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बहुपक्षीय वार्ताओं में हिस्सेदार देशों के बीच भू-राजनीतिक दरारों के चलते अफ़ग़ानिस्तान के लिए उपयुक्त समाधान तलाशने का काम मुश्किल होता जा रहा है.
तालिबान के नियंत्रण वाला अफ़ग़ानिस्तान अपनी अब तक की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी झेल रहा है. खाद्यान्न की भारी किल्लत, ज़बरदस्त बेरोज़गारी और महिलाओं के बुनियादी अधिकारों पर पाबंदियों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं. अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा सूरत-ए-हाल ने चरमपंथी आतंकवादी गुटों (जैसे इस्लामिक स्टेट ऑफ़ ख़ुरासान यानी ISKP और अल-क़ायदा) के दोबारा उभार के लिए माकूल माहौल बना दिए हैं. ज़ाहिर है, तालिबान की अगुवाई वाला अफ़ग़ानिस्तान न सिर्फ़ अपने आस-पड़ोस के दायरे में बल्कि पूरे यूरेशियाई क्षेत्र के लिए सुरक्षा के मोर्चे पर गंभीर ख़तरे पैदा कर रहा है.
8 फ़रवरी 2023 को मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान पर 5वें बहुपक्षीय सुरक्षा संवाद का आयोजन किया गया. इसमें भारत, ईरान, किर्गिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के NSA शामिल हुए.
अफ़ग़ानिस्तान में बिगड़ते हालातों और वैश्विक व्यवस्था में ज़बरदस्त उथल-पुथल के बीच इलाक़े के कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) की मुलाक़ात हुई. 8 फ़रवरी 2023 को मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान पर 5वें बहुपक्षीय सुरक्षा संवाद का आयोजन किया गया. इसमें भारत, ईरान, किर्गिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के NSA शामिल हुए. इस बहुपक्षीय सुरक्षा संवाद में अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों की चिंताओं की नुमाइंदगी की गई. इसमें दक्षिण एशियाई, मध्य एशियाई और यूरेशियाई पड़ोसी शामिल हुए. ये मंथन तालिबान की हुकूमत वाले अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभावों की चर्चा करने के लिए होने वाली तमाम बहुपक्षीय सलाहकारी क़वायदों में से एक है. हालांकि, आंतरिक मतभेदों और दरारों के चलते ऐसे बहुपक्षीय जमावड़ों के प्रयास कमज़ोर पड़ते रहे हैं. इसके चलते नाज़ुक हालात वाले अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ते सुरक्षा जोख़िम की काट के लिए ज़रूरी सर्वसम्मत हस्तक्षेप तक पहुंचने की कोशिश सिरे नहीं चढ़ पाई.
पाकिस्तान को छोड़कर बाक़ी क्षेत्रीय नेताओं ने 2018 में अपने NSA के ज़रिए बहुपक्षीय सुरक्षा संवाद की शुरुआत की. इसका मक़सद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थायित्व पर चर्चा करना था. पाकिस्तान ने इन वार्ताओं के प्रति ठंडा रुख़ दिखाया. उसकी दलील थी कि भारत क्षेत्रीय स्तर पर सामरिक रुतबा हासिल करने की मंशा से इस तरह की क़वायदों को अंजाम दे रहा है. अफ़ग़ानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की निर्वाचित सरकार के NSA हमीदुल्लाह मोहिब इस संवाद प्रक्रिया के पहले 2 चरणों में हिस्सा ले चुके थे. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े से पहले ही मंत्रिस्तरीय वार्ताओं में तमाम तरह की दरार उभर आई थी. उज़्बेकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उपसचिव ने आतंकवाद पर "दोहरा मापदंड" अपनाने के लिए कुछ क्षेत्रीय मुल्कों को खूब खरी-खोटी सुनाई थी.
2020 के दोहा शांति समझौते और उसके बाद अमेरिकी फ़ौज की वापसी के बाद से अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य अनिश्चित हो गया. इसके चलते वहां की निर्वाचित सरकार पतन की कगार पर पहुंच गई और तालिबान दोबारा खड़ा हो गया. तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का सम्मान करने और महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित करते हुए एक समावेशी सरकार के गठन का वादा किया था. हालांकि 2021 में सत्ता हथियाने के फ़ौरन बाद तालिबान ने इन प्रतिबद्धताओं से पल्ला झा़ड़ लिया. तालिबानी हुक़्मरानों ने दुनिया के अन्य आतंकी संगठनों के साथ अपने रिश्तों में दोबारा जान फूंक दी है.
