Author : Rumi Aijaz

Expert Speak Terra Nova
Published on Dec 20, 2024 Updated 0 Hours ago

वैसे तो दिल्ली-NCR क्षेत्र में प्रदूषण के ख़िलाफ़ लड़ाई में GRAP का कुछ असर हुआ है लेकिन और भी अधिक कुशल समाधानों की आवश्यकता है जिसमें दिल्ली के नागरिकों और केंद्र की सरकार का समर्थन हो. 

दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान

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दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण एक आम बात हो गई है. कुछ अंतर के साथ हर साल इसका अनुभव होता है. उदाहरण के लिए, जून से सितंबर तक मानसून के मौसम के दौरान वायु प्रदूषण सबसे कम होता है क्योंकि बार-बार की बारिश प्रदूषण को फैलने या बढ़ने का अवसर नहीं देती है. लेकिन बाकी के महीनों में वायु प्रदूषण की तीव्रता कई गुना बढ़ जाती है. सबसे ख़राब वायु गुणवत्ता (एयर क्वालिटी) का अनुभव ठंड के महीने में अक्टूबर से फरवरी के दौरान होता है. 

दिल्ली क्षेत्र में बहुत अधिक वायु प्रदूषण का होना काफी ज़्यादा चिंता की बात है. ये जीव-जंतुओं और प्रकृति को कई तरह से प्रभावित कर रहा है. इस समस्या का सबसे आम संकेत ख़राब दृश्यता (विज़िबिलिटी), सांस लेने में कठिनाई, बहुत अधिक लोगों को सांस की बीमारी, सतही पानी की क्वालिटी में गिरावट और शहर की गतिविधियों में रुकावट है. 

दिल्ली क्षेत्र में बहुत अधिक वायु प्रदूषण का होना काफी ज़्यादा चिंता की बात है. ये जीव-जंतुओं और प्रकृति को कई तरह से प्रभावित कर रहा है.

वायु प्रदूषण के सबसे ख़राब समय के दौरान मीडिया, राजनीतिक दल और हित समूह हर साल इस मुद्दे पर चर्चा करते हैं, इस पर प्रकाश डालते हैं. इस समस्या को काबू में करने के लिए उच्चतम न्यायालय, केंद्र सरकार और शहर के प्रशासन ने अलग-अलग ढंग से दखल दिया है और वायु प्रदूषण के स्रोतों पर आधारित कई समाधान लागू किए हैं. 

 

वायु प्रदूषण के कारण

 

ये पता चला है कि वायु प्रदूषण मानवीय और प्राकृतिक कारकों के मिश्रण के कारण होता है. दिल्ली भारत का सबसे सघन आबादी वाला क्षेत्र है और इसकी बड़ी आबादी अलग-अलग गतिविधियों- यात्रा, निर्माण एवं उत्पादन, कृषि, बिजली उत्पादन एवं खपत, सफाई और त्योहारों को मनाने- में लगी हुई हैं. इनमें से कई गतिविधियां पर्यावरण के हिसाब से बहुत ख़राब ढंग से की जाती हैं जिसके नतीजतन धूल पैदा होती है और हवा में प्रदूषण पैदा करने वाले तत्व निकलते हैं.  

इस क्षेत्र में परिवहन, निर्माण और कृषि क्षेत्र वायु प्रदूषण के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं. बड़ी संख्या में मोटर गाड़ियां जीवाश्म ईंधन पर चलती हैं और गाड़ियों के रख-रखाव के साथ-साथ ट्रैफिक प्रबंधन में अकुशलता है. निर्माण गतिविधि में बहुत ज़्यादा धूल उत्पन्न होती है क्योंकि निर्माण के काम में लगी एजेंसियां नई बन रही संरचनाओं को सही ढंग से नहीं ढकती हैं. जहां तक बात खेती की है तो इसका ज़िक्र करना ज़रूरी है कि धान और गेहूं के अवशेषों (पराली) को पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान जलाते हैं. किसानों को जहां ये तरीका खेत में नई फसल बोने के लिए त्वरित और सुविधाजनक लगता है, वहीं ये दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है.  

इसके अलावा, नगर निगम ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) के सुविधाजनक निपटारे के लिए उसे जलाता है. साथ ही, ग़रीब लोग और सुरक्षा गार्ड, जो कि खुले में रात बिताते हैं, सर्दी के महीनों के दौरान ठंड से ख़ुद को बचाने के लिए पत्ते और सूखी लकड़ियां जलाते हैं जिससे प्रदूषण होता है. वायु प्रदूषण का एक और स्रोत पटाखे हैं. दिवाली के त्योहार के दौरान एक हफ्ते तक रात के समय में लगातार पटाखे फोड़ने से सर्दी के मौसम में हर साल ज़हरीला धुआं (स्मॉग) निकलता है. इस समय के दौरान एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) में अभूतपूर्व बढ़ोतरी होती है क्योंकि ठंड के दौरान प्रदूषित हवा वायुमंडल की निचली परत में फंस जाती है. 

