Published on Dec 19, 2020 Updated 0 Hours ago

संदीप बामज़ई की हालिया किताब, ‘प्रिंसेस्तान:नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे किया भारत निर्माण’ पर आधारित तीन किस्तों की सीरीज़ के इस दूसरे भाग से हमें पता चलता है कि किस तरह नेहरू ने त्रावणकोर की रियासत के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर की अपनी रियासत को भारतीय संघ से आज़ाद रखने की कोशिशों को नाकाम कर दिया था.

स्वतंत्र भारत के निर्माण के पीछे की साज़िशें और दांव-पेंच (भाग 2)

भारत की आज़ादी के समय, त्रावणकोर रियासत के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर एक विभाजनकारी किरदार थे. हालांकि उन्हें लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. कुछ लोग कहते हैं कि रामास्वामी अय्यर बस एक धूर्त रणनीतिकार थे, जोर अपनी रियासत के खनिज संसाधनों के बूते पर विश्व में अपनी रियासत का स्थान बनाना चाहते थे. त्रावणकोर में मोनाज़ाइट बालू के कण मिलते थे, जिनके बारे में कहा जाता था कि उसमें थोरियम और यूरेनियम प्रचुर मात्रा में होता है. रामास्वामी अय्यर के बारे में दूसरी राय ये है कि वो तोड़-भांज करने वाले ऐसे दीवान थे, जिनके पास त्रावणकोर के राजा से अधिक शक्तियां थीं और रियासत को वही चला रहे थे.

पर मूल बात ये थी कि वो इतने चतुर और दूरदर्शी थे कि उन्होंने ये समझ लिया था कि उनकी रियासत में मिलने वाले खनिज संसाधन की सामरिक अहमियत इतनी थी जिसके बूते पर वो त्रावणकोर को पश्चिमी देशों के साथ सीधे संवाद की हैसियत देते थे. इसके लिए उन्हें भारतीय गणराज्य को माध्यम बनाने की ज़रूरत नहीं थी. क्योंकि ये वो दौर था कि दुनिया में शीत युद्ध का आरंभ हो चुका था और पश्चिमी देश अपने परमाणु हथियारों के ज़ख़ीरे को बढ़ा रहे थे.

वो इतने चतुर और दूरदर्शी थे कि उन्होंने ये समझ लिया था कि उनकी रियासत में मिलने वाले खनिज संसाधन की सामरिक अहमियत इतनी थी जिसके बूते पर वो त्रावणकोर को पश्चिमी देशों के साथ सीधे संवाद की हैसियत देते थे.

किताब के अंश:

वर्ष 1946-47 के दौरान बम्बई स्थित लोकप्रिय समाचार साप्ताहिक ब्लिट्ज़ ने भारतीय रियासतों में चल रहे दांव-पेंचों को लेकर हाई प्रोफाइल कहानियों की पूरी सीरीज़ प्रकाशित की थी. ये कहानियां, जो मेरे दादा के.एन.बामज़ई के नाम से प्रकाशित हुई थीं, उनके छपते ही हंगामा मच गया. इनमें से एक कहानी बाग़ी तेवर अपनाने वाली त्रावणकोर रियासत से मोनाज़ाइट बालू की शक्ल में थोरियम-यूरेनियम को ब्रिटेन को निर्यात करने को लेकर हुए ख़ुफ़िया समझौते को लेकर भी थी. इस कहानी से जुड़े सबूत बात में प्रकाशित दस्तावेज़ों की शक्ल में सामने आए थे, जिन्हें निकोलस मैनसर्ग और पेंडेरल मून ने अपनी सीरीज़ ट्रांसफर ऑफ़ पावर के लिए इकट्ठा किया था. इत्तेफ़ाक़ से ये जानकारी पंडित नेहरू को भी बढ़ा दी गई, ताकि वो रियासतों के भीतर विदेशी ताक़तों के साथ मिलकर साज़िश रचने की गतिविधियों से जल्द से जल्द निपट सकें. नेहरू ने त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी रामास्वामी अय्यर और वायसरॉय लॉर्ड वेवेल के बीच ख़ुफ़िया गठजोड़ की ये जानकारी बामज़ई से मिली इन जानकारियों का इस्तेमाल, मोनोज़ाइट के निर्यात के समझौते को तोड़ने के लिए किया.

