Published on May 19, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत के आधिकारिक परमाणु सिद्धांत (OND) में ठहराव के बावजूद, भारत की डिलीवरी क्षमताओं में आ रहे तकनीक़ी परिवर्तन उसके सैद्धान्तिक परिवर्तन से आगे निकल रहे है.

पोखरण II के बाद भारत के एटम हथियार से संबंधित सिद्धांतों का बाधित विकास!

यह आलेख, 25 इयर्स सिंस पोखरण II: रिव्यूविंग इंडियाज न्यूक्लियर ओडिसी श्रृंखला का हिस्सा है.


1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद से ही भारत पर अपने न्यूक्लियर डॉक्टरिन अर्थात एटम सिद्धांत में संशोधन अथवा बदलाव करने को लेकर पड़ रहे दबाव के बावजूद इसमें केवल मामूली बदलाव हुए हैं. यहां किया गया विश्लेषण केवल घोषणात्मक परमाणु सिद्धांत पर केंद्रित है. सिद्धांत का पहला संस्करण अगस्त 1999 में जारी किया गया था. इसे ड्राफ्ट न्यूक्लियर डॉक्टरिन (DND) के रूप में भी जाना जाता था. DND के तीन केंद्रीय स्तंभ, ‘‘क्रेडिबल मिनिमम डिटरन्स अर्थात विश्वसनीय न्यूनतम निवारण (CMD),’’ ‘‘नो फर्स्ट यूज’’ (NFU) और एक विरोधी द्वारा परमाणु हथियारों के पहले उपयोग के ख़िलाफ़ ‘‘प्यूनिटिव रिटैलिएशन अर्थात दंडात्मक प्रतिशोध’’ (PR) के प्रति प्रतिबद्धता थे. डिटरन्स क्रेडिबिलिटी अर्थात निवारक विश्वसनीयता, शत्रु को दी जाने वाली सजा का वेट अर्थात महत्व और परमाणु संयम काफ़ी समय से बहस के विषय रहे हैं. 1998 के एटम परीक्षणों के बाद के प्रारंभिक वर्षों में, भारत के एटम सिद्धांत में बदलाव मुख्यत: संकटों के कारण किए गए थे.

कारगिल युद्ध के बाद नई दिल्ली ने अपने परमाणु विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कि वह किस हद तक जा सकता है अथवा अपने हमले का वेट यानी वज़न उसे कितना रखना है इसे लेकर अपनी नीति में अधिक स्पष्टता लाने का विचार किया.

कारगिल और उसके बाद: भारत का आधिकारिक परमाणु सिद्धांत

पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को आतंकवादियों का भेष देकर भारतीय कश्मीर में खाली पड़ी पर्वत चोटियों और दर्रों पर कब्ज़ा करने के लिए घुसपैठ करवा दी थी. इस तरह पाकिस्तान ने भारत के साथ कारगिल युद्ध शुरू किया था. भारतीय सैन्य बलों द्वारा मज़बूत जवाबी कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय दबाव के संयोजन ने पाकिस्तानियों को कारगिल की ऊंचाइयों से बेदखल होने पर मजबूर कर दिया था. DND को जारी करने से पूर्व विशेषत: सरकार ने ‘‘एडिक्वेट रिसपॉन्स अर्थात पर्याप्त प्रतिक्रिया’’ (ADR) पर अमल करने का फ़ैसला किया था. बाद में ADR का स्थान PR ने ले लिया. ADR की जगह पर PR को अपनाने का फ़ैसला मई और जुलाई 1999 के महीनों में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गए कारगिल संघर्ष की वज़ह से लिया गया था. नवंबर 1999 में PR में और संशोधन करते हुए सरकार ने ‘‘एश्योर्ड रिटैलिएशन अर्थात सुनिश्चित प्रतिशोध’’ (AR) करने का निर्णय लिया था.

हेयर-ट्रिगर अलर्ट आर्थिक रूप से महंगा परमाणु पास्चर अर्थात रुख़ माना जाता है. तीसरा, OND विश्व के साथ ही भारत के विरोधियों को स्थिरता प्रदान करते हुए परमाणु संयम भी अपनाने को प्रेरित करता है.

