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ये लेख भारत की बजट आवश्यकताओं पर चर्चा करने वाले तीन भाग की श्रृंखला का दूसरा हिस्सा है. पहला हिस्सा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
वित्तीय वर्ष 2025-26 का केंद्रीय बजट पेश होने में अब चंद दिन ही शेष बचे हैं और मीडिया के मंचों पर विश्लेषक लगातार इसको लेकर चर्चा कर रहे हैं कि इस साल के आम बजट में केंद्र सरकार की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए. इससे साथ ही अटकलें लगाई जा रही हैं कि बजट में क्या खास हो सकता है. हालांकि, रोज़गार की समस्या का मुद्दा जस का तस बना हुआ है. ज़ाहिर है कि पूर्व में सरकार द्वारा रोज़गार को लेकर तमाम नीतिगत सुधार किए गए हैं, बावज़ूद इसके रोज़गार की समस्या विकराल बनी हुई है. यह समस्या सिर्फ़ बेरोज़गारी तक सीमित नहीं है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ बेरोज़गारी को दूर करने में देश का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या, जो उभर कर सामने आई है, वो है अर्थव्यवस्था में आवंटन की दिक़्क़त की, यानी संसाधनों की कमी है और सिस्टम यह तय करने के लिए संघर्ष कर रहा है कि आबादी की असीमित आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए उन सीमित संसाधनों को सर्वोत्तम तरीक़े से कैसे वितरित किया जाए. कहने का मतलब है कि समस्या सभी सेक्टरों में ज़रूरत के मुताबिक़ रोज़गार की कमी की है या कहा जाए कि कुशल और प्रशिक्षित कामगारों की कमी है. इसने इस समस्या को और व्यापक बना दिया है, यानी भारत की रोज़गार समस्या देखा जाए तो काफ़ी हद तक गुणात्मक हो चुकी है.
ज़ाहिर है कि पूर्व में सरकार द्वारा रोज़गार को लेकर तमाम नीतिगत सुधार किए गए हैं, बावज़ूद इसके रोज़गार की समस्या विकराल बनी हुई है. यह समस्या सिर्फ़ बेरोज़गारी तक सीमित नहीं है.
भारतीय श्रम बाज़ार की दो बड़ी चुनौतियां
चित्र 1 में दिखाए गए आंकड़ों पर नज़र डालें तो साफ हो जाता है कि विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार और आउटपुट यानी उत्पादकता में ज़बरदस्त अंतर है. इसके लिए कहीं न कहीं वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों के ज़रिए वैश्विक कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक ताक़तों के लिए देश के अविकसित औद्योगिक क्षेत्र को खोलने को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसका नतीज़ा यह हुआ कि देश में सर्विस सेक्टर यानी सेवा क्षेत्र का दबदबा बढ़ता गया. देखा जाए तो इसी सर्विस सेक्टर का देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और रोज़गार सृजित करने में बड़ा योगदान है, या कहें कि देश की इकोनॉमी के विकास में सेवा क्षेत्र की अग्रणी भूमिका है. लेकिन विनिर्माण सेक्टर के विकास में तेज़ी नहीं होने की वजह से रोज़गार के माध्यमों में संरचनात्मक बदलाव नहीं हो पाया. यानी कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से उच्च उत्पादकता वाले सेक्टरों में श्रम का पुनर्वितरण और उच्च कुशल कामों की हिस्सेदारी नहीं बढ़ पाई. आमतौर पर देखा जाए तो रोज़गार में संरचनात्मक परिवर्तन के लिए खेती-बाड़ी के कामकाज से जुड़े अप्रशिक्षित और अकुशल कामगारों को उद्योगों में खपाया जाता है. जहां तक भारत का सवाल है, तो यहां सर्विस सेक्टर के तेज़ उभार ने, जिसमें प्रशिक्षित और कुशल कर्मचारियों की ज़रूरत होती है, रोज़गार के इस संरचनात्मक बदलाव को रोक दिया है. नतीज़तन कामगारों और उत्पादकता का वितरण असमान हो गया है.

Source: PLFS 2023-24, and MOSPI
जिस प्रकार से भारत में घरेलू स्तर पर सेवा क्षेत्र में तेज़ी जारी है और वैश्विक स्तर पर भी सर्विस सेक्टर की मांग में वृद्धि बनी हुई है, ऐसे में इस साल के बजट में सेवा क्षेत्र पर फोकस होना चाहिए और इसमें भी अधिक से अधिक रोज़गार के मौक़े पैदा करने पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए. आगे तालिका 1 में शिक्षा के स्तर के लिहाज़ से श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) को प्रदर्शित किया गया है. यानी इसमें बताया गया है कि किस शिक्षा स्तर की आबादी में लोगों के रोज़गार का अनुपात क्या है. इन आंकड़ों को गौर से देखें तो, एक अलग ही ट्रेंड नज़र आता है. इसके मुताबिक़ जहां माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षित आबादी में कामगारों यानी नौकरी करने वालों का अनुपात निरक्षर आबादी की तुलना में कम है. इससे पता चलता है कि अशिक्षित श्रमिकों को न केवल कृषि से जुड़े कार्यों में शामिल किया जा सकता है, बल्कि उन्हें ऐसे सेक्टरों में रखा जा सकता है, जहां अनुबंध पर कर्मचारी रखे जाते हैं. इन आंकड़ों से यह भी सामने आता है कि डिप्लोमा या सर्टिफिकेट रखने वाले लोगों का श्रमिक जनसंख्या अनुपात सबसे अधिक है, यानी किसी क्षेत्र की विशेषज्ञता रखने वाले कामगारों को रोज़गार मिलने का अनुपात सबसे ज़्यादा है. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि नौकरी पाने के लिए कौशल बढ़ाने या व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की बहुत अधिक ज़रूरत है. यानी पेशेवर कोर्स युवाओं को अच्छी नौकरी पाने के लिए तैयार करते हैं.