नेहरू ने त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी रामास्वामी अय्यर और वायसरॉय लॉर्ड वेवेल के बीच ख़ुफ़िया गठजोड़ की ये जानकारी बामज़ई से मिली इन जानकारियों का इस्तेमाल, मोनोज़ाइट के निर्यात के समझौते को तोड़ने के लिए किया.

इत्ती अब्राहम ने अपने लेख, ‘रेयर अर्थ्स:द कोल्ड वार इन द एनल्स ऑफ़ त्रावणकोर’ (जो एनटैंगल्ड जियोग्राफ़ीस:एम्पायर ऐंड टेक्नोपॉलिटिक्स इन द ग्लोबल कोल्ड वार में प्रकाशित हुआ था) में लिखा था:

सी.पी. रामास्वामी को ये बात अच्छे से पता थी कि दुर्लभ तत्वों को खनिज संसाधनों से सामरिक संसाधनों में तब्दील किया जा सकता है. नागासाकी पर परमाणु हमले के कुछ ही दिनों बाद अय्यर ने त्रावणकोर के महाराजा को लिखा कि, ‘अगर परमाणु बम बनाने के लिए थोरियम का इस्तेमाल किया जा सकता है (और इस बात का कोई कारण नहीं कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए) तो त्रावणकोर को दुनिया में बहुत ऊंचा स्थान हासिल हो सकता है.’ अय्यर के आधिकारिक जीवनी लेक ने लिखा है, ‘सी.पी. ने परमाणु बम की क्रांति के बाद बहुत आत्ममंथन किया और महाराजा को लिखा कि परमाणु बम से सभी उद्योगों और बिजली के उत्पादन में क्रांति आने वाली है. अगर आगे रिसर्च से परमाणु को तोड़ने की लागत और कम की जा सकी तो भाप से चलने वाले सभी इंजन और बिजलीघर ग़ैरज़रूरी बन जाएंगे और इनके आधार पर दुनिया भर में नए बिजलीघर बनाने का सिलसिला भी रुक जाएगा… चूंकि एटम बम बनाना यूरेनियम के विघटन पर आधारित है, इस तथ्य को समझने के बाद सर सी.पी. को ये एहसास हुआ कि अपने यूरेनियम और थोरियम के प्रचुर भंडार के चलते, इस क्षेत्र में त्रावणकोर को विशिष्ट स्थान प्राप्त हो सकता है.’

अप्रैल 1946 में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के तहत नवगठित एटॉमिक एनर्जी रिसर्च ने एलान किया कि वो जल्द ही, ‘त्रावणकोर की थोरियम खदानों में सघन जियोलॉजिकल और फेज़िक केमिकल सर्वे शुरू करेंगे.’ सर सी.पी. ने इस पर फौरन प्रतिक्रिया दी और कहा कि इस खनिज बालू का इकलौता मालिक त्रावणकोर है और वो थोरियम के भंडारों का नियंत्रण, ब्रिटिश सरकार समेत किसी भी विदेशी ताक़त के हाथों में नहीं सौंपने वाला है. सितंबर 1946 में त्रावणकोर ने बड़ी तेज़ी से मोनाज़ाइट निकालने वाली कंपनियों से समझौते किए और इस तरह खनिज बालू पर राज्य का अधिकार दोबारा स्थापित किया. इससे ये कंपनियां त्रावणकोर रियासत में काम करने वाली एजेंट और ठेकेदार बनकर रह गईं. ज़ाहिर है कि त्रावणकोर में बड़ी ताक़तों के साथ लुका-छिपा का खेल शुरू हो चुका था. सच और झूठ के बीच का फ़र्क़ मिट रहा था.