यही वजह है कि काबुल पर तालिबानी क़ब्ज़े के चंद महीनों बाद नवंबर 2021 में नई दिल्ली में आयोजित तीसरी मंत्रिस्तरीय सुरक्षा वार्ता की अहमियत काफ़ी बढ़ गई. मध्य एशिया के पांच गणराज्यों के साथ-साथ रूस और ईरान ने अफ़ग़ानिस्तान की सरहदों से फैलती अस्थिरता पर नकेल कसने के तौर-तरीक़ों पर विचार-विमर्श किया. चीन ने तारीख़ों और कार्यक्रम के वक़्त का हवाला देकर इन वार्ताओं से कन्नी काट ली, जबकि पाकिस्तान ने भारत के साथ लंबे अर्से से चल रहे विवादों की वजह से इन वार्ताओं से दूरी बना ली. इस्लामाबाद ने "फ़िज़ूल की क़वायद" बताकर इन वार्ताओं की आलोचना भी की. उसने भारत को "रंग में भंग डालने वाला किरदार" बताते हुए आरोप लगाया कि हिंदुस्तान "शांतिस्थापक नहीं बन सकता".
इसके बावजूद अफ़ग़ानिस्तान पर इस मंत्रिस्तरीय वार्ता का अंत दिल्ली घोषणापत्र में साझा बयान के साथ हुआ. इसमें हिस्सेदार रहे देशों ने "शांतिपूर्ण, सुरक्षित और स्थिर" अफ़ग़ानिस्तान का समर्थन करने की वचनबद्धताएं दोहराई. बयान में अफ़ग़ानी लोगों की तकलीफ़ों के प्रति चिंता का इज़हार करते हुए एक समावेशी सरकार क़ायम करने की अपील की गई. घोषणापत्र में अफ़ग़ान शरणार्थियों की दुर्दशा के साथ-साथ महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के हालात पर भी रोशनी डाली गई. तमाम देशों ने सहयोग करने और वार्ता प्रक्रिया जारी रखने की भी प्रतिबद्धता जताई.
मई 2022 में ताजिकिस्तान के दुशांबे में चौथी मंत्रिस्तरीय वार्ताओं का आयोजन हुआ. इस बार चीन ने वक़्त निकालकर इसमें हिस्सा लिया. हालांकि पाकिस्तान इस मौक़े पर भी ग़ैर-हाज़िर रहा. प्रतिभागियों ने दिल्ली घोषणापत्र की समीक्षा करते हुए अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता और शांति सुनिश्चित करने के सकारात्मक तरीक़ों की चर्चा की.
मॉस्को में हालिया बैठक के दौरान भारत के NSA अजित डोभाल ने दिल्ली घोषणापत्र के दायरे में अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारतीय नीतियों पर दोबारा प्रतिबद्धता जताई. उन्होंने अफ़ग़ान जनता की मानवीय ज़रूरतों के प्रति भारत के नज़रिये को दोहराया. साथ ही सबकी नुमाइंदगी वाले समावेशी सरकार के गठन पर भी ज़ोर दिया. डोभाल ने क्षेत्रीय स्तर पर सक्रिय आतंकी समूहों (ISKP और अल-क़ायदा समेत) से मुक़ाबले के लिए इन वार्ताओं में हिस्सा ले रहे विभिन्न पक्षों के बीच ख़ुफ़िया मसलों और सुरक्षा सहयोग से जुड़े तंत्र के उभार की दरकार को रेखांकित किया.
तालिबान की हुकूमत वाले अफ़ग़ानिस्तान से उभरते ख़तरों पर सामूहिक क्षेत्रीय प्रतिक्रिया जताने के लिए मंत्रिस्तरीय संवादों के अलावा 2 अन्य क्षेत्रीय बहुपक्षीय समूह वजूद में आए हैं. इनमें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का अफ़ग़ानिस्तान संपर्क समूह (ACG) और मॉस्को फ़ॉरमेट कंसल्टेशंस शामिल हैं.
SCO ने 2005 में ACG का गठन किया था. इसका मक़सद अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा और स्थायित्व पर सहकारी रणनीतियों का निर्माण करना था. आगे चलकर 2009 में रूस ने पहले ACG की मेज़बानी की, जिसमें संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ, नेटो और OIC के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. बहरहाल, पश्चिमी एशिया में हिंसा फैलने और सीरियाई संकट गहराने के चलते ACG निष्क्रिय पड़ गया. रूस और ईरान द्वारा तालिबान को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव किए जाने के बाद 2017 में इस समूह में दोबारा जान आ गई. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के सत्ता संभालने के पहले 2021 की शुरुआत में ACG की आख़िरी बैठक ताजिकिस्तान में आयोजित की गई थी. SCO के सभी सदस्य देशों और अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रियों ने इसमें हिस्सा लिया था.
