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Published on Feb 18, 2025 Updated 0 Hours ago
खुफिया तंत्र के मामले में वैश्विक मुक़ाबला: QUAD देशों के बीच आपसी सहयोग

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जनवरी 2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के तौर पर काम करना शुरू किया. इसी दौरान क्वाड विदेश मंत्रियों ने जब साझा बयान जारी किया तो विश्लेषकों ने उसकी व्याख्या "संक्षिप्त और प्रभावी" के तौर पर की थी. क्वाड का ये शिखर सम्मेलन काफ़ी मिलनसार माहौल में हुआ. अमेरिका के नए विदेश मंत्री के तौर मार्को रुबियो का ये पहला कार्यक्रम था. ये सम्मेलन क्वाड की स्थायी एकता और रणनीतिक महत्व को दिखाता है. इससे ये भी साबित होता है कि अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप जिन सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उसका समाधान भी इसके भीतर ही है. इसी संदर्भ में इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि क्वाड के सदस्य देशों के बीच सुरक्षा सहयोग किस पैमाने पर हो रहा है और वो इसे लेकर कितने गंभीर हैं. सबसे बड़ा मुद्दा खुफ़िया सूचना साझा करने का है. ऐसा कहने की वजह ये है कि इंडो-पैसिफिक और उससे आगे की ज़्यादा प्रतिस्पर्धात्मक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में खुफ़िया सूचना का आदान-प्रदान केंद्रीय मुद्दा बन जाता है. 

 

सहयोग के नए मुद्दे: समुद्री डकैती के ख़िलाफ अभियान और समुद्र के नीचे के क्षेत्र को लेकर जागरूकता

पिछले कुछ वर्षों में इंडो-पैसिफिक और व्यापक समुद्री क्षेत्र में नए सुरक्षा चुनौतियां सामने आई हैं. हिंद महासागर के पश्चिमी किनारों में समुद्री डकैती की घटनाओं ने वैश्विक व्यापार के प्रवाह को ख़तरे में डाला है. इससे पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, विशेष रूप से क्वाड की आर्थिक शक्ति माने जाने वाले देशों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है. इन समुद्री डकैतों को कुछ देशों का समर्थन भी मिल रहा है, साथ ही कुछ नॉन स्टेट एक्टर्स (कुछ देशों द्वारा गुप्त रूप से समर्थित) भी इसमें शामिल हैं. इसके अलावा स्वीडन और हाल ही में ताइवान के समुद्री क्षेत्र में समुद्री केबलों को हुए नुकसान में चीन की भूमिका संदिग्ध पाई गई. ये घटनाएं समुद्री क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामक क्षमताओं की तरफ इशारा करती है. इन दोनों ही चुनौतियों से निपटने के लिए ये ज़रूरी है कि क्वाड की खुफ़िया सेवाओं की साझा रणनीति बनाई जाए. 

 इससे पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, विशेष रूप से क्वाड की आर्थिक शक्ति माने जाने वाले देशों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है. 

क्वाड देशों ने समुद्री क्षेत्र में पैदा होने वाली अनूठी खुफ़िया चुनौतियों का सामना करने में दक्षता साबित की है, खासकर जो ख़तरे महासागरीय सतह यानी समुद्र के ऊपर हैं. अब जैसे 2022 में शुरू किए गए इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप फॉर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) सिस्टम का ही उदाहरण लीजिए. इसने क्वाड देशों को ‘डार्क शिपिंग’ जैसी सुरक्षा चुनौतियों का सामूहिक रूप से सामना करने की ताक़त प्रदान की. ‘डार्क शिपिंग’ का मतलब उन समुद्री जहाजों से होता है, जो अक्सर संगठित क्रिमिनल सिंडिकेट और अवैध राज्य/नॉन स्टेट एक्टर्स जुड़े होते हैं. ये अपराध करने के लिए अपने जहाजों को पारंपरिक निगरानी तंत्र से बचकर छिपाने की कोशिश करते हैं. हालांकि ये सब घटनाएं समुद्री सतह पर हो रही हैं, लेकिन अब वक्त आ गया है कि पानी के नीचे होने वाली घटनाओं पर भी ध्यान दिया जाए. समुद्र के नीचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे का विशाल नेटवर्क है. इसे देखते हुए ये क्षेत्र बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बनता जा रहा है. इस चुनौती से निपटने के लिए क्वाड देशों के बीच ज़्यादा समन्वय की ज़रूरत है. इसमें खुफ़िया सूचनाएं साझा करने में वृद्धि और समुद्र के नीचे ISR तकनीकी, जैसे कि सेंसर और हथियार प्रणाली, के संयुक्त विकास की योजनाएं शामिल हैं. इसी तरह ये बात भी महत्वपूर्ण है कि IPMDA को क्वाड नेताओं के अगले शिखर सम्मेलन में अपडेट किया जाए. ये सम्मेलन सितंबर 2025 में दिल्ली में होना है. समुद्र के नीचे के क्षेत्र की जागरूकता (UDA) को MDA के एक मुख्य कार्य के रूप में शामिल करने के लिए ऐसा किया जना ज़रूरी है. इसी के बाद इसके लिए क्षमताओं और संपर्क तंत्र की स्थापना की जा सकेगी. 