विधानसभा में थोरियम को लेकर राज्य की नीति के बारे में सवाल उठाने पर सर सी.पी. ने ये झूठा दावा किया कि किसी भी विदेशी कंपनी को बालू से मोनाज़ाइट निकालने का ठेका नहीं दिया गया है और इसके त्रावणकोर से बाहर निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस बारे में सारे निर्णय भारत सरकार से सलाह मशविरे के बाद लिए गए हैं. जबकि सच ये है कि त्रावणकोर की रियासत ब्रिटेन को मोनाज़ाइट निर्यात करने के लिए वहां की सरकार से ख़ुफ़िया तौर पर बातचीत कर रही थी. तय ये हुआ था कि अगले तीन वर्षों में त्रावणकोर से 9 हज़ार टन मोनाज़ाइट का निर्यात ब्रिटेन को किया जाएगा और ये समझौता 1947 में तब हुआ था, जब त्रावणकोर रियासत, मोनाज़ाइट बालू के दम पर ख़ुद को आज़ाद रखने के बारे में सोच रही थी. इसके बदले में ब्रिटिश सरकार ने त्रावणकोर से वादा किया था कि वो थोरियम लिमिटेड को त्रावणकोर में एक प्रॉसेसिंग प्लांट लगाने के लिए कहेगी. इसका एलान मई 1947 में हुआ था.

त्रावणकोर पर जब नेहरू ने हवाई हमले का विकल्प था 

इससे पहले जनवरी 1947 में बामज़ई-ब्लिट्ज़ के खुलासे से लैस पंडित नेहरू ने इंडियन साइंस कांग्रेस में ये प्रस्ताव पास कराया था कि इन सभी खनिज संसाधनों पर देश का अधिकार होना चाहिए-ख़ास तौर से वो खनिज जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिए आवश्यक हैं. नेहरू ने इस प्रस्ताव के पीछे त्रावणकोर में चल रही साज़िशों का हवाला दिया था, जिसे लेकर काफ़ी हंगामा भी मचा था. अप्रैल 1947 में भारतीय कैबिनेट की मीटिंग में नेहरू ने कहा था कि अगर त्रावणकोर रियासत भारत में विलय के लिए तैयार नहीं होती है, तो उसे राज़ी करने के लिए हवाई हमले का विकल्प भी आज़माया जा सकता है. त्रावणकोर की रियासत और सर सी.पी. के इन दांव-पेंचों से बेहद नाराज़ पंडित नेहरू ने CSIR के प्रमुख सर शांति स्वरूप भटनागर को त्रावणकोर भेजा था, ताकि वो ब्रिटेन और त्रावणकोर की रियासत के बीच हुए समझौते की सटीक जानकारी हासिल कर सकें. भटनागर इस बात से ख़फ़ा थे कि ब्लिट्ज़ के खुलासे के बावजूद उन्हें अंधेरे में रखा गया था. वो मशहूर वैज्ञानिक होमी भाभा के साथ जून 1947 की शुरुआत में त्रावणकोर गए थे. हैरानी की बात तो ये है कि सर सी.पी. और त्रावणकोर के राजा ने बिना किसी बहस के ही उनके आगे समर्पण कर दिया. इसके बाद भारत और त्रावणकोर के साझा परमाणु ऊर्जा आयोग के गठन पर सहमति बनी. त्रावणकोर से वापसी के बाद होमी भाभा ने नेहरू को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि दुर्लभ तत्वों पर सरकार का ही अधिकार बना रहना चाहिए.

अप्रैल 1947 में भारतीय कैबिनेट की मीटिंग में नेहरू ने कहा था कि अगर त्रावणकोर रियासत भारत में विलय के लिए तैयार नहीं होती है, तो उसे राज़ी करने के लिए हवाई हमले का विकल्प भी आज़माया जा सकता है.

सर सी.पी. ने खनिजों और रियासत पर अपना अधिकार इतनी आसानी से छोड़ दिया, तो इसके पीछे दो वजहें थीं. त्रावणकोर को लेकर ब्लिट्ज़ का पर्दाफ़ाश दो हिस्सों में था. एक तो वो भाग था, जो प्रकाशित किया गया था और दूसरा हिस्सा वो था जो सीधे नेहरू के हवाले किया गया था. ये निजी तौर पर सर सी.पी. को काफ़ी क्षति पहुंचाने वाला था. सर सी.पी. ने भारत सरकार और नेहरू के दबाव के आगे फौरन आत्मसमर्पण कर दिया. उनके घुटने टेकने की जानकारी सर शांति स्वरूप और होमी भाभा के ज़रिए नेहरू को दी गई. सर सी.पी. और त्रावणकोर रियासत के ऊपर ये विजय निर्णायक थी, जिसने त्रावणकोर के अपने खनिजों को बेचने की इच्छा पर निर्णायक तौर पर रोक लग गई थी, क्योंकि खनिजों को स्वतंत्र रूप से बेचने का त्रावणकोर के फ़ैसले के पीछे असल में एक बड़ी सियासी लड़ाई थी, जिसके तहत त्रावणकोर भारत के एक हिस्से को स्वतंत्र देश बनाने का इरादा रखता था. त्रावणकोर के साथ ये संघर्ष आज़ादी का ख़्वाब देख रही बाक़ी रियासतों को सबक़ देने वाला संदेश साबित हुआ.

