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Published on Apr 19, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत के सर्विस सेक्टर को विकास के उद्देश्य से तकनीक को अपनाने और हुनर बढ़ाने की गारंटी देने के लिए विशेष नीतियों पर अमल की ज़रूरत है.

भारत में बेरोज़गारी की समस्या का समाधान: सर्विस, स्किल और संतुलन

भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का ताज़ा आकलन बताता है कि घरेलू आउटपुट में सबसे बड़ा हिस्सा सर्विस का है. आर्थिक विकास के उद्देश्य से सेवाओं पर निर्भरता के लिए पूरी तरह से विकसित जॉब मार्केट (नौकरी का बाज़ार) होना चाहिए जिससे कामगारों का फ्री फ्लो (मुक्त प्रवाह) और पारिश्रमिक का उचित निर्धारण हो सके. इस तरह की व्यवस्था की गैर-मौजूदगी सर्विस सेक्टर में सख्ती की ओर ले जाएगी, विकास में कमी आएगी और कामकाजी वर्ग पर आर्थिक जुर्माना लगाएगी. ये लेख सर्विस सेक्टर की बढ़ती महत्वपूर्ण स्थिति की पृष्ठभूमि में भारतीय जॉब मार्केट की मौजूदा संरचना के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की खोजबीन करता है. जिन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान है उनमें सर्विस सेक्टर को आकार देने में तकनीक की भूमिकाभारतीय श्रम बाज़ार में बेमेल कौशल और जेंडर-न्यूट्रल काम-काज के माहौल के गेटवे (प्रवेश द्वार) के रूप में सर्विस का उपयोग शामिल है

ये लेख सर्विस सेक्टर की बढ़ती महत्वपूर्ण स्थिति की पृष्ठभूमि में भारतीय जॉब मार्केट की मौजूदा संरचना के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की खोजबीन करता है. 

तकनीक और सेवाएं

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रभावशाली कायापलट का नेतृत्व सर्विस सेक्टर के द्वारा किया जा रहा है जो GDP में 50 प्रतिशत से ज़्यादा योगदान करता है. इस सेक्टर का विस्तार अकेले नहीं हो रहा है बल्कि ये गहराई से वैश्विक तकनीकी प्रगति के साथ जुड़ा है. तकनीकी प्रगति कंपनियों के भीतर कार्यक्षमता, ग्राहक संतुष्टि, बाज़ार के विस्तार और डेटा प्रेरित निर्णय के लिए एक उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) रही है. इसने नई सेवा श्रेणियों जैसे कि -कॉमर्स और दूसरी तकनीक आधारित सेवाओं को भी बढ़ावा दिया है जिससे इस सेक्टर में क्रांति गई है

सर्विस सेक्टर के विकास और तकनीकी इनोवेशन के बीच संबंध दोनों के लिए फायदेमंद है. जैसे-जैसे सर्विस सेक्टर का विस्तार होता है ये तकनीक आधारित सॉल्यूशन में और अधिक इनोवेशन को बढ़ावा देता है. नए वेंचर (उद्यम) और उनकी तकनीकी आवश्यकताएं प्रतियोगितात्मकता (कंपीटिटिवनेस) हासिल करने के लिए लगातार तकनीकी प्रगति पर ज़ोर देती हैं जो कि गतिशील उद्योग में अपने पैर जमाने के लिए ज़रूरी है. प्रतियोगिता और विशेषज्ञता के लिए ये ज़रूरत रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) और खुले इनोवेशन में अधिक निवेश की ओर ले जाती हैं जिससे इसमें शामिल कंपनियों और आम लोगों- दोनों को फायदा होता है

व्यवसाय के काम-काज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल ने काम-काज की दक्षता, ग्राहकों की संतुष्टि और निर्णय लेने में सुधार किया है.

5G की शुरुआत और 6G टेक्नोलॉजी के चल रहे विकास ने कनेक्टिविटी, सर्विस मुहैया कराने की रफ्तार और कुल कार्यक्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की है. डिजिटल साक्षरता में सुधार की कोशिशों ने पूरे भारत में तकनीक को अपनाने की गति में और तेज़ी ला दी है. 69 प्रतिशत व्यवसायों की पहचानडिजिटल बिज़नेसके रूप में है और भारत ने सबसे ज़्यादा 87 प्रतिशत फिनटेक अपनाने की दर का प्रदर्शन किया है. व्यवसाय के काम-काज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल ने काम-काज की दक्षता, ग्राहकों की संतुष्टि और निर्णय लेने में सुधार किया है. इस तरह AI को अपनाने में भारत की स्थिति दुनिया में एक लीडर के तौर पर बनी है. हालांकि तेज़ डिजिटल परिवर्तन के उद्देश्य से भारत को रोज़गार तैयार करने और तकनीक की मांग वाली नौकरियों के लिए उपयुक्त कौशल मुहैया कराने के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी

हुनर के मामले में बंटवारा

भारत में श्रम बल (लेबर फोर्स) में हुनर का अंतर एक महत्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि ज़रूरी हुनर की कमी की वजह से लगभग 51.25 प्रतिशत युवाओं को ही रोज़गार के लिए योग्य माना जाता है. ये समस्या देश की विविध सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की वजह से और भी गंभीर हो गई है और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों और आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के युवाओं को प्रभावित करती है जिनको अच्छी शिक्षा और ट्रेनिंग उपलब्ध नहीं है. ये स्थिति केवल गरीबी के दुष्चक्र को स्थायी बनाती है बल्कि वेतन की असमानता को भी बढ़ाती है. गैर-तकनीकी हुनर जैसे कि कम्युनिकेशन (संवाद), क्रिटिकल थिंकिंग (गंभीर सोच) और लीडरशिप (नेतृत्व), जिनकी मांग बढ़ती जा रही है, को विकसित करने पर ज़्यादा ज़ोर नहीं होने की वजह से ये समस्या और भी बढ़ जाती है. पढ़ाई-लिखाई के ज़्यादातर संस्थानों के पाठ्यक्रम (करिकुलम) में इन कौशलों की अनुपस्थिति के कारण रोज़गार देने वाले चुनिंदा प्रमुख संस्थानों से ही उम्मीदवारों को चुनने के लिए प्रेरित होते हैं. इसके अलावा संस्थान में सिखाए गए कौशल और रोज़गार देने वालों की तरफ से मांगे जाने वाले  कौशल के बीच बहुत ज़्यादा अंतर है जिसकी वजह से औपचारिक तौर पर शिक्षित युवाओं के बीच भी बेरोज़गारी की स्थिति बन रही है

रेखाचित्र 1: पिछले कुछ वर्षों के दौरान रोज़गार के मामले में भारतीय लेबर फोर्स की योग्यता

स्रोत: इंडिया स्किल रिपोर्ट (2022, 2024) के डेटा से लेखकों के द्वारा संकलित

इस अंतर को पाटने की कोशिशों में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) शामिल होना चाहिए जैसे कि औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) को अपग्रेड करने की पहल और 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) की स्थापना जिसका मक़सद 2022 तक 15 करोड़ लोगों को ट्रेनिंग देना था. ये पहल शैक्षणिक नतीजों को बाज़ार की ज़रूरत से जोड़ने की तरफ कदम दिखाती हैं जिसमें तकनीकी और गैर-तकनीकी- दोनों तरह के हुनर के विकास के महत्व पर ज़ोर दिया गया है ताकि भारतीय श्रम बाज़ार में रोज़गार के लिए युवाओं की योग्यता बढ़ाई जा सके और असमानता का समाधान किया जा सके

लैंगिक समानता सुनिश्चित करना

2020 से 2023 के बीच भारत में रोज़गार के मामले में महिलाओं की योग्यता पुरुषों की तुलना में लगातार ज़्यादा रही जो कि 2024 में कम हो गई है. इसके अलावा व्हीबिज़ (Wheebiz) इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के सर्वे में ग्यारह में से सात वर्षों में ये ज़्यादा रही है. हालांकि महिला और पुरुष लेबर फोर्स के बीच लगातार अंतर बना हुआ है जो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को काम पर रखने में एक संभावित पक्षपात का संकेत देता है. अच्छी बात है कि ये पक्षपात कम हो रहा है क्योंकि महिला लेबर फोर्स की भागीदारी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है लेकिन इसमें अभी भी सुधार की ज़रूरत है

भारत सरकार ने जेंडर के मामले में समावेशी रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग पहल को लागू किया है. इसका उद्देश्य काम-काज की जगह में लैंगिक अंतर को भरने और महिला श्रमिकों को काम पर रखने को अधिक लाभदायक बनाने के साथ-साथ ये सुनिश्चित करना भी है कि ऐसी स्थिति वेतन के मामले में गैर-बराबरी की कीमत पर आए.  