कारगिल युद्ध के बाद नई दिल्ली ने अपने परमाणु विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कि वह किस हद तक जा सकता है अथवा अपने हमले का वेट यानी वज़न उसे कितना रखना है इसे लेकर अपनी नीति में अधिक स्पष्टता लाने का विचार किया. अत: 2003 में, भारत सरकार ने DND की जगह ऑफिशियल न्यूक्लियर डॉक्टरिन अर्थात आधिकारिक परमाणु सिद्धांत (OND) को जारी कर दिया. हालांकि, OND ने जवाबी हमले के वेट अर्थात वजन को संशोधित करते हुए कहा: ‘‘दुश्मन की ओर से परमाणु हमले की पहल किए जाने पर परमाणु प्रतिशोध बड़े पैमाने पर और अस्वीकार्य क्षति पहुंचाने के हिसाब से तय किया जाएगा.’’ दुश्मन देश की ओर से परमाणु हमले की पहल किए जाने की स्थिति में दी जाने वाली व्यापक प्रतिक्रिया के साथ ही OND में विस्तार करते हुए दुश्मन देशों की ओर से किए जाने वाले रासायनिक और जैविक हथियारों के पहले उपयोग के ख़िलाफ़ भी परमाणु प्रतिकार करने की भी नीति अपनाने का निर्णय लिया गया. 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद के पांच वर्षों तक NFU तो स्थिर बना रहा, लेकिन सिद्धांत के प्रतिकार संबंधी आयाम में बदलाव और संशोधन होते गए. इन बदलावों की परिणति OND में हुई थी. लेकिन एक बार फिर दिसंबर 2001 में भारतीय संसद के ख़िलाफ़ लश्कर-ए-तैयबा के हमले की वज़ह से इसमें बदलाव की नौबत आ गई. संसद पर हुए हमले के बाद भारत ने एक साल तक सैन्य लामबंदी करते हुए पाकिस्तान पर यह दबाव बनाया कि वह देश की नीति के रूप में आतंकवाद के इस्तेमाल को बंद कर दें. लेकिन  मौखिक आश्वासन से परे, भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद का उपयोग करने की आदत से पाकिस्तान बाज नहीं आया.

2003 के बाद: अधिक मुखर हो गई OND की आलोचना

2003 के बाद, भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमले समेत कश्मीर, विशेष रूप से पुलवामा आत्मघाती आतंकवादी हमला जिसमें फरवरी 2019 में 40 भारतीय केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के जवान मारे गए थे, जैसे आतंकी हमलों की एक पूरी श्रृंखला और देश के ख़िलाफ़ आक्रामकता से भरपूर अनेक आतंकी कृत्यों के बावजूद, किसी भी भारतीय सरकार ने परमाणु सिद्धांत में संशोधन नहीं किया है. यदि कुछ किया भी गया तो वह यह था कि मोदी सरकार ने पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर के ख़िलाफ़ भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा हवाई हमला करते हुए पुलवामा आतंकी हमले का जवाब दिया था. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत के OND में बदलाव करने के बजाय कन्वेंशनल तथा सब-कन्वेंशनल अर्थात पारंपरिक और उप-पारंपरिक उपायों को अपनाते हुए जवाबी कार्रवाई की है. हालांकि, तीन केंद्रीय स्तंभों, अर्थात CMD, NFU और MR को संबोधित करने में सरकार की विफ़लता करने वाले अनेक आलोचक आगे आए हैं. OND के बाद के दो सिद्धांतों अर्थात NFU और MR की विशेष रूप से तीखी आलोचना हुई है. आलोचकों ने इसके लिए सरकारों की भर्त्सना की है, चाहे वह कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) या भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार हो. फिर चाहे NDA की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी या नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली ही क्यों न रही हो.

