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जैसे-जैसे भारत की शहरी आबादी बढ़ती जा रही है, वैस-वैसे उसके आवागमन का परिदृश्य बहुत बड़े बदलाव का अनुभव कर रहा है. ये बदलाव 5,00,000 से ज़्यादा आबादी वाले शहरों की संख्या में बढ़ोतरी से साफ होता है जो 2011 में 100 से बढ़कर 2023 में 150 हो गई है. इसके ज़रिए अतिरिक्त 15 करोड़ लोगों को समायोजित किया गया है.
बड़े महानगरों और छोटे एवं मध्यम आकार के शहरों के बीच साफ तौर पर एक असमानता सामने आई है: बड़े शहरों की परिवहन प्रणालियों को जहां तकनीकी क्षमता और नौकरशाही के समर्थन का लाभ मिलता है वहीं छोटे शहरी केंद्र अपनी परिवहन प्रणाली में जान फूंकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. छोटे और मध्यम आकार के शहरों में समर्थन राष्ट्रीय योजनाओं जैसे कि कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT) और लघु एवं मध्यम शहरों के लिए शहरी बुनियादी ढांचा विकास योजना (UIDSSMT) तक सीमित है.
अगर भारत अगले तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है तो सुलभ और मज़बूत सार्वजनिक कनेक्टिविटी इसकी पूर्व शर्तों में से होगी. लेकिन कुशल स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (STU) की कमी और क्षेत्रीय स्तर पर प्राइवेट ऑपरेटर के द्वारा चलाई जाने वाली शहर के भीतर की स्थानीय एवं कस्बा बस सेवाओं का नतीजा परिवहन के निजी साधनों के दबदबे के रूप में निकला है.
अगर भारत अगले तीन वर्षों में 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है तो सुलभ और मज़बूत सार्वजनिक कनेक्टिविटी इसकी पूर्व शर्तों में से होगी. लेकिन कुशल स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (STU) की कमी और क्षेत्रीय स्तर पर प्राइवेट ऑपरेटर के द्वारा चलाई जाने वाली शहर के भीतर की स्थानीय एवं कस्बा बस सेवाओं का नतीजा परिवहन के निजी साधनों के दबदबे के रूप में निकला है. काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (CEEW) का विश्लेषण संकेत देता है कि 2010 की तुलना में 2018 में कार के रजिस्ट्रेशन में 35 प्रतिशत और दो-पहिया गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन में 98 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. प्राइवेट गाड़ियां आवागमन की तत्काल ज़रूरतों का समाधान तो कर सकती हैं लेकिन प्राइवेट गाड़ियों का इस्तेमाल करने की तरफ रुझान से सड़कों पर भीड़ बढ़ती है, ग्रीन हाउस गैस (GHG) और प्रदूषकों का उत्सर्जन बढ़ता है और ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता में बढ़ोतरी होती है.
भारत के GHG उत्सर्जन में परिवहन सेक्टर एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है और ये देश में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX) का सबसे तेज़ी से बढ़ता स्रोत है. इस चुनौती की वजह से स्वास्थ्य और कल्याण को काफी नुकसान होता है जो विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में भारत की GDP का 7.7 प्रतिशत है.
इसलिए सभी तरह के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायसंगत विकास को बढ़ावा देने के लिए विकास की रणनीति को एक निडर क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इस तरह की रूप-रेखा में परिवहन समाधान और संस्थागत सुधार शामिल होते हैं ताकि विकेंद्रित, एकीकृत पहल को बढ़ावा दिया जा सके.
एक संतुलित नज़रिए की ज़रूरत
जैसे-जैसे शहरीकरण की रफ्तार बढ़ रही है, वैसे-वैसे हाइवे और रेलवे के किनारे शहरों का विस्तार शहरों, अर्ध-शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच प्रशासनिक सीमाओं को मिटा रहा है. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच एक-दूसरे पर निर्भरता का संबंध है और शहरी क्षेत्र तेज़ी से आर्थिक गतिविधियों और अवसरों का केंद्र बिंदु बनते जा रहे हैं. इसका नतीजा बड़े शहरों और राज्यों की राजधानी की तरफ माइग्रेशन के रुझान में तेज़ी के रूप में निकला है.