नगर निगम ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) के सुविधाजनक निपटारे के लिए उसे जलाता है. साथ ही, ग़रीब लोग और सुरक्षा गार्ड, जो कि खुले में रात बिताते हैं, सर्दी के महीनों के दौरान ठंड से ख़ुद को बचाने के लिए पत्ते और सूखी लकड़ियां जलाते हैं जिससे प्रदूषण होता है.

दूसरे मानवीय कारक शहरी योजना और विकास में खामियों से जुड़े हैं. कई जगह खाली ज़मीन पर रेत बिखरी हुई है क्योंकि दिल्ली क्षेत्र आम तौर पर सूखा रहता है और तेज़ सतही हवाएं सभी दिशाओं में धूल उड़ाती हैं. ये धूल सड़क के कॉरिडोर पर जम जाती है और चलती हुई मोटर गाड़ियों के द्वारा फैल जाती है. अरब प्रायद्वीप और राजस्थान के रेगिस्तान समेत दूर-दराज के स्थानों से इस क्षेत्र में आने वाली धूल से ये समस्या और बढ़ जाती है. ये मौजूदा हालात गाड़ी चलाने वालों और पैदल चलने वालों- दोनों के लिए समस्या पैदा करते हैं.  

 

समाधान

 

पिछले कुछ वर्षों में सरकारी एजेंसियों ने वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिए कागज़ों में और ज़मीनी स्तर पर- दोनों जगह बहुत ज़्यादा काम किया है. उपलब्ध जानकारी की समीक्षा से पता चलता है कि अलग-अलग प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों के लिए कानून और नीतियां तैयार की गई हैं. ज़मीनी स्तर पर जो कार्रवाई की गई है उनमें प्रदूषण पैदा करने वाली औद्योगिक इकाइयों को दिल्ली से दूर ले जाना, पुरानी मोटर गाड़ियों के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से ख़त्म करना, सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों को डीज़ल की जगह कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) से चलाना, निजी एवं वाणिज्यिक वाहनों को स्वच्छ ईंधन पर चलाना, इलेक्ट्रिक गाड़ियों की शुरुआत, मशीन से सड़कों की सफाई, सौर ऊर्जा प्रणाली की स्थापना और एयर क्वालिटी की निगरानी के केंद्र बनाना शामिल हैं. 

पूर्व में और वर्तमान के हस्तक्षेपों ने कुछ हद तक मुद्दे का समाधान करने में मदद की है लेकिन अनुचित मानवीय गतिविधियों के कारण समस्या की भयावहता बहुत अधिक है. यही वजह है कि ज़मीनी स्तर पर बहुत अधिक सुधार नज़र नहीं आता है. 

NCR क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों के दौरान जब भी हवा की गुणवत्ता बिगड़ती है तो ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) को लागू किया गया है. इस योजना में संबंधित सरकार और प्राइवेट एजेंसियों (यानी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, निर्माण एजेंसियां, परिवहन विभाग, ट्रैफिक पुलिस, नगर निगम और बिजली वितरण कंपनियां), रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, ज़मीन के मालिकों और लोगों को प्रदूषण से लड़ाई में मदद के लिए GRAP के दिशानिर्देशों के अनुसार कुछ विशेष कार्रवाई और गतिविधियां करने (या रोकने) का निर्देश दिया जाता है.  

समीक्षा से पता चलता है कि अलग-अलग प्रदूषण पैदा करने वाले स्रोतों के लिए कानून और नीतियां तैयार की गई हैं.

