे जैसे कि टैरिफ निर्धारण के लिए कॉस्ट प्लस की प्रक्रिया. कॉस्ट प्लस प्रक्रिया ने मुंबई में पैरेलल वितरकों को शॉर्ट-टर्म पावर मार्केट (अल्पकालिक बिजली बाज़ार) के ज़रिये महंगी बिजली ख़रीदने और इसकी लागत उपभोक्ताओं पर डालने की अनुमति दी. इस तरह उपभोक्ता के हित से समझौता किया गया क्योंकि शॉर्ट-टर्म मार्केट के ज़रिये ख़रीदी गई बिजली की लागत लॉन्ग-टर्म पावर परचेज़ एग्रीमेंट के ज़रिये ख़रीदी गई बिजली से आम तौर पर ज़्यादा थी. जब सप्लाई की गई बिजली का एक बड़ा हिस्सा शॉर्ट-टर्म मार्केट के माध्यम से ख़रीदा जाता था तो ग्राहकों को टैरिफ में अनिश्चितता के जोखिमों को भी उठाना पड़ता था. ट्रांसमिशन क्षमता की सीमा जैसे बुनियादी बाधाओं ने प्रतिस्पर्धी बोली (बिडिंग) के ज़रिये मुंबई क्षेत्र के बाहर से कम लागत पर बिजली की ख़रीद को सीमित कर दिया. इसका मतलब था उपभोक्ताओं के लिए अधिक औसत टैरिफ. जब निर्धारित टैरिफ से लागत की पूरी वसूली नहीं हुई तो वितरण के लाइसेंस धारकों ने नुकसान को नियामक परिसंपत्तियों (रेगुलेटरी असेट) में बदल दिया यानी निर्धारित टैरिफ के ज़रिये भविष्य में ग्राहकों से लागत की वसूली. खुदरा बिजली में प्रतिस्पर्धा का ये सोचा-समझा परिणाम नहीं था. “अव्यवस्था” के नज़रिये से देखें तो मुंबई में पैरेलल लाइसेंसिंग उपभोक्ताओं के लिए अनुचित परिणामों को उजागर करती है जिसका पता अधिक एवं अनिश्चित टैरिफ और लगातार मुकदमेबाज़ी में दिखने वाली रेगुलेटरी कमियों के ख़राब नतीजों से चलता है. ये ऐसा नतीजा नहीं है जिसकी उम्मीद कोई मुंबई में करेगा जहां अधिक घरेलू घनत्व (प्रति यूनिट क्षेत्र उपभोक्ताओं की संख्या) है, ऐसा वितरण नेटवर्क है जो ज़्यादातर अंडरग्राउंड है जिससे नुकसान कम होता है, बहुत कम कृषि उपभोक्ता हैं और भारत के अधिकतर बाकी हिस्सों की तुलना में जहां घरेलू आमदनी ज़्यादा है. ये सभी कम वितरण नुकसान और बिजली की अधिक कीमत को काफी हद तक बर्दाश्त करने में योगदान देते हैं. फिर भी पैरेलल लाइसेंसिंग बहुत बड़ी सफलता नहीं रही है. 

आदर्श

‘आदर्श’ नज़रिया बिजली वितरण में प्राइवेट कंपनियों के आने और उसके बाद उनके काम-काज में वित्तीय और तकनीकी कार्यकुशलता में सुधार को उजागर करता है. प्राइवेट लाइसेंस धारकों के काम-काज की आर्थिक और तकनीकी दक्षता में थोड़ा सुधार भी सरकारी वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के लगातार ख़राब प्रदर्शन के उलट है जिन्हें सामाजिक बोझ (रोज़गार और सब्सिडी का भार) उठाने के लिए मजबूर किया जाता है. पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (PFC) के द्वारा बिजली क्षेत्र की कंपनियों की सालाना एकीकृत रेटिंग और रैंकिंग निम्नलिखित मानदंडों (पैरामीटर) के आधार पर वितरण कंपनियों का आकलन करती है- (i) वित्तीय स्थिरता (सप्लाई की औसत लागत [ACS]-प्राप्त वार्षिक राजस्व [ARR], जेनको [उत्पादन कंपनियां] और ट्रांसको [ट्रांसमिशन कंपनियां] को प्राप्य [रिसिवेबल] दिन, देय [पेयेबल] दिन, एडजस्टेड क्विक रेशियो, डेट सर्विस कवरेज रेशियो, लाभ [ब्याज, कर और उधार चुकाने से पहले कर्ज़/कमाई]) (ii) प्रदर्शन (वितरण नुकसान, बिलिंग की दक्षता, कलेक्शन की क्षमता, कॉरपोरेट गवर्नेंस) और (iii) बाहरी माहौल (प्राप्त सब्सिडी, राज्य सरकार के द्वारा की गई घाटे की भरपाई, सरकारी बकाया, टैरिफ साइकल की टाइमलाइन और ईंधन की बढ़ती लागत को उपभोक्ताओं से वसूलना). 

