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Published on Jul 25, 2024 Updated 0 Hours ago

महिलाओं की दृष्टि से सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित, सुविधाजनक और आसान बनाने वाली नीतियों को अपनाने से दिल्ली एक अधिक समावेशी और समान सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कायम कर सकती है.

नए युग का आरंभ: दिल्ली में सुरक्षित और समावेशी सार्वजनिक परिवहन

तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा भारत का शहर दिल्ली, सार्वजनिक परिवहन के लिए दिल्ली मेट्रो तथा दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (DTC) की बसों पर आश्रित है. शहर की विकास योजनाओं में भी इन्हीं ट्रांजिट सिस्टम्स यानी पारगमन व्यवस्थाओं के विस्तार को प्राथमिकता दी जा रही है. इसके अलावा अंतिम मील की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए पैराट्रांसिट यानी पूरक पारगमन व्यवस्था जैसे ग्रामीण सेवा, ऑटो रिक्शा, साइकिल रिक्शा, ई-रिक्शा, टैक्सी और अंतरराज्यीय बसों का उपयोग किया जा रहा है. हालांकि यह व्यवस्था हमेशा जेंडर न्यूट्रल यानी लिंग-तटस्थ नहीं होती है. अर्बन प्लान यानी शहरी योजनाओं, मोबिलिटी डिजाइन यानी गतिशीलता योजना और सामाजिक-आर्थिक पहलू ही दिल्ली में महिलाओं के आवागमन को शक्ति प्रदान करते हैं या फिर उस पर बंधन लगाते आए हैं.

 

भारतीय शहरों में महिलाएं ही सार्वजनिक परिवहन की प्राथमिक उपयोगकर्ता हैं. इसमें से महिलाओं की 84 प्रतिशत यात्राएं या आना-जाना कार्य संबंधी, नागरिक, इंटरमीडिएट-पब्लिक यानी अंतर-नागरिक और नॉन-मोटराइज्ड परिवहन साधनों का उपयोग करके होती है. हालांकि जेंडर-अवर्स यानी लिंग-प्रतिकूल गतिशीलता ढांचा अधिकांशत: पॉवर डानैमिक्स यानी शक्ति गतिविज्ञान को ही पुख़्ता करता है. यह इस बात को साफ़ तौर पर दर्शाती है कि कैसे शहरों का ढांचा मुख्यत: पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए ही तैयार किया जाता है. ऐसे में दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था महिलाओं की सुगम गतिशीलता के समक्ष कौन सी चुनौतियां पेश करती हैं? मौजूदा अर्बन मोबिलिटी फ्रेमवर्क यानी शहरी गतिशीलता ढांचे से सबक लेकर सभी के लिए परिवहन या यात्रा को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है? दिल्ली की परिवहन योजना को कैसे अधिक समावेशी बनाया जाए ताकि इससे महिलाओं की इस व्यवस्था तक पहुंच को सुगम बनाकर महिलाओं की सुरक्षा को पुख़्ता किया जा सके?

 दिल्ली की परिवहन योजना को कैसे अधिक समावेशी बनाया जाए ताकि इससे महिलाओं की इस व्यवस्था तक पहुंच को सुगम बनाकर महिलाओं की सुरक्षा को पुख़्ता किया जा सके?

मुख्य चिंताएं

 

ऐसा माना जाता है कि दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन नीतियां महिलाओं के अनुभव और सुरक्षा की अनदेखी करती हैं. इसका कारण यह है कि नेतृत्व करने वाले लोगों में लिंग विविधता का अभाव है. उदाहरण के लिए परिवहन विभाग में केवल दो महिला प्रतिनिधियों की मौजूदगी है. ऐसे में लिंग-संबंधी अनेक चिंताओं पर बात ही नहीं हो पाती. बस स्टॉप/अड्डों पर पर्याप्त रोशनी नहीं होने और महिलाओं के लिए पूर्वनिर्धारित वेटिंग क्षेत्र यानी बस का इंतजार करने वाला क्षेत्र न होने से महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से बचती हैं. दिल्ली में किए गए एक सर्वे में 88 फ़ीसदी महिलाओं ने सार्वजनिक परिवहन के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार होने की बात स्वीकार की है. लेकिन इसमें से केवल एक फ़ीसदी ने ही इस संबंध में पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवाई थी. इसके अलावा अपर्याप्त या घटिया लास्ट माइल कनेक्टिविटी यानी अंतिम मील कनेक्टिविटी, अंधेरी गलियों, घटते फुटपाथ और अलग-थलग सबवे और पार्क पर अक्सर छुटभैये अपराधियों का कब्ज़ा होता है. इस वजह से इन सुविधाओं का उपयोग करना ख़तरनाक हो जाता है और महिलाओं में इसकी वजह से भय व्याप्त होता है. 