 

राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो भारत का इंफॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-भारतीय महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) इन कुछ कामों में सहयोग को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. हम 2020 के दशक के उत्तरार्ध में प्रवेश कर रहे हैं. भारत खुद को क्वाड भागीदारों के बीच एजेंडा सेट करने वाले के देश रूप में देखना चाहता है. हालांकि इसकी चर्चा कम हुई, लेकिन IFC-IOR की पिछले साल की उपलब्धियां काबिल-ए-तारीफ़ रही हैं. रीयल टाइम में दी गई इसकी खुफ़िया जानकारी ने MARCOS (मरीन कमांडोज़) को 2024 की शुरुआत में समुद्री डकैती के ख़िलाफ अभियान में कई प्रमुख सफलताएं हासिल करने में मदद की. IFC-IOR ने कई इंटरनेशनल लायज़न अधिकारियों की मेज़बानी भी की. इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नौसैनिक प्रतिनिधि शामिल हैं. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि IFC-IOR भारत की खुफ़िया रणनीति में क्वाड के भीतर एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए बेहतर स्थिति में है. इसके माध्यम से क्वाड अपने कई बड़े रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल कर सकता है.

 

ट्रंप 2.0 : नपी-तुली सकारात्मकता

राष्ट्रपति ट्रंप को अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में वैश्विक स्तर पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा है. पश्चिमी यूरोप के देशों का रुख़ सतर्कता वाला है. ये देश अमेरिका के राष्ट्रपति की हालिया क्षेत्रीय मांगों और उनके अपने देशों में राजनीतिक आंदोलनों के लिए समर्थन को लेकर थोड़े सावधान हैं. पश्चिमी देशों की तुलना में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों की राय ट्रंप को लेकर ज़्यादा कठोर नहीं है. कई देश ट्रंप के लेन-देन वाले रवैये और रणनीतिक दृष्टिकोण का स्वागत कर रहे हैं. ट्रंप का ये रुख़ इन देशों की अपनी विदेश नीति के लिए संभावित रूप से अनुकूल हो सकता है. इसी तरह का तर्क क्वाड को लेकर अमेरिका के नए नज़रिए पर दिया जा सकता है. क्वाड देशों के बीच खुफ़िया सहयोग के सवाल पर अमेरिका की भूमिका काफ़ी अहम होने वाली है.

 ट्रंप का ये रुख़ इन देशों की अपनी विदेश नीति के लिए संभावित रूप से अनुकूल हो सकता है. इसी तरह का तर्क क्वाड को लेकर अमेरिका के नए नज़रिए पर दिया जा सकता है. क्वाड देशों के बीच खुफ़िया सहयोग के सवाल पर अमेरिका की भूमिका काफ़ी अहम होने वाली है.

शुरुआती संकेतों में ट्रंप की इस कार्यकाल में क्वाड के भीतर खुफ़िया सहयोग के लिए संभावनाएं सकारात्मक लग रही है. अमेरिका क्वाड  समूह का सबसे शक्तिशाली सदस्य बना हुआ है. चीन के ख़िलाफ विदेश मंत्री मार्को रुबियो,  राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार  माइकल वाल्ट्ज और अमेरिका के नए राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के दूसरे प्रमुख सदस्यों का रुख़ आक्रामक है. अमेरिका ने चीन से आयातित सामान पर जो शुल्क बढ़ाया है, उसमें भी इन विचारों की झलक देखी जा सकती है. ऐसे में ये अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रंप प्रशासन क्वाड के भीतर अपने सौदों में इस नीति को जारी रखेगा, जिसमें रणनीतिक क्षमताओं, जैसे कि खुफिया में, ज़्यादा निवेश की संभावना तलाश करना शामिल है. जून 2020 में गलवान संकट के दौरान ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने भारत को टेक्टिकल खुफ़िया समर्थन देकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कहा जा रहा है कि प्रोजेक्ट 2025 के कुछ हिस्से ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में ब्लूप्रिंट बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इनमें क्वाड चैनलों के माध्यम से भारत के साथ खुफ़िया सूचना साझा करने में वृद्धि की बात भी कही गई है. 