NFU को आलोचक मौलिक रूप से ‘‘प्रतिक्रियाशील’’ के रूप में देखते हैं. हालांकि वे इस बात को भी मानते है कि OND में NFU को शामिल करने के कुछ लाभ भारत को मिले हैं. सबसे पहला लाभ तो यह है कि यह प्री-एम्शन अर्थात पूर्व-क्रय अथवा परमाणु हमला करने की पहल को ख़त्म करता है. यदि यह व्यवस्था नहीं की जाती तो संकट की आपाधापी में न्यूक्लियर फर्स्ट स्ट्राइक (FS) अर्थात परमाणु हमले की पहल करने के लिए भारतीय निर्णयकतार्ओं पर काफ़ी दबाव बनता रहता. दूसरे, यह भारत को हेयर-ट्रिगर अलर्ट पर तैनात तक़नीकी रूप से उन्नत परमाणु क्षमता के निर्माण के नुक़सान से बचाने में सहायक है. हेयर-ट्रिगर अलर्ट आर्थिक रूप से महंगा परमाणु पास्चर अर्थात रुख़ माना जाता है. तीसरा, OND विश्व के साथ ही भारत के विरोधियों को स्थिरता प्रदान करते हुए परमाणु संयम भी अपनाने को प्रेरित करता है. इसके बावजूद आलोचक NFU को लेकर अनिवार्यता का रुख़ अपनाने के ख़िलाफ़ है. उनका मानना है कि यह रुख़ संकट की स्थितियों में भारतीय निर्णयकतार्ओं के लिए रणनीतिक निर्णय लेने के स्थान को सीमित करता है, जहां वे विरोधी के कार्यों को पूरा सबक सिखाने का जोखिम उठाते हैं. ऐसे में उन्हें परमाणु हथियारों का ज़्यादा उपयोग करने को लेकर किए जाने उपायों करने का काफ़ी कम वक़्त मिलता है. NFU अविश्वसनीय है, क्योंकि इसकी वज़ह से ही भौगोलिक रूप से सीमित पारंपरिक युद्ध में वृद्धि को सीमित करने के लिए विरोधी परमाणु हथियारों के उपयोग को रोकने या शुरू करने की संभावना नहीं रखते हैं. भले ही उनका उद्देश्य भारत की परमाणु कमान और नियंत्रण (C&C) प्रणाली को पहले हमले (FS) में नष्ट करके भारत की क्षमता को सीमित करने या महत्वपूर्ण रूप से इस क्षमता को बाधित करने के लिए सब कुछ करना ही होगा. यदि दुश्मन देश ‘‘अपनी ही शर्तों पर’’ युद्ध समाप्त करने का इरादा रखता है तो उसके पास भारत के परमाणु शस्त्रागार को यथासंभव नष्ट करने का मूल उद्देश्य लेकर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. यह बाद वाला बिंदु हमें भारत के OND के ख़िलाफ़ दूसरे प्रमुख स्तंभ - बड़े पैमाने पर प्रतिशोध (MR) पर लाता है.

भारत के पास अब बेहतर मिसाइल डिलीवरी सिस्टम है, जो कनस्तरीकृत होने की वज़ह से परमाणु लॉन्च अथवा हमला करने के लिए कम प्रारंभिक समय में कमी लाना संभव बनाते हैं.

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, वर्तमान OND में शामिल MR से पहले ही DND में ‘‘आश्वासित प्रतिकार’’ (AR) पहले था. AR को MR द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था. इस प्रतिस्थापना की भी आलोचकों ने समान रूप से यह कहते हुए भर्त्सना की थी कि यह FU के जवाब में भारत द्वारा बड़े पैमाने पर जवाबी हमले की प्रतीक्षा करने के लिए एक विरोधी की विश्वासशीलता पर दबाव डालता है. यदि कुछ भी हो, तो भी भारत का कोई भी विरोधी - पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) हो या फिर पाकिस्तान हो - जब उन्हें लगेगा कि भारत की ओर से व्यापक जवाबी परमाणु हमला किया जाना निश्चित है तो वे परमाणु हथियारों का पहले उपयोग करने को लेकर संयम नहीं बरतेंगे. इसके अलावा, MR में विश्वसनीयता की कमी है क्योंकि यह मौलिक रूप से CMD के साथ परस्पर विरोधी अथवा असंगत है, जो भारत के OND का तीसरा प्रमुख स्तंभ है. MR के लिए यह ज़रूरी है कि भारत CMD से मिली अनुमति से काफ़ी बड़ा परमाणु शस्त्रागार रख सकता है. संक्षेप में, संख्या की दृष्टि से छोटा भारतीय परमाणु बल, जो CMD के अधीन है, MR के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में चीन और पाकिस्तान के परमाणु FU की स्थिति में नई दिल्ली की ओर से यदि कोई जवाबी कार्रवाई की गई तो वह नगण्य ही होगी.