सर सी.पी. के बाग़ी तेवरों में बदलाव तब आया, जब इस मामले में नेहरू का सीधा दखल हुआ, हालांकि दीवान सी.पी. ने प्रतिकार की पुरज़ोर कोशिश की थी. 2 जून 1947 को उन्होंने नेहरू को लिखा था कि,

‘त्रावणकोर की रियासत का ख़ास इतिहास और पृष्ठभूमि है, जिसे देखते हुए यहां की सरकार ने तय किया है कि वो ख़ुद को संघीय सरकार से अलग रखे, क्योंकि संघ में शामिल होने से उसके सभी हितों का संरक्षण हो पाने की उम्मीद न के बराबर है, जैसे कि संघीय शक्तियों की समिति और यहां तक कि मूलभूत अधिकारों की समिति में ऐसा होना संभव नहीं.’

सर सी.पी. के इस ग़ुरूर को उसी माह (19 जून 1947 को) वीर सावरकर से भी समर्थन मिला, जब सावरकर ने सर सी.पी. को ये टेलीग्राम भेजा:

‘हैदराबाद के मुस्लिम शासक निज़ाम ने पहले ही अपनी आज़ादी का एलान कर दिया है और दूसरी मुस्लिम रियासतों के भी ऐसा करने की संभावना है. हिंदू राज्य जो इतने बहादुर हैं कि वो इसका एलान कर सकें, उन्हें भी इसका अधिकार है…मैं त्रावणकोर के महाराजा की हमारी हिंदू रियासत को स्वतंत्र घोषित करने की साहसी और दूरदृष्टि वाली दृढ़ इच्छा का समर्थन कर रहा हूं.’

सर सी.पी. के दिमाग़ में उस वक़्त क्या चल रहा था, वो उनके 11 दिसंबर 1946 को ग्वालियर के महाराजा को भेजे गए ख़त से समझा जा सकता है:

‘मैं बुनियादी तौर पर इस बात में बहुत दिलचस्पी रखता हूं कि राजशाही की बेहतरीन विरासतों को सुरक्षित रखा जाए. मुझे लगता है कि ये मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैंने जो देखा समझा है उस पर आधारित सुझाव दूं. मुझे ये यक़ीन है कि भले ही मैं ग़लत ही होऊं,पर मुझे ग़लत नहीं समझा जाएगा. आदरणीय महाराजा मुझे लगता है कि आपको ये ख़त लिखकर मैंने भारतीय राजशाही के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह मात्र किया है.’

इसके बाद सर सी.पी. ने अपने सबसे मज़बूत तर्क टीआरवी शास्त्री को लिखे (8 अप्रैल 1947):

‘आज जो हालात हैं वो इतिहास से काफ़ी जुदा हैं. ऐसे में समुद्र से लगी हुई वो रियासतें जिनके पास प्रचुर संसाधन, जैसे कि-कृषि और औद्योगिक संसाधन हैं, वो हैदराबाद और मैसूर जैसे ज़मीन से घिरे हुए इलाक़ों से बिल्कुल अलग हैं. भले ही वो हम जैसी रियासतों से अधिक अमीर और शक्तिशाली क्यों न हों.’

क्या त्रावणकोर रियासत, थोरियम के भंडार को मोहरा बनाकर आज़ाद होने की फ़िराक़ में थे? 