 

फिर भी, चुनौतियां बनी हुई हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के करीबी सहयोगियों में अब तकनीकी क्षेत्र के ऐसे शक्तिशाली उद्यमियों और उद्योगपतियों को शामिल किया गया है, जिनके चीन में महत्वपूर्ण व्यावसायिक हित हैं. ऐसे में विश्लेषकों के बीच इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई है कि कहीं ट्रंप प्रशासन चीन के प्रति झुकाव ना दिखा दे, या उसके साथ कोई 'डील' ना कर ले. ऐसे में काउंटर इंटेलिजेंस की चिंताएं बनी हुई हैं. ये आशंका बरकरार है कि साझा की गई खुफ़िया जानकारी की सुरक्षा और अखंडता बनी रहेगी या नहीं. हालांकि इस मामले में भारत काफ़ी हद तक सुरक्षित है. अमेरिका के साथ उसकी निकटता तो है लेकिन ख़ुफिया जानकारी को लेकर कोई संधि नहीं है. इसकी तुलना में ऑस्ट्रेलिया या जापान इंटेलिजेंस इनपुट के लिए अमेरिका पर बहुत निर्भर हैं. ऐसी स्थिति में ऑस्ट्रेलिया और जापान में सुरक्षा अधिकारियों के बीच पैदा होने वाला संभावित अविश्वास क्वाड जैसे छोटे बहुपक्षीय समूह के भीतर फैल सकता है. इसका खुफिया जानकारी साझा करने और सहयोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

 

ट्रंप प्रशासन ने अपने घरेलू खुफ़िया संगठनों और संस्थाओं को छोटा करने का फैसला किया है और इसका असर क्वाड पर भी पड़ेगा. अगर सीआईए के नए निदेशक जॉन रैटक्लिफ की बातों पर भरोसा किया जाए, तो सीआईए के इस नए और ज़्यादा फिट संगठन का ध्यान चीन के खिलाफ लक्षित, आक्रामक तरीके से ज़्यादा संसाधन लगाने पर है. चीन को अमेरिका अपने लिए "सबसे बड़ा भू-राजनीतिक खतरा" मानता है. अमेरिका का ये रुख़ क्वाड के दूसरे सदस्य देशों की चिंताओं और हितों को दर्शाता है. लेकिन एक बात तय है कि भविष्य में सीआईए का रवैया बहुत अप्रत्याक्षित रहने वाला है. ऐसे में क्वाड के सदस्यों और अपनी खुफ़िया सेवाओं को बढ़ाने और मज़बूत करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है. इसका फायदा ये होगा कि अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों और उसके साथ जुड़े कूटनीतिक बोझ पर अत्यधिक निर्भरता को कम किया जा सकेगा. ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल के तहत अमेरिकी खुफ़िया समुदाय का बदलता चेहरा क्वाड के सदस्य देशों को एक अवसर प्रदान कर रहा है. वो इस मौके का इस्तेमाल व्यक्तिगत रूप से अपनी राष्ट्रीय गुप्तचर एजेंसियों को बढ़ाने और रणनीतिक ताक़त विकसित करने में कर सकते हैं. इसके साथ ही इन देशों को चाहिए कि वो सामान्य हितों को बनाए रखने के लिए छोटे, या त्रिपक्षीय स्तर पर सहयोग करें. ये कुछ-कुछ सफारी क्लब की तरह हो सकता है. 1970 के दशक के अंत में मिस्र, सऊदी अरब, मोरक्को, फ्रांस और इस्लामिक क्रांति से पहले के ईरान की सुरक्षा सेवाओं के बीच पेंटालेटरल खुफिया साझा नेटवर्क बनाने के लिए सफारी क्लब की स्थापना की गई थी. इसका उद्देश्य अफ्रीका और मध्य पूर्व क्षेत्र में सामान्य हितों को बनाए रखना था. उस समय इनके सबसे शक्तिशाली खुफ़िया साझेदार सीआईए की शक्तियां कम कर दी गईं थीं. सीआईए द्वारा अपनी शक्तियों के दुरुपयोग के मामलों की जांच करने के बाद चर्च समिति के निर्देशों पर ऐसा किया गया था. हालांकि ये ज़रूरी नहीं है कि भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच एक नए खुफ़िया सहयोग का मॉडल बिल्कुल उसी तरह हो, लेकिन इसका फायदा ये होगा कि अन्य क्वाड देश अमेरिकी खुफ़िया सेवाओं के साथ जितना संभव होगा, उतने सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रख सकेंगे. इसके साथ ही वो अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए भविष्य में अमेरिका पर अतिनिर्भर भी नहीं रहेंगे.