 बस में सीमित सीटों की व्यवस्था और सीटों के बीच से गुजरने वाला रास्ता संकरा होता है, जिसकी वजह से भीड़ बढ़ जाती है. ऐसे में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं.

2019 में घोषित नि:शुल्क बस योजना के बावजूद 29 प्रतिशत महिलाओं ने कभी-कभार ही बस का उपयोग करने की बात मानी है. इतना ही नहीं बस का उपयोग करने वाली महिलाओं ने पुरुष सहयात्रियों तथा चालकों की ओर से होने वाले उत्पीड़न यानी परेशान किए जाने की बात भी स्वीकारी है. DTC कर्मचारियों ने पाया है कि घूरने, छेड़छाड़, स्पर्श करने जैसी हरकतें रोज़मर्रा की बात है. बस में सीमित सीटों की व्यवस्था और सीटों के बीच से गुजरने वाला रास्ता संकरा होता है, जिसकी वजह से भीड़ बढ़ जाती है. ऐसे में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं. बस स्टॉप का रखरखाव ढंग से नहीं किया जाता है और वहां छत अपर्याप्त तथा रोशनी कम होती है. अत: अनहोनी का ख़तरा बढ़ जाता है. मेट्रो का किराया अधिक होने की वजह से कम आय वाली महिलाओं पर बोझ पड़ता है. ऐसे में 50 प्रतिशत महिलाएं मानती है कि दिल्ली मेट्रो का सफ़र करना उनके बस के बाहर की बात है. यह मुद्दा विशेषत: असंगठित क्षेत्र और सामाजिक या आर्थिक दृष्टि से वंचित वर्ग को काफ़ी परेशान करता है. ऐसे वर्ग की महिलाएं अपने घर के आसपास ही कोई काम करना पसंद करती हैं, क्योंकि उन्हें अपना घर भी संभालना होता है और वे सुरक्षा के मसले को लेकर चिंतित भी रहती हैं.

 

आधार संरचना 

 

बेहतर शहरी प्रशासन और सहभागिता वाला विकास सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसा ढांचा आवश्यक है जो सुरक्षित और समावेशी सार्वजनिक ट्रांजिट सिस्टम्स उपलब्ध करवाए. विश्व बैंक की जेंडर रिस्पॉन्सिव अर्बन मोबिलिटी यानी लिंग उत्तरदायी शहरी पारगमन व्यवस्था सुनिश्चित करने वाली टूलकिट में महिलाओं की अगुवाई वाले पुलिस कंट्रोल रूम्स, हेल्पडेस्क यानी सहायता कक्ष और क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन (CCTV) सर्विलांस तथा ऑन-द-स्पॉट जुर्माना लगाने या गिरफ्तारी की व्यवस्था को ज़रूरी माना गया है. यह टूलकिट वैश्विक स्तर पर, विशेषत: वैश्विक दक्षिण के उन शहरों में जहां मूलभूत आवश्यकताओं को ज़रूरी माना जाता है, स्वीकार्य नहीं है. लेकिन यह ढांचा सार्वजनिक यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश तो मुहैया करवाता ही है. 