2023 में वितरण कंपनियों की 12वीं सालाना रेटिंग और रैंकिंग में टॉप 10 रैंक में से छह प्राइवेट कंपनियों ने हासिल की और टॉप रैंक एवं रेटिंग मुंबई में पैरेलल लाइसेंस हासिल करने वाली कंपनियों में से एक अदाणी एनर्जी मुंबई लिमिटेड (AEML) को मिली. AEML मुंबई शहर के 7 डिविज़न में 30 लाख से ज़्यादा रिटेल ग्राहकों तक बिजली पहुंचाती है. उसके पास कोई कृषि उपभोक्ता नहीं है और उसके 14 प्रतिशत से ज़्यादा ग्राहक वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्र से हैं. AEML की बिलिंग दक्षता 93.7 प्रतिशत और कलेक्शन क्षमता 99.8 प्रतिशत थी. उसके प्राप्य दिन 17 और देय दिन 38 थे. जिन इलाकों में AEML बिजली सप्लाई करती है, वहां कुल तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान (AT&C) 5 साल में 11 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत पर पहुंच गया. AEML ये दावा भी करती है कि 50,000 ग्रीन (हरित) टैरिफ ग्राहकों के साथ उसने नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत से ज़्यादा कर ली है. 2023 में MSEDCL के अधिकार क्षेत्र में पैरेलल लाइसेंस के लिए अदाणी इलेक्ट्रिसिटी नवी मुंबई (AENML) और टॉरेंट पावर लिमिटेड (TPL) के आवेदन MERC के पास लंबित थे. ये प्राइवेट कंपनियों के लिए व्यवसाय के आकर्षण को दिखाता है.

निष्कर्ष

मुंबई में पैरेलल लाइसेंसिंग लागू होने के बाद से “अव्यवस्था” में योगदान देने वाले कई बुनियादी मुद्दों में काफी हद तक सुधार हुआ है. खुदरा वितरकों के लिए बिजली के स्रोत के कई विकल्प हैं क्योंकि ट्रांसमिशन में आने वाली बाधाएं दूर हो गई हैं. इसने टैरिफ के कॉस्ट-प्लस रेगुलेशन की आवश्यकता को ख़त्म कर दिया है. घरेलू खुदरा उपभोक्ताओं के लिए कुल टैरिफ में कमी आई है और टैरिफ को लेकर अनिश्चितता घटी है. नई तकनीक की शुरुआत के साथ बिलिंग और अपनी पसंद से चुनने को लेकर उपभोक्ता के अनुभव में भी काफी सुधार हुआ है. कैरिज (तार) और कंटेंट (बिजली) को अलग करने का काम अभी पूरा होना बाकी है लेकिन ये उन सभी वितरण लाइसेंस धारकों के लिए वितरण नेटवर्क के उपयोग के साथ व्यवहार में काम कर रहा है जो व्हीलिंग चार्ज का भुगतान करते हैं. 