तालिका 1: शिक्षा के स्तर के अनुसार कुल आबादी में कामगारों का अनुपात
उच्चतम शिक्षा का स्तर
|
श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR)
|
निरक्षर
|
59.6
|
साक्षर और प्राथमिक स्तर की शिक्षा
|
68.5
|
पूर्व माध्यमिक
|
60.7
|
माध्यमिक
|
49.7
|
उच्चतर माध्यमिक
|
45.9
|
डिप्लोमा/सर्टिफिकेट कोर्स
|
73.6
|
ग्रेजुएट
|
57.5
|
पोस्ट ग्रेजुएट और उससे अधिक
|
62.2
|
माध्यमिक और उससे ऊपर
|
52.1
|
सभी
|
58.2
|
स्रोत: MOSPI
अतीत में सरकार द्वारा उठाए गए नीतिगत क़दम
रोज़गार से जुड़ी इन दोनों समस्याओं से निपटने के लिए सरकार द्वारा पहले भी अलग-अलग योजनाओं के ज़रिए प्रयास किए जा चुके हैं. उदाहरण के तौर पर सरकार द्वारा प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेन्टिव (PLI) यानी उत्पादन से संबंधित प्रोत्साहन योजना के माध्यम से विनिर्माण सेक्टर को प्राथमिकता दी गई है, ताकि आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी औद्योगिक क्षेत्र को विकसित किया जा सके. इसके अलावा भी सरकार की ओर से कई दूसरे उपाय किए गए हैं. जैसे कि पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान के अंतर्गत देश में लॉजिस्टिक्स हब्स का विकास किया गया है, हरित ऊर्जा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का विस्तार किया गया है, सोलर मॉड्यूल और बैटरी स्टोरेज सिस्टम विनिर्माण क्षेत्र में पीएलआई योजनाओं को लागू किया गया है. इसके साथ ही सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यमों के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का विस्तार किया गया है. देखा जाए तो सरकार की ओर से ये सारी कोशिशें कहीं न कहीं विनिर्माण सेक्टर के विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई हैं. ज़ाहिर है कि सरकार के इन क़दमों से अनुत्पादक गतिविधियों में फंसे अकुशल कृषि कामगारों या खेतिहर मज़दूरों की समस्या का समाधान हो जाएगा, यानी उन्हें रोज़गार के बेहतर मौक़े मिल सकते हैं.
जहां तक रोज़गार से जुड़ी दूसरी समस्या यानी कौशल और प्रशिक्षण की समस्या की बात है, तो इससे निपटने के लिए पिछले बजटों में केंद्र सरकार प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) लेकर आई. इस योजना के ज़रिए युवाओं और कामगारों के कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है.
जहां तक रोज़गार से जुड़ी दूसरी समस्या यानी कौशल और प्रशिक्षण की समस्या की बात है, तो इससे निपटने के लिए पिछले बजटों में केंद्र सरकार प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) लेकर आई. इस योजना के ज़रिए युवाओं और कामगारों के कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है. इस योजना का मकसद सर्विस सेक्टर की ज़रूरतों के मुताबिक युवाओं को प्रशिक्षित करना और तैयार करना है. पिछले बजट में केंद्र की तरफ से जिस प्रकार से रोज़गार से जुड़ी योजनाओं के लिए अधिक धनराशि आवंटित की गई थी, उससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि सरकार रोज़गार के मुद्दे पर गंभीर है और इसकी राह में आने वाली दिक़्क़तों को दूर करना चाहती है. सरकार की इन योजनाओं में स्किल इंडिया योजना और रोज़गार से जुड़ी प्रोत्साहन (ELI) योजनाएं शामिल थीं. पिछले बजट में ईएलआई के दायरे में तीन योजनाओं का सुझाव दिया गया था. ईएलआई योजना ए के तहत प्रावधान किया गया था कि सरकार औपचारिक सेक्टर के कार्यबल में पहली बार शामिल होने वाले एक लाख रुपये तक की मासिक आय वाले कामगारों को सब्सिडी के रूप में तीन किस्तों में 15,000 रुपये तक एक महीने का वेतन वापस करेगी. ईएलआई योजना बी का मकसद विनिर्माण सेक्टर में युवाओं को आकर्षित करना है और इसके अंतर्गत नौकरी के पहले चार वर्षों में कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को उनके भविष्य निधि योगदान के लिए एक सुनिश्चित पैमाने पर सीधे प्रोत्साहन देने का प्रावधान किया गया है. आख़िर में ईएलआई योजना सी में सरकार प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारी के लिए दो वर्षों तक 3,000 रुपये प्रति माह तक ईपीएफओ के नियोक्ता के हिस्से की प्रतिपूर्ति करेगी.