 

UNDP, UN वूमेन नेपाल और लीगल एड एंड कंसल्टेंसी सेंटर की ओर से द वूमेन्स सेफ्टी ऑडिट (WSA) यानी महिला सुरक्षा अंकेक्षण करवाया गया है. इसमें सुझाव दिया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्रों में एक महिला सुरक्षा सहयोग यात्रा का आयोजन किया जाए. इस यात्रा में सरकारी अफसर, सेवा प्रदाताओं और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों के लोगों को शामिल किया जाए, ताकि सार्वजनिक स्थानों को जेंडर-रिस्पॉन्सिव यानी लिंग-उत्तरदायी बनाया जा सके. इस अंकेक्षण ने सार्वजनिक स्थानों पर सर्विलांस को पुख़्ता करने के साथ सेवा प्रदाताओं जैसे चालक, कंडक्टर्स, गार्ड्‌स और स्थानीय दुकानदारों के साथ मिलकर जागृति कार्यक्रम का आयोजन करने की भी वकालत की है. 

 दक्षिण कोरिया में द कन्विनियंट सियोल पॉलिसी यानी सुविधाजनक सियोल नीति के तहत सर्विलांस कैमरों में वृद्धि की गई है, ताकि हमलों पर नज़र रखी जा सके. इसके अलावा एडवांस्ड टैक्सी ट्रैकिंग सिस्टम्स लागू किया गया है, जिसकी सहायता से रात के वक़्त यात्रा करने वाली महिलाओं पर नज़र रखकर उन्हें सुरक्षित रखा जा सके.

दक्षिण कोरिया में द कन्विनियंट सियोल पॉलिसी यानी सुविधाजनक सियोल नीति के तहत सर्विलांस कैमरों में वृद्धि की गई है, ताकि हमलों पर नज़र रखी जा सके. इसके अलावा एडवांस्ड टैक्सी ट्रैकिंग सिस्टम्स लागू किया गया है, जिसकी सहायता से रात के वक़्त यात्रा करने वाली महिलाओं पर नज़र रखकर उन्हें सुरक्षित रखा जा सके. सियोल ने साइडवॉक यानी फुटपाथों की किनारों की ऊंचाई घटाकर तथा हंप-टाइप यानी कुबड़नुमा क्रॉसवॉक तैयार कर इस व्यवस्था को भी बेहतर बनाया है. क्वीटो, इक्वाडोर में यौन उत्पीड़न की रियल-टाइम रिपोर्टिंग सुगम बनाने के लिए टेक्स्ट मैसेजेस्‌ का सहारा लिया गया है. इन मैसेज में ‘उत्पीड़न’ जैसे शब्द को की-वर्ड बनाया गया है. इस की-वर्ड के साथ ही बस की पहचान करने वाले चिन्हों की जानकारी भी मैसेज में शामिल की गई है. इस व्यवस्था में तत्काल जवाबी कार्रवाई होती है. यह मैसेज आते ही बस चालक सतर्क होकर एक अलार्म बजा देता है. इसके बाद स्टॉप हैरेसमेंट ब्रिगेड यानी अड्डा उत्पीड़न ब्रिगेड पीड़ित के साथ तीन मिनट में संपर्क साधते हुए उसे शिकायत दर्ज़ करने और सुरक्षा सुविधा पाने के साधन मुहैया करवाता है.

 

टोरंटो की लास्ट-माइल कनेक्टिविटी में विशेष वेटिंग एरिया के साथ स्टेशन ऑपरेटर तक इंटरकॉम पहुंच शामिल है. बिटवीन स्टॉप्स प्रोग्राम में महिलाओं को 9 PM से 5 AM के बीच स्टॉप का अनुरोध करने की अनुमति दी गई है. लिंग-उत्तरदायी सार्वजनिक परिवहन में वियना को महारत हासिल है. वहां के परिवहन प्राधिकरण में बड़ी संख्या में महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया गया है. इस शहर ने अधिक रौशनी, मोबाइल स्टाफ, अतिरिक्त रात्रि सुरक्षा और आपातकालीन बटंस के साथ अपने ढांचे में भी सुधार किया है. महिला कर्मचारियों को नाइट शिफ्ट यानी रात्रि पाली में तैनात नहीं किया जाता है. इस वजह से उनकी भी सुरक्षा में इज़ाफ़ा होता है.