ब्लिट्ज़ और के.एन. बामज़ई ने इस बारे में एक और ख़बर प्रकाशित की, जिससे इस बात की पुष्टि हो गई कि त्रावणकोर रियासत, अपने यहां मौजूद थोरियम के भंडार को मोहरा बनाकर आज़ाद होने की फ़िराक़ में है. ब्रिटिश कंपनी थोरियम लिमिटेड के साथ त्रावणकोर की सरकार के साथ हुआ कारोबारी समझौता असल में यूरेनियम और मोनाज़ाइट से लैस खनिज बालू की प्रॉसेसिंग को लेकर हुआ था. मोनाज़ाइट, थोरियम का प्राथमिक तत्व है, जो बालू में पाया जाता है और लाली लिए हुए भूरे रंग का फॉस्फेट अयस्क होता है, जिसमें दुर्लभ तत्व वाली धातु मिलती है. आम तौर पर ये छोटे और अलग अलग क्रिस्टल की शक्ल में होता है. मोनाज़ाइट इसलिए रेडियोएक्टिव होता है क्योंकि उसमें थोरियम मौजूद होता है. हालांकि कभी-कभार उसमें यूरेनियम भी पाया जाता है. अंग्रेज़ों का असली इरादा तो ये था कि वो त्रावणकोर की सरकार से मोनाज़ाइट वाला बालू ख़रीदकर उसे इंग्लैंड ले जाए, ताकि उसका रासायनिक विश्लेषण कर सके. लेकिन, त्रावणकोर की सरकार इस योजना पर सहमत नहीं हुई और अंत में तय ये हुआ कि बर्तानवी कंपनी, त्रावणकोर में ही थोरियम की प्रॉसेसिंग का कारखाना लगाएगी. इस समझौते के तहत प्रॉसेसिंग से बचे मोनाज़ाइट को इंग्लैंड को निर्यात किया जाएगा और इस पूरी गतिविधि पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार होगा. बालू की प्रॉसेसिंग का एक छोटा सा हिस्सा स्थानीय कारखाने में किया जाएगा और बड़ा हिस्सा ब्रिटेन भेजा जाएगा. जैसे ही नेहरू और भारतीय विज्ञान कांग्रेस को त्रावणकोर और इंग्लैंड के बीच इस साज़िश की भनक लगी, तो उन्होंने फौरन इस योजना पर ये कहते हुए पानी फेर दिया कि देश के प्राकृतिक संसाधनों को देश से बाहर नहीं ले जाया जा सकता.

अपनी आख़िरी कोशिश के तौर पर सर सी.पी. निजी तौर पर लॉर्ड माउंटबेटेन से मिलने गए, जिससे कि वो ब्रिटिश वायसरॉय को ये बता सकें कि उनके महाराजा, 15 अगस्त 1947 के बाद अपनी रियासत को आज़ाद घोषित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. माउंटबेटेन ने सर सी.पी. को वी.पी. मेनन के पास भेज दिया, जिन्होंने त्रावणकोर के इस महत्वाकांक्षी दीवान को ये समझाया कि उनकी रियासत में सबसे ज़्यादा कम्युनिस्ट पनप रहे हैं. अगर वामपंथियों ने 15 अगस्त 1947 के बाद अचानक त्रावणकोर के महाराजा के ख़िलाफ़ बग़ावत का बिगुल फूंक दिया, तो क्या होगा? अगर त्रावणकोर एक स्वतंत्र देश होगा, तो भारतीय डोमिनियन इसकी मदद के लिए आगे आने से इनकार कर देगी. ये तर्क सुनकर दीवान सी.पी. सोच में पड़ गए और उन्होंने बड़े असहज होकर वी.पी. मेनन से विदा ली. सर सी.पी. ने कोचीन लौट कर अपने महाराजा को बताया कि माउंटबेटेन चाहते हैं कि वो भारत में विलय के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दें. उन्होंने महाराजा को मेनन की दबे ढंके शब्दों में दी गई धमकी के बारे में भी बताया.