 

हालांकि,  वर्तमान में उभरती प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अमेरिका की चीन के साथ ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में इसका सबसे ज़्यादा असर दिख रहा है, लेकिन उभरती तकनीकी पर क्वाड के  सहयोग तंत्र पर इसका नकारात्मक प्रभाव दिख सकता है. फिलहाल अमेरिका की कोशिश ये होगी कि वो क्वाड के क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप द्वारा होने वाले बहुपक्षीयता सहयोग पर अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे. इसका असर खुफ़िया संपर्क यानी इंटेलिजेंस लायज़न पर भी पड़ सकता है. क्वाड की साझेदार खुफिया सेवाओं को तेज़ी से तरक्की करते एआई क्षेत्र की सर्वोत्तम प्रथाओं और उससे जुड़े ख़तरे की पूरी समझ हासिल करने से रोका जा सकता है.

 

नेशनल काउंटर इंटेलिजेंस : बहुपक्षीय सहयोग की पूर्व शर्त 

क्वाड के सदस्य देश अपनी राष्ट्रीय गुप्तचर सेवाओं की क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं. बहुपक्षीय खुफ़िया सूचना साझा करने के लिए ये ज़रूरी है कि विश्वास पैदा करने के लिए कुछ पूर्व शर्तें स्थापित की जाएं. ये एक ऐसा क्षेत्र है, जहां जानकारी साझा करने को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए गुप्त सूचनाओं को सुरक्षित रखना होता है, यहां तक कि करीबी सहयोगियों से भी. जापान की काउंटर इंटेलिजेंस एजेंसियां इस मामले में कई बार नाकाम पाई गईं. उन्हें सिर्फ 'संगठनात्मक' ख़तरे के तत्वों को लक्षित करने का आदेश दिया गया है. इसे एक ऐसे मॉडल के उदाहरण के ज़रिए समझिए जो अक्सर दुश्मन देश-समर्थित औद्योगिक जासूसी की वास्तविकता के साथ मेल नहीं खाता. हाल ही में उसे चीनी हैकर समूह मिररफोर्स की तरफ से किए गए साइबर हमलों का सामना करना पड़ा. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से जापान ने अपने राष्ट्रीय खुफ़िया जानकारियों को सुरक्षित बनाने की कोशिश की है. 2024 के मध्य में ऐसे कानून को लागू किया है जो सरकार के प्रमुख आर्थिक विभागों में काम करने वालों की सुरक्षा जांच को मजबूत करता है. चीन इन्हीं लोगों के ज़रिए जासूसी करा रहा था. 

 

इसी तरह भारत और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपनी काउंटर इंटेलिजेंस एजेंसियों की मज़बूती सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं. भारत का मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) का विस्तार होने वाला है. ये इस बात को सुनिश्चित करेगा कि खुफ़िया जानकारियों के बाहर प्रवाह पर कड़ा नियंत्रण रहे और घरेलू एजेंसियों के बीच ज़्यादा तालमेल बने. ऑस्ट्रेलिया ने भी महत्वपूर्ण रणनीतिक कार्यक्रमों को सुरक्षित करने के लिए समझौता विरोधी (एंटी कॉम्प्रोमाइज) उपायों पर ज़ोर देना शुरू कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया को फोकस उन कार्यक्रमों पर ज़्यादा है, जो AUKUS (ऑस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-अमेरिका) के तहत किए जाते हैं, इसके लिए संयुक्त परमाणु पनडुब्बी कार्यबल जैसी परियोजनाओं में ASIO अधिकारियों को शामिल किया गया है.

 भारत का मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) का विस्तार होने वाला है. ये इस बात को सुनिश्चित करेगा कि खुफ़िया जानकारियों के बाहर प्रवाह पर कड़ा नियंत्रण रहे और घरेलू एजेंसियों के बीच ज़्यादा तालमेल बने.

2007 में अपनी स्थापना के बाद से शायद ये पहला मौका है, जब क्वाड और इसके संयुक्त प्रयासों का महत्व इतना ज़्यादा बढ़ गया है. एशिया में भू-राजनीतिक दरारों का विस्तार, वैश्विक स्तर पर राजनीतिक घटनाक्रमों में बड़े बदलावों ने क्वाड के बीच सहयोग की अहमियत को बढ़ा दिया है. भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच तकनीकी और रणनीतिक समन्वय के नए क्षेत्रों का उदय ये दिखाता है कि अब इन देशों के बीच सहयोग की ज़रूरत कितनी बढ़ गई है, विशेष रूप से खुफ़िया क्षेत्र में. क्वाड की सफलता और प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ख़ुफिया क्षेत्र में संयुक्त सहयोग का प्रबंधन कैसे किया जाएगा.

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