इस तरह जब AQI वैल्यू 200 या ‘मध्यम’ स्तर के आगे चला जाता है तो कई उपायों को लागू किया जाता है. इन उपायों को चार चरणों के तहत बांटा गया है जो प्रदूषण की तीव्रता पर निर्भर करता है. उदाहरण के तौर पर, जब प्रदूषण कम होता है तो संबंधित एजेंसियों को निर्माण और ध्वस्तीकरण (C&D), सड़कों की सफाई और ट्रैफिक प्रबंधन से जुड़ी गतिविधियों में अधिक कार्य कुशलता सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है. प्रदूषण में बढ़ोतरी होने पर अतिरिक्त उपाय जैसे कि सार्वजनिक क्षेत्रों में पार्किंग फीस में बढ़ोतरी, C&D गतिविधियों पर प्रतिबंध, शैक्षिक संस्थानों में फिज़िकल क्लास बंद करना, घटियां ईंधन पर चलने वाले ट्रकों और अंतरराज्यीय बसों के दिल्ली में प्रवेश पर पाबंदी, घर से काम करने और ऑड-ईवन गाड़ियों की योजना की शुरुआत को लागू किया जाता है. नागरिकों को सिटीज़न चार्टर के ज़रिए क्या करें और क्या नहीं करें की जानकारी भी दी जाती है. 

इसी के अनुसार जब नवंबर 2024 में दिल्ली में GRAP के चौथे चरण को लागू किया गया तो छात्रों से कहा गया कि वो पढ़ाई के ऑनलाइन माध्यम को अपनाएं, मोटर गाड़ियों में लोगों की यात्रा पर रोक लगाई गई, प्रदूषण फैलाने वाले मालवाहक वाहनों (जो गैर-ज़रूरी उत्पाद लेकर आ रहे थे) को रोका गया, सड़कों/इमारतों के निर्माण की गतिविधियां थम गईं और सार्वजनिक क्षेत्रों में पार्किंग फीस में बढ़ोतरी की गई. दूसरे शब्दों में कहें तो कई गतिविधियां ठीक से काम नहीं कर सकीं जिसका असर लोगों के जीवन पर अलग-अलग ढंग से पड़ा. 17 दिसंबर 2024 को GRAP के चौथे चरण को एक बार फिर लागू किया गया क्योंकि दिल्ली के आनंद विहार और रोहिणी समेत कई भीड़-भाड़ वाले इलाकों में AQI वैल्यू 400 के पार पहुंच गई थी. 

वर्तमान परिस्थितियों में शहर की एजेंसियों को वायु प्रदूषण के मुद्दे का समाधान करने में अधिक कार्यकुशलता का प्रदर्शन करना चाहिए. ये उपलब्धि केंद्र सरकार के साथ-साथ नागरिकों, जिन्हें नियमों का पालन करना है, से प्राप्त होने वाले पर्याप्त समर्थन पर निर्भर है. 

दिल्ली क्षेत्र में वायु प्रदूषण कम करने के लिए निम्नलिखित काम करने की आवश्यकता है: 

 

  • क्षेत्रीय सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार लाया जाना चाहिए. गुरुग्राम में कम दूरी के लिए बस सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं और लोगों को ख़ुद इंतज़ाम करना पड़ता है. इसके अलावा, कई मेट्रो रेल स्टेशनों पर सार्वजनिक परिवहन के साधनों के एकीकरण का अभाव है. बस सेवाओं की गुणवत्ता, समय-समय पर मिलने और सुरक्षा में सुधार की आवश्यकता है. ऑटो रिक्शा में किराये को नियमों के तहत लाने की ज़रूरत है. इस तरह की कमियों के कारण निजी मोटर गाड़ियों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है. 

 

  • सड़क और इमारत बनाने वाली निर्माण एजेंसियों को धूल पर नियंत्रण के उपायों का पालन करना चाहिए. कंस्ट्रक्शन के दौरान इमारत के ढांचे को हरे कपड़ों से अच्छी तरह ढकना चाहिए और धूल को फैलने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव करना चाहिए. 

 

  • खेतों में पराली जलाने की प्रथा पर रोक लगानी चाहिए. शहरी क्षेत्रों में सॉलिड वेस्ट जमा करने की तरह कृषि से जुड़े वेस्ट का संग्रह करने की एक प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है. किसानों और खेतिहर मज़दूरों को वेस्ट जमा करने के लिए कहा जा सकता है जिसे वो पर्यावरण के अनुकूल ढंग से निपटारे के लिए संग्रह केंद्रों में जमा कर सकते हैं. इसके बदले में किसानों को कुछ प्रोत्साहन की पेशकश की जा सकती है.  

 

  • इस क्षेत्र में अवैध ढंग से चलने वाली आर्थिक गतिविधियों, जिसके कारण प्रदूषण होता है और जिनमें छोटी औद्योगिक इकाइयां भी शामिल हैं, की पहचान की जानी चाहिए और ऊर्जा के स्वच्छ रूप की तरफ बदलाव के लिए उसके मालिक को सहायता मिलनी चाहिए. 


रूमी एजाज़ ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की अर्बन पॉलिसी रिसर्च इनिशिएटिव में सीनियर फेलो हैं.

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