2017 में रूस ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर मॉस्को फ़ॉरमेट ऑफ़ कंसल्टेशंस की स्थापना की. मॉस्को फ़ॉरमेट के तहत पहली बैठक का आयोजन मॉस्को में किया गया. इसमें चीन, ईरान, भारत, पाकिस्तान, रूस और मध्य एशिया के पांच गणराज्यों के विशेष दूत शामिल हुए. पांच वर्षों के अंतराल के बाद साल 2022 में मॉस्को फ़ॉरमेट कंसल्टेशंस के तहत वार्ता प्रक्रियाएं दोबारा बहाल हुईं, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने हिस्सा लिया. इसमें शामिल दूतों द्वारा जारी साझा बयान में त़ालिबान से अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकी समूहों के ख़ात्मे के लिए ठोस और साफ़-साफ़ दिखाई देने वाले क़दम उठाने को कहा गया. तमाम देशों ने इन क़वायदों में तालिबानी सरकार की सहायता करने का इरादा भी ज़ाहिर किया.
दिसंबर 2022 में इस मसले पर एकरूपता क़ायम करने के लिए भारत ने मध्य एशिया के पांच गणराज्यों के साथ मिलकर NSA-स्तर की एक और बहुपक्षीय पहल का आग़ाज़ किया. इस क़वायद का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान के नाज़ुक हालातों और उनके भू-सामरिक और भू-आर्थिक प्रभावों पर चर्चा करना है.
जैसा कि ऊपर ज़िक्र हो चुका है, बहुपक्षीय सलाहकारी व्यवस्था में शामिल देशों के बीच भूराजनीतिक दरारों और हितों के टकरावों ने अफ़ग़ान संकट को और उलझा दिया है. पश्चिमी जगत के विपरीत इस इलाक़े के देश (ख़ासतौर से जो अफ़ग़ानिस्तान के साथ सरहद साझा करते हैं) इस संकट को सुलझाए बिना अफ़ग़ान पहेली से पल्ला नहीं झाड़ सकते. पाकिस्तान जैसे इलाक़ाई मुल्क NSA-स्तरीय सुरक्षा वार्ताओं को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं. हालांकि चीन और रूस के साथ रिश्तों और अपने निहित स्वार्थ के चलते वो क्षेत्रीय स्तर पर जारी अन्य सलाहकारी प्रक्रियाओं (जैसे मॉस्को फ़ॉरमेट और ACG) की अनदेखी नहीं कर सकता.
हिंदुस्तान ने 2,260 अफ़ग़ान छात्रों को छात्रवृतियां भी मुहैया कराई हैं. भारत सरकार ने 2023-24 के केंद्रीय बजट में अफ़ग़ानिस्तान के लिए विकास सहायता के तौर पर 2.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई है.
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर दिल्ली घोषणापत्र पर समान सोच वाले क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ कामयाबी से एकरूपता और जुड़ाव क़ायम किए हैं. उसने निरंतर मानवतावादी मदद पहुंचाकर अफ़ग़ानिस्तान के आम लोगों का दिल भी जीता है. मौजूदा तालिबानी राज में भी ये क़वायद बिना किसी बाधा के जारी है. अफ़ग़ानिस्तान पर त़ालिबानी क़ब्ज़े के बाद से भारत ने वहां 40,000 टन गेहूं, कोविड-19 के 5 लाख टीके और 60 टन दवाइयों की खेप भेजी है. हिंदुस्तान ने 2,260 अफ़ग़ान छात्रों को छात्रवृतियां भी मुहैया कराई हैं. भारत सरकार ने 2023-24 के केंद्रीय बजट में अफ़ग़ानिस्तान के लिए विकास सहायता के तौर पर 2.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई है. तालिबान की मौजूदा सरकार भी भारत के इस क़दम की तारीफ़ कर चुकी है.
एक शांतिपूर्ण और समृद्ध अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच सेतु की भूमिका निभा सकता है. भारत मई 2023 में SCO के अध्यक्ष के तौर पर SCO विदेश मंत्रियों के सम्मेलन की मेज़बानी करेगा. गोवा में होने वाले इस जमावड़े का न्योता पाकिस्तान को भी भेजा गया है, हालांकि पाकिस्तान ने अब-तक अपनी हिस्सेदारी की पुष्टि नहीं की है. बहरहाल, SCO के लिए बग़ैर किसी पूर्वाग्रह के क्षेत्रीय समस्याओं के निपटारे की क़वायद ही सबसे समझदारी भरा क़दम होगा. दिल्ली घोषणापत्र का इलाक़े के तमाम देशों और सभी क्षेत्रीय बहुपक्षीय सलाहकारी व्यवस्थाओं ने समर्थन किया है. भारत को अपने राजनयिक संपर्कों के ज़रिए SCO के क्षेत्रीय आतंक-निरोधी ढांचे के भीतर आतंकी समूहों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारियां साझा करने की वक़ालत करनी चाहिए. साथ ही निष्क्रिय पड़े ACG में दोबारा जान फूंकने के लिए समान-विचार वाले देशों के साथ मिलकर काम करना चाहिए.
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Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
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