2022 की स्थिति के अनुसार दो प्राइवेट पैरेलल लाइसेंस धारकों- TPCD और AEML- के पास कोई नियामक परिसंपत्ति नहीं थी और उनकी वित्तीय स्थिरता देश में सर्वश्रेष्ठ में से थी. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि पैरेलल लाइसेंसिंस की अव्यवस्था बाकी देश के लिए अब एक आदर्श है. मुंबई शहर की कई अनूठी विशेषताएं हैं जिनमें अधिक घनत्व के साथ कृषि उपभोक्ताओं का नहीं होना, ज़्यादा टैरिफ का बोझ उठाने के लिए लोगों की अधिक आमदनी और बिजली उत्पादन एवं वितरण में प्राइवेट सेक्टर की मौजूदगी का पुराना इतिहास शामिल हैं. ये विशेषताएं पैरेलल लाइसेंसिंग के लिए ज़रूरी हैं लेकिन पूरे देश में ये मौजूद नहीं हैं. कई राज्यों में कृषि और सब्सिडी प्राप्त बिजली की खपत का बोलबाला है और मौजूदा वितरण कंपनियां भारी कर्ज के बोझ से दबी हुई हैं. मुंबई मॉडल वितरण लाइसेंस धारकों के द्वारा बिजली उत्पादन करने वाली अपनी सहायक कंपनियों के साथ “पूरी तरह जुड़ने” की उनकी प्रवृत्ति को दिखाता है. इसमें खुदरा वितरण में प्रतिस्पर्धा के लाभों को सीमित करने की क्षमता है, विशेष रूप से टैरिफ कम करने के संदर्भ में. तथ्य ये है कि ईंधन (कोयला, प्राकृतिक गैस, हाइड्रो, परमाणु, नवीकरणीय) के लिए कोई बाज़ार नहीं है और बिजली की ख़रीद के लिए कोई पूरी तरह से विकसित थोक बाज़ार नहीं है. इसके कारण टैरिफ में कमी की सीमाएं हैं जो कि प्रतिस्पर्धा का एक मुख्य लाभ है. 

मुंबई में पैरेलल लाइसेंसिंग की शुरुआत के आरंभिक चरणों में बिजली प्राप्त करने में मुश्किलें साफ तौर पर उजागर करती हैं कि देश भर में रिटेल प्रतिस्पर्धा शुरू करने से पहले थोक प्रतिस्पर्धा की व्यवस्था होनी चाहिए. 

रेगुलेशन ज़रूरी है क्योंकि भारत के ज़्यादातर शहरों या राज्यों में दो या तीन से ज़्यादा लाइसेंस धारकों के प्रतिस्पर्धा में शामिल होने की संभावना नहीं है. ये एक कम प्रतिस्पर्धा की स्थिति होगी जिसके सीमित लाभ हैं. मुंबई में पैरेलल लाइसेंसिंग की शुरुआत के आरंभिक चरणों में बिजली प्राप्त करने में मुश्किलें साफ तौर पर उजागर करती हैं कि देश भर में रिटेल प्रतिस्पर्धा शुरू करने से पहले थोक प्रतिस्पर्धा की व्यवस्था होनी चाहिए. मुंबई के मामले में रिटेल प्रतिस्पर्धी Rinfra बिजली की सप्लाई के लिए अपने रिटेल प्रतिद्वंद्वी TPCD पर निर्भर थी. इससे प्रतिस्पर्धा के ख़िलाफ स्थिति बन गई. ऐसी स्थिति के लिए न्यायिक और रेगुलेटरी हस्तक्षेप अपर्याप्त थे. मुंबई में प्राइवेट और सरकारी वितरण लाइसेंस धारकों के बीच प्रतिस्पर्धा ग्राहकों के लिए संघर्ष तक सीमित है. वायरलेस टेलीकम्युनिकेशन उद्योग की तरह प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र का विस्तार किया जाना चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को ऐसे फायदे मिल सकें जो केवल रेगुलेशन से हासिल नहीं हो सकते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि बिजली कंपनियों का एकमात्र सफल रेगुलेशन प्रतिस्पर्धा और प्रतिस्पर्धी परस्पर प्रभाव शुरू करना है जो रेगुलेशन की आवश्यकता को ख़त्म करता है. बिजली के परिपक्व बाज़ारों में वास्तविक मुकाबले में शामिल वितरण कंपनियों ने कीमतें कम की हैं और बिक्री में बढ़ोतरी की है. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि उनकी वित्तीय स्थिति विस्तार के लिए पूंजी को आकर्षित करने की रेगुलेटरी कसौटी पर खरी उतरी है. कई मामले ऐसे हैं जहां उनका लाभ बढ़ा है और बिना प्रतिस्पर्धा वाली ऐसी ही कंपनियों की तुलना में ज़्यादा हुआ है. मुंबई की अव्यवस्था से कानून बनाने वालों, रेगुलेटर और कोर्ट के लिए मुख्य सबक है कि वो ये समझें कि रेगुलेशन प्रतिस्पर्धा की जगह नहीं ले सकता है बल्कि ये प्रतिस्पर्धा का मददगार है. 

स्रोत: केंद्रीय बिजली प्राधिकरण 


लिडिया पॉवेल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं. 

अखिलेश सती ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में प्रोग्राम मैनेजर हैं. 

विनोद कुमार तोमर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में असिस्टेंट मैनेजर हैं. 

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Authors

Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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