निष्कर्ष

संक्षेप में, भारत का OND मूलत: एक समझौता दस्तावेज़ है. यह दस्तावेज़ राजनीतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिस्पर्धी मांगों को प्रतिबिंबित करने को लेकर होने वाली बाधाओं के कारण विकसित हुआ है. 2003 में OND के जारी होने के बाद से भारतीय निर्णयकर्ता परमाणु सिद्धांत संबंधी मामलों पर कोई जोख़िम मोल लेने से बचते रहे हैं. पोखरण II परमाणु परीक्षणों के बाद से सभी संकटों और उथल-पुथल के बावजूद, लगातार सत्ता संभालने वाली सरकारों के द्वारा लिए गए निर्णयों से OND का एक सशक्त उदेश्य बहुत ही साफ़ हो जाता है. अब तक की सरकारों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इसका उद्देश्य परमाणु युद्ध का निवारण अथवा परमाणु युद्ध को रोकना है ना कि इसका उद्देश्य आतंकवाद या उप-पारंपरिक हिंसा को रोकना नहीं है.

अंत में, भारत के OND में ठहराव के बावजूद भारत की डिलीवरी केपेबिलिटिज़ अर्थात वितरण क्षमताओं में तक़नीकी बदलाव के कारण एक निश्चित समुद्र-आधारित परमाणु क्षमता (कम से कम पाकिस्तान के ख़िलाफ़) के रूप में उसकी परमाणु नीति के सैद्धांतिक बदलाव पीछे छूट रहे है. अब यह तक़नीकी बदलाव PRC की बेहतर परमाणु ताकत की वज़ह से उत्पन्न चुनौती का सामना करने के लिए भारत को मज़बूती प्रदान कर रहे है. भारत के पास अब बेहतर मिसाइल डिलीवरी सिस्टम है, जो कनस्तरीकृत होने की वज़ह से परमाणु लॉन्च अथवा हमला करने के लिए कम प्रारंभिक समय में कमी लाना संभव बनाते हैं. इसके अलावा यह तक़नीकी बदलाव भारत को मज़बूत जमीन, अंतरिक्ष और हवाई ख़ुफ़िया, निगरानी और टोही (ISR) क्षमताएं भी मुहैया करवाते हैं. इन तक़नीकी बदलावों के साथ 2003 में स्थापित एक ट्राई-सर्विस ऑर्गनाइजेशन अर्थात त्रि-सेवा संगठन, स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) के रूप में संगठनात्मक परिवर्तन भी हुआ है. इसकी ज़िम्मेदारी कर्मियों को प्रशिक्षण देने की है. इसके साथ ही यह संगठन भारत के प्रधान मंत्री के नेतृत्व में नेशनल न्यूक्लियर अथॉरिटी अर्थात परमाणु कमांड अथॉरिटी (NCA) के सख़्त कमांड और कंट्रोल (C2) और आदेशों के तहत परमाणु हथियारों का प्रबंधन, रखवाली और लॉन्च करने की भी ज़िम्मेदारी को वहन करेगा. कम से कम निकट भविष्य के लिए तो तक़नीकी बदलाव ही भारत के लिए सबसे अधिक दृश्यमान और गतिशील रहेंगे.


कार्तिक बोम्मकांती, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के सीनियर फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.