एक महत्वपूर्ण कानून 1976 का समान पारिश्रमिक अधिनियम है जो एक जैसे काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करके वेतन में अंतर को ख़त्म करने के लिए बनाया गया था. लेकिन इस कानून के सामने कई चुनौतियां हैं जैसे किएक जैसे काम या समान प्रकृति के कामकी संकीर्ण व्याख्या की गई है और भेदभाव साबित करने की ज़िम्मेदारी कामगारों पर है जो काम-काज की जगह पर ताकत की गतिशीलता (पावर डायनैमिक्स) और कानूनी जटिलताओं की वजह से मुश्किल है

2017 का मातृ लाभ (संशोधन) अधिनियम एक और प्रगतिशील कदम है जिसने पेड मैटरनिटी लीव (छुट्टी) 12 से बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया है और वर्क फ्रॉम होम के लिए प्रावधान और बड़ी कंपनियों में क्रेच की सुविधा की शुरुआत की. ये कानून प्राइवेट सेक्टर में पैटरनिटी लीव शुरू करने की संभावना, बच्चों की देखभाल के लिए साझा ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा और महिलाओं के करियर की प्रगति के समर्थन की तरफ संकेत देता है

ये पहल शैक्षणिक नतीजों को बाज़ार की ज़रूरत से जोड़ने की तरफ कदम दिखाती हैं जिसमें तकनीकी और गैर-तकनीकी- दोनों तरह के हुनर के विकास के महत्व पर ज़ोर दिया गया है

इसके अलावा सरकार ने मिशन शक्ति और DAY-NRLM (दीनदयाल अंत्योदय योजना- नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन) जैसी योजनाओं की शुरुआत की है जिनके ज़रिए महिलाओं के कौशल विकास और रोज़गार के लिए योग्यता पर ध्यान दिया गया है. इन पहल के तहत महिलाओं के लिए विशेष प्रशिक्षण संस्थान, उद्योग केंद्रित कोर्स और प्राइवेट सेक्टर की इकाइयों एवं NGO के साथ साझेदारी शामिल हैं. कौशल विकास में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए ITI और ITC (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग सेंटर) में 30 प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं

तालिका 1: 2024 में वर्क फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी 

स्रोत: इंडिया स्किल रिपोर्ट 2024

राजनीति और रक्षा बल में महिलाओं की भागीदारी को विधायी संस्थानों में आरक्षित सीट और सरकारी सेवाओं में आसानी से प्रवेश के ज़रिए बढ़ावा दिया गया है. वित्तीय समावेशन की पहल और कार्यकारी (एग्ज़ीक्यूटिव) भूमिकाओं में महिलाओं को बढ़ावा भी लैंगिक अंतर को पाटने की तरफ महत्वपूर्ण कदम हैं क्योंकि निर्णय लेने की प्रक्रिया और नेतृत्व वाली स्थिति में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी को बिज़नेस के लिए अधिक राजस्व और फंडिंग से जोड़ा गया है. ये उपाय रोज़गार में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं. साथ ही एक अधिक समावेशी कार्य बल (वर्क फोर्स) को हासिल करने में कानूनी समर्थन, कौशल विकास और वित्तीय सशक्तिकरण के महत्व को उजागर करते हैं.  

निष्कर्ष

सर्विस सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख विकास करने वाला है जो अवसर और चुनौतियां दोनों पेश करता है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए विवेकपूर्ण नीतियों और प्रभावी कार्यान्वयन के साथ एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी. वैसे तो कौशल में अंतर की समस्या का समाधान करने के लिए PPP और नीतियां मौजूद हैं लेकिन उन पर प्रभावी अमल होना चाहिए. पढ़ाई-लिखाई के संस्थानों को बाज़ार की कौशल से जुड़ी ज़रूरत को पूरा करने के लिए अपने पाठ्यक्रम को अपडेट करने पर ध्यान देना चाहिए

तकनीकी प्रगति के साथ एक दिक्कत है. आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए तकनीकी प्रगति लगातार स्किल को बेहतर करना ज़रूरी बनाती है. तकनीकी प्रगति का लाभ उठाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका पाठ्यक्रम अपडेट हो गया है और वो नए इनोवेशन के अनुसार है. इसके अलावा, लैंगिक समानता समग्र आर्थिक विकास के लिए अपरिहार्य है. कानून लैंगिक असंतुलन हटाने का इरादा ज़ाहिर करते हैं लेकिन इन पर असरदार ढंग से अमल ज़रूरी है. वित्तीय समावेशन और नेतृत्व के अवसरों के माध्यम से सशक्तिकरण अर्थव्यवस्था के संभावित विकास का रास्ता खोलेगा. ये कदम सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग किया जा रहा है और लाभ को समान रूप से बांटा जा रहा है. 


आर्य रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं

वेदांत राउथ ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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