 

कुछ भारतीय शहरों में भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं. उदाहरण के लिए भुवनेश्वर में, कैपिटल रीजन अर्बन ट्रांसपोर्ट ने अपने कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया है. इसमें महिलाओं को बस कंडक्टर के रूप में नियुक्ति दी गई है. इसके अलावा महिलाओं और ट्रांसजेंडर लोगों को बस तथा ई-रिक्शा ऑपरेटर बनने का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसमें एक और मामला कोलकाता का भी शामिल है. यहां सुबह से लेकर रात तक महिला विशेष बसें चलाई जाती हैं. ऐसे में कार्यालयीन वक़्त और भीड़ भरी बसों में महिलाओं को राहत मिलती है.

 

दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन को सभी के लिए उपयोगी बनाना

 

दिल्ली सरकार ने सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में अहम कदम उठाए हैं. इसमें दिल्ली मेट्रो के पहले कोच को महिलाओं के लिए आरक्षित कर इस संबंध में कोच दर्शाने वाले स्पष्ट निशान लगाने और CCTV सर्विलांस का समावेश है. तत्काल कार्रवाई बल के कारण दोषियों से जुर्माना वसूलने का काम भी तेज हुआ है और सूर्यास्त के बाद गश्त में इज़ाफ़ा भी किया गया है. इसके अलावा सुरक्षा को बढ़ाने के लिए महिला सुरक्षाकर्मियों की तैनाती भी की गई है. 2022 में DTC ने नाइट सर्विस में 88 नियमित बसों तथा 30 महिला विशेष बसों की वृद्धि की थी. भारी भीड़ वाले वक़्त में ये सेवाएं उपलब्ध करवाई गई थी. DTC ने अपनी बस के कर्मियों में लिंग संवेदनशीलता कार्यक्रम चलाया और महिला विशेष बसों में 25 फ़ीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रखी जाती हैं. इसके अलावा सुरक्षा प्रयासों में होमगार्ड और मार्शल्स भी सहयोग कर रहे हैं. DTC की ओर से महिलाओं को भारी और हल्के वाहन चलाने का नि:शुल्क प्रशिक्षण भी मुहैया करवाया जा रहा है. DTC ने महिला बस चालकों की संख्या को 2022 में 11 से बढ़ाकर 2024 में 60 कर दिया है. हालांकि इसे प्रत्यक्ष में धरातल पर लागू करने को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं.

 

इस तरह के झटकों से उबरने के लिए निरंतर और बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाना ज़रूरी है. इसमें नीति स्तर, बुनियादी ढांचे और सामाजिक नज़रिये को लेकर प्रयास आवश्यक है. सुरक्षा अंकेक्षण को अंतिम मील कनेक्टिविटी, जिसमें बस स्टॉप और इंटरचेंज स्टेशंस शामिल है, जैसे मुद्दे की पहचान करनी होगी. वन दिल्ली एप्प रियल-टाइम बस आगमन की सूचना मुहैया करवाता है, लेकिन इसके बारे में महज दो फ़ीसदी महिलाओं को ही जानकारी है. स्कूल, सोशल मीडिया, कॉलेज और सार्वजिनक टाउन हॉल्स में जागृति अभियान चलाए जाने चाहिए. गली और सड़क को सुरक्षित बनाने के लिए लिंग सुरक्षा अंकेक्षण, जैसा कि जागोरी एंड वूमेन इन सिटीज इंटरनेशनल की ओर से किया गया था, किया जाना भी आवश्यक है. 

 बस स्टॉप पर नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए निगरानी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए. इसके साथ ही नियमित उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई भी होनी चाहिए. बस स्टॉप को रणनीतिक रूप से स्थापित किया जाना चाहिए और ये अच्छी तरह से कनेक्टेड होने चाहिए.

बस स्टॉप पर नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए निगरानी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए. इसके साथ ही नियमित उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई भी होनी चाहिए. बस स्टॉप को रणनीतिक रूप से स्थापित किया जाना चाहिए और ये अच्छी तरह से कनेक्टेड होने चाहिए. यहां बेहतर दृश्यता के साथ-साथ आपात स्थिति के लिए पैनिक बटंस की व्यवस्था भी होनी चाहिए. इन पहलों में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने के लिए बहुहितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए DTC, पर्पस इंडिया और यंग लीडर्स फॉर एक्टिव सिटीजनशिप के साथ सेफ्टीपिंस के समन्वय ने दिल्ली बस टर्मिनल्स तक पहुंच और सुरक्षा का आकलन करते हुए महत्वपूर्ण कार्रवाई सुझाई थी.

 

लिंग-उत्तरदायी मोबिलिटी व्यवस्था के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार करना बेहद ज़रूरी हो गया है. पैदल चलने वालों के लिए बेहतर माहौल बनाने के लिए पर्याप्त आकार वाले फुटपाथों का निर्माण ज़रूरी है, ताकि सभी के लिए पैदल चलना सुलभ और सुगम हो सके. इसके अलावा पैदल चलने के साथ-साथ साइकिल ट्रैक्स में इज़ाफ़ा किया जाना चाहिए. ऐसा फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए. ऐसा हुआ तो मोटर रहित परिवहन का उपयोग करने वाली महिलाओं के लिए यह बेहद लाभकारी साबित होगा. अहमदाबाद जैसे अनौपचारिक तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, जहां महिलाएं स्ट्रीट वेंडर्स यानी रेहड़ी वालों के साथ सुरक्षित महसूस करती हैं. इस तरह के कदम मौजूदा तरीकों के लिए सहायक साबित हो सकते हैं. इसके साथ ही लिंग-समावेशी साइनेजेस्‌ जैसे कि पैदल चलने वाले चिह्नों में महिलाओं के चित्रों का समावेश, समावेशन की भावना को बढ़ावा देने वाले साबित होंगे.

 

दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व व्यवस्था को महिलाओं का परिप्रेक्ष्य रखकर तैयार किए जाने की आवश्यकता पर बल देने वाला है. सार्वजनिक परिवहन प्राधिकारियों में एक जेंडर एडवाइजरी कमेटी (GAC) यानी लिंग सलाहकार समिति का गठन लिंग समानता को प्राथमिकता दे सकता है. यह समिति परिवहन योजनाओं की समीक्षा करते हुए इसके लिंग-उत्तरदायी नियोजन, अमल और मूल्यांकन को सुनिश्चित करेगी. सार्वजनिक परिवहन में लिंग-संवेदनशील नियोजन, डिजाइन, अमल और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए GAC क्षमता वृद्धि कार्यक्रम को भी विकसित कर सकेगी. जागोरी लिंग संवेदनशीलता पहल जैसे प्रयासों का उपयोग करके महिलाओं के लिए फ्री पास जैसी पहलों की वकालत करने के कोशिश की जा सकती है.

 

महिला कंडक्टर्स और चालकों की संख्या में वृद्धि करना अहम है और इसके साथ ही शौचालय तथा पेयजल की व्यवस्था भी की जानी चाहिए. यौन उत्पीड़न रोकने, महिलाओं की भर्ती और उन्नति को बढ़ावा देने तथा कर्मचारियों के लिए लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण के लिए GAC प्रोटोकॉल यानी आदर्श व्यवस्था स्थापित कर सकती है. इसके साथ ही पुणे की तर्ज़ पर लिंग बजट को अपनाकर राज्य स्तर पर शहरी परिवहन को लिंग-उत्तरदायी बनाने के लिए एक ढांचा तैयार किया जा सकता है.

 

महिलाओं के सशक्तिकरण और शहरी जीवन में उनके समावेशन के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद सार्वजनिक परिवहन तक महिलाओं की पहुंच सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है. महिलाओं की दृष्टि से सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित, सुविधाजनक और आसान बनाने वाली नीतियों को अपनाने से दिल्ली सभी लोगों के लिए एक अधिक समावेशी और समान सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कायम कर सकता है.


श्रेया गांगुली, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

अनुषा केसरकर गव्हाणकर, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर इकोनॉमी एंड ग्रोथ में सीनियर फैलो हैं.

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