लियोनार्ड मोज़ले के मुताबिक़, त्रावणकोर के महाराजा ने टालमटोल करने के लिए माउंटबेटन का टेलीग्राफ भेजकर कहा कि वो विलय की शर्तों पर राज़ी तो हैं, मगर, उनके विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने में कुछ बाधा है. वायसरॉय माउंटबेटन ने महाराजा को जवाबी टेलीग्राफ में कहा कि बस इतने से काम नहीं बनने वाला है. उनका दस्तख़त करना ज़रूरी है. इसके साथ साथ त्रावणकोर के भूमिगत संगठन, राज्य की कांग्रेस कमेटी ने महाराजा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान कर दिया. प्रदर्शनकारियों की सड़कों पर राज्य की पुलिस के साथ भिड़ंत होने लगी. सर सी.पी. को भी एक अज्ञात व्यक्ति ने छुरा घोंप दिया और वो गंभीर रूप से ज़ख़्मी हो गए.

इसके बाद महाराजा ने घुटने टेक दिए और माउंटबेटन को तार भेजा कि वो विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे हैं. सरदार पटेल ने राज्य की कांग्रेस कमेटी द्वारा बुलाए गए विरोध प्रदर्शन को वापस ले लिया, और जैसा कि लियोनार्ड मोज़ले ने लिखा है कि, ‘ये त्रावणकोर की रियासत में कांग्रेस द्वारा बग़ावत उकसाने के शक्ति प्रदर्शन की बिल्कुल साफ़ मिसाल थी.’ इसके माध्यम से सरदार पटेल और वी.पी. मेनन ने उन रजवाड़ों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने की प्रतिबद्धता भी जता दी, जो अपनी रियासतों का भारत में विलय करने में आनाकानी कर रहे थे.

जब त्रावणकोर के परेशान दीवान ने ब्लिट्ज़ के पर्दाफ़ाश को जवाब देने की कोशिश की, तो ब्लिट्ज़ और बामज़ई ने दीवान पर पलटवार करते हुए ब्रिटिश सरकार और त्रावणकोर की रियासत के बीच 8 फ़रवरी 1947 को हुए समजौते का ड्राफ्ट सार्वजनिक कर दिया. इससे भारत में ब्रिटिश हुकूमत और बर्तानवी सरकार दोनों ही सन्न रह गए. त्रावणकोर रियासत और ब्रिटेन की थोरियम कंपनी के बीच हुए समझौते की शर्तें कुछ इस तरह से थीं:

  1. ये समझौता दो अलग अलग दौर के लिए था. पहला चरण तीन वर्षों का होता और दूसरा दौर पांच वर्षों का. पांच वर्षों का ये दूसरा समझौता तीन साल वाले पहले समझौते की सीमा समाप्त होने से पहले किया जा सकता था.
  2. तीन वर्षों के पहले चरण में मोनाज़ाइट की कोई प्रॉसेसिंग नहीं होनी थी. लेकिन, इसी दौरान त्रावणकोर की सरकार ये अपेक्षा कर सकती थी कि उनकी रियासत में प्रॉसेसिंग का कारखाना स्थापित होकर चालू भी हो जाता. इस दौरान कम से कम दस हज़ार टन खनिज युक्त बालू-मोनाज़ाइट की आपूर्ति ब्रिटिश सरकार को की जानी थी.
  3. समझौते के दूसरे चरण में प्रॉसेस किए गए सभी थोरियम नाइट्रेट को ब्रिटिश सरकार को बेचा जाना था.
  4. ये समझौता इंग्लैंड में होना था और इसकी व्याख्या अंग्रेज़ी क़ानून के मुताबिक़ ही की जाएगी.
  5. पहले ये समझौता त्रावणकोर सरकार और थोरियम लिमिटेड के बीच होना था. लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया, क्योंकि ये उचित नहीं लगा और अब ये समझौता ब्रिटिश सरकार और त्रावणकोर की सरकार के बीच हो रहा है. थोरियम लिमिटेड की ज़िम्मेदारी केवल प्रॉसेसिंग प्लांट लगाने की होगी.
  6. थोरियम लिमिटेड ये प्लांट यूरेनियम वाले बालू से यूरेनियम निकालने के लिए पट्टे पर देगी. इससे जो अतिरिक्त बालू बचेगा उसे थोरियम लिमिटेड ब्रिटेन ले जाएगी.

(किताब ‘प्रिंसेस्तान:नेहरू, पटेल और माउंटबेटेन ने कैसे भारत का निर्माण किया’ के प्रकाशकों रूपा पब्लिकेशन की सहमति से प्रकाशित अंश. किताब को यहां ख़रीदें)

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