चूंकि महानगर और बड़े शहर तेज़ी से अपनी आबादी की अंतिम सीमा के करीब पहुंच रहे हैं, ऐसे में पिछले दशक के दौरान 2011 की जनगणना के आंकड़ों और रुझानों का विश्लेषण दिखाता है कि छोटे शहरों का तेज़ रफ्तार से शहरीकरण हो रहा है. उदाहरण के लिए, इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) का 2020 का सर्वे केरल के मलप्पुरम को दुनिया का सबसे तेज़ी से बढ़ता शहर बताता है. 2015 से 2020 के दौरान यहां की आबादी में 44.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. केरल का कोझिकोड (34.5 प्रतिशत विकास) और कोल्लम (31.7 प्रतिशत) दो अन्य भारतीय शहर थे जिन्हें दुनिया के 10 सबसे तेज़ी से बढ़ते शहरों में शामिल किया गया था. कुल मिलाकर छोटे और मध्यम आकार के शहरों का इलाका 2001 और 2011 के बीच 31 प्रतिशत बढ़ा. इन छोटे शहरी क्षेत्रों का बढ़ता दबदबा उनके लिए नौकरियों की उपलब्धता और किफायती घरों समेत सेवाओं और उपयोग की चीज़ों के प्रावधान के बीच संतुलन बनाना और भी मुश्किल बनाएगा.
दूसरी तरफ, शहरी आर्थिक उत्पादन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तो पीछे छोड़ दिया है लेकिन कुल शहरी रोज़गार ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में आधे से भी कम है. इसके नतीजतन कुल वर्कफोर्स में ग्रामीण क्षेत्रों के 70 प्रतिशत योगदान के बावजूद भारत ने इन ज़िलों में रोज़गार सृजन में गिरावट का अनुभव किया है. इसलिए शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए ये आवश्यक है कि एक ही क्षेत्र के भीतर शहरी और ग्रामीण आवागमन की योजना को अलग-अलग नहीं किया जाए.
क्षेत्रीय गतिशीलता की योजना के गुण
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के घरेलू उपभोग व्यय सर्वे 2022-23 के आंकड़े प्राइवेट साधनों और शहरी और ग्रामीण- दोनों क्षेत्रों में अधिक यात्रा लागत का संकेत देते हैं. उदाहरण के लिए, ग्रामीण और शहरी- दोनों क्षेत्रों में 14 प्रतिशत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय में से परिवहन (यात्रा का किराया और ईंधन) पर होने वाला खर्च शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले खर्च से ज़्यादा था. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र, जो कि परिवहन कनेक्टिविटी के मामले में सामान्य रूप से पीछे होते हैं, शहरों की तुलना में अधिक खर्च करते हैं.
वैसे तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की शासन व्यवस्था ज़िला पंचायत या ज़िला परिषद के तहत होती है और शहरी क्षेत्र नगर परिषद या नगर निगम के अधीन होते हैं लेकिन आवागमन की योजना को एक एजेंसी के तहत एकीकृत करना चाहिए.
इसलिए आवागमन की योजना को पारंपरिक सीमाओं से परे होना चाहिए और अलग-अलग शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अंदरुनी और क्षेत्रीय परिवहन को एकीकृत करना चाहिए. वैसे तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की शासन व्यवस्था ज़िला पंचायत या ज़िला परिषद के तहत होती है और शहरी क्षेत्र नगर परिषद या नगर निगम के अधीन होते हैं लेकिन आवागमन की योजना को एक एजेंसी के तहत एकीकृत करना चाहिए. ये बिना किसी बाधा के कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगी और सेवा का स्तर भी उसी तरह का होगा. इस पैमाने की अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने से परिवहन सेवाओँ के लिए संचालन की लागत सुव्यवस्थित और तर्कसंगत हो जाएगी और ये पूरे भारत में उपयोग करने वालों के लिए अधिक लागत प्रभावी हो जाएगी. इसके अलावा, छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रगति के लिए बड़े शहरों की तकनीकी विशेषज्ञता का फायदा उठाया जा सकता है.
RUTA के रूप में UMTA पर विचार
केंद्र सरकार की कई नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों- जैसे कि जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (2005), राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (2006) और राष्ट्रीय मेट्रो रेल नीति (2017)- ने बार-बार शहर के स्तर पर एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूनिफाइड मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी या UMTA) की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है. लेकिन कुछ मुट्ठी भर शहरों ने ही इस तरह के निकाय का गठन करने की कोशिश की है और गिने-चुने सक्रिय UMTA क्षेत्रीय आवागमन की योजना की ज़रूरतों को एकीकृत करने में सक्षम नहीं हैं. UMTA की अवधारणा, जो अलग-अलग परिवहन एजेंसियों के बीच तालमेल का वांछित स्तर तैयार करने में काफी हद तक बेअसर बनी हुई है, में बदलाव होना चाहिए ताकि क्षेत्र के छोटे और मध्यम आकार के शहरों के साथ-साथ दूसरे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की परिवहन ज़रूरतों को समायोजित किया जा सके. ये लेख सिफारिश करता है कि मौजूदा UMTA का ढांचा विकसित हो और ये क्षेत्रीय एकीकृत परिवहन प्राधिकरण (रीजनल यूनिफाइड ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी या RUTA) में बदले.
दायरे का विस्तार और अधिक व्यापक अधिकार क्षेत्र में आकर RUTA असरदार ढंग से गांवों, महानगरीय क्षेत्रों और आस-पास के छोटे और मध्यम आकार के शहरों की एक-दूसरे पर निर्भरता का सामना कर सकता है. इस तरह का विस्तारित दायरा अलग-अलग रहने के लायक जगहों में अधिक कनेक्टिविटी और पहुंच को बढ़ावा दे सकता है. इस तरह क्षेत्रीय स्तर पर गतिशीलता में बढ़ोतरी होगी. RUTA प्रभावी ढंग से अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने में अपनी तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वो शहरी परिवहन के बुनियादी ढांचे में खामियों को भर सकता है.
इसके अलावा RUTA तेज़ी से किसी परियोजना के कार्यान्वयन, ट्रैफिक प्रबंधन और दूसरी पहुंच से जुड़ी चिंताओं के लिए अपनी सीमा के पार किसी अन्य एजेंसी के साथ तालमेल को बढ़ावा देता है. ये प्रतिस्पर्धी हितों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है जैसे कि उत्सर्जन में कमी लाते हुए आवागमन में बढ़ोतरी को प्राथमिकता देना. ये मार्गदर्शन करने वाली ताकत के रूप में उभर सकता है, ऐसे समाधानों का समर्थन कर सकता है जो एक साथ शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के सामूहिक लाभ के लिए अलग-अलग हितधारकों की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाते हैं. इसके अलावा RUTA न्यायसंगत और समावेशी खर्च को सुनिश्चित करने के लिए परिवहन के बजट को सुव्यवस्थित कर सकता है जो विकेंद्रित विकास की ओर ले जाता है.
योजना और कार्यान्वयन के लिए RUTA का अधिकार क्षेत्र
राज्य स्तर पर गठित RUTA को सभी क्षेत्रों को परस्पर विशेष और सामूहिक रूप से विस्तृत मानना चाहिए. हर क्षेत्र की कम-से-कम एक 10 लाख या उससे अधिक आबादी वाले शहर या एक विशाल आर्थिक केंद्र या शहरी श्रृंखला के साथ आवागमन से जुड़ी एक अलग परस्पर निर्भरता होनी चाहिए. शहरी केंद्र के साथ नज़दीकी, उसकी विकास से जुड़ी नीतियों एवं ध्यान, एक-दूसरे से मिलती प्रशासनिक ज़िले की सीमाओं और RTO के आधार पर राज्य RUTA की सीमा के विकास के बारे में खोज-बीन कर सकते हैं.
उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना के आधार पर मध्य प्रदेश में भोपाल, इंदौर और जबलपुर तीन ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख से ज़्यादा है. महानगर नहीं होने की वजह से रतलाम, उज्जैन और देवास जैसे शहरी केंद्रों पर कम ध्यान दिया जाता है. इंदौर में अलग UMTA की जगह RUTA, जो क्षेत्र में 40-70 लाख की आबादी को शामिल करेगा, अधिक समग्र योजना के लिए सभी शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा.