देखा जाए तो इन दोनों ही मोर्चों पर सरकार द्वारा जो भी पहलें की गई हैं, वो बहुत अधिक कारगर साबित नहीं हुई हैं और भारत की तरक़्क़ी की बाधाएं बनी हुई हैं. सरकार द्वारा विनिर्माण सेक्टर में सुधारों के लिए किए गए अधिक वित्तपोषण के बावज़ूद निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता और ऊर्जा लागत की वजह से व्यापक स्तर पर रुकावटों को झेलना पड़ा, जिसके चलते क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाया. इसी प्रकार से सूचना प्रौद्योगिकी, हेल्थकेयर और पर्यटन जैसे सर्विस सेक्टरों में, जहां प्रशिक्षित पेशेवरों की सबसे अधिक मांग है, वहां कुछ प्रगति तो हुई है, लेकिन कुशल कर्मचारियों की मांग और आपूर्ति के अंतर को दूर करना आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि सरकार आवश्यकता के अनुरूप कुशल कामगारों और पेशवरों की कमी की समस्या से निपटने के लिए दोहरा नज़रिया अपनाए. यानी इसके लिए सरकार ऐसे सेक्टरों में जहां कर्मचारियों की बहुत अधिक ज़रूरत है, जैसे कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर वहां रोज़गार को बढ़ावा दे सकती है. इसके अलावा, जो वर्तमान कामगार हैं, उन्हें ज़रूरी प्रशिक्षण उपलब्ध कराके, या कहा जाए कि उनके कौशल में वृद्धि करके उन्हें सेवा क्षेत्र में स्थानांतरित करने में मदद कर सकती है.
निष्कर्ष एवं सुझाव
ज़ाहिर है कि रोज़गार सृजन से जुड़ी इन समस्याओं से निजात पाने के लिए इस बार के बजट में जहां शिक्षा और कौशल विकास से जुड़ी स्किल इंडिया जैसी पहलों पर होने वाले बजटीय आवंटन को बढ़ाया जा सकता है, वहीं पहले से ही उच्च कुशल कामगारों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाली नई योजनाओं को लागू करने और उनके विस्तार पर पर व्यय बढ़ाया जा सकता है. गौरतलब है कि उच्च स्तर की शिक्षा एवं उच्च कौशल वाली नौकरियों के बीच का जो अंतर है, उसे कहीं न कहीं ऐसी राष्ट्रीय योजनाओं के ज़रिए ही ख़त्म किया जा सकता है, जो इस सच्चाई को न केवल बखूबी समझती हैं, बल्कि कुशल कामगारों व पेशेवरों को प्रोत्साहित करती हैं. इसके अलावा, वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में औद्योगिक विकास पर भी फोकस बनाए रखा जाना चाहिए. इसके साथ ही, इस साल के बजट में अनुत्पादक कर्मचारी यानी ऐसे कार्यों में लगे लोगों को, जिनका आर्थिक विकास और उत्पादकता बढ़ाने में कोई योगदान नहीं होता है, उन्हें औपचारिक उद्यमों के दायरे में लाया जाना चाहिए, जिससे देश में उत्पादकता व आर्थिक तरक़्क़ी को बढ़ावा मिल सके.
विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, यानी वर्ष 2047 तक देश को उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए और लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए, वर्तमान वृद्धि दर से काम नहीं चलेगा.
विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए, यानी वर्ष 2047 तक देश को उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए और लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए, वर्तमान वृद्धि दर से काम नहीं चलेगा. कहने का मतलब है कि विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए बहुत ज़्यादा वृद्धि दर की ज़रूरत होगी. ज़ाहिर है कि इसके लिए दीर्घकाल तक उच्च उत्पादन हासिल करने की ज़रूरत होगी और इसे अधिक से अधिक उत्पादकता के ज़रिए ही हासिल किया जा सकता है. हालांकि, कम राजकोषीय घाटे से देश में निवेश बढ़ सकता है, बावज़ूद इसके सरकार को आम बजट में इंडस्ट्री सेक्टर के लिए अधिक पूंजीगत व्यय आवंटित करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. सरकार को हर हाल में उच्च घाटे और रोज़गार की कमी के बीच संतुलन बनाकर क़दम आगे बढ़ाना चाहिए. ऐसे में इस वर्ष के आम बजट में इन सेक्टरों के लिए कितना बजट आवंटित किया जाता है, यह देखना बेहद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इन क्षेत्रों के लिए अधिक बजट आवंटन से ही विकसित भारत के सपने को साकार करने की दिशा में एक मज़बूत नींव रखी जा सकती है.
आर्य रॉय बर्धन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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