प्रस्तावित संस्थागत संरचना और भूमिका
राज्य RUTA की परिकल्पना एक ऐसे व्यापक संस्थान के रूप में करें जो पूरे क्षेत्र में विज़न और रणनीतिक योजना का विकास करे. साथ ही महानगरों की पारंपरिक सीमाओं के दायरे के पार हो. UMTA के परिचालन के दिशा-निर्देशों में प्रस्तावित कर्मचारियों के पैटर्न में पर्याप्त रूप से संशोधन किया जाना चाहिए ताकि छोटे-मध्यम आकार के शहरों के प्रतिनिधियों, खंड विकास अधिकारियों और ज़िला परिषद के अधिकारियों को शामिल किया जा सके. प्रस्तावित RUTA को सार्वजनिक परिवहन और माल ढुलाई की योजना पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए जिसमें राज्य स्तर की एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के साथ तालमेल की ज़िम्मेदारी हो. RUTA बड़े शहरों में केंद्रीय कार्यालय बना सकता है जबकि कार्यकुशलता और पहुंच के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में ब्रांच ऑफिस. परिवहन के बजट के प्रबंधन, फंडिंग परियोजनाओं और कार्यान्वयन की देखरेख करने के लिए RUTA निर्णायक हो सकता है. इसके अलावा RUTA ज़िलों और छोटे कस्बों के लिए तकनीकी क्षमता निर्माण और निगरानी की भूमिका निभा सकता है.
RUTA बड़े शहरों में केंद्रीय कार्यालय बना सकता है जबकि कार्यकुशलता और पहुंच के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में ब्रांच ऑफिस. परिवहन के बजट के प्रबंधन, फंडिंग परियोजनाओं और कार्यान्वयन की देखरेख करने के लिए RUTA निर्णायक हो सकता है.
RUTA के दफ्तरों में प्रशासनिक और तकनीकी विभाग होना चाहिए. इस पर नज़र रखने का काम एक समन्वय करने वाला निकाय कर सकता है जिसके अध्यक्ष शहरी विकास विभाग या परिवहन विभाग के प्रधान सचिव हों. इस निकाय में स्टेट ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग, शहरी स्थानीय निकाय, ज़िले के कलेक्टर, लोक निर्माण विभाग और ट्रैफिक पुलिस के प्रतिनिधि होंगे. RUTA का नेतृत्व कमिश्नर के पास हो जो समन्वय करने वाले निकाय के संयोजक के रूप में काम करें. उधर RUTA के भीतर तकनीकी विभाग को छोटे और मध्यम आकार के शहरों के लिए योजना बनाने, परियोजना के कार्यान्वयन और तकनीकी क्षमता तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए.
स्रोत: लेखक का अपना
न्यायसंगत और समावेशी विकास के लिए RUTA
RUTA स्थानीय हिस्सेदारी को बनाए रखते हुए विभाजित गतिशीलता और परिवहन व्यवस्था को एकीकृत और संगठित कर सकता है. ये राज्य स्तर की नीतियों और कार्यक्रमों जैसे कि EV नीति, बस से जुड़े कार्यक्रमों, कम उत्सर्जन वाले क्षेत्रों, स्क्रैपिंग के दिशा-निर्देशों और उससे जुड़ी सार्वजनिक सूचना की पहुंच के कार्यान्वयन को भी आसान बनाएगा. कम प्रशासनिक देरी और बेहतर तालमेल से फैसलों और परियोजनाओं के कार्यान्वयन में काफी तेज़ी और आसानी होगी. क्षेत्रीय तालमेल से समन्वित सार्वजनिक परिवहन की योजना आसान होगी, परिचालन की लागत में सुधार होगा और संगठित गतिशीलता की सेवाओं के बाज़ार के कारण प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी होगी. RUTA भारत की गतिशीलता की योजना को अधिक न्यायसंगत और समावेशी बनाने की दिशा में फिर से विचार करने में मदद करेगा.
ये लेख एक बड़े संग्रह "भारत के शहरी पुनर्जागरण के लिए नीतिगत और संस्थागत अनिवार्यताएं" का हिस्सा है.
हिमानी जैन काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (CEEW) की सीनियर प्रोग्राम लीड हैं.
सौरव धर काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (CEEW) के प्रोग्राम लीड हैं.
लेखक यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) के प्रोजेक्ट ‘क्लीनर एयर एंड बेटर हेल्थ’ के तहत मुहैया कराए गए समर्थन के प्रति आभार